Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 357251 times)

Bhishma Kukreti

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हौंसी  हौंस मा


                                          अचकालौ  गढ़वळि क दाना सयाणा लिख्वार


                                      चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 

                           जु बड़ी भाषा (मतबल जौंक बुलण वाळ  जादा छन ) छन वूंका दाना सयाणा लिख्वारों त पूछ होणि रौंदि पण  गढ़वळि जन भाषा क बड़ा बुरा हाल हुंदन . भैर त जाणि द्याओ अपणों ड्यारम अपणा घर्वळ दनकाणा रौंदन बल इथगा स्याई खौत क्या पाई ?
 
अब हरेक सुदामा प्रसाद प्रेमी जी या प्रेम लाल भट्ट त ह्वे नि सकदन कि जौं कि सुद हिंदी साहित्य अकादमी ल्याओ अर हिंदी साहित्य अकादमी क बि  क्या च हर साल थ्वड़ा गढ़वळि भाषौ बारा म स्वाचल !

मीन पूरण पन्त पथिक तै पूछ बल अब तुम दाना सयाणा लिख्वारों पंगत मा ऐ गेवां त जरा इन बथावा बल तुमारी जिंदगी कन चलणी च ? त पंत जीक सुफेद -काळि- झंगरेट्या  दाड़ि पर बणाक लगि गे अर बुलण बिसे गें बल अबि त मि साठ पर इ पौन्चु त क्यांको दानो सयाणों ? जब मि अपण समलौण  लिखण बिस्यौलु, नया नया लिख्वारो तै सीख दीण मिस्यौलु या बगैर खोज कर्यां गढ़वळि साहित्यौ इत्यास लिख़ण लगि जौलु त समजी लेन बल मि दानों सयाणों लिख्वार ह्वे ग्यों . त पन्त जीक हिसाब से प्रेम लाल भट्ट जी दाना सयाणा लिख्वार ह्वेइ गेन . पण प्रेम लाल जी चूंकि अबि नयो  रचनाकारूं तै सीख नि दीणा छन त यांको मतबल च बल अबि बि प्रेम लाल जी दानो सयाणा लिख्वार नि ह्वेन . मतबल कखि ना कखि भट्ट जीक सक्यात बचीं च।पण रूण त याचो भट्ट जी सरीखौ विद्वानै सक्यातौ  फैदा उठाणों माध्यम गढ़वळि मा कख च ?

         मि तै लगद अपण भगवती प्रसाद नौटियाल जी , डा अचलानंद जखमोला जी  दाना सयाणा लिख्वारूं पंगत मा ऐई गे होला पण डा जखमोलौ जीक सुचण च बल जब तलक गढ़वाल सभा देहरादून डा जखमोला क गढवाली -हिंदी -अंग्रेजी शब्दकोश नि छापली तब तलक वो बुड्या नि ह्वे सकदन . डा जखमोला क बुलण च बल गढवाली -हिंदी -अंग्रेजी शब्दकोश छपणो परांत इ सोचे जालो बल मि युवा छौं कि बुड्या . त डा अचला नन्द जीक बुलण से लगद बल कखि भगवती प्रसाद नौटियाल जी तै  दाना सयाणा लिख्वार  बुले जालो त ऊन  बि  चिरड़े जाण किलैकि उंकी जिकुड़ेळि गाणि -स्याणी (दिल की इच्छा ) च बल  ऊंको संयोजन मा गढ़वाली भाषा संस्थान खोले जावो अर फिर गढ़वळि  तै संविधानै आठों अनुच्छेद मा जगा दिलाला . यांक साफ़ मतबल च बल भगवती प्रसाद जी अबि बि मोती ढांगा नि ह्वेन अर अबि बि  नौटियाल जी गढ़वळि साहित्यौ बान बबरट्या बौड़ छन . पण गढ़वळि भाषा साहित्य मा  रुण या च कि बौड़ त तयार च कि वो बबराट कौरिक हौळ  लगाओ पण कांड इन लग्यां छन कि हऴया इ बौं हौड़ सिंयां छन।

     शिवराज सिंग 'निसंग ' जी जब गढ़वळि भाषा क इतिहास ऊनि  लिखदन  जन उन्नीस सौ मा लिखे गे छौ त लगद च बल निसंग जी बुडे गेन अर अब यूं तै दाना सयाणा लिख्वारों डंड़्यळ मा बैठाळे  जाउ पण  फ़िर कविता लिखदन त लगण बिसे जांद कि ये बौड़ो नै दांत आणा छन .मतबल निसंग जी बि अबि दाना सयाणा लिख्वार नि ह्वेन .

   जीत सिंग नेगी जी सचमुच मा दाना सयाणा लिख्वार , गीतकार, गितांग ह्वे गेन किलैकि ना त वो कुच्छ बुलणा छन कि वूं तै पद्म श्री मिलण चयेंद अर ना ही हम ऊं तै ओ सम्मान दीणों बान कुछ करणा छंवां जांक जीत सिंग जी हकदार छन .चण्डीगढ़ का बलवंत सिंग रावत जी चुप छन त मतबल ओ दाना सयाणा लिख्वार ह्वे गेन ? हमारी एक हैंकि खूबि च बिचारा लिख्वार इ बतान्दो कि वो ज़िंदा च हम गढ़वाली लिख्वार अपण दगड्यो खबर अफिक नि लींदा .

   चक्रधर कुकरेती जी क उमर दानो सयाणों लिख्वार कि ह्वे गे पण अबि बि ईं उमर मा लिखणा रौंदन अर बुड्याण तै इनि भगाणा रौंदन जन अचकाल गाऊं मा लोग सुंगर भगान्दन .

      डा उमा शंकर थपलियाल हृदय समस्या क बाबजूद अबि बि हिंदी पत्रकारिता मा व्यस्त छन त वूं तै बुड्या बुलला त जवान कै तै बुलला ?

   चन्द्र सिंग राही अब गीत नि गान्दन पण ये भै गढ़वाली लोक गीतों खोज मा इन लग्यां रौंदन जन बुल्यां भूको शेर शिकार की खोज मा ह्वाओ त ज्वा गौड़ी अबि बि दुधाळ ह्वाओ वीं तै त कलोड़ इ बुलण ठीक च

जगदीश बहुगुणा 'किरण' गढ़वळि  हिसाब से एक पैणों बाद इ  बिसक गे छा उन द्वि साल पैलि वूं से मेरि बात बि ह्वे छे अर चिट्ठी पत्री औण जौण ह्वे छौ . उंन अपण युवावस्था मा  गढ़वळि कविता संग्रह 'घमा '  छपाणों देहरादून एक प्रकाशक मा भेजि छौ अर वों कविता वै प्रकाशक क कफन लगी गेन  इथगा सालों से कविता संग्रह नि छप।

भगवान सिंग अकेला सचमुच मा बुडे गेन अब बस मुंबई मा आराम इ करदन

जग्गू नौडियाल जी अबि  जवान बौड़ो तरां कील ज्यूड तोडनो तयार रौंदन अर लग्यां छन कि द्वी चार किताब छपी जावन

ललित केशवान जी त चलण फिरण मा, दिखण दर्सन मा मे से जवान छन . सि द्वि तीन मैना पैलि मुंबई ऐ छया त जब केशवान जीन म्यार परिचय मिसेज केशवान से करायी त ऊन में तै जिठा जी   समजिक सिवा लगाई अर म्यार सर्टिफिकेट दिखाणो बाद बि श्रीमती केशवान तै भर्वस नि ह्वे कि मि केशवान जी से कणसो छौं अर कसम से मिसेज केशवान जीन जांद  दें मि तै जिठा जी बोलिक फिर सिवा लगाई अर मीन केशवान जी तै ज्याठो भैजी बोलिक सिवा लगाई . केशवान जी सरैल अर  जिकुड़ी से चिरा युवा छन . उंकी इच्छा च कि एक गढ़वळि कथा खौळ (संग्रह ) अर गढ़वळि उपन्यास छपी जालो त तबि  जैक ओ  दाना सयाणा लिख्वारों मुंडीत मा शामिल ह्वाला . अब गढ़वाली समाज पर निर्भर करदो कि वो ललित केशवान जी तै कब दाना सयाणा लिख्वार बणान्द।

