Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383239 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
March 30 at 11:12am ·
दिन सुधरी हमरा भै,योगी जी का आण सी।
भलु लगणु प्रेयसी दगड़ी, टब म नहाण सी।
आनंद जीवन कु लेणु, कैद बै भैर आण सी।
राला ऐ सदनी दिन, बूचड़ो की हड़ताल सी।
जुगराज रयां तुम,करदा रैयां काम इना सी।
जिन्दगी भी नरक छै,बूचड़खानो म रैण सी।
तुमरू भ्वार मिली भै,मौका जीणो स्वर्ग सी।
मिल्या मुख्यमंत्री सब थै,भै योगी आप सी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
March 29 at 5:56pm ·
क्या जी पाई होलु, मिन मुकुट पैनी की।
जिंदगी भलि छै, मेरि बिना ब्यावा की।
क्या जी मिली होलु, मांगल भै लगै की।
ढोल बजी बैंड पर,दारू नि बांटी छकै की।
लगी श्राप दगड़्यू कु, जो नचि बिना पे की।
मैं ए झंजाल छु,फस्यू मि ब्योला बणी की।
सुपन्या स्वाणा देखी,तैंकीमुखड़ी देखि की।
आज मि पछताणू,ऐ जुठा भांडा मंज्या की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
March 29 at 9:45am ·
गौरव पहाड़ो कु, हटमली कूड़ो की तान।
दुःख सुख की दगड़ी,माया म देंदी ज्यान।
पलायन अब डलणू, गाँव म व्यवधान।
भंडि की आश म,भंडि छोड़णा भै इंसान।
विचित्र सी जीवन थै,समझणा भै सम्मान।
सिर उठै खड़ि कूड़ी,बडाणा हमरू मान।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
मनखि छौं पाड़ कू, ढुंगा म्येरा दगड़्या,
बांज, बुरांस, देवदार, जौं सी छ अति प्यार......

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
  ·
कनु जमानु आई,
छवीं बात्त कु,
कथा सुण्न कु,
निछ ऊलार,
टी वी घर घर,
छैगि हपार....
-कवि जिज्ञासू
2.4.17

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दस साल पैलि अक्टूबर 2007 मा....
यना था हम कबरि,
बग्त बदलिगी आज,
याद औन्दि जब जब,
मुंड मा ऊठदि खाज....
-कवि जिज्ञासू

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पाड़ौ पाणी.....
ऊ मनखि प्येलु,
ज़ु कर्दु पाड़ सी प्यार,
वैका खातिर प्रकृति कु,
अनमोल ऊपहार...
-कवि जिज्ञासू
31.3.2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
9 mins ·
जिन्दगी का जाल मा,
मन हमारु बस्युं रंदु,
वे प्यारा गढवाल मा,
जख हम्न ज्वानि का,
ऊ दिन बितैन,
बिगलेयौं सब्बि दगड़या,
दुबारा दर्शन नि ह्वेन....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कोई नग्मा पहाड़ों का
कोई नग्मा पहाड़ों का
पहाड़ों में गुनगुनाया जाए तो कैसा हो
राज़ – ए – अल्फ़ाज़ दिल के
सारे दिल से निकले जाए तो कैसा हो
घघुती के बने घोल में
खुद को अगर अब ढूंढा जाए तो कैसा हो
"गिर्दा" की लिखी कविताओं के
हर अक्षर में खुद को गर पायें तो कैसा हो
आओ सीखें अब शब्द गढ़वाली
अपनी भाष में गर बोला जाए तो कैसा हो
बहती रहती है वो धारा गंगाजी की अविरल
माँ को अब जीवित समझ जाए तो कैसा हो
नेगी जी के बिना ये पहाड़ सूना सूना है
ढोल दामो पहाड़ में ना सुनाई दे वो मण्डन सूना है
भगवती का जयकर यंहा दुगुना है
मेरे पहाड़ पर अब भी प्यार चौगुना है
वही प्यार तेरे मन में गर उभर जाए तो कैसा हो
कोई नग्मा पहाड़ों का
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बिराणी
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी
इत्गा किलै ह्वैग्याई
आंखियुं का आंसू पुछ्दा सुख्दा
जिबन भोळ ह्वैग्याई
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
अकुलौ माया
मन माया बाई मा समागैई
लांद, झूटा-फीटा
सऊँ खंद दिटा किलै इन कैरगैई
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
झुटि सच्ची स्याणी
कंठि किलै गोठ्याणी काणि
मैंत बोदू बात सोच दिन रात
मुरखू कु संग किलै कैरगैई
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
आँखु देखि लाडी
बात कैगे लाटी बुरु ना मानी
जगत की गालि पोट्गी की खाणी
मिथे इन बिराणी ना कैजादि
हे री तेर देरी ....ऐ बेरी ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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