Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 359695 times)

Bhishma Kukreti

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                सेवा निवृति/रिटायरमेंट पर मजेदार , मजाकिया , परिहासात्मक दृष्टि
                                          चबोड़ , चखन्यौ , अनुवाद  :::   भीष्म कुकरेती   
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१- रिटायरमेंट इन समय च जब आप बैठिक या मंचुं मा खड़ ह्वेका सलाह दे सकदां।  अर यु कतै बि जरूरी नी कि   यूँ सलाहों पर जिंदगी भर अमल कार ह्वा।
२- सेवानिवृति का बाद ही आप तै मेडिकल इन्सुरेंस की अहमियत पता चल्द ।
३- क्या आपन सुचदां कि सेवानिवृति एक रोमांच भरीं जिंदगी च ? हाँ ! छैं च।  जु तुम दिन भर बिस्तर मा कथगा दैं चड़ां , बिस्तर से कथगा दैं उतरां, सोफा मा कतगा दै बैठां अर खड़ हुवां तै रोमांचकारी घटना समजदवां तो अवश्य ही रिटायरमेंट रोमचकारी च  ।,
४- रिटायरमेंट का बाद आदिमौ सरैल बुड्या हूंद जांद , दिल शौक़ीन हूंद जांद अर मन युवा हूंद जांद।  पर जरा युवा मन अर बुड्या सरैल कु असुंतलन अर शौक़ीन मिजाजी अर बैंक बैलेंस का असंतुलन तो द्याखो !
५- रिटायरमेंट का बाद ही तुम तै पता चल्दो कि तुमन जिंदगी का सुनहरा समय प्रौढ़ बणनम  बरबाद कौर अर अब बच्चा हूण से तो तुम राइ।
६- जरा याद कारो  कि  करण चाणा , (गाणी -स्याणी ) छया तुम से नि ह्वे किलैकि तुमम समौ नि छायो।  अर रिटायरमेंट का बाद ऊँ इच्छाओं -आकांक्षाओं तै पूर करण जैल्या तो द्वी बात ह्वे सकदन या तो तुम बुड्या हूणो कारण नि कौर सकिल्या या ऊँ काम पूर करण से तुम कंगाल ह्वे जैल्या।  जन आम प्रवासी रिटायरमेंट का बाद गाँव मा अपण उजड्युं कूड़ नि चीण सकुद।
७- रिटायरमेंट का बाद आप तै द्वी बेस्ट फ्रेंड मिल्दन - पलंग अर सोफा।
८- रिटायरमेंट एक लम्बी छुट्टि च पर आप अधिक दारु नि पे सकदां अर सरा रात बिज्यां नि रै सकदां।
९-आदिम सरा जिंदगी धन बचत करदो कि रिटायरमेंट बाद मजा कारल किन्तु बचत का पैसा तो स्वस्थ रौण मा खर्च ह्वे जांदन अर जौं चीजों तै तुम आनंद का जरिया समजदा छया ऊंक वास्ता डाक़्टर बुल्दो कि फलण चीज तुमर बुड्या सरैल का वास्ता नी च।
१०-सेवा निवृत  लोग कम ही रिटायरमेंट पर लिखदन या अपणी राय दींदन। 

5 /6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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                    स्वच्छ भारत  , स्वच्छ भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ! 


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Jaspur Ka Kukreti

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              रिटायरमेंट पर भौं भौं  मजेदार , मजाकिया , परिहासात्मक दृष्टि - 2
                                                    चबोड़ , चखन्यौ , संकलन  :::   भीष्म कुकरेती   
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११- वधाई हो आप रिटायर ह्वे गयां , किन्तु आराम करणै आवश्यकता नी च जरा नाती नतिण्यूँ सेवा बि त करो।  अपण ब्वे बुबाओं को कर्ज तो उतारण च कि ना ? उंन अपण नाती-नतीण खिलैन तुम अपण नाती नतीण खिलावा।
१२- तुमम दुनिया भर कि कतना बि डिग्री , सर्टिफिकेट ह्वावन किन्तु सेवनवृति का पैंथर तुम तै   MDN की डिग्री अवश्य मिलण - मास्टर ऑफ  डूइंग नथिंग।  वधाई !
१३- असल मा रिटायरमेंट एक रोजगार दाता द्वारा एक मिठासयुक्त बुलणो तरीका च -भय्ये अब तू बुड्या ह्वे गे अर हम तै तेरी आवश्यकता नी च। या इन बि बोली सकदां कि कम्पनी अपरोक्ष रूप से बुल्दी कि -हम तै तुमसे अधिक ऊर्जावान , तेज तर्रार मनिख मिल गेन भै।
१४-असल मा रिटायरमेंट का बाद ऊँ चीजुं तै करणै चुनौती उथगा नि आदि जथगा ऊँ इच्छाओं तै याद करणों चुनौती ! चलो अपण स्मरणशक्ति बढ़ाओ।
१५- सेवानवृति के आयु याने करियर /व्यवसाय कु एवरेस्ट की चोटी पर चढ़न , यांक बाद तो उतार ही उतार च , सबि अजित डोभाल थुका हूंदन।
१६-इन बुल्दन बल अधिकतर सरकारी विभागों का लोग काम नि करदान बस काम करणो  दिखावा करदन  रिटायरमेंट का बाद अकर्मण्य तै छुपाणैं जरूरत नी च भै।
१७- ता जिंदगी अब एक सदाबहार काम आप तै करण अर वु सदाबहार काम  च - कुछ नि करण।
१८- नौकरी मा तुम अपण अनुचर , सहयोगी , बौस से बहस करदा छ्या अर अब पारिवारिक सदस्यों , नौकर , काम वळि बाई से बहस करिल्या।  स्थान बदल्दो  बस बहस करणो रोग नि बदल्दो।
१९- सेवानिवृति परांत आप कथगा बि टिप टॉप रावो , काम करो लोगुंन तुमकुण रिटायर मैन इ बुलण - द्याख नि गाँव मा रिटायर्ड हवलदार जी कथगा बि भद्वाड़ बै ल्यावो , गाँव वाळ बुल्दा तो पेन्सनेर ही छन कि ना ?
२० -मि त जैदिन मि तै अपण चड्ढी बनियान बदलणै इच्छा नि हूंदी वैदिन अनुभव हूंद कि मि सेवानिवृत ह्वे ग्यों।   




6/6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
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                      समय  बचत हेतु समय  नष्टीकरण
                          चबोड़ , चखन्यौ , चचराट :::   भीष्म कुकरेती   
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  समय पर ऐ , समय को सद्पयोग , समय की बचत अर समय नष्ट करण -सब समय समय करणा रौंदन।  समय बदलणो कोशिश मा हम सब रौंदा अर फिर बि हर समय समय का साथ चलणा रौंदां।  नि बोल जाण ?
              हम समय का कथगा नसेड़ी ह्वे गेवां ? दिखणाई ? त जरा अपण आस पास नजर त रिंगावो ! कि हमर न्याड़ -ध्वार कथगा घड़ी छन ? जरा तुमि गौणदि कि तुमम कथगा घड़ी छन ?

