Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 357252 times)

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा


                                     हां ! इखम किताबुंम अस्पताळ छैं त छौ !


                                                   चबोड्या : भीष्म कुकरेती



 - ए ! ब्वारि ! क्या च स्यु नाति से ग्ये कि क्य ह्वे ?

- से नी च बिसुध ह्वे गे

-पण तु त सरकरि अस्पताळ लीगि त छे कि ना ?

-हां लीगि छौ

-फिर ?

- फिर क्या , कंपोडर भैजिन बोलि बल मीन जु दवा दीण छौ , सि दियाल , जु करण छौ स्यु करि याल . अब डाक्टर साबम इ दिखाओ

-त डाक्टर साबम दिखै कि ना ?

- ज्यूँराम दिखाण ! डाक्टर साब त द्वि साल बिटेन मेडिकल छुटि पर छन अर अपुण पिराइवेट  कोट्द्वारम क्लिनिक चलाणा छन

- त जादि  दुसर पट्टी क अस्पताळम तै छ्वटु तै दिखैक ला

- ठीक च मि दुसर पट्टीक अस्पताळम जांदो

-- भैजि !भैजि ! म्यार नौनु सखत बीमार च . हमर  पट्टीक अस्पताळौ  कंपोडरन राय दे बल ये नौनु तैं डाक्टरम इ दिखाण जरुरी च . ये अस्पताळौ डाक्टर कै कुठडिम बैठद होला?

-भूलि ! तुमर अडगैं (क्षेत्र ) वळा  नसीब लेक अयाँ छन जु तुमर अस्पताळम कंपोडर ले च . इख त हमन डाक्टर क्या कंपोडरौ सूरत नि देखि .

-  भैजि, इन कनो ?

- कंपोडर मेडिकल छूटि पर जयुं च अर रिसिकेसम अपुण मेडिकल स्टोर चलाणु च .

-त सि यीं कज्याणि हथ खुटों पर पट्टी कैन बांधि ?

- स्या बिचारि डाळम भ्यूंळ छिंडार्नि छे कि थमाळि क चोट भ्यूंळो फौंटा छोड़िक वींका खुटुं पर लगि अर सड़म स्या भेळ जोग ह्वे गेखुट त कट्याइ च . हथ खुट बि टूटि गेन

-त जब ये अस्पताळम ना डाक्टर अर ना हि कंपोडर त यीं बिचारिअ  पट्टी कैन कार  ?

- भैरों ! हमकुण त सि स्वीपर  भैजि अर स्या वैकि घर्वळि हि भगवान , हकीम , डाक्टर चरक , लुकमान, अश्वनी कुमार (सर्जरी विशेषग्य ) सबि कुछ छन . तीनेक साल बिटेन दवा बि दीन्दन , बार बगत पर इंजेक्सन लगांदन अर जरूरत पोड़ी गे त चीर-फाड़ , पट्टी सट्टी बि करदन .

- ह्यां मेरो नौनु तै डाकटरौ  हि जर्वत च .

-त भूलि इन कौर सात मील दूर एक सरकारी अस्पताळ च जख डाक्टर बि च अर कंपोडर बि च। जा उख जा ..

-हां मि उखि जांदु 

-  हे  भैजि! हे  भैजि ! ये अस्पताळौ डाक्टर कखम बैठदन ?

-सि  समणि पर तपड़ा च ना उखमि डाक्टर अर कंपोडर घाम तपणा छन .

-घाम तपणा छन ?

- हां जब अस्पताळम दवा नि रालि त डाक्टर अर कंपोडरन  घाम इ त तपण ?

-मतबल ? दवा किलै नि छन

-द्वि छै मैना बिटेन इनि बुलणा छन बल दवा तै सरकरी मूस -लुखुंदर चपट करि जांदन अर सि छै मैना बिटेन तै तपड़ाम डाक्टर अर कंपोडर घाम तपणा रौंदन .

- ये मेरि ब्वे घाम तप्वा डाक्टरम किलै ये नौनु दिखौं ! सि बाट मा चाय वाळ  भैजि तै पुछ्दु बल कखि हैंको अस्पताळम  डाक्टर , कंपोंडर अर दवा सबि मीलु जावो

-ये चा  वाळ भैजि ! कखि इन अस्पताळ बि च जख डाक्टर , कंपोंडर अर दवा सबि मीलु जावो 

- भुलि ! हमर  अडगैंम  (क्षेत्र ) त इन अस्पताळ नि च जख डाक्टर , कंपोंडर अर दवा इक दगडि दिखे जावन . हां सि दस दिन पैलि इ अखबारम खबर छपे छे बल धार पोरक गां मा सरकरि अस्पताळ खुलि जख आधुनिक चिकित्सा सुविधा, स्वीपर अर दवा दगड़  डाक्टर , कंपोंडर बि छन . ये ले अखबारौ समाचार बांचि लेदि .

- ठीक च मि धार पोरक  अस्पताळम जांदु  स्वीपर अर दवा दगड़ डाक्टर , कंपोंडर बि छन .

--हे भैजि ! मीन दस दिन पैलो अखबारम खबर बांचि बल ठीक इखम इन सरकारि अस्पताळ छ बल जखम  आधुनिक चिकित्सा सुविधा, स्वीपर अर दवा दगड़ डाक्टर , कंपोंडर बि छन

- हां भूलि मि येइ गौंकु वासिंदा छौ . हमन बि या खबर बांचि कि हमर गांमा सरकारि अस्पताळ खुलि गे जखम आधुनिक चिकित्सा सुविधा, स्वीपर अर दवा दगड़ डाक्टर , कंपोंडर बि छन .

-तो ?

-भुलि ! हम दस दिन बिटेन अपड़ी गांमा  सरकारि अस्पताळ खुज्याणा छया .

-फिर ?

- फिर क्या ! आजि अखबार मा खबर छपी बल हमर गांमा औडळ-बीडळ  अर बरखा आयि जां से हमर गांमा भळुक आयि याने बल  जमीन धंसी अर इथगा बढ़िया छै करोड़ो आधुनिक सरकारि अस्पताळ बौगि गे . हम गां वळु कि निसिणि इन ह्वाई कि हमन इन बकि बुनौ आधुनिक सरकारि अस्पताळ इ नि द्याख।

- भैजि!  पहाडोम भळुक (लैंड स्लाइड ) बोलिक थुका आंद . बस जोरका बादळ  फटा ना अर झट से बरखा अर भळुक ऐ जांद

-हां भुलि! बरखा हवाओं तब ना भळुक (लैंड स्लाइड ) आलो !

-क्य मतलब भैजि?

- हमर गांम त एक साल बिटेन सूखा पड्यु च अर हमर अडगैं (क्षेत्र ) तै सरकारन  सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित बि कर्युं च . फिर हमर बिंगणम नि औणु बल कब हमर गांम बरखा ह्वे अर कब सरकरि अस्पताळ बौग ?

-औ त भैजि! यु  सरकरि अस्पताळ किताबुंम बौण अर  किताबुंम इ बौग गे .

-मै बि इनि लगणु च बल इखम सरकरि अस्पताळ किताबुंम बौण अर किताबुंम इ बौग गे .

-  भैजि! जरा अपुण मोबाइल देल्या क्या ?

-कैकुण फोन करणाइ ?

