Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383239 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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छुछा
अब तू छुछा दिखेणु नि छै
कख तू छुछा सैगुसै ह्वेगे
द्वि बियां कु चार अनारा
कैगे तू कदगों कु बिमारा
बल तिल खूब कमैई कै छै
तेरु किलै क़ि अब निखंडु ह्वेगे
पहाड़ पिछणे पहाड़ हुलु
क़दगा पिडा लुक्के हुलु
अब तू छुछा दिखेणु नि छै
कख तू छुछा सैगुसै ह्वेगे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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यखुलू मि
कख लगि हुली मांजी
कख बिरडी हुली
सबेर घास कु ग्याई
मांजी कख हर्ची हुली
क्वी जाण ना
विं की क्वी पछाण ना
कै डालू छैलु बैठी मांजी
रुन लगि हुली
कख कख खोजों विंथे
विं बाण कख रिंटू
थमेंदु नि जिकोडी धकध्याट
विं से कया बोलूँ मांजी
हल मेर इन छिन
कैथे मि जैकी बोलू
बाबाजी मेर छन मांजी
सात समुदर पार
बालकृष्ण डी ध्यानी
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म्यारा बाठों मां
म्यारा बाठों मां अयां अद कच्चा रास्त्ता
म्यारा भागों मां कु कु उकेरी कि गयां
सिपुड़ा नाक मेरु मिन इन लिपि सिपी
स्लेट कु आखर बस मिथे लेकि ऊ दौड़ी
पिंगळा लाल फूल नि मिथे इन रसाई
लाल सारी हैरी चूड़ी पैनी कि वा घार आई
कमरी तौड़ी मेर इन गरीबी की छैलि न
फिर अद कच्चा रास्त्ता म्यारा बाठों मां अयां
बालकृष्ण डी ध्यानी
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निंदी
ढुल ढुल कैकि
आंदि जांदी छे
मुंड थे झुल झुल कैकि
हिलांदी छे
कु हुलु निर्जक सियुं
गुर गुर करनु
नाक कु छिद्र कु बथों थे
सुर सुर करनु
कैथे ऐजाँदी
सिंकुली सुरक करि की
मिठा सुपनीयू ले जांदी
अंचल भौरि कि
कैथे याखुली याखुली
क्दगा तड़पादीं छे
पिछणे पिछणे अपडा
क्दगा दौड़ांदी छे
खेळ छन विंक
रति बेराती न्यारा न्यारा
कबि हसंदी रुलांदी
कबि खूब बचांदी छे
निंदी जबै
में पास आंदि जांदी छे
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एक डाली
एक डाली मेर केदार की
एक डाली मेर बद्री धामा की
एक डाली मेर भगवती की
एक डाली मेर देबता ईस्टों की
एक डाली माया की
एक डाली छैलू की
एक डाली ब्योला ब्योलि की
एक डाली मैता की
एक डाली संस्कार की
एक डाली रीती रिवाज की
एक डाली गौं की
एक डाली मेर पहाड़ की
एक डाली सैंति पाली की
एक डाली ७ फेर की
एक डाली बेदी की
एक डाली अग्नि की
एक डाली हैरालि की
एक डाली वा बिगरैली सी
एक डाली जो लगाला
वैकुंठ द्वार अपड़ा बणाला जी
एक डाली कुमो की
एक डाली गढ़वाला की
एक डाली उत्तराखंड की
एक मेर भारत देशा की
बालकृष्ण डी ध्यानी
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लगिं छे टिकिटू कु
लगिं छे टिकिटू कु
गॉथम गौथा,गॉथम गौथा
तौड़ी डाली कुर्सी
ना मिली टिकिटू त
ह्वैगे चालु जूतम जूता
लगिं छे टिकिटू कु ...............
कु करदु खैल जनता कु
कु पूछ्दु हाल घैल जनता कु
लग्यां छन सबि कुर्सी बणा
ना मिली टिकिटू त
ह्वैगे लातम लात
लगिं छे टिकिटू कु ...............
कैथे फ़िक्र हुली जनता की
कैथे बिचार आलो बिकास की
सबी बणाण लग्यां छन माळ
ना मिली माळ त
ह्वैगे त लूटम लुटा
लगिं छे टिकिटू कु ...............
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
घत्त आज यनु आई,
भग्यानु की सार,
खासपटटी की बात छ,
भागीरथी का पार.....
ओल्या गदना भतग खाई,
पल्या गदना मार,
हाडग्यौं कू बणिगी पिन्ना,
बतौणु हपार......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
रचना.1092, दिनांक 7.4.2017

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बाळ बणी जांदु दीदों
जैकी थौळ म्यालों मा
बचपन खुज्यांदु अपुंण
जैकी गौं क म्यालों मा
जलेब्युं की घिरली देखी
लर लार टपकांदु मी
चरखी मा बैठंण कु दीदों
रग रग रगर्यांदु मी
बचपन क गैल्या दगड्या
म्याळ मा खुज्यैन मीन
दीदी भूल्यूं तै भिटै भिटै की रुंद
छैल मूड देखी मीन
बदले गेन म्याल भी
दीदों म्यार पाड मा
ब्वारी दिखंण कुन सासू
देखी भी नी म्याल मा
पुंयीं वाल गुब्बारा दीदों
सरा म्याल मा खुज्यांणु रौं
बदले गेन थोळ म्याल
डमरु भी नी पायी मीन
बाळ बंणी जांदु दीदों
जैकी थोळ म्यालों मा
बचपन खुज्यांणु रौं
ब्याली जैकी म्याल...
सर्वाधिकार रक्षित @लेख सुदेश भट्ट
"दगड्या"

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Darsansingh Rawat
 
बदलणा पहाड़ भी, नयु जमना दगड़ी अब।
पुरणी चीजो दगड़ी,मिलणी नयी चीज अब।
मांग वक्त की भी च,बडणु अगनै भी च अब।
जीवन सफल सी तभी,वक्त दगड़ी रैंण जब।
नै दगड़ी चलण त,संजोड़ विरासत भी अब।
जुड़णु अपणो सी भै,पहचान रैंद बणी तब।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
April 4 at 11:30am ·
जिन्दगी त्यरा रंग कना, बोल न बच्याणां ढंग।
मिलदु मौका मैं जनौं भी,जो जिंदगी म बेढंग।
कथा फिल्म की भै, जमणु जै म मेरू भी रंग।
शक्ल मै ठिक लगदी अपणी, दुन्या रंग बिरंग।
"मनखी तेरा सुपन्या" फिल्म,भै कनु मि डबिंग।
देख्या जरूर तुम भी,सुपन्यो का होंदी कना रंग।

 

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