 रुस्वड़म घड़ी , माइक्रोवेव ओवन मा घड़ी , अच्काल तो फ्रिज अर वाशिंग मशीनम घड़ी ! इंडक्सन कूकर पर घड़ी , राइस कुकर मतलब मल्टीकुकर पर घड़ी ,  एक मिक्सी उत्पादकन त मिक्सी पर बि घड़ी लगै दे। अर हथ पर घड़ी ! बकै  कमरौं मा टिक टिक घड़ी छैं इ छन।
           अर यी इतना घड़ी केवल यांक बान कि हम समय कु सदुपयोग कौरां।  पर असलियत क्या च ? तुम बि त जाणदा इ होला कि टैमौ कथगा पाबंद छंवां हम ?
घड़ी बि भौं भौं किस्माकि हूंदन।  नि हूंदन ?
             अजकाल त कुछ स्मार्ट घड़ी हूंदन अर कुछ स्मार्ट नि हूंदन।  कम्प्यूटर मा  स्मार्ट घड़ी  हूंद , मोबाइल मा स्मार्ट घड़ी हूंद , पर इथगा स्मार्ट हूंदन कि एक दैं टाइम गड़बड़ै गे त यूँ तै ठीक करणो बान टेक्निसियन इथगा पैसा मांगद कि लोग या तो स्मार्ट घड़ी ठीक नि करदन  या घड़ी दुरस्त करणो जगा नया कम्प्यूटर या मोबाइल लेक ऐ जांदन।
            माइक्रोवेव , क्लॉक रेडिओ या हौर  इनि मशीनों की घड़ी बिजली से चलदन किन्तु भारत की बिजली कु अंत ना पंत तो तुम दिखिल्या कि यूँ मसीनुं घड़ी कबि बि सै समय नि बथांदन। अर इलै भारत मा लोगबाग यूँ मशीनों की घड्युं पर इनि विश्वास नि करदन जन लोग राजनैतिकों पर नि करदन।
         कार मा लगीं घड्युं को मिजाजौ  त क्या बुले जावो ! यी घड़ी सैत च भौत सी चीजुं से जुड़ीं रौंद जन कि सीडी प्लेयर , कार रेडिओ आदि आदि।  एक  बि मशीन रचपच ह्वे जाव तो समजो घड़ी खराब।  क्वी बि अपण घड़ी खराब नि करण चाँद  तो क्वी बि कार क्लॉक पर विश्वास नि करदो कि किलै अपण समय खराब करे जाव !
          पर एक बात बताओ कि आज हमम  इथगा घड़ी ह्वे गेन कि क्या बुन पर क्या सचमुच मा हम समय का पाबन्द छंवां ? प्रोग्रैम इनविटेशन कार्ड मा लिख्युं रौंद कि प्रोग्राम ठीक 7 बजे सांय शुरू ह्वाल अर कार्यक्रम संयोजक आठ बजे आंद कि न्यूतेरुंन (दर्शक गण ) नौ  बजे से पैल आण नी च तो 7 बजे ऐक झक मारण ? न्यूतेर बि मानिक चलदन कि  7 बजे त उनि  लिख्युं च अर प्रोग्राम तो  9 बजे ही   शुरू होलु। 
इतना घड़ी ह्वेक बि हम सब समय बर्बाद इ करण ठीक समजदां।
यदि आप 'समय का सदुपयोग कनो करे जाव'  सिखण चांदा त  मि सिखै सकुद  किन्तु मीम समय ही नी च। समय कखन हूण ?  24 घण्टौं मादे 18 घंटा तो फेसबुक अर व्हट्सअप मा चैटिंग -फैटिंग मा खपि  जांदन तो आप तै मि ख़ाक 'समय का सदुपयोग'  सिखौं ?   
 