-अपण घरवळो कुणि . हेलो ! मि बुलणु छौं . तुम आजि देस बिटेन छुटि लेक गां आवों अर हम तै देस लिजावो। भोळ ड्यार नि पौंछिल्या त मीन मय बच्चाक फांस खै दीण।       


 



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हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा


                                आर्थिक सुधारौ असली पोल 



                                  चबोड्या  : भीष्म कुकरेती

- भाईयो अर बैणि! आज मितै  यीं जनसभाम बुलद  गर्व होणु च, घमंड होणु च, प्राइड महसूस होणु च  बल इकॉनोमिक रिफौर्म से भारतै कंळदारि व्यवस्था (आर्थिक व्यवस्था ) मा बडि भारी उन्नति ह्वाई।

-तै बेशरम रिफौर्मौ धड्वे तै शरम बि नि आणि बल  मल्टि डाइमेन्सनल पौवर्टी इन्डेक्ष त बताणु च बल भारतै बड़ी भारी कुदशा च

-मीरा भारतीय भै -बैणि द्याखो अबि कुछ मैना पैलि  जु अखबार पत्रिका जन की इकोनोमिस्ट , वाशिंगटन टाइम्स कंळदारि व्यवस्था (आर्थिक व्यवस्था ) बाराम डामनमोहन सिंगै काट करणा छा सि अब बड़ा मंगणा छन

- अबे निरलजो ! भाड़म जावो त्यार इकोनोमिस्ट , वाशिंगटन टाइम्स का लेख . जरा जनता तै इन त बथादि  त सै बल गरीबी मामला मा त भारत अफ्रीकौ सब सहारा क्षेत्र से बि अग्वाड़ी च 

- हम तै गर्व च बल भारतम अंबानी , मित्तल , चड्ढा ,  बढा जन लोगुं आय बढ़ी गे

-ओ गर्व कु बच्चा ! एक तुरांक पाणिम डूबीक मोर . संसारक तेतीस प्रतिशत याने संसारक एक तियायी गरीब त भारत मा रंदन .

-   यां से बड़ी बात क्या ह्वे सकदी बल भारत म आज बढिया बढिया स्कूल जन दून स्कूल , मायो स्कूल छन 

- म्यासो घूसों रे तैक मुख पर . मुख काळो कारो तैक जु बुलणु च बल भारत म आज बढिया बढिया स्कूल जन दून स्कूल , मायो स्कूल छन। तै बड़ बोल्या तै बथाओ बल भारतम अधिसंख्य गरीबुं बच्चा या त स्कूल जाँदी नि छन अर जांदा बि छन त दर्जा पांच नि करदन। तै तै बथाओ खालि शहरोम इ लाखेक से जादा बच्चा त स्कूल जाणो जगा इनि गऴयूं मा घुमणा रौंदन फिर लाखेक बाल भिकारी छन . त  स्यू  स्कूलों बाराम क्यांक बडे करणु च?

-याँ से बड़ी बात क्या ह्वे सकद बल हमर देसम आर्थिक सुधारौ कारण  अब चिकित्सा सुविधा बढ़ी गेन . अपोलो , लीलावती जन आधुनिक अस्पतालों संख्या रोज बढ़नी च

- ए तै  मातबरों चमचाक जिबाड़ो चमड़ान सीलि द्यायो। आज बि भारतम रोज पांच साल से छ्वट उन्नीस हजार बच्चा मरणा रौंदन, बच्चों अकाल मृत्यु मामलम भारत कांगो, नाईजेरिया , पकिस्तान से बि अग्वाड़ी च           

-- आर्थिक सुधार नीति बदोलत आज भारतम केलोग, बौर्नविटा, कंप्लेन जन ब्रेंडू विक्री दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ी गे .

- ये तै बहुराष्ट्रीय कन्पन्यौ भोंपू मौणि  मडकाओ रे . दुन्या का कुपोषण ग्रसित तियाई बच्चा भारतम छन अर ये  मामलम भारत अफ्रीका से बि जयुं बित्युं देस च। भारतंम  बयालीस टका बच्चा औसतम कम वजनी छन याने अंडरवेट छन। बड़ो आयो बौर्नविटा, कंप्लेन जन ब्रेंडू विक्री बात करण वाळ! 

- मि ब्याळि मुकेश अंबानी क ड्यार ग्यो छौ त जों एक उदाहरण च बल आर्थिक सुधारों से भारतम रौणे समस्या दूर हुणी छन .

- अरे  तै धनपत्युं गुलामो भटयूड़ मुंगरान तोड़ी द्यायो .  आज बि करोड़ो भारतियुंम अपण बुलणों छत नी च . एक अंबानीक महल जन  कूड़ दिखैक आर्थिक सुधारों बडै करद तै बेशरम तै शरम  बि नि आणि     

- भारतम बाथरूम , ट्वाइलेट औ उपकरणु विक्री खूब बढ़नी च अर हम आम भारतीयों तै आर्थिक सुधारों पूजा करण चयेंद

- ये तैको टीक त्वाड़ो जु आर्थिक सुधारों बडै करणु च . जरा तै तै बथाओ बल भारत माँ सहतर प्रतिशत से जादा लोगुम पिसाब जाणो , झाड़ा जाणो अर नयाणों सुविधा नि छन

- भारतम अब मिनरल वाटर की बिक्रीम अत वृद्धि होणि च

- यार मीन तैक दांत तोड़ी दीणन हां . दूषित पाणि अर खुले आम झाड़ा वजे से इ 88 प्रतिशत लोगु तै  डाईरेयिया रोग हूंद अर हर साल सात लाख से जादा लोग डाईरेयिया बीमारी  से मोरदन

- त म्यार बोलणो मतबल च बल आर्थिक सुधार से फैदा इ फैदा छन

- या त एका भाषण रोका या मीन तैका घुण्ड मुंड फोड़ी दीणन। में से अब नि सयांदी आर्थिक सुधारों बडै   

 





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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                          अंक्वैक भैरों ! पौड़ी आण वळ च !

 

                                             चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 
 
 

                         पुरण जमानाम हरेक अडगैं (क्षेत्रौ ) बारम आण हुँदा छा जां से भैराक लोग  वीं अडगैंम जाण से पैल जाणि जांदा छा बल उखाक स्थिति क्य  होलि . जन कि कै पणि बोल छौ बल जाण ढांगु आण आंगु . बस भैराक लोग बाग़ उख टक्क  लगैक बाटा हिट्दा छा . अब चूंकि सरकारी आदेशानुसार ज्वा बि बात गढ़वळिम बुले जाओ वीं बथ तैं संवैधानिक दर्जा नि दिए सक्यांद त हम गढ़वऴयुनं कहावत आण रचण /गड़न बंद करि देन . बात बि सै च जौं बातुं तै संवैधानिक दर्जा नि मीलो वूं बातुं पर दिमाग खरच करण मने फोकटम दिमाग खराब करण। त अच्काल जब हम पौड़ी , कोटद्वार , श्रीनगर , नै टीरी जाण चांदा त जाण से पैलि हम तै पता इ नि चलदो बल उखौ स्थिति क्य होलि किलैकि हम गढ़वऴयुनं नया कहावत आण रचण /गड़न बंद जि करि देन।

   अब परसि मि श्रीनगर बिटेन साहित्यौ दगड्यो  मिलणो जाणु थौ त गढ़वळिम पौड़ी बाराम नया आण नि होण से पता इ नि चौल बल पौड़ी हाल क्या होला ! बस कंडक्टर तै पूछ त वैन बोलि बल चूँकि हमन सरकारी गोपनीयताक सौं घटीं छन त हम आप तै कुछ नि बतै सक्दां त आप तै उखि जैक पता चौलल बल पौड़ी स्थिति क्या च . 
 
  खैर बसम बैठि सार लग्युं रौ बल पौड़ी स्थिति ठीकि होलि . हां पौड़ी गढ़वाल कमिश्नरी हेड क्वार्टर जि च त सौब ठीक ठाक इ होलु .

हे इ क्या ? सैत  च पौड़ी दस किलोमीटर अग्वाड़ी छे अर रस्तों मा बोर्डों से धै दियाणी छे बल सावधान ! कुछ ही समय बाद पर्यटन नगरी पौड़ी  आने वाली है . गढ़वळिम इबारत हूंदी त इन होणि छौ - अंक्वैक ! पौड़ी आण वाळ च . मेरो बिंगंण म नि आयि बल पौड़ी आण वळ च त इखमा सावधान हूणै जर्वत  क्या च ?  क्या पौड़ीम जेबकतरा जादा ह्वे गेन ? पण जब बिटेन कॉमन वेल्थ , टू जी घोटाला ह्वेन तब बिटेन चोर , गिरहकट , जेबकतरा, जेवर लुछण वळु पर दया आंदी बल विचारा पेट पळणो बान कथगा मेनत करदन . अर सरकारी बोर्डोंम अब जेबकतरों से सावधान की धै नि होंदी . फिर  यूं बोर्डू मा इन किलै लिख्यूं होलु बल सावधान ! कुछ ही समय बाद पर्यटन नगरी पौड़ी आने वाली है.मन मा घंघतोळ अर पुटकुंद च्याळ छा पोड़ना बल कुज्याण पौडिम क्या हुंयुं धौं .
 
