"लील गया पहाड़"
पहाड़ को गुस्सा क्योँ आता है?
गुस्से में सब कुछ लील जाता है,
जैसे पिथौरागढ़ के,
ला, पनलिया तोक और रुनीतोला तोक के,
बेसुध सोते लोगों पर टूटा पहाड़,
क्या कसूर था उनका?
यही कि वे पहाड़ से प्रेम करते थे,
और अपनी आजीविका चलाते थे,
सुन्दर होते हुए भी, क्योँ बना काल,
पहाड़, क्या वे आपसे नफरत करते थे?
बादल ही तो फटा था,
क्रोधित होकर पहाड़ तेरे ऊपर,
रोक लेता,
और बचा देता उन लोगों को,
जो रहते थे तेरी गोद में,
सदियौं से जीने कि आस में.
उन्हें क्या पता,
लेकिन जो जा रहे हैं,
वहां पर राहत कार्य के लिए,
देखेंगे मौत का मंजर,
छायाकार ऊतारंगे तस्वीरें,
लोगों को दिखाने के लिए,
पत्रकार भेजेंगे आँखों देखी रिपोर्ट,
देखो, पहाड़ ने कैसे लील दिया,
बेरहम होकर अपनों को.
बद्रीविशाल ऐसा कभी न हो,
जो घटित हुआ,
ला, पनलिया तोक और रुनीतोला तोक के,
हँसते-खाते-खेलते-सीधे-साधे,
पर्वतजनों के साथ सुबह ८.८.०९ को,
जो पहाड़ से प्यार करते थे,
कवि "जिज्ञासू" कि तरह
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
10.8.2009