  उन त पुष्कर सिंह कंडारी जी पर लकवा जन रोग लगी गे अर उमर बि ह्वेई गे पण यु हमारो कहावतो क बीर खुजनेर थक नी च अबि बि लग्याँ छन कि कै दिन बकै बच्यां 6000 हजार गढ़वाली कहावत अर गढ़वाली मा लिख्यां नाटक , कथा छपन धौं . मतलब पुष्कर सिंह जी बि  दाना सयाणा लिख्वारो पंगत मा नि जाण चाणा छन।

  त यो साफ़ च कि साहित्य मा क्वी  उमर से बुड्या नि होंद अर जब तलक  वैका लिख्युं साहित्य नि छप्यांद वैन बुड्या नि होण

 

Copyright@ Bhishma Kukreti 12/11/2012

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा


                            दिवतौं  दिवाळि-बग्वाळि नीबत सौं संकल्प


                               चबोड्या : भीष्म कुकरेती



                       ईं बग्वाळि कुणि परमेश्वरन सबि दिवता पूछिन बल भै जरा इन त बतावा भारतौ बाबत तुम लोगुन क्या क्या सौं घटिन , क्या संकल्प करिन ? त हरेक दिवता अपण अपण सौं संकल्प बथान्दा गेन


   काकभुशंड जीन बोलि बल अचकाल भक्त लोग बद्रीनाथ जन जगा मा जांदन अर भक्ति मा इथगा डूबि जांदन कि भक्तिरस की रस्याणो जगा पोलीथिन बैग , कचरा मन्दिरों मा छोड़ि ऐ जांदन . ये बरस मि भक्तों मा आम भक्ति दगड्या दगड़ पर्यावरण भक्ति भि भरुल .

वरुण जीन सौं घौट कि ये बरस जरूर गंगा -जमुना सफाई अभियान को काम पूरो ह्वे जालो अर नेता लोग, सरकारी कर्मचारी, ब्यापारी  घूसो रौ मा नयाणों जगा पवित्र गंगा -जमुना मा नयाला .

पशुपतिनाथन सौगंध खैकि बोलि बल चूँकि सोप ओपेरा देखिक भारत की जनता क दूरदृष्टि कमजोर ह्वे गे त मि भारत की जनता तै  चक्षु ज्ञान की दवा  द्योलु जां से वो नेपाल मा चीन की गति विधि पर नजर डाळणै रैन .

सुबुधि दिवता न कसम खाई बल अचकाल भारत का योजनाकार अमेरिकी या युरोपौ किताब बांचिक भारतौ बान योजना बणौन्दन त ये साल म्यार काम एकि रालु कि जनि यि योजनाकार बेकार मा अमेरिका या यूरोप की नकल कारल मि खैड़ों न यूंक गुदुल गाडुल .

धनवन्तरी  जीन संकल्प लींद बोलि बल  हरेक नेताक ग्रामीण स्वास्थ्य चिंता क इन्जेकस्नु  बाबजूद बि ग्रामीण स्वास्थ्य की हालात दिनों दिन खराब इ होणि च त ये बरस मेरो ध्यान बस ग्रामीण स्वास्थ्य विकास पर रालो .

कृषि देविन सौगंध खैनि बल भारतौ प्रधान मंत्री अर कृषि मंत्री सियां बि राला पण मीन त ये साल तिसरी कृषि क्रान्ति बीज हरेक पुंगड़ म बूण।

भंडारी दिवतान कसम ले बल ये साल कथगा बि  फसल होलि मि अनाज तै सड़ण नि द्योलु .

कृषि देवी अर भंडारी दिवता देखादेखी वन देवी, फूलदेवी , बागवान दिवता   अर पशु दिवतान बि कसम ले बल ये साल फारेस्ट , फ्लोरिकल्चर, हौरटिकल्चर कुणि  रिफौर्म की कलम उगाये जालि .   

हनुमान जीक घुण्ड ठोकी कसम च बल वो ये साल हरेक भारतीय मा अपण देसों रक्षा बान इनि चेतना जगाला जन ऊँन कबि राम चेतना जगाई छे . हनुमान जीन परमेश्वरम  अर्जी बि दियाल कि वाल्मीकि अर तुलसीदास कु पुनर्जन्म ह्वाओ जो भारत मा देस रक्षा चेतना फैलावन।  परमेश्वरन हनुमान जीक अर्जी पास कौरि आल अर ये साल वाल्मीकि अर तुलसीदास क अवतार भारत मा देस रक्षा चेतना फैलाला

 बृहस्पति जी अर शुक्र जीन सरस्वती देविक ब्लैक बोर्ड मा  लेखिक सौं घटि कि ये साल वू सबि  भारत मा भारत लैक शिक्षाक पौ ख्त्याला (आधार शिला धारल ).

 लक्ष्मी देवी न कुबेर जीक सौं त घौट छन कि वा भारत मा धन धान्य की बरखा कारलि पण दगड़ इन बि बोलि गे कि धन धान्य कै कैक ड्यार जाला वांकि जुमेवारी त सोनिया गांधी, प्रधान मंत्री राज्यों मुख्य मन्त्र्युं की ही रालि।यां पर सद्बुधि दिवता न सौं घटी बल मि यूं सब्युं पर  सद्बुधि क टीका जरूर लगौल .   

न्याय दिवता ग्विल्ल न सौं घटि कि ये साल त्वरित न्याय प्रक्रिया  बाबत भारत मा  जन चेतना वास्ता एक नयो अना हजारे जनता क समणि आलो 

इनी हरेक दिवता न सौं घटिन अर आखिरैं ..

 विश्वकर्मा न बोलि बल मि हाउसिंग , रोड ट्रांसपोर्ट , इन्फ्रास्ट्रक्चर मा तेजी से सुधार त लौलु पण भ्रष्ट तन्त्र कु जड़ नाश करणै जुमेवारी त परमेश्वर जीकि  च।

परमेश्वर जीन बि सौं घटी कि ये साल लोकपाल बिल राज्यस्भा मा धरे जालु पण पास करणै जुमेवारी राज नेताओं की इ ह्वेलि आखिर नेता त अफु तै में से बड़ा जि समजदन     



Copyright@ Bhishma Kukreti 14/11/2012

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                बाल दिवस पर सरादौ (श्राद्ध)  कर्मकांड     

 

                                     चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 
 
-- बोल जमूरे बथैलि  ?

- उस्ताद बथौलु

- जु पुछलु स्यो इ बथैलि ?

-सवाल जन होलु तन इ बथौलु ?

-त  जमूरे बथा बाल दिवस क्या होंदु ?

- उस्ताद सबि देसुं मा साल भर मा कै ना कै  दिन बाल दिवस मनाये जांद
 
-जमूरे मि इंडिया की बात करणु छौं

- औ उस्ताद जी ! आप  नेहरु जीक सरादों(श्राद्ध ) दिनै बात पुछणा छंवां ?

- ओ कुबुल्या जमूरे ! मि नेहरु जीक जलम बारो बाराम बुलणु छौं .

-हां उस्ताद मि बि चौदा नवम्बर की बात करणु छौं . सबि जगा जलम  बारौ  जगा नेहरु जीक सरादअ  बान तर्पण इ दिए जांद
 
-अरे निर्भागी जमूरे जलम बारौ दिन तर्पण नि दिए जांद ना बरख पुजे जांदन

- मै त  लगद सबि देसुं  मा बाल दिवस माने बाल श्राद्ध दिवस

-अबे कमबख्त ! तै जिबाडु पर म्वाळ लगा

- जब बाल दिवसौ दिन उस्ताद अपणों च्याला, शागिर्द या ब्वालो शिष्य तै गाळी द्यालो त यकीनन ओ बाल  दिवस बाल श्राद्ध दिवस हि ह्वालो
 
- सौरी ! डियर जमूरे ! सदियों से  अपण च्याला तै मा  बैणी गाळी दीणै आदत जि पड़ी च त ..वा आदत एक दिन मा त नि जालि ना

- जब बाल दिवसौ दिन बि मास्टर, संरक्षक , बड़ा बूड  या ब्वे बाब गाळि नि छोड़ी साकल त वै बाल दिवस तै छ्वारों सरादौ दिन इ मनण चयेंद
 
-हां त  जमूरे बाल दिवसौ दिन क्या क्या हूंद

-  जख बड़ा लोग बच्चों तै हैंकि कौम या हैंकि जात  से  घीण करण सिखाला उख बाल दिवस मनाणों मतबल बाल श्राद्ध दिवस मनाण

- जमूरे तुमारी बात मा  दम च पण फिर बि बाल दिवस पर लोग बच्चो तै भेंट माँ कुछ ना कुछ दीन्दन .
 
