Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 360435 times)

Bhishma Kukreti

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               ओपिनियन पोल याने मार्केट सर्वे कु अर्धसत्य

                       भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

              मीन एक दैं लेखी छौ बल हमारी समस्या भ्रस्टाचार नी च बलकण मा शिक्षा अर सामजिक शिक्षा च।
ब्याळि एक समाचार टीवी चैनलन एक स्टिंग ओपेरेसन से बताइ कि कन ओपिनियन पोल याने मार्केट सर्वे कु भतिया भंद होणु च अर  मांग उठणी च कि चुनाव से पैल ओपिनियन पोल बंद हूण चयेंद। जै देश मा ओपिनियन पोल कु उपयोग ओपिनियन जानणो बान ना ओपिनियन बणाणो बान ह्वावो वै देस मा ओपिनियन पोल पर प्रश्न चिन्ह लगण ही छन !
            मि तब त्याइस सालो जवान रै होलु त अपण ऑफिसौ काम से हर हफ्ता एक मार्किट रिसर्च कम्पनीम  आइएमआरबी जांद छौ।  तख से मीन  जाण कि कोलगेट या लीवर कम्पनी हर समय कुछ ना  कुछ सर्वे कराणा रौंदन।
          मि तब मर्फी रेडिओ मा काम करदो छौ अर हमर बॉस लोग  विज्ञापन कंपनी से सर्वे करवांद छा  पण हम ब्रांच मैनेजर कबि बि वे सर्वे से सहमत नि हूंद छा।  फिर बि वै बगत सर्वे सरल छौ किलैकि लोगुं इच्छा , आशा, ज्ञान  भौत कम छौ।
मि जब केनस्टार मा सेल्स मैनेजर छौ अर हमर हेड ऑफिस वाळुन केनस्टार लांच हूणो छै मैना बाद एक मार्केट रिसर्च कम्पनी से डीलर ओपिनियन पोल करवाई जखमा डीलर कम्पनी का प्रति क्या सुचदन पर जोर छौ।  उखमा एक अजीब रिजल्ट आयुं छौ खासकर दादर अर  लोहार चाल (मुबई का प्रसिद्ध किचन आपलियेंसेज बजार ) का डीलरु सर्वे।  यु सर्वे बताणु छौ कि केनस्टार की सेल्स टीम दुकानदारूं से मिलणो नि आदि अर सर्विस भौत ही खराब च।  कम्पनी तैं खुलीं छै मैना ह्वे छौ अर सर्वे का हिसाब से दुकानदार बुलणा छा कि केनस्टार आउट औफ गारेंटी की सर्विस पर ध्यान कतई नि दींदी , आउट औफ गारेंटीका वास्ता स्पेयर पार्ट्स बि नि मिल्दन।  हकीकत मा मि भैरॉक टूर करिक दादर या लोहार चाल का दुकानदारूं से मिलणो अवश्य जांद छौ।  मुख्य दुकानदारो तैं द्वी तीन मैना मा पार्टी बि दींद छौ।
मीन अपण मैनेजिंग डायरेकटर से गुस्सा मा बोलि दे कि यु सर्वे बकबास ही ना झुटो च।  फिर निर्णय ह्वे कि हेड ऑफिस से द्वी अधिकार्युं दगड़  म्यार दगड़ दादर या लोहार चाल जाल अर असलियत पता लगाल।  अधिकतर  दुकानदार मि तैं म्यार नाम से जाणदा छा अर काम का दुकानदार मि तैं सेल्स गुरु बि बुल्दा छा यदयपि किचन आपलियेंसेज उद्योग मा अयाँ मी तैं छै मैना ही हुयां छा ।  फिर सर्विस का बारा मा बि क्वी हमारी शिकायत नि छे पर कुछ दुकानदारूं शिकायत छे कि हमारा स्पेयर पार्ट्स बजार मा नि मिल्दन।  यूँ दुकानदारूं हिसाब से केनस्टार अर केनवुड एक ही कम्पनी छे  , एक ही ब्रैंड छौ ।  असल मा अधिकतर  दुकानदार सर्वे की गम्भीरता समझदा ही नि छन अर सवालुं जबाब मा अंट संट जबाब दे दीन्दन।  मि आज बि दुकानदारूं सर्वे तैं रति भर बि महत्व नि दींद।  कुछ ही दुकानदार हूँदन जौंक सोच निरपरेक्ष हूंद।  अधिसंख्य दुकानदार प्रोडक्ट का मामला मा भूतकाल गामी हूंदन अर मार्जिन का मामला मा स्वार्थी हूंदन .
  फिर आंद बात फील्ड सर्वेयरूं की त दुनिया मा डोअर टु डोअर सेलसमैन अर मार्केट सर्वे का फील्ड सर्वेयर से जादा निराश कौम यीं दुनिया मा हैंक कौम क्वी नि हूंद।
            अधिकतर सर्वेयर एक दिन सर्वे करदन अर बकै दिन इनी अपणी मर्जी से क्वेसनरी फार्म भरिक अपण कम्पनी तैं दे दीन्दन।  सर्वे का काम छुटि छुटी कम्पनी ही करदन अर कम तनखा मा स्कुल्या छ्वारों से सर्वे करांदन . जब सर्वे करण वाळ ही फ्रस्ट्रेटेड  ह्वावो तो वु क्या सही सर्वे कारल ? फिर अप्रशिक्षित सर्वेयर अवश्य ही गलत रिपोर्ट ही कारल कि ना ? ये सर्वेयर अधिकतर चाय की दुकान मा बैठिक फार्म भरदा मील जाल।
आज भी भारत मा मार्किट रिसर्च मा बड़ी मूलभूत समस्या च अर वा समस्या च सर्वेयरूं सर्वे करणो कमिटमेंट।  पता ही नि चल्दो कि सर्वेयरन सही सर्वे कार कि अफीक फॉर्म भार।