7/6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
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                         म्यार नातिक  पैलु मिंडुक 
                            हौंस , मुलमुल हौंस , खिकताट  :::   भीष्म कुकरेती   
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                      अचकाल जानवर बि मौसम विज्ञान्यूं सूचना पर विश्वास करण मिसे गेन धौं  !
 सि अबि मुंबई मा बरखा आणो क्वी संभावना नी च  मौसम बिभागक अधिकारी बुलणा छन बल मुंबई मा त तड़क्वणि पुरो अनुमान च।
                     अर ब्याळि हमर बिल्डिंगक पैंथर जु हमन अळगसौ कारण डम्पिंग ग्राउंड बणै दे उख मि तै अर म्यार नाती तै मिंडुक दिखे।  अवश्य ही यु मिंडुक पढ्युं -लिख्युं ह्वालु अर मौसम विभागक विज्ञप्ति   पर विश्वास करदो होलु।
ह्वे सकुद च मिंडुक कै सरकारी विभाग मा  ह्वालु  कि वै तै सरकारी विज्ञप्ति  का हिसाब से काम करण पड़द होलु या यु भाजपा का कार्यकर्ताक मिंडुक ह्वालु जौं तै सरकारी विज्ञप्त्युं पर झक मारिक विश्वास करण पड़द ।
                   म्यार नाती किराइ बल - ग्रैंड पापा आई सौ फ्रौग फ्रॉग ! आई सौ फ्रॉग!  द फ्रौग !
 मि तै विश्वास नि ह्वे। 
मीन ब्वाल - ना बाबा अबि बरखा नि ऐ त मिंडक भैर नि ऐ सकदन।
नाती  उनि चिरड्याई जन भाजपा वळ मणिशंकर का बयान कि "नरेंद्र मोदीन अमेरिकी कॉंग्रेस का समिण सब झूट ब्वाल " पर  चिरड़ेन्दन।
                 वैन ब्वाल - पर स्यु देखि ल्यावो।
सचमुच मा उ मिंडुक इ छौ।  बिन बरसात का कुम्भकरणी नींद से भैर   अयुं मिडुक !
नातिन पता नि कनै कौरिक मिंडुक पकड़ अर भितर लै गे।  मि नई नई बिययिं गाड़िक तरां अपण बछरु यानि नातिक दगड़ भितर ऐ ग्यों।
बालहठ का समिण जब बुबा की नि चलदी तो ददा की क्या चलण छौ।  मिंडुक तैं एक अधभोरिं बल्टी पुटुक धरे गे।
   नातिन उत्साह मा ब्वाल -ग्रैंड पापा मि ये तै पाळि सकुद ?
मीन ब्वाल - ना बाबा ! तू ये तै   थुड़ा देरौ कुण इख रखि सकिद पर मिंडक तै पाळि नि सकदी।
नैतिक जबाब छौ - पर टोनी ओर कुत्ता पाळदन , मोनी ओरुक बिरळ पऴयां छन त मोनी ओरुक पैरट आई मीन कळु !
मीन समझाई - बाबा ! यि सब पालतू जानवर छन अर मिंडुक    ...
नैतिन अर्णब गोस्वामी तरां पूरा बयान नि सूण अर बीचिम ब्वाल   -   ठीक च मि अबि ये मिंडकौ ब्वे , भाई , बैण्यूँ तैं बि लयांद।  फिर यी पालतू ह्वे जाल।  वी श्यल डौमिस्टिकेट फ्रौग्स। 
 मीन समझाइ बल जु जंगळी जानवर हूंदन ऊं तै फ्रीडम चयेंद , जंगळी    जानवर अर पंछी एक   खूंटा पर या पिंजड़ा मा नि रै सकदन।  जंगळी जानवरों तै स्वछन्द वातावरण ही सुहांदु।  स्वछंदता ही जंगळी जानवर , कीड़ मक्वडुं जिंदगी हूंद।
नातीन मन मारिक या समजिक या क्या धौं ! पर वैन बोलि दे - ओके ! ग्रैंड पा ! ये तै उखि छोड़ दींदा जख बिटेन मि लौं।
हम उख गयां अर  बल्टी  उल्टै दे।  मिंडुक इन भाज  जन छत्तीसगढ़ मा चालीस साल बाद अमित जोगी कौंग्रेस का पिंजड़ा तोड़िक भाज।  मिंडकन कुद्दी मार अर लुप्त ह्वे गे।  सैत च उ मिंडक  माटु मा  सुप्तावस्था पाणो घुस गे हो !
म्यार नैतिक जिंदगी मा कथगा इ बरसातौ समय आलो , कथगा इ मिंडकुं से वेकि मुखभेंट ह्वेलि किन्तु वु ये पैलु मिंडक नि बिसर सकुद।               
   

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                        आली , स्या जरूर आली , ह्यां पर  कब आली ?

                                        हौंस , हौंसारथ , खिकताट   :::   भीष्म कुकरेती   
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           जन ये साल ह्वे तनि कबि हमर गढ़वालम तब बि बार बार हूंद छौ जब मि अदखिचर छौ , समजण लैक छौ या युवा छौ।  ये साल महाराष्ट्र मा उनी ह्वे जन म्यार गांवमा चीनै लड़ै पैंथरौ साल ह्वे छौ।  तब बि इनि ह्वे छौ , उख बि इनि ह्वे छौ , इख बि इनि हूणु च।
तैबरि बि प्रतीक्षा , तब बि जग्वाळ , तब बि इन्तजार की तंगतंगी।  तब बि आली ? कब आली ? ह्यां आली पर कब आली?  जन प्रश्न हवा मा उड़ना रौंद छ।
           जन पैलाक मानसून महराष्ट्र , मुंबई    क्या पुरो हिन्दुस्तान मा इ खराब गे तो ये साल बरखा की प्रतीक्षा , इन्तजार , जग्वाळ बड़ी आतुर्दी से हूणि च।  टीवी वळ जब तब किर्राणा छन - केरल तक मानसून पंहुचा,  दिल्ली  अबि बि गरम  और   गडकरी  गगन  पर गड़गड़ाये।
       मि जब युवा छौ तो एक साल ठीक से सौण म कम बरखा ह्वै , भादों दगा दे गे तो पूष  माघ मा  बि बरखा नि बरखी।  इख तक कि जेठ तक लोग निबरखा का रैन।  झंग्वर  बूणो हिम्म्त कैमा नि ह्वे।
 
