Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383912 times)

Raje Singh Karakoti

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"काफळ"काफळ खैल्या,स्वर्ग मा जैल्या,यी काफळ छन,हमारा मुल्क का.....देवतौं का रोप्याँ,ऊँचा-ऊँचा डाँडौं मा,बाँज बुराँश का,बण का बीच,देवतौं का हे!मुल्क हमारा.....पहाड़ की पछाण छन,लाल रंग का,भारी रसीला,छकि छकिक खूब खाला,जू अपणा मुल्क आला,जू नि खाला,मन मा पछ्ताला,यी काफळ छन,भारी रसीला.......कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

Raje Singh Karakoti

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"ओ इज" कूण में जो भाव ऊनी,"माई मदर" में ऊ भाव काँ छ।अंग्रेजी बोलौ, उर्दू बोलौ,दुदबोलि में जो रूंछौ मिठास,अमृत में ले मिठास काँ छौ?लखनऊ बसौ, बम्बई बसौ,ये बात कैं तुम कभै नि भूलौ,परदेश को स्वर्ग ले छौ कुलाड़ो।आपण देइ को कुकुर लाड़ो॥("पहरू" अप्रैल 2015 अंक में प्रकाशित नरेन्द्र नाथ पंत ज्यू कि कविता)

Raje Singh Karakoti

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देव्‍तौं का धाम मा......देव्‍तौं का धाम मा देखा आज,प्रकृति की मार छ,मनखि जू भी सोचणा होला,प्रभु की लीला अपार छ......सबक लिन्‍युं चैन्‍दु सब्‍यौं तैं,धरती कू श्रृंगार करा,धौळ्यौं का धोरा घर बणैक,सुख की आस ना करा.....सब कुछ अपणा हात छ,मन मा, जरा विचार करा,आफत तैं, न्‍यूतु न देवा,धरती का जख्‍म भरा......केदार धाम की आफतन,जौंकु ज्‍यु पराण हरि,कवि नजर सी याद करदु,प्रभु तौंकु कल्‍याण करि.....-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु

Raje Singh Karakoti

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"इजा तू भौत याद ऊँछै"---खुशीक हो मौक, या हो दुख पीङमैं इकलै हूँ, या हो मैं दगै भीङइजा तू भौत याद ऊँछै।रत्तै हो या ब्यालया ऊणी जाणी नई पुराण सालइजा तू भौत याद ऊँछै।खुट में कान बुङनया हातक चसकनरूङिक घाम हो या हियूनक ठनइजा तू भौत याद ऊँछै।तू न्हाँतै मगर तेरि यादतेरि बताई बातत्यर दिखाई बाटमैं दगङी छनत्यर सिखाई सलीकातेरि दी शिक्षामैं दगङी छनयौ मैं दगङी रौलजब तलक मैं रूंन ज्यूंनतेरि बताई शिक्षामैं आपुण नानतिनन कैं लै दियूनमैं त्यर बताई बाट मेंसदा हिटनै रूंनऔर त्यर आशीरबादलमैं सदा फलनै फुलनै रूंनतू मेरि यादों में भै रौली भै रूंछैइजा तू भौत याद ऊँछै।।राजेंद्र

Raje Singh Karakoti

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आहा रे कस जमान ऐगो।पैलाग ज्यूजाग टाटा नेगो।।मिलन तक कुणी हाई।जानतक कुणी बाय।।हाथ जोड़न खुट पढ़न सब हैरेगो।कुल ड्यूड और बेबी डौल जमान जो आगो।।ईजा बोज्यू बुलाण में शर्म करनी।कमर क पेट जाघो में धरनी।।साड़ी बिलौज जमान नैगो।आध नगाड़ मनखियों जमान ऐगो।।इंग्लिश बुलाण में समझनी आपणी शान।तैक खातिर पहाड़ आज ह्वेगो बिरान।।नै शर्म नै लाज सब बेची खा हालो।बोज्यू थे ले डियर कुणी जमान आगो।।घर में बुढ़ ईजा बोज्यू नानतिनो लिजी बैचैन छन।चेली च्यालक पछिन और च्यल चेलियां पछिन पागल छन।।जै उमर में दात टूटछि हो आब दिल टूटन फैगो।ईज बोज्यू फिकर छोड़ी जान जानू समय आगो।।पहाड़ छोड़ी आब सब शहर के भागनी।घर क काम में मन नि लगान।।होटल में चाहे भान माझनी।घुघुति हरयाई पंचमी सब हैरान फैगो।।किस डे हग डे मनौनी जमान जो आगो।।पहाड़ बचाओ पहाड़ बचाओ बात सब करनी।ये बात दिल में कोई ना लीन सब बातों का शेर बननी।।आपणी भाषा संस्कृति विरासत बिना पहाड़ कसी बचल।जस घर और स्कूल में पाठ पढ़ाई जाल नान उसे सिखल।।पश्चमी और आधुनिक बननी जमान आगो।तभे आज पहाड़ विरान ह्वेगो।

हितेश उपाध्याय

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By Dr Anil Karki
 (facebook)

