Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 359826 times)

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
     सौज सौज मा मजाक मसखरी
       हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
       सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                                               मोबाइल कवर /खोळ     


                            चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

               हम कथगा बि आधुनिक ह्वे जवाँ चीजुं पर खोळ लगाण बंद नि करदां। तकिया , गद्दा, खंतुड़ , चद्दर , इख तलक कि दर्री पर बि हम खोळ लगौंदा।

         कुछ साल पैल जब उत्तर भारत मा जड्डुं मा कड़ाके की ठंड पड़दि छे अर रुड्यु मा गरम हूँद छौ त लोग बाग़ जड्डुं मा अपण रेफ्रीजेरेटर अर पंखो पर खोळ चढै दींद छा निथर माख अर धूळ रेफ्रीजेरेटर अर पंखो पर बढिया चित्रकारी करी दींदा छा।
टेलीविजन अर रेडियो पर खोळ चढ़ाणो रिवाज छैं इ छौ। कार पर खोळ नि रावो तो कार बेकार दिख्याँदि अर लोग कार वळs  मखौल उड़ान्दन  ।

              असल मा हम ना तो नंगी रौण चांदवाँ ना ही कै तैं नंगी दिखण चांदा। अब तुम बि जरा स्विलकुड़ो बच्चा दिखणो मैटरनिटी हॉस्पिटल जावो त एक दिनौ बच्चा तैं बनि बनि कपड़ा मा दिखल्या। पैसा वाळ ब्वे तो बार बार बुलणि रौंद कि हमन त बच्चा कपड़ा अमेरिका या पेरिस बिटेन मंगैन अब त स्विलकुड़ो बच्चा कपड़ा बि स्टेटस स्टेटमेंट याने औकात दिखाणो माध्यम ह्वे गेन। ब्वे अचकाल नवजात शिशु बारा मा कुछ नि बथान्दी हाँ बच्चा कपड़ों बारा मा पूरो इतिहास -भूगोल- गणत बयान करी लींदी।

   कवर करण हमारी नव संस्कृतिs  एक अंग ह्वे गे। नेता अपणी दागदार छवि कवर करदो त खोजी पत्रकार डिसकवर करिक नेता की कवर करीं बातो तै अनकवर करी दीन्दन। अचकाल पता लगणों च बल बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल क कवर तौळ सैकड़ो बात अनकवर करण लैक छन। पण बीसीसीआइ को कवर इथगा लम्बो चौड़ो अर म्वाटो च कि पत्रकारों अर सीबीआई तैं बीसीसीआइ द्वारा कवर करीं बातों तैं अनकवर करण मा सौ साल लग जाला अर तब तलक हरेक खबर कबर (खड्डा )  जोग ह्वे जालि।
        अजकाल मोबाइल कवरों बड़ी मांग बढ़ी गे। भ्रष्ट  नेता, अधिकारी  अर व्यापारी बेशर्मी से अपण काळो, दागदार   मुख खुलेआम दिखांदो पण अपण मोबाइल तै कवर चढ़ाण नि बिसरदो।  आज  जनान्युं मुंड-मुख-बदन अब पल्ला से कवर नि होंदन  पण मोबाइल कवर करण एक आवश्यकता बणी गे।
  बिचारा मोबाइल कम्पनी अपण मोबाइलो भैरो बिगरैलि  बौडी बणाणो बान रिसर्च - डेवलपमेंट मा अरबों रुपया फूकी देंदी अर हम बिगरैल  मोबाइल पर कवर चढैक यूँ कम्पन्यु काम पर लात मारी दींदा।
  ब्याळि  मीन एक स्मार्ट फोन ल्यायि अर जनि घौर औं कि पूरी बिल्डिंग मा लोग शरमाण बिसे गेन कि म्यार स्मार्ट फोन नंगी च। म्यार नंगी स्मार्ट फ़ोनों तरफ क्वी दिखणो तयार ही नि छौ .लोगुं शरम देखिक शरमाशरमी घरवळि न आदेस दे कि नंगी स्मार्ट फोन तै स्मार्ट दिखाणो बान एक स्मार्ट कवर आणि चयेंद।
मोबाइल कवर बजार जाण से पैल मीन स्वाच बल मोबाइल फोब कवरों बारा मा पता तो लगाये जाव कि कै कै किसमों सेल फोन कवर  बजार मा छन!
मि  ऑनलाइन सर्च मा ग्यों अर देखिक चकरै ग्यों। सैकड़ो किसमों मोबाइल कवर बजार मा उपलब्ध छन।
पेल तो यो ही निर्णय लीण पोड़द कि मोबाइल कवर लतपुतो/सॉफ्ट  हूण चयेंद कि कड़क/ हार्ड? मैटल , प्लास्टिक , लेदर जैकेट मा बि हजारों वेराइटी!
खौंऴयाणै बात या च कि भौत सा  मोबाइल कवर त एल्युमीनियम का बि छन। ये मेरि ब्वे! मोबाइल धातु से हि बणदो त फिर मेटैलिक कवर की क्या जरूरत? ह्वे सकद च ग्राहकों तैं मोबाइल कम्पन्यू मैटल  पर भरवस नि होंदु होलु तो ऊंखुण मैटल मोबाईल जैकेट निर्मित ह्वे।
                     बच्चों मोबाइल फोब कवर गुड्डा -गुड्डियों याने टॉयज जान जादा छा क्वी मॉबाइल खोळ मिकी माउस, तो क्वी बिरळ, क्वी कुत्ता . क्वी रिक बाग़, क्वी बंदूक का आकार प्रकार माँ छया। दुनिया मा जथगा बि प्रसिद्ध खिलौणा होला उथगा ही बच्चों वास्ता मोबाइल कवर छा। इख तलक कि क्रिकेट बैट अर क्रिकेट गेंद का आकर का मोबाईल फोन कवर बि बजार मा छन।
 
            फिर फैशन वळ मोबाइल कवरों त बुन हि क्या च। अन्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ड्रेस डिजाइनरों हस्ताक्षर सहित मोबाइल फोन कवरों की  संख्या त सैकड़ों मा होलि। अचकाल इन लगणु च रिसेसन से बचणो बान प्रसिद्ध  ड्रेस डिजाइनर ड्रेस डिजाइन का काम छोडिक  मोबाइल कवर डिजाइन बणाण माँ व्यस्त छन।
                दुनिया माँ जथगा  बि रंग बणि गेन  तथगा रंगुं मोबाइल कवर उपलब्ध छन। तुमारो  मनोविज्ञान का हिसाब से अलग अलग रंगों मा मोबाइल कवर उपलब्ध छन।
         कुछ मोबाइल खोळ त टेप रिकॉर्डर , हवाई जाज , पाणि जहाज का शकल सूरत का बी छन।
            भौत सा  मोबाइल कवर  त ओसामा बिन लादिन , माइकेल जैक्सन अर ओबामा का  शकल मा बि उपलब्ध छन।
कथगा इ  मोबाइल कवर केवल पाणि मा प्रयोग का वास्ता हि बणये गेन , आप यूं वाटर प्रूफ मोबाइल कवरों बदौलत नयांद दें फोन इस्तेमाल कौर सकदवाँ। हाँ जौमा मोरणो बि समय नि ह्वावो ऊंकुण यू वाटर प्रूफ मोबाइल कवर काम को च।
              कई मोबाइल कवर जनान्युं वैनिटी बौक्स , पर्स से भि जादा उपयोगी छा। कुछ मोबाइल कवरूं  पुटुक मोबाइल का अलावा आप टिफिन बौक्स बि धरि सकदवाँ।
           भौत सा मोबाइल कवर भारतम आतंकवादी हमला, नक्सलवादी हमला अर परिवारम एक हैंक पर हमला से बचणो बाण बि बणये गेन। यूँ मोबाइल कवरों गारेंटी च बल तुम भारतम आतंकवादी अर  नक्सलवादी हमलों से भले ही मोरि जैल्या तुमर मोबाइल को इक अंस बि नुकसान नि होलु
          औकात दिखाणो बान बि सैकडों मोबाइल कवर ओनलाइन मार्केट मा छन। औकात दिखाणो बान मोबाइल कवरों दाम से त लगद भारत मा गरीबी छैं इ नी च बलकणम अमीरी ही एक बड़ी समस्या च।
 सबि मोबाइल कवरों मा एक समानता च कि क्वी बि मोबाइल कवर भारत मा निर्मित नी च।
हजारों मोबाईल कवरूं बारा मा जानकारी से मि रंगतै ग्यों, कनफ्यूज ह्वे ग्यों अर अब मि एक मोबाइल कवर सलाहकार का पास  सलाह लीणो  जाणु छौं जू बताल कि मेकुन सही मोबाइल कवर क्वा च ।
           

 
 
 Copyright @ Bhishma Kukreti  7/06/2013           
(लेख सर्वथा काल्पनिक  है )

Bhishma Kukreti

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समलौण  (संस्मरण )