-जख आज बि  स्कूल्यों तै फण्यटन पिटे जांद , स्कूलम छ्वारों तै बड़ा बड़ा आमानवीय  डंड दिए जावो तो  वै देस मा बालदिवस मनाण माने ज़िंदा बच्चों कि तिरैं बरिखि करण .

-जमूरे ! सबि देसुं मा बाल दिवस इलै इ मनाये जांद कि लोगुं मा बच्चों प्रति जागृति आवो
 
-उस्ताद ! भाषण देकि जागृति नि आंदि . नेता बाल दिवसौ दिन भाषण द्यावन कि बच्चों तै चोरि नि सिखावो अर जब भंयकर  गरीबी समणी ह्वाओ त ब्वे बाबु म अपण बच्चों तै चोरि सिखाणो अलावा क्वी दुसर विकल्प बि नि होंद . भाषण पुटकै भूक नि मठांदी .
 
- भै जमूरे ! ये दिन बड़ा बड़ा धनी देस शरणार्थी बच्चों तै लारा कपड़ा  दान दीन्दन

- वाह उस्ताद ! पैल आग लगाओ अर फिर अग्यौ बुझाणों पाणि डाळो। जरा द्याखो त सै आज दुनिया मा शरणार्थी समस्या कैक पैदा करीं च ? यूं इ दानवीर देसों क कुचक्र , स्वार्थी कूटनीति से देस आपस मा लड़दन, वां से बच्चा शरणार्थी बणनो मजबूर हूँदन अर फिर यि दानदाता देस बाल दिवसों दिन शरणार्थी  देसुं  बच्चो तै टॉफी का तोहफा बंटदन। कतल बि करो अर वैदकी बि दिखावो
 
  -जमूरे इथगा रोष, गुस्सा, क्रोध ,  ऐंगर स्वास्थ्य बान ठीक नी च

- उस्ताद जै देस मा  बच्चों आवश्यक स्वास्थ्य की समस्या निदान , समाधान  की बात हऴको ढ़ंग से करे जावो वै देस का नेता बाल दिवस पर बच्चो तै खिल्वणि भेंट मा इलै दींदन कि मीडिया मा कवरेज ऐ जावो वै देस मा बाल दिवस को असलि अर्थ बाल हत्या दिवस ही माने जालो।
 
- जमूरे ! सरकार बाल दिवस इलै इ मानांदन कि लोगुं मा बच्चों समस्याक  प्रति जागरूकता आवो लोग समस्या से चितळ ह्वे जावन .

-जख आजादी का साठ पैंसठ सालों मा बाल मजदूरी समस्या निदान नि ह्वे साको उख बाल दिवसों दिन नेताओं द्वारा ग्वारा -ग्वारा , बिगरैल बच्चो तै खुकलि पर उठैक फोटो खिंचाण मने बाल दिवस की बेज्जती करण .
 
-ओ म्यार बुबा बल दिवस प्रतीक च कि हम आण वळी साखि प्रति चित्वळ छंवां।

- उस्ताद ! यूं नेताओं अर अधिकार्युं तै सिरफ बाल दिवसौ दिनि किलै याद आँद बल  देसम बाल वैस्यावृति  खतम हूंण चयेंद?. सराद मा बि क्या  हूंद ब्वे बाबु तै तर्पण द्याव अर फिर साल का  बकै दिन ब्वे-बाबुं तै बिसरि जाव
 
-नै नै जमूरा ! सबि देस चांदन कि बच्चों उज्जवल भविष्य ह्वाओ अर यी भविस्यौ नागरिक अपण देस की आन शान बढ़ावन  .

- हाँ हाँ ! वो देस बि बाल दिवस मनान्दा इ छन जो देस बारा चौदा सालक बच्चो तै युद्ध मा झोकि दीन्दन। बच्चों दगड़ मानव सभ्यता को यां से बडो मजाक ह्वे नि सकुद
 
-- मेहरबान ! कदरदान ! म्यार सात सालौ नौनन आपका मनोरंजन कार , आप तै जरूर रौंस , मजा ऐ होलि . जमूरे ! यु स्वांग हमन किलै कार ?

-उस्ताद भूक मठाणो बान , पेट की आग बुझाणों बान .

- त दिखणी क्या छे मांग दानदाताओं से भीख , इनाम किताब !

- . एक सात  साल के लडके को इनाम दो  बाबा,  जो दे उसका भी भला न दे उसका भी भला ...         

 
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Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                          गाउं मा वृद्धाश्रमुं  जरूरत अर पहाड़ी आन्दोलन

                             

                                          चबोड्या : भीष्म कुकरेती
 
 

               जब उत्तराखंड बौणि गे छौ अर  लोग खुसी माँ सांस्कृतिक अठ्वाड़ या पार्टी सार्टी करणा छया त एक सांस्कृत्या अठ्वाड़म मीन भग्यान अर्जुन सिंग गुसाईं जीम बोलि छौ बल अब पहाड़ आन्दोलन की भारी जर्वत ऐ गे

                जब हम गढ़वाली भाषौ साहित्यकार   पित्याणा छया बल सरकार गढ़वळि कुमाउनी बान कुछ नि करणी च त मीन चबोड्या भौण मा लेखि  छौ बल अलग गढ़वाली राज्य की जर्वत ह्वे गे, जां पर अपणा साहित्यकार सुशील बुड़ाकोटी जीन टिप्पणी कार कि मि इनि छौं करणु जन क्वी एक नयो पाकिस्तान की मांग करणों ह्वाओ।

  फिर जब गढ़वळि साहित्य मा चुप्पी या जाम की बात ह्वाई तो बि मीन  साहित्य मा  चुप्पी तोड्नो बान पहाड़ी आन्दोलन की बात कार अर ब्वाल बल इ राम दा क्वी आन्दोलन चलणों होंदु त गढ़वळि साहित्यौ पयिया पर ग्रीस उरुस लगद त गढ़वळि साहित्यौ चक्का जाम नि होंदु . भाषा संस्थान को दान से चक्का जाम नि खुल बस  खालि दान न साहित्यौ गाड़ि तै धक्का लगाई। गौ बुरी चीज भाषा संस्थान को दान से गढ़वाली साहित्य तै एक बि नयो पठनेर /पाठक मीलि ह्वा धौं . किताब छापिक धिवड -द्यूं -दीमक जोग करणों कुणि गढवाली भाषौ विकास नि बुले सक्यांद। गढ़वळि साहित्य तै निरंतर बंचनेर चयांदन त पहाड़ी आन्दोलन की बदौलत ही गढ़वळि साहित्य तै निरंतर बंचनेर मीलि सकदन   

अब जब बारा सालौ उत्तराखंड मा बि हम तै लगणु च बल अपणों न अपणो तै दनकाई , अपणों न अपणो तै ठग , अपणों न अपणो तै पीट त इनमा पहाड़ आन्दोलन की बात अफिक शुरू ह्वे जांदी

फिर उत्तराखंड क्रांति दल , पहाड़ी राज्य सभा या हौरि बि जथगा क्षेत्रीय दल छन यूँकी हालात बद से बदतर होणि च त यांको एकी कारण च की यी दल अबि पहाड़ी आन्दोलन क्या च जन सवालुं तै समजी नि सकिन .यूंक बिंगण मा आई नी च कि पहाड़ आन्दोलन छ क्या च ?     

