Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527389 times)

धनेश कोठारी

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मार येक खैड़ै

तिन बोट बि दियाली
तिन नेता बि बणैयाली
अब तेरि नि सुणदु
त मार येक खैड़ै

ब्याळी वु हात ज्वड़दु छौ
आज ताकतवर ह्वेगे
अब त्वै धमकौंणु च
त मार येक खैड़ै

वेंन ही त बोलि छौ
तेरू हळ्ळु गर्ररू ब्वकलु
तु निशफिकरां रै
अब नि सकदु
त मार येक खैड़ै

तेरि जातौ छौ थातौ छौ
गंगाजल मा वेन
सौं घैंट्यै छा
अब अगर नातु तोड़दु
त मार येक खैड़ै

source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
कापीराइट : धनेश कोठारी
kotharidhanesh@gmail.com

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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                      पनीका नानी च्येली
                    

                    उतरैणी दिनै की बात छी,
                   नान तीन घुघुत खूल कनै खुशी है रा छी।
 
                  उबेर ब्याखुली टैम है रौ छी,
                  तब सब घुघुत बना है भै रा छी।
 
                  उ दिन बाखई पनी काक लै,
                  छुट्टी ली बेर घर ऐं रा छी।
 
                  पनी काकैल भ्यार देख भतेर देख,
                  पनीका घरवाई घा काटण जै रै छी।
 
                   उनूल आपण नानी च्येली है पुछ,
                   अरे च्येली त्येरी ईज का जै रै।
 
                    उनरी नान च्येलील चट चारी जबाब दी,
                    तुमु कणी त ईज ग्वाव भैटाय रैछी।
 
            सुन्दर सिंह नेगी दिनांक 15 जनवरी 2010

धनेश कोठारी

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उमेश डोभाल की कविता

जागो! बसन्त दस्तक दे रहा है

सरपट भागते घोड़े की तरह नहीं
अलकनन्दा के बहाव की तरह
धीरे-धीरे आयेगा बसन्त

पतझड़ के नंगे पेड़
बसन्त की पूर्व सूचना दे रहे हैं
मिट्टी, हवा, पानी से ताकत लेकर
तने से होता हुआ
शाखाओं-प्रशाखाओं में पहुंचेगा बसन्त

अंधेरे में जहां आंखे नहीं पहुंचती
लड़ी जा रही है एक लड़ाई
इस खामोश हलचल के पीछे
अंदर ही अंदर जमीन तैयार हो रही है

खूंटी पर टंगे थिगलाये कोट की तरह
मैं भी उम्र भर चिन्तायें ढोता रहा हूं
इस वर्ष चाहता हूं
बसन्त को देखूं-परखूं और उल्लास क साथ मनाऊं
पहाड़ों में वनस्पति के साथ
चेहरों पर भी खिलना चाहता है बसन्त

जागो! बसन्त दस्तक दे रहा है।

साभार- जागो! बसन्त दस्तक दे रहा है। (कविता संग्रह)
प्रकाशक- उमेश डोभाल स्मृति न्यास, पौड़ी। 2005

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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        वो वादीयां

जो वादीयां कभी मेरी सांसे थी,
मगर आज वो एक जुदाई है।

जो वादीयां मेरी तनहाई दूर करती थी,
मगर आज वो खुद तनहाईयो मे है।

कितना मजबुर हु मै कि उनकी,
तनहाई मे सामील नही हो सकता।

कितना दूर हु मै कि उनकी,
तनहाई को हरा भरा नही कर सकता।

वो फिर भी मेरे इन्जार मे है,
अपनी ही सासों मे जी रहे है।

वो भी समझते है सायद कि आशा ही जीवन है,
ये सोच कर सायद ईन्जार कर रहे है.

सुन्दर सिंह नेगी दिनांक 20 01 2010

jagmohan singh jayara

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"मेरा पहाड़"

आपका भी है प्राण  से प्यारा,
जहाँ जन्म हुआ हमारा और तुम्हारा,
उस दिन हंसी थी फ्योंलि और बुरांश,
हमारे उत्तराखंड पदार्पण पर,
माता-पिता की ख़ुशी में,
शामिल हुए थे ग्राम देवता भी,
ग्रामवासी और पित्र देवता भी.

भूलना नहीं मित्रों पहाड़ को,
हमने अन्न वहां का खाया है,
जैसे कोदा, झंगोरा, कांजू, काफ्लु,
तोर की दाल और कंडाळी  का साग,
लिया जन्म हमनें उत्तराखंड में,
देखो कैसे सुन्दर हमारे भाग.

ज्वान उत्तराखंड कहो या मेरा पहाड़,
कायम रहनी चाहिए आगे बढ़ने की ललक,
उत्सुकता बनी रहे हमेशा मन में,
देखने को उत्तराखंड की झलक.

