Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 359826 times)

Bhishma Kukreti

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 क्लीन चिट  मा गुवाँण -मुताण किलै आंद ?


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती


   मै लगणु च अचकाल क्लीन चिट पाणौ, दीणौ, लीणौ, दिखाणौ मौसम आयुं च I
ब्याळि ना परसि गजेन्द्र काका फ़ोन आयि  बल -  भीसम मि तैं क्लीन चिट मीलि ग्यायि।
मीन पूछ - कनो  क्या व्है छौ ?
(हालांकि मै पता च बल गजेन्द्र काकान हम प्रवास्युं  फर्जी बैंक आकौंट खोलिन अर मनरेगा , धनलीजा, दुसरौ -पाणि-पेजा     जन स्कीम मा फरजी काम दिखैक हजारों झोल झाल कौरि छौ I अर बात गाँ से भैर नि जावो को कारण गाँ वाळुन  जाणणो बान एक जांच समीति बणै छौ. मि त बिसरि गे छौ कि आज गजेन्द्र काकाक अफिक फोन आयि ) 
गजेन्द्र काका जबाब छौ - अरे   वू म्यार विरोधी सुरेन्द्रन मी पर मनरेगा -धनलीजा, दुसरौ -पाणि-पेजा स्कीम मा धांधळी अभियोग लगै छौ ना ?
मीन दिखाणो बान ब्वाल मी - हाँ हाँ   याद आई अर क्वी समीति बि बौण छे
गजेन्द्र काकन उत्साहित ह्वेक ब्वाल -हाँ हाँ अर वीं समीतिन मै तैं आजी क्लीन चिट दे आल
मीन पूछ -काका समीति मा कु कु छा ?
गजेन्द्र काकाक जबाब छौ - द्वी पंच अर एक भैराक सरपंच I
( मि जाणदो  छौं बल - द्वी पंच छा एक त गजेन्द्र काकाकि घरवळी अर दगड्या मोहन (जै पर दुसर केस मा अभियोग लग्युं च) अर भैराक सरपंच छौ गजेन्द्र काकाक सडु भाइ )
मि - चलो भलु ह्वे ग्यायि कि क्लीन चिट मिलि ग्याइ।
गजेन्द्र काका - अछा सूण जथगा बि देहरादून अर गढ़वाल का अखबारों मा समाचार छपवाइ दे कि गजेन्द्र को क्लीन चिट मीलि ग्यायि I
मीन बोल - ठीक च
गजेन्द्र काका -अर सूण कौंग्रेस का नेताओं इन्टरनेट साईट अर ट्वीटर मा बि ये समाचार तैं घुमै दे हाँ !
मि - कौंग्रेस की इन्टरनेट साइटों मा ये समाचारों क्या मतलब ?
गजेन्द्र - अरे सि लोक सभा चुनाव आणा छन कि ना ?
मि - हाँ
गजेन्द्र - तो मि चांदो कि कॉंग्रेसी  सरकल मा म्यार नाम फैलि जावो
मि - लोक सभा चुनाव लड़नो इच्छा …… ?
गजेन्द्र - न्है रै . वो तो मि चाणो छौं कि लोक सभा चुनाव मा मि कौंग्रेस कु चुनावी एजेंट बणि जौं I यी त बगत च कुछ कमाणो!
गजेन्द्र काकान फोन धार कि सुरेन्द्र क फोन आई
(गजेन्द्र काका , सुरेन्द्र अर मि एकी थोक का छंवा अर एकी उमरा क छंवाँ )
सुरेन्द्र - भैजि मि तैं क्लीन चिट मीलि ग्यायि।
मि - क्यांकुण ?
(  उन मि तैं पता च बल सुरेन्द्रन पाख पख्यड़ुम  "सुखा मा  -कुछ तू खा -कुछ मि तैं बि  देजा " स्कीम का तहत चार पांच कुंवा खुदै छा अर वांक तहकीकात का बान  एक समीति बणी छे )
सुरेन्द्र - अरे खां मा खां गजेन्द्र काकान मैं पर "सुखा मा  -कुछ तू खा -कुछ मि तैं बि  देजा " स्कीम मा अभियोग लगाई छौ तो मि तैं क्लीन चिट मिलि ग्यायी।
(समीति मा पंच छा सुरेन्द्र की काकी अर सुरेन्द्र की फुफ्या सासूक  जँवै अर भैराक सरपंच छौ सुरेन्द्रक मम्या ससुर )
मि - चलो भलु ह्वे ग्यायि त्वै तैं बि क्लीन चिट मीलि ग्यायि I
सुरेन्द्र - अच्छा सुणो ! वो अखबारों मा अर भाजापा का नेताओं की इंटरनेट साइटों मा ये सुखद समाचार फैले दे जरा I  लोक सभा का चुनाव नजीक  छन ना !
मि - क्या बात ! लोक सभा चुनाव लड़णाइ क्या ?
सुरेन्द्र - न्है न्है ! मि लोक सभा मा भाजापा क चुनाव एजेंट बणणो कोशिस मा छौं I यी त बगत च कुछ कमाणो !   
 गाँ ही ना सरा भारत मा अजकाल क्लीन चिट पाणों अर क्लीन चिट दीणो मौसम आयुं च I
भाजापा नरेंद्र मोदी तैं सेक्युलर होणो क्लीन चिट दीणि च त कौंग्रेस सज्जन कुमार अर जगदीस टाईटलर तैं बि सिख दंगों मा क्लीन बथाणि  च.
इन्डियन क्रिकेट कंट्रोल बोर्डन म्याप्पन आद्युं तैं क्लीन चिट दे याल जन भाजापा अर कौंग्रेसन शिब्बू शोरण तैं क्लीन चिट दे I
सुणण मा आणु  च बल इनकम टैक्स का मामला मा  कौंग्रेस मुलायम सिंह यादव तैं क्लीन चिट  दीण वाळ च I
भाजापा यदुरप्पा अर कौंग्रेस जगन रेडी तैं क्लीन चिट दीणौ अभ्यास करणा छन I
खैर भ्रष्टाचार्युं  तैं क्लीन चिट मीलि बि जालो तो भि जनता तैं सबि क्लीन चिट मा गुवाण की गंध तो आली ही I
भले ही राजनीतिज्ञ ब्वालल कि अलण नेता क्लीन च पण  लोगुं तैं वीं क्लीन चिट से चिराण (मुताण )  की गंध त आलि ही I
 भले ही दंगा फिसाद कराण वाळु तैं सुफेद कागज मा क्लीन चिट मिलि भि जालि तो भी  किड़ाण ( गोस्त भूनते वक्त की गंध ) अर गनैन (कीचड़ अर मूत के सयुंक्त गंध ) आली ही I
  भले ही हे बलात्कारी नेता या अधिकारी तैं क्लीन चिट मीलि बि जावो  तो भी की  खिराण, खिकराण (तम्बाकू की गंध ) जनता की नाक बिटेन भैर नि जांदी।
भले ही कोयला घोटाला मा नेताओं,  सामाजिक कार्यकर्ताओं अर अधिकार्युं तैं सुफेद कागज़ मा क्लीन चिट मील बि गे तो भी क्लीन चिट की धुवैण, भभलाण -भभकैण की गंध कतै नि जै सकदी ना ?
 पब्लिक डिस्ट्रिब्युसन मा अनाज घोटाला मा सैकड़ों लोगुं तैं क्लीन चिट मिलणी रौंद पण क्लीन चिटों से जनता तैं  खौंखेण  (सड़े अनाज की गंध ) तो आली कि ना ?
       



