Author Topic: पहाड़ की नारी पर कविता : POEM FOR PAHADI WOMEN  (Read 53732 times)

Dinesh Bijalwan

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मा और बौजि

नौनि रे बौजि बडा घर की , खरी नि वीकी खायी रै
चार भायो की यकुली बैण, यान भी कुछ पत्कायी रै
नि रणु दबी सैसर मा , कुछ मरी जमाना कि पैड,
कुछ मैत्यो की बि सिखायी रै ,
माडा घर का माडा जोग , माडी हि भैजी की कमायी रै ,
उलार नी हैन कुटम्दारी मा पूरा , यान बि बौजि कुम्णायी रै,
मा रै यक्ल्वार्स्या सदानी की , बल काम कु ही हबासू रै,
फिक्का पक्दा गैन दुयो का , दुर्मति को यनो बासो रै,
गरीबी थै जड नागल कि , सासू  ब्वारयो कु सुद्दि तमाशु रै /

पंकज सिंह महर

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thanx mahar jyu

ye kaise lipyantaran hota hai/

दाज्य़ू, आपके मैटर को मैने पहले word पर paste किया, फिर उसे हिन्दी font में बदला, उसके बाद उसे टाईप किया है। चेंज भी होता है, लेकिन उसकी विधि से मैं अपरिचित हूं। हेम दा को शायद मालूम हो...।

हेम पन्त

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Nahi mujhe nahi aata...main kai baar try kar chuka hoon...Seekhana hoga kisi se...

खीमसिंह रावत

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thanx thanx

खीमसिंह रावत

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thanx mahar jyu

ye kaise lipyantaran hota hai/

दाज्य़ू, आपके मैटर को मैने पहले word पर paste किया, फिर उसे हिन्दी font में बदला, उसके बाद उसे टाईप किया है। चेंज भी होता है, लेकिन उसकी विधि से मैं अपरिचित हूं। हेम दा को शायद मालूम हो...।

mahar jyu maine word me kundali font ka prayog kiya hai/ matter ko pest karne me dikakt si aati hai/

aapaka bahut bahut dhanyabad/

khim

Meena Pandey

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Ahaaaa.....kitne typical pahadi word use kiye hai. dinesh ji thoda bahut arth b samjha do plz
मा और बौजि

नौनि रे बौजि बडा घर की , खरी नि वीकी खायी रै
चार भायो की यकुली बैण, यान भी कुछ पत्कायी रै
नि रणु दबी सैसर मा , कुछ मरी जमाना कि पैड,
कुछ मैत्यो की बि सिखायी रै ,
माडा घर का माडा जोग , माडी हि भैजी की कमायी रै ,
उलार नी हैन कुटम्दारी मा पूरा , यान बि बौजि कुम्णायी रै,
मा रै यक्ल्वार्स्या सदानी की , बल काम कु ही हबासू रै,
फिक्का पक्दा गैन दुयो का , दुर्मति को यनो बासो रै,
गरीबी थै जड नागल कि , सासू  ब्वारयो कु सुद्दि तमाशु रै /

Dinesh Bijalwan

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मीना जी हिन्दी अनुवाद परस्तुत है-

मा और भाभी
भाभी बडे घर की बेटी थी, उसने जीवन की कठ्नाई नही देखी थी
वह चार भाइयो की अकेली बहिन थी, इसलिये लाड प्यार के कारण कुछ तुनुक मिजाज थी,  ससुराल मे दब कर नही रहना , कुछ तो उसे मायके वालो ने और कुछ  जमाने ने सिखाया था ,
गरीब घर के भाग  भी कमजोर थे और भाई की कमायी भी कम थी ,
इसलिए सन्युक्त  परिवार मे भाभी की इछ्छाये पुरी नही होने से वो मायुस थी , और मा - वो तो हमेशा की अकेली ठ्हरी , बस काम काम और काम जानती थी ,  उन्के बीच मतभेद बढ्ता गया, दुरमति ने उन्हे अपने बस मे कर लिया ,  झगडे की असली जड तो गरीबी और अभाव था , मा और भाभी तो खामखा लड रही थी

Rajen

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यथार्थ के धरातल पर उकेरे गये शब्द.........

और भी उम्मीद है।

मा और बौजि

नौनि रे बौजि बडा घर की , खरी नि वीकी खायी रै
चार भायो की यकुली बैण, यान भी कुछ पत्कायी रै
नि रणु दबी सैसर मा , कुछ मरी जमाना कि पैड,
कुछ मैत्यो की बि सिखायी रै ,
माडा घर का माडा जोग , माडी हि भैजी की कमायी रै ,
उलार नी हैन कुटम्दारी मा पूरा , यान बि बौजि कुम्णायी रै,
मा रै यक्ल्वार्स्या सदानी की , बल काम कु ही हबासू रै,
फिक्का पक्दा गैन दुयो का , दुर्मति को यनो बासो रै,
गरीबी थै जड नागल कि , सासू  ब्वारयो कु सुद्दि तमाशु रै /

hem

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thanx mahar jyu

ye kaise lipyantaran hota hai/

दाज्य़ू, आपके मैटर को मैने पहले word पर paste किया, फिर उसे हिन्दी font में बदला, उसके बाद उसे टाईप किया है। चेंज भी होता है, लेकिन उसकी विधि से मैं अपरिचित हूं। हेम दा को शायद मालूम हो...।

matter ko copy kar ke quick reply wale space par paste kar dein. font face par click karne par by default verdana font aayega. "verdana" ki jagah "kundli" type karein.preview karne par  matter hindi mein aa jayega.

Dinesh Bijalwan

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पहाडी नारी पर तोता किशन गैरोला के  प्रेमी पथिक कि चन्द लाइने-

सावित्री सी चतुर सी , सत्य सन्क्ल्प वाली
सीताजी सी विपति दगड्या, राधिका सी खिलाडी
हो जो टेढा समय पर जो जोशिली चन्डी ही सी
विर्न्दा  देखी मैन तन ही जन्म्भूमि की श्री सी /

 

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