Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383436 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
March 17 at 8:11am ·
नाति शैलेश का दगड़ा,
अहसास होंदु अति भलु,
कामना मां चन्द्रवदनी सी,
जिन्दगी भलि सदा चलु....
-कवि ज़िग्यांसू
17.3.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

झोली, झंगोरू,कौणी,कंडालि,
खूब खै राली राली,
वेकु असर आज दिखेणु,
उत्तराखण्ड कु मान बढौणा,
गर्व सी बोला,
हम उत्तराखंडी,
देवभूमि कू मान बढौणा.......
-कवि जिज्ञासू
रचना-1082
18.3.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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खेती पाती जै मनखि की हो,
करयुं चैंदु धर्ति कू श्रृंगार,
प्रकृति हि देणि सब्बि धाणि,
किलै करदा त्रिस्कार.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 17.3.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रेडियो पैलि पाड़ मा,
खूब धूम मचौन्दु थौ,
नजीबाबाद स्टेशन बिटि,
उत्तराखण्डी गीत सुणौन्दु थौ,
जबरि बिटि,
यू निर्भागि टी वी आई,
रेडियो की मवासी,
तैन धार लगाई,
श्री नंदन भैजि की पोस्टन,
कुतग्याळि सी लगाई,
रेडियो की भौत,
मैकु याद सी आई......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
रचना-1079,
दिनांक 18.3.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बुरांस, ढुंगा अर पाणी,
भै तुम्न कदर कतै नि जाणी,
पाड़ की नखरि भलि की,
खूब लग्दि आपतैं स्याणि.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
ग्राम: नौसा बागी, चंद्रवदनी, टिहरी गढ़वाळ।
रचना.1075
दिनांक 15.3.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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डाळि ऐंच बैठ्युं छौं,
त्येरी जग्वाळ मा,
लाल बुरांस छन खिल्यां,
ये गढ़वाळ मा.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 15.3.2017, रचना-1074

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
क्वी बनु सुरक्षा सलाहकार,त क्वी यखा कु मुख्यमंत्री।
क्वी जनरल देश कु,क्वी बणी कोस्टगार्ड कु मुख्य संतरी।
क्वी राॅ चलाणु च त,क्वी बणी उत्तरप्रदेश कु मुख्यमंत्री।
आज देश कु शासन चलाणा,पलायन देव भूमि बटि करी।
आज भी सट्टी वी पौड़ी की,जो भै खैनि तुमन ले चटकरी।
मिललु कभि वक्त त, अयां यख जय जयकार करी करी।
मि भूमि त तखी तनी, अब भी काम कनु जग्वाल करी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुझे नरेंद्र सिंह नेगी जी का गाया हुआ एक गीत याद दिलाता है "मोरी मोरी की मांड पे ल्या" । ये गीत नेगी जी ने उन लोगों के लिए गाय है जो अपने बूढ़े इजा, बाजु को पहाड़ में छोड़ कर परदेश चले गए है। इस गीत के बोलों को जरूर पढ़ियेगा।
मोरी मोरी की मांड पे ल्या
जख तलक ह्वे साकू निभै ल्या
खड़ी उकाल छाइ ज्वा कटे गे
रै उंदार अब, घिल्मुण्डि खै ल्या
जख तलक ह्वे साकू निभै ल्या
धुंवान्या हुक्का, डब्बा खांकरा को
नायु जमानु ऐ ग्ये, लुकै ल्या
जख तलक ह्वे साकू निभै ल्या
उन चन्दयां नातियों कु कन्द्यो मा
नौना ब्वारियों की सै ल्या
जख तलक ह्वे साकू निभै ल्या
तुम्हरी खुद अब कै थै नि लगणि
तुम खुदेणा छा, खुदे ल्या
जख तलक ह्वे साकू निभै ल्या
अब यूँ घरूं मा, कैन नि बूढ़े
तैं बुध्याण दगड़ै लीजै ल्या
जख तलक ह्वे साकू निभै ल्या

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
ऑखी बुझि छिन मेरी ,गिचि भी भै बंद करी च।
नि बोलदु कै कु कुछ मी,न देखणा की कसम च।
सुणणु अब रै नि गे, जमनु उगल्यू सी चलणु च।
मन की मन सी करदु मी,वक्त भै बदल्यु सी च।
गिची बंद ऑखी बंद,कंदूणोन सुड़णु भी बंद च।
क्वी मानो या ना मानो,शिक्षा ऐ गांधी जी की च।
सफल सुखी जीवन वी,जै कु यु अमल करयू च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
March 17 at 9:58am ·
फूल सी खिलि औं मी, भलु कना चुनाव की दुन्या म।
नामकरण एवीएम प्वड़ी, आधुनिक जमनु चुनाव म।
पुरणी पीढ़ी छै हमारी, मत पेटी नाम सी दुन्या म।
आस्था हम द्वियो की छै,भै स्वच्छ चुनाव कराण म।
पर पता नि छौ कि,हम अर वक्त बदलि ई दुन्या म।
पर मनखी अब भी उनि, जना पैलि छा दुन्या म।
हमरि पुरणी पीढि मत पेटी, सिसकदी रौ लुटेण म।
मि नई पीढी ऑशु बगाणु, छेड़छाड़ की दुविधा म।
कब बदलेली सोच भै,कब सुधरलि सोच चुनाव म।
कविता प्रेरणा-"पंकज मिश्रा" जी का बोल।

 

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