Copyright @ Bhishma Kukreti  29/7/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

Bhishma Kukreti

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गढ़वळिम नै नै मुहावरा ऐ गेन


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

         
   अजकाल हेरक भाषा मा चौतरफा बदलौ होणु च I भाषौं मा सबसे जादा बदलाव नई टेकनोलोजी अर राजनैतिक घटनाओं से होणु च I आज नया नया मुहावरा भाषौं तैं मिलणा छन , कुछ मुहावरा पैदा हूंदि मोरणा छन , कुछ कुछ दिनों माँ खतम ह्वे जान्दन कुछ नया मुहावरा दीर्घजीवी बि छन I
 गढ़वळिम परिवर्तन स्थान को हिसाब से बि पैदा हूणा छन जनकि मुंबई मा मुहावरा अलग अर गढ़वाळ मा अलग I
अब द्याखो ना अब क्वी नि बोल्दु बल तैनि घास या भ्यूँल चोरी कार सबि बोल्दन स्या लालू प्रसाद यादव ह्वे ग्यायि  I या तै गांवक लालू प्रसाद यादव छन I
एक मुहावरा छौ 'मोळ माटौ मादेव " अब पता नि कख हर्ची ग्यायि यू मुहावरा अब लोग खाली इन बुल्दन - तैन कुछ नि कौर सकण स्यु त "मनमोहन सिंह" च I 
अब जन कि क्वी सभा सोसाइट्यूं माँ   चुप रावो तो बुले जांद बल स्यु '"मनमोहन सिंह " ह्वे ग्यायि I अब 'मौनी बाबा' बाबा शब्द आर्कियोलौजी किताबुं मा ही मिलद अब त नया  शब्द कुठारुं (डिक्शनरी) मा 'मौनी बाबा ' की जगा "मनमोहन सिंह " मिलद I
एक दै जब महाराष्ट्र मा शिव सेना की सरकार छे अर प्रसिद्ध छौ कि मुख्यमंत्री को रिमोट कंट्रोल  त शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे मा च त लोगुन टीवी  रिमोट कंट्रोल को  नाम ही बाल ठाकरे धरी आल थौ  अर बुले  जांद थौ  बल बच्चों हात पर "बाल ठाकरे" नि दीण चयेंद हर समौ WWF  प्रोग्राम दिखणा रौंदन I
एक कहावत छे बल "गोर्कटा मन्दिरौ पुजारी" अब यीं कहावत की जगा हैंकि कहावतन ली आल "धर्म निरपरेक्ष को ठेकेदार -नीतेश कुमार "
हरेक समाजम  हरेक जुग  मा सच तैं झूठ अर झूठ बथाण वाळ मिलदन I अचकाल सच तैं झूठ अर झूठ बथाण वाळौ कुण बुले जांद " ले अफार ! स्यू पार्टी प्रवक्ता ऐ गे " I
हमार गाँ मा अचकाल क्वी बि निरर्थक सरकारी काम ह्वावो या बेकार की योजना ह्वावो तो बुले जांद " द ले ! अब "'गूणि  बांदरूं कुण पुळ" बौणल" I  भौत दें जंगळ मा खाली कागजों मा पुळ बणन पर ये कहावत की उत्पति ह्वे I
हमार गाँ मा एक कहावत छे बल जख जौ हुंदन उख ग्यूं बोलि त भुखमरी आली ही I सन साठ का करीब सरकारी हल्ला -गुल्ला बदौलत गांवुं मा जापानी ढंग से सट्यूं खेती करे गे अर वै साल लोगुंन चूड़ा तक नि चाख अर आज बि एक मुहावरा बुले जांद "पहाड़ों मा जापानी ढंग की खेती करिल्या त भूकि  मरिल्या" I
कबी नजीकी भूतकाल मा एक बढ़िया कहावत छे "बूतो  मूस अर लौवू हूस " I याने कि काम क्वी कारो अर फैदा क्वी उठै जावो I अब या कहावत कै तैं याद नी च किलैकि अब यिं  कहावत की जगा नै कहावत ऐ ग्यायि अर वा कहावत च -"उत्तराखंड क्रांति दल"I
एक कहावत या कथन छौ -स्या बड़ी कंद्यूरा च याने छुप कर छ्वीं सुणण वाळ च  अब त  गढ़वाली का साहित्यकार हि नि  जाणदन कि कंद्यूरा  बि क्वी शब्द छौ त आम जनता न क्या जाणन ! अब त बुले जांद स्या बड़ी स्टिंग ओपरेटर च I
कहावतों मा सबसे जादा बदलाव टीवी विज्ञापन, मोबाइल, कम्प्यूटर  अर इंटरनेट से आइ I
भाषा सबसे जादा संवेदनशील च वा परिर्तन तै भौत जल्दी अंगीकार करदी I  पैल बुले  जांद छौ "ब्वारि सऊर /सवर मुतणि से दिखे जांद अब बुले जांद " ब्वारीक  सवर मोबाइल रिंग टोन से जणे जांद " या " ब्वारि सवोर वींक  फेस बुक फ्रेंड्स प्रोफाइल से पता चल जांद"
मुहावरा वैज्ञानिक खोज से ही जादा प्रभावित होंद I पैल बुले  जांद छौ बल " मुख धूणो सवोर नी च अर घामौ चस्मा लगायाँ छन" I अचकाल बोले जांद बल " मुख धूणो सवोर नी च अर हथ पर स्मार्ट फोन च " I 
अजकाल जब बि कैक दगड़ इखुलि बात याने प्राइवेट मा बात करण  वो "तखलिया -तखलिया " नि बुलद ओ अब बुलद बल " जरा ऑफ लाइन मा बात करण छे" I
पैल नेताओं बारा मा बुले जांद छौ कि नेता लोग जु सूचना दीणा छन वो विश्वसनीय नी हूंदन I अब अविश्वसनीय सूचना बारा मा बुले जांद "गारबेज  इन गारबेज आउट " I "गारबेज  इन गारबेज आउट " कम्प्यूटर की भाषा च पण अब आम भाषा बौणि गे I
" मीन तेरी भौत सूण याल अब मेरि बि सूण " की जगा अब बुले जांद " अब मि तैं डाउनलोड करण दे" I कम्प्यूटर भाषा जद प्रचलन मा आण बिसे गे I
पैल बुले जांद छौ अब मेरी  वींक या वैक दगड़ कुट्टी ह्वे ग्यायि अब बुले जांद "हमर लौग ऑफ" ह्वे ग्यायि
अब इन नि बुले जांद कि "स्यु बकबास करणु च " अब त बुले जांद " स्यू स्पैम च" I
अब क्वी लम्बो चौड़ो भाषण द्यावो या बात लम्बी कौरिक ब्वालो तो वै तैं कम से कम शब्दों मा बात करणों हिदैत इन दिए जांद " जी जरा SMS भौण /ढौळ (Type ) मा ब्वालो" I
SMS साहित्य त नई भाषा इ लाणों तैयार बैठ्यूँ च I
अचकाल बुले  जांद या खबर सब्युं माँ ट्वीट कर दिया हाँ  को सीधा साधा अर्थ हूँद बल यीं  बात तैं सबि जगा बथाण I
  भाषा मा ताबड़तोड़  बदलाव से साबित होंद कि संस्कृति अर भाषा बगद नदी छन अर दुयुंम  बदलाव हूणा ही राला I






Copyright @ Bhishma Kukreti  30/7/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

Bhishma Kukreti

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  क्या तुम फेसबुकौ नसेड़ी छंवाँ  ?