 उत्तराखंड क्रान्ति दल या दुसर क्षेत्रीय दल पहाड़ो असलियत से दूर इ रैन अर इनमा पैल त नेताओं तै कारिन्दा (कार्यकर्ता ) इ नि मीलेन तो जनता क सहयोग की बात इ क्या करण ?

  पहाड़ी आन्दोलन कु असली अर्थ च पहाड़ो की असली समस्या समझो अर फिर वीं समस्या से पैल समाज तै झकझोरो अर तब जैक ड्याराडूणो घंटाघरम बैनर लगाओ। पण हमारा स्वम्भू नेता क्या करदन ? पिथौरा गढ़ की पैनो गां मा उजड्यु गौळौ बात पैनो गां लोगुं म त करदा नि छन बस ड्याराडूणो घंटाघरम बैनर लगै दीन्दन अर यां से ना ही समाज चित्वळ होंद ना हि सरकार की नींद  बिजदी . समस्या जख्याकि तखि रौंदी .


  अब जरा द्याख्दी पहाड़ का इ ना प्रवासी समाज मा एक बड़ी समस्या ऐ गे . अर  वा समस्या च बूड बुड्यो की देख रेख। कारण भौत छन जन कि मनोवैज्ञानिक, मनिखों आपस मा सामंजस्य नि कौर सकण , सामजिक बदलाव, वित्तीय समस्यों से उपजीं समस्या आदि आदि . पण एक बात जरूर च कि गौं मा  बूड-बुड्यो तै जीवन यापन की अणदिखिं -अणसुणि समस्यों से जुझण पड़णु च . एक त गौं मा परिवार का जवान या प्रौढ़ नि  छन अर बुड्या या  बुडड़ी इखुल्या इखुलि शारीरिक परिश्रम की मार सैणा छन। कुछ प्रवासी बूड -बुडया अपण मर्जी से या परिस्थिति वस गां आण चाणा छन पण शारीरिक परिश्रम करण से लाचार छन त मैदान मा इ भयंकर मानसिक त्रास  सहणों मजबूर छन . याने कि गाउं मा बूड बुड्यो देख रेखौ बान समाज तै एक नई व्यवस्था करणि पोडल .

         

  आज गौं मा वृद्धाश्रम की  जरुरत एक आवश्यक आवश्कता  ह्वे ग्याई कि जख शारीरिक रूप से कमजोर बूड बुड्यो बान खाण पीणो , कपड़ा धूणों पूरो इंतजाम ह्वाओ अर आवश्यकता  पड़ण पर चिकित्सा सुविधा दिलाण मा यी वृधाश्रम मदद कारन।

  अब इन मा वृद्धाश्रम खुलणै बात पहाड़ आन्दोलन को एक  हिस्सा ह्वे सकद किलैकि गां मा  वृद्धाश्रम खुलण एक सामाजिक जुम्मेवारी च ना की सरकारी जुमेवारी .

 जु हम लोग उत्तराखंड मिलणों बाद फकोरिक से नि जांदा अर पहाड़ आन्दोलन तै अग्वाड़ी बढांदा  जांदा  त आज हम अफिक भौत सि समस्याओं निदान ढूंढी लींदा अर पहाड़ आन्दोलन चल्दो रौंद त भौत सि समस्या आंदी ना .

  आज प्रवासी अर गांवासी समाज तै एक सवालों जबाब खुज्याणि  पोड़ल कि गां मा  असक्षम बूड बुड्यो देखभाल कनै करे जावु . या प्रवास से कै बि कारण से जु बि  बूड बुड्या गां आण  चाणा छन वूंको चैन से रौणो व्यवस्था कनकै करे जावो .     

 गांउं  मा बूड बुड्यो समस्या इन बि बथाणि च कि आज पहाड़ी आन्दोलन की कथगा भारी आवश्कता च !

   

 Copyright@ Bhishma Kukreti 17/11/2012

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                            भारतीय अर्थव्यव्स्थौ खिचडु- टिकडु                                         

 

                                          चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 
 
  जू बि मिल्दो स्यू बुल्दु बल चुनाव आण वळ छन त मनमोहन  जी और ऊंका लोग भारतीय अर्थव्यव्स्थौ मुतालिक कुछ ना कुछ पकाणा छन।

मि तै   भर्वस बि छौ अर अणभर्वस  बि छौ , उमेद बि होणि छे अर नाउमेंदि  डौरक च्याळ  बि , कौज्याळ  घंघतोळ बि त उज्यळ अर्थव्यव्स्थौ ख़याल बि ।
 
 मि सि ब्याळि औंसि रात उठ अर सूद भेद लीणों प्रधान  मंत्री कूड़ो पिछ्वाडि चौड़ सौड़ (मैदान ) मा ग्यों। त उख सकल सूरत से मोंटेक सिंग आहलुवालिया जनों एक मात्रिक एक बड़ी कड़ाई मा बड़ा बड़ा करछों  लेकि कुछ पकाणों छौ .
 
मीन पूछ ," ए जी ! क्या पकाणा छंवां ?"

 मान्त्रिक न जबाब दे ,'मि भारतीय अर्थव्यव्स्थौ पुलाव ना ना  बिरयानी पकाणु छौं ."
 
में से नि रयाइ  अर बोलि दे ," मतबल, भारतीय अर्थव्यव्स्थौ  खिचडु-टिकडु ?"

वून रुसेक बोल , " यूं ब्लडी इन्डियन !  वेल नोन नेम इंडियन इकॉनोमी क बिरयानी तै भारतीय अर्थव्यव्स्थौ खिचडु-टिकडु बुल्दो शरम नि औंदि ?"
 
मीन बोलि , " सौरि ! मिस्टेक से गलती ह्वे ग्याई जु  मीन इंडियन इकॉनोमी तै हिन्दुस्तानी नाम दे द्याई"

वूंन अंग्रेजी मा टिप्पणी दे , " इलै इ त इन्डियन इकॉनोमी नी सुदनी च। जब हमन अमेरिका बिटेन रिफौर्म सिद्धांत उधार लियुं च त नाम तो अंग्रेजी मा लीण सीखो . ब्लडी इग्नोरेंट इन्डियन !"
 
 

 मीन बि अंग्रेजी मा पूछ ," व्हाट इज कुकिंग इन इन्डियन इकॉनोमिकल बिरयानी ?."

वूंन पुळेक बोले , " औ तू त समजदार , तमीजदार , धारदार होशियार लगणु छे भै "

मीन अंग्रेजी मा इ ब्वाल , " जी क्या पकणु च ?"
 
वूंको जबाब छौ ," पकाणों त मि अमेरिकी बर्गर छौ पर इख पकाणों अनाज इ इन मीलेन कि क्या से क्या पकि गे ."

मीन हथ पसारिक ब्वाल ,"जरा चखावदी कनो स्वाद च धौं ?"

वून मै कडै बिटन गाडिक कनफणि सि कुछ दे . मीन जीव मा धौरिक इ उकै उल्टि कौरि दे अर ब्वाल , " हत ! यि पर त , रिसेसन की गंदी बास आणि च ?"
 
वूंन रुंदा मुखान ब्वाल , " मीन क्या करण ? मीन त रिटेल मा ऍफ़ डी आइ मांगी छौ जां से रिसेसन की गंध बास कम पता चौलु . पण अबि तलक कुज्याण  किलै चिदम्बरम जी रिटेल मा ऍफ़ डी आइ फ्लेवर नि लैन धौं ? अछा रुको हां ! मि जरा डीजल अर गैस सब्सिडी कम करणों छौं . ल्या जरा अब चाखो "
 
वूंन दुबर खिचडु द्याई अर जीब मा धरीकि म्यार आंख कतड्याण मिसे गेन . म्यार कतड़या आँख देखिक वूंन बोलि , " ओहो ! यां से ईं बिरयानी मा इन्फ्लेसनो गंध याने मंहगाई दर की असह्य गंदी बास बढ़ी गे जां से आप तै  लगणु च कि क्वी तुमर गौळ दबैक मारणु च। मि जरा रिजर्ब बैंक बिटेन लयुं कम ब्याज दरो कर्ज डाऴदु अर दगड़ मा सरकारी सब्सिडी बि जादा डाऴदु  हां ! ले अब चाख ."
 
