Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 359826 times)

Bhishma Kukreti

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 गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 

                                  आपदा बिभाग मा आपदा

                         चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
 
(s = आधी अ, आधी अ//s= क, का , की,, कु के ,को आदि)

मि -आपदा बिभाग का फौंददार (सर्वोच्च अधिकारी ) जी! समनैन!
आपदा बिभागौ  फौंददार- समनैन जी समनैन! जु बि बुलणाइ चौड़ ब्वालो मीन आज बीस टीवी चैनलों मा रेन डिजास्टर पर बहसों मा हिस्सा लीणों जाण। 
मि -आप तो भूतपूर्व आइऎस अधिकारी छन ना जो पैल सरकारी दल तैं फैदा पौंछाणा ऐवज मा  पोस्ट रिटायरमेंट स्कीम का तहत रिटायरमेंट का बाद भी चार पांच जगा बड़ा बड़ा पदों पर रैन?
आपदा बिभागौ फौंददार-हाँ तो न्यायिक प्रक्रिया हिसबन सब सही च।
मि -आपक उमर क्या होलि फौंददार जी?
आपदा बिभागौ फौंददार- होलि क्वी अस्सी का करीब।
मि -एक बात बथावदि तुम इथगा जोरन किलै सुसकरी भरणा छंवाँ?
आपदा बिभागौ  फौंददार- अरे तुम तैं क्या पता! चार दिन तलक पैल तलक हम उत्तराखंड का जंगळु मा आग बणाक से युद्धस्तर पर लड़णा छया अर सि आज बिजोग पडि गे सरा उत्तराखंड मा बज्जर पड़ण से,बद्दळ फटण से, बरखा आण से, भळक आण से हमर आपदा विभाग आपदा मा ऐ ग्यायि।   
मि -पण आपन अग्रिम सूचना त दीण छे कि भैरों! जोर की बरखा आण वाळ च।
आपदा बिभागौ फौंददार- बरखा सूचना दीणो काम  हव्वामान विभागौ अर सूचना विभागौ काम च।
मि -त ह्व्वामान विभाग अर सूचना विभागन रैबार त भेजि होलु कि जोर की बरखा होलि!
आपदा बिभागौ फौंददार- हां अनाधिकारिक तौर पर हवामान  विभाग अर सूचना विभाग से सूचना ऐ छे कि जोर की बरखा होलि।
मि -अनाधिकारिक तौर पर सूचना?
आपदा बिभागौ फौंददार- हां! हवामान विभाग अर सूचना विभाग से हिंदी, उर्दू  अर अंग्रेजी मा मई मैना मा एक सूचना ऐ छे कि उत्तराखंड मा जून मध्य मा भंयकर बरखा ह्वे सकद च।
मि -तो याने सूचना ऐ छे कि जोरौ बरखा होलि।
आपदा बिभागौ फौंददार-नही या सूचना अधिकारिक सूचना नि माने जै सक्यांद।
मि -यी क्या बुलणा छंवां कि अधिकारिक सूचना नी च?
आपदा बिभागौ फौंददार-किलै कि उत्तराखंड मा संस्कृत  बि राजकीय भाषा च अर नियमुं हिसाबन यदि संस्कृत मा सूचना नि आओ तो हमारो हिसाबन वा सूचना , अधिसूचना आधिकारिक सूचना -अधिसूचना नि माने जै सक्यांद।
मि -ह्यां पण बरखा से इथगा जान माल को नुकसान ह्वे गे अर इनि नुकसान त अब हर साल हि होणु च। फिर आपदा प्रबंधन मा इथगा ढिलै किलै?
आपदा बिभागौ फौंददार- नै नै ! हम ढीला नि छंवाँ। मीन पुरण फ़ाइल टटोळिन त पायि कि हमर विभगागन तब जु  दुसर विभागौ तौळ छौ सन तिरपन , सन तिरसठ , सन तिरासी, सन तिराँणबे, सन तीन मा सूचना दे आलि छे कि केदारनाथ मा दूकान , होटल नि बणाओ, नि बणाओ . पण कैन बि हमर बात नि सूणि अर ना हि अब सुणणा छन। अर अब जब उजड़-बिजड़ ह्वे गे तों ....     
मि -औ त तुमन अपण विभाग तैं बचाणो पूरी  व्यवस्था कौरि आल।
आपदा बिभागौ फौंददार- जी हाँ
मि -पण क्वी त जुमेबारी ल्याल कि ना ? कि हर साल यो डिजास्टर होणु च तो यांक जुमेवार क्वा च?
आपदा बिभागौ फौंददार- चूंकि आपदा प्रबंधन एक संजैत काम च तो सामूहिक जुम्मेवारी च अर  सामूहिक जुम्मेबारी ह्वावो उख क्वी बि जुम्मेबार नि होंद। 
मि -जै हो आपदा विभाग की!


Copyright @ Bhishma Kukreti  20/06/2013   
(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

Bhishma Kukreti

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 गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
 सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ   
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं 
                       

                                मुर्दौं अळग  बैठिs स्व -प्रशंसा गीत गाण

                            (मुर्दों के ऊपर बैठकर  स्व -प्रशंसा के गीत गाना )
 
                  चबोड़्या - चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
 
(s = आधी अ, आधी अ//s= क, का , की,, कु के ,को आदि)

घरवळिन तून दींद बोलि- तुम से भलो तो वो सर्वा नन्द ही ठीक छौ। उ त बुबा जिन ही ना बोलि दे निथर सर्वानन्द का बुबा जी ड्वाला ख़ुद उठाणो तयार छा।
मीन पूछ - अरे यू सर्वानंद क्वा च?
म्यार बड़न जबाब दे - पापा ये देहरादून में हैं। नेता हैं। नेतागिरी से पहले आगरा पागलखाना में थे।
मीन घरवळि पूछ - त फिर कौरि लींदी वै पागलौ दगड़ पलाबन्द।
घरवळि- बुबा जी बड़  जाति  बामण बोलीक पागलौ  दगड़ म्यार ब्यौ करणों तयार छ्या पण टकों ब्यौ करणों तयार नि छया।
मि -  टकों ब्या किलै?  दानौ ब्यौ  मा क्या खराबी छे?
म्यार नौनु -पापा आप समझे नही उस समय सर्वानन्द अंकल पागलखाना में ही थे।
घरवळि-डाक्टर सर्वानन्द तै द्वी दिनों छुटी दे दींदा त आज मीन यी दिन थुका दिखण छौ
मि - ह्यां आज शादी तीस सालौ बाद त्वे तैं पागल सर्वानन्द की याद किलै आयि?   
घरवळि-दिखणा छा विजय बहुगुणा  जिठा जीन कथगा बड़ो , बिगरैल बिज्ञापन दे।
मि - तो?   
घरवळि- तो क्या जु तुम बि जसपुर ग्राम सभा का प्रधान हूंदा त तुम बि बड़ो, बिगरैल विज्ञापन दींदा ...
मि - अरे मि कनकैक ग्राम प्रधान बौण सकुद छौ। चालीस साल ह्वे गेन मीन गाँ नि देखि तो ग्राम प्रधान बणन क्वी भलि बात च?   
घरवळि-जौं  विजय जिठा जी तैं यी बि नि पता कि गौळ मा अर सीढ़ी मा क्या अंतर होंदु अर इन मनिख  उत्तराखंड को मुख्यमंत्री बौण सकदन तो तुम अपण गाँवक प्रधान किलै नि बौण सकदा?
मि -  ह्याँ पण जु मि गांवक प्रधान बौणि बि जांदु त क्या ह्वे जांदु?   
घरवळि-कनो ? गाँ मा ये  साल शताब्दी की बड़ी बरखा , पांच शताब्दी को बड़ो भळक (भूस्खलन) नि आंद क्या?
मि -  तो ?
घरवळि-तो क्या? दसियों पगार उजड़दा, कुछ मकान भेळ जोग हूंदा,   कुछ लोग मरदा, कुछ डुबदा, मवेशी (पशु ) मरदा, बड़ो भारी नुकसान होंदु।
मि -मतलब तू चांदी बल म्यार ग्राम प्रधान बणन पर गान पर इथगा विपत्ती  आंदी?   
घरवळि-चूंकि तुमर समज मा तो आंदो ना की पहाड़ की ईं समस्या से कनै निबटाये जावो तो फिर राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार की मेहरबानी, सहायता  से कुछ लोगुं तैं , कुछ मवेस्यूं तैं बचाए जांद
मि -  अरे क्या बखणि छे? 
घरवळि-फिर मुरदौं तै कट्ठा  करे जांद , मर्याँ मवेस्युं तैं बि एक जगा कट्ठा करे जांद
मि -  फिर ? 
घरवळि-फिर तुम मर्यां म्वेस्युं  अळग खड़ा होंदा अर अपण प्रशंसा करदा कि तुमारो  प्रशासन मा इथगा मवेस्युं तैं बचाए ग्यायी अर इथगा मवेस्युं तैं ऊंका धर्मानुसार मुखाग्नि दिए जाणि च।
मि - क्या मवेस्युं तैं धर्मानुसार मुखाग्नि?   
घरवळि- फिर तुम मुर्दौं चिता अळग खड़ा ह्वेक अपण बडां  (प्रशंसायुक्त गीत ) गांदा कि तुमर प्रशासन कथगा कामयाब प्रशासन च।
मि -ह्याँ पण?   
घरवळि-फिर तुम मुर्दौं चिता अळग  अर मर्यां म्वेस्युं अळग स्व-प्रशंसा गीत गांद फोटो खिचांदा।
मि -  ह्याँ पण इन दुःख की घटना मा स्व-प्रशंसा गीत ?
घरवळि-फिर तुम यूँ फोटो तैं विज्ञापन मा बदलदा अर उत्तराखंड का हरेक समाचार पत्रुं मा विज्ञापन छ्पवांदा अर विज्ञापन की हेड लाइन होंद -मैंने और मेरे प्रशासन ने कमर कस कर प्राकृतिक आपदा से लड़ा है
मि - मि कबि बि ये ग़मगीन माहौल मा स्व-प्रशंसा का विज्ञापन नि दींदु।   
घरवळि-हाँ , पण म्यार सर्वानन्द जरुर इन स्व-प्रशंसा का विज्ञापन दींदो।
मि - हाँ अवश्य! पागल ही इन दुखी वातवरण मा अपण प्रशंसा का विज्ञापन छपवै सकुद 
घरवळि-अरे ! तुमर मतलब च कि विजय बहुगुणा जिठा जी पागल छन जौन ब्याळी अपण प्रशंसा का विज्ञापनों मा करोड़ों रुपया खर्च करिन
मि -हाँ ! इन विपदा समौ पर जू बि  इन स्व -प्रशंसा का विज्ञापन द्यावो  वै तैं क्रूर पागल ही बुले जालु