 15 गति जेठ का बाद मिनख , मनिख्याणि  छोडो कुत्तौ नजर बि आसमान जीना हूंद गे।
वा वीं तै पुछदी छे - ये वा ! मीन तो अपण जिंदगी मा कबि नि देख कि जेठ अदा ह्वे जावो अर बादळ नि दिख्यावन।
स्या जबाब द्यावो - हाँ ये वा ! मेरी बूड़ सास  बि इनि बुलणा  छन  कि जेठ अदा ह्वे अर बादळ नी दिखेणा छन।
क्वी जनानी डांड से घास -लखुड़ लेक गांवक हद मा पौंछ ना कि लोकुं सवाल हूंद छा - डांड मा बिटेन तीन बादळ बि देखिन ?
घस्यरि जबाब हूंद छौ - न भयां ! कखि बि यूँ बादळो  पर काण्ड नि लगिन।
फिर लोग वैइ डांड से अइं लख्वड्वळि  से पुछ्द छा  - तैंको तो क्वी भरवस नी च पर तू त बता कि तितै  बादळ बि  दिखेन ?
 लख्वड्वळि हुस्यार छे , जाणदि छे कि ना बुलण से यूंन 'नाम ' धौर दीण त वा बुल्दी छे - मीन तो आँख जमैक द्याख।  दूर चौखम्बा (बद्रीनाथ ) जिना द्वी चार कत्तर बादळू  दिखे छन।  मेरी बूडननि बुल्दी छे बल 20 गति जेठाकुण चौखम्बा जिना द्वी चार कत्तर बादळू दिखे जावन तो समज ल्यावो मुंगर्यात (मानसून ) चौड़ आंद।
इन आतुर्दी समय लोगुं तै आसा चयेंद छौ तो झूठी आसा से बि लोग उत्साही ह्वे जांद छा। अर सरा गाँव मा सोसल मीडिया जन वायरल -रयूमर फ़ैल जांद छौ कि जल्दी ही मुंगर्यात पोड़ण वाळ च।
20  गति जेठ तक तो लोगुन भगवान पर भरवस कार , 25  गति जेठ तक तो लोगुन इंद्र देवता पर भरवस कार , किन्तु जब 20  गति जेठ का आस पास बादळ नि दिखेन तो लोगुं तै वर्षा भविष्यवक्ता , रेन फोरकास्टर याने बरखा बारा मा बाक बुलण वळु की  याद आए।
अब सब लोग बार बार बरखा या जलवायु भविष्यवक्ताओं ड्यार आण लग गेन।
हमर गांव  मा घन्ना ददा अर बैजू चिचा जलवायु विशेषज्ञ छया ।  तब आकाशवाणी  पर तो लोग कतै भरवस नि करदा छा ।  सरकारी भोंपू पर तो आज बि भारतवासी भर्वस नि करदन। 
लोग घन्ना दादा अर बैजू चिचा तै चौंतरा मा बैठाळिक प्रश्न करदा छा। 
द्वी चखुलुं माट मा नयाण , कव्वों घोल बणाण ,  कुंळै डाळू   हलण, बांजक पत्तों आवाज ,  आदि का अध्यन से पता लगांद छा  कि कब बरखा ह्वेलि अर कथगा हवेली।  चूँकि हम सब  स्कूलम पढ़न लग गे  छा  अर उख किताबों से हमन यी सीख कि गाँव का यी लोग अंधविश्वासी छन तो हमन पारम्परिक ज्ञान तै खत्म कर  दे।
आम समय पर दुयूंकि बाक (भविष्यवाणी ) सही हूंदी छे किन्तु वै साल दुयुंकी भविष्यवाणी झूठी सिद्ध ह्वे , बरखा तब बि नि ऐ जबाक ऊंन बोली छौ।
अंत मा जब जून अंत तक लोगुं तै बादळ नि दिखेन   क्या क्षेत्र का लोग बहुगुणा पंडितों  का पास आण लग गेन।  बथाओ जु ज्योतिषी पंडित  बैज चिचा अर घन्ना दिदाक बुलण पर ही मुंगरी भिजांद छा  अब लोग ऊँ ही बहुगुणा पंडितों पास आस लेकि आण लग गेन।
सर्वसम्मति से स्वीकृत ह्वे कि शीघ्र वर्षा का वास्ता सँजैत यज्ञ उराए जाल और घड्यळ  धरे जाल।
आश्चर्य तब ह्वे जैदिन निश्चित ह्वे कि यज्ञ करण आवश्यक च अर वै दिन का दुसर  राति ही मुंगर्यात (बरखा ) पोड़ गे।
जब तक बरखा नि ह्वे तब तक हरेक का जवांन  पर यी प्रश्न हूंद छौ - आली कि ना ? ह्यां आली कि ना ? ह्यां आली तो आली पर समौ  पर आली कि ना ?
मीन बहुत सालों बाद बैजू चिचा तै पूछ - चिचा वै साल आप अर घन्ना दिदाक बाक झूठी किलै निकळ ?
चिचा को जबाब छौ - ख़ास  डाळु पत्तों हिलण , पत्तों की आवाज , कवों घोसला तयार नि हूण अर चखुलों बार बार पाणी मा नयाण से हम समज तो गे छैया कि बरखान देर से आण पर   ..
मीन पूछ - तो तुम दुयुंन  झूट किलै ब्वाल ?
चिचाक जबाब छौ - कबि कबि गां गौळ (समाज ) मा आस कायम रखणो वास्ता झूठ बुलण ही ठीक हूंद। 
 
 
10/6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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                 कुछ बेज्जती करदार कहावत /कथन
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                     हौंस, हौंसारथ , खिकताट   :::   भीष्म कुकरेती   
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द्यूर -ए बौ ! तू मैं से कथगा प्यार करदि ?
बौ - हूँ जीजा जन ! ना ना  .
द्यूर - तब ?
बौ -जन मि अपण कणसु भुला से।
xx
कज्याणि - तुम रोज हर घड़ी मेरी बेकदरी करदां।  तुम मे तैं कुछ नि समजदवां।  जरा भैर  द्याखो जख छ्वारा मै तै कन हथों मा उठान्दन।
xx
- नौ मण नंदू  छांच प्यावन अर नंदुम छांची जावन।
xx
एक -चल रै सिजांग  खौला
हैंक -हाँ तुरैल खाड जैकि  सिजांग खौंला
xx

ना रण दे गाणा नि गै।  हम फट्यां बांस इ बजै द्योला।
xx
मि तू कथगा म्वाट छौं  ?
हूँ ! त्यार छैलौक बि छैल अलग से पड़दु।
xx
 - ह्यां म्यार नाक कन च ?
- कुज्याण किलै मै तिमलौ दाण याद आणु च धौं !
xx
-मेरी आँखि माछी जन  छन ना ?
-खबडळु  पुटुक माछि ना डौख (टैडपोल )  हूंदन।