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

  भौतुं कुण फेसबुक आज एक जीवनौ अभिन्न अंग ह्वे गे I  फेसबुक नशा ह्वे गे I जु  तुम जणण चांदा कि फेसबुकौ नशेड़ी छंवाँ कि तो द्याखो फेसबुक का नशेण्यू ख़ास गुण -चरेतर इन छन -
१- जु  तुमन अपण कम्प्यूटर मा फेसबुक होमपेज च तो समजि ल्यावो तुम फेसबुकौ आदि ह्वे गेवां।
२-यदि तुम टॉप न्यूज अर रीसेंट न्यूज मा  अंतर जाणदवाँ तो शर्तिया तुम फेसबुक का ब्यसनी छंवा
३-जु तुम विश्वास करदां कि फेस बुक दगड्या -दगड्याँणि  बणाणो नायाब माध्यम च इखमा द्वी राय नि ह्वे सकद बल तुम फेसबुक पर आसक्त छंवाँ।
४-जु तुम बार बार अपण स्मार्ट फोन पर फेसबुक अपडेट दिखणा रौंदा तो कै तै पुछणै जरुरत नी च बल तुम फेसबुक पर मुग्ध छंवाँ
५-यदि तुम घड़्याँदा - सुचदा बल  5000 दोस्त बि कम होंदन तो तुम अवश्य ही फेस्बोक का रोगी छंवाँ I
६-जु तुम अपण पोस्ट पर  अफिक 'लाइक ' करण गीजि गेवाँ तो तुम फेसबुक का गिज्याँ मनिख छंवाँ I
७-जु तुम अपण ब्लौग तैं फेसबुक मा पोस्ट करदां तो यकीनन तुम फेसबुकौ गुलाम अभ्यस्त  छंवाँ I
८-यदि तुम तैं प्रोफाइल पेज अर फेस बुक पेज  पता च त सचमुच मा तुम फेसबुक का ब्यसनी ह्वे गेवां I
९-जब तुमार दगड़्या टैग नि करद अर तुम तै बुरु लगद तो तुम फेसबुकौ नशाखोर ह्वे गेवाँ I
१०- यदि कैन तुम तैं अधिक पोस्टिंग का कारण अपण फ्रेंडलिस्ट से भैर कौरि आल तो शर्तिया तुम फेसबुक का आदि नशेबाज छंवां  I
११-यदि तुमर मान्यता च बल फेस बुकौ दोस्त असली दोस्त छन तो तुम फेसबुक का व्यसनबाज छंवां I
१२-जब तुम इन बुलण गीजि गेवां कि -"ठैर मि अबि फेसबुक मा छौं " त मानी ल्यावो कि तुम फेसबुक का नसेड़ी छा I
१३-यदि तुम खांद दें बि इन समजदा कि तुम फेसबुक मा छंवाँ तो अवश्य ही तुम फेसबुक का गुलाम ह्वे गेवां I
१४-यदि फेसबुक का कारण तुम ऑफिस देर से जाँदा तो तुम फेसबुक का असक्त भक्त छंवाँ  I
१५- यदि तुम अपण खाणकौ फोटो फेस बुक माँ पोस्ट करदां तो फिर तुम फेसबुकौ लतखोर , नशेडी छंवाँ I
१६- जु तुम दिन माँ आठ दस दै फेसबुक अपडेट बदलणा रौंदा तो डाक्टरम जाणै जरुरत नि च तुम फेसबुक का कुटैब का रोगी छंवाँ  I
१७-जू तुम फेसबुक मा 'पोक ' करण अर ''प़ोक ' कराण जाणदा  छा तो शत प्रतिशत तुम फेस बुक का बीमार आदतन नशेड़ी छंवाँ I
१८ -जु जो बि  ल्याख वो तुमारि समज मा ऐ ग्यायी त शर्तिया तुम फेसबुक का नशेबाज, अभ्यस्त  ह्वे गेवां I


Copyright @ क्यांक ? किलै ?कैकुण ?

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

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काश ! सबि लोग सौणौ (सावन ) मैना मनांदा !

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  प्रिथ्वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

  काश ! सबि मैना सौणा मैना हूंदा अर सबि मनिख  सौणा मैना तैं पवितर मैना माणदा तो कथगा भलु हूंद। हम सबि जानवर खुदा से प्रार्थना करदां बल हे इश्वर यूँ मिनखों तैं सद्यन्यौ कुण  निमश्या बणै दे I
              अचकाल हमर जातिक कुखुड़ जंगळु मा फर्र फर्र उड़ना छन सर्र सर्र इना उना घुमणा छन , निथर इन हौर मैनों मा नि हूंद। हौरि मैना हम पंछी शिकर्या जनवरों से उथगा नि डरणा रौंदा जथगा अयेड़िबाजों से डरदां।

           चकोर, बटेर , तीतर अचकाल सौणा मैनाम खूब चक चक करदा दिख्यांदन। बेख़ौफ़ उड़णा रौंदन  अर दगड़म ईं  गजल बि गाणा  रौंदन -
 हे अकास ! हम त्यार भगबान से नि डरदां
पण हे जमीन त्यार मनिखों से जरूर डरदां           
 
        सि द्याखदि सि सौलु अचकाल सौणम कनो अपण सौलकुंड अळगै घमंड से निर्बिघन, निश्चिन्त, निर्बाध, निसफिकर  घुमणु च तै तैं बि पता च सौणौ मैना मा हिंदु लोख सौल त जाणि द्यावो मुर्ग्युं -बतखों अंडा बि नि खांदन। निथर हौरि मैना बिचारो हम कुखड़ु तरां मनिखों से भयभीत,डर्युं रौंद कि कुज्याण कब स्यु मनिख आलो अर सौलदुंऴयुं पुटुक आड़ लगै द्यालो। अजकाल सौणम   हिंदु मनिखों निर्माशी होण से सौल स्वतन्त्रता गीत गांदो, आजादी -गजल गांदो, निडरता क नज्म पढ़दो। निथर हौरि मैनों मा सौल अचांणचक मनिखों द्वारा मर्यां पुर्खों बान हंत्या गीत गाणु रौंद बिचारो। अर हर समय ये शेर तैं पढ़णु रौंद -

  खौफजदा , जिन्दगी है वक्त से
 सौलदुंऴयुं में अपने को छुपाये जाए हैं 
         
 अहा सौणौ मैनाक घ्वीड़ - काखड़ू   कुलांच, कुलांट ,चौकड़ी, उछाल, छलांग दिखण लैक हूंद। घ्वीड़ - काखड़ बि जाणदा छन बल हिंदु ये मैना शाकाहारी ह्वे जांदो तो यी जानवर निर्द्वंद छ्लांग मारणा रौंदन निथर मनुष्यों मनखियत पर घ्वीड़ -काखड़ शेर गाणा रौंदन बल -

मनिखम सब कुछ च
बस  मनिख्यात ही नी च

  जब बि हम कुखुड़ कै होटलो बोर्डम दिखदा छ - "द्याखो हम तै कखि बि  पण खावो हम तै इखि या सी मी ऐनी व्हेर, ईट मी हियर" तो हम कुखडु या बखरों या माछों जिकुड़ि म हर्र ह्वे जांद पण सौणा मैना मा कुछ लोग आदमियत पर ऐ जांदन अर हम बी कुछ घड़ी ही सही बिश्वास मा ऐ जांदवां कि सैत च आदिम अंतोगत्वा अहिंसावादी ह्वे जालो। मांशाहार मनिखो कुण प्राकृतिक रूप से ताज्य च I हौर मैना मा जब मनिख हमर बोटि, रान, कळेजी, लुतकी मजा से खांद तो हम मोरद दै ये गीत गांदा -

