पहाड़ के गुलजार नेगी दा की इस रचना की याद आ गयी आज आसमान को देखकर जो आजकल के मौसम अनुकूल है
फोटो क्लिक......................शैलेन्द्र जोशी
असाड कुयेडी लौकण सी पैली
सौंण बरखा पाणी बरखण सी पैली
ऐजयी फिर दिन निछन
भादो का भादोड़ा बाण सी पैली
ऐजयी फिर दिन निछन
बामण बुन्नु च
फिर दिन निछन
देखयाली पत्डू
बंचायाली पत्डू
फिर दिन निछन
कख धरी च चापत्ती
गुड़ चिन्नी मिन्नी च
त्वैमा क्या बुन घर की बात
उबली खिचड़ी चढ़ा यी च
त्वै दगड़ी गै दाळ भात
पेटा अंदडा पिंदडा
सुखण पैली
कख धरी च चापत्ती
गुड़ चिन्नी नि मिन्नी च
चाबी दगड़ी लि गयी
अलमारी नि खुन्नी चा
घर का ताला कुंजा
टूटण से पैली
ऐजयी फिर दिन निछन
बल्द सिंग पल्याणा छिन
घास पाणी तरकिणी चा
भैसी औण देणी चा
एक लत्या गौड़ी लत्याणी चा
लैंदी गौड़ी भैसी छुटण सी पैली
ऐजयी फिर दिन निछन
मैकू प्यारी तू ही रै
त्वैकू प्यारु मैत हवे
त्येरा मैत्यु रै भरुम
सदानी म्येरी
जिकुडी झुरै
नया ब्यो कु डोला
लौण सी पैली
ऐजयी फिर दिन निछन