  खैर पौड़ी आण से पैल बस रुक अर कंडक्टरन  सब तै बस से भैर करदा करदा समझाई बल पैल सरकारी बोर्ड बांचो अर फिर एक शपथ पत्र पर दस्तखत कारो तबि मि तुम तै बस से पौड़ी लिजौल।

हम सौब जत्र्वे बस से भैर औंवां अर बोर्ड पढ़ण मिसे गेंवां . जु रोजौ जत्र्वे छा वु बगैर बोर्ड बांचिक सीधा शपथ पत्र पर दस्तखत कौरिक कंडक्टर तै देणा छा अर बस म बैठणा छा .
 
मीन सरकारी बोर्ड पढ़ण  शुरू कौर .

पर्यटन नगरी , गढ़वाल कमिश्नरी हेड क्वार्टर  पौड़ी म आपकी आदिर खातिर (स्वागत ).

 आपका स्वागतार्थ सड़को मा जगा जगा कूड़ा-करकट , कचरा, होटलों खत्युं खाणक, मैला-कुचेला, थूक आदि  सौब  मीलल . भौत सि जगा गू से बि आपको स्वागत करे जालो
 
 आप तै सावधान करे जांदो बल सड़को पर गन्दगी का  चट्टा , गुवाक  थुपड़ा, मर्यां कुता , मोर्याँ मोसों चट्टा मीलल त आप यूं चीजों से खुद ही बचो . कैक खुट -शरीर गंदगी मा रबड्याळ त नगरपालिका यांकी जुमेवार नि मने जालि। कीड़ा मकौड़ा आप तै सबी जगा मीलल त आपसे अनुरोध च बल कै बि तरां से नि घिणैन, घिणाण वळ पर जुर्माना पोडल 
 
सरा पौड़ीम बॉस। गंध  दुर्गन्ध, चिराण, किडाण, कुतराण, माखुं भिमणाट से रूबरू होण पोड़ल त यांको वास्ता आप तै अपणों नाक -गिच्चो बंद करणों बान  रुमाल या साफा प्रयोग करण पोड़ल . इखमा सरकारी मदद की पूरी शत प्रतिशत नाउम्मेदी च। गंध बॉस से दूर रौण नागरिकों कर्तव्य च।
 
जु कै तै गंदगी आदि से उकै , उल्टी , आवो तो प्लास्टिको थैली उपयोग कारो  अर  फिर वीं गंदगी भोरिं थैलि तै लेकि कै हैको शहर तै गंदा कौरिक गंदगी बढाओ आन्दोलनम शामिल ह्वेक हम तै कृतार्थ करिल्या . 

आप तै पौड़ीम प्रवेश से पैल एक शपथ पत्र पर दस्तखत करण पोड़ल कि मीन  पौड़िम गंदगी बाराम सरा सूचना बांचि  आल  अर मि तै गंदगी से रूबरू  हुणम क्वि ऐतराज नी च . मी एतद सूचित करदो बल पौड़िम गन्दगी से मि  बीमार पडुल त पौड़ी नगरपालिका , राज्य सरकार या केंद्र सरकार की क्वी जुमेवारी नि ह्वेली।
 
इना मि घंघतोळम छऊ बल पौड़ी जौं कि ना अर उना हॉकर्स घ्याळ  लगाणा छा पौड़ी में गंदगी से बचने के लिए विशेष रसायन वाले रुमाल, गमछा, विशेष प्लास्टिक के जूते , उलटी रोकने की गोलियां ले लो

 इथगामा म्यारा साहित्यिक दगड्या  दिखे गेन . ऊं सब्युंन  बोले , "भीषम जी ! चलो  भै वापस श्रीनगर चलो . जरा हम बि उख तरो ताजा हवा खैक ऐ जौला ."
 
       

   
 
 

Copyright@ Bhishma Kukreti 28/11/2012

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                    जी हां ! देहरादून राजधानी च !



                                       चबोड्या : भीष्म कुकरेती
 
 

                  कत्युं सणि भर्वस नि हूंद बल देहरादून राजधानी च . वू अबि बि समजणा छन बल पहाड़ी राज्यौ राजधानी अर सैणी (मैदान )जगाम ?

पण देहरादून राजधानी च यांको सबूत च बल इख बारा सालम सात दै अलग अलग मुख्यमंत्र्युंन सौं घटिन। अर यांको सबूत च बल ब्याळै (  भूतपूर्ब ) मुख्यमंत्र्युं बंगला .

हमर देसम रिवाज च बल मुख्यमंत्री सौं पैथर घटुद वैकि पार्टी वळा वैका विरोध पैलि करण मिसे जांदन अचकाल कॉंग्रेसी बैनर  बथाणा छन बल यि लोग प्रजातंत्र बचाणों बान विजय बहुगुणा तै मुख्यमंत्री कुर्सी बिटेन धक्याणा  छन . अपणी पार्टी वळ अपणों मुख्यमंत्री हटाणो बान जै जगाम बैनर टांगन त माने जांद बल वा जगा प्रदेश राजधानी च। चूंकि कॉंग्रेसी देहरादूनम कोंग्रेसी मुख्यमंत्री विरोध करणा रौंदन त मतबल साफ़ च देहरादून राजधानी च .

  राजधानिम सचिवालय हूंद जख फ़ाइल हून्दन . देहरादूनम बि एक जगा फाइलों चट्टा छन याने कि देहरादून अछेकि राजधानी च . जैं जगा तै सचिवालय बोले जावु अर  न्याड़ -ध्वार पावर ब्रोकर या दालालो (गलादार  ) चट्टा बट्टा लग्याँ ह्वावन त बुले जांद बल या राजधानी च गलादारों पिपड़कारो (भीड़ ) से त लगद बल देहरादून प्रदेश ना केन्द्रीय राजधानी ह्वाओ

   जख इना उना लाल बत्ती इ लाल बत्तिक गाड़ी दिख्यावन वीं जगा नाम राजधानी होंद अर यां से बि सिद्ध होंद बल देहरादून  राजधानी च .

   राजधानी क एक गुण होंद बल नजीको कमिश्नरी क अधिकारी , लिपिक वर्ग कमिश्नरी छोड़िक राजधानी जोग ह्वे जांद . पौडिक कमिश्नरी गेटढकी (गेट बंद हो )देखिक  त सिद्ध होंद बल देहरादून  राजधानी च .

जगा जगा जैं जगा जाम इ जाम ह्वाओं त जाणि जावो बल जगा राजधानी च .जगा =कुजगा   जाम बथांद बल देहरादून राजधानी च .

जख कूड़ो से जादा कूड़ो गलादार (इस्टेट एजेंट ) ह्वावन त बींगी ल्याओ बल आप राजधानीम छ्याओ। देहरादुनम कूड़ कम कूडू गलादार जादा छन .

जख डाळु जंगळ  नि ह्वावन पण कंक्रीटो जंगळ ह्वावन त वा निसाणी राजधानी  च  अर अचकाल त स्कूल्या निबन्ध लिखदन बल वन्स अपौन अ टाइम देहरादूनम जंगळ छा , बासमती खेती हूंदी छे , लीची बगीचा छा अब इख कंक्रीटो जंगळ छन अर घूसखोरी -भ्रस्टाचारै खेती हूंदी .

  जख ट्रैफिक पुलिस तै दनकाए जावो बल जाणता नई मै कौण ऊं ! किस मंत्री का साला हूं ? त  समजि ल्यायो बल तुम कै राजधानीम छवां . देहरादूनम हरेक चौराहा पर ट्रैफिक तोडन वाळ कै ना कै मंत्री या सन्त्रीक रिश्तेदार या नजीकि होंद .

 पैल जख  चोरि बड़ी खबर  हूंदी ह्वाओ अर अब आज जख  चोरी तै खबर इ नि मने जावो  त समजी ल्याओ तुम राजधानिम  घुमणा छा। अब देहरादुनम चोरी जारि तै दैनंदनी मने जांद .