गर नही हुब्बे वतन दिल में तो ईमान नही
जो  मुझे निगल रहा वो हैवान है इंसान नही   
 
हौरि मैना आदिम गम मा ह्वावो या ख़ुशी मा ह्वावो  वो शराब पीणों बहाना खुजे लींदो अर शराब को दगड़ मीट-मच्छी पैल खुज्यांद अर तब हमर हडकी -लुतकी से या आवाज आंदी -

यह क्या मुंसिफी है कि  महफिल में तेरी
किसी का भी हो जुर्म , पायें सजा हम

जब बि मनिख हम तै कटणो बान खुखरी -चकू लेक हमर नजीक आंदो त हम तैं या कविता याद आंदी -
तंग होती जा रही है लमहा लमहा जिन्दगी
क्यूँ न आखिर हम करें दुनिया -ए -सानी की तलाश

  हम जानवरों पर मनिखोंकी बर्बरता , अत्याचार , हिंसक वृति देखिक यो शेर याद आंद
ये दुनिया जो सितमजारे -जुनूँने -बर्बरीयत है
ये दुनिया देखने में किस कदर मासूम जन्नत है

 मांशाहारी  मैनों मा हम जनावर,  हम पर मनिखों जुलम का बारा मा ये गीत गाणा रौंदा -
अल्लाहरे , फरेबे -मशीयत कि आज तक
मनुष्यों के जुल्म सहते रहे खामूशी से हम

अर जब मनुष्य हम तै प्रकृति विरुद्ध काटदो त हम मोरद दै इन बुलदां -
मौत कु इलाज होलु सैत
पण मनिखों हिंसक वृति बेइलाज च

उन त हम जब बिटेन मनिख आई तब बिटेन परमेश्वर से करणा हि रौंदा बल ये मनुष्य तै मनुष्य त बणाइ पण हिंसक किलै बणाइ ? ये मनिखम  ना त मांशाहारी  दांत छन अर ना ही मांश पचाणो अंदड़ -पिंदड़ फिर बि यु मनिख मांशाहारी किलै ह्वाइ ?

Copyright @ Bhishma Kukreti  1/8/2013

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Bhishma Kukreti

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 उपभोग्या वस्तु अर कलायुक्त वस्तु


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथकवादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती



 भौत सा लोग मि तैं पुछदन बल कंज्युमरेबल अर आर्टफुल मा क्या भेद च , फरक  च, अंतर च तो मि कथगा हि उदाहरण दींदु।
अब जन कि ब्वे जब तलक काम करणि रावो , तुमर बच्चों गू मूत पुंजणि रावो तो ब्वे उपभोग्या वस्तु च अर जैदिन ब्वेक हथ-खुट बैठि जावन वैदिन बिटेन ब्वै कलायुक्त वस्तु ह्वे जान्दि। कलायुक्त वस्तु उपभोगो काम नि आन्दि अर उपभोग्या  आर्टफुल नि होंद। कला प्रदर्शन का वास्ता ही ठीक रौंद I
कुछ साल पैल अर कुछ जगा आज बि घ्वाड़ा   कंज्युमरेबल कोमेडिटि छे आज घ्वाड़ा मुंबई -दिल्ली मा केवल कला युक्त जिन्दो जानवर च I
बग्घी -तांगा एक समौ पर उपयोगी वस्तु छ्या अब केवल कला प्रदर्शन का वास्ता ही बग्घी -तांगा छन I
पैल  काठौ या पथरौ पयळ (गहरी थाली ) रोजमर्रा कामै चीज छया अब तो पयळ पुरात्व विभाग का  सैंकणो  चीज ह्वेगेन I
बंसथ्वळ , नरयुळ , बैठ्वा हुक्का, चिलम , अग्यलु , कुट्युं तमाखु कबी उपयोगी या उपभोक्ता वस्तुओं श्रेणी मा आंद छा अज यी सब वस्तु कला मा शामिल ह्वे गेन I
महात्मा गांधी एक उपयोगी सिद्धांत छौ अब महात्मा गांधी एक कलायुक्त सिद्धांत च I
टुपला या पगड़ी एक उपयोगी अर घमंड को माध्यम छौ अब नाटकों मा कला का बान टुपला या पगड़ी उपयोग होंद I
कला वै बात या चीज वस्तु होंद जो रोजमर्रा की बात नि हो I ब्वे बाबुं,  बड़ों, ग्यान्युं  तैं आदर दीण रोजमर्रा क बात छे आज कै तैं  बगैर स्वार्थौ आदर सत्कार दीण त अब नाटकों मा बि  दिखणो नि  मिलद अब बड़ों तैं आदर दीणौ बात इतिहासौ किताबों मा हि मिलद किलैकि आदर दीण अब कला ह्वे गे I
घट अर घटम पिसण एक रोजमर्रा काम छौ अब घट आर्टफुल इमारतों मा बि नि गणे जंद बलकणम  आर्कियोलौजिकल सर्वे का मिल्कीयत मने जांदन I
पैल झंग्वर -बाड़ी -चुनै रुटि खाण रोजमर्रा बात छे अर ग्युं रुटि अर चौंळ कबि कबार त्यौहारूं मा खये जांद छौ  I अब ग्युं -चौंळ आम खाद्य वस्तु ह्वे गेन क्वाद - झंग्वर आर्टफुल फार्मिंग ह्वे गे I
बुळख्या -पाटी -रिंगाळै कलम प्राइमरी स्कूलम पढ़णौ  एक रोजमर्रा कु  माध्यम छौ अब बुळख्या -पाटी -रिंगाळै कलम "वन्स अपौन अ टाइम " की बात ह्वे गेन अर जो बि चीज "वन्स अपौन अ टाइम " माँ शामिल ह्वे जावो समझि ल्यावो या चीज कला मा शामिल ह्वे गे I
इमानदार , कर्तव्यनिष्ठ , जन सेवक राजनेता हूण आम बात छे अब इमानदार , कर्तव्यनिष्ठ , जन सेवक राजनेता हूण "वन्स अपौन अ टाइम " की बात च याने  इमानदार , कर्तव्यनिष्ठ , जन सेवक राजनेता दिख्याण इनि च जन अजकाल कै पंचतारा होटलम पथरौ पयळुम खाणों खाण I द्वी चीज दुर्लभ ह्वे गेन I  उन जन कि टेलीग्राम आज प्रागैतिहासिक काल की बात च अर अब म्यूजियम मा टेलीग्राम का अवशेष धर्यां छन ऊनि  इमानदार , कर्तव्यनिष्ठ , जन सेवक राजनेता अब आर्कियोलौजिकल म्यूजियम का दीवारों मा ही मिलदन I 
 राजाओं बगत पर गढ़वाली अर कुमाउंनी भाषा मा शासनादेस दीण कलायुक्त बात छे , आम बात नी छे I आज बि प्रशासन का वास्ता गढ़वाली अर कुमाउंनी भाषा  दुर्लभ भाषा छन I
ब्यौ शाद्युं मा मांगळ गाण आम बात छे अब मांगळ केवल केसेटों मा मिलद किलैकि मांगळ कला मा जि शामिल ह्वे गेन I
पैल सेन्स ऑफ ह्यूमर रोजमर्रा बात छे आज सेन्स ऑफ ह्यूमर नोन्सेन्स ह्वे ग्याइ याने आज सेन्स ऑफ ह्यूमर कला ह्वे ग्याइ I
जरा बथावदी म्यरो इ लेख रोजमर्रा को लेख च या कलापूर्ण लेख च ?