Copyright @ Bhishma Kukreti  26/06/2013

Bhishma Kukreti

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सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं

             बिंडीबरखण (अतिवृष्टि)  जोर-जोर से  किलै हंसणि च ?

                 भीष्म कुकरेती
 
(s = आधी अ, आधी अ//s= क, का , की,, कु के ,को आदि)

निबरखण(अनावृष्टि) - क्या बात  ?  हे ! अतिबरखा दीदी! उन त जब बि गैरभारत देसम त्यार तड़क्वणि बरख्वणिs  बगाण से मनिख-जानवर  मोरदन अर नुकसान होंद त तो तू फकोरिक रूंदि अर अंसदरी बगांदि पण भारतम जब बि तड़क्वणि बगाण  से नुकसान होंद तो तु  से हंसण बिसे जाँदी? क       
बिंडीबरखण - भुली तू बि ना! कबि तू ह्वे या मि ह्वे हम तै प्राण्यूँ मारिक कबि सुख मिल्दु क्या?
निबरखण - हाँ मि तैं मनिख कथगा बि गाळी द्यावन पण मि थुका चांदु कि दुन्या मा अकाळ पोड़ु। भेमाता (सृष्टि रचंदेरि) दुसर रूप छंवां हम तो अपणि बच्चौं नुकसान थुका चांदा हम! ह्याँ पण तू तो भारतौ तरफ देखि इथगा जोर से हंसणि  छे कि मै लग राजस्थानौ अर कच्छौ बळु  मैदानुं मा बरखण वाळ छे।
बिंडीबरखण -हाँ हंसणै बात त च। जब बि भारतम मेरी वजै से इगड़-बिगड़ होंद त वांक बाद मि अपण हंसी रुकण से बि नि रोकि सकुद।   
निबरखण -वी तो मि पुछणु छौं बल सि अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया , कनाडा मा तेरि वजै से इजड़-बिजड़ होंद पण तू उख त कतै नि हंसदी? बस भारतम ऐक पता नि तू किलै लौफिंग गैस सूंगि लींदी धौं? 
बिंडीबरखण  -ह्याँ हे भुलि !  मि  जोर जोर से इलै थ्वड़ा  हंसणु छौं कि भारतम बगाण से इथगा नुकसान ह्वे ग्यायि?
निबरखण -तो?
बिंडीबरखण -मि त रगड़ -बगड़ का बाद भारतम जु नाटक हूंदन वां तै देखिक हँसणु छौं।
निबरखण -जनकि?
बिंडीबरखण -जनकि क्या? भारत को टीवी मीडिया को हाल देखि लेदि। आसाम मा म्यार बिंडीबरखण से  इथगा बड़ी बाढ़ आयि। पण मीडिया दिल्ली मा द्वी बूंद पाणि बरखण से मनिखौं करतूतों से शिवाजी नाळा  औरंगजेब नाळा  आपस मा क्या मिलेन कि उख पर सुबेर बिटेन अधा रात तलक इन किराणु च बल जन बुल्यां ड़िल्ली अछेकि डूबि गे धौं अर कै तैं बि आसाम की  नि पोड़ि च।
निबरखण-हाँ भै कुनगस च हाँ भै यूं मीडिया वाळु  कुण बि! मध्य प्रदेश को बिगच्यूं राजनीतिज्ञ राघव जी पर डिग्गी बाबू , हौज बाबु,  ढंडि  जन नेताओं की बकबास सुबेर बिटेन दुसर दिन तलक मजा लेकि सुणाणु -दिखाणु राइ पण आसाम बाढ़ पर खालि टिकर न्यूज (तौळ की पंगत) दे , यूँ मीडिया वाळुन
बिंडीबरखण- यी त मि बुलणु कि  ...
निबरखण- हे दीदी! अब त मीडिया टीआरपी को गुलाम च। भारत को चौथु खम्बा तैं आसाम या उत्तर पूर्व की चिंता  उथगा नी च जथगा टीआरपी चिंता रौंदी।
बिंडीबरखण- मीडिया को यो ही सुविधा भोगी चाल चलन को नाटक देखिक मी तें हौंस आँदि।
निबरखण- अर ये दीदी! उत्तर प्रदेश माँ त्यार बरखण से जब भंयकर बाढ़ आयि तो तू खत खत,  अट्टाहासी हंसी किलै हौंसी?
बिंडीबरखण-मीन ब्वाल नी च की मि यूँ भारतीय राजनीतिज्ञों नाटक देखिक इथगा जोर से हंसणु छौ।
निबरखण-नाटक?
बिंडीबरखण- हाँ नाटक ना तो क्या? सन सैंतालीस बिटेन उत्तर प्रदेश मा भयंकर बाढ़ आंदी अर हर साल उत्तर प्रदेसौ मुख्य मंत्री एकी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों हवाई दौंरा करणा रौंदन, दौंरा बाद अपण आंख्युं पर प्याज लगैक आंसू लांदन , राहत का नाम पर लोगुं तैं भीख बाँटी दींदन अर फिर हैंक बसगाळ तलक से जांदन बौंहौड़ा से जांदन। अरे हर साल हवाई यात्रा को नाटक देखिक मि तैं हौंस आंदी। अब देख हाँ इनि अब बिहार मा बि हूण उखाक मुख्यमंत्रीन अब बाढ़ का बाद हवाई यात्रा करण पण फिर कबि बि बाढ़ रुकणो इन्तजामौ बारा मा नि सुचण।
निबरखण-हाँ या बात त सुचणो की ही च कि हर साल यूँ प्रदेशों मंत्री -संतरी  हर साल बाढ़ देखिक बि बाढ़ रुकणो  काम नि करदन।
बिंडीबरखण-इन मा त मि तैं हंसी नि आलि कि ना?
निबरखण-हाँ अब त मि तैं बि हौंस आण बिसे ग्यायि।
बिंडीबरखण-कनो क्यांक याद आयि कि त्यार बि ज्यू हंसणो बुल्याणु च ?
निबरखण- वु  क्या च, बहुजन समाज  पार्टी का नेता समाजवादी पार्टी पर अभियोग लगाणा छन कि समाजवादी पार्टी बाढ़ रुकणो बान कुछ नि करणी च।
बिंडीबरखण-हाँ नाटक करणा छन। अरे सि एक साल बि नि ह्वाइ यूँ तैं राज छुड्या अर हैंकि पार्टी तैं पुछणा कि तुम क्या करणा छंवां अर बिसरि गेन कि अफु यूँन पांच साल तक राज कार अर बाढ़ रोकथाम का बाराम कुछ नि कार। .
निबरखण-अर जब समाजवादी पार्टी विरोधी पार्टी हूंदी त इनि नाटक करदी जन बहुजन समाज पार्टी समाज वादी पार्टी पर भगार लगाणि च
बिंडीबरखण-ओ द्याख नी तीन उत्तराखंड मा भारतीय जनता पार्टी को बि राज रायि अर अब मनिखों गलती से इथगा जान माल को नुकसान ह्वे तो कथगा बेशरमी से कौंग्रेस पर भगार लगाणि च?
निबरखण- स्वांग करण मा त कौंग्रेस बि कम नी च।
बिंडीबरखण-ह्याँ कौंग्रेस त नाटकबाजूं ब्वे च। जख सबि पार्ट्यु तैं एक ह्वेक आपदा संभाळण चयेंद छौ उख यी लोग गिगडुं तरां एक हैंकाक टांग खैंचणा रौंदन। इन माँ पैल त मि तैं यूँ राजनैतिक नाटकबाजुं पर घीण -घृणा आन्दि अर पैथरां गुस्सा मा हौंस आंदि। 