मीन  जनि बिरयानी क एक टींड जीव मा क्या धार कि म्यार सरा सरैल से पसीना बगण बिसे गे .

वूंन घबरैक ब्वाल , " ये मेरि ब्वे ! यी त फिस्कल डेफिसिट स्वादों चिन्ह छन . उं !उं ! चलो मि इंडाइरेक्ट रेविन्यु इनहैन्सरो याने इंडाइरेक्ट टैक्स कु मसाला डाळदु  हां . ले अब चाखदी कन च?"
 
अर जनि मीन एक टींड मुख जिना लीगो कि देखिक इ म्यार  अंदड़ो मा असह्य मरोड़ शुरू  ह्वे गे अर मि डावन , दर्दन जोर जोर से किराण बिसे ग्यों .

वूंन रवैक ब्वाल , " ओहो तुम पर आण वाळ मंहगाई क डौर बैठि गे . अछा मि भ्रष्टाचार -घोटालों छवि ठीक करणों मैणु मसाला डाळदु। ले अब चाख ."
 
मीन बिरयानी चाखि अर हौर जोर से किरौं , ये मेरि  ब्वे मोरि ग्यों , ये बाबा ! मोरि ग्यों। "

 वूंन घबरैक ब्वाल , " हैं ! तुमर पेटम बिरयानी दगड़ त अफसरशाही -राजनीतिज्ञों अर ब्यापार्युं क नेक्शस द्वारा  देस बिचणो मंशा का बीज बि चली गेन ."
 
मीन किरै किरैक ब्वाल," या मरोड़ त भौति असह्य ह्वे गे ."

वूंन ढाड्स दिलाई , " चलो अब मि ब्लेम गेम कु घ्यू डाळदु  "

मीन पूछ ," ब्लेम गेम ? मतबल भगार, लांछन , कलंकित करणों, दोषारोपण , कसूरवार ठैराणो खेल .."

वूंन विश्वास दिलांद ब्वाल , " हां ! मि अब विरोधि दलों पर भगार की गोळी , मीडिया पर दोष कु फ्लेवर , भ्रष्टाचार उन्मूलन आन्दोलन तै कलंकित करणों दिग्विजयी मसाला यीन इन्डियन इकौनोमी बिरयानी मा डाळणु छौं . ले अब चाख ."

मीन एक ना कथगा इ टींड चाखिन . मीन ब्वाल ," कुछ पता इ नि चलणु च कि इन्डियन इकॉनोमी क स्वाद  कनो  च .."

वूंन उत्साहित ह्वेक ब्वाल ,' यांक  च भगार खेल कु मसाला काम करणु च ."

मीन ब्वाल, " अर अब म्यार सरैल सुन्न पड़णु च , मि तै इन लगणु कि मि कन्फ्यूज होणु छौं , सुध बुध बिसरणु  छौं .. सैत च  भारतीय अर्थव्यवस्था कु क्या हाल होलु का  बारा मा सोचिक इ मि बिसुध होणि वाळ छौं .."

मीन बेहोश हूण से पैल मांत्रिको यी शबद सुणिन, " हाँ ! हाँ ! सर ! खराब भारतीय इकॉनोमी क दोष आप विरोधियों, अन्ना हजारे   अर  मीडिया पर लगांदा जावो , जोर शोर से लगांदा जावो . जनता सुंताळ (सुन्नपट्ट, बेसुधी हालत ) मा  पौंछि जालि..."       

 

 

 

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                           

                                          पहाडुंम बागवानी                                           

                                       चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 
 
 -- बल भैजि! किलै छंवां रंगताणा  जन बुल्यांपुटुं कुंद भौत बड़ी मरोड़ ह्वा उठणि?

--अरे ! त्वे वे क्या पता। क्या च मै पर बितणि?
 
--बतैल त पता चौल जाल क्वा बात च तुमारि  जिकुडि खाणि

-- एक मैना से जादा ह्वे ग्याई मन्योडर नि आई। पुंगड़-पटळ  करण सौब बंद छन . त कखन बौड़ाण  दुकानदारों अर दीणदारों लेणि देणि?

 -भैजि कुछ नयो उद्यम कारो जां से  बंद ह्वे जावों सौब रूणी -झाणि 
 
- अरे समज मा नि आंदो बल  यूं पाख पखड्यो मा क्या उद्यम ह्वे सकुद जो दे द्याओ चंगर्या भौरि भरपूर रुप्या पाणि

- भैजि ! एक रामबाण छ त छें च जो लै सकद ठुपुर भौरि रुप्या पाणि

-  इन जि होंद त किलै भुगतदा हम इख  पहाड़ोम या फोकटै रूणी-धाणी अर पैसों टरकणि ?
 
-बागवानी लगावा , बांज पुंगड्योम फलुं डाळ लगाओ . फल खाओ , फल बि ब्याचो अर फिर द्याखो कन होंद धौं रुप्यों तड़क्वणि !

- अच्छा !  पहाडु कुणि बागवानी ह्वे सकद रामबाण ? क्या बागवानी लै सकदी रुप्यों तड़क्वणि ?
 
- हाथम धगुल त दिखणो बान ऐना की क्या जर्वत ? कश्मीर द्याखो अर देखि ल्यावदी हिमाचल का सेवो बगीचा   

-पण  हमर   पहाड़ ?

-त जरा पौड़ी गढ़वाल मा खंड, ढागू क सत्य प्रसाद बड़थ्वालौ बागवानी से कमाइ पर नजर त मारो फिर चचलै जैल्या कि बागवानी से कनों हूंद रुप्यों तड़क्वणि!
 
-हां वो सत्य प्रसाद तै बाग्वानिम हडक तुड़द त दिख्युं च म्यरो। तुमारी बात सै च बागवानी सौकार -धनवान बणानो अणसाळ च

-त फिर तुम किलै छंवां बैठ्याँ ? किलै छंवां तुम बौंहड़ सिंयाँ ?

-ना भै ना !  बांज पुंगड़ो तै हडका तोड़िक नजीलो करुल मि अर खांद दें हिस्सेदारी जमाणों ऐ जाला मेरा द्वी प्रवासी भाई
 
- पण भाई त तुमारा इ छन . वूंको बि त हक्क च बापदादों जमीन पर ?

-वूंको क्यांक हक ? जमानो से वो शहरों मा मजा करणा छन . रौणि दे अपणि राय अफुम  जब पादिक काम चलणो ह्वाओ त हगणो जाणै क्या जरूरत ? हैंक दै नि दे इन मजाकिया राय
 
xxx                   xxxx                                               xxxx

- बल प्रवासी भैजि ! किलै च या उठा पौड़ी ? किलै च भूक-तीस -निंद हर्चीं

- अरे जैक खुट पर खुब्या ह्वा पुड्यू तों  डा -दर्द त वै तै इ होंद
 
- बल प्रवासी भैजि इख शहर मा अछी भलि नौकरि च . बच्चा बि अब हौळ लगाण लैक  बल्द  ह्वेइ गेन फिर क्यांकि फिकर ?

-अरे चिंता रिटायरमेंटक बादै च कि कनै क्वी काम से समय बि कटि जावो अर दगड़ मा घौर चलाणों रुप्या पाणि बि इंतजाम ह्वे जावो
 
-अचकाल त इन्वेस्टमेंट .प्लान ..

-अरे  पर मीमा इथगा रुपया कख च कि मि इथगा इन्वेस्टमेंट करू सौकु .