Copyright @ Bhishma Kukreti  2/8/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

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गूणी -बांदर -सुंगर उवाच 

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथकवादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला ]


                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

  पता नि यी गढ़वाळि-कुमाउंनी प्रवास , पलायन से  इथगा  परेशान किलै छन ?
हम गूणी -बांदर मैदान बिटेन इख पाख पख्यडुं मा पलायन नि करदा त हमर त जाति खतम ह्वे जान्दि I पलायनौ वजै से हम गूणी बांदर बच्यां छंवाँ
अब एक बात बथावदि यि गढ़वळि-कुम्मया पलायन नि करदा त हम गूणी -बांदर -सुंगर इथगा मौज मस्ती कौर सकदा छा क्या ?
गढ़वळि-कुमाउंनी गाऊं से भैर ह्वेन अर गाऊं पर हमर कब्जा ह्वे I उन कुछ जगा नेपाऴयूं अर बिहार्युं कब्जा बि हूण मिसे गे I 
सुख कु नि चांदो हम बि सुख की खोज मा रौंदा अर भलो ह्वाइ गढ़वळि-कुमाउंनी भैर जोग ह्वेन त अब हम बि बरखा -ह्यूं मौसम मा तिबार्युं अर छ्न्युं तौळ मजा से रौंदा I अजकाल हम गूणी -बांदर रात डाऴयूं मा  नि रोंदा बलकणम खंद्वार हुयाँ कूड़ ही असली बसेरा ह्वे गेन I 
           पैल  बेडु -तिमल -खडिक -भ्यूँळअ  बान हमम अर मनिखों मा प्रतिद्वंदिता होंद छे अब गांव वाळ बजार बिटेन लयां फलूं पर गीजि गेन त बेडु -तिमल -खडिक -भ्यूँळअ कमि नि रै गे पण अब हम बि अळगसि ह्वे गेवां। जब गां मा लोंगु भितर राशन मीलि जांद त  डाळुम चढ़णै मेनत किलै करवाँ हम ? अरे जब पादिक काम चलि जांद तो हगणै जरूरत क्या च ? 
                      अब हम गूणी -बांदरूं अर सुंगरूं  तै जंगळ  जाणम  डौर लगद अर जंगळुम भौत मेनत करण पोड़द जब कि गाँ मा सब कुछ मीलि जांद I हम तैं जब  कूड़ो मुंडळम डाळो मजा आवो तो डाळम किलै चढ़े जावो भै ?   
                  ठीक च यी तिबारी -डंड्यळि अब टूटीं अवस्था  मा छन  पण  हमकुण त राजमहल ही छन . द्याख नि तुमन अब यूँ टुट्याँ कूड़ों - सन्युं मा हमर बच्चा कथगा मजा से खिलणा रौंदन  अर जब मर्जी ह्वे ग्याइ त गाँ  मा द्वी चार लोग जो बि बच्यां छन ऊंक घौर जाँदा अर भातौ फुळि उठैक लै उंदा। अब त हमर बच्चा बि घी लगायुं रुटि अर चाओ माओ खाण गीजि गेन I  जब क्वी प्रवासी घौर  आवो अर हम वैका लयां चणा लूठी लौंदा त  हमर बच्चा चणा पर हाथ नि लगांदन अर राड़ घाळि दीदन बल प्रवासी आयुं च त चौकलेट  चखावो I

                   प्रवासी आवो या कखि जीमण ह्वावो तो अचकाल दारु सारु पार्टी बि होंदी त हम त ना पण  हमारी जवान पीढ़ी कै बि हिसाब से दारु बोतल चुरैक लयांदी I शराब की लत हम गूणी -बांदरूं बच्चों पर बि लग ग्यायि I जख हम कैक भितर कंटरूं पर धर्याँ ग्यूं -चौंळ खुज्यांदा त हमर बच्चा दारु बोतल खुज्यांदन I हम अपण बच्चौं तैं अड़ान्दा बल दारू -सारु -शराब बुरी चीज च त जवान लौड़ हम तै डांटदन बल जब मनिखों बारा सालौ नौन दारु पे सकद त हम बांदर किलै ना ? कुज्याण क्या ह्वाल  हमारी ईं नई पीढ़ी को ?  आर्थिक स्थिति   अर नई पीढ़ीक सुख सुविधा बान   हम गूणी बांदर अर सुंगर अब मनिखों भौति करीब ह्वे गेवां तो सुख अर सुविधा बान थ्वड़ा भौत परेशानी सहन  करण ही पोड़द कि ना ?
 जख तलक हम गूणी बांदरूं खेल अर मनोरंजन को सवाल च अब हम आपस माँ खेल नि खिलदवां अब मनुष्य हे हमर खेल साधन छन I  हम गूणी -बांदर मनिखों दगड़ छौंपा दौड़, लूका छुपी , टच मी नौट , पकड़ा -पकड़ी ; छीना झपटी , का कथगा ही खेल खिलदां I  फिर अब हम तैं मनिखों तैं चिरड़ाण मा बड़ो मजा आंद I दिन मा आठ दस दै हम कै ना कै मनिख तै चिरड़ान्द ही छंवाँ ये खेल तैं हम मनुष्य तै तंग कारो बि बुलदवाँ I मनिखों तीज त्यौहार ही हमर तीज त्यौहार छन जन कि वेलेंटाइन डे , क्रिसमस , न्यू ईयर आदि I   

हाँ हम गूणी -बांदर भविष्य की चिंता से भौति परेशान छंवाँ बल अब जब गढवाली -कुमाउंनी गाँ मनुष्य विहीन हूणा छन तो हम कखन बजारक ग्युं -चौंळ -दाळ -भुजि -फल खौंला ? मनुष्य विहीन गांवुं सोचिक ही हमर पुटुकुंद च्याळ पोडि जान्दन बल फिर हमर क्या ह्वालो ?

Copyright @ Bhishma Kukreti  3/8/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

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विज्ञापन अर ब्रैंड जौंन संस्कृति बदल