11 /6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
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                सम्राट दुर्योधन को ताम्र पात्र तकनीक हेतु  रवाईं क्षेत्र की भेंट
                              व्यग्य या विमर्श  :::   भीष्म कुकरेती   
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सूदाध्यक्ष (पाकशाला निदेशक )  - स्वागत अतिथि ! मि सम्राट सुयोधन कु सुदाध्यक्ष ! उत्तरापथ का राजकुमार गढ़कुमार एवं कुर्माकुमार  करदु।
पौरेगव - सम्राट सुयोधन को पौरेगव अर्थात पाकशाला निरीक्षक उत्तराखंड का राजकुमार गढ़कुमार एवं कुर्माकुमार  करदु। राजकुमार गण ! कृपया भितर पाकशाला मा प्रवेश कारो ।
(उत्तराखंड का राजकुमार भितर आंदन )
सेवक ! गढ़कुमार एवं कुर्माकुमार का हस्त एवं पद ध्वावो ( सेवक ऊनि करदन ) .
सूदाध्यक्ष  - हिमालय पुत्र ! कृपया स्थान ग्रहण कारो।  अहा ! तुम दुयुंकी  दृष्टि समिण उच्च घण्यस मा धर्याँ ताम्र पात्रुं से  हठणि इ नी च ?
गढ़कुमार - यी सब पात्र ताम्र धातु से ही बण्या छन ?
महानसाध्यक्ष - मि चक्रवर्ती सम्राट कु मुख्य पाकशाला अधिकारी छौं।  स्वागत हो ! सत्य।  यी सब पात्र ताम्र धातु से बण्या छन।
कुर्माकुमार - सम्भवतया ! सौ प्रकार का ताम्र पात्र ?
सूदाध्यक्ष  - खस कुमार ! सत्य सौ से अधिक ! चमस (चमच ) का बीसेक  प्रकार - जन कि दर्वी , पाणिका ,  कडच्छक , वितंडा आदि आदि।  प्रत्येक कार्य हेतु विशेष चमस।  इनि भिन्न प्रकार का विभिन्न   कटोर , कुंड , कुण्डी आदि ; कई प्रकार का ताम्र पट्टक (थाली ) ; पाक ताम्र पात्र , चषक (गिलास ) आदि आदि। कुछ बाण -तीर -गदा बि।
गढ़कुमार - सूदाध्यक्ष ! तुमन तो भोजन हेतु आमंत्रण दे छौ ?  तो ताम्र पात्र भंडार दिखाणा छंवां आर्य !
कुर्माकुमार - हाँ भाँती भाँती का ताम्र पात्र।  चमस से लेकि गहन जल संग्रह पात्र , भंडारीकरण पात्र तक  की प्रदर्शनी ?
सूदाध्यक्ष - खश कुमारो ! प्रदर्शनी ना केवल दर्शन मात्र।
कुर्माकुमार - सूदाध्यक्ष ! कूटनीति मा मुस्कराहट , हंसी , गम्भीरता , लघु  गम्भीरता , अधिक प्राकट्य याने उदारता कुछ बि लोभ से बिमुक्त नि हूंदी।  खश छंवां तो भी हम ये विषय तै जाणदा छंवां।
 गढ़कुमार - समझदा -परखदा छंवां।
सूदाध्यक्ष - क्षमा करें उत्तराखंड राजा खशाधीस का द्वी राजकुमार ! हम केवल शिष्टाचार वश ही तुम तैं ताम्र पात्र का दर्शन करौण्या छंवां।  ये तै अन्यथा नि लियां।
कुर्माकुमार  - एक प्रश्न च ?
पौरेगव - वृहद् साम्राजय हस्तिनापुर का आदरणीय सूदाध्यक्ष  तुम्हारी सब संदेह , मध्य संदेह  , अति संदेह  सब स्पष्ट कारल।
कुर्माकुमार - इन लगणु च सहस्त्र मण ताम्र पात्र प्रति वर्ष हस्तिनापुर मा निर्मित होंदा  ही ह्वाल ?
पौरेगव - निस्संदेह।  पूर्वी भारत, मध्यभारत इ ना श्रीलंका अर यवन राज्यों तक हस्तिनापुर का निर्मित ताम्र पात्र निर्यात हूंदन।  गांधार से हमारी ताम्र तकनीक संधि च तो गांधार मा कुछ सीमित रूप से ताम्र पात्र निर्मित हूंदन।
गढ़कुमार - इथगा ताम्र पात्र निर्माण हेतु  उपादान ( कच्चा माल ) कख बिटेन आंद ?
सोदाध्यक्ष - खशकुमार ! निसंदेह ताम्र कंदरा तो पाटलिपुत्र , बंगदेश आदि स्थानों मा बि छन किन्तु गुणवत्ता की  दृष्टि अर वाहन यात्रा दृष्टि से गढ़क्षेत्र अर कूर्म क्षेत्र कंदराओं का उपादान  ताम्र  ही हम प्रयोग करदां।
गढ़कुमार - या इ त वेदना च कि हम एक  सहस्त्र मण कच्चो ताम्र हस्तिनापुर दस सहस्त्र मुद्राओं मा भिजदां अर कुछ सेर ताम्र पात्र हस्तिनापुर से बीस सहस्त्र मुद्राओं मा क्रय करदां।
सूदाध्यक्ष (मध्यम किन्तु आदर की हंसी )  - द्वि कुमारो  ! अनावश्यक प्रश्न -उत्तर का स्थान पर सीधा सीधा मुख्य बिंदु पर आये जाय।