महाकाली पर बाँध
(लम्बी कविता का एक छोटा अंश आप सब के लिए)
ठगी जाती है
जब एक नदी
तब उसके किनारों की
आबादी भी ठग ली जाती है
ठग ली जाती हैं
सरल पशुओं की आवाजें
ठगे रह जाते पुल
जिनसे होकर
मनुष्य आये थे धरती पर
वह सेतु
जिनके दम से टिके थे
रोटी बेटी के संबन्ध
सभ्यताओं से वर्तमान तक
नदी के ठगे जाने के बाद
प्यास तक पहुँचने के
सबसे सही रास्ते ठग लिये जाते हैं
ठग ली जाती है
पंछियों की प्यास
बिजली के तारों के बहाने
नदी को ठग लिए जाने के बाद
अबोध बूढ़े गूंगे देवता भी
खुद को ठगा सा महसूस करते हैं
जो कामगार सौकारों
चरवाहों के पीछे पीछे
चैमास की नदी तैर के
आर-पार जाया करते थे
दरअसल नदी का ठगा जाना
मनुष्यता को ठग लिए जाने की
सबसे नई और बड़ी घटना है
इस दुनिया की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Karki
 
पहाड़ी फूल भिटौर मेरा पसंदीदा फूल है. अपनी मर्जी से खिलता है इन दिनों खिलने लगा है. इस समय भिटौर केवल फूल नहीं बल्कि एक प्रतीक भी है खाली होते पहाड़ों के एकान्तिक और लावारिश बंसत का (उमेश पुजारी की फोटो के साथ मेरी यह कविता 'लो भिटौर खिल गया बल' आप सब के लिए )
लो भिटौर खिल गया बल
जौं-मसूर के खेतों के बीच
थोड़ा सुफेद
थोड़ा लाल-गुलाबी रंग
थौड़ा पीला
थोड़ा हरापन लिये
थोड़ा शान्त
थोड़ा दहकन
थोड़़ा बसन्त
और भविष्य की उम्मीदों से भरा
थोड़ा डरा डारा
लुटते गौचर
सिमटते खेतों के दायरे में
बंजर करती शिरूघास वाली
सरकारी परिधि में
अकेला छटपटता हुआ
खालीपन के
झुरझुरिया एहसास में सिहरता
बचाता हुआ
हिमाल की ऋतुओं को
लो भिटौर खिला है बल
लो भिटौर खिला है बल
प्यासे खेतों की
बची 'आद' में
देश-परदेश गये
अपने सुवा-पंछीयों की याद में
जाते ह्यून
आते फागुन के बीच कहीं
अनमना सा बसन्त ओढ़े
ईजा की नराई के रंग सा
कुछ-कुछ उदास
बौज्यू की धुँवे सी पीली बूढ़ी आँख के भीतर
कुछ कुछ बनावटी गुस्से सा
भौजी की गात में
मिलन-बिछोह के स्मृतियों सा
अपने में रमे
गालों पर मैल के टाँटर लिये
सुड़कती नाक वाले
बच्चे की आँख सा
परदेसी दाज्यू के
मोबाईल सिग्नलों के बीच
कट कट के आती
आवाज में बसी मायूसी सा
कसक-पीड़
उदासी और हताशाओं के कुहरे के बीच
कुनमुनाते हुए
सीढ़ीदार खेतों के सीने में
हमारे हिमाल पर
लो भिटौर खिला है बल

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Karki
 
महाकाली पर बाँध
(लम्बी कविता का एक छोटा अंश आप सब के लिए)
ठगी जाती है
जब एक नदी
तब उसके किनारों की
आबादी भी ठग ली जाती है
ठग ली जाती हैं
सरल पशुओं की आवाजें
ठगे रह जाते पुल
जिनसे होकर
मनुष्य आये थे धरती पर
वह सेतु
जिनके दम से टिके थे
रोटी बेटी के संबन्ध
सभ्यताओं से वर्तमान तक
नदी के ठगे जाने के बाद
प्यास तक पहुँचने के
सबसे सही रास्ते ठग लिये जाते हैं
ठग ली जाती है
पंछियों की प्यास
बिजली के तारों के बहाने
नदी को ठग लिए जाने के बाद
अबोध बूढ़े गूंगे देवता भी
खुद को ठगा सा महसूस करते हैं
जो कामगार सौकारों
चरवाहों के पीछे पीछे
चैमास की नदी तैर के
आर-पार जाया करते थे
दरअसल नदी का ठगा जाना
मनुष्यता को ठग लिए जाने की
सबसे नई और बड़ी घटना है
इस दुनिया की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
February 16 at 8:23pm ·
कैन व्सिस्की पूछि, त कैन भै चिकन रम।
चार दिन कु भैजि,राजा बण्यां छाया हम।
दबि बटन वोट कु, अब फिरी प्रजा हम।
परसी तक पूछ छै,बणां अब अपछ्याण हम।
कब तक होलु इनु, भरमिणां भै रौला हम।
आओ मिलिक भै,सोचदा ए विषय पर हम।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
February 16 at 6:26am ·
जज्बा अधिकार कु, साहस एक फौजी कु।
वोट देणा चलि काफिला,शेरबहादुरभैजी कु।
तन लकवाग्रस्त च,नमन तेरू भै साहस कु।
निकली घर बटि तू, लोकतंत्र की रक्षा कु।
नमन पिथौड़ागढ म, बस्यु ऐ गैना गाँव कु।
वीर संतानो से च,भविष्य भलु देवभूमि कु।

 

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