 कुछ ओपिनियन पोल कम्पन्युं लोभ , राजनीतिक पार्ट्यूं लोभ अर सर्वेयरुं बदजाति  (अळगस , कमिटमेंटहीनता , अप्रशिक्षण ) का कारण से ओपिनियन पोल की सत्यता पर प्रश्न लग्यां छन।

Copyright@ Bhishma Kukreti  26  /2/2014

Bhishma Kukreti

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                   प्रवासी गढ़वाळि सामाजिक कार्यकर्ताऊँ  ख़ास पछ्याणक 

                                चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

जख जख गढ़वाली प्रवास करदन उख उख गढ़वाली पैदा ह्वावन या नि ह्वावन पण सामाजिक कार्यकर्ता पैदा ह्वे जांदन।  भारत मा यदि 600 लोगों मा एक NGO च त हरेक दुसर प्रवासी गढ़वाली सामाजिक कार्यकर्ता च अर हर दस प्रवासी का पैथर एक सामाजिक संस्था त होली ही।
सामाजिक कार्यकर्ता माने कैं संस्था कु चेयरमैन , मंत्री या अधिकारी।  बगैर संस्था बणयां सामजिक कार्यकर्ता ज़िंदा नि रौंद .
अधिसंख्य प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता कु मानण च कि सामाजिक कार्यकर्ता तैं सामाजिक कार्य करण उथगा जरूरी नी हूंद जथगा कि कैं संस्था कु प्रजिडेंट या जनरल सेक्रेटरि हूण आवश्यक च !
जैदिन बिटेन ब्रिटिश लोगुन गढ़वाळियुं तैं भैर नौकरी दे वैदिन से अर आज तक हरेक प्रवासीकु एकि रूण च कि गढ़वाळ की पैली परेशानी पलायन च अर हरेक प्रवासी प्रवास मा संस्था इलै बणान्दु कि गढवाळ से पलायन रुक जाव ।
रात प्रवासी गढ़वाळि मीटिंग मा ह्यळि गाडि गाडि रूंद कि गढ़वाळ से पलायन हूणु च अर दुसर दिन अपण भतीजो , भणजो या भौं कै तैं बि अफुम भटे दींद।
हरेक  प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता रुणु रौंद कि गढ़वाळ मा खेती खतम हूणि च मकान उजड़ना छन।  यदि सर्वे करे जाव त गढ़वाल मा जादातर मकान प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं का ही उजड्या होला।
हरेक प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाळ मा शराब व्यसन से दुखी रौंद अर ये दुःख मा खुद ही शराब गटकाणु रौंद अर जब गां जांद त पेटी भोरिक शराब गां लिजांद। 
शहर मा प्रवासी न्युतेरौ दिन शराब की पार्टी करद पण रुणु रौंद कि गांऊं मा ब्यौ -काज मा लोग सुबेर इ बिटेन शराब पींदन।
प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाल मा शिक्षा कि समस्याउं  से त्रस्त रौंद पण अपण शहर मा गढ़वाल्यूं की शिक्षा समस्याओं से अवगत नि रौंद।
प्रवासी गढ़वाळ मा उद्यम नि हूण से परेशान रौंद पण गढ़वाळ का कै बी उद्यम मा निवेश नि करद।
प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाल मा पर्यटन बढ़ाणो बात करद अर जब समय आंद त अपण नौनु तैं हनी मून का वास्ता शिमला या ऊटी भेजद।
प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ता गढ़वाल मा गढ़वाळि भाषा खतम हूण से बहुत दुख जतान्द अर अपण बच्चों दगड़ गढ़वाली तो छोड़ो हिंदी मा बि नि बचऴयांद , केवल अंग्रेजी मा बचऴयांद।
हरेक   प्रवासी सोसल वर्कर चांद कि प्रवासी संस्थाओं मा एका ह्वावो अर जादा संस्थाओं तैं एक करणो बान हर साल मुम्बई मा महांसघ जन नई संस्था खड़ो करद।
गढ़वाल मा गढ़वाळियुं विकास का वास्ता प्रवासी सामाजिक कार्यकर्ताउं का पास सौ तरीका , निदान  छन पण प्रवास मा प्रवासी गढ़वाल्यूँ विकासौ बान  एक बि ब्यूँत नि हूंदन।  .
प्रवासी गढ़वाळि सामाजिक कार्यकर्ता क ख़ास पछ्याणक   और बि छन।  बकैउं बखान भोळ-परस्यूं होलु। 


Copyright@ Bhishma Kukreti  26 /2/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ] 

Bhishma Kukreti

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                                      अचकाल व्यंग्य लिखण सबसे कठण काम ह्वे गे