                   अहा !  इखाक मानसून अर  उखाक मुंगर्यात


                     भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
             मानसून भारतौ हरेक अडगैं बान  महत्वपूर्ण होंद अर हरेक क्षेत्र को मानसून से अलग अलग अपेक्षाएं हूँदन अर मानसून से पैल अर मानसून मा विशेष काम धंधा बि होंदन।
अब जन कि अचकाल मुंबई मा आधिकारिक तौर पर मानसून ऐ ग्यायि पण केवल एयर कंडीसनरों बिल कम हूण छोडि लोगुं जिन्दगी मा या दिनचर्या मा क्वी ख़ास तबदीली नि आंदि।
पण जब हम छवट छया या ज्वान छया त म्यार गाँ मा मानसून आण से एक डेढ़ मैना पैलि अर मानसूनौ जाणो द्वी मैना पैथर तलक लोगुं क्रिया कलाप ही ना आम संस्कृति मा बि बदलाव ऐ जांद छौ।
        मानसून आण माने मुंगर्यात पड़ण याने मुंगरी बूणों दिन आण।
          अब मुंगर्यड़ (जौं पुंगड्यूं मा मुंगरि पैदा हुंदन) ह्वावो अर किसान तै परिश्रमी नि बणावो तो वो मुंगर्यड़ नि ह्वे सकद।
मुंगर्युं साफ़ बुलण छौ कि हम माटो प्रेमी छंवां अर मुंगर्युं बीज र्+याड़ (कंकड़-पथर ) तौळ जावो त मुंगरी बीज हडताळ कौरि दींदा छा त झक मारिक किसाणु तैं सबसे पैल बैसाख जेठ मा मुंग्र्यड़ो र्याड़ (र्+याड़ )चड़ण पैलि आवश्यकता छे।
अब एक बात बथावो कि तुमन र्याड़ (र्+याड़ ) कट्ठा कौरि बि दे तो यी कंकड़ पथर खौड़ कत्यार त छ ना कि तुम अपण खौड़ सोरिक दुसरो चौक जिना सोरि द्यावो तो र्याड़ (र्+याड़ ) कट्ठा कौरिक चंगर्यों (ठुपरी) मा भोरण पडदो छौ अर र्याड़ (र्+याड़ ) तैं दूर भेळ जोंग करण पोड़द छौ। मै सरिखा कोमल काया वाळक मुंड पर रयाड़ो ठुपरी से मुंड-छाळो बि पडि जांद छौ पण बगैर कंकड़ पथर को मुंगर्यड़ से मुंगर्युं पर बड़ा बड़ा थ्वाथा (भुट्टा ) आणै आशा मा हम मुंड-छाळो की क्वी फिकर नि करदा छा अर र्याड़ (र्+याड़ ) तैं भेळ तक ही छोड़िक आंदा छा।
             अब मुंगर्युं पौधा बड़ा कोमल हूंदन यी पौधा खौड़ कत्यार की छौं बर्तन्दन। त पुंगडो मा पैलि बुयीं फसल का जलड़ , पत्ता अर खर पतवार तैं साफ़ करण तैं हम बड़ा पुण्य का कारज समझदा छा। फिर मुंगर्युं पगारों पर जम्याँ खौड़ कत्यार से बड़ी चिड़ होंदि अर मुंगर्युं आज बि बुलण च बल पगारों पर जम्याँ खौड़ कत्यार से हम पर बनि बनि बीमारी ह्वे जांदी। अब खौड़ कत्यार हमर समदी त नि होंदन त हम , हमर ब्वे बाब मुंगर्युं पगारों पर जम्याँ खौड़ कत्यार तै उखाड़ी अलग अलग ढेर लगान्दा छा जै तैं आड़ बुले जांद छौ अर फिर कुछ दिनों बाद याने मानसून से द्वी तीन दिन पैल आड़ लगै दींदा छा। याने खौड़ कत्यार की ढ़ेर्युं पर आग लगाये जांदी छे। आड़ लगाण असल मा एक आवश्यकता बि च। अपण अपण पुंगड़ो  खौड़ कत्यार की राख मा वो रसायन होंदन  जो वै पुंगड़ मा खनिज की कमी तैं दूर करदन। इलै एक पुंगड़ो खौड़ कत्यार को आड़ तै दुसर पुंगड़ मा नि जळाये जांद बलकण मा वैहि पुंगड़ मा जळये जांद जै पुंगड़ो वो खौड़ च ।               
             अब कती पुंगड़ कड़क किस्मौ पुंगड़ बि होंदन। त इन पुंगड़ो पर इखारो हौळ /याने चीरा लगाये जांद छौ जां से कि कम बरखा मा बि पुंगड़ो माटो गिलु ह्वे जावो।
 फिर  मुंगरी क्वी बौणो घास या डाळ त छ नी कि अपण खाण पीणों इंतजाम अफिक कौरि ल्यावो। तो हमर किसाणो तैं छनि/सनि बिटेन ठुपर्युं पर मोळ चारिक मुंगर्यड़ तलक लिजाण पोड़द छौ अर अलग अलग ढेरी लगाण पोड़द छौ।
                      अब बस लोगुं तैं मानसून की जग्वाळ करण पोड़द छौ कि बरखा ह्वावो अर मुंगरी बोये जावो।
हरेक गां मा जलवायु वेत्ता छया जु घिंड्वा - घिडड्यूं माट मा नयाण पर ध्यान दींदा छा, कुळै पत्तों क नराण (आवाज ) सुणदा छा अर कुळै पत्तों हलकण फिर हलकणो दिशा, बादळु आण-जाण  अदि से पता लगाणा  रौंदा छा कि कब बरखा होलि अर कब मुंगर्यात पोड़लि।
बरखा हूण अर मुंगर्यात पोड़णम जमीन आसमानों अंतर होंद। एक बरखा कबि बि गरम्युं मा ह्वे सकद अर हैंकि बरखा बीस जून से सात आठ जुलाय का बीच होंदी।  जु त ये दौरान बरखा खूब ह्वावो अर घणा बादळ असमान मा   रावन अर कुळै पत्तों क नराण, हलकण   हिसाब से ह्वावो तो हमर बूड बुड्या घोषित करी दींदा छा कि मुंगर्याती बरखा ऐ ग्यायि याने मानसून के बरखा शुरू ह्वे ग्यायि।
फिर द्वी चार दिन बड़ा हलचल का हूंदा छा। मुंगरि भिजाण , अर मुंगर्युं दगड़ लम्यंड (चाचिंडा ) गुदडि, कखडि, खीरा , करेला आदि   क बीज भिजाण पड़द छा।
फिर मुंगरि बूण से पैलि ढेर्युं को मोळ सरा पुंगड़ पर फैलाण जन काम करण ही पोड़डी छौ।
फिर हऴया पैथर पैथर भिजायिं मुंगरि सीं पर बूण एक कला छे जो हम बगैर स्कूल  जयां सीखि लींदा छा।
                       फिर हम सौब भगवान से प्रार्थना करदा छा कि बरखा बरखणि रावो। कबि कबि भगवान नराज बि होंदा छा त निबरखा से दुबर मुंगरि बूण पोड़द छौ।
                     अब हमर गाँ पर ना तो केंद्र सरकारों या  राज्य सरकारों राज च हमर क्षेत्र पर क्षेत्रीय पार्ट्यूं  याने  गूणी-बांदर अर सुंगरूं राज चलदो तो हमर गाँ मा अब मुंबई जन मानसून ही आंदो अर अब मुंगर्यात नि पड़दि।   
   

Copyright @ Bhishma Kukreti  10/06/2013       

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                                           अडवाणी जी ! तुम आगे बढ़ो , कौंग्रेस आपके साथ है 


                            चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

             ब्याळि लाल कृष्ण अडवाणीन भारतीय जनता पार्टीs सबि पदों पर लात लगाइ अर ब्वाल बल चूँकि अब भारतीय जनता पार्टी मा नेता लोक अपण अपण महत्वाकांक्षा बान काम करणा छन तो वो पार्टी का सबि पदों से त्यागपत्र दीणा छन। उन अबि तलक लोग बाग़ अर भारतीय पार्टी वाळ त समजणा छा कि अडवाणी जी की महत्वाकांक्षा प्रधान मंत्री बणणै छै पण अब समज मा आयि कि वो निस्वार्थी बिचारा त पार्टी अर देस का खातिर प्रधान मंत्री बणण चाणा छ्या।
          अब जब अडवाणी जिन इस्तीफा दे त भाजापा का नेता ऊंक ड्यार गेन। इन बुल्दन बल राजनीति मा यु एक रिवाज च।
 मि सुचणु छौ कि जु भाजापा का नेताओं अलावा हौर पार्टी नेता बि अडवाणी का ड्यार जांदा त क्या क्या बुलदा।
 