कुर्माकुमार -आर्य ।  हाँ मुख्य बिंदु पर आये जावो तो न्यायोचित होलु। हम हस्तिनापुर मा विगत द्वी सप्ताह से हस्तिनापुर मा ताम्र पात्र निर्माण युकृ (तकनीक)  आयात पर प्रत्येक अधिकारी से विचार विमर्श करणा छंवां किन्तु क्वी बि मुख्य बिंदु पर नि आणु च।
पौरेगव - पिछ्ला समय तुमर पिताश्री , खश राजा ऐ छ्या अर वै से पैली इंद्रप्रस्थ मा बि राजा दुर्योधन व खशाधीस का मध्य वार्तालाप ह्वे छौ। सम्राट सुयोधनन स्पष्ट बोली छौ कि पश्चिमी उत्तराखंड तै कौरव राष्ट्र मा मिलै दिए जाव और  खश राजा  ही राज कारन किन्तु खशाधीस तै वार्षिक उपादेय (कर ) दीण पोड़ल।
गढ़कुमार - आधा उत्तराखंड दीण से तो हम ताम्र पात्र युक्ति (तकनीक )  विहीन रौण ही उत्तम समजदवां।  अर अब हमन बि निश्चय  कर याल कि उत्तराखंड ताम्र कंदराओं मा ताम्र खनन ही समाप्त कर द्यालो। फिर तुम जाणो कि ताम्र कखन मीलल।
सूदाध्यक्ष - ताम्रपात्र निर्माण युक्ति  से तुम उत्तराखंड से ताम्र पात्र ही निर्यात नि करिल्या अपितु कई भाँती का उपकरण , युद्ध उपकरण बि निर्यात कर सकदां।
कुर्माकुमार -किन्तु आधा उत्तराखंड देकी  ताम्र पात्र निर्माण युक्ति नी चयेणि च।
(अचाणचक  भैर बिटेन राजनायिक को प्रवेश )
राजनायिक - प्रसन्नता ! प्रसन्नता ! तुम द्वि खश राजकुमार ताम्र पात्र भंडार मा मिल गेवां।
 सूदाध्यक्ष - राजकुमार तो चेतावनी दीणा छन कि खशाधीस ताम्र कंदरा से ताम्र खनन  ही समाप्त कर द्याला।
राजनायिक - आद्य प्रातः सम्राट सुयोधन से विचार विमर्श ह्वे तो ऊंको बुलण छौ कि हस्तिनापुर राष्ट्र अर खशाधीस का अति प्राचीन संबंध छन।  अतएव ताम्र पात्र निर्माण युक्ति का विनियम मा हस्तिनापुर जौनसार भाबर से लेकि वाणाहाट (उत्तरकशी ) का क्षेत्र  स्वीकार कर ल्याला।
गढ़कुमार - भवतु ! किन्तु हम तै विमर्श का वास्ता कुछ अतिरिक्त  समय चयेंद।
राजनायिक -अस्तु ! तो तुम आद्य प्रस्थान करणा छंवां ?
द्वी कुमार - नास्ति ! नास्ति ! हम ताम्र पात्र निर्माण युक्ति  विनियम मा रवाईं क्षेत्र दीणो स्वीकार करणा छंवां।  किन्तु   ...
राजनायिक - किन्तु क्या ?
कुर्माकुमार - हम तै प्रजा तै समजाणो वास्ता कुछ नाटक तो करण पोड़ल कि ना ?
राजनायिक - तो हस्तिनापुर से तुम क्या अपेक्षा करदवां ?
गढ़कुमार - भोजपत्र मा कुछ चित्र चयेंदन जखमा सम्राट दुर्योधन हम दुयुंका  समकक्ष बैठ्याँ ह्वावन अर तुमर सभाषद हम राजकुमारों उत्साहपूर्वक सम्मान मा उत्साह दर्शित करणा छन  , कुछ चित्र जखमा सम्राट दुर्योधन हमर साथ भोजन करणा ह्वावन।
कुर्माकुमार - हम यूँ चित्रों तै प्रजा का समिण दर्शनार्थ धरला अर लोगों बीच यी दिखौंला कि सम्राट सुयोधन खशाधीश का अधिकाधिक  सम्मान करदन।
राजनायिक (मुल मुल  हँसीक )- षष्ट चित्र तयार छन।  म्यार सेवक चित्र लेक भैर बैठ्याँ छन।  कूटनीति कबि अग्रिम जांदी अर कभी पश्च मा जांदी किन्तु सदा कार्यशील हूंद।  षष्ठ मास  पूर्व जब तुम राजकुमारों आणो संदेश ऐ छयो तो हमन इन प्रकार का चित्र निर्मित करणो कार्य प्रारम्भ कर दे छया ।  क्षेत्र हस्तांन्तर व संधि पत्र ताम्र पत्र पर अंकित च। अंकित संधि पत्र  तामपत्र बि उद्यत (तयार ) च।  जब तुम इख अयाँ अर तुम विचार विमर्श करणा छया तो हस्तिनापुर का कूटनीतिज्ञ समझ गे छया कि तुमन रवाईं क्षेत्र हस्तांन्तर करणो उद्यत ह्वे जाण तो तुमर  ताम्र पत्र बि अंकित करणो आज्ञा टंकणकर्ताओं तै  दिए गे छे।  बस तुमर हस्ताक्षर अंकित करण  शेष छन।
पौरेगव - खश राजकुमार ! रसोईघर मा !  उख सुरा , सुरवा , सुन्दर्युं समुचित सुप्रबंध च।
राजनायिक - चला राजकुमार द्वय ! ताम्र पात्र निर्माण युक्ति विनियम का उत्तस्वाचरण करे जाव !
द्वी राजकुमार - चला श्री ! चला ! उत्स्व मनाये जाय !