Copyright @ Bhishma Kukreti  11/7/2013

Bhishma Kukreti

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      बड़ि जीमण (महाभोज) की तैयारी


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]



                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

कवान गरुड़ तैं ह्यूं कांठा (हिमाला) तरफाँ जांद द्याख अर पूछ," क्या हे गरुड़ काका कना दौड़?"
गरुड़न बोलि," कनु कना? अरे उत्तराखंड मा इथगा उजड़-बिजड़ हुंयु च तो उना इ जाणु छौं। ह्यूं काँठाऊं छ्वाड़  बड़ि- जीमण होलि "
कवा - ये गरुड़ काका तेरी आंखि बिंडी दूरदिख्वा छन मि तैं   बि महाभोज मा  जा।
गरुड़ - चल जरा पैल वीं धार मा जौंला। उत्तराखंड को जायजा ल्योंला अर तबि उत्तराखंड पुटुक छिरकला ( प्रवेश करला) ।
सबि पशु -पक्षी - गरुड़ जी हम बि तुमर दगड़ बड़ि- जीमण खाणौ आणा छँवां।
गरुड़ -ल्या उच्चि धार ऐग्याइ। इखमन पैल उत्तराखंड को हाल द्याखो अर फिर उत्तराखंड पुटुक छिरको याने प्रवेश कारो।
बांदर - ये गरुड़ बाडा ! ये उ छिरक्वा  बांदर जन क्या जि छन  हरेक इमदाद से भर्यां ट्रकुं  तैं कूण्या जिना उल्टु बाटु दिखाणा छन ?
गरुड़ - ह्याँ ! उ छिरक्वा  बांदर नी छन। वो बदमाश, लंपट अवसरबादी तथाकथित सामजिक कार्यकर्ता छन। वो दुनिया भर से लोग  इमदाद हिमाला लिजाणा छन तो वो लम्पट लोग भौत सा लोगुं तैं बेवकूफ बणैक या धमकी देकि इमदाद सणि अपण ड्यार लिजाणा छन।
बांदर - हाँ तबि त मि सुचणु कि छिरक्वा बांदर इथगा बेशरम लम्पट नि ह्वे सकदन।
उळकाणु - वै गरुड़ नना! यी दिन दुफरा मा भूत-पिचास कनकै हिटणा छन।  भूत-पिचास त रत्यां हि भैर आंदन?अर  इ भुत पिचास खरे बोलि (दलालों की गुप्त भाषा) मा किलै बचऴयाणा छन?
गरुड़ - ये उल्लु का पट्ठा यि भूत-पिचास नि छन।
उळकाणु - तो?
गरुड़ - यी समौ गैरफैदा उठाण वाळ काळाबजारी ब्योपारी छन। आपदा से फैदा उठैक इ क्षुद्र, क्षुद्रबुद्धि , पीठ पैथर क्षुर(चकु/उस्तरा). खंग  लेक  खुलेआम खूब काळाबजारी करणा छन।
उळकाणु - हाँ तबि त मि बुलुद बल यिन खटरागी, खराब, खरगोदी (इंद्रजाल युक्त ) , खलयुक्त, खबीसों  काम  खुलेआम भुत -पिचास त ना मनिख हि कौर सकुद।  खुनस आंदी यूँ खुरूकरों (ध्वंसकारी), खुभर्या  (जो उपद्रव हेतु घूमते हैं ), जटनाकारों (धोखा देकर अधिक मूल्य लेने वाला)   काळाबजारी ब्योपार्युं  पर।
जुगना बगुला  - ये दूरदिख्वा  गरुड़ मौसा! यी योगी लोग कबि मुंडासन (शीर्षासन) त  कबि खटाँगासन (साष्टांग) मा क्या योग करणा छन?
गरुड़ - ये पक्षियों योग गुरु बगुला भगत ! यी जोगी नि   छन यी त चपड़सि से लेकि उच्च पदेन  अधिकारी तक सरकारी कर्मचारी छन।
जुगना बगुला - अच्छा त अब सरकारी कार्यालयों मा कर्मचारी फाइलों मा सीणो जगा योग करदन क्या?
गरुड़ - ना ! ना ! यी सरकारी कर्मचारी अपण अपण पवा भिड़ाणो बान  मथि वाळ तैं साष्टांग प्रणाम  करणा छन।
जुगना बगुला - वाह सरकारी कर्मचारी अब अनुशाशितह्वे गेन?
गरुड़- अबे बेवकूफ यी अधिकारी अनुशाषित नि ह्वेन बलकण मा अपण ट्रांसफर उत्तराखंड नव निर्माण जन मलाईदार विभाग मा करणों जुगाड़ भिड़ाणा छन।
जुगना बगुला -हाँ तबि त बुल्दु मि कि सरकारी कर्मचारी कनकैक जलप्रलय , जनमरक (महामारी )  का बाद  यी जंघामथानी (व्यभिचारणी), जकड़बंद -प्रशासन  (रेड टेपिज्म ). अळगसि, जड़    चरित्र छोड़िक  अधिकारी आज जँगरैत (परिश्रमी), जीवंत, ज्योतित  किलै दिख्याणा छन। सबि खव्वा-पिव्वा विभाग मा जाण चाणा छन।
भालु   -गरुड़ ममा ! यी भग्वया रंग का  अजीब सा बीसियों  रिक -भालु  क्या करणा छन। लड़णा छन,  एक दुसरो बाळ झंझ्वणा छन,एक हैंक पर दांत पुड़ाणा छन, नगुंन एक हिंकाक मॉस -ल्वै गाडणा छन, मुंड  काटणा छन। 
 गरुड़- यी भग्वया रिक नी छन। यी धर्मगुरु छन।  क्वी शंकराचार्यों भेष भूषा मा च, क्वी पन्तजली बण्यु च, क्वी रावल का भेष माँ च, क्वी कै बैरागी अखाड़ा को धर्माधीस को सिंघासन माँ विराजमान च।  यी सबि प्रलयोपरान्त का महाभोज को भागिदारी बान  बकर-कसाबुं तरां (कसाई ) एक हैंकाक दगड़  वाक् जुध से लेकि जुत्यो -कतल्यो  करणा छन।
गुराउ - ये गरुड़! यी कुछ लोग सामजस्य चौक मा आख्युं पर  पट्टी बांधिक अर कंदुड़ो पर कनटोपा लगैक  अंदादुंद तलवारबाजी अर बंदूकबाजी करणा छन।
गरुड़ - ये भविष्यद्रष्टा  गुरा! यी आज की बात नी च भोळ की बात च। यी एक तरफ घोर पर्यावरणवादी छन अर हैंक तरफ घोर विकासवादी छन। यी एक हैंकाकि बात सुणणो अर दिखणो कोशिस इ नि करदन बस अपणो ही राग मा एक हैंक पर आरोप -प्रत्यारोप की तलवार चलांदन , ग्वाळा चुलांदन।
स्याळ - हे गरुड़ भणजो! यी मि क्या दिखणु छौं। शेर, बाग़, चीताऊँ। लकड़बघावुं  ड्यार स्याळ  रत्याँ संदकुडों पर मांश लिजाणा छन। इन अनहोनी कनै होणि च?
गरुड़ -मामा ! वो जानवर नी छन वो शेर नी छन बलकण मा सरकारी दल का राजनैतिज्ञ छन , वो बाग़ नि छन बल्कि विरोधी नेता छन, सी चीता नि छन प्रशासनिक अधिकारी छन , अर जू त्वै तैं लकड़बघा दिख्याणा छन वो पावर ब्रोकर याने दलाल छन। जु त्वै तैं स्याळ दिख्याणा छन वो स्याळ नि छन वो ठेकेदार छन। खरबों रुपयों नवनिर्माण होलु त ठेका होला ही। तो ठेकेदार रुपया लेक सरकारी नेताऊँ  , विरोधी नेताऊं,  अधिकार्युं, दलालूं तै अग्रिम घूस देकि भविष्य का ठेका पक्को करणा छन।
स्याळ -हाँ इन काम हम स्याळ नि करी सकदवाँ। यी त लालची मनिख ही इन लालच का  करी सकदन।
सौलु - हे गरुड़ दा! ये यी क्या! सि दसियों सौल एक हैंक पर सौलकंडा चुलाणा छन, आक्रमण करणा छन अर सौलकंडो से सौल त ना कीड़-मक्वड़ हताहत हूणा छन, आहत हूणा छन।  पण  हम सौल आक्रमण कबि नि करदां, केवल रक्षा हेतु सौलकंडा फेंकदां।
गरुड़ - भुला ! वो सौल नि छन। यी त सरकारी अर विरोधी दल का नेता आपदा प्रबंधन तैं लेकि एक हैंक पर आरोप -प्रत्यारोप का तीर छुड़णा छन। जू त्वै तैं कीड़-मक्वड़ दिख्याणा छन वो जनता च।   अर नेताओं का आरोप प्रत्यारोप से जनता लहुलुहान होणि च।
कुत्ता -बिरळ - हम तै एक अजीब सी घटना दिख्याणि च। भैर चौकम त कुत्ता-बिरळ एक हैंकाक दगड़ जी जान से लड़णा छन। पण फिर यी एक हैंकाक चिर-बैरि कुत्ता-बिरळ भितर जांदन अर एकी थाळिउंद बोटी, रान , कछ्बोळी, भितर्वांस चटकाणा छन? इन अजूबा , अचरजण्या घटना क्या होणु च।
गरुड़- याँ ये कुत्ता-बिरळ ! जु तुम दिखणा छंवाँ वु कुत्ता-बिरळ नि  छन। वो  तो भौं -भौं पार्टी का नेता छन। भैर दिखाणो यी नेता लड़णो स्वांग करणा छन। अर भितर यि घूसखोरी -भ्रष्टाचार से जमा हुयूँ पैसा दगड़ि हजम करणा छन।
कुत्ता-बिरळ - ओ त यि राजनेता खांद दै एक ह्वे जांदन।
शेर -बाघ - अर यि मुलायम गद्दों मा सरौं कु खिलणा छन।
गरुड़ - अरे उ गद्दा नि छन। नरेन्दरी, सुषमाई अर मनीषी मायामोह से तुम तैं मुर्दा गद्दा दिख्याणा छन असल मा कॉंग्रेसी अर भाजापाई नेता जलप्रलय से मोर्याँ मुर्दों अळग तलवार युद्ध नृत्य   करणा छन।
शेर -बाघ - ये मेरि ब्वे। मुर्दों अळग युद्ध नृत्य!
जैंगण - अर यि मकानौ भितर कूण्या की पाऴयूँ पर दिवळ छिल्लुं से म्वासन यि कुछ लिखणा छन, यि कु छन?
गरुड़ - अरे यि उत्तराखंड का वर्तमान साहित्यकार छन। उत्तराखंड राज्य आन्दोलन मा यूँन जो मशाल जगै छे, वो मशाल त कबका बुझि गेन अर बुझ्याँ मशालों से जनता से दूर कूण्या की  दिवालों पर क्रान्ति का गीत -नाटक लिखणा छन।
जैंगण - हैं ? उत्तराखंड का साहित्यकार , बुझ्याँ मशालों से क्रान्ति का गीत अर नाटक लिखणा छन?
गरुड़ -हाँ
सबि पशु -पक्षी - नै नै! जख मनिख ही मैस्वाग याने नर ही नरभक्षी ह्वे जावो उख हम पशु -पक्ष्युं जाण ठीक नी च। . उत्तराखंड मा जलप्रलय का बाद बड़िजीमण मनिखों तैं हि खाण द्यावो।                               
                     