जु डीएमके का करुणानिधी अडवाणी से मिलदा तो बुलदा - अडवाणी जी ! जु तुम प्रधान मंत्री बणदा तो मि तैं पूरो भरवस छौ कि तुम मेरि छवटि  बेटी,बड़ी बेटि जंवै अर ए . राजा पर लग्याँ अभियोग माफ़ करि दींदा पण अब मि तैं नरेंद्र मोदी दगड गोटि फिट करण पोड़ल। तुम यूँ आरएसएस वाळु तैं  ठीक से समजावो कि राजनीति मा उमर को कुछ बि लीण दीण नी च। अब मि तैं इ देख ल्यावदी जगा मांगन सरक नि सकदो पण सरा राज्य को भार उठायूँ च।
  यदुरप्पान बुलण छौ बल अडवाणी  तुम मेरी पार्टी संरक्षक बणी जावो अर कृष्ण भूमि या बाबा विश्वनाथ मंदिरों बान रथ यात्रा कारो फिर तुम प्रधानमंत्री अर मि लौह पुरुष बणलु अर म्यार नौनु खरबपति बणलु।
लालू यादव अडवाणी तै मीलल त ब्वालल  बल अडवाणी जी ! धन्यावाद ! आपन जनता दल या जनता पार्टी की मुख्य संस्कृति तै अपणाई बल अपणी ही पार्टी तैं कनकै बीच बजार मा शर्मनाक स्थिति मा डाळण बस आप इनि अपणी ही पार्टी तैं इनि बीच बजार मा नंगा करदा जावो मि तुमर दगड़ छौं .
कम्युनिस्ट पार्टी का नेता ए राजा अडवाणी दगड़  छ्वीं लगांद बल अडवाणी जी ! कसम लाल झंडा की ! आरएसएस तैं एक्सपोज करणों जु काम हमन इथगा सालों मा इथगा कोशिस का बाद बि नि कार साक आपन एकी झटका मा करी दे। आप तैं हमर पार्टी तरफान लाल किताब की भेंट च। आप आरएसएस तैं इनि एक्सपोज कारो हम रोज तुम तैं एक लाल किताब इनाम मा दींदा रौला।
 मुलायम सिंह आलो अर रुंद रुंद ब्वालल बल अडवाणी जी अब मि क्या कौरू ? कुछ दिन बिटेन मि तुमारि प्रशंसा अपण भाइयों अर भतीजों तैं डराणो करदो छौ। अब त भाई धमकी दीणा छन बल हमन बि लाल कृष्ण अडवाणी तरां अपण लगाईं डाळि  का जलड़ कटणन। आप इन बथावो कि अपण लगाईं डाळि  का जलड़ कटण आपन हम समाजवादियों से सीख कि आरएसएस मा हि इन स्कूल खुलिं गेन?
शरद पंवार आलो अर बुलण लगल बल अडवाणी भाऊ जी ! कसम से मि ईं दै डर्युं छौ बल महाराष्ट्र मा हमन शर्तिया हारण पण तुमर अपणी पार्टी दगड़ दगाबाजी, धोकाबाजी  से अब मि तैं पूरो भरवस ह्वे गे कि महाराष्ट्र मा शिवसेना -भाजापा युति नि जीति सकद। जै परिवारों बूड -खूड अपण परिवारों झगड़ा खुलेआम रस्ता मा लालो तो वै परिवारों भिविष्य त खतम ही समझो। थैंक यू अडवाणी जी ! आपन बेशरम बुजर्ग की भूमिका अदा कार अर हम नेशनल कौंग्रेस अर कौंग्रेस युति मा दुबर प्राण डाळि दे।
रायपुर बिटेन अजित जोगी आयि अर बुलण बिस्यायि बल अडवाणी जी तुमर पार्टी अर देस का प्रति छद्म , नकली,दिखावटी,  बनावटी स्वांग , नाटक, ड्रामा  से अब छतीस गढ़ का कॉंग्रेसी निश्चित छन कि अबैं दै छतीस गढ़ मा बीजीपी चुनाव नि जीति सकदी। मि कौं शब्दों मा तुम तै धन्यवाद द्यूं?
मायावती क फोन आई बल अडवाणी जी ! मोदी फैक्टर से मि डर्युं छौं कि उत्तर परदेस मा सबसे बडो नुक्सान मि तैं ही हूण पण तुमारो निहुण्या , निखण्या,जड़कट्वा हरकतों से अब उत्तर परदेस मा नरेंद्र मोदी की आंधी रुक जालि। तुम इनि बेशरम हरकत कारो अर अपण पार्टी की नया डुबांद जावो तो एक मूर्ति मि तुमर बि लगै द्योलु अर मूर्ति तौळ लिख्युं राल कि लाल कृष्ण अडवानी -एक अतृप्त आत्मा जैन अपणी प्रधान मंत्री की महत्वाकांक्षा बान अपन अंतिम दिनों मा कुलघाती, कुलनाशी,कुलविनाशी ,कुलंकटकि, कुलघ्नी , कुलनिमाड़ी काम कार! 
राहुल गांधी बि  आयि अर बुलण बिस्यायि अंकल ! अंकल ! पता च ममी क्या बुलणि छे ? ममीन ब्वाल बल जख तुम सरीखा परिवार उजाड़ो  संरक्षक  ह्वावन तो भाजापा वाळु तैं दुश्मनु जरूरत ही नी च। ममी क रैबार च बल लाल कृष्ण अडवाणी जी तुम आगे बढो , मोदी को रोको और कौंग्रेस आपके साथ है। ममी न पूछ बल पद्म श्री अबि दिलौं कि जब भाजापा चुनाव हारली तब दिलौं?       
 
बीजेपी का कार्यकर्ता ऐन अर बुलण बिसेन बल अडवाणी जी ! तुमन अफिक एक पदवी 'लौह पुरुष ' की  धारण करी छे वीं तैं उतारो अर तुम त पुरुष की पदवी लैक बि नि छंवाँ जो मनुष्य अपण परिवारों झगड़ा बीच बजार मा लावल  वो तो पुरुष छ्वाड़ो  किमपुरुष बुलण लैक बि नी च !


Copyright @ Bhishma Kukreti  11/06/2013   
(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
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  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                                  हैंड  बैगोलौजी याने बटुवा  विज्ञान

                      चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

   जब तलक बजार मा पर्स नि ऐ छया तब तलक कुटरी , खीसा , छवटि -म्वटि थैलि पर्स को काम करदा छा। अब पर्स याने बटुवा आण से दुनिया मा सन चालीस से विज्ञान की एक नयी  शाखा बि  ऐ गे जै तैं बैगोलौजी  बुल्दन। बैगोलौजी मने विज्ञान की वा शाखा जो पर्स , खासकर जनान्युं पर्स सम्बन्धी विज्ञान अर मोनोविग्यान को अध्ययन।
                        अचकाल जनान्युं परसौ दगड़  बजार मा हैंड बैगोलौजी की   छवटि  छवटि किताब बि  मिलदन।
             अजकाल जनान्युं पर्स निर्माता त करोड़ो रुपया बैगौलौजी पर खर्च करदन।
               जनानी भैर जांद दै पर्स किलै लिजांदी इख पर भौत काम हुंयुं च।
                   जीव विज्ञान को हिसाब से जनानि पृथ्वी रूप च अर जब जनानी भैर पार्टी मा जान्दि तो अपण लघु पृथ्वी दगड़ लिजाण नि बिसरदि।
                 कुछ बुल्दन बल जनानी जीव विज्ञान को हिसाब से 'जीन केरियर' (क्रोमोजोम लिजाण वळ) च तो पर्स या हैंडबैग जन केरियर लिजाण एक मूलभूत जनानी  लक्षण च। मै लगद लाटों छ्वीं होलि!  हैं ?
अछा! कति  चकडैत मर्द बुलदन बल चूँकि जनानी नि चांदन कि वा अपण बच्चा या समान खुकलि मा उठावो त वा बड़ो पर्स उठांदि अर झक मारिक पतिदेव तैं बच्चा या समान उठाण पोड़द। पण यो तो चकडैतुं चकचक च।
                 कथगा बुलदन बल जनानी पर्स इलै लिजांदी कि जनान्यु तै दिखाणो रोग च अर अगर जब जनानी बुड्याण बिसे जांदी तो आकर्षक हैंड बैग लिजाण मिसे जांद जां से कि मरदों समणि  वींको आकर्षण कम नि ह्वावो। पण जख तलक मेरो ज्ञानौ  सवाल च बल आकर्षण जनानी मा नि होंद किलै कि कै जनानी पर आकर्षित होण तो मर्द की आंख्युं काम च। तबि त ग्वारो चिट्टू मजनू काळि लैला पर आकर्षित ह्वे छौ।
              कुछ वैज्ञानिकों बुलण च बल हैंड बैग या पर्स औकात दिखाणो एक ख़ास माध्यम च। इखमा मि सहमत छौं किलैकि गढ़वाळि मा कहावत बि छन बल भितर नि आलण अर भैर नचणि बादण! या रुस्वड़ मा लूण-बाड़ी खावो अर चौक मा भातौ टींड दिखैक कुकुर जोर जोर से भट्यावो।
            कुछ अन्वेषक बुल्दन बल कथगा जनानी हैंड बैग इलै लिजांदन बल लोग वूं तैं सचमुच मा जनानी मानन, किलैकि लेडीज पर्स जनानी हूणो पक्की निसाणी च । मि असहमत छौं। ह्वे सकुद च भैर देशों मा जनान्यूँ  अर मर्दुं कपड़ो अर कट्याँ  बाळु  मा फरक नि होंद त बिचारि जनान्युं तैं पर्स से सिद्ध करण पोड़द कि वो जनानी छन या जननी छन। हमर इख अबि इथगा बुरि हालत नि ह्वै कि कपड़ा या कट्याँ  बाळु से मरद अर जनान्यु मा भेद नि ह्वे सको।
           कुछ साइंटिस्ट बुल्दन बल पर्स या हैंडबैग अपण असली चरित्र दिखाणो एक जरिया च अर पर्स या हैंडबैग का रंग, आकार, मोटाई आदि से हम पर्स धारक को चरित्र जाणि सकदवां। पण मि ईं वैज्ञानिक सोच से कतै बि सहमत नि छौं। हम हर बकत, हर क्षण अपण असली चरित्र ढकण माँ हि लग्याँ रौंदवाँ, अपण चरित्र तै लुकाण -छुपाणो बान बनि बनिक स्वांग -ढोंग -ढंट करणा रौंदां; अपण चरित्र छुपाणो बान हम अपण सरा जिंदगी ख़तम करी दींदा तो  फिर इन कनकै ह्वै सकुद कि जनानी अपण असली चरित्र या लक्षण दिखाणो बान हैण्ड बैग खरीदो।
   एक वैज्ञानिक सिद्धांत च बल चूँकि जनानी भविष्य  का प्रति मर्दों से भौति जादा सचेत हूंदी तो जनानी पर्स लिजांदी . या बात जादा तर्क संगत च। मर्द असल मा लबाड़ जाति जानवर ही च। जब कि जनानी भविष्योन्मुखी होंद तो वा अपण हैंडबैग मा भविष्य की सबि कामै चीज धरदी जन कि आंखुं सुरमा-मंजन, मेक अप का समान, कंघी -ऐना , पिन -आलपिन-हियरपिन-स्यूण-धाग, बटण -सटण, चकु, चिमटी, चाबी , चाबी -गुच्छा , गहना, कैमरा , सेल फोन , नेलकटर,टूथपिक्स, दवै-दारु, थर्मामीटर , बनि बनिक कार्ड -कागजात, चेकबुक, पेन -पेन्सिल, खाणो समान, रक्षा को कुछ समान, सिलाई कढ़ाइ को समान,  टिस्यू पेपर , आदि , आदि . इतिहास बथांदो बल पैल प्रेम पत्र बि हैंड बैग मा होंदा छा पण अब प्रेम पत्र नि लिखे जांदन अब त एसऐमऐस या नेट चैटिंग काफी च। 
 