                                   चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

 मीन जब व्यंग्य पढ़ण शुरू कौर छौ त इंदिरा गांधी मा बि कुछ हद तक ईमानदारी छे , शरम -ल्याज छे , वा कति बथों से झसकदी बि छे।  वै बगत बेइमान कम छा तो इमानदारी की   बड़ी पूछ छे तो हरी  शंकर परसाई , शरद जोशी , लतीफ घोंघी बढ़िया लिखदा छा।
जब मीन गढ़वळि मा व्यंग्य लिखण शुरू कार तो समाज अर राजनीति मा इमानदारी , निष्ठा , नीति की कीमत छे तो व्यंग्य लिखण भौत सरल छौ।  तब नेता बेशर्मी की हद बि शरम से तोड़दा छा तो वूंकी बेशरमी पर लिखण सरल छौ।
 अचकाल व्यंग्य लिखण सबसे कठण काम ह्वे गे।  हास्य लिखण मा ऑसंद आंद।
मैरेडिथ का अनुसार व्यंग्यकार नैतिकता कु ठेकेदार च जु समाज मा फैलीं गंदगी कीच -काच , गंदगी साफ़ करद।  याने कि गंदगी कम हूंद तो साफ़ करण सरल हूंद , गंदगी या कीचड़ अलग से दिख्यांदि हो तो व्यंग्य लिखे सक्यांद पण जब   सरा चौक ही कीचड की नींव पर खड़ो हो तो कीचड़ या गंदगी साफ़ कनकै करण ? इन मा व्यंग्य कनकै लिखण ? 
सदर लैंड कु बुलण च कि व्यंग्य सामाजिक बुराइयों का असली रूप दिखांद ।  पर यदि समाजन बुराइयुं  ही तैं अपण जीवन यापन कु आधार बणै याल तो अब व्यंग्य क्यां पर लिखण ? जब सबि लोग बुराइ तैं भलो मानणा छन तो व्यंग्यकार का पास लिखणs  कुण कुछ बच्युं इ नी च।
चुनगेर लिखाड़ हरी शंकर परसाई  कु मानण छौ कि व्यंग्य जीवन की विसंगतियों , मिथ्याचारों अर पाखंडो की आलोचना करद।  पर जब समाज का आदर्श ही बिसंगति , मिथ्याचार , पाखंड ह्वे जावन तो व्यंग्यकार कब तलक मुंड फोड़ल ?
चखन्योरा लिख्वार  शरद जोशी व्यंग्य तैं अन्याय , अनाचार , अत्याचार का विरुद्ध हूंद पण जब समाजन अन्याय , अनाचार , अत्याचार तैं ही जीवन शैली बणै दे हो तो इन मा व्यंग्य कै पर लिखण अर कैकुण लिखण ?
चबोड्या कलमदार रवींद्र त्यागी न बोली छौ कि व्यंग्य कु काम कुरीतियुं क भंडाफोड़ करण च पर जब हमर समाजन कुरीतियों तैं ही जिंदगी को मकसद बणै याल तो भंडाफोड़ क्यांक करण अर किलै करण ?
व्यंग्य अमर कोश का कोशकार शंकर पुण तांबेकर बुल्दन बल जख अन्याय , शोषण , अत्याचार , … ब्यूरोक्रेसी हो उख  व्यंग प्रभावशाली हूंद पर जब पूरो समाज ही अन्याय, शोषण , सिफ़ारसबाद , जातिबाद , भाई भतीजाबाद , दलबाद , तैं ठिकाणा दीणु ह्वावो वै समाज मा व्यंग्य की अहमियत ही ख़तम ह्वे जांद तो इनमा व्यंग्य लेखिक क्या फायदा ? पूरा का पूरा समाज अन्याय, शोषण , सिफ़ारसबाद , जातिबाद , भाई भतीजाबाद , दलबाद को समर्थक ह्वे जावो तो व्यंग्य की तो ऐसी तैसी होली कि ना ?
व्यंग्यकार समाज को ही अंग -प्रत्यंग हूंद।  जब समाज ही संवेदना शून्य ह्वे जावो तो अवश्य ही व्यंग्यकार भी संवेदनाहीन ह्वे जांद अर फिर इन मा मै  सरीखा व्यंग्यकार बि पलायनवादी साहित्य लिखण मा ही फैदा चितांद !

Copyright@ Bhishma Kukreti  28 /2/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ] 

Bhishma Kukreti

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                                       आप कै किस्मौ मतदाता छंवां ? 