Copyright @ Bhishma Kukreti  13/7/2013

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

Bhishma Kukreti

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 जरा फेस बुक्याण अर ट्वीटर्याण सौरै (फ़ैलै) दे !

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]



                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती


फगुण्या काका अर मि हमउमर छंवाँ। फगुण्या काका हमर गांवक प्रधान च. उन फगुण्या काकाक स्कुल्या नाम पुष्कर च I   ब्याळि फगुण्या काकाक गां बिटेन फोन आयि I
फगुण्या काका- अरे भीषम कुछ फैदा नी च रै त्वे सरीका दगड्या ह्वेक बि मीडिया मा म्यार नाम नी च ।
मि- क्या बुलणु छे काका ? सि  एक हफ्ता पेल देहरादुनौ अखबार मा मीन खबर छपवै बल ' पुष्कर जी के नेतृत्व में बेडू तिमलुओं पर फल आये'
फगुण्या काका-हाँ उ त ठीक च. मि वै अखबार लेकि सरा गाँ मा घूमु अर  तैं वा खबर सुणै। अर म्यार विरोधी टुखण्या जौळि म्वास बणी ग्याइ।
मि- फिर वै से पैल मीन दिल्ली अखबारम समाचार छपवै छौ बल पुष्कर जी के कुशल और  नेतृत्व के कारण इस  साल पशुओं पर खुर्या नही हुआ I फिर लखनौ को एक अखबारम खबर प्रकाशित कराई कि पुष्कर जी के उर्जावान नेतृत्व में इस साल जंगल में अधिक च्यूं पैदा होगा क्योंकि सभी सुराई (सुल्ल)  काट दिए गयें हैंI
फगुण्या काका- भई मि यूं सब अखबारों तैं लेकि ब्लौक मा बि ग्यों। सबि नेता बुलणा छा कि म्यार जनसम्पर्क अभियान बड़ो बढ़िया च I
मि- अच्छा सूण! वो यूँ अखबारुं कुण विज्ञापन भेजि आलिन कि ना ?
फगुण्या काका-हाँ ! मनरेगा का ठेकेदारन देहरादून, मिड दे मीलक  ठेकेदारन चण्डीगढ़ अर सोलर पावर का ठेकेदारन लखनौ पैसा दगड़ सबि अखबारुं कुण बेस्ट कौम्पलीमेंट्स का विज्ञापन भेजि आलिन I
मि- अर वो कोटद्वारक अखबारुं कुण विज्ञापन भिजण छौ ?
फगुण्या काका- बस ग्रामीण नल योजना अर ग्रामीण भूमि संरक्षण योजना पैसा ठेकेदारुं तैं मिल्दा हि कोटद्वारक अखबारुं कुण पैसा दगड़ विज्ञापन बि पौंछि जाला। वो ठीक च टुखण्या न गाँ मा मि तैं अफखवा नाम से बदनाम कर्युं च पण मि त सौलै बांटी बाँटिक खाणम विश्वास करदो।
मि- हाँ वो तो ठीक च पण क्या करण ?
फगुण्या काका-करण क्या च ? अरे तू मुंबई मा रौन्दि अर मै पुछणु छे क्या करण ?
मि- ह्याँ कै अखबार मा खबर छपवाण ?
फगुण्या काका-अखबार ना म्यार फेस बुक अर ट्वीटर अकाउंट्स खुलणन I
मि- क्या ?
फगुण्या काका-कनो क्या ? म्यार फेस बुक अर ट्वीटर अकाउंट्स खुलणन अर क्या
मि- कै हिसाब से ?
फगुण्या काका- देख ! फेस बुक मा एक तो म्यार नामौ सही अकाउंट्स होलु।
मि-ठीक
फगुण्या काका- फिर एक अकाउंट पुष्कर फ्रेंड्स क्लब नामौ अकाउंट होलु इखमा मेरी प्रशंसा ही होलीI फिर इनि एक अकाउंट हूण चयेंद 'पुष्कर क्यों चाहिए' यु बि म्यार प्रशंसा गीतुं गीत गाल. अर एक अकाउंट हूण चयेंद 'फंडधुऴया नही चाहिए' I. 'फंडधुऴया नही चाहिए' मा रोज टुखण्या काट हूण चयेंद।
मि- यी क्या च काका ?
फगुण्या काका- अर इनि ट्वीटर का बि दस बारा अकाउंट्स खोलि दे. जखमा मेरी प्रशंसा होलि अर 'फंडधुऴया नही चाहिए' मा रोज बुरी तरां अर कबि कबि हंसी मजाक  मा  टुखण्या की आलोचना हूण चयेंद।
मि- काका या बात मेरी समज मा नि आणि च कि जै गां मा एक बि कम्पूटर नी च  उख फेस बुक अर ट्वीटर को जनसम्पर्क समाचारों क्या काम ?
फगुण्या काका- अरे म्यार धुर विरोधी वै टुखण्यान   फेस बुक अर ट्वीटर अकौन्ट्स खोलि आलीन अर हर हफ्ता कोटद्वार जैक फेस बुक अर ट्वीटर का  प्रिंट आउट लांदो अर गाँ वाळु तैं दिखांदो। फेस बुक अर ट्वीटर को कारण मि जनसम्पर्क मा पैथर ह्वे ग्यों।
मि-अच्छा ?
फगुण्या काका- हाँ! अर अब म्यार नाम पुष्कर या फगुण्या नि रै ग्यायि। अब सरा गाँ वाळ क्या क्षेत्र वाळ मेखुण 'अफखव्वा' बुल्दन।
मि-पण काका यी काम तो क्वी प्राइवेट कम्पनी ही कौर सकदी? मि त बस !
फगुण्या काका- हाँ त आजि क्वी कम्पनी हायर कौर अर म्यार अकाउंट्स फेस बुक अर ट्वीटर पर खोल. पैसा त्वे तैं मि भेजि द्योलु।
मि- काका ! क्या , भाजपा अर कौंग्रेस मा फेस बुक -ट्वीटर - मीडिया को  'फेंकू अर पप्पू'  युद्ध अब वै गाँ मा बि सौरी ग्यायि जै गाँ मा कम्प्यूटर ही नी छन ?
फगुण्या काका- हाँ ! यथो राजा तथो प्रजा !