जख स्थानीय लोगु भाषौ बेजती ह्वाओ त बींगी ल्याओ या जगा राजधानी च।

जख अपण भाषौ  बुलेंदर कम होंद जावन  अर दगड़म पाणिक बि कमि ह्वाओ त समजी ल्याओ या राजधानी च . देहरादूनम गढ़वाली बुलेंदारो बि कमि हुणि च अर दगड़म  पाणि बि कमि होणि च याने सही मानेम देहरादून प्रदेश राजधानी च

उन हौर बि लक्षण छन जो सिद्ध करदन बल देहरादून राजधानी च ये बाराम बकै भोळ  ...   

 

 - Copyright@ Bhishma Kukreti 29/11/2012

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                              परधान जीन अपण नौनु तै क्लीन चिट दियाल

 

                                     चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 

               जब तक हमर गां मा पधानचरी छे तब तलक हमर एकि मुंडीत छौ . पण जब बिटेन गौंम प्राधानगिरि अर ग्राम पंचायतम बजेट आयि तब बिटेन हर साल हमर मुंडीत बंटणा रौंदन अर कुछ परिवार संयुक्त  हूणा रौंदन अर कुछ टुटणा  रौंदन . कुछ पता इ नि चलदो बल कु कै मुंडीतम च . बस क्वी मोरि ग्याई त तब जू बि मुंड्याइ तबि पता चलदो बल यु हमर मुंडीतम च अर स्यु नि मुंड्याइ त अब स्यू हमर मुंडीत से भैर ह्वे ग्याई। कबि कबि त यु मुंड्याद  जरुर च पण तिरैं दिन कुछ बि कारणो से यु मुंडीत से भैर ह्वे जांद अर जु स्यु मुंड्याद नी च पण तिरैं दिन स्यु मुंडीतम शामिल ह्वे जांदो . ग्राम प्रधानौ चुनावम या पंचों चुनावम   त हरेक परिवारों मुंडीत अलग ह्वेक अलग अलग मुंडीतम बंटी जांद . फिर सुविधानुसार कुछ परिवार दगड़ ह्वेक मुंडीत बणान्दन।

    अचकाल हमर गां या मुंडीतम आरोप प्रत्यारोपौ मौसम जोरो पर च . ग्राम पंचैतौ बैठक शुरू जरूर होंद पण पंच लोगुं  बैठद  बैठद पैल विरोधी पंचों आरोपुं बरखा हूँदी त यां पर दुसर पंचो प्रत्यारोपुं ढांड पड़न मिसे जांदन इनम पंचैतै बैठक खतम ह्वे जांद . दुसर दिन पंचैतम  विरोधी पंचुं आरोपुं स्वाड़ा चलदो  त जौं पर आरोप लगद वो प्रत्यारोपुं बरफ चुलाण बिसे जांदन . त पंचैत बैठदी नी च

 

           गल्ती से मि कोटद्वार अर रिशिकेष क अखबारों कुण समाचार भेजदो त अचकाल हमर गौंक पंचैत  अखबारोंम बैठद। एक हफ्ता मि एक पाळी  वाळुक आरोप अखबारोंम छपवांदु त दुसर हफ्ता दुसर पाळि अर तिसर या चौथि पाळि वाळु   प्रत्यारोप छपवांदु .मतलब अब अख़बार इ हमर गांक पंचैत छन . अखबारों से इ प्रधान जी तै पता चल्दो कि वो क्या क्या ग्राम विकासौ काम करणा छन अर अखबारों से इ पंचो तै पता चलदो बल ऊनं क्या क्या बयान देन  मतबल अखबार इ पंचैत ह्वे गेन। गां वाळ बि अखबारों खबरू से जाणदन कि ऊंका ड्य्रारम नळ अयाँ तीन साल ह्वे गेन . अर गां वळ अख्बारु जरिया से परधान जी तै पुछदन बल जु हमर ड्यारम नळ अयाँ छन त हम इथगा दूर पाणि लाणो किलै जाणा छंवां ?  इनि गां वाळ  समाचार पत्रुं से जाणिन  बल उंका गां मा अब जख्या - भंगुल नि जमद बल्कणम खनु खरपट जमण बिसे गे। 

 

  अब इनि परधान जी तै अखबारों से इ पता चौल बल गां की नई अर पुराणि कूल बाणानम घोर भ्रष्टाचार हुंयुं च . प्रधान जीन अखबारोंम बयान दे बल यि सौब झूट च कखि बि भ्रष्टाचार नि ह्वे . हैंक दिन अख्बारुम खबर ऐ बल परधान जी क राज मा इ घपला ह्वे . फिर से परधान जीन बयान छपवाई बल क्वी घपला सपला नि ह्वे .

 

  गां वळु तै  मुखजवानी बयानु खबर से  बदहजमि, उन्द-उब  हूण लगि त एक दिन परधानो विरोधिन अखबारम खबर छपवाई दे बल कूल खत्याणो  ठेका त परधान जीक नौनु तै इ दिए गे छौ अर यांको सबूत बि अखबारों मा छपी .

   सरा गां तै अब जैक पता चौल बल कखि कै जगा गां मा कुल्याणों कूल आयीं च अर लोग अखबारों से परधान जी तै पूछण लगि गेन कि कूल कखम गाडे गे ? फिर लोगुन परधान जी तै अखबारों जरिया से पूछ बल कुल्याणों कूल आयि त को को वीं कूलन पुंगड़ कुल्याण छन? .

    परधान जीक नौनो नाम आयुं छौ त परधान जी इ ना पंच बि तिड़बितडे  गेन अर सब्युंन अखबारों मा बयान दे बल शीघ्र ही चौड़ कूल प्रकरण पर एक सफ़ेद पत्र याने व्हाईट पेपर  आलु .

   जब तीन दिन तलक अखबारुम सुफेद पन्ना नि आये त विरोधी पाल्टि वळुन फिर से अखबारोंम घ्याळ कार बल किलै अबि तलक कूलों बाबत सफेद पत्र नि आई ?

 
 
 खैर कुछ मैनो उपरान्त परधान जीन अखबारुम श्वेत पत्र छपवाई जखम परधान जीन परधानौ लेटर हेड मा अपण नौनु तै क्लीन चिट  दे बल अमुक ठेकेदारन टेंडर का इ सबि नियमो हिसाब से कूल गाड अत; ठेकेदार पूरी तरह निर्दोष  अर क्लीन च

अखबारोंम विरोध्युं बयान छप बल यी क्या परधान अपणु नौनु तै क्लीन चिट कनै दे सकुद?

दुसर दिन परधानो बयान छप बल जब महाराष्ट्र सिंचाई विभाग अपणों इ विभाग तै क्लीन चिट दे सकद , जब कॉंग्रेसी रॉबर्ट बाड्रा तै क्लीन चिट दे सकदन , भारतीय जनता पार्टिक  गुरुमूर्ति भारतीय जनता पार्टिक अध्यक्ष नितिन गडकरी तै क्लीन चिट दे सकदन त मि किलै ना अपण नौनु तै क्लीन चिट दे सकदो ?
 
चूंकि विरोध्युं मा कोंग्रेसी बि छया अर भाजापाई बि छया त कैन बि परधान जीक बयानों विरुद्ध क्वी बयान नि छाप अर अब गां वळु  तै भरवस ह्वे ग्याई बल गां मा कूल बौणि त छें च पण ऊंका (गौं क जनता ) आंख कमजोर होण से ऊं तै कूल नी दिख्याणि च .
 