    हाँ एक बात सच च आज जनानी बगैर हैंडबैग को इनि दिख्यान्दि जन बुल्यां बगैर  सींगौ को बल्द, बगैर कळगी को मुर्गा. 
जनान्युं हैण्ड बैग खोया -पाया विभाग को एक कार्यालय बि च कथगा दें जब बिंदी जरूरत ह्वावो तो हर बार मुर्खल मिल्दन अर जब मुर्खलूँ आवश्यकता ह्वावो तो हर्च्यां  आलपिन मिल जांदन अर जब सरदर्द की गोळि जरुरत ह्वावो तो कुछ  ख़ास कामौ गोळि मिल्दन ना कि सरदर्द की गोळि ।
या बात बि सच ही होलि कि जन जन जनान्युं उम्र बढ़द जांद तन तन हैंडबैग को आकार बि बढ़न्द जांद।
अर क्या क्वी जनानी बथालि कि मर्दों तैं जनान्युं पर्स भितर किलै नि दिखण चयेंद ?
   
 


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(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                                  समय दगड़ मुखाभेंट (इंटरव्यू)
 

                    चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

ब्याळि मीम समय काटणो कुछ नि छौ।
त मि खालि छौ। गाँ मा हूंद त बाछीs कांध मलासदो तो मि  मुंबई मा माख मारणु छौ। पण फिर बि समय छौ कि कट्याणु नि छौ। अब जब कुछ नि छौ त मीन स्वाच चलो जरा समयौ दगड़ ही छवीं बथा लगाये जावो।
मि - समय जी!  समय जी! तुम इथगा बड़ा आदिम छं वाँ तो कुछ समय च कि मेरे साथ आप कुछ समय गंवा सको।
समय - समय बर्बाद करण से  म्यार त कुछ नि बिगड़ल पण तेरो ही नुक्सान होलु। 
मि -अच्छा एक बात बथावो हमम  त अफु तैं बिजाळणो बान अलार्म घड़ी छन तुम कनकै बिजदां? 
समय - घड़ी जरुरत मि तैं नि पड़दि। मरणशील लोगुं तैं घड़ी आवश्यकता होंदी। मि त अपण गति से सदा हि चलणु रौंद .
मि - ऋषि मुनियों बुलण छौ बल समय क्षण भंगुर च याने समय ख़तम  हूंद जांदो। पण तुम  बुलणा छंवां कि तुम अमर छंवां
समय - हाँ एक तरां से मि अमर बि छौं अर मरणशील बि छौं। जादातर लोग समय बरबाद करण मा लग्याँ रौंदन। कुछ तो हाउ टु किल टाइम का वास्ता हर बगत कार्यरत हूंदन।  पण मि छौं कि चलणु ही रौंद।
मि - ओहो ! त इन मा त तुम तै बड़ी तकलीफ होंदी होलि? आप तैं हर समय ब्रह्मांड  को इथगा काम समय पर ही पूरो करण पोड़द होलु हैं? इथगा काम करण मा तुम तैं  थक नि लगदी?" सरा ब्रह्मांड को समय पर ही काम हो" जन  काम से बड़ी औसन्द आंदी होलि हैं?
समय - मि कुछ नि करूद काम तो तुम या ब्रह्मांड का नक्षत्र करदन। मि त खालि एक जगा मा स्थिर रैक ही सरा ब्रहमांडौ  चक्कर लगांदु।
मि -समय जी समय जी ! बार बार एकी काम तै लाखों बार बारम्बार इकसनी रूप से करण मा तुम तैं बड़ी बोरियत हूंदी होलि हैं?
समय - क्षमा कर्याँ  ! आज तलक ये ब्रह्मांड मा क्वी चीज बारम्बार इकसनी ढंग से  नि ह्वे। समय कबि बि दुबारो नि आंदो, जु क्षण बीति स्यु क्षण बीति गे। हर क्षण, हर दिन, हर महीना , हर बरस नया ही होंदु जन कि तुमारा हिंदी सीरियलों एपिसोड हर दिन नया ही होंदन।
मि - वाह ! तो फिर तुम नया संबत्सर याने न्यू यिअर मनाणो  तयारी करणा होल्या हैं?
समय - हा! हा ! असलम हर दिन तो  नया साल ही होंद पण तुम मनुष्योंन अपण अपण राजा, धर्म , संगठन तैं महत्व दीणो बान कुछ ख़ास दिनों तैं नया साल को नाम दे द्यायि।
मि -समय जी समय जी ! तुम कब पद निवृत याने रिटायर हवेल्या?
समय - हा ! हा ! मीन कबि कबि बि पद निवृत याने रिटायर नि होण।
मि -ओ त तुम बि भारतीय नेताओं तरां पद निवृति या रिटायर हूण मा विश्वास नि करदा? जन अचकाल लाल कृष्ण अडवाणी छन बल जब तलक सांस रालि वो प्रधान मंत्री की दौड़ मा शामिल राला। या जन अपणा करूणानिधि छन कि अफु त जगा बिटेन नि उठि सकदन पण सरा तामिल नाडू का भार जनक्याणो तयार छन। 
समय - नै नै मि सत्ता बान पद निवृत या रिटायर नि हूण चांदो बलकणम मेरि समस्या या च कि अबि मेरो जनम ही नि ह्वे तो पद निवृत या रिटायर कनकै ह्वे सकुद?
मि -अछा जाणि दयावो यी दार्शनिक फलसफा तैं! इन बथावदि कि तुमन कबि कै से प्रेम बि कार?
समय - हाँ ! मीन प्रकृति दगड़ प्रेम करणो भरसक कोशिस कार पण वा च कि . ..
मि -क्या ?
समय - प्रकृति बि नि समजदी कि समय अग्वाड़ि हि बढ़द ना कि पैथर पण वा च कि मि तैं फेल करण मा लगीं रौंद  अर मी (समय ) तै रुकणि रौंद।  अब देख ना वा बरसातौ बगत सुखा करि दींदी , गर्म्युं बगत बाढ़ लै यान्दि।
मि - अछा समय जी ! तुम तै क्वा चीज या बात मा मजा आंदो?
समय - जब लोग बुल्दन बल मि तैं यु काम करण छौ पण मीम बगत ही नी च तो हौंसन म्यार फगस फटी जांदन । या जब लोग बुलदन बल आज ना मि ये काम तै भोळ अवश्य करलु तो मी तैं असीम आनन्द की अनुभूति होंदी । लोगुं बगत नी च या भोळ करुल की बातों से मी तैं बहुत आनन्द आंदो।
मि -ये मेरी ब्वे ! समय जी जरा बथावदि कि क्या टैम ह्वे होलु?
समय - हा ! हा ! तुम मनिखोंन मि तैं नापणों बान -बालू युन्त्र, जल यंत्र, सूर्य यंत्र , घड़ी अर अब नैनो सेकंड यंत्र इजाद कार। पण मेखुण क्या ? तब ,अब अर फिर तब या कब से मै पर क्वी फर्क नि पड़दो।
मि - अच्छा आखिरी सवाल। आप म्यार पाठकों वास्ता कुछ अपण विचार दीण चैल्या?
समय - हाँ मि छूटि पर घुमणो  जाण चाणो छौं पर समय की कमि वजह से मि तैं छूटि नि मिलणी च। जरा क्वी मि तैं समय की बचत कनै करे जावो पर नया विचार बतालु त मि वै मनिखौ अहसानमंद रौलु।
मि -छूटि पर याद आयि कि ..
समय - सौरी ! अब मीम एक सेकंड को बि समय नी च। मीन अबि टाइम्स ऑफ इंडिया , यूएसए टाइम्स, टोकियो टाइम्स, लन्दन टाइम्स को सम्पादकों तै इंटरव्यू दीणो जाण अर सबि जगह एकी विषय च।
मि -क्या ?
समय - समय कनै काटे जावो।



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(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                              साला ! दांत तोड़ी द्योल  हाँ ! 