-त थ्वडा सि इन्वेस्टमेंट मा अपण बांज पड्या  पुंगड़ोम बागवानी लगावो अर रिटायरमेंट क बगत पर रुप्या कमाओ
 
-सोचि त मीन बि छौ . पण रूप्या लगौं मि अर हिस्सेदारी जमाणों आला मेरा द्वी भाई . ऊं दुयुं तै दीण से  बढ़िया त कम खौंलु सुखि रौंलु .  हैंक दै नि दे इन मजाकिया राय

xxx                 xxx

-बल सरकार जी ! सरकार जी ! आप पहाड़ों म बागवानी किलै नि छंवां   लगवाणा . बागवानी बडो रोजगार च।
 
- छोड़ इन बेकार की बात करण . अरे जब उखाक बासिंदों अर प्रवास्युं तै नी च पड़ी कि उख कुछ करे जावो त मै तै गुरान तड़कयूं  च जु मि कुछ कौरुं . जन चलणो च तन्नि चलण  द्यायो। ज़िंदा कौम की निसाणी कुछ हौर होंद . बेजान मुर्दों  तै फूंक मारिक ज़िंदा नि करे जांद                 

 

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                              इ रूणा किलै छन ?         

                                         

                                      चबोड्या : भीष्म कुकरेती   

 

 - ये मेरि ब्वे ! इ ग्राम प्रधान, सरपंच , ब्लॉक प्रमुख इन ह्यळि  गाडि गाडिक किलै रूणा छन ?  यूंका -क्वी सगा मोरि गे क्या ?

-अरे कैको धरम बुबा मोरि जावो त यूंन निरस्येक रूणि इ च कि ना ?

-अरे पण धरम बुबा मोरण पर इन ह्यळि ? अरे इन लगणु च जन बुल्यां यूंन भुकि मोरि जाण . इन लगणु च जन बुल्यां मोरण   वळो दगड़ यूंको पाणि धार बि बिसकि जालो अर यूं सब्युनं तिसा मोरि जाण

-हां ! हां बुन्याल यूंका घास -तेल -पाणि  इंतजाम करण वळो जि सोरग जोग ह्वे गे .

-हें 

-हां जी

- अर यि क्या  फंड धुऴया, काम बिगड्या, दल्ला बि इनि रोणु च जन बुल्यां यु रंड्वा ह्वे गे ह्वाउ, यु त दुखम इन रूणु च जन बुल्यां एकी सरा  कुटुमदारि  इकसुठी छुरे गे होलि धौं

- अरे जु भिखार्यु भीक मांगणो जगौ दल्ला जब कैक परतापन भौत बड़ो ट्रेडिंग एजेंट बौणि जावो अर इनमा जब गौड फादर मोरि जावो त ये दल्ला खुणी त एकी सरा कुटुमदारि इकसुठी छुरे गे भै

-हैं मोरण वळो ए दल्ला कु बि धरम बुबा छौ ?

-हां- ये भै  ! सि शराब बिरोधी सामाजिक कार्यकर्ता त माटो मा दुखन धृतराष्ट्र जन  रतबऴयाणु च जन बुल्यां  येको पूरो खानदान इ सफाचट ह्वे गे हो धौं

-  जु दिनम शराब विरोधी आन्दोलन चलाओ अर रात शराबो ठेकेदार बिटेन चंदा ल्याओ अर इनमा शराबो ठेकेदार मोरि जावो त ये महान सामाजिक कार्यकर्ता बान पूरो खानदान इ सफाचट ह्वे गे कि ना ?
 
- त मोरण वळो शराब माफिया छौ

- नै वो त  गवर्मेंट अप्प्रूव्ड लिकर डिस्ट्रिब्युटर  छौ

- हैं ! सि  सार्वजनिक निर्माणों धुर्या ठेकेदार, लैंड माफिया, अर हौरि माफिया सरकारी अधिकार्युं दगड़  भकोरा भकोरिक किलै रूणा छन
 
-किलैकि मोरण वळो सरकारों बदौलत दसियों सरकारी ठेका जि लींदो छौ   त सब्युं तै इमानदारी से बांटी मीलि जांदी छे अब कैकि बांटी लुठे जावो त वैन रूणि च कि ना ?

-हे भै ! छ्वटा नेता, सरकारी नेता , विरोधी दलों नेता आज एकि ढौळ मा इन सोग मनाणा छन जन बुल्यां यूंका ब्वेबाब इकदगडि सांग मा सजे  गे होवन धौं
 
- अरे राज्य कु सबसे बडो चालबाज , जालसाज, धोकाबाज ,   जु यूं नेताओं घौर रुपयों थड़का लगांदो ह्वाओ मोरि जावो त यूंन इनि त रुण जन यूं नेताओं  ब्वे बाब मड़घट  जोग ह्वे गे ह्वावन धौं

-औ त   राज्यौ सबसे बड़ो छक्टू (ठग ), बेईमान, घूसबाज , अनयाड़ो ब्यापारी फुड्डा मोरि गे ?
 
- नै नै वो अफिक नि मोर दुई भाई आपस मा  लड़िक मोरि गेन

-औ तबि यूं अनाचार्युं घौर बरजात पोडि च। अछा यूं बेशर्मों धरम पिता फुड्डा मोर अर युं  दुराचार्युं न छुपुल पैरि दे

-हां प्रजातंत्र मा इनि  होंद।   
 
 

 

 

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                        इ राम दां  जु मि बि गजेन्द्र राणा हूंदु !

 

                                                  चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 

    मेरि घर्वळि  चिरड़ेक , निरय्सेक ब्वाल , " काश ! तुम बि गढ़वाली गितांग गजेन्द्र राणा होंदा त ..?"

मीन ब्वाल," अरे ये बुढ़ापाम म्यरा दोष खुज्याणि छे ? अबी तलक त मि अमिताभ से बि बढ़िया पति

वींन मेरि बात अणसुणि करिक बोलि , " तुम भलो गौळऔ स्वामी हूंदा अर छ्वटा बिटेन तुम तैं गींत -घड्यळु से लगौ होंदु ."

मीन बिचि म ब्वाल ," अरे मेरि गुंदरी ! जैक जनम गढ़वाली गौं म होलु  अफिक वैक लगाव गींत -घड्यळु से ह्वेई जांद ."

 घर्वळि सुणनों मूडम नि छे , " फिर तुम कबि गोरम , कबि थौळम,  कबि स्कूलम, कबि कखिम लोक गीत, जीत सिंग नेगिक गयां गीत गांदा अर लोगुंक शाबाशी पांदा अर लोग बुल्दा हे भै क्या  हुन्यारी गौळ पयुं च "

मीन बोलि ," हां गौं मा बि लोग पारखी होंदन जु  बडै लैक होंदु वैक बडै त होंदी च "

 मेरि घर्वळिक टक (ध्यान) में फर नि छौ ," फिर जवानी आंद आंद तुम तै बि लग जांदो कि तुम बि गाणा गैक नाम -दाम दुई कमै सकदा ."

मीन बोल ," हां हरेक कलाकार तै जब तलक आत्मविश्वास नि ह्वाओ वो तब तलक बड़ो क्या छ्वटो  कलाकार नि बौण  सकदो .
मेरि बथों तै टाऴदो /उपेक्षा करदो वींन बोलि ," सांस्कृतिक प्रोग्रामो मा कैक बि गाणा गैक तुमारो नाम होंदा जांदो अर जरा जरा तुमारि साख -सिक्कि बणदि  जांदी ."

मीन ट्वाक ,"त  इखम नै बात क्या च हरेक कलाकार तै बड़ो संघर्स करण  पोड़द।"

अपणि  रौ , अपणि रंगतम वा बुल्दि गे ," फिर तुम तै औडियो वीडिओ कैसेट  निकाळणों मौका मिल्दो "

  मीन बोल ," भई मनिखम योग्यता होलि, अळग औणे हिकमत हो ,  संघर्ष करणों सक्यात ह्वाओ ,  अर समय पछ्याणो गुण ह्वाओ त एक ना एक दिन कलाकरों कुणि सुबेर ह्वेइ जांद ."

 आज वा मि तै सुणणो मूडम कतै नि छे," पण नरेंद्र सिंह नेगी , चन्द्र सिंग राही , हीरा सिंग राणा सरीखा दिग्ज्जो समणी आपक कुछ नि चल्दी . तुम  तै बस एक तगमा मिल्दो कि तुमर बि एक कैसेट रिलीज ह्वे ,बस !"