                                   चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

                          सरादुं टैम पर बामणु  , कुत्तों  , गौडू अर कव्वों की भारी मांग हूंद।  ऊनि चुनावुं समौ पर दलालुं (सभ्य भाषा माँ एजेंट्स ) , मतदाताओं बड़ी मांग हूंद।
                 जख सरादुं मा बामण जजमान तैं  बूड खूड की याद दिलान्द उख चुनावो टैम पर कॉंग्रेसी नेता मतदाता तैं याद दिलान्द कि म्यार बुबा जीक नना जी , मेरी दादी , मेरो बुबा जीन अर मेरि ब्वेन जु बि आश्वासन दे छा वु आश्वासन हम अगली पार्लियामेंट मा पूर करी द्योला।     फिर कौंग्रेसी बुलद कि म्यार नना जी त सन 1952 मा आश्वासन पूर्ति का वास्ता ऑर्डिनेंस लाणा छा पण विरोधी पार्टी वाळुन अड़ंगा लगा दे।  अब 1952 का आश्वाशन अवश्य ही 2014 मा पूरा ह्वे जाल।
विरोधी खासकर भाजापा अर कम्युनिस्ट चुनाव टैम पर कॉंग्रेस पर अभियोगुं माटु -कीच लपोड़णा रौंदन पर कबि नि बथांदन कि यी अफु क्या कारल ? बात बि सै च कि यी विरोधी क्या ब्वालन कि सत्ता मा ऎक यून क्या   करण ? भाजापा सरीखी पार्टिन कॉंग्रेस जन ही कुछ करण अर कम्युनिस्ट पार्टी सरीखी पार्ट्यूंन कुछ करण ही नी च तो द्वी तरां की पार्टी वॉटरूं तैं कुछ नि बतांदन कि जितणो बाद   ऊँन क्या करण।
                      चुनाव टैम पर कवा , कुत्ता जन एक नया जीव अवतरित हूंद वै तैं मतदाता या वोटर बुल्दन।  चुनावुं बगत जै फंड धुऴयुं मनिख या मनखिण तैं उम्मेदवार या वैक दलाल नास्ता   अर दारु पिलांद , जैक गंदा खुट मा चिट्ट सुफेद टोपी धरद वो ही मतदाता हूंद।               
               आजकाल का मतदाता जरा जागरूक ह्वे गे वो ओपिनियन पोल मा कुछ हौर बुलद अर वोट कै हैंक तैं वोट दे दींदु।  अजकालौ मतदाता एक  नेता  की जीप मा चुनाव केंद्र जांद अर  कै हैंक तैं वोट देक ऐ जांद।  हद त तब हूंद जब ग्राम प्रधानो चुनाव मा कंडीडेट का तीन सौ गैलेन दारु खतम ह्वे जांद , चालीस खस्सी बुगठ्यों मौण कटी जांद अर पता चलद कि वोट सिर्फ़ चार ही मिलेन वो बि अपण परिवार से।  तबि त अजकाल नेता बुल्दन कि पुलिस वाळु अर मतदातों भरवस नि करण।
              कुछ मतदाता हूंदन जौं तैं एकमुस्ती वोटर बुल्दन याने मुस्लमान वोटर।  बिचारों सबसे बड़ी समस्या या च कि यी सन 1953 से एकमुस्त वोट दीणा रौंदन पण आज बि सबि पार्टी बुल्दन कि मुसलमानो की समस्याओं पर गम्भीर विचार नि ह्वे।
              कुछ मतदाता ट्रांसफरेबल वोटर्स हूँदन।  यी बि मुसलमान वोटर जन ही हूंदन पण यी गैरमुसलमान हूंदन अर खासकर दलित हूंदन।  यी बिचारा भैस जन हुन्दन अर यूँ तैं यूंक नेता इन लिजांदन जन ज्यूड पर बांधिक भैंसू तैं लिजाये जांद।
              कुछ मतदाता भक्त मतदाता हुन्दन जौं तैं पार्टी का पारम्परिक वोटर्स बुले जांद।  यूँ पर कैक बुलण या आंधी से कुछ  फरक नि पड़द।  चुनाव प्रचार यूँक  बान नि हूंद।
              चुनाव प्रचार हूंद फेन्स, बाड़ या सीमा पर बैठ्यां मतदाताओं का बान।  यूं तैं सेफोलॉजिस्ट जागरूक मतदाता बि नाम दीन्दन।  यी बड़ा महत्वाकांक्षी अर आशावादी हूंदन अर समजदन कि काली कमरिया पर दूजो रंग चढ़ सकद पर चुनाव  का बाद बिचारों का हाथ  हमेशा निराशा ही हाथ लगद।  उत्तराखंड या हिमाचल माँ हर पांच साल मा सरकार यूं   आशावादी सीमा पर बैठ्यां मतदाताओं का कारण बदलदी। अचकाल नरेंद्र मोदी यूँ ही मतदाताउं तैं आकर्षित करण पर लग्यां छन।
         कति वोटर्स याने अधिकतर पढ्यां लिख्याँ वोटर्स नेताओं का बुल्युं माणदन।  हरेक नेता या नेत्याण  बुलद कि 'हमे मत देना '।  बस यी एज्यूकेटेड स्नबिश लोग 'मत देना ' कु शाब्दिक अर्थ लीन्दन याने 'मत देना ' का शाब्दिक अर्थ लगांदन  'डोंट गिव ' अर ये चक्कर मा वोट दीणो जांद ही नी  छन।  नेता लोग यूं की फिकर चुनाव का टाइम पर करदा ही नि छन किन्तु चुनाव का बाद सबसे जादा प्रशासनिक फायदा  ईं घरबैठ्वा कौम तैं ही मिलद। या कौम बड़ी बेशरम च वोट बि नि दींदी अर प्रजातंत्र का सबसे अधिक लाभ बि लीन्दी। 

               बाइ द वे आप कै किस्मौ मतदाता छंवां ?


Copyright@ Bhishma Kukreti  1 /3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ] 


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                      प्रधान जी विज्ञापन नि दींदा त पता इ नि चलदो हमर गां मा इतगा उन्नति ह्वे