                  चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

      दांत जब खाणक खाणों जगा खाण बिसे जावो तो वै जमानो मा  बि बड़ी बेचैनी होंद छे अर आज बि जब दांत भोजन की जगा खाण बिसे जावन त ज्यू बुल्यांद कि काश दांतु तै अबि तोडि दिए जावो तो  ठीक च।
जब दांत खावो तो ज्यु बुल्यांद कि क्वी दुसमन ही ऐ जावो अर जनि बि ह्वावो दांत तोडि जावो त सेळि  पोड़ी जावो।
  अचकाल तो जगा जगा हरेक गली मा दांतुं डाक्टर छन पण एक जमानो छौ जब घुणदौ जलुड़ दीण वाळौ  द्वी पाळि  दांत नि होंद छा किलैकि वैबरि दांतु वैदगिरी डिग्री नि बंटे जांदी छे बलकणम घुणदो जलुड़ो ज्ञानी तबि अपण ज्ञान अपण नौनु या च्याल़ा तैं दींद छौ जब वैद तै यकीन ह्वे जांद छौ कि अब वैन (वैद जीन ) नि बचण। इलै इ तुमन देखि ह्वाल कि वै जमानो मा गां मा कबि बि बाब-बेटा या सासु-ब्वारि  दगडि घुणदो जलड़ नि दींदो छौ। बेटा भगवान से या ब्वारि भेमाता से प्रार्थना  करदा छा कि कब स्यु बुड्या या बुडड़ि म्वार अर डेंटिस्ट कि गद्दी ऊं तैं मील। पण घुणदौ वैद बि भगवान से मिन्नत मांगदो छौ कि मेरी उमर कम से कम सौ साल हूण चयेंद अर इन मा घुणदो जलड खुज्याण वाळ झड़नाती देखि मर्दा छा।
   अब घुणदौ क्वी खेती पाती त होंद नि छे कि वो रात विश्राम कार अर दिन मा हि दांत खावन। दांत त कबि बि रात मा बि खाण मिसे जांद छा।
  जब हम छ्वट छया तो हमर बगत पर दाँत खाणो बाद कुछ क्रमगत उपचार का नियम छा।
जनि दांत खाण बिस्यावो तो सबसे पैल उपचार होंद छौ कि दांतु बीच लूणै गारि धौर द्यावो। दांतु बीच लूणै गारि धरणै कला सबि ददि, ब्वे , बौ , बैण्यु मा सुलभ छे तो हरेक बचपन मा या जवानी मा कै ना कैक मदद से लूणै गारि धरण सीखि लींद छौ।
अब यो तो घुणद दिवता पर पर निर्भर करदो छौ कि वो लूणै गारि से संतुष्ट च कि ना। यदि घुणद लूण से मानि गे तो ठीक निथर उपचार को अगलों पायदान की तरफ बढ़े जांद छौ।
 लूणै गारि यदि असफल ह्वे गे त काळि मर्च की बारी आंद छौ। यदि घुणद काळि मर्च से मानि ग्याइ त ठीक निथर उपचार की अगली सीढ़ी चढ़ण पोड़द छौ।
उपचार की अगली सीढ़ी लौंग का फूल होंद थौ। यदि लौंग का फूल बि असफल ह्वे जावो तो फिर तीन चार रस्ता समणि होंद छा।
 घुणदौ जलुड़ लीणो वै मा जावो जैक द्वी पाळि  दांत नि ह्वावन।
टिमरू छाल पीसिक दांत पुटुक धरि द्यावो।
बड़ी स्यूण  लाल गरम  कारो अर उखम डामि द्यावो जखम डा (दर्द ) होणु ह्वावो।
दगड़ मा बाकी/बकि नवर मा जै बि दिवता नाम ल्यावो वै दिवता पुजणो उठाणु गाडी ल्यावो।
अब जब दिवता बि नि मानन तो फिर औपरेसन लहुलुहान ही अंतिम पर्याय बची जांदो छौ।
दांतु औपरेसन लहुलुहान एक लोमहर्षक , लोमहर्पणीय, रोमांचकारी घटना होंदी छे। एक रक्तरंजना युक्त औपरेसन दिखणो बान सरा गाँ का लोग मुक्त भाव से आंद छा।
क्षेत्र का सबसे बड़ो ढीठ कारपेन्टर या ओड जु सब्बळ से पत्थर गाडदु छू वो औपरेसन लहुलुहान का करता धर्ता होंद थौ। वो जमूरा से दांतौ दुख्यरौ दांत अधा पौण घंटा तलक दांतुं पौ खपचांदो छौ या ख्त्यान्दो छौ पण आखिरै दांत टूटी जांद छौ। दुख्यर को रूण से द्वी चार गाऊँ बच्चा छळे जांदा छा। फिर दुख्यर तैं पांच छै दिन अंध्यर दिये जांद छौ (अँधेरे कमरे में रखना )।
उन अजकाल बि ऊनि होंद खालि पेन किलर या अनेस्थेटिक दवाईयों बदौलत अब दुख्यर डा -दर्द नि चितांदो।
पण कुछ दर्द तो अबि बि दांत दींदी छन।
टीवी मा सरा  दिन भर अलग अलग टूथ पेस्टो विज्ञापन दांतुं दर्द त नि भगांदन पण सरदर्द जरुर दे जांदन कि लूण मिल्युं टूथ पेस्ट ठीक च या लौंग मिल्युं टूथ पेस्ट ठीक च ?
फिर जरा डेंटिस्ट मा जावो अर तुमर दांतो मा भयंकर दर्द होणु ह्वावो अर तब रिसेप्सिनिस्ट ब्वाल -हैपी डे सर ! तो दांतौ दर्द गुस्सा मा बदली जांद कि क्यांक हैपी डे?
हाँ एक बात च कि दांतु औपरेसन लहुलुहान अब कॉमेडी सर्कस मा जरूर बदली गे। मीन कथगा इ डेंटिस्टों औपरेसन  थियेटर देखिन त पायी कि औपरेसन  थियेटर की सीलिंग पर जोकरूं फोटो लगीं रौंदन अर यी फोटो दुख्यर तै हंसाणो कोशिस करदन या सैत च चिरड़ाणै कोशिस बि करदा होला कि साले ! पहले ही दांतों के देखभाल करता तो इस डेंटिस्ट के पास तो न आता!   
 


 
Copyright @ Bhishma Kukreti  14/06/2013   
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Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 
                       
                            साकेत बहुगुणा अर विजय बहुगुणा मध्य छ्वीं बथा


                  चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )

