Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 382612 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
मुंड चमकणु हिम मुकुट, चरणों म लहर सागर की।
मुख सी निकलणी गंगा,तीस बुजाणी खूब जीवों की।
दैण हथ अरब कु पाणी,बैं हथ तलि खाड़ी बंगाल की।
मनखी त मनखी भै, प्रकृति भी खड़ि हाथ जोड़ि की।
दिल म मनख्यो कि बसी, तनी डालि बूटि पाणि की।
नक्शा बनाणु भै गदनु भी, जय कनु भारत माता की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
डांडी कांठी तनी भै,कुऐढी भी तनी लगणी च।
सदानी की चार भै,बरखा बत्वणि भी होणी च।
बाटु भी तनी च,कूड़ि लड़खणांदि सी डटी च।
हम मनख्यू सी भै,चीज वस्तु भंडि वफा वलि च।
फितरत च मनखी की,भै सज एक जगा नी च।
कुछ नया कु लालच म,पुरणु थै त्यगण लग्यू च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुमाऊनी मासिक पत्रिका 'पहरु' बटि बालम सिंह जनौटी ज्यू कि एक कविता-
हम कुमाऊनी के आइडेंटिफाई करण में सक्सेसफुल हैगीं कुमाऊनी कॉन्फ्रेंस वन बाई वन ब्यूटीफुल हैगीं
आब कुमाऊनी मैक्सिमम मिस्टेक ले करेक्ट हैगीं
डिफिकल्टी जो फील हुछि ऊ डिस्कस में ऐगीं।
इंग्लिश में कुमाऊनी स्पीच करणी 90% हैगीं
हम लै विदिन अ इयर एक्सपर्ट हैगीं
बिफोर लास्ट ईयर चीफ गेस्ट कैगीं
आब हम कुमाऊनी मर्चेंट हैगीं।
एनी वे, आब हम कुमाउनी के लैंग्वेजा shape में लेगईं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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खाप
ताँड़ियैलि
जि हुँछ ....
हा्ट - भा्ंट
टोड़ण पड़नी
तब जै बेरि
इचा्व में
पाँणि पुजों ....
कुल्यूँण
खालि जि हुँछ
पाँणि - पौर
बैठि रुँण पड़ौं ....
नेता
के जाँणों
जतका्व पेट
ल्ही बेरि
माईक में
ढोल जस बाजों
क्वे सुणों
झन सुणों ....
के फर्क पड़ौं
उकैं , मगर
ते कैं
फर्क पड़न चैंछ
लोकतंत्र में ......
यो एक
जरुरी शर्त छ ।
ताँड़ियैलि -- खोलने से , हा्ट भा्ँट -- हड्डी पसली , इचा्व -- खेेत का किनारा , कुल्यूँण --- खेत में पानी लगाना , पाँणि पौर -- पानी की चौकीदारी , जतका्व पेट - फूला हुआ पेट या गर्भवती जैसा ,

by Gyan Pant

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हमारा गौं मा....
अब कैन नि बुढ़ेण,
सब चलिग्यन परदेस,
द्वी चार दाना मनखि रयां,
ब्वोन्ना, हम बण्यां छौं खबेस.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 25/7/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दुन्यां मा देखा, हे दगड़्यौं,
सब कुछ माया कू जाळ छ,
माया मोह का बस ह्वोयां,
या जिंदगी जिबाळ छ......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 25/7/2017

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
गोरों की फिकर न भै, कछड़ि लगीं ग्वालो की।
रूम झुम सी छिटाणी, बरखा सौणा मैना की।
गौचरी जमीन चरणा,रमछोलु भै छ्वयो की।
द्वी सारी खेति नी च ,बार प्वड़ीं गोर बकरों की।
आजाद जिंदगी पहाड़ों की,गप्पि लगणी मन की।
मारा मार नि दिखेंणी यख, जिंदगी च फुर्सत की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
बचपन एक सी,बोलि नि ऑदी एक दुसरा की।
मि नौन्याल बकरी कु, तु छै संतान भैंसा की।
नस्ल अलग हमरि,पर उपज हम एक छनुड़ि की।
छवी नि समझणा पर,जणदा एक दुसरा मन की।
परबाद क्या होलु भै,कैन नि देखी भविष्य की।
आ मिलिकी खेलदो,जिन्दगी च ए चार दिना की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
दिन छाया ब्यालि तक,रैंदु छौ कुंगलि हथ्यो म।
इज्जत इनि छै भै,दिखेंदु छौ हर सब्जी रस्वै म।
लाल गल्वड़ि बांदो की, छै मेरी कम्पटीशन म।
राजा छौ मि सब्जियो कु, मुखिया भै मसलो म।
म्वरू मार म सरगा कि,कुछ दलालो की माया म।
खते ग्यू सड़क सड़णो,गोर भैस्यो का खुटो म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
July 25 at 12:22pm ·
सौण मैना बगत च भै, गैथ लगाणि फांग्यो थै।
माटु हैल नि छोडणु,घास गाड़ि जुल्याण फुंगड़ी थै।
रूण झुण बरखा भी, खूब गिल्याणी भै माटु थै।
खेति धाण हमरी रीत,सिखाण ऐ भी नई पीढ़ी थै।
अन्नदाता भै बनण हमन, अनाज बटण दुन्या थै।
पाणी का छुया बचैकि,हरू भरू कन पहाड़ो थै।

 

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