Copyright @ Bhishma Kukreti  23/7/2013

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Bhishma Kukreti

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  देवी मन्दिक  बाटौ बान मारपीट


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

 
      वु गाँ बि आम गढ़वळि गाऊँ तरां च  I पांच जाति लोग बासिंदा छन - बहुगुणा, कुकरेती , जखमोला , नेगी अर शिल्पकार। डांड मा एक भौत इ पुरण जागृत देवी मन्दिर बि च  I  जन सबि गढ़वळि गाऊँम रिवाज छौ बल  शिल्पकारुंन मंदिर चीण अर आज बि मन्दिरौ मरम्मत करदन पण शिल्पकार लोग मंदिर भितर प्रवेश नि कौर सकदन।
               कुज्याण कति बीसी पैलाक बात च धौं I वूंक बूड ददा मा वूंक  ददान बथाइ छौ अर वूं तैं वूंक ददान बथै छौ बल बीस पचीस साखि पैल मंदिर तौऴ पैरी (भूस्खलन) पोड़ अर गां बिटेन देवी मंदिर जाणो रस्ता खतम ह्व़े ग्ये। जगता सगति मा बहुगुणाउंन अपण शिल्पकारुं मदद से गाँ बिटेन मंदिर जाणो एक बाटो बणाइ। दिखादेखी मा कुकरेत्युंन बि अपण शिल्पकारुं मदद से गाँ से मंदिर तलक हैको बाटो बणै दे त सकासौर्युं मा नेग्युंन अर जखमोलाऊंन बि अपण अपण अलग बाटो खौणि दे. अब जन कि रिवाज छौ शिल्पकारुं तै अपुण अलग बाटो खत्याणो अधिकार नि छौ तो वो अलग बाट नि खत्ये सकिन।
                याने अब गाँ बिटेन मन्दिर तलक जाणो चार  रस्ता छा. हरेक अपण अपण जाति रस्ता  ही मंदिर जांद . हरेक जाति लोग दुसर जातिक बाटो पर जाण पाप माणदा छा तो एक जाति वाळ दुसर जाति बाट जिना हिरदा बि नि छा , दिखदा बि नि छा. हरेक तैं मंदिर जाणौ अपण जाति रस्ता पर गर्व छौ. हरेक जाति मंदिर से जादा महत्व अपण जातिक बाटु तैं दींद छा. मंदिर तैं छाँवन या नि छांवन पण अपण जाति बाट  हर साल मरम्मत करदा छा.
 हरेक साल गाँ का  देवीक संजैत पूजा करद छा, संजैत भंड्वर करदा छा.एक साल एकि जाति लोक पूजा -भंड्वर करणों व्यवस्था अर खर्चा उठांदा छा. वै साल जागरी अर भौणेर आदि वीं जाति बणयूं रस्ता से मंदिर जांद छा जैं जाति पूजा बान पांति ह्वावो।
   एक साल हरिद्वार बिटेन एक बड़ो नामी महात्मा देविक संजैत पूजा मा शामिल हूणौ ऐगेन। गाँव वाळ पुळेणा (खुश , पुलकित,  आनन्दित)  छा कि वूंक  भाग खुलि गेन कि इथगा महान महात्मा वूंकी जग्गी मा शामिल हूणा छन. महात्मा बि गाँ वाळु देवी पर विश्वास देखि अत्यंत प्रसन्न छा.
        देवी मंदिर जाणौ बगत आयि तो बहुगुणाऊँन ब्वाल कि महात्मा जी हमार जाति बाट से मन्दिर जाला। कुकरेती चिढ़ गेन अर बुलण बिसेन कि -नै महात्मा जी तो कुकरेत्यूं बाटु से  मन्दिर जाला, जखमोलाउंन राड़ घाळि दे कि महात्मा  जखमोलाऊँ बाटो से मन्दिर जाला। नेगी लोग बि अडि गेन कि महात्मा जी मन्दिर नेग्युं बाटु ह्वेक मन्दिर नि जाला तो पूजा ह्वेइ नि सकद.
 सबि चांदा छा कि महात्मा जी ऊंको जातीक  रस्ता ह्वेक मन्दिर जावन।
पैल सब्युंन दलील दे . दलील से काम नि चौल तो वाकयुद्ध की बारी आई. वाकयुद्ध जब असफल ह्वे ग्याइ  तो गाऴयूँ बमगोळा फुटेन। गाऴयूँ स्टॉक खतम ह्वे तो लाठ्यूंन गाऴयूंक जगा ले. लाठि बि टुटी गेन त हरेक अपण अपण ड्यारन देवी बान धरीं खुखरी लेक ऐ गेन.
 महात्मा जीन पूछ भई समस्या क्या च त सब्युंन मंदिर जाणो अपण अपण बाटो प्रशंसा कार अर हर जातिन सिद्ध करणै कोशिस कार कि मन्दिर जाणौ  वूंकि जातिक रस्ता ही सर्वश्रेष्ठ रस्ता च.
महात्मा जीन बहुगुणाऊँ तैं पूछ ," क्या तुम तैं कुकरेत्यूं, जखमोलाऊं अर नेग्युं रस्ता पर हिटणौ अनुभव बी च ?"
बहुगुणा लोगुन साफ़ जबाब दे बल हम तै क्या जरूरत च कि हम दुसर जात्युं रस्ता पर जवाँ।
इनि महात्मा जीन सबि जात्युं वाळ तैं पूछ कि कै तैं दुसर जाति बाटु पर हिटणो अनुभव बि च ? त सब्युंक  जबाब छौ बल हमर जातिक बाटो ही जब सर्वश्रेष्ठ बाटु च तो हम तैं दुसर जातिक तुच्छ रस्ता पर जाणै आवश्यकता ही नी च.
महात्मा जीन ब्वाल बल ठीक च पैल हरेक आदिम देवी  मन्दिर जाणौ दुसर जातिक बाटौ अनुभव ल्यालु तो ही मि देवी मन्दिर जौलु अर महात्मा जी वापस चली गेन.
आज कुज्याण कथगा साखी बीति गेन धौं क्वी बि दुसर जातिक मन्दिर जाणौ बाटोक  अनुभव लीणो तैयार नी च अर अपण अपण जातिक बाटो से ही देवी मन्दिर जांदो। आज बि  हरेक अपण बाटु तैं ही सर्वश्रेष्ठ बाटु बथान्दो अर दुसर जाति बाटु तैं तुच्छ बतान्दो I


Copyright @ Bhishma Kukreti  24/7/2013

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कौमी एकता से डौर भौ

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

         वै क्षेत्र मा लोगुंक आपस मा मेल मिऴवाक दिखण लैक छौ I क्षेत्र मा असपताळ खुलणो बान सरा अडगैं (क्षेत्र) लोक एक ह्वे गेन I गांव, जाति, थोक, ख्वाळ छोड़ि अर इकमुठी (कट्ठा) ह्वेक सब्युंन एक ह्वेक अस्पताल की मांगक बान ब्लॉक अर जिला राजधानी गजे द्यायि। सरा जिला मा जगा जगा  क्षेत्र की सहकारिता, मेल मिऴवाक की चर्चा हूण मिसे गे. सर जिला मा ये क्षेत्र की जनता मा सहकारिता का लोक गीत प्रसिद्ध ह्वेगेन अर आण घऴयाण बिसे गेन बल ईं सहकारितान त चौदकोट को नाम पैथर धकेल देI   

       झक मारिक प्रशासन तैं अडगैं बान अस्पताल खुलणो आदेस  दीण प्वाड़।
  क्या सरकारी क्या विरोधी पार्टी अर राज अधिकारी सबि क्षेत्र के कौमी एकता से डौरि गेन I कै पणि बोल च बल राजनैतिक पार्टी अर राज अधिकारी को  कौमी एकता सबसे बड़ो दुसमन होंद।
 राजनेता अर राज अधिकारी  सब्युंन क्षेत्र की जनता से पूछ बल अस्पताळ कैक नाम से खुलण चयेंद I  क्वी अस्पताळौ नाम अपण क्षेत्र  का नाम पर रखण चांदो छौ, त क्वी अपण पट्टी नाम त क्वी अस्पताळौ बोर्ड पर अपण जातिक नाम दिखण चाणु छौ. कथगा तो अस्पताळौ नाम अपण ख्वाळो नाम पर चाणा छा.
 बस क्षेत्र की एकता भंग ह्वे ग्याइ। अस्पताल खुलणो आदेस उनि पड्युं च पण अब अस्पताल नि खुल्याणु च किलैकि हरेक चाणु च कि अस्पताळौ नाम पट्टिका मा वैक हिसाबन ही नाम हो I

Copyright @ Bhishma Kukreti  25/7/2013

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक की  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]

Bhishma Kukreti

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चलो दिल्ली शिफ्ट व्है जांदा जख पांच रूप्या मा खाणों मिलद !