  अबि कुछ दिन पैल साकेत बहुगुणा टिहरी जिना गे छया। मि सुचणु छौ , कल्पना करणु छौ बल साकेत जी अर विजय जी द्वी बाब -ब्यटा बीच क्या क्या छ्वीं लगि होलि?
साकेत - पापा!  तुमन मि तै फंसै द्यायि!
विजय बहुगुणा- हैं !मीन त्वै तैं फंसै द्यायि? यि जरूर कौंग्रेस मा म्यार विरोध्युं चाल होलि। तू फोन धौर मि पता लगान्दु कि कै कॉंग्रेसीन या अफवा उड़ाइ धौं!   
साकेत बहुगुणा -डैड तुम बि ना! मि उन घपला मा फंसाणो बात नि छौ करणु।
विजय बहुगुणा- औ! त तु कैं बात कि बात करणी छे ? माई डियर!
साकेत बहुगुणा - मि बुलणु छौं बल अबि त चुनाव भौत दूर छन अर तुमन मि तैं खां-मा -खां इख टिहरी भेजि दे।
विजय बहुगुणा- डार्लिंग ! विरोध्युं तैं याद दिलाण जरूरी च कि टिहरी कंस्टिट्वंसि पर अब इलाहाबादी बहुगुणा बंश को राज च।
साकेत बहुगुणा -पण डैड! यी टिहरी अर उत्तरकाशी का लोग अजीब अजीब अनोखा सवाल पुछणा रौंदन। अर पापा पता च यूं प्रश्नों क्वी रेलिवेन्सी या औचित्य ही नी च।
विजय बहुगुणा-  सवाल अर टिहरी का सीधा साधा लोग? बाइ द वे! क्या क्या सवाल पुछणा छा यि लोग?
साकेत बहुगुणा -अब कथगा इ पुछणा छा बल मि तैं गढ़वळि बुलण बि आंद, डैड व्हट द ह्यल दिस गढ़वाली?
विजय बहुगुणा- माइ डियर सन! याद च जब तु छवट छौ, मि जवान आदिम छौ, तेरि फूफू रीता जोशी बि जवान छे। अर कबि कबि पिता जी के गाँव बुघाणी से कोई ग्रामवासी या जोशी जीजा का रिश्तेदार जन कि ललिता प्रसाद काला जी आंद छा अर यि लोग पिताजी दगड़ पता नि कैं या कनफणि सि लैंग्वेज मा बातचीत करदा छा।
साकेत बहुगुणा -हाँ हाँ ! याद आया। तब हम सब दादा जी को चिढ़ाते थे कि -दादा जी दादा जी ! आप  कौन से आदिवासी इलाके के  हैं? जो अजीब सी भाषा में बचऴयाते हो।
विजय बहुगुणा- हाँ ! माइ डियर सन! वै च गढ़वाली भाषा।
साकेत बहुगुणा -पण डैड जब हम सब  , अंकल शेखर बहुगुणा, अपण कजिन मयंक जोशी बगैर गढ़वळि बुल्यां इथगा  बड़ा नेता बौण  सकदां तो यी टिहरी-उत्तरकाशी  वाळ गढ़वळि भाषा बात किलै करदन? 
विजय बहुगुणा- टिहरी रियासत को नयो राजकुमार ! त्वै तैं इन बेकार,बदअकली भाषा जन बातों पर कतै बि ध्यान नि दीण चयेंद। बाइ द वे जब लोगुन पूछ कि त्वै तैं गढ़वळि भाषा बुलण बि आंद तो त्यरो जबाब क्या छौ?   
साकेत बहुगुणा -मीन जबाब मा ब्वाल कि  मी भारत माता को लाल छौं अर मि राष्ट्रीय एकता मा विश्वास करदो।
विजय बहुगुणा- वेरी गुड। फिर!
साकेत बहुगुणा -हाँ ऊं तैं मै पर विश्वास तो इ ह्वाइ पण राष्ट्रीय एकता की बात से बेचारा गढ़वाली भाषा प्रेमी अपण सि मुख लेक बैठि गेन।
विजय बहुगुणा- वेरी गुड। यि पहाड़ का गढ़वळि लोग बड़ा भावुक होंदन अर देश का खातिर अपणी भाषा त जाणि दे अपण ज्यान बि त्याग दींदन।
साकेत बहुगुणा -अच्छा पापा ! या संस्कृति क्या ह्वे पापा? सबि पुछणा छा बल  मेरी संस्कृति क्या क्या च? मेरी संस्कृति क्या क्या च?
विजय बहुगुणा- संस्कृति ! संस्कृति याने कल्चर
साकेत बहुगुणा -बट ! खैर पापा मीन संस्कृति वाळि  बात तैं भलि तरां से संबाळ द्यायि।
विजय बहुगुणा- कनकै मेरो राजकुमार?
साकेत बहुगुणा -मीन जन इलाहाबाद मा लोगुं मुखान सुण्यु छौ तनि जबाब दे द्यायि।
विजय बहुगुणा- क्या ?
साकेत बहुगुणा - मीन जबाब दे द्यायि कि मेरि संस्कृति तो गंगा -जमुना की बीच की संस्कृति च।जय बहुगुणा- साकेत बहुगुणा -
विजय बहुगुणा- तो?
साकेत बहुगुणा -तो क्या पापा! मेरो जबाब से सबि टिहरी अर उत्तरकाशी का लोग खुश ह्वै गेन. बट पापा! यी लोग खुश किलै ह्वै होला?
विजय बहुगुणा- अरे नादान राजकुमार !तीन जब इलाहाबादी संस्कृति याने गंगा -जमुना की बीच की संस्कृति ब्वाल तो यि सीधा साधा लोग समझिन कि तू गंगोत्री -यमुनोत्री का बीच की संस्कृति बात करणु छे। तेरो तो तुक्का छौ  पर तीर सटीक बैठ।
साकेत बहुगुणा -डैड! ऑफ द रिकॉर्ड!  हमारि संस्कृति छ क्या च?
विजय बहुगुणा- सत्ता बान नेहरु --गांधी परिवार की चाटुकारिता ही हमारी संस्कृति च। त्यार  ददा जीन बि कुछ साल छोड़ी वा ही संस्कृति अपनाइ छे अर हम सबि भाई -बैण  बि नेहरु --गांधी परिवार का पूजक छंवां।  नेहरु --गांधी परिवारने पूजा ही कॉंग्रेसी संस्कृति च।
साकेत बहुगुणा -अछा बाबा ! यो पलायन क्या होंद? सबि बुलणा छा कि पलायन रोको , पलायन रोको। पलायन क्या क्वी हज्या, चेचक जन बीमारी च?
विजय बहुगुणा- बेटा! हम नेताओं दिखण से त पलायन तो क्वी बीमारी नी च ना पण हाँ! पलायन रोको की रट की बीमारी हर कुमाउंनी  अर गढ़वळि पर एक जनमजाती बीमारी च। इख पर ध्यान दीणै जरूरत नी च। जै बीमारीन ठीकि नि होण वांक बारा मा सुचण ठीक नी च।
साकेत बहुगुणा -अच्छा ! पलायन पर मी बोलि द्योलु कि पलायन रुकणो बान भरसक प्रयत्न  करे जाल। पण डैड! यी गाँव वाळ एक सवाल पुछि पुछिक भौत तंग करदन।
विजय बहुगुणा- क्या च वो प्रश्न?
साकेत बहुगुणा -हरेक गाँव वाळ पुछदन  कि पर्वतीय विकास  बीमारी का हल का बारा मा मि क्या जाणदु? सबि पुछदन ये पर्वतीय विकास प्रकोप का  हल क्या च?
विजय बहुगुणा- विकास का बारा मा त मीन सूण  छौ पण पर्वतीय विकास का बारा मा मीन नि सूण। तु एक मिनट होल्ड कौर मि अबि चीफ सेक्रेटरी तै भट्यान्दु अर पुछुद छौं कि पर्वतीय विकास क्या बीमारी च , पता नी क्या बला च धौं!
चीफ सेक्रेटरी- जी मुख्यमंत्री जी !
विजय बहुगुणा -  सेक्रेटरी जी ! तुमन कबि नि बथाइ बल टिहरी-उत्तरकाशी का गाऊं मा क्वी   पर्वतीय विकास की नई बीमारी लगीं च?
सेक्रेटरी - सर! अब जब उख गाओं मा क्वी डाक्टर हि नि जांदन तो हम तै पता इ नि चलदो कि उख गाऊं मा कु कु नई बीमारी ऐ गेन धौं!
विजय बहुगुणा- सेक्रेटरी जी ! साकेत साब अचकाल टिहरी-उत्तरकाशी टूर पर छन अर ऊँ तै पता चौल कि ऊना दुइ जिलौं मा पर्वतीय विकास की नई भंयकर बीमारी   लगीं च। तुम इन कारो मुख्यमंत्री आपदा कोष से एक करोड़ रुपया की इमदाद का इंतजाम कारो।
विजय बहुगुणा - बेटा साकेत! भलो ह्वाइ तीन विरोधी पार्टी से पैल ईं बीमारी सुचना दे दे। मीन पर्वतीय विकास  की नई बीमारी का वास्ता बजट दे आल। अब तू बयान  दे सकद कि साकेत बहुगुणा के प्रयास से पर्वतीय विकास की नई बीमारी टिहरी और उत्तरकाशी के प्रत्येक अस्पतालों में  उपलब्ध कराई जा रही हैं।
साकेत बहुगुणा -थैंक्स डैड ! मि अबि प्रेस कॉन्फ्रेंस करदु कि पर्वतीय विकास के भंयकर प्रकोप से बचने के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है अर हरेक ग्रामीण अस्पताल मा  पर्वतीय विकास प्रकोप से बचणो दवा उपलब्ध होलि। ओके डैड!


Copyright @ Bhishma Kukreti  15/06/2013   
(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )


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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                                 क्रिक्यट्याणै पछ्याणक (क्रिकेट माहौल के चिन्ह ) 

                   चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ, s= क, का , की,, कु के ,को आदि  )

