"काफळ"काफळ खैल्या,स्वर्ग मा जैल्या,यी काफळ छन,हमारा मुल्क का.....देवतौं का रोप्याँ,ऊँचा-ऊँचा डाँडौं मा,बाँज बुराँश का,बण का बीच,देवतौं का हे!मुल्क हमारा.....पहाड़ की पछाण छन,लाल रंग का,भारी रसीला,छकि छकिक खूब खाला,जू अपणा मुल्क आला,जू नि खाला,मन मा पछ्ताला,यी काफळ छन,भारी रसीला.......कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"