                                               चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

                     प्रधान जीक हम अहसानबंद छंवां। अनावश्यक रूप से हम पिछ्ला पांच साल से हीन भावना ग्रसित ह्वेक , मुक लुकैक जीणा छया। यूं पांच सालों मा हमर आस पड़ोस का गाँव वाळ जब बि विकास की छ्वीं लगांद छा त हम या त गरीब बच्चा जु  अमीर तैं चॉकलेट खांद देखींक  मन मारिक अपण मुख इना उना करि लींद ऊनि हम बि चुप चाप विकास इतिहास सुणदा छा या विकास का विषयुं तैं मोड़िक टीवी सीरीयलुँ या फिल्मुं पर बहस शुरू करै  दींद छा।  यदि यां पर बि पड़ोसी गाँव का रिस्तेदार अपण गांक विकास की बात पर ही अड़ी जा त हम बुल्दा छा कि हमर प्रदेस मा उर्दू भाषा , पंजाबी भासा , नेपाली भाषा का संस्थान छन तो गढ़वाळी भाषा संस्थान किलै नी च ? इख पर हमर कछेड़ि मा दुफाड़ ह्वे जांद छा जौंक गां मा विकास हुयुं दिख्यांद छौ उ बुल्दा छा आर्थिक विकास हूण द्यावो भाषा विकास अफिक ह्वे जाल त हम जन अविकसित गांका निवासी अड़ जांद छा कि जब तलक गढ़वाली भाषा कु विकास नि होलु तब तलक कै बि विकास तैं सर्वमान्य विकास नि मने जालु।  मतलब यु छौ कछेड्युं मा ग्राम विकास की बात पर  हम    बहस पसंद नि करदा छा।  दुसर गांका वुद्धिजीवी अखबारूं मा अमेरिकी कैपिटलिज्म अर जापानीज कैपिटलिज्म पर कोटद्वार , ऋषिकेश ,  पौड़ी का अखबारूं मा लेख छपांदा  छा त मै  सरीखा अविकसित गांवक वुद्धिजीवी मार्क्सवाद का फायदा पर अखबारूं कुण लेख भिजदा छा त अखबार मा लेख छपद ही नि छौ अर जब अखबारूं संपादकुं से लेख नि छ्पणो कारण पुछ्द छा तो संपादक बतांदा छा बल अब जब चीन या क्यूबा जन देस मा बि कार्ल्स मार्क्स का बारा मा लिख्यांण बंद ह्वे गे तो फिर गढ़वाल संबंधी अखबारूं मा कार्ल्स मार्क्स की क्या वैल्यू ? अब हम संपादकुं तैं क्या बतौन्दा कि चांद त हम बि कैपिटलिज्म ही छंवां  किन्तु जब गाँमा विकास नि ह्वावो तो कै मुखन हम कैपिटलिज्म का गुणगान करद ?  जब क्वी हैंक विकसित गां वाळ  गाँमा सीमेंट सड़क की बात कारो त हम बुल्दा छा सीमेंट की सड़क मा हिटण  से पैरों मा तिड़वाळ पोड़ जांद अर गार माटो रस्ता से शरीर हृष्ट -पुस्ट रौंद।  कै गाँमा सोलर ऊर्जा से उज्यळ हूंद त हम अविकसित गाँ वाळ  उखाक लोगुं तैं डरांदा छा कि सोलर ऊर्जा विकिरण से कैंसर हूंद।
                यूं पिछ्ला पांच सालों मा हमर गां वाळ हीं भावना ग्रसित ह्वे गे छ्या कि हमर गां मा विकास नि हूणु च।
            वु  त जब उत्तराखंड मा पंचायत चुनाव आणो खबर सूणिक हमर ग्राम प्रधानन दिल्ली , लखनऊ , कलकत्ता अर मुम्बई का अखबारूं मा विज्ञापन अर भेंटवार्ता छपवाइन अर फेसबुक मा बि अपण मंतव्य बताइ तब जैक हम तैं पता चौल कि हमर गाँमा सैकड़ों योजना पूरी ह्वेन अर हमर गां तैं विकास कार्यों वास्ता राज्य सरकार , केंद्रीय सरकार ही ना अंतररास्ट्रीय संस्थानुं से योग्य्ता सर्टिफिकेट मिल्यां छन।
           मुम्बई का अखबारूं से हम पौड़ी गढ़वाल का एक गाँव वाळु तैं पता चौल कि जै रस्ता तैं हम गार -माटौ रस्ता माणदा छा वू वास्तव मा खड़िन्जा छन अर यी खडिंजा आयातित खडिंजा छन।  अब तक हम अपण गाँ मा अपण रिस्तेदार मेहमानो तैं शरम का मारा अपण गां नि बुलांदा छा।  यदि हम तैं पता चलद कि हमर गां मा आयातित खड़िन्जौं से सड़क बणी च त किलै हम बगैर मेहमानो दिन बितान्दा ? खैर अब मुम्बई का अखबारूं मा ग्राम सभा का विज्ञापनो से हम तैं पता चल गे कि हमर गां मा बि आधुनिक सड़क बणि गे तो हम अब अपण मेहमानु तैं बुलौला अर मुम्बई का अखबारूं कटिंग दिखौला कि ल्या द्याखो तुमर गां मा इंडियन सीमेंट से सड़क  बण पर हमर गां मा त इम्पोर्टेड खड़िन्जाओं से फस्क्लास रोड बणी।  या गर्व की बात हम तैं पैल पता हूंद तो हम हीं भावना ग्रसित किलै हूंद ?
           इनी हम गलत फहमी मा छया कि हमर गाँमा सिंचाई साधन नि छन तो हमर गांवाल देहरादून -भाभर पलायन करण लगी गे छा।  कलकत्ता का एक अखबार मा हमर ग्राम सभा का नव निर्माण शीर्षक विज्ञापन से हम तैं पता चौल कि पिछ्ला पांच सालुं मा हमर दस रगडुं माँ दस हौज बणिन।  हम गाँव वाळु की ही गलती छे कि हम भूलि गे छा कि यी रगड़ हमर गां की हद मा छन अर यूं रगडुं मा खेती बि ह्वे सकद।  हम त पचास सालुं से इन समजणा छया कि यी रगड़  राज्य सरकार की जमीन मा छन। खैर अब हम लोग खेती करणो अवश्य ही सुचला।
                 लखनऊ का अखबारूं मा हमर ग्राम सभा का कनेक्टिविटी प्रोग्राम विज्ञापन से हम तैं पता चौल कि हमर गां मा कथगा ही पुळ बणिन।  अर पुळ बि इन डांडों मा  बणिन जख शायद घ्वीड़ -काखड़ ही जांदा होला।  चूँकि हमर गाँकि महिला अर मरद अब डांड नि जांदन त हम तैं पता ही नि चौल कि अब हमारा वास्ता ग्राम प्रधान जीन इथगा सुविधा जुटै आलिन।
              इनी दिल्ली का अखबारूं से पता चौल कि हमर गां मा कथगा ही बाल कल्याण अर महिला कल्याण की योजना चलणी छन अर हम वांक फायदा ही नि उठै सकवां।
             खैर धीरे धीरे सबि विज्ञापनो से हम तैं पता चल गे कि हमर गां मा व्यापक विकास ह्वे अर सैकड़ों विकास की योजनाओं पर काम हूणु च।  अब हम गां वाळु की हींन  भावना ख़तम ह्वे गे अर अब हम ग्राम सभा द्वारा प्रकाशित विज्ञापन लेक दुसर गाँव वळु तैं चिरड़ाण मिसे गेवां कि द्याखो हमर गां मा कथगा विकास ह्वे गे। हम ग्राम प्रधान का आभारी छंवां जौन विज्ञापन से हमार आँख खोलिन अर बताइ कि हमर गां कथगा विकसित ह्वे गे ; विज्ञापनो से ही हम तैं पता चौल कि हमर गां उन्नति का पथ पर चलणु च।  थैंक यू !  ग्राम प्रधान जी !
              सुणन मा आयि कि आस पास का ग्राम प्रधान बि मुम्बई , दिल्ली , लखनऊ , कलकत्ता का अखबारूं विज्ञापन दीण वाळ छन। 
 