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

घरवळिन पैल बार सुबेर सुबेर पुळेक-खुश ह्वेक ब्वाल- चलो अब रोज रोज सुबेर सुबेर कल्यो-नास्ता पकाणौ अर दिनौ-रातौ खाणो बणाणो झंझट से तो मुक्ति मीलि गे.
मि-हैं ? अबि ब्वारि त लायि नि छे अर अबि बिटेन कल्यो-नास्ता पकाणौ झंझट से मुक्ति की छ्वीं-बत्था करण मिसे गे?
घरवळि- ब्वारि? अजकाल त ब्वारी सासुक सुख की बात करदन त ब्वारि ऐ बि गे त मेकुण खाणा बणान से मुक्ति ठुका मील सकद I
मि-त सूण जु तीन खाणो बणाणो बान नौकरानी धरी याल त ना बोलि दे I जथगा पैसा मा नौकरानी आलि उथगा पैसा मा अपण जिठ्वा (जेठ नौनु ) तैं क्वी टेक्नीकल कोर्स करौला।
घरवळि-नौकरानी ? अरे हमर औकात पुत्या लगाणो बान बाइ धरणै नी च त मि खाणो बणाणो बान नौकरानी धरणो सुपिन दिखुल क्या ?
मि-त फिर खाणो बणाणो बान सासू जी आणि छन?
घरवळि-जांक नी नौळी तांक ल फौळी (जिस पौधे का तना नही उसके फल की कामना )I  इख तुमार तनखा हम चर्युं कुण नि पुगणि च अर मि ब्वे भट्योलु?
मि- त फिर त्वै खुण खाणो बणाणो झंझट से मुक्ति कनै ?
घरवळि- देखो ! एक अदिमौ एक बेळिक खाणौ खर्चा बारा रुपया तो नास्ता खर्चा चार रुपया प्रति जण अर हम चार जण छंवाँ त दिनौ अर रातौ खाणक को खर्चा ह्वे बारा गुणा आठ छियाणै रूप्या।
मि-कुज्याण क्या बुनि छे तू?
घरवळि-अर ये हिसाब से सुबेर अर ब्यखुन्या नक्वळ (नास्ता) ह्वाइ आठ गुणे चार याने बतीस रूप्या। याने एक क दिनौ खर्च ह्वाई एक सौ अठाईस रुपया अर एक मैना क खर्च बैठद एक सौ अठाईस गुणे टेस बराबर तीन हजार आठ सौ चालीस रुपयाI ह्वाइ की ना?
मि-हाँ गणित त सै च?
घरवळि- अब मीन वै दूध वाळौ दगड़ बात करी याल वो सुबेर स्याम दुकानम बैठणो बान मी तैं पांच हजार रूप्या दीणों तयार च. तो जो रोजो खाणो खर्च आलो वो मि निभै द्योलु।
मि-ह्याँ पण  एक आदिमौ एक बेळिक खाणो खर्चा बारा रुपया अर नास्ता चार रुपया माँ कख मिलणु च? क्या तीन कै अनाथालय वाळो दगड़ बात करि याल क्या?
घरवळि- न्है न्है ! हम रोज  सुबेर, दिन अर रात होटलम खाणा खौलाँ।
मि- होटलम  चार रुप्या मा नास्ता?
घरवळि- हाँ जब एक फिट चौड़ि अर छै इंच उच्ची  भातै थाळी दाळ, साम्भर अर भुजी सहित होटलम मिल्दो तो नास्ता चार रुप्या मा ही मीलल कि ना?
मि-अरे पण कै गधा , कै बेवकूफन, कै पाजिन, कै अहमकन, कै लुच्चान , कै लफंगान, कै लद्दुन  बथाइ बल  मुंबई मा बारा रुप्या मा होटलम एक फिट चौड़ि अर छै इंच उच्ची  भातै थाळी दाळ, साम्भर अर भुजी मिलदो?
घरवळि-देखो हाँ ! पूजनीय, आदरणीय, संस्कारी, विश्वासी  नेताओं तैं मूर्ख , पापात्मा, कमीना , नीच, शोहदा , बदमाश नि बुलण चयांद हाँ।
मि-मि नेतओं बात नि करणु छौं मि त वै सिरफरा, नासमझ, अविश्वासी, चालू, पागल , बकवास करण वाळ, विश्वासघाती की बात करणु छौ जैन त्वै सरीखी सीदी-सादी जनानी तैं बुतरियाइ (मूर्ख बनाना) बल मुंबई मा बारा रुप्या मा भोजन थाळी मिल्दि।
घरवळि- त बारा रूप्या मा भोजन थाळी नि मिल्दि?
मि- अरे मुंबई का सबि फुटपाथों मा अदा गिलास चाय कम से कम सात रुपया मा मिलद तो भातै थाळी बारा रूप्या मा कनकै मील सकद?
घरवळि- तो क्या वैन झूठ बवाल कि मुंबई मा बारा रुपया मा भातै थाळी मिल्दि?
मि- हाँ वो सरासर अवश्य ही छटकु , झूठा , सत्यवादी , मिथ्यावादी , मक्कार, छली, धोखेबाज कपटी , धूर्त च जैन त्वैमा झूठ -मूठ ब्वाल बल मुंबई मा भातै थाळी बारा रूप्या मा मिलद।
घरवळि-नै मि तैं विश्वास नि होणु च कि इथगा बडो जुम्मेदार पद पर बैठिक क्वी खुलेआम , सब्युं समिण गैर जिमेदाराना, निर्लज्ज , जुलबाजी(धूर्तता) असत्य, बेवकूफ बणाण वाळ, बेशर्मी से इन बयान दे द्यालो ?
मि-अरे तू कैकि बात करणी छे ?
घरवळि- अपण कॉंग्रेसी प्रवक्ता राज बब्बरबबर की बात करणु छौं. ऊंनी बथाइ बल मुंबई मा बारा रूप्या मा भातै थाळी मिल्दि।
मि- देख मीन कथगा दै त्योखुण बोलि आल कि नेतओं बयानों पर विश्वास नि करण पण तू छे कि ….
घरवळि-मि-घरवळि-मि-घरवळि-तो ये राज बब्बर, गरीबी को मजाक उड़ाई, गरीबुं उपहास कार ?
मि-हाँ
घरवळि-हे नागरजा! जू तू सच छे तो ये राज बब्बर तैं इन गरीब बणै दे कि ये तैं देखिक फिर क्वी बि नेता गरीबुं मजाक नि उड़ाओ , गरीबुं उपहास नि कारों
मि- हाँ त अबि से यूँ धूर्त, कपटी , झूटा, लम्पट, धुर्या  नेताओं का बयानों से सुपिन दिखण बंद कौरि दे
घरवळि- अच्छा चलो त दिल्लि शिफ्ट ह्वै जौंला।
मि- क्या मुंबई छोड़ि दिल्ली शिफ्ट ?
घरवळि- हाँ उख त पांच रूप्या मा पेट भोरिक खाणा मिलदो।
मि- ह्याँ या बेवकूफी,  मुर्खता पूर्ण, झूठी, असत्य  सूचना कैन दे?
घरवळि- अरे कॉंग्रेसी नेता रसीद मसूद न एक बयानम बोलि बल  दिल्ली माँ पांच  रुपया मा भरपेट खाणक मिलदो।
मि- असम्भव . मसूद को बयांन  बि सरासर बकबास च
घरवळि- हैं ! डाळ लागलि यूँ नेताओं सुफेद झुगली-टुपली, बुरळ पोड़ी जैन यूंक जीब पर, नि जीतेन यि कबी चुनाव ,  यूँ झूठा, बेशरम , बेहया , निर्ल्लज , नेताओं की जमानत जफ्त ह्वे जैन जो में सरीखा जनता तैं बेवकूफ बणाणा छन I  जु जु नेता गरीबुं मजाक उड़ाणा छन यूं तैं चुनाव मा लोग अपण क्षेत्र मा घुषण आणि नि देन धौं I


Copyright @ Bhishma Kukreti  26/7/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखलाजारी ...]   