           भीष्म कुकरेती

संस्कृति को अर्थ होंद जैं चीज तैं बारबार दुरै (दोहराण ) जावो  ढब ही संस्कृति होन्दि I
औद्योगीकरण का बाद  संसार मा ब्रैंड अर विज्ञापनोंन संस्कृति बदल I
भारत मा बि भौत सा ब्रैंडून अर विज्ञापनोंन हमारी संस्कृति बदल I
लाइफ बॉय साबणन अर तंदुरस्ती की रक्षा करता है  लाइफ बॉय ! विज्ञापनन  पारम्परिक नयाणो माध्यम जन कि भ्यूंळ -खारो तैं हमर जिन्दगी से ही भैर  करी दे I
इनि  कोलगेट टूथ  पावडरन अर कोलगेट को विज्ञापनन  म्वास -टिमरू -नीम पर  खुलेआम म्वासो घुसि   दे I
सिंगर स्वीइंग मसीनन अर भारत माँ उषा सिलणै मसीनन हमर  कपड़ा पैरणो अर कपड़ा सिलणो ढब ही बदल दे I
छतरीन  अर छतिर्युं  विज्ञापनोंन  मुणक तैं इन ढक कि मुणक अब कखि नि मिल्दन I
बीड़ी सिगरेटोंन हुक्का पर इन धक्का मार कि हुक्का बीड़ी सिगरेटुं हुक्का भरण लैक बि नि राइ I
ब्लेडोंन उस्तरा पर उस्तरा फेरि अर अब जिलेट का नया रेजरोंन  बेल्डों धार हि खुंडे दे I
बाम ब्रैंडुंन , सेरोडीन जन ब्रांड का विज्ञापनोंन  त थैला छाप वैदुं थैला ही लूठि दे I 
भारत मा ब्रुक  बौंड अर लिपटन चाय का ब्रैंडोन ' सरा दिन कितलि  चढ़ीं च " जन लोक गीतों तैं जनम दे I
बाटा जन जुतुं कंपन्यूंन लोगुं तैं  'जुतम जुति ' सिखाइ I 
फेस पावडर का ब्रैंडून बांद बणाणो नया नया गुर सिखैन अर बिचारा हल्दी -चंदन अब खालि टीका/पिठाई  जोग रयाँ छन I
अमूल क्रान्ति से गढ़वऴयूंन नजीबाबादी भैंसुं दूध चाख I अब अमूल बटर का पैकेट गावुं मा नौण धरणो खालि बरोऴयूं तैं चिरड़ाणा छन I   
चंदौसी का कडुवा तेलुं कंटरूंन   गढ़वळी   गांवु मा कुलुड़ संस्कृति तैं  खतम कार I
मिठे पैकेटुंन 'अरसा की पाक' पर कब्जा करी   I
पैल मैमानो समणि  जंग्या-कच्छा पैरणम शरम लगदी छे पण अब  बिटेन जंग्योंन अपण धरम ही ना - नाम बि  बदल अर बरमुदा ह्वेन तो मेजवान मेमानो तैं अपण घौर बाद मा दिखांद पैल अपण बरमुदा क कीसा दिखांद I
पुरण जमानो मा जब चार यार मिलदा छा तो हुक्का पर सोड़ मारदा छा पण अब धरमेदर या अजय देवगन को बुल्युं माणदन अर अब जब बि चार यार मिल्दन तो बैग पाइपर की बोतल खुल्दन I वा अलग बात च कि महेंद्र सिंह धोनी  धै लगाणु च कि धरमेदर या अजय देवगन का बुल्युं नि मानो अर मल्लया की बोतल ख्वालो I
इमेल अर मोबैलुन तार -टेलीग्राम की ताकत तै तार -तार करि दे I
इनि भौत सा ब्रैंड , भौत सा प्रोडक्ट , भौत सा विज्ञापन छन जौंन हमर सुचणो ढंग बदल अर ढब बदल अर इन मा संस्कृति बदल  अग्वाड़ी बि इनि दुसर संस्कृति जनम लीदी रालि  I



Copyright @ Bhishma Kukreti  5/8/2013

Bhishma Kukreti

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  पारम्परिक  समाज अर हवा मांगक (वर्चुअल ) समाज



                          चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

            इन कबि नि ह्वे कि मिनख द्वी तरां समाज मा रौंदु ह्वा धौं I इन कबि नि ह्वे कि मनिख मृत्युलोक मा बि रावो अर देवलोक मा रम्भा दगड़ रम्बा -सम्बा नाच बि नाचणु  रावो I हां एक  दै विश्वामित्रन महर्षि बणनों बान एक हैंक लोक बणै जरुर छौ अर वै तैं हम त्रिशंकु लोक बुल्दवां I इन बोदन बल त्रिशंकु लोक छैं बि च अर नि बि च I इनि इंटरनेट लोक बि च जु छैं त च पण कख च कै तैं नि पता ! बस इंटरनेट छैं च I
  इंटरनेट मा बि समाज च अर यु समाज च पण पारम्परिक समाज अर हवा माँगक समाज मा कुछ समानता छन तो भौत सा बातों मा असमानता बि च I
असली समाज अब उथगा असली नी च अर वर्चुअल सोसाइटी   हवा माँगक समाज उथगा नकली नि  रै ग्यायि जथगा लोक सुचदा छा I कबि कबि त इन लगद कि वर्चुअल समाज जादा असली च I
  नेट समाज अर पारम्परिक समाज मा समानता या च कि दुयुं मा नब्बे टका छ्वीं बेकार , बकबास, बकवाद , हूंदन जै तैं  छूं ना कुरुड़ बुले जांद I
आपन पारम्परिक छुयाँळु  मादे देखि होलु कथगा हि छुंयाळ एकि रट लगांदन और सुणा क्या हाल छन ? नेट सोसल मीडिया मा बि कथगा इ लोग बस गुड मौर्निंग या सुनाओ क्या हाल हैं दोस्तों तक ही सीमित रौंदन I
गप लगाण वाळ तैं गपास्टी , गपोड्या बोले जांद छौ अर गप समौ बरबाद करणों एक माध्यम माने जांद छौ अर आज इंटरनेट का गपोड्यों तैं चैटैड्या बुले जांदI  चैटैड्योँ तैं बि भलु नि माने जांद I
पारम्परिक समाज मा  दगुड़ बणाण सौंग नि होंद बलकणम  कठण होंद पण नेट मा  दगुड़ खुज्याण सरल च I अब त इन्टरनेट माँ दगुड़ या दोस्त की परिभाषा ही बदल गे I अब बुले जांद चलो जरा फ्रेंड करे जावो या लेट अस फ्रेंड याने नेट पर दगड्या करे जावो . अब फ्रेंड या दगड्या संज्ञा नी च बलकणम  वाचक ह्वे ग्यायि I परसि  मीन एक पारम्परिक दगड्या कुण फोन  कार त वैन बोलि बल भीषम  जरा थ्वड़ा देरम फोन कौर आइ ऍम फ्रेंडिंग याने कि   मि फ्रेंड्याणु या  दगड्याणु छौं I नेट मा ब्याकरण कखन से कख पौंछि गे I
नेट समाज मा 'LIKE ' अब क्रिया नि रै ग्याइ बलकणम संज्ञा ह्वे ग्याइ I अब हम 'LIKE' दीन्दा या लींदा I पेल बुले जांद छौ मि त्यार इख औलु त तू क्या देलि अर तु म्यार इख ऐलि त क्या लैलि I अब नेट पर इन लिखे जांदो -मीन त्वे तैं दस दै 'LIKE' देन अर तीन अबि तलक मै तैं एक बि 'LIKE ' नि दे , अब मीन त्यार दगड़ नि फ्रेंड्याणाइ ( I not frenduig  with you ) I
 पारम्परिक समाज मा   काका -ब्वाडा रिश्ता हूंद इख इन रिश्तेदारी कमि होंद I हां   क्षेत्रीय ब्लौग मा तुम तैं काका -ब्वाडाक रिश्तेदारी मीलि जालि I
चौंतरा मा जब बिंडी लोग बैठिक गप लगावन तो कुछ पुरण बैरि बि हूंदन जो तुम कुछ बि बोलिल्या वो तुमर काट जरुर कारल I  इनि सॉसल मीडिया मा बि च I पप्पू अर फेंकू बैर्युं उदाहरण छन  जो पारम्परिक बैरी छन I
हमर गां मा एक ददा जी छया जौंक इख छ्वारा बैठ्यां रौंद छा, तमाखु पीण सिखदा छा अर बेझिझक तमाकु पींदा छा दगड़म छ्वीं बि लगांदा छा I सरा गाँ वाळ वै ददा तैं 'लौड़ बिगाड़ु  ' बुल्दा छा I  आज नेट सोसल मीडिया तै 'छोरा -छोरी ' बिगाड़ु बुल्दन I
जुआर्युं तास चौपड़ की बैठ्वाक भलि नि माने जांद छे त अचकाल नेट माँ उपलब्ध 'जुआ' का विरुद्ध बि समाज विरोध करणु रौंद I 
चौंतरा मा बैठिक कथगा हि नौनी -नौन्याळु  जोड़ी खुज्याये जांद छे आज इन्त्र्नेत जोडी खुज्याणो  बडु माध्यं ह्वे गे I
अपण अपण लगाण अर हैंकाक नि सुणण द्वी समाजों मा इकजसी समानता च  I
आलोचना -प्रशंसा द्वी जगा इकसनी छन I 
पारम्परिक बैठ्वाकम जो तुमन हैंकाकि बात नि सुणनाइ या जबाब नि दीणाइ   त बौग मरण पोड़द  त नेट पर डिलिट करण पोड़द या मेल ब्लौक करण पोड़द I 
कुछ लोग अबि बि सोसल  मीडिया क्या इन्टरनेट तैं बेकार माणदन यी बाबा आदम जमाना का लोग छन I
इनि भौत सि बात छन जो पारम्परिक चौपाल -की- कछेड़ी मा बि छन तो इंटरनेट -की -कछेड़ी मा बि छन अर कुछ गुण /चरित्र दुयुं मा बिलकुल अलग अलग  छन I     