Copyright@ Bhishma Kukreti  2  /3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ] 

Bhishma Kukreti

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                                               आश्वासन से  पित्यां (परेशान )  दुख्यर

                                           चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

                ब्याळि मेरो  डाकटर दगड्यान चार बजि फोन कार बल यार भीषम , आज स्याम  डिस्पेंसरी मा भीड़ बढ़णो अंदेसा च त हेल्प का वास्ता डिस्पेंसरी ऐ जै।  मि तैं आश्चर्य ह्वे कि ये बगत त डाक्टरुं ऑफ सीजन चलणु च अर म्यार दगड्या की डिस्पेंसरी मा भीड़ बढ़णो अंदेसा च।  हैं ? क्या डॉकटर बि सर्वे कराण मिसे गेन जु यूं तैं पता चल जांद कि आज स्याम भीड़ बढ़न !
मि छै बजी डिस्पेंसरी पौंच  त द्याख कि डिस्पेंसरीम बीमारुं पिपड़कारो   लग्युं छौ।  नर्स बि डॉक्टरौ काम करणि छे अर चपड़ासी याने सफाई कर्मचारी इंजेक्सन लगाणु छौ अर एक नयो आदिम दवै बंटणो काम करणु छौ।
म्यार डॉकटर दगड्या मि तैं भितर लीग अर समजाण लग ," आज रविवार छौ अर आज सुबेर बिटेन लोगुन टीवी मा  अपण प्रिय नेताओं भाषण सुणेन अर बीमार पोड़ी गेन।  हर चुनाव का टैम पर इनी हूंद। "
मीन पूछ ," पर मीन क्या सहायता करण ?"
डाकटरन समजाई , " त्वै तैं बीमारुं से रोग का बारा मा पुछण अर दवै लेखिक दे दीण।  म्यार सफाई कर्मचारी अफिक  सही इंजेक्सन लगै द्याल अर प्रभावकारी दवा दे द्याल। "
मीन अपण धंधोळ जाहिर कार ," पर मै तैं दवा का बारा मा कुछ बि ज्ञान नी च। "
" बस तू जन एमएससी करद कै बि वनस्पति का नाम लैटिनाइजेसन करद छे ऊनि वै हिसाब से मरीज कु रोग का हिसाब से इंजेक्सन अर दवा का नाम पर्ची माँ लेख दे।  बकै म्यार सफाई कर्मचारी सब संभाळ द्याल।  बॉस रोगी तैं रोग अर दवाई का नाम लैटिन भाषा मा बताण नि बिसरी हाँ !"
मीन फिर संशय बताइ ," यार कुछ गड़बड़ ह्वे गे तो ?"
डाकटरन ब्वाल," कुछ नि होलु।  म्यार सफाई कर्मचारी जादा पढ्युं लिख्युं नी च तो वै पर संशय को रोग नि लगद।  वो सौब ठीक कौर द्याल।  "
मैकुण अलग पंक्ति मा अलग से कुर्सी टेबल , अर मेज मा दवाई , मेडिकल कम्पन्युं दियां गिफ्टों से मेज इन सजाये गईं छे कि मि वास्तव मा एमडी लगणु छौ।
पैलो मरीज आयि।
मीन पूछ - क्या हुयुं च ?
मरीज - कुछ ना ! मीन आज ममता बनर्जी का भाषण सुणिन अर मि तैं लग कि मि तैं वापस कोलकत्ता जाण चयेंद।
मि - कोलकत्ता वापस जाणै इच्छा किलै हूणि च ?
मरीज - वी त रोग च।  कम्युनिस्ट राज मा फैक्ट्री बंद ह्वे गे छा अर मि जवान ह्वेक बि काम की तलास मुम्बई ऐ गे छौ अर अब ममता बनर्जीक भाषण से लगणु च कि बंद फैक्ट्री खुल जाल !"
मि - तो ?
मरीज - पर असलियत या बि च कि बंगाल मा अबि बि फैक्टर्युं बंद हूण बंद नि ह्वे अर मि अनावशयक रूप से भरवस करणु छौं कि बंगाल मा बंद पड़ीं फैक्ट्री खुल जाल। "