12/6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
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                  पचास साल से खोये दाहिने हाथ की खोज ! सहायता कीजिये ना !
                             चटकताळ, चमकताळ, लाचार  :::   भीष्म कुकरेती   
-
स्यु -ये क्या छे अजीब सि भौण  मा रुणु ? या भौण मैदानी मनिखों भौण त नी च।  इख रूण बि हो त सलीका से रूण चयेंद - वीप  विद ऐन  एटिकेट।
वु -हूँ ! त्यार बि  दै हाथ हर्चि जा तब दिखुल मि कि कन एटिकेट फैटिकेट हूंद धौं।
स्यु -च -चु-चु ! ए ! हे कथगा दिन हुयां हाथ हरच्याँ ?
वु -पचास साल।
स्यु -पचास साल ?
वु -हाँ पचास साल ह्वे गेन म्यार दैं हाथ हरच्याँ।
स्यु - तो कामधाम ?
वु -ख़ाक हूण कामधाम।  द्वी हाथ जरूरी हूंदन जिमदारो करणो कुण।  पुंगड़ी बांजि -कूड़  उजाड़।
स्यु - तो खर्च पाणी ?
वु - मनरेगा फनरेगा जन फोकटिया  स्किमुं से  कुछ तो मिलि जांद कि ना ? कबि कबि त एक पव्वा दारु इंतजाम बि।
स्यु -अर तू अब खुज्याणि छे हरच्युं दैं हाथ ?
वु - ढूंढ मा त मि पचास साल से ही छौं।
स्यु -पटवारी मा बि गे ?
वु -हाँ अर उख जैकी मेरी एक पुंगड़ी गे। बुरळ पड़ी जैन इन नीतियों पर।
स्यु -कानूनगो ?
वु -उख द्वी पुंगड़ी खेत ह्वेन। भसम बि नी हूणि या कुव्यवस्था।
स्यु - तो त्वै तै और मथि जाण चयेणु छौ।
वु -तीन पुंगड़ी जाणो बाद हिम्मत नि ह्वे।  आग लग जैनि यीं करड़ी लालफीताशाही पर ,आजक  बिखोत द्याख भोळक मकरैनि देखि भैरों या लालफीताशाही !   
स्यु -तो कै डॉन मा जांदी।  अजकाल पुलिस फुलिस कि जगा डॉन भाई सस्ता इ नि हूंदन बलकणम प्रमाणिक बि हूंदन। 
वु -मि गढ़वळि छौं।  अबि बि हम तै न्याय दिबता ग्विल्ल -गोरिल पर विश्वास च कि कै दिन त रात खूलली।   
स्यु -गढ़वाळी छे तो त्वे तै त देहरादून जाण छौ ?
वु -ड्यारा डूण बि कांड लगै छौ पर उक बि गुर्रा लग्यां छन। बज्जर पड्युं च वै डेराडूण मा।     
स्यु -कनो ?
वु -बारा पंद्रा साल से उख द्वी मदमस्त , पागल  सांडूं भयंकर,  बिकराल ,  , अनन्त समौ तक चलण वळि लड़ै चलणि च त क्वी सुणन वळ इ नि छन उख। कीड़ पोड्यां छन तख।
स्यु -राजधानी च तो भी ?
वु -हाँ सरा उत्तराखंडs अधिकारी , लोक  साडुंक  मलयुद्ध मा मग्न छन तो क्वी सुणवाइ नी।   
स्यु -फिर तीन फरियाद तो लगाण छे ?
वु -लगाई छे ना।
स्यु -क्या जबाब मील ?
वु -क्या मिलण छौ जन पटवरिन जबाब दे छौ ऊनि जबाब मील  कि बल - अपण बै हथ बि कटै दे जांसे कि समीकरण बरोबर ह्वे जाल। बदखोर , हरामी  साल्ले !   
स्यु - हैं ? देरादूण वळुन  ब्वाल बल दैं हाथ खुजणो जगा समीकरण ठीक करणो कुण बैं हाथ बि कटै दे ?
वु -हाँ।  वु बुना छन कि किलै छे पचास साल बिटेन हरच्युं हाथ तै खुज्याणो ?
स्यु -फिर ?
वु -फिर मि दिल्ली औं।
स्यु -तो ?
वु -त ऊंन बोली बल जब तक आर्थिक सुधार पूरा नि ह्वाल हम इन छुट -मुट समस्यावों मा समय बर्बाद नि कौर सकदां। काणा मादा !
स्यु -तो ?
वु -मि अपण दैं हाथ जु काम की तलाश मा कखि हर्चि गे छौ वै दैं हाथ  की तलास मा मुंबई औं।
स्यु -त इखाक लोग बड़ा सहकारिता वळ छन।  ऊंन त त्यार दैं हथ तलासणम मुक़्क़मल सहायता कौर होली ?
वु -केक सहायता ? कैमा बि एक छटांग  भरौ समौ नी च , सब भगणा छन बस अपण सुपिन पूर करणो हबस मा भागणा छन।   
स्यु -तो फिर ?
वु -त मि ब्याळि अमेरिकन काउंसिलिएट तै मीलु।  भौत मयळ छन , बड़ा मददगार छन।  सचमुच मा। 
स्यु -अमेरिकीन क्या ब्वाल ?
वु -वैन ब्वाल बल तू अपण ब्रेन हम तै दे दी तो हम सौ प्रतिशत त्यार दैं हथ खोजीक दे द्यूंला।   दगड़म प्रीमियम इन्स्युरेंस कम्पनी का बॉन्ड बि दे ऊन।
स्यु -अच्छा तो अब क्यांकण रूणी छे ? इथगा जोर से।
वु -वैन ब्वाल बल तू अपण ब्रेन हम तै दे दे अर हम त्यार दैं हथ खोजीक दे द्योला।
स्यु -तो तीन ब्रेन ड्रेन कौर च कि ना ?
वु -हाँ स्यु भितर जैक मि ब्रेन देकि त आणु छौं । 
स्यु - तो अब रुणैं बात क्या च ?
वु - जब बिटेन म्यार ब्रेन ड्रेन ह्वे मि तै लगणु इ नी कि म्यार सरैल जीवित बि च।  बस केवल आवाज आणि च अर बकै सरैल सुन्न पड्युं च। 
स्यु - यांकुणि बुदन बल - मरज  बढ़ता ही गया  ज्यों ज्यों दवा की ।