 
 
Copyright@ Bhishma Kukreti 1/12/2012

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गर्व से बोलो कि हम पहाड़ी हैं  लेखक : नैनीताल समाचार   
कुछ मंचों द्वारा 5-10 रुपए में पहाड़ी होने का सर्टिफिकेट दिया जा रहा है। ये चमत्कारिक सर्टिफिकेट जो भी खरीदेगा, उसमें स्वतः ही एक ऊर्जा पैदा होगी और वो मुझे गर्व है कि मैं पहाड़ी हूँ का नारा लगाते हुए किसी गैर पहाड़ी का सर फोड़ देगा या उसके मुँह पर कालिख पोत देगा…. और इस तरह से उत्तराखण्ड में पहाडि़यों का वर्चस्व कायम हो जायेगा और सारे संसाधनों पर पहला अधिकार भूमिपुत्रों का हो जायेगा….. इतना ही नहीं, यदि कोई गैर पहाड़ी खुद को इस हमले से बचाना चाहता हो तो वो भी इस 5-10 रुपये के स्टिकर को अपने भाल पर चस्पा कर ‘डिफेंसिव मोड’ में आ सकता है….. ऐसा करने से चमत्कारिक स्टिकर से बिदका हुआ पहाड़ी उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकेगा……
जी हाँ यह कोई निर्मल बाबा का चमत्कार नहीं है बल्कि उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियों द्वारा निर्मित ‘साइंटिफिक एलिमेंट’ युक्त स्टिकर है! जिसको कई परखनलियों में और कई लोगों पर एक्सपेरिमेंट कर परखा जा चुका है…..और भरत झुनझुनवाला के रूप में इसका सफल परीक्षण भी हो चुका है…..स्टिकर के कई मॉडल तैयार किये जा चुके हैं जैसे कि ‘गर्व से बोलो मैं पहाड़ी हूँ’ या ‘बोल पहाड़ी हल्ला बोल’ इत्यादि…..जरूर खरीदें…….
वैधानिक चेतावनी: कई लोग यदि इन स्टिकरों पर लिखे नारों के पीछे की मंशा से वाकिफ नहीं हैं, खास उनके लिए यह पहली और आखिरी बार यहाँ बताया जा रहा है…. नीचे दी गई पंक्तियों को ध्यान से पढ़ें …. बाद में मंचों की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी….
किसी भी प्रकार के वाद-परिवाद की सुनवाई मंचों द्वारा स्वघोषित अदालतों में ही की जायेगी…..(मुख्य तौर से फेसबुक पर)।
पहाड़ी होने पे गर्व करो
रेड्डी भाइयों को सर्व करो
पहाड़ों की कूड़ी घाम लगाकर
दून में पहाड़ी पर्व करो….
बोल पहाड़ी हल्ला बोल
बाँधों का फिर रस्ता खोल
तू भी बन जायेगा चपरासी
मैं पैसा लेके हो जाऊँगा गोल
 
राहुल कोटियाल नामक एक पहाड़ी द्वारा जनहित में जारी (फेसबुक से)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कहाँ-कहाँ से चले आते हैं नैनीताल !  लेखक : भुवन बिष्ट  ::अंक: 21 || 15 जून से 30 जून 2011::  वर्ष ::  34:
लो सपने संजोये जिसका इंतजार था, वो सीजन आ ही गया। सीजन कभी अकेला नहीं आता, अपने साथ कई फजीहतें भी साथ लाता है। मंत्री, संत्री, भिखारी, मदारी, सीजनल पुलिस और गिरहकटों के साथ-साथ ‘एफ टीवी’ से निकले लोग भी चले आते हैं। नैनीताल वाले हमेशा दुआ माँगते हैं कि इस बार सीजन में वी.आई.पी. और बरसात न आये। मगर ये दोनों बिना बताये आ धमकते हैं। आते भी अलग-अलग हैं, साथ आयें तो पता लगे कि सड़क टूटने पर फँसना किसे कहते हैं ? उफनते हुए गटरों के बीच से बच कर कैसे निकला जाता है ? बिजली पानी गुल होने पर कितनी परेशानी होती है ? जाम लगने पर पैदल चलना तक दूभर हो जाता है।
तल्लीताल डांठ पर तगड़ा जाम लगा है। गाडि़यों के हॉर्न और पुलिस की सीटियों की आवाजें व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रही हैं। तभी एक लक्जरी कार के सवार ट्रैफिक वाले से पूछते हैं, ‘‘सर, ये राजभवन का रास्ता कौन सा है ?’’ जवाब में पुलिस वाला कहता है, ‘‘गाड़ी हटा यहाँ से, मैं सीजन ड्यूटी में आया हूँ। मुझे कुछ पता नहीं है। जाम मत लगा। अगर ज्यादा परेशानी है तो एक गाइड़ क्यों नहीं कर लेता है।’ गाड़ी गाइड़ की तलाश में आगे बढ़ जाती है। ‘‘सुनो यहाँ कोई गाइड मिलेगा ?’’
एक साथ कई गाइड कार की ओर लपकते हैं। आपसी तू-तड़ाक, गाली-गुपताली के बाद एक गाइड कार की अगली सीट पर बैठ जाता है।
‘‘पूरे दिन का कितना पैसा लोगे ?’’
‘‘हजार रुपया। ये मत कहना कि ज्यादा है, पूरा नैनीताल दर्शन करवाउँगा। आप बाद में इनाम देकर जायेंगे। शहर का नम्बर वन गाइड हूँ। अभी आपने देख ही लिया होगा।’’
‘‘कहाँ-कहाँ घुमाओगे ? सबसे पहले हमें राजभवन दिखा दो।’’
‘‘आप गाड़ी आगे तो बढ़ाओ। मैं पूरे दिन आपके साथ हूँ। रही राजभवन की बात, वहाँ तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। हफ्ता भर पहले ही राज्यपाल आयी हैं। जल सेना, थल सेना, वायु सेना के अध्यक्ष आये हैं। वहाँ जाने का विचार छोड़ दो। मैं आपको कैद किये हुए जानवर दिखाता हूँ। आप मेरे साथ ‘जू’ चलो।’’
‘‘नहीं हमें तो राजभवन जाना हैं।’’
‘‘जैसी आपकी मर्जी। बाद में पैसे के लिये आनाकानी मत करना।’’
‘‘वो कौन सी जगह है ?’’
‘‘वो चीना पीक है ?’’
‘‘सुना है वहाँ से चीन की दीवार दिखती है।’’
‘‘आप जायेंगे क्या वहाँ ? बारह किलोमीटर है। वो चढ़ाई आपके बस की नहीं है। पैदल चलने में पूरा दिन निकल जायेगा।’’
‘‘जाना तो नहीं है। पर क्या सच में चीन की दीवार दिखती है ?’’
‘‘हाँ, दिखती है। पहले उसमें शांति का सफेद रंग था। अब लाल रंग लगा दिया है। वैसे भी चीनी रंग बदलने में माहिर हैं।’’
‘वो सामने क्या है ?’
‘‘वो टिफन टॉप है। एक बार एक अंग्रेज वहाँ टिफन भूल गया था। तब से वहाँ का नाम टिफन टॉप पड़ गया।’’
‘‘ये सड़क कहाँ जाती है ?’’
‘सड़क कहीं नहीं जाती। गाडि़याँ आती-जाती हैं, वो भी जाम न लगे तो। वैसे इसमें आगे पड़ता है भाऊवाली फिर कैंची, फिर पड़ता है गरम पानी उसके बाद खैर ना। आप वहाँ चलेंगे क्या ?’’
‘‘नहीं-नहीं, जहाँ खैर हो वहाँ ले चलो।’’
‘‘ले तो तब चलूँ जब जाम खुले।’’
‘‘इस ताल में पानी कहाँ से आता है ?’’
‘‘बरसात में नालियों से आता है। ये जो बड़े-बड़े टीले दिख रहे न। बरसात के बाद पता भी नहीं लगेगा कि कभी यहाँ थे।’’
‘‘ये रुका हुआ पानी है। इसमें कीड़े तो नहीं पड़ते।’’
‘‘ये चमत्कारी पानी है। एक साध्वी ने इसे शुद्ध किया था। आप इसे ‘डाइरेक्ट’ पी सकते हैं। रही कीड़ों की बात, अगर नगरपालिका वालों को कीड़ों के बारे में पता चल गया तो वह उन पर भी टैक्स लगा देगी। बेचारे डर के मारे पैदा ही नहीं होते।’’
‘‘ये चारों तरफ कूड़ा फैला है। जब से नैनीताल आये हैं, सड़क के किनारे पेशाब करते हुए लोग ही देखे हैं। ये सब भी तो ताल में जाता होगा।’’
‘‘अरे साब, जब तक कूड़ा ताल में न जाये, तो निकाला कैसे जायेगा। यहाँ मशीनों से कूड़ा निकालते हैं। एक-दो थैलियों के लिए मशीन बुलवाना ठीक नहीं है। जब मशीन लायक कूड़ा ताल में चला जायेगा तो निकाल लिया जायेगा।’’
‘‘तुम ऐसे कह रहे हो, जैसे तुम यहाँ रहते ही नहीं हो। तुम्हें ताल की कोई चिन्ता नहीं है। ताल न हो तो यहाँ कौन आयेगा। वैसे तुम रहते कहाँ हो ?’’
‘‘मैं सूखाताल में रहता हूँ। न तो वो ताल मैंने सुखाया है और न ही इसे सुखाना चाहता हूँ। जब यहाँ के लोगों को परवाह नहीं है तो आप क्यों परेशान होते हैं।’’
गाड़ी सरकते हुए आगे बढ़ती है। पूरी चढ़ाई में जाम लगा हुआ है। गाड़ी के ‘क्लच प्लेट’ फ़ुँकते-फुँकते बचती है। डाँठ से राजभवन पहुँचने में पूरे-पूरे दो घण्टे लग जाते हैं। गाड़ी जैसे ही राजभवन के गेट पर रुकती है, दो-तीन पुलिस वाले ड्राइवर के गाल और गले की नाप लेकर गाड़ी को आगे को रवाना कर देते हैं। ऊपर से पूरे शहर की सड़कें दिखायी देती हैं, जिनमें जाम लगा है। पूरे शहर से हार्न की आवाज आ रही हैं, कमी इस बात की है कि कोई ‘कन्टर’ में पत्थर भरकर लुढ़का क्यों नहीं रहा है।
‘‘इस ताल की लम्बाई-चौड़ाई कितनी है ?’’
‘‘यहाँ से लेकर वहाँ तक लम्बाई है और इधर से उधर तक चौड़ाई है। पानी गंदा हो गया है इसलिये गहराई बता पाना मुश्किल है।’’
‘‘तो क्या वी.आई.पी. भी इसी पानी को पीते हैं ?’’
‘‘अरे साब, वो तो इससे हाथ तक नहीं धोते हैं। उनका बिजली-पानी अलग ही होता है। उनके लिये ‘इन्वर्टर’ है जैनरेटर है, ये भी कम पड़े तो ‘सरुली-परुली’ है।’’
‘‘ये सरुली-परुली क्या होती है ?’’ 
‘‘सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा।’’
‘‘यहाँ की जनसंख्या कितनी है।’’
‘‘मतलब लोकल ? यहाँ कई किस्म के लोकल रहते हैं। पहले वो जो केवल मई और जून में यहाँ आते हैं। अपनी प्रोपर्टी का निरीक्षण करते हैं। पड़ोसियों को धमकाते हैं। नैनीताल के विकास के लिए कसमें खाते हैं। दूसरे वो जो मार्च से दिसम्बर तक यहाँ रहते हैं। इनके नेताओं और प्रशासन से मधुर सम्बन्ध होते है। शहर से पलायन करने के लिये इनके बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं। तीसरे वो जो बारह महीने यहीं रहते हैं। सीजन आते ही उनकी शामत आ जाती है। गाड़ी वाला गाड़ी खड़ी नहीं कर सकता। फड़वाला फड़ नहीं लगा सकता। न जोर से हँस सकता है, न बोल सकता है। इन सब लोकलों में भले ही कितना ही फर्क क्यों न हो, पर सब मिलकर सीजन का इंतजार करते है।’’
‘‘ये ताल में क्या सिर्फ स्कूलों के बच्चे ही बोटिंग करते हैं ?’’
‘‘नहीं तो..आप जिसे स्कूल ड्रेस समझकर धोखा खा रहे हैं, दरअसल वो ‘लाइफ जैकेट’ हैं।’’
‘‘तो नाव वाले ने क्यों नहीं पहनी है ?’’
‘‘साहब आप भी कमाल करते हैं। मास्साब भी कहीं ड्रेस पहनते हैं ?’’