मि - ओहो तुम पर ममताफिलिक बीमारी ह्वे गए।
मरीज - यी क्या बीमारी च ?
मि - कुछ ना अच्काल बंगाल मा या बीमारी फैलीं च।  जावो एंटीममता का इंजेक्सन ले ल्यावो अर मुंबईलवोसिन  कि गोळी खै ल्यावो।
हैंक मरीज बि बंगाली छौ अर वैक दगड़  एक केरल का मनिख बि छौ।
मीन पूछ -क्या हुयूं च
केरल वाळन बताई - यू एक फैक्ट्री मा प्रोडक्सन मजदूर च। पता नि जब बि यि प्रकाश  कारत या सीताराम येचुरी तैं टीवी मा दिखुद त यु अपण प्रोडक्सन मैनेजर तैं धकेलिक वैक कुर्सी मा बैठ जांद अर बरड़ाण बिसे जांद कि या कुर्सी त मजदूरो की च। अर फिर सरा मैना काम करण बंद करी दींद अर चौगुणी पगार की मांग करण बिसे जांद।
मीन बोल - हाँ या कॉमनस्टी  बीमारी अबि बि भारत मा च। तुम इन कारो ये तैं ऐंटि कम्युनिज्म का इंजेक्सन लगावावो अर प्रो -नरेंद्र मोदी की गोळी खलावो बस दूसर दिन ठीक ह्वे जाल।
 एक उत्तराखंडी अर एक केरल का प्रवासी दगड़ी ऐन अर बताण बिसेन - यु पलायन कब रुकल ?
मि -क्या मतबल ?
द्वी -क्या अब का चुनाव बाद पलायन सचेकी बंद ह्वे जाल ?
मि - वो तुम अपण नेताओं का बुल्युं पर अति विश्वास करदां क्या ?
द्वी - हां।
मि -तुमम पासपोर्ट बि च ?
द्वी - हाँ !
मि -तो तुम मौसम बदली का वास्ता दस सालुं कुण दुबई वगैरा घुमिक आवो।  अर अबि फुलिशसिन का इंजेक्सन लगावो अर  भरममानिरावो  की गोळी खै ल्यावो। 
एक पतळो  मुस्लमान आइ अर मीन पूछ -ये क्या हालात बना रखी है?  कुछ लेते क्यों नही हो ?
सींक  बरोबर कमजोर मुसलमान - इथगा सालों से खूब खाणा खांदु पण हर पांच साल मा सेक्युलर नामका सामाजिक कार्यकर्ता खून निकाळी   ली जांदन अर मि कमजोर ह्वे जांदु ।
मि -ठीक च तुम इन कारो अफिकअपणबारोमानिर्णयल्यावो  का इंजेक्सन लगावो अर निडरताफिलिक की गोळी खावो।
एक हिन्दू आयी अर पुछण लग - क्या अयोध्या में मंदिर बनेगा ?
मि - मि बीमारी पुछणु छौं।
वैक दगड़ अयूं दुसर  हिन्दू - पिछ्ला बीस साल से चुनाव बगत ये पर इनी रबत लग जांदो।
मि -ये तैं मुलायम सिंग की रैलियों मा भ्याजो।  अर अबि ''दिल चंगा तो कठोती में गंगा'' की गोळी खलावो  अर 'जित देखूं तित राम' का इंजेक्सन लगवावो।
एक मरीज आयी अर बुलण लग - क्या राहुल बाबा सचमुच में भ्रस्टाचार मिटा पाएंगे ?
मीन पूछ - कनो ? तुम तैं राहुल बाबा की ईमानदारी पर शक किलै   हूणु च ?
वु  मरीज - नै ! पिछ्ला पांच सालुं मा राहुल जीन भ्रष्टाचार का विरुद्ध कुछ नि ब्वाल अर अब भ्रस्टाचार मिटाणो बान नियम -क़ानून बणाणो बात करणा छन ?
मि - तुम तैं "सरा दिन से लटकी अर रत्यां पाणी अटकी " का इंजेक्सन लगवाण पोड़ल अर 'आश्वासन पर विश्वास नि कारो " की गोळी खाण पोड़ल।
इनी देर रात तक मरीज आणा रैन अर सब मरीज नेताओं का दियां आश्वासन का पूर नि होण से मानसिक  रोगी ह्वे गे  छा।  म्यार डॉकटर दोस्त का सफाई कर्मचारीन सब पर ग्लूकोज का इंजेक्सन लगाई अर मुंडर की गोळी खाणै दे।