 मीन बचावम ब्वाल ," इखम बि क्या च हरेक कलाकार तै पुराणों, प्रसिद्ध, जम्याँ कलाकारों विरुद्ध संघर्ष करणों इ पड़द। किशोर कुमार तै मोहमद रफी , मुकेश जना जम्याँ  गितांगुं एकाधिकार तुडन मा दसियों साल लगिन ,लता मंगेशकर अर आशा भोंसले कु एकाधिकार तुड़णम जनानि गितांगु तै कुज्यांण  कथगा जुग लगिन धौं !"
 
वा एकि  डगर मा  बुल्दि गे ," जब तुमारो केसेट रिलीज होण पर बि वा पछयाणक नि मिल्दि त तुम निरसे जांदा ."

मीन बिचिम बोलि," यु त हरेक नयो कलाकार , लिख्वारो जीवन मा होंदि च . पछ्याणक   बणाणम सालों लग जांदन।"
 
अपणो इ ध्यान मा वींन बोलि ," फिर तुम बि गजेन्द्र राणा तरां एक तरीका खुज्यांदा अर वो तरीका होंदो संस्कृति तोड़क  गीतुं गाण ."

मीन ब्वाल ," यो तो एक सद्यानो यानि सास्वत सच च बल हरेक कलाकार तै कै ना कै रूपम संस्कृति भंजक बणन पडदि च "
 
 वा बोल्दि गे ,"  फिर तुमारो एक संस्कृति भंजक गीत आंदो 'बबली तेरो मोबाइल ..' अर आप एकि दिन मा अप-सासंकृतिक गीत गाण से प्रसिद्ध ह्वे जांदा .तुमारो ये गाणा कि बडी काट होन्दि , बडि भर्त्सना होन्दि "
 
मीन बचाव कार , " इखमा गजेन्द्र राणा पर भगार लगाण वळु तै यु दिखण चयेणु छौ कि हमारा लोक गीतुं म यां से बि ख़राब गाणा छन ."

वींन ब्वाल ," फिर एक तरफ तुम प्रसिद्ध बि होंदा जांदा त दुसर तरफ तुमारि काट बि होंदी जांदी ."
 
मीन फिर बचाव कार ," रजनीश या ओशो को बि यी हाल छौ . एक तरफ बड़ाई त हैंक तरफ घोर आलोचना ."

वींन बगैर मै सुण्या ब्वाल ," फिर तुमारा गजेन्द्र राणा तरां छकना बांद ,फुंदड़ी बांद , धुक्कड़ी बांद जना गीतुं केसेट बजार मा हिट ह्वे जांदा . एक तरफ तुमारा केस्ट बिकदा दूसर तरफ तुम तै गाळी बि पड़दा।"
 
मीन ब्वाल , नै नै मै तै गाळी नि चयाणी छन "

वा अपणी रौ मा छे , " फिर तुम नरेंद्र सिंग नेगी जी क विरुद्ध एक गीत गांदा अर उत्तराखंडम औडळ -बीडळ  ऐ जांदो ."

मीन ब्वाल , " नै नै , मि नेगी जीक विरुद्ध गीत जरूर गांदो पण इथगा निम्न स्तरीय शब्दों गीत कतै नि गांदो ."
 
वींको बुलण छौ ," फिर इथगा प्रसिद्ध ह्वे जांदा बल इंटरनेट मा  तुम पर टिप्पणी होंदी-- तुम  कुत्ते हो, तुम गंदे हो , तुम हरामखोर हो , तुम उल्लू के पट्ठे हो ..तुम ये हो तुम बकबास हो .."

मीन ब्वाल , " इन गाऴयूं से त गुमनामि रौण ठीक च ."
 
वींको बुलण छौ ," गुमनामी से त बढ़िया बदनामी च . क्या हुआ जो बदनाम हुए , नाम तो हुआ .."

मीन वींको मुख पर हाथ धार अर ब्वाल , मि तै नि चयाणों इन बदनामी  वळु  नाम ."

 

 
 
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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                              बेटी , ब्वारी अर सासु सुख



                                         चबोड्या : भीष्म कुकरेती

    मि जब छ्वटो थौ अर गां मा थौ या गौं औंदो जौंदो थौ त दिन मा एक बात जरुर सुणदो थौ बल स्या कनि भग्यान च पैल बेट्युं सुख द्याख अब ब्वार्युं सुख दिखणि च . उन कथा दें इन सुणनो बि मिल्दो थौ तैनी ना त सासु सुख द्याख अर जब ब्यार्युं सुख दिखणो दिन ऐन त द्वी ब्वारि  देस (प्रवास ) जोग ह्वे गेन .

    सबसे खतरनाक सुख बेट्युं माने जांद थौ . अब ब्वारि या सासु सुखौ दगड्या दगड़ ब्वारिक या सासुक तून (ताने ) बि सुणन  पड़दा बल मि सि छौं यीं दुफराम घाम मा भर्चेक घास लाणु   अर स्या च दिन दुफरा मा सुंगर जन सियीं . पण बेटिक सुख मा कनि बि तून नि सुण्यान्दा छा . ब्वे बि अपणि बेटी बि अपणि। बेट्युं ब्यौ ह्वाई ना कि ब्वेक समज मा नि आंदो थौ कि कब लखड़ो जौं अर कब पऴयो थड़कौं , कब धाणि जौं अर कब गोरम जौं .

 जादातर ब्वारि ड्यार आइ त सासु उमर का हिसाबन भैर भितरो काम संबाऴदि  छे , जवान सासु घास लखडु जांदी छे पण ब्वारिक काम भितरो नि होंदु थौ ब्वारि क अधिकार क्षेत्रम पुंगड़, बौण हूंदा छा अर कर्तब्यों मा दुन्या भर का काम इख तलक कि कुटण -पिसण बि सासुक हिसाबन भैरौ काम इ हूंद थौ।

 हां कुछ सासुं भाग मा ब्वारि सुख नी बि हूंद छौ किलैकि ब्वारि अलग चुलु जि चीणि लींदि छे अर फिर दुयि दूसरों कांद मा रुंदी छे बल मीन सासु सुख नि द्याख या मीन क्या जणन कि ब्वारिक सुख क्या हूंद !

 अब अचकाल ब्वे बेट्युं सुख नि देखि सकदी . अब बेटिम पढै काम याने होम वर्क इथगा होंद कि बेटी तै पता इ नि चल्दो दाळ भुजि मा जब तलक हल्दि नि डाळे जावो दाळ भुजि रंग पीलो नि होंद .पढै ख़तम ह्वाओ त नौकरी टेंसन मा बेटी क समजम इ नि आंदो कि आमौ अचारो कुणि लिम्बु ना आमु जर्वत पड़दि। ब्वे बिचारि सुपिन दिखदि रै जांदी कि कबि त बेटी रुस्वड़म जैक  जीरू अर भन्गजीरू मा फरक  चिताओं . अब इन बेटी जब ससुराड जांदी त सासु सुख की तलास मा रौंदी . उना ईंकि सासु ज्वा जमानो से ब्वारिक सुखो बान सैकड़ो सोमवारों बर्त धरणि राई वीं भक्तण तै शिबजीन बि जबाब दे द्याई बल अचकाल 'ब्वारिक सुख' शब्द इ  शब्दकोश से हटी गे त मि कखन त्वे तै ब्वारिक सुखौ बरदान द्यों ? अब जब पार्वती जी अर शिवजी  छौंद ब्वार्युंक बि  ब्वार्युं सुख नि बरती सकणा छन त वो कखन सासुओं  तै  ब्वारिक सुखो बरदान द्यावन ! गणेश जीक अर कार्तिकेय जीक घरवळि बल स्वर्गलोक प्रशासन मा बड़ा मैनेजर छन अर यी ब्वारी उल्टां पार्वती जी से सासु सुख मा रेडिकल इम्प्रूवमेंट (आमूल सुधार ) की मांग रोज करणा रौंदन।

            अचकाल सबि जगा सासु सुख कि छ्वीं लगदन।  जनानी वा इ भाग्यशाली माने जांद जैं तैं सासु सुख मिलणों रावो . अचकाल जवान , अधबुढ़ेड़ जनानी रोज सुबर स्याम 'सासु-सुख' चालीसा पड़णा रौंदन .