Bhishma Kukreti

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सावधान ! गढवळि  -कुमाउंनी कहावतों मा भयंकर परिवर्तन

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

             समाज , सरकारी  स्तर  मा  जथगा बदलाव यूँ पिछ्ला दस सालों मा  आयि उथगा बदलौ पिछ्ला एक हजार सालुं मा बि  नि ऐ छौ I हमर गांवुं मा टेक्नोलोजी से आराम की ही चीज नि ऐन बलकणम हमारो लोक साहित्य मा बि भयंकर उलटफेर हवे गे अर अब अग्वाड़ी भौत बडो परिवर्तन को अंदेसा ही नी च बलकणम पुरो विश्वास च बल अग्वाड़ि दस साल मा हमर लोक साहित्य आज से बिल्कुल बिगऴयूँ याने अलग होलू।
 अब  द्याखो ना पैल ठग, छगटा  अर चोर कै हौरू कुण बोले जांद छौ अब त ठग, चोर छगटो शब्द गढवाली अर कुमाउंनी शब्दकोशों मा मिल्द इ नि छन अब त ठग को असली माने च नेता , चोर माने सामाजिक कार्यकर्ता अर डाकू माने मंत्री या संतरी। हमर गाँ मा अब इन बुल्दन कि दिन माँ ही डकैती पडि गे या दिन माँ इ डाकू ऐन अब त बुल्दन बल दिन माँ ही  ए राज्याण पोड़ (ए  राजा जन ). अब क्वी नि बुल्दु बल हमर जंगळ से दुसर गावक लोग घास चोरी लीगेन अब बुले जांद हमर बौण ब्याळि लालू प्रसाद ऐन या हमर बौणम लालू प्रसाद ह्वे गे  I
 पैल एक कहावत छौ बल कवा जि  शिकार कारल तो बाज कु पाळल? अब कहावत च इमानदार खंडूरी जि चुनाव जितै सकुद त निशंक तैं कु पूछ्ल?
   पैल एक कहावत (कै पणि बोल) बड़ी प्रसिद्ध कहावत छे -कवा ककड़ान्दा इ रौंदन अर ढाकरी चलदा इ रौंदन अब या कहावत सिरफ अर सिरफ संस्कृति की इतिहासुं किताबुंम बंचणो मिलद अब त नई कहावत हमर गाऊं मा प्रचलित ह्वे गे बल नरेंद्र सिंह नेगी 'कथगा खैलु' लाखों कैसेट बिचणु रालु अर रमेश निशंक चुनाव जितदु इ रालु।
             पैल एक कहावत प्रसिद्ध छे बल जब बिरळ नि रौंदन तबि  मूस नाचदन I अब बुले जांद जब क्लास मा मास्टर नि ह्वावो तो विद्यार्थी उधम मचांदन। कखि कखि इन बि बुल्यांद बल जै स्कूलम प्रिंसिपल सियूँ रावो वीं स्कूलम इम्तानम नकल करणों मजा इ कुछ हौर हूंदन I
           एक कहावत छे बल बिंडि बिरळ मूस नि मारदन। या कहावत अब मुसदुंळ पुटुक बैठि ग्याइ अब त हमार चौक माँ नै कहावत प्रसिद्ध च बल बिंडि पार्ट्यूं सरकार मा काम कतै नि हूंद  हल्ला ही  होंद।
           राय बहादुर गंगा दत्त उप्रेती जीक कहावतों किताब मा एक कहावत को वर्णन करदन जैक गढवाली मा अर्थ होंद बल खुकली  मा बच्चा अर गाँव  मा  खुज्या- खोजि। अब यीं कहावत तैं सबि बिसर गेन   अब त बुले जांद बल इंडियन मुजाहिदीन आतंक फैलांद जावो अर केन्द्रीय मंत्री के रहमान बुल्दु जालो बल भारतीय मुसलमानों तैं त पता ही नीच कि इंडियन मुजाहिदीन आतंकी संस्था च I 
            एक हिंदी कहावत हमर गां मा प्रसिद्ध छे अर या कहावत अब भूतकाल की छ्वीं  ह्वे गे I कहावत छे सौ मूस खैक बिरळ हज को ग्याइ। अब यीं  बात समझाणो बान नै कहावत प्रसिद्ध  हवे ग्यायि बल लाल कृष्ण अडवानी बुलणु च बल भारत तैं सेक्युलर प्रधान मंत्री ही चयेंद I या इन बि बुले जांद बल मायवती गैर धर्म निरपेक्ष पारट्यूं तै दूर र रखणो बान  कौंग्रेस तै सहयोग दीणि च I 
            थूकिक चटण  कहावत अब पुरणि बात ह्वे गे अब त बुले जंद स्यू उमा भारती ह्वे ग्यायि।
    अब क्वी नि बुल्दु बल हर शाख पर उल्लू बैठा है अब त बुले जांद हर फौंटि माँ यदुरप्पा अर अशोक चौहाण बैठ्याँ छन I 

   पैल परिवार का बुड्या लोग बच्चों तैं धैर्य धरणो बाण राम कथा का चौदह साल बनवास को वृतांत   दींदा छ अब त वीर भद्र सिंह की कथा सुणान्दन कि द्याखो जब वीर भद्र सिंह पर भ्रष्टाचार को गम्भीर आरोप लगेन  अर मंत्री पद से हाथ धूण पोड़ पण वीर भद्र सिंहन  बेशर्मी से धैर्य   कायम राख  अर आज फिर से हिमाचल प्रदेश को मुख्य मंत्री च I 
   बदलाव जिन्दगी को फलसफा च , बदलाव ही जिन्दगी च I इलै इ आज  कहावतों मा रोज बदलाव हूणा छन अर बदलाव  हूणा राला पण एक कहावत मा बदलाव मुश्किल च I जब भि अपण संस्कृति अर भाषा छुड़णो बान कै पर बि ताना मारे जांद तो बुले जंद स्यु या स्या  गढवाली -कुमाउंनी ह्वे  ग्यायि I या कहावत अमर कहावत च अर इखमा क्वी बदलाव नि होण I               
 
       


   Copyright @ Bhishma Kukreti  27/7/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखलाजारी ...] 
 

Bhishma Kukreti

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 विज्ञानौ क्रान्ति से गढ़वळि  गाऴयूं  मा  चौतरफा परिवर्तन 