Copyright @ Bhishma Kukreti  7/8/2013

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उत्तराखंड  मा    जम्बो मच्छरूं आतंक

                                             चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती


            (सचेकि न्यूज एजेंसी ) न समाचार दे कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून मा एक हाथी जथगा बड़ा विदेशी मच्छर ऐ  गेन अर इ विदेशी मच्छर एक टैम पर पांच छै लीटर ल्वै पे जांदन I उन हमर सचु संवाददाता न रन्त रैबार दे बल पैल यी मच्छर पहाड़ी गाऊं  मा गे छ्या पण उख यूं मच्छरों तैं मनमाफिक खून निकाळनो माहौल  नि मील I सबि लोग स्वदेसी मच्छर प्रेमी छा तों झक मारिक विदेशी जम्बो मच्छर  ड्याराडूण जिना ऐ गेन I फिर यूं बड़ा मच्छरों तैं  इन  मनिख  बि चएंदन  जौं पर पांच छै लीटर खून ह्वावो I  फक्वा संवाददाता न पता लगाइ बल उख गाऊं वाळुक खून पेक सबी छुट -बड़ नेता  लोकुन अपण बसेरा देहरादून माँ बसै याल तो जम्बो बरोबर मच्छर अट्टा  जन मोटा नेताओं की खोज मा देहरादून ऐ गेन I समणि पर बुलण वाळ उल्टु बादीन खोज कार त पायी कि भ्रष्ट अधिकारी बि जनता क खून पेकि मुस्टंडा बणी गेन अर अब जम्बो मच्छरों नजर यूं मुस्टंडा अधिकार्युं पर च I आँख दिख्युं हाल बताण वाळ  इकअंख्या रिपोर्टर की रिपोर्ट च कि सैकड़ों ठेकेदार बि जन कल्याण योजनाओं का ठेका लेक गैबण हाथी  जन हुयां छन अर जम्बो मच्छर युंक घौर  का आस पास मंडरांद दिखे गेन I
          हमर फंड धुऴयूं खबरीन कामैक खबर दे बल चुंकि   स्वास्थ्य मंत्रालय अपण बूता पर ब्लड बैंक का वास्ता खून जमा नि  कौर सकद तो प्रदेश स्वास्थ्य मंत्रालयन  खून चुसो विदेशी मच्छरूं दगड़ फोरेंन  कोलेबोरेसन का नाम पर सांठ -गाँठ कौरि आल अर अब विदेशी मच्छर प्रदेश ब्लड बैंक तैं खून  सप्लाई कारल I स्वास्थ्य मंत्री क बुलण च बल यूँ विदेशी मच्छरों दगड़ टांका -भिड़ण से उत्तराखंड मा  खून  की नदी बगण बिसे जाला I
 उन जनता मा कुछ गलत फहमी या भरम को माहौल बि च किलैकि कुछ स्वदेशी विचारकों न अफवा फ़ैलै दे बल फोरेन ब्लड सकर्स आर इनवेडिंग उत्तराखंड I पण जनता का खून से पऴयाँ -पुस्यां नेताओं अर मुस्टंडा अधिकार्युं न हरेक जगा कैम्प लगैक लोगुं तैं बथाइ कि यी विदेशी मच्छर लोचा -लोचड़ी जन खून नि पीन्दन कि दर्द ह्वावो  I नेता अर अधिकार्युं न समझाई कि विदेशी मच्छर बगैर दर्द का खून पींदन अर मरीज तैं पता बि नि लगद कि खून बगी गे I अब जनता मा विदेशी जम्बो मच्छरों से खून चुसवाणो होड़ -छौम्पा दौड़ लगीं च I विदेशी जंबो मच्छर बि खुश छन  बल पैल वो जनता को खून   चुसदन  अर फिर वै खून तैं मंहगा से मंहगा दामों मा स्वास्थ्य मंत्रालय तैं बेचीं दींदु I जब इ जंबो मच्छर इखुलि  हुंदन त भारत की फोरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट योजना पर खूब जोर जोर से हंसदन कि अपण खून चुसाण तैं भारतंम फोरेन इन्वेस्टमेंट नाम दिए गे I
   चूंकि भारतम प्रजातंत्र च त विरोधी पक्ष को काम विरोध मा फड़्याण जरूरी होंद तो विरोधी पक्षन  स्वास्थ्य मंत्रालय अर जंबो मच्छरूं  कोलेबोरेसन का विरोध मा विधान सभा तैं युद्ध स्थल बणै द्यायि I विरोध क्यांको  च इ त विरोधी नेता तैं बि नि पता बस विरोध करण च त करणा छन I 
   स्वदेशी  विचारक 'मेरी क्वी नि सुणदु ' न एक वार्ता मा लोगुं तैं याद दिलाई कि जब आज  को प्रतिपक्ष सत्ता मा छौ त यूंन विदेशी जूंकुं  दगड़ कोलेबोरेसन करि छौ I  वाई बगत सत्ता पक्ष को तर्क छौ बल ग्लोबल वार्मिंग का वजै से पहाड़ी -स्वदेसी जूंक गोर -भैंसुं खून चुसणम नाकामयाब छन अर मेवेस्युं खून चुसवाण आवश्यक च तो विदेसी जूंक उत्तराखंड मा लाण जरूरी च I जनता न तब अपण पहाड़ी जुंकुं तैं मारिक विदेसी जूंकुं तैं अपण पाणीम जगा दे छे अर अब उत्तराखंड का विदेसी जूंक पहाड़ी गोर -भैंसुं ल्वै निर्यात बि करद पण असली फैदा विदेसी सरकार तैं हूणु च I
विचारा स्वदेशी  विचारक 'मेरी क्वी नि सुणदु ' तैं क्वी नि सुणणु च I

       

Copyright @ Bhishma Kukreti  9/8/2013

 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]   

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 पाराशर गौड़ की नै  फ़िल्मै कथा