शैल पुत्रों ये हैं कवि "ज़िग्यांसु" के,
मेरा पहाड़ के प्रति मन के उद्दगार,
पहाड़ प्रेम कायम रहे सर्वदा,
पायें पहाड़ से जीवनभर उपहार.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, 5.२.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड.
दूरभास:९८६८७९५१८७

jagmohan singh jayara

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"देवभूमि मा पड़िगी ह्यूं"

याद ऐगि ऊँ दिनु की,
या खबर सुणिक,
जब सैडि  रात होन्दि  थै  बरखा,
अर सुबेर  उठिक देख्दा था,
ह्यूं पड़युं चौक, सारी, डांडी, कांठयौं   मा,
खुश होन्दु थौ मन हेरि हेरिक,
देवभूमि उत्तराखण्ड मा.

आस जगणि छ मन मा,
खूब होलि फसल पात,
मसूर, ग्युं, लय्या फूललु,
ज्व  छ बड़ी ख़ुशी की बात.

बस्गाळ अबरखण ह्वै,
महंगाई  सी टूटणि  छ कमर,
ह्युंद की बरखा वरदान छ,
नि रलि महंगाई फिर अमर.

पड़िगी ह्यूं बल उत्तराखंडी  भै बन्धु,
औली, हेमकुंड, चोपता, तुंगनाथ, जोशीमठ,
धनौल्टी, त्रियुगीनारायण, ऊखीमठ,
खुश ह्वैगिन देवी देवता जख चार धाम,
डांडी, कांठयौं   मा चमलाणु छ घाम,
सच बोलों त जन चमकदी छ चाँदी.

अपणा मुल्क की जब मिल्दि  छ,
जब यनि भलि खबर सार,
आशा कर्दौं आप भी खुश होन्दा  होला,
"देवभूमि मा पड़िगी बल ह्यूं"
जू ल्ह्यालि खुशहालि अपार.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०.२.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी.चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.

jagmohan singh jayara

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"देब्तान बोलि"

एक दिन जब आफत आई,
कुल देब्तान किल्किक,
कौम्पि कौम्पिक बताई,
सुण भगत त्वे फर,
लग्युं छ मेरु दोष,
कै बार चिनाणु दिनि मैन,
पर त्वे सने नि आई होश.

पैलि त तू मेरु मंडलु,
घसि लिपिक घड्याळु लगौ,
कै सालु बिटि  नि दिनि पूजा,
अपणा मन मा आस्था जगौ.

मैन बोलि देब्ता,
अब मैं खाण कमौण का खातिर,
घर बार छोड़िक छौं ये परदेश,
देवभूमि मा देब्ता जनु थौ,
अब यख बणिग्यौ खबेस.

संकल्प छ मेरु देब्ता,
जब मैं अपणा गौं उत्तराखंड जौलु,
देखलु अपणि जन्मभूमि,
दया दृष्टि रखि मै फर,
जरूर तेरु घड्याळु लगवौलु.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११.२.२०१०)
ग्राम:   बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टिहरी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
 

jagmohan singh jayara

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"हद करदी आपने"
 
 "जहाँ तुम ले चलो" चलता हूँ,
 हमें अल्विदा कहकर चले गए,
 ‘दायरा’, ‘हम तुम पे मरते हैं’,
‘शिकारी’, ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’,
 ‘औजार’, ‘इस रात की सुबह नहीं’,
‘गॉड मदर’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’,
 ‘जहाँ तुम ले चलो’,  में अभिनय करके,
यादें अपनी छोड़ गए.

अभिनय और निर्देशन करके,
अपनी कला का प्रदर्शन किया,
पहाड़ ही नहीं पूरे देश को,
भरपूर मनोरंजन दिया.

पहाड़ के प्रसिद्ध अभिनेता,
निर्देशक निर्मल पाण्डे जी को,
अपने पास बुलाकर प्रभु,
"हद करदी आपने".

पहाड़ नतमस्तक है आज,
दुखी है पर्वतीय समाज,
श्रधांजलि आपको हमारी,
दुःख हमें अनंत है आज.

श्रधांजलि रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"


 
 

धनेश कोठारी

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 :( :( :( :( :( :( :(
"हद करदी आपने"
 
दुखी है पर्वतीय समाज,
श्रधांजलि आपको हमारी,
दुःख हमें अनंत है आज.

श्रधांजलि रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िग्यांसु"


 
 


mohan singh bhainsora

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हठी  यादें
 
मुट्ठी  से रेत की तरह फिसल गई जिंदगी,
अबतो बस हथेलियों पर यादों के रेणु नजर आते हैं.
कीमत लगा के तू, तुम, आप पुकारते हैं लोग,
जो गर्दन घुमा बुलाले वो इशारे कहाँ  नज़र आते हैं,
 आड़े आया ना कोई मुश्किल में,
सब मशवरे (सलाह) दे हठ जातें हैं,
तुम्हारे मुस्कराने का कोई मतलब तो रहा होगा,
प्रीति के संकेत यूँ ही व्यर्थ तो नज़र नहीं आतें हैं.
तुम्हारी याद भी तुमसी हठी,
तुम जाके नहीं आये और तेरी याद के साये आके नहीं जातें  है.
 
सेक्टर-९/८८६, आर. के. पुरम,
न्यू डेल्ही

 

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