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पिछ्ले अंक से आगे…..

nainital-trafficथोड़ा सरकने के बाद गाड़ी एक बार फिर जाम में फँस जाती है। इस बार सड़क पर डामर लगाया जा रहा है। सीजन में काम होना उतना जरूरी नहीं है, जितना कि काम होते हुए दिखना। सड़कें दुरुस्त रहनी चाहिये, वरना वी.आई.पी. गाड़ियों का ‘अलाइनमेंट’ आउट हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो जिला प्रशासन को भारी कटौतियों का सामना करना पड़ सकता है। जाम का फायदा उठा कर माँगने वाले ‘मेहमान’ गाड़ियों को घेर लेते हैं। कोई बन्दर बना है। किसी के हाथ में शनिदान की बाल्टी है। कोई जोड़ी सलामत बने रहने की दुआ दे रहा है। कुछ औरतें सोये बच्चे को जबरदस्ती उठा कर रुला रही हैं। सीजन में इनकी घुमाई की घुमाई हो जाती है और कमाई की कमाई। प्रशासन माँगने पर पाबंदी भी तो नहीं लगा सकता क्योंकि वो खुद हाथ फैलाये रहता है।

‘‘नैनीताल की प्रसिद्ध चीज क्या है ?’’

‘‘यहाँ का प्राधिकरण प्रसिद्ध है। उसके सहयोग से बने होटल भी प्रसिद्ध हैं। अगर साथ ले जाना चाहो तो मोहनिया है, जैकी है, नबुआ है। थोड़ा खिसके हुए हैं, पर नैनीताल की पहचान हैं।’’

‘‘हमें कोई अच्छा और सस्ता होटल बताओ।’’

‘‘रहना है या खरीदना है ? वैसे तो सभी होटल यहाँ अच्छे और सस्ते हैं। अंग्रेजों के बनाये होटल मजबूत हैं। आजकल तो यहाँ होटलों की बाढ़ आ जाती है। कई लोग तो अपने कमरों को किराये पर उठा कर खुद रात भर बरामदे में पड़े रहते हैं। रही रेट की बात तो वो तय नहीं है। आई.डी. वालों के लिये अलग रेट हैं, बिना आई.डी. वालों के लिये अलग। पैसा इतना लेते हैं कि चार दिन रहने वाला एक ही दिन बाद वापस चला जाता है।’’

गाड़ी एक बार फिर चल पड़ती है। पहली बार सड़क खाली मिलती है। लगता है अब जाम नहीं लगेगा। तभी एक पुलिस वाला गाड़ी को रोक लेता है। पता लगता है कि माल रोड पर वी.आई.पी. आने वाले हैं। घंटों इन्तजार के बाद हूटर बजाता हुआ गाड़ियों का लम्बा काफिला निकलता है। उनके जाते ही ऐसा लगता है जैसे लम्बे समय से रुकी हुई गैस पास हो गयी हो।

‘‘क्या करें साब, यहाँ सड़कें तो लम्बी-चौड़ी हो नहीं सकतीं, पर जाम जरूर लम्बा-चौड़ा लग जाता है। इन आवाजों ने बच्चों की गाड़ी मँगवाने का अंदाज ही बदल दिया है। पहले बच्चे गाड़ी के लिये टी-टी-टीट, पी-पी-पीप करते थे और अब करते हैं ट्यू-ट्यू-ट्यू-ट्यू….।’’

‘‘सुना है मालरोड में कोई वाटर फॉल है।’’

‘‘वाटर फॉल तो आठ किमी. दूर है।’’ ‘‘अरे नहीं। पिछली बार मेरी दीदी-जीजा जी आये थे। उन्होंने वहाँ पर फोटो भी खिंचवाई थी…..पिछली बरसात में। तुम्हें नहीं मालूम ?’’

‘‘अरे वो! हाँ साब एक बरसाती वाटर फॉल है। ‘ग्राण्ड होटल’ के पास। बरसात के दिनों में नियाग्रा फॉल को मात देता है। अलबत्ता लोग वहाँ फोटो भी खिंचवाने लगे हैं, ये जरूर मुझे नहीं मालूम था।’’

‘‘यहाँ का प्रशासन इस शहर को ठीक करने के लिये कुछ करता क्यों नहीं ?’’