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती


  वैज्ञानिक खोज अर तकनीकी परिवर्तन से पलायन बढ़द, आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक  उलट फेर हुंदन अर याँ  से संस्कृति अर भाषाओं पर जबरदस्त फरक पोड़द। वैज्ञानिक खोज को भाषा परिवर्तन से ब्वे बेटी सम्बन्ध च I
 गाळि दीण  कै बि समाज मा आम बात च अर कति मनोवैज्ञानिक बथांदन  बल गाळि दीण कति दें फैदामन्द बि च I   
 गाळि भाषाक जेवर  हूँदन , गैणा  हूंदन , फूंदा हूंदन अर गाळि कै बि समाज का सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक , सांस्कृतिक स्वभाव-स्तिथि  को दर्पण हूंदन I
 भाषा वैज्ञानिक मानल कि सदियों से गाळि नि बदलेन किलैकि गाळि मूल भूत भावनाओं से   जुड़ी होंदन।
पण अब गाऴयूं मा आमूल -चूल परिवर्तन ऐ ग्यायि।
परसिपुण मि गाँ जयुं छौ त मीन द्याख बल गाऴयूँ मा भाति बदलाव ऐ गेन ।
           जब बिटेन  कैसेट अर मोबाइल रिंग टोन  क्रांति आयि  तो  पहाड़ी अपण लोक गीतुं महत्व समजि  गेन अर अब वै हिसाबन अपण मिजाज बदलणा छन I जब  बिटेन पहाड़ का लोगुंन " 'मेको पाड़ा नि दीण पिता जी,  पाड़ी लोक खराब होंदन। पाड़ी लोग मा बैणि गाळी दींदन " गीत कैसेटों  अर मोबाइल रिंग टोन  मा सूण वो अब मा बैणि  गाळि नि दींदन अब गांवुं  मा लोगुं तैं शहरी ब्वारी चयाणि च तो वूंन मा बैणि पारम्परिक गाळि पटाक से बंद करी दे अब  माँ बैणि  गाळि जगा अंग्रेजी का स्लैंग शब्दों प्रयोग करे जांद I अर्थ वो ही च पण चुंकि बात अंग्रेजी मा च तो  बदतमीजी वळ  स्लैंग कतै बि गाळि नि माने जांदन अर अब गाऊं मा चौंदकोट्या बांद की जगा शहरी बांद ब्वारि बौणि आणा छन. यि शहरी ब्वारि  नया नया अग्रेजी 'स्वियरिंग' स्लैंग शब्द देकि हमारी भाषा शब्दकोश  बि बढ़ाणा छन I पारम्परिक 'अपण ब्वैक मैशु' शब्द अब इतिहास की बात छन I
   पैल खेती बि छे,खेती छे त उज्याड़ बि छौ अर इन मा गौड़ी बि छया I  गौड़  अपण गुसैण (मालकिन) क वर्क  करणों बान उज्याड़ बि  जांदा छया I अर जैं  मौक उज्याड़ खये जावो वीं मौ की जनानी  अपण सांस्कृतिक कर्तव्य निभाण कबि बि नि बिसरदि छे वा रोष मा , गुस्सा मा गाळि पद्यगीत गान्दि छे , " जा ! स्या गौड़ी अबि तड़म लगी जा ! "; कीड़ पोड़ि जैन तैंक दूध पर!" " तैंक पांस सुखी जैन " I अब चूँकि उज्याड़ एक गुनाह छौ तो लोग गाळि शान करी दींदा छा अर बुल्दा छा - गरम पाणिन कूड़ नि फुकेंद अर गाऴयुंन लौड़ -गौड़ नि मरदन I इन मा गाळि अभिव्यक्ति जताणो  अर क्रोध शांत करणों एक जरिया हूँद छौ.  आज   जैंन गाळि खैन वा  जनानी अपण गाऴयूं बहीखाता मा गाळि दीण वाळिक लेजर फोलिओ मा  गाळि जमा कौर दींदी छे अर जब समौ आंद छौ त चक्रवर्ती ब्याज का साथ गाळि बौडै (वापस ) दींदि  छे अर अतिरिक्त गाळि हूंद छे - स्या गौड़ि बाग़ जोग ह्वे जैन, भेळ जोग ह्वे जैन, तैं पर खुर्या ह्वे जैन , स्या गौड़ि कठबड़ (विषैली घास) खै जैन I
  अब जब हमर गां मा वैज्ञानिक क्रान्ति से खेती  अर गोर पळण बंद ह्वे ग्यायि अर  उज्याड़ खाण  बंद ह्वे तो गौड़्यूं  तैं गाळि दीण  अफिक बंद ह्वे ग्यायि I पण दूध को महत्व कम  थुका ह्वाइ। अब गाळि गौड़ि छोड़िक दूध जीना सरकि गेन. उन त मेरि बोडि अर काकि मा मेल मिलाप खूब च पण जब बि राजनैतिक प्रतिबद्धता को सवाल आंद द्वी बिसरी जांदन कि द्वी द्यूराण -जिठाण छन I बोडि च मनियारस्यूं कि अर हमर विधयिका विजया बड़थ्वाल ह्वे बिलखेत की तो बोडि  विजया बड़थ्वाल की घोर समर्थक अर काकी ह्वे उदयपुर पट्टी की    त शक्ति कपरवाण की घोर समर्थक अर बस यूं दुई राजनेताओं क कारण दुयुं मा महाभारत ह्वे जांद। चूंकि दुयूंम गौड़ि त छ नी छन अर बजार बिटेन थैल्यूं दूध से खीर बणान्दन    त  गौड़ि सम्बन्धी गाळि छोड़िक अब द्वी दूध मुतालिक गाळि दींदन जन कि -
काकी -   नागराजा सच ह्वाओ तो जा ! त्यार दूध मा    एडीसनल स्टार्च अर शुगर मिल्युं रावो
बोडी - म्यार ग्विल्ल सच होलु त त्यार दूध मा बेन्जोइक अर सैलीसाइक्लिक एसिड मिलायुं रावो।
काकी -  भूम्या  से बिनती च बल त्यार दूध मा साबुण अर फोर्मिलिन मिल्युं रावो
बोडी -जा त्यार नर्सिंग गसे जैन अर अमोनियम सल्फेट मिल्युं रावो।
अब इन नै गाऴयूं पैथर वैज्ञानिक क्रान्ति को ही हाथ च
अब क्वी " जा तू से अर बिजि ना "; "तेरी छाती फटी जैन " गाऴयूं से क्वी नाराज नि होंद हाँ पण क्वी इन गाळि दे द्वावो - " जा जैदिन तू मोरी तो कखि बि शराब को एक बून्द नि मिलेन" से अंग्वाळ बट्वै (मल युद्ध) शुरू ह्वे जांद। किलैकि मरण त सब्युंन च पण यदि वै  क्षेत्र माँ शराब अप्राप्य होलू तो मुडै नि मीलल तो मुर्दा मड़घट कनकै जालो? आज म्यार गाँव मा " जा जैदिन तू मोरी तो कखि बि शराब को एक बून्द नि मिलेन"  सबसे बुरी गाळि माने जांद अर ईं नई  गाळि पैथर वैज्ञानिक अर सामाजिक क्रांति या बदलाव को ही हाथ च I
  अब क्वी कैं जनानी तै गाळि द्यावो  कि -"जा तेरी बेटी या बेटा अणब्यवा रै जैन" तो जनानी नाराज नि होंदन किलैकि अब ब्वे-बाब  बेटि-बेटा क ब्यौ नि कौर साकन तो बेटिम  या बेटाम भाजिक ब्यौ करणों कथगा ही विकल्प खुल्यां  छन I हाँ . अब कै तैं गाळि   दे द्यावो कि -" जा तेरो जंवै सरकारी नौकरी मा रैक बि सच्चो , इमानदार अर निघूसखोर रावो" तो या गाळि भौत बड़ि गाळि माने जांद कि जँवै सरकारी पद पद पर बि उपरी कमाई नि कारो अर या गाळि हथतुडै या दांत तुडै युद्ध पैदा कौरि दींद   I इनि " जा त्वे तैं इन ब्वारी मीलो ज्वा नौकरी नि करदी ह्वावो !" गाळि बि भौत बुरी गाळि मने जांद ।
  अब कैकुण बोलि   दयावो कि "जा ! तू रांड ह्वे जै" तो अब क्वी नाराज नि होंद किलैकि अब पेंसन त मिल्दि ही च पण जरा " जा ! त्यार  पेन्सन मा खटपट ह्वे जावो "  गाळि देक  द्याखो तो सै I गाळि खाण वाळ अग्यौ मचै द्यालो।
 अब कैकुण बोलि द्यावो कि - "जा त्यार हौळ -ज्यू टूटि जैन"  तो क्वी नि रुस्यांद पण जरा -" जा त्यार मोबाइल की बैटरी खराब ह्वे जैन" या " जा त्यार मोबाइल तैं सिग्नल नि मीलेन " तो ल्वैखतरी ह्वै जांद । तकनीकी क्रान्ति से गाऴयूं मा बदलाव जि ऐ गे I
  अब कैकुण समणि  पर इ घात घाळो  कि - "जा  !  त्वे पर हज्या ह्वे जैन " या " जा त्वै तैं छरका लगी जैन" या " त्वै पर खाज -खौड़ ह्वै जैन " तो क्वी बि यूँ गाऴयूं तै गाळि नि माणदो किलैकि मेडिकल क्रान्ति से बिमारी अब बिमारी नि रै गेन  बलकणम मेडिकल इन्स्युरेंस से कमाणो जरिया ह्वे गेन   पण जरा इन बोलिक द्याखो -" जा त्यार कम्प्यूटर पर सद्यानो कुण वाइरस लगि जैन" तो तुमारि खैर नी  च अर जरुर तुमर दांत टूटि जाला। वैज्ञानिक क्रान्ति गाऴयूं मा बि क्रान्ति लांद I
जरा गां मा  कै तैं ब्वालो त सै -" जा त्यार जीमणो राति  बिजली खम्बा टूटि जैन" तो वो तुमर आँख फोड़ी द्यालो I
गाँ माँ ब्वालो कि -"खत्ताउन्द जालो यु बच्चा" तो अब ब्वे बाबु पर क्वी असर नि पड़द पण जरा बोलिक दिखावो कि -"हे भगवान तै बच्चा तैं अंग्रेजी स्कूलम एडमिसन नि मीलो " तो बच्चा का ब्वै बाब तुमर मुंड जरूर फोड़ी द्याला I

   
इनि दसियों उदाहरण छन जो साबित करदन कि वैज्ञानिक क्रान्ति  गाऴयूं साहित्य मा बि क्रान्ति लांद।




Copyright @ Bhishma Kukreti  28/7/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखलाजारी ...] 
 

 

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