               हर युग मा समाज मा कुछ ना कुछ की हवा चलदी। जन कि स्वतन्त्रता आन्दोलन की हवा /माहौल; फिर भारत निर्माण को वातावरण; इंदिरा गांधी बगत  अपण निखालिस स्वार्थौ बान बुड्यों तैं लत्याण; जनता पार्टी समौ पर अपण आपस मा कुत्ता-बिरळु तरां हर समय लड़ण; राम रथ यात्रा समय पर पवित्र त्रिशूल से त्राहि त्राहि मचाण या मनमोहन जुग मा देस तै चुसण -लूटणौ वातवरण।
   पर अजकाल एक हैंको बनिक बीमारी या माहौल भारत माँ विद्यमान च अर वा च क्रिक्यट्याण!
  क्रिक्यट्याणै कुछ चिन्ह छन कुछ खास विशेषता छन।
जब कै गरीब आदिमौ ड्यार क्रिकेट मैच दिखणो बान एक ना द्वी टीवी ह्वावन तो समजि ल्यावो कि क्रिकेट मौसम अपण उंचाई पर च।
जब तुमर घौरम सबि कपडौ पर क्रिकेट खिलाड्यूँ फोटो चिपक्याँ ह्वावन तो शर्तिया क्रिकेट्यौ ढांड पड़ण़ा छन।
जब  धर्मेन्द्र जन फ़िल्मी हीरो प्रायोजित शराबौ  ब्रैंड छोड़िs सभ्रांत अर गरीब सबि क्रिकेट खिलाड़ी प्रायोजित शराबो ब्रैंड पर ढब जावन तो समझो कि देस क्रिकेटs नशा मा टुन्न च .
जब संसद मा पब्लिक डिस्ट्रिबुसन याने सरकारी गल्ला मा सड्याँ ग्यूँ  मिलणा छन की बहसs  जगा क्रिकेट स्टेडियमों मा दर्शकों तैं ठीक से  वाटर नि मिलण पर विरोधी पक्ष संसद की कार्यवाही भंग कारो तो समजी ल्यावो क्रिकेट ही हमारी सांस च।
जब जु टमाटर दस रुपया कीलो छौ अर आज सौ रुपया कीलो बिकणु ह्वावो अर खासकर टीवी मीडिया क्रिकेट मैचों टिकेट बढण पर हल्ला मचाणु ह्वावो तो अंक्ये  ल्यावो कि क्रिकेट मंहगाई से जादा महत्वपूर्ण ह्वे गे।
जब क्रिकेट स्टेडियमों मा कीड़  मारणों बान कीट नाशक दवाइयुं विरोध मा पर्यावरणवादि अर अहिंसावादी उपवास पर बैठन तो मानण चयेंद कि हरेक भारतीय को  दिमाग मा क्रिकेट का कीड़ा बसि ग्यायी।
जब रेल टिकटुं  ब्लैक मार्केटिंग अपण चरम पर ह्वावो पण  लोग अर मीडिया आईपीएल मैचो मा ब्लैक मार्केटिंग से  दुखी ह्वावन तो इख मा द्वी राय नि ह्वे सकदन कि क्रिकेट अब हमारो असली धर्म ह्वे गे।
जब राज्य  विधान सभाओं मा आधारिक विद्यालयों मा पढ़ाई स्तर पर सालों मा एक दिन बि बहस  नि ह्वावो पण जब  विधायक  रोज शून्य  काल मा क्रिकेट स्तर नि बढण पर चिंता जतावन अर राज्य माँ क्रिकेट की बदतर स्तिथि प् मुख्यमंत्री से इस्तीफा की मांग कारन तो बिंगण- समजण  चयेंद कि क्रिकेट से ही हमारो जीवन चलणु च।
जब  अखबारों मा आईपीएल मा विदेशी खिलाड्यूँ से भारतीय क्रिकेट को खतरा का समाचार पैलो पन्ना मा ह्वावो अर चीनन अपणि सैनिक शक्ति मा तिगुण इजाफा कार की छुटि सि  खबर दाद -खाज का विज्ञापनों  बीच मा ह्वावो तो या पक्की  बात च बल अब क्रिकेट भारतौ बान मान सम्मान को माध्यम ह्वे ग्यायि।
जब नेता लोग बयान द्यावन कि ये  चुनाव मा  हम विरोधियों तैं पविलियन भिजला अर राजनीति की  पिच पर हमारो ही राज होलु तो क्वी बि ब्वालल कि भारत मा असली राज तो क्रिकेट को ही च।
जब 'धनवान कैसे बने ' की किताब खुज्याण पर बि कखि नि मीलो पण ''क्रिकेट मे सट्टे से करोडपति बनने के सौ नुक्से' किताब हर  स्टाल पर  ह्वावो तो यांको अर्थ च बल भारत की आर्थिक  नीति क्रिकेट से प्रेरित होंदी।
जब सामजिक कार्यकर्ता अर बुद्धिजीवी सुबेर आन्दोलन कारन कि भारत मा औनलाइन लौटरी बंद हूण चयेंद अर श्याम दै भाषण द्यावन कि क्रिकेट बेटिंग तैं कानूनि जामा पहनाये जाण चयेंद त  यांक मतलब च बल अब हमारा  सामजिक नियम क्रिकेट का अनुसार ही चौलल।   
जब मै  सरीखा लिख्वारम लिखणो कुछ नि ह्वावो  त मि क्रिकेट पर लिखण लगि जावुं त या बात सही च कि हमारी असली संस्कृति क्रिकेट च।
 
 

 
Copyright @ Bhishma Kukreti  16/06/2013     
(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

Bhishma Kukreti

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गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                               ब्लेम गेम ट्रेनिंग  सेंटर
                              याने भगार लगाणौ प्रशिक्षण केंद्र
                             

                 चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
 
(s = आधी अ, आधी अ//s= क, का , की,, कु के ,को आदि)


           अचकालौ जटिल जिन्दगी मा मनिखौं तै परिवार मा , शिक्षण संस्थानों मा , समाज मा , नौकरी मा, व्यापार मा, राजनीति मा अर सबि  जगा ब्लेम गेम, दोषारोपण खेल या भगार लगाणो खेल खिलण हि पोड़द। बगैर ब्लेम गेम का अचकाल कुत्ता बिरळ बि ज़िंदा नि रै सकदन।
           पण भारत मा व्यवसायिक स्तर का ब्लेम गेम ट्रेनिंग सेंटर नि होण से हुन्यार युवाओं तैं बड़ी तकलीफ होणि रौंद। इलै हमारी शिक्षण संस्था ज्वा भ्रस्टाचार करणों बाद बि पकड़ मा नि आण, स्पॉट फ़िक्षिंग या मच फ़िक्षिंग करणों बाद बि संसद सदस्य कनै बणन  जन प्रशिक्षण का वास्ता कुख्यात च, चर्चित च अब एक नया कोर्स लाणी च। ये नयो  कोर्स को नाम च हाउ टु ब्लेम अदर्स शेमलेसली फॉर युवर मिस्टेक्स या अपण दोष दुसर पर कनकै लगाण (अपण पूठो गू दुसरो पूठ पर लपोड़ण) या बेशर्मी से दूसरों पर दोषारोपण कैसे किया जाता है।
 ये कोर्स मा सिलेबस प्रशिक्षार्थी हिसाब से डिजाइन करे गे। ये कोर्स मा निम्न विषय छन -
१-ब्लेम गेम की परिभाषा अर इतिहास जां से विद्यार्थी सीख सकुद यदि तुम से गलति ह्वे गे तो कनकै अपण तौळ वाळ पर भगार लगैक पदोन्नति पाए जांद।
२- ब्लेम गेम कु कु खेल सकदन को  कोर्स- ये कोर्स से सबसे जादा फैदा कौंग्रेस विरोधी विचारधारा का राजनीतिज्ञों तैं होलु। इखमा हम सिखौला कि जब धुर कौंग्रेस विरोधी राजनैतिक पार्टी या नेता कॉंग्रेसौ  खुकली मा बैठो तो अपण कॉंग्रेसौ  खुकली मा बैठणो दोष कै तरां से  साम्प्रदायिक ताकतों पर लगाये जै सक्यांद . ये कोर्स मा लालू प्रसाद यादव , मुलायम सिंह यादव , बहन मायावती , करुणा  निधि, अजित सिंह वल्द  चौधरी चरण सिंग, नीतेस कुमार की जीवनी वीडिओ ग्राफी की सहायता से पढ़ाए जालि।
३- खावन प्यावन हौरुं क अर मार खावन गौरुंक - इखमा मा हम सिखौंदा कि दोषारोपण से दुसरो नुकसान कनै करे जांद। ये कर्स मा उदाहरणो साथ हम दिखौला कि कन  मनमोहनी कौंग्रेस को रीफौर्म से मंहगाई बढ़द, बेरोजगारी बढ़द तो कॉंग्रेसी दोषारोपण करदन  कि चूँकि भारतीय लोग मिनरल वाटर, विटमिन युक्त भुजि खाण गीजि गेन तो गरीबी , मंहगाई, बेरोजगारी मा इजाफा ह्वे ग्यायि
४- ग्रुप ब्लेमिंग या भगार लगाणम  कवारौळि प्रयोग - इखमा हम संसद या विधान सभाऊं  क्लिप दिखैक पढौला कि सामूहिक घ्याळ , सामूहिक कवारौळि से अपण गलती को ठीकरा हैंक पर कनै फोड़े जांद।
५- लीगल ब्लेमिंग - यो ख़ास ख़ास विद्यार्थ्युं वास्ता एक क्रैश कोर्स च- जन कि कपिल सिब्बल, अरुण जेटली जन नेता ये कोर्स से फैदा उठे सकदन । इखमा हम सिखांदा कि  संवैधानिक संस्थाओं जन कि  कोंट्रोलेर जनरल ऑफ ऑडिट या चुनाव कमिसन की खुले आम कै तरां से न्यायिक पद्धति से धज्जी उड़ाए जै सक्यांद।
६- भैंसों गुस्सा मकड़ा पर - यु कोर्स केवल कॉंग्रेस्यूं वास्ता ख़ास बणाये गे। इखमा हम सिखौंदा कि जब राहुल गांधी या सोनिया गांधी को नेतृत्व मा पार्टी चुनाव हारि जावो तो सरा दोष अपणी पार्टी का कार्यकर्ताओं पर कन लगाये जाण चयेंद।
७-चिराग तले अन्धेरा मा दोषारोपण का दिया - ये कोर्स मा हम सिखौंदा कि दिल्ली मा या कै बि राज्य की राजधानी मा जथगा बि अपराध ह्वावन तो  नक्सलवाद , माओवाद, आतंकवाद , सम्प्रदायवाद या विदेशी ताकतुं  पर कै तरह से दोषारोपण करिक  जुमेदारी से बचे सक्यांद।
८- त्यार पड़ददान पाणि भीड़ी छौ तो मीन त्वै  थंचकाण - आपन भेड़िया-मेमने की कथा त पौढि होलि। इं कथा को गढ़वाळीकरण च बल एक बिठ (सवर्ण ) का हाथ कै तै पिटणो खयाणा/ खुजल्याणा छा वैन एक हरिजनौ नौनु घपेल  दे अर कारण बथै बल चूंकि ये हरिजनों पड़ददान कबि पाणि धार भीडि छौ त मीन ये नौनु तै पीट। ये कोर्स मा हम सिखौला कि संस्था , संस्थानों मा अपण गलत्युं दोष निवर्तमान अधिकारियों पर याने अपण दोष कै हिसाब से इतिहास पर लगाण चयेंद।
९- जै डाळि फल खावो वीं डाळि  तैं इ गाळि द्यायो - ये कोर्स मा सीख च बल जै बि संस्थान मा काम कारो अपणो पापौ सारा दोष संस्थान पर डाल़ो जन कि मनमोहन जी कोलेसन सरकार का स्वामी छन अर सरा दोष कोलेसन  पर लगाणम उस्तादुं उस्ताद छन।           
१० -कबि बि जुमेवारी नि लीणों तरीका -ये सैलेबस से हम सिखौला कि तुम से कथगा  बि भयंकर आग लगि जावो कबि बि अपण गलती नि मानण, अफु तैं जुमेवार नि बथाण  अर तर्कसहित  सरा  दोष अपण विरोधियों पर (खासकर जु समणी नि ह्वावो या जै तैं खुज्याण नामुमकिन ह्वावो ) लगै दीण चयेंद
११ -दंगऴयाण से पैल भगार लगाणौ कौंळ - ये कोर्स मा हम अमेरिकी अधिनायकवाद का क्लिप दिखैक पढौला कि दुसरो देस पर कब्जा करणों बान पैल कै तरां से कै बि देस पर दोषारोपण कै हिसाबन करण चयेंद कि संयुक्त राष्ट्र बि अमेरिकी अधिनायकवाद को समर्थक ह्वे जांद।
इनि निर्द्वंद दोषारोपण करणों सौ से बिंडी तरीका हम शिक्षार्थियों तैं सिखौला।
व्यवहारिक ज्ञान सिखाणों बान हमर कोलेबोरेसन राजनैतिक पार्टी अर ब्यवसायिक घरानों दगड़ च। हमर संस्थानम दोषारोपण का विशेषग्य नेता, अधिकारी  अर उद्योगपति विजिटिंग प्रोफ़ेसर छन।
 