‘‘करता क्यों नहीं साब। सीजन आने से पहले बंद कमरों में मीटिंग करता है। फिर जोशोखरोश के साथ ऐलान करता है कि कमर कस ली गयी है। सीजन आते ही पतलून ढीली होने लगती है। प्रशासन भी क्या-क्या करे ? इतने वी.आई.पी. एक साथ आ जायेंगे तो परेशानी तो होगी ही। अच्छा, साब सात घंटे हो गये हैं, मेरा हिसाब कर दो। निकालो हजार रुपये।’’

‘‘तुमने हमें घुमाया ही क्या है ? कई जगह बतायी थीं। नैनीताल दर्शन करवाने को कहा था।’’

‘‘साब ये जाम लगा है। ये खुला होता तो मैंने सब जगह दिखला दी होती।’’

‘‘दिखाई तो नहीं ना ?’’

‘‘ आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे ये जाम मैंने लगवाया हो। मेरा पूरा दिन लगा है। पैसे भी पूरे ही लूँगा।’’

‘‘ये लो पचास रुपये। हम इससे ज्यादा नहीं देंगे।’’

‘‘पचास रुपये ? भिखारी समझा है क्या ? मेहनत के पैसे माँग रहा हूँ। पूरे दिन की बात हुई थी।’’

‘‘पूरा घुमाने की बात भी तो हुई थी। पहले पूरा घुमाओ।

‘‘आप जाम खुलवाओ, मैं घुमाता हूँ। रात हो जायेगी तो एक्स्ट्रा चार्ज देना पड़ेगा।’’

‘‘अरे, उतारो इसे गाड़ी से। हमें अब कहीं नहीं जाना है। हम वापस जायेंगे।’’

‘‘जरूर जाइये। पहले मेरा हिसाब करके जाइये। रही बात नैनीताल दर्शन की, तो डाँठ से राजभवन होते हुए मल्लीताल ले गया और वहाँ से मालरोड दिखाते हुए वापस ले आया हूँ। पूरा नैनीताल दर्शन करवाया है। ताल का चक्कर लगाया है। आप पैसे निकालो जी!’’

‘‘ये पचास रुपये हैं। लेने हैं तो लो वरना गाड़ी से बाहर निकलो।’’

‘‘क्यों निकलो ? पहले हिसाब तो करो।’’

‘‘कैसे नहीं उतरेगा ? तेरे जैसे पचास गाईड देखे हैं। चल बाहर निकल!’’

‘‘मैं सुबह से आप-आप कर रहा हूँ और तू है कि जूते समेत सर पर चढ़े जा रहा है। तेरे जैसे के मुँह नहीं लगता मैं। जेब में हाथ डाल और पैसे निकाल।’’

‘‘बदमाशी किसे दिखाता है ? तुम सब मिल कर टूरिस्टों को लूटते हो। हम पैसे नहीं देंगे।’’

‘‘जा, मत दे। जब होंगे, तभी तो देगा। न जाने कहाँ-कहाँ से चले आते हैं नैनीताल! उधार माँग कर आते हैं और चंदा करके वापस भेजना पड़ेगा। खाने के लिये पैसे हैं या दूँ ?’’

‘‘बदतमीजी करता है ? यहाँ पुलिस स्टेशन कहाँ है ?’’

‘‘उसके लिये दूसरा गाईड करना पड़ेगा। अगर मेरे साथ गये तो एक्स्ट्रा चार्ज देना पड़ेगा। पुलिस वाले भी लेंगे और मैं भी।’’

‘‘बड़ा बदतमीज है! बाहर निकलता है या दूँ एक ? खुद को क्या समझता है तू ?’’

‘‘तू नहीं आप। कुछ आया समझ में, या फिर निकालू ‘स्टेपनी’ समेत निकालूँ पाँचों टायरों की हवा ? प्यार से हम सब काम कर सकते हैं, पर तड़ी तो अपने बाप की भी नहीं सही!’’

‘‘क्या कर लेगा तू ?…..हैं…हैं… ये जूते क्यों उतार रहा है ? पूरी गाड़ी में बदबू आ रही है। जूते पहन और जा।’’

‘‘अभी तो सिर्फ जूते उतारे हैं। अगर गैस छोड़ दी तो पागल हो जाओगे। गाड़ी के अन्दर से चिल्लाउँगा कि ये मेरा अपहरण करके ले जा रहे हैं। आतंकवादी हैं। फिर जो जाम लगेगा तो गाड़ी छोड़ कर भागना पड़ेगा।’’

‘‘बड़ा ढीठ किस्म का आदमी है। देते क्यों नहीं इसे पैसे ?….. सुनिये जी, आप तो नाराज हो रहे हैं। ये लो पैसे। अब तो जूते पहन लो प्लीज!’’

‘‘ये हुई न बात। पैसे निकालो!’’

‘‘अब ये बता दो कि वापस जाने का रास्ता कौन सा है।’’

‘‘पहले ईनाम के दो सौ रुपये और निकालो, फिर गाड़ी बैक करो और सीधे निकल लो।’’

गाड़ी बैक होती है और तेजी से वापसी की राह पकड़ लेती है। ‘‘अरे, ईनाम के पैसे तो दे जाते……’’

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                                   बंगलौर अर  पौड़ी इकसनि छन 

 

                                                    चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 

                अचकाल हरेक उत्तराखंडी छाती चौड़ी कौरि घुमणु रौंद , अजकाल हरेक पहाड़ी घमंडम च क्या जगा जगा बुलणु क्या रौंद ढोल बजैक , भोम्पु बजैक , मुंडळम जैक धै लगान्दु  बल पौड़ी गढ़वालै राजधानी पौड़ी  कर्नाटकौ  राजधानी बंगलौर दगड़  छौंपा दौड़ (प्रतियोगिता ) करणम सक्षम च अर द्वी इकजनी छन .

   भई द्वी राजधानी छन .दुई जनसंख्या मामलाम भैस जन  गैबण छन . द्वि जगा, जख स्वीण नि जै सकद उख सबळ घुचाये जाणो च . द्वी जगा, जखम द्वी मनिख रौण चयाणा छा उख दस मनिख निवास करदन। गाउँ निर्बीज करणम द्वी अग्वाड़ी छन। द्वी राजधानी छन अर कै ना कैक शान छन .

  पौड़ी खुण शानै, टिपोडै , घमंडै बात या च बल बंगलौरम बि पौड़ी जन कचराशाही मची च . ठीक च हम गढ़वळि पौड़ी सणि बंगलौर जन आई टी शहर नि बणै सकदवां पण  हमम इथगा हिकमत,लियाकत त छें च बल हम पौड़ी तै बंगलौर जन कचरा शहर त बणै इ सकदवां कि ना ? अर  हम पौड़ी वळा बि  पौड़ी शहर तै कचरा शहर बणाणम इनी जोर लगाणा छंवां जन बुल्यां नवा कचराशाही मा बंगलौर पौड़ी से अग्नै चली जावो धौं ! 

   पौड़ी तै  कचाराशाहीम बंगलौरो बरोबरी करण मा सरकार ,पब्लिक अर प्राइवेट पार्टिसिपेसनो बहुत इ बढिया सामंजस्य च . हमारो समाज सफाई पसंद च अर अपण ड्यारो खौड़ सुरणम सद्यनी अग्वाड़ी रौंदा, जनि हमर ड्यार खौड़ ह्वाई ना बल हम सटाक से अपण ड्यारो खौड़ सार्वजनिक जगाम चुलै दीन्दा अर अपण व्यक्तिगत भागीदारी सबूत दीणा रौंदा . व्यापारी संस्थान या दुकानदार बि पौड़ी तै या बंगलौर तै कचराघर बणानम पैथर नि रौण चांदन अर अपण दूकान या व्यापारिक संस्थानों खौड़ कचरा सडम रस्तों म फेंकीक अपुण  भागीदारी निभान्दन , सरकारी विभाग अग्रिम योजना नि  बणै दुनिया तै बताणम सक्षम च बल द्याखो हम बंगलौर या पौड़ी तै कचराशहर बणानम उस्तादों उस्ताद छंवां। पौड़ी अर बंगलौरो रस्तों मा पड्यु कचरा पब्लिक -प्राइवेट पार्टिसिपेसनो उमदा  उदाहरण च . भागीदारी इथगा अटूट च बल क्वी कै पर भगार नि लगै सकुद .
 