 क्या शहर क्या गाँव सबि जगा 'सासु-सुखौ '  बान जनानी साल भर मा एक कीर्तन जरूर करान्दन अर अब त जनानी 'ससुर -सुखो ' बान बि नागर्जा-नर्सिंगो घड्यळ धरदन . पैल रिटायर्ड ससुर खालि पेंसन का खातिर इ पूजे जांद छौ अब रिटायर्ड ससुरौ पदोन्नति ह्वे गे अब पेंसन से जादा ससुरौ महत्व बच्चा घिराण अर घौरै देखभाळ करण से बढ़ी गे .

पैल भाई आपसम झगड़ा करदा छा कि नै नै ब्वे  अर बाब तै तू इ पाळ पण अब भायुं झगड़ा यु होंद बल नै नै ब्वे बाबु पर मेरो एकाधिकार च . हाँ द्वी झण नौकरी कारन त सासु ससुर की कीमत प्रोविडेंट फंड से जादा हुणि च . अचकाल वर्किंग कपलों कुणि बूड बुड्यो वैल्यू बोनस से जादा च .

 क्या गां क्या शहर ! अब त सबी जगा भाइयुं बीच ब्वे बाबु बंटवारो इनि होणु च जन कि तैल अर उपजाऊ  पुंगडो बंटवारो  हूंद थौ। यो सौब सासु सुख या ससुर सुख का बानि होणु च।

अर जब सासु अर ब्वारि दुयि नौकरी करदन त सासु ब्वारि द्वी इकदगड़ि भगवान से प्रार्थना करदन बल हे भगवान हम तै इमानदार , कामगति नौकर -नौकर्याणि मिलणा रैन . युंकुण नौकर -नौकर्याणि सुख महत्वपूर्ण च .

अब भोळ क्या होलु ना तुम जाणदा ना मि जाणदु पण जू बि बदलाव आलो हमन खौंऴयाणइ च     

               




Copyright@ Bhishma Kukreti 22/11/2012

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                                 बेरोजगारि मरोड़

 

                                              चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 

             परसि म्यार गां तै मरोड़ उठि गे . खै कुछ नि छौ किलैकि परधान जी न बोलि बल मनरेगा , प्रधानमन्त्री रोजगार जन योजनाउं  रान , भट्यूड़ , भितर्वांस ,मुंडळि  त ब्लौकम इ बंटी गे छौ अर बकै बच्यां हडका , लुतकि -पुतकि सरपंचालय जोग ह्वे गे छे। हमर गांम सबसे दानि ददि न गौं हालात देखिक ब्वाल बल इन मरोड़ त ये गां तैं डेढ़ सौ साल पैल बि उठि छे त सरा गां वळा आर चलाणो भाभरौ (मैदानी ) जंगळ  जिना भाजि गे छा त गावै मरोड़ कम ह्वे छे। फिर जब हैंक दै बदहजमी ह्वे त सरा गां काळो डांड (लैंसडाउन ) गे छया अर जब फौजि बणिक ड्यार ऐ छा तब जैक या बदहजमी दूर ह्वे छा . फिर एक दै गां तै उब उन्द (उल्टी और दस्त ) लगि छौ त जब तलक गां वळ भंडमजा नि ह्वे गेन गौं उन्द उब बंद नि ह्वेन . वीं दानि ददि न बथै बल इनि जब बि गां तै भूखौ पेट पीड़ा होंदि छे त गां वाळ चपड़सि, किलार्क बणदा छा त पुटुकम सेळि पोडि जांद छे .

     अबैं दैंक गौं पीड़ा ददिक  बिंगणम नि आयि  त दिल्लि-मुंबई  बिटेन प्रवासी सल्लि (विशेषग्य ) बुलये गेन। सब्युंम बड़ी बड़ी डिगर्युं फंचि छे .

एक सल्लिन गौं नबज दयाख अर ब्वाल , " म्यार दिखण से त यु क्लासिकल अनइमप्ल्यायटौ (शास्त्रीय रोजगारौ सिद्धांत ) केस च . गाऊं मा रोजगार एक अर बेरोजगार  सौ त इन मा गां तै  बेरोजगारौ मरोड़ उठण लाजमि च ."

ददि न पूछ , " ब्यटा क्वी उपाय ? की इ पश्वा सुख्यर ह्वे जावो /"

सल्लिन बोलि ," ना मि कारण बतै सकुद निदानौ बाराम अजाण छौं "

हैंक प्रवासी सल्लिन गौं क आँख कताडि द्याख अर अपण राय दे ,"  ये गां पर मौसमि बेरोजगारि याने साइकलिकल अनइम्प्लॉयमेंटौ वायरस बि लगि गे।"

ददिन पूछ , " यो कनफणि सि बीमारि क्या च ?"

सल्लिक  जबाब छौ ," मतबल जब देसम  या विदेशम रिसेसन या आर्थिक मंदी ऐ जाओ त मौसमी बेरोजगारी बीमारी हज्या जन भंयकर रूपम सरासरी सौरद (फैलदि )."

एकान पूछ , "क्वी निदान ?"

"मि प्रवासी छौं मि कारण बथाणम उस्ताद छौं निदान बथाणम लाटो -कालों बुबा छौं ." वै सल्लिक उत्तर छौ

तिसरो प्रवासी सल्लिन गौंक पुटुक जपकाई अर कुछ किताब देखिन अर बडो उत्साहसे बथाई  " ओहो ! ये गां तै मार्क्सवादी , साम्यवादी , समाजवादी बिमारि लग गे ."
 
" या बिमारी बि ह्ज्या जनि च ?"ददिन  पूछ

" हां यीं दशाम रोगि -निरोगि कम काम कौरिक , पूरि मजदूरी बान लडै करणु रौंद अर क्वी ये तै उत्पादनशीलताऔ बाराम  पूछो त इन बीमार पूछण वाळौ घुंड-मुंड फोड़ी दींदो " तिसरो प्रवासी सल्लिन अपण राय दे
 
ददिन ब्वाल , " बेटा ! तीम बि भाषण इ होला , क्वी निदान त क्या इ होला हैं ?"

प्रवासीन गर्व से ब्वाल," हां ददी ! मी बि आम प्रवासी इ छौं जु बिमारी लक्षणो बाराम चितळ रौंद  पण निदानो मामलाम सियुं रौंद "
 
ददिन चौथो प्रवासी तै पूछ ," चल अब तू बि बता कि म्यार या त्य्रार गां तै क्या बिमारि च ?"

चौथो प्रवासी सल्लिन गौंक हथ-खुट जपकैन अर अपण लैपटॉपम कुछ  देखिक ब्वाल ," या क्षेत्रीय बिसमता से उपजी बेरोजगारीक बिमारी च . जन कि भौगोलिक विषमता ,  प्रादेशिक विसमता, ग्रामीण -शहरी विषमता आदि आदि "
 
ददिन पंचों सल्लि तै पूछ , " ये तेरी राय क्या च ? ज़रा सुणा त सै "

पंचोंन सरा सरैल द्याख अर ब्वाल ,' ये गां पर दूरगामी बेरोजगारी , कम समौ बेरोजगारी , लुक्यां बेरोजगारीक रोग बि लग्याँ छन ."
 
 

  ददिन ब्वाल , " ये प्रवासियों ! तुमन नै क्या बथाई ? या बात त म्यार ससुर जी बि जाणदा छा . क्वी माई क लाल च जु दवा बथै साको ?"

तीन चार प्रवासी ऐथर ऐन अर बुलण लगिन , "ददि हम अपण बीस पचीस भायों तै विदेस लि जाणा छंवां अर उख भांड मंजौला या होटलोंम कुछ हौर करला पण ये गां तै जरूर सुख्य्रर करि द्योल्या "

अर जनि गांवन यन सूण बल बीस पचीस जवान विदेस जाणा छन कि गां भलो चंगो ह्वेक कुतकण बिसे गे , घिलमुंडि खिलण मिसे गे . अब म्यार गां सुख्यर ह्वे ग्याई ।     

 

 

         

 

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