*गढवाली रामायण लीला (कवि :गुणा नन्द पथिक , १९८३ ) की भूमिका डा पुरुषोत्तम डोभाल ने लिखी जिसमे डोभाल ने मानो विज्ञान भाषा विकास, दर्शन, , वास्तविकता की महत्ता, रीति रिवाजों व कविता के अन्य पक्षों की विवेचना की.*
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*इलमतु दादा (क. जयानंद खुगसाल बौळया,१९८८ ) की भूमिका कन्हयालाल डंडरियाल ,सुदामा प्रसाद प्रेमी व भ.प्र. नौटियाल ने लिखीं व कवि की कविताओं के कईपक्षों पर अपने विचार दिए*
* ढागा से साक्षात्कार (क.नेत्र सिंह असवाल, १९८८) की भूमिका राजेन्द्र
धष्माना ने लिखी और गढवाली आलोचना को ण्या रास्ता दिया. यह भूमिका गढवाली आलोचना के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है जिसमे धष्माना ने गज़ल का गढवाली नाम 'गंजेळी कविता' दिया. *
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*चूंगटि (क.सुरेन्द्र पाल,२०००) की भूमिका में मधुसुदन थपलियाल ने आलोचना केसभी पक्षों को ध्यान रखकर भूमिका लिखी और जता दिया के मधुसुदन थपलियाल गढवाली आलोचना का चमकता सितारा है *
*उकताट (क. हरीश जुयाळ, २००१) की भूमिका में मधुसुदन थपलियाल ने आज के सन्दर्भ में साहित्य की भूमिका, अनुभवगत साहित्य की महत्ता, भविष्य की ओर झांकना , रचनाधर्मिता, सन्दर्भ अन्वेषण आदि विषय उठाकर प्रमाण दे दिया कि थपलियाल गढवाली समालोचना का एक स्मरणीय स्तम्भ है. *
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*आस औलाद नाटक (कुलानंद घनसाला, २००१) की भूमिका में प्रसिद्ध रंग शिल्पी राजेन्द्र धष्माना ने रंगमंच , रंगकर्म, संचार विधा के गूढ़ तत्व , मंचन,
कथासूत्र, सम्वाद, मंचन प्रबंधन, निर्देशक की भूमिका जैसे आदि ज्वलंत प्रश्नों
पर कलम चलाई है. *
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* आँदी साँस जांदी साँस (क. मदन डुकलाण २००१ ) की भूमिका अबोध बंधु बहुगुणा ने लिखी और कविता में कविता स्वर व गहराई, शब्द सामर्थ्य-अर्थ अन्वेषण . कविताओं में सन्दर्भों व प्रसंगों का औचित्य जैसे अहम् सवालों की जाँच पड़ताल की.