पब्लिक बड़ी होशियार अर  अनुशासन्युक्त च बस जखम बोर्ड लग्युं रौंद बल इखम कचरा नि धुळण उखमि कचरा ढेर लगै दॆन्दि किलैकि वा बींगी जांदी बल भै जखम जगा ह्वेलि उखमि त कचरा नि फेंकणो बोर्ड लगल कि ना ?

    अचकाल भारत का शहरो मा कुत्तों की जमात डॉग फेस बुक माँ बहस पर व्यस्त च बल सबि शहरो से कुत्तो पलायन बंगलौर या पौड़ी तरफ होणु च इनि माखो , कवों , चिलंगुं , भौं भौं किस्मो कीड़ो जमात बि माखो , कवों , चिलंगुं , भौं भौं किस्मो कीड़ो बंगलौर अर पौड़ी तर्फां पलायन से परेशान छन अर सरकार व पब्लिक से दरख्वास्त करणा छन बल पलायन रोके जावु .
 
  बंगलौर अर पौड़ीम कूड़ो ग्राउंड फ्लोरों कीमत कम ह्वे गेन किलैकि लोग बाग़ रत्यां अपुण कचरा कैक बि इख ग्राउंड फलोरम कचरा फेंकि ऐ जान्दि . अचकाल लोगुं तै चोरी डौर कम अपण चौकुम कचरा जमा होणों डौर बिंडी हुन्दि . चौकीदार संघन कचरा रोको चौकीदार विभाग खोली याल   अर पौड़ी अर बंगलौरम अब हरेक बिल्डिंगम द्वि किस्मो चौकीदार धर्याणा छन एक चोरी रुकणो अर दुसर क्वी हैंको बिल्डिंगम  कचरा फेंकि नि जावो . इनि अब सफाई करण वाळु  द्वि जमात ह्वे गेन एक जु सफाई करद अर हैंको जु अपण ड्यारो कचरा दुसरो बिल्डिंगम  या आम बाटोंम फेंकि आवो।

  जगा जगा सड्याण , किड़ाण , भभळाण , मुताण , चिराण, हगाण, गुवाण, बस्याण,बासि भातौ भत्याण,   घिणाणो मामलम पौड़ी अर बंगलौरम क्वी फर्क नी च , भेद नी च द्वी गन्दगी मामलम इकसनी छन .   
 
 

 

 

 

Copyright@ Bhishma Kukreti 16/12/2012

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य व्यंग्य

हौंसि  हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

 

                                         

                                   हार जीतौ छाण निराळ (विश्लेषण )

 

                                  चबोड्या : भीष्म कुकरेती

 

        मि अपण समाजम  बचपन इ बिटेन हार जीतौ  छाण निराळ (विश्लेषण ) करणम उस्ताद माने  जांदु . वांक एकि वजै  च बल मी इतिहासम फस्ट आन्दु छौ .  अशोक की जीत ह्वाउ . कलिंग राजाक हार ह्वाउ या कारगिलम भारत की जीत ह्वाउ वांक कारण एकि हूंदन . फिर एबी गुजरातम नरेंद्र मोदी जीत या हिमाचलम कोंग्रेस जीत मि फटाक से विश्लेषण कौरि दींदु किलैकि मि इतिहासम फस्ट आन्दु छौ .

अब द्याखो ना मि बगैर सूच्या समज्या बोलि सकुद बल अशोक भौत देर से कलिंग से जीत किलैकि कलिंग राजा अर वैका सैनिको मा दृढ निश्चय छौ अर सन 2012 को चुनावम  मोदी बि अपण जीत को प्रति दृढ निश्चयी छौ   

मि बगैर टीवी चैनेल दिख्यां या खबर  पौडिक बथै द्योलू बल  पौरव सिकन्दर से इलै हार किलैकि भारतीय राजाओंम आपसम बैमनस्या छे जन भारतीय जनता पार्टी  उत्तराखंडम सन 2012क चुनाव इलै हार किलैकि भारतीय जनता पार्टीम आपसम घिम्साण मची छे या आपसम फूट पड़ी छे अर इनि हिमाचलम भारतीय जनता पार्टिक द्वी बड़ा बड़ा फुन्द्यानाथ धुमाल अर शांता कुमारंम गुरा -नेवला या कुकर-बिरळ जन दुस्मनात चलणी छे त भारतीय जनता पार्टी कोंग्रेस पर भयंकर भ्रस्टाचारौ होणो उपरान्त बि हिमाचलम बुरी तरां से हार .

                  मि इतायासो पेपरम  लिखुद छौ बल राणा सांगाक सैनिक अर हाथी बिभरमित छा त राणा सांगा हार अर अकबर जीत , राणा सांगाक सेनाम पैनो नेतृत्व कमि छे त अब बात सै च बल गुजरातम कोंग्रेस्यूं तै पता इ नि छौ बल चुनाव लड्नो बान पैनो नेत्रित्व चयांद।

            सिकन्दर अर पौरव की लडेक  खासियत छे बल सिकंदरम  आधुनिक हथियार था त   गुजरातौ चुनावम नरेंद्र मोदीन इन्टरनेट -   ट्वीटर अर थ्री डी जन नया हथियार इस्तेमाल करिन अर राहुल गांधी सरीखा महारथी या शंकर सिंग बाघेला जन रथी अर हौर कॉंग्रेसी घैल ह्वेन, कति कांग्रेसी त चित इ ह्वे  गेन 

                  मि इतिहासौ परीक्षाम बगैर सुच्यां समज्याँ लेखी दींदु थौ बल  अकबरन  भारत का राजाओं तैं इलै जीत बल किलैकि यूं राजौं मा एका नि छौ अर इम्तानम अब्बल नंबर पान्दु   थौ अब जब मि लिखुद कि गुजरातम नरी अमीनन कोंग्रेस अर हिमाचल जनता पार्टीन  छ्त्यानास कार त बंचनेर मी तै बुद्धिजीवी क तगमा पैरै दीन्दन

               मी परीक्षा मा लिखुद छौ बल अठारा सौ सतावन की गदरम कुशल नेत्रित्व अर भारतीय लड़ाकोंम सामंजस्य की कमी छे  अर मी डिंसटिंकसन माँ पास ह्वे जांदु छौ इनि जब भुप्यारौ कुणि भारत -इंग्लैण्डऔ   ट्वेंटी-ट्वेंटी  क्रिकेट मैचम भारत जीत त मीन फेस बुकम ल्याख बल महेन्द्र सिंग धोनी एक कुशल नेता च , भारतीय खिलाड्यूंम सामंजस्य च त फेस बुकम हजारो लोगुन म्यार कमेन्ट तै 'लाइक' कार . ब्याळि  इंग्लैण्ड जीत अर भारत हार त मीन लेखी द्याई बल महेन्द्र सिंग धोनी जाणदो इ नी च बल नेत्रित्व क्या हूंद अर भारतीय खिलाड्यूं  तै पता इ नी च बल खेलम सामंजस्य की भौत जरुरत होंदी . म्यार कमेंट्स पर 'लाइक ' की लंग्त्यार लगीं च

  हार या जीतौ नियम  फिक्स छन अर चुनावी लडे या क्रिक्यटै लडे दुयुं म यूँ  नियमुं  तै बतैक अबि तलक बडो विश्लेषक बण्यु छौं . आप बि विश्लेषक बौणि सकदवा बस आप तै सिकंदरक जीत अर पौरवक  हार का कारण पता हूण चएंदन फिर जैदिन भारतीय क्रिकेट टीम जीति जावो वैदिन भारतीय क्रिकेट टीम पर सिकंदर का जीतणों कारणों तै फिट कौरि द्याओ अर जैदिन भारतीय टीम मैच हारि  जावो वैदिन भारतीय टीम तै पौरव की सेना बणै द्याओ .

आशा च भोळ बिटेन आप बि कुशल विश्लेषकों श्रेणी मा ऐ जैल्या ! 

 

 

 

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