13/6/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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                    स्वच्छ भारत  , स्वच्छ भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड !



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                                     एक स्तम्भकारौ  रोजनामचा !
                                        मयळ ह्वेकि अपण छ्वीं  :::   भीष्म कुकरेती   
-
                        रोजौ स्तम्भ , डेली कॉलम ! दैनिक स्तम्भ अर वी बि गढ़वळि मा ? जी हाँ मि गढ़वळि मा दैनिक स्तम्भ लिखणो बात करणु छौं। जी टाइम्स ऑफ इण्डिया मा डेली कॉलम लिखणो छ्वीं त सबि लगांदन किलैकि लिख्वार तैं  लाखों पाठक मिल्दन , दुनिया भर से प्रशंसा मिल्दि अर बैंक बैलेंस अलग से बढ़द।  किन्तु जैं भाषा मा माध्यम -0  , पाठक -0 , भाषा से प्रेम का  पता नी हो  तो उख दैनिक स्तम्भ की छ्वीं लगाण याने  बिरळो  औंरु  या बेडु -तिमलौ फूल खुज्याण जन बात च। अर लिखण बी ? अपण बाड़ी पळयो खैक ही लिख्वार गढ़वळि  लिख्दु। हरेक गढ़वळि लिख्वार , रचनाकार , साहित्यकार   अपण बच्चों दूध को बजट  काटिक लिखुद।
                 पर यु सत्य च कि जनि देहरादून से दैनिक गढ़ ऐना प्रकाशन शुरू ह्वे अर मि तै पता चौल तो मीन रोजाना स्तम्भ लिखण शुरू कौर अर रोज एक लेख भिजण शुरू कौर दे। जी भाषा विकास को जजबा इ च कि गढ़वळि  लिखाड़ अपण गेड़िन किताब छपवांद अर फिर मुफ्त मा   बाँटदा बि छन।  मि वैइ जजबा से 1989 -1991 तक गढ़वळि मा दैनिक स्तम्भ लिखुद छौ अर अपण गेड़ीक पैसा से लिफाफा खरीदिक लेख देहरादून भिजद छौ।  जथगा बि गढ़वळि साहित्यकार छन इनि जजबा लेकि अपण गढ़वळि भाषा विकास का प्रति उत्तरदायित्व , निभाणम लग्यां छन।  सब का सब !
                  डेली कॉलम अर गढ़वळि मा ? जी हाँ गढ़वळि मा दैनिक स्तंम्भ अर मीन तकरीबन रोज व्यंग्य चित्र बि 'गढ़ ऐना ' मा छपवैन।  यु बि एक डेली कॉलम ही तो छौ।  नि छौ ?
      जन  कि उम्मीद छै 'गढ़  ऐना ' बंद ह्वे गे अर मेरु दैनिक स्तंभ लिखण बि बंद ह्वे गे।  हम गढ़वळि लिख्वारुं तै पता च कि गढ़वळिम पत्र -पत्रिका प्रकाशन याने अपण बच्चों पेट काटिक या  दोस्तुं जेब से पैसा लाण !
    जनि इंटरनेट शुरू ह्वे , मीन मैनेजमेंट सोशल मीडिया छोड़िक गढ़वळि सोसल मीडिया  मा कदम धार , मि तै देवनागरी टाइप करण क्या आइ कि मीन फिर से गढ़वळि मा डेली स्तम्भ लिखण शुरू कर दे।
  जी गढ़वळि मा लिखण कठण च, औसंदौ काज च ,  पर हम गढ़वळि साहित्यकारों जजबा , भावना अर राड़ का समिण क्वी बि  कठिनाई मुख  नि उठै सकदी।  कठिनाई दम तोड़ी दींदि।
       रोजाना स्तम्भ या कविता विशेषकर गढ़वळिम  लिखण मा सबसे बड़ी  रुकौट विषय की च।  समाज छुटु च , हमर सामाजिक ढांचा मा क्वी इथगा बड़ो रोमांचकारी व्यवस्था बि नी च तो प्रत्येक विषय पर लिखण अनावश्यक सि ह्वे जांद।
   फिर गढ़वळि गढ़वाल से लेकि अमेरिका , ओस्ट्रेलिया , ब्रिटेन तक सब जगा फुळयां छन तो हरेक विषय सबि पाठकों  तै रास नि आंद।  यदि मि मुंबई की ख़ुशी -नाखुशी गढ़वळि मा लेखुं तो ह्वे सकद च म्यार गांवक रूप चंद जखमोला भुला बि आकर्षित नि हो। 
    एक हैंकि समस्या च बल मानकीकृत भाषा की।  भौत दैं मि तै बि  दुसर मुल्को ठेट गढ़वळि गद्य पढ्न मा औसंद आंद पर यदि अभ्यास करें जावो तो हम भोटिया भाषा बि पढ़ सकदां।
      जख तक फेसबुक जन सोशल मीडिया का प्रश्न च -दसियों कवि ,  द्वी -चार गद्यकार   जबरदस्त ढंग से योगदान दीणा छन अर यी साहित्यकार छन जु हम वरिष्ठ गढ़वळि साहित्यकारों तै भरवस दिलाणा छन बल कुछ बी हो गढ़वळि साहित्य रचणो जजबा  अमर रालो।
    बस एक जजबा पाठकों से बि चयेंद बल चाहे एक लाइन /पंगत ही सै गढ़वळि रोज सोसल मीडिया मा पढ़दा जावो।
 




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                                             सलाह  स्तम्भकार
                                  चबोड़ , चखन्यौ , चचराट :::   भीष्म कुकरेती   
-
 कुछ साल पैल मि तै एक फ़ाइल पत्रिका (ज्वा केवल विज्ञापनों कुण कागज खराब करदी ) से एडवाइस कौलमनिष्ट 'आपकी समस्या हमारी राय -समाधान पंडित से 'बणणो आमंत्रण मील छौ।  ऊंन अन्य अखबारों /पत्रिकाओं मा पाठकों समस्याऊं की कटिंग थमै अर ब्वाल कि आप हरेक समस्या का द्वी समाधान दे द्यावो तो हम एक दिन एक समाधान अर दूसर दिन दुसर समाधान प्रकाशित कर द्योला।
कुछ पाठकुं समस्या याद छन अर मीन जु समाधान देन वांक ब्योरा या च -
समस्या 1 - जी पंडित जी - गढ़वळि ढंग से मुर्गा बणाणो क्या तरीका च ? भड्यायुं मुर्गा की शिकार स्वादि हूंद कि बगैर भड्यायुं मुर्गा की शिकार ? पाठक -निहुण्या , सतपुली 
उत्तर संख्या १ - ये भै गढ़वळि ढंग से मुर्गा खाणै त पत्रिका से सलाह लीणै आवश्यकता क्या च ? अपण बुबा,  दादा  या कै दरोड्या  से पूछी लेदी।
 उत्तर संख्या २  - जी दारु सारु हो तो भड्यायुं क्या अणभड्यायुं क्या ? सवाद - एक  दिन भड़यूँ मुर्गा पका चख अर दुसर दिन अणभड़यूँ मुर्गा पका अर चख अफिक पता चल जालो कि कु मुर्गा अधिक सवादी हूंद।  चखणो बाद हम तै बि सूचित कर दे।
समस्या 2 - मेरी मा अर  चाची मा नि बणदि।  द्वी कई सालों से अणबच्या   छन।  अब द्वी मेरी शादी मा आणा छन।   मि क्या कौरु ? - पाठक - कनमौ ख्वे , दिल्ली
 उत्तर संख्या १ - दुयुं तै  एक कमरा मा सिवाळ अर दुयुं तै रोज एकि तौलिया यूज करणो बोलि दे।
उत्तर संख्या २  - तीन क्या जि करण।  जु कारल तेरी ब्वे अर चची कारलि।
समस्या 3 - झाड़ -ताड़ दीण वळु पर विश्वास करण चयेंद कि ना ? पाठक -अज्ञानी , बद्रीनाथ
उत्तर संख्या १ - बालबच्चा दार छे तो विश्वास कर ले।  निपूत  छे तो विश्वास नि बि करिल तो कुछ फरक नि पड़द।
उत्तर संख्या २  - जैक मोरल स्यु का नि कारल ?
 
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