 

Copyright @ Bhishma Kukreti  18/06/2013   
(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

Bhishma Kukreti

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अछूतुं ड्यार  प्याड़ा-पक्वड़ि खाण मा दिक्कत कब आंद?

                    चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
 
(s = आधी अ, आधी अ//s= क, का , की,, कु के ,को आदि)

सन 1998  (दिल्ली )
जॉर्ज - ये जी , शरद जी! मि तैं सोरग से भि आनन्ददायक ,  सवादी खाणौ खसबू आणि च भै।
शरद - हाँ जॉर्ज जी इन लगणु च कखि राजसी , राजबीजी (राजबंशी ) भोजन बणणु च .
नीतेस  - हाँ मि तैं बि गंध आणि च आस पास राजशक्ति , राजयचर्स का बल पर सुपाच्य , दीर्घ  आनन्द दायक रसोई बणी च राजसी भोजन की अति -सुगन्धित सुगंध से मेरी तो भूख बढी गे।
जार्ज अर शरद - चलो जरा पता लगाये जाव कि कख राजसी रसोई बणणु च। जरा हम बी राजसी भोजन को मजा लींदा धौं।
नीतेस  - हाँ कब तलक राज विरोध को वजै से सूखा  भोजन करे जावो  ?
सबि -चलो दिखे जावो कि कख राजशाही भोजन उपलब्ध च अर अब त हम सब राजसी   भोजन का बान भोजन -व्यग्र छंवाँ
शरद - हैं यो तो भाजापा को राजसूयी यज्ञs  फौड़(सामूहिक भोजन खाना) च। अरे इख इथगा पकवान?
जॉर्ज - इन लगणु च 182 मंडल जितणो उपलक्ष मा भाजापा वाळुन यू  राजसूयी यज्ञ उरायुं च।
जॉर्ज - हाँ! नीतेस !  देखो राजसी  सोना चांदी के थाऴयूँ मा राजभोग सज्युं च।
शरद - हां राजसी कुर्सी लगीं छन।
नीतेस - राजसेवक, राजकर्मचारियों, राजभ्रितों की फ़ौज ततप्रयता से सेवा करणा छन।
शरद -राज-भाइयों वास्ता गगनचुम्बी वातानाकूलित  राजमहल बण्या छन।
जॉर्ज - राजभोगियों बान इना उना जाणो बान रथ , चित्ररथ अर बनि बनिक उड़न खटोला छन।
नीतेस -अहा राजभोज  मा सत्ता को भात, राजगद्दी की दाळ, राजत्व की भुजि, राजलक्ष्मी को छौंका ,अधिकार युक्त मलाईदार खीर -मिठाई , पावर /शक्ति नामक  घी मा  बण्या पूड़ी-भूड़ी-पक्वड़ी आदि आदि।
शरद - अरे भै पण पता च हम तो राजनैतिक सवर्ण छंवां अर भाजापा तो  च निखालिस अछूत च। भाजपा पर भिड्याणो अर्थ च हमन सेक्युलर नि रै जाण।।
जॉर्ज - शरद  जी ! तुम बि ना पुरण समाजवादियों तरां पागलपन की बात करदां। अरे भाजपा अछूत च तो क्या ह्वाइ खाणक त राज्भोग्या च कि ना अर फिर वो द्याखदि महान राजनैतिक सवर्ण ममता बैणि , वरिष्ठ सेक्युलर सवर्ण करुणानिधि, जवान सेक्युलर -सवर्ण नवीन पटनायक,सेकुलरधिराज  चन्द्रा बाबू नायडू अर खानदानी सेक्युलर फ़ाउख अब्दुला सबि त राजभोग, राजसी भोजन सपोड़णा छन।
शरद - नीतेस ! क्या हम सेक्युलर सवर्णों वास्ता अछूतों ड्यार भोजन खाण वाजिब च?
नीतेस - अछूतों ड्यार खाणक खाण   बरोबर बाजिब च। जब अछूतों से हम तै सत्ता युक्त भात मिलणु च , शक्ति दायक रसमलाई मिलणि च . अधिकार युक्त मावा मिलणु च, अछूतुं इख भोजन करण से राजगद्दी मिलणि च त अछुतुं इख खाणक खाण, पाणि पीण अर सीण मा झिझक नि होण चयेंद। चलो भाजापा जन अछूत को राजसूयी यग्य मा राजभोग, राज-सत्ताभोग , राज-शक्तिभोग , राज-अधिकारभोग , को आनन्द लिए जावो।

मई , सन 2013 (पटना )
     
शरद - नीतेस जी ! इ क्या बुलणा छंवाँ/ बल भाजापा जन अछूत को दगुड़ अब नी सयाणु च, तुम तैं अब ये अछूत से घीण लगणि च? ये अछूतौ साथ से तुम तै फगोस (दम घुटना ) हूणि च? यु अछूत अब तुमकुण असह्य ह्वे ग्यायि?
नीतेस - हाँ! अब ये अछूत  से हम तै कुछ नि मिलण तो ये अछूत तैं छुड़ण माँ ही फायदा च। यु राजनैतिक अछूत हम तै अब राजसुख नि दे सकदो। यु अछूत चुस्युं आम च।  जावो तुम प्रेस कौन्फ्रेसं मा ब्वालो कि हम तो सेक्युलर स्वर्ण छंवाँ अर हम इन अछूतों दगड़ नि रै सकदवां। जोर से ब्वालो, घ्याळ लगैक ब्वालो। जंघड़ ठोकिक चिल्लाओ   बल   जु हम यूं अछुतुं भिड्यूं पाणि प्योला तो जनता तै  ह्वे जाला।
शरद - ह्याँ पण पिछ्ला सत्रह सालों से मि बुलणु रौं , तुम बि बुलणा रौंवा कि भाजपा एक सेक्युलर  सवर्ण च अर अब लोगुं तै कनकै बुथ्याण कि भाजपा धर्म निरपेक्ष पार्टी नी च?
नीतेस - झूट को अडसारो से लोगुं तैं कब्जा मा कारो ।  मिथ्या राग , असत्य बाणी की झंझरी (जाळ ) से जनता को फंसाओ। बेशरमी बतचल; बेहया बकवास, निर्ल्लज बखानो से लोगुं तैं बस मा कारो। बेहयाई, बटेरबाजी  की बातो से जनता तैं बेवकूफ, मुर्ख  बणाओ; जनता तैं भ्कावो ।औरुं पर तोहमत को ताड़ मारो।     
 
 


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