                                चबोड़्या -चखन्योर्या -भीष्म कुकरेती

     
  कुच्छ दिनों से  'जग्वाळ' फ़िल्मौ निर्माता पाराशर गौड़ जी पर हैंकि गढ़वळि फिलम बणाणो भूत लग्युं छौ  I पुछेर -बक्या त बुलणा छन बल भुत ना - खबेश -पिचास लग्युं च I बुलण वाळ तै ज्यूँरा बि नि रोकि सकुद I
खैर सि परसि पाराशर गौड़   द्वी दिनौ कुण मुंबई अयाँ छा त कुछ कहानीकारुं तैं बि मीलिन I फिल्मुं कुण  सबसे बड़ी समस्या कथा की ही होंदी बिचारा दिलीप कुमार अरधंग बुड्या ह्वे गेन पण आज तलक बि बढ़िया कथा की खोज मा छन I
पाराशर गौड़ जी की बि समस्या अच्छी कथा छे  I वूंक बुलण छौ  बल यदि गढवाली फिल्म इंडस्ट्री तैं दुबार खड़ो करण त कथा बढ़िया होण चयेंद I 
पाराशर गौड़ जी तैं एक गढ़वळी फिल्मो नामी कथाकार मील गेन I सुणन मा आई बल यूंन चार पांच गढवाली फिल्मो कुण कथा लेखिन I

पाराशर गौड़ - कथाकार जी मि चांदु कि मेरि नै फिलम से गढ़वळि-कुमाउनी फिल्मो तैं नै जीवनदान मिल जावो अर फिर धड़ाधड़  गढ़वळि-कुमाउनी बणण शुरू ह्वे जैन I
गढ़वळि फिलम कथाकार - अजी मी स्टाम्प पेपर मा लेखी दे दींदु कि फिल्म जरूर हिट  होलि I एक लाख तलक सीडी एकी  बिक  जाली !
पाराशर गौड़ -हाँ मी बि चांदो कि लोगुं तैं गढ़वळि-कुमाउनी फिल्म दिखणो ढब पोड़ि जावो I
गढ़वळि फिलम कथाकार - अजी ढब ही ना चाखो लगि जालो !
पाराशर गौड़ -बस फिलम मा कथा जोरदार हूण चयेंद
गढ़वळि फिलम कथाकार - अजि गौड़ जी ! मेरी कथा जोरदार ना झन्नाटेदार च I
पाराशर गौड़ - त शुरू करे जावो ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - हाँ हाँ ! आज का अबि फिलम निर्माण शुरू कौर सकदवाँ !
पाराशर गौड़ -मी फिल्मौ कथा शुरू करणों बात करणु छौ
गढ़वळि फिलम कथाकार - अच्छा अच्छा ! त तुमम बि कथा क प्लाट च क्या ?
पाराशर गौड़ - अजि मेरि त जाणि द्याव I तुम अपणि कथा लगावो I
गढ़वळि फिलम कथाकार - अजि क्या लगौं अपण कथा I कोटद्वारम पढ़णु छयो त दगड्योन बवाल बल मि फ़िल्मी लैक छौं अर मि मुंबई ऐ ग्यों अर फिर शुरू ह्वे फ़िल्मी संघर्ष , भूख -तीस …. 
पाराशर गौड़ -फ़िल्मी केरियर संघर्ष की कथा ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - अजि नि पूछो ! जख गाँव मा खै खैक मि दिन मा  तीन दै झाड़ा जांद छौ त  इख तिन तिन दिन तलक भूकि रौं !
पाराशर गौड़ -हैं ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - हाँ फिर मि प्रोड्यूसर , डाइरेक्टर , ऐक्टर जू बि मील वैक चमचा बणदु ग्यों I
पाराशर गौड़ -पण या  कथा ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - अजि या कथा नी च या एक सच्चाई च
पाराशर गौड़ -पण मि यीं कथा पर फिलम नि बणै सकुद !
गढ़वळि फिलम कथाकार - त कैन ब्वाल कि तुम यीं कथा पर फिलम बणावो I मि त तुमर बुलण पर अपण आप बीती सुणाणु छौ !
पाराशर गौड़ -भाई साहब मी तैं फिल्मो वास्ता कथा सुणावो !
गढ़वळि फिलम कथाकार - त इन ब्वालदी !  समझ तुम मेरि आत्म  कथा सुणण चाणा छ्या
पाराशर गौड़ -ना ना ! मि तैं इंटरेस्ट फ़िल्मी कथा मा च
गढ़वळि फिलम कथाकार - औ ! त इन च फिलम मा छै सात या दस गाणा होला
पाराशर गौड़ - दस गाणा ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - हाँ द्वी सीडी त गाणो कि ही बणलि अदा पैसा गाणों सीडी बेचिक मिलि जाल
पाराशर गौड़ -अछा चलो कथा सुणावो
गढ़वळि फिलम कथाकार - एक गाणा जै जै उत्तराखंड पर होलु
पाराशर गौड़ -हाँ हाँ ! अग्नै की कथा …
गढ़वळि फिलम कथाकार - एक चार धाम यात्रा का लम्बो गाणा हूणि चयेंद
पाराशर गौड़ -ठीक च पण कथा ….
गढ़वळि फिलम कथाकार - एक थड्या गीत होलु I अचकाल तेलगु फिल्मो स्टाइल चलणु च त सामुहुक थड्या -नाच गाण साऊथ इन्डियन स्टाइल मा डाळे  जाला
पाराशर गौड़ -पण मेरी फिलम त गढ़वळि फिलम च
गढ़वळि फिलम कथाकार - हाँ वांक बान द्वी गाणा बौ सुरीला का तर्ज पर फिलमाए जाला I फिलम मा सेक्स दिखाणो सबसे कामगार सीन !
पाराशर गौड़ -फिलम मा  कथा …
गढ़वळि फिलम कथाकार - हां वांक बान एक सिपै जीक गीत जरूरी च अर यदि जादा ही गढ़वळि तर्ज दीण त एक जागर बि धौरि द्योला I मजा  ऐ जालो
पाराशर गौड़ - पण दर्शक ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - वांकुण द्वी कैबरे डांस बि धौरि द्योला
पाराशर गौड़ -कैबरे डांस ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - नै नै ! हेलेन वाळ कैबरे डांस ना ! मुन्नी बदनाम हुयी तेरे लिए या चमेली जन  नाच गाण I अचकाल दर्शकुं रूचि बदल गे ना तो कैबरे जगा आइटम सौंग  जरूरी च I औडिएंन्स  उछळि  जालि I
पाराशर गौड़ -कथा ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - फिर एक बलात्कार हूंद दै बैक ग्राउंड सौंग बि जरूरी च
पाराशर गौड़ -भाई साब ! आप कथा कब सुणैल्या 
गढ़वळि फिलम कथाकार - गौड़ जी मि कथा इ तो सुणाणु छयो
पाराशर गौड़ -ह्यां पण फिलम मा कु कु मुख्य  चरित्र होला , कु कु गौण चरित्र होला …. ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - हाँ त आप फिलम शुरू कारों अर जथगा तुमर बजेट होलु वै हिसाब से चरित्र घुसेड़ द्योला I चरित्रों तै ही त घुसेड़ण बकै क्या च ?
पाराशर गौड़ -डायलौग बगैरा ?
गढ़वळि फिलम कथाकार - सेट पर जन मौक़ा लागल तनी डायलौग बि लेखि ल्योला ? डायलौग हिंदी माँ द्योला अर कलाकार अफिक अपण हिसाब से गढ़वळि माँ डायलौग बोली द्याला
पाराशर गौड़ जी वै दिन बिटेन कड़कड़ हुयाँ छन अर वूं तैं कड़कड़ो हालात मा कनाडा लिजये ग्याइ I सुणण मा आयि कि अब पाराशर जी थोड़ा ठीक ह्वे गेन किलैकि अब वो बरड़ाणा रौंदन बल -मुझे एक अच्छी कथा की जग्वाळ है , अछि कथा की जग्वाळ है 



       
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 [गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं पर   गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...] 

 

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