Copyright@ Bhishma Kukreti  3/3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ] 


Bhishma Kukreti

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                                         पर्यांवरणवादी अर विकासवाद्यूं बीच फँस्युं सुंगर !

                                           चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

   गढ़वालम  हमर गां मा कोटद्वारा से सीधा मोटर सड़क कु नक्सा पास ह्वे , अन्य विभागुं से हरी झंडी बि मील अर बजेट पास बि ह्वे गे।  पर पर्यावरणवादी सड़क बणनो बीच ऐ गेन।  सड़क एक गदन से गुजरण वाळ च अर वै गदनम  पैल बंडी डाळ छा अब बड़ी मात्रा मा   सुंगर रौंदन।  पर्यावरण वाद्यूँ बुलण च बल गदन बटे सड़क आलि त सुंगुरुं तैं परेशानी होली अर पर्यावरणवाद्यूं भयंकर बिरोध से सड़क द्वी साल से जख्या तखी च याने सड़क कु काम जाम च। मुम्बई मा हमर गां वाळु  आठ अलग अलग संस्था छन   अर सबि संस्था वाळुन मितै आदेस दे कि मि गां जौं अर यथास्थिति का अलावा  सुंगरुं राय  बि जाणे जाव कि सुंगरू सड़क बणन पर क्या राय च।
त ब्याळि मि अपण गां बिटेन सुंगरुं बिचार जाणनो बान गदन ग्यों।
मीन एक सुंगुर द्याख अर वैसे बात करण चाहि कि वैन पूछ - तू हमर बच्चों कुण मूगफली , सकरकंदी बि लै ?
मि -तुमर बच्चों कुण मूगफली , सकरकंदी?
सुंगुर -हां पर्यावरणवादी हमर बच्चों कुण बजार बटे मूगफली , सकरकंदी लांदन अर विकासवादी चॉकलेट लांदन !
मि -अरे मि तैं पता हूंद कि तुम तैं चॉकलेट पसंद च तो मि गां वाळु  बांठ कम करिक चॉकलेट लयांद ! हां हां
सुंगर -इकम हंसणै बात क्या च।  तुम तैं पता च हम कथगा परेशानी मा छंवां ?
मि -सड़क ?
सुंगर -ओहो सड़क कि बात नी  च। सड़क संबंधित बात तो हमर नेता जी ही कारल
मि -अच्छा चलो मि तैं अपण नेता का पास लिजा
(सुंगर मी तैं अपण नेता का पास लीगे )
सुंगर नेतान मै पूछ   -इन बता तू तू विकासवादी कैम्प कु छे कि पर्यावरणवादी छे ?
मि -मि मुम्बई का प्रवासी छौं
सुंगर नेता -औ त इन बुल्दी कि तू  फ़ोकट मा  बेकार टाइम पास करण वाळ जंतु छे.
मि -नै नै मि मनिख छौं
सुंगर नेता - हां ठीक च बुनो कुण तु मनिख छे पर औकात त फंड धुऴयुं  जंतु की ही च , ना इखाक ना ही उखाक। 
मि -मीन सूण कि ये गदन से सड़क आली तो तुम तैं बड़ी परेशानी होली ?
सुंगर नेता -हां पर्यावरणवादी त इनी बुलणा छन कि सड़क बणन से हम तैं परेशानी होली।  परसि दिल्ली का पर्यावरण वादी अर वाँसे कुछ दिन पैल लखनऊ का पर्यावरणवादी हम तैं इनी बताइ गेन कि सड़क बणन से हम सुंगरुं  तैं भौत कठिनाई होली।
मि -जी आप अपण विचार बतावा।  पर्यावरण वाद्यूं बिचार तो अखबारूं मां आदि रौंदन।
सुंगर नेता -हम सुंगर छंवां , हम इन बातों पर ध्यान नि दींदा पर जब पर्यावरणवादी बुलणा छन तो हम तैं अवश्य ही कठिनाई होली !पर्यावरणवादी बिचारा भला मनिख छन।  पर लम्बा लम्बा भाषण दीन्दन अर पता नि कना कना चार्ट दिखाँदन भै ! यां तुम अपण दगड़  मूंगफली या सकरकंदी बि लयां ?
मि -मी तैं नि छौ पता तुम तैं मूंगफली अर सकरकंदी पसंद च।  मि तैं तुम लोगुं विचार चयाणा छन कि सड़क बणन से तुम सुंगुरुं  तैं क्या क्या कठिनाई ऐ सकदन ?
सुंगर नेता -जब बिटेन यी केजरीवाल आयी हम तैं छुट छुट बातुं पर अपण लोगुं से राय मशबरा करण जरुरी ह्वे गे।  मी जब तलक प्राइमरी (राय , सर्वे ) नि करुल मि आधिकारिक तौर पर कुछ नि बोल सकुद।
मि -ठीक च तुम सबि सुंगरुं से पूछो कि ये गदन सड़क आण से क्या तुम सुंगरुं  तैं कठिनाई होली ?
सुंगर नेता -भै जब पर्यावरणवादी बुलणा छन कि हम सड़क बणन से हम सुंगरुं जीवन खतरा मा ऐ जाल तो अवश्य ही हमर जीवन खतरा मा आलु।
मि -भै मि तैं तुमर राय चयाणी च कि यदि ये गदन से सड़क ऐ जाली तो सुंगरुं जीवन पर क्या नकारात्मक फरक पोड़ल ? पर्यावरणवाद्यूं से ही   पुछण हूंद त दिल्ली मा विमल भाई तैं नि पुछ्द ?
सुंगर नेता -अरे विमल भाई बड़ा बढ़िया आदिम छन बल।  कई दशक  पैल हमारी फेमिली गुमखाल जिना छे तो विमल भाई उख कोटद्वार -ऋषिकेश सड़क का विरोध मा ऐ छा बल अर ऊँन मेरी झड़ नानी की पड़नानी क दगड़ एक फोटो खिंचै  छौ।  विमल भाई मीलल तो ऊंकुण बुलेन कि वो वीं फोटो भेजी देन।  हम तैं अपण फेमिली ऐल्बम का वास्ता वा फोटो चयाणि च।
मि -आप जरा अपण कम्युनिटी से पूछिक आवो कि सड़क बणन से तुम सुंगरुं तैं क्या खतरा च ?
सुंगर नेता -ठीक च पुछणो जांद छौ।  पर यदि मूगफली या सकरकंदी लईं हूंद त कथगा बढ़िया हूंद।
(सुंगर नेता अपण रौणै जगा   जिना जांद )
मीन वै सुंगर से पूछ जु मि तै अपण नेता तैं मिलणो लै छौ -नेता जी कथगा देर मा ऐ जाला ?
सुंगर -वूंन अब कबि बि नि आण।
मि -हैं ! किलै ?
सुंगर -हम सुंगरुं मा बि दुपाल्टी च एक पर्यावरणवाद्यूं समर्थक च अर हैंक पाल्टी विकासवादी मनिखों   समर्थक च।  नेता जीन पुछण अर हमर इख घपरोळ शुरू ह्वे जाण। सवालन अनुत्तरित रै जाण बस झगड़ा ही बढ़ जाण।
मि - ओहो मुम्बई मा मि अपण संस्थाओं तैं क्या जबाब द्योलु ?
सुंगर - म्यार नाम नि लेल त एक बात बोलुं ?
मि -ठीक च बोल।
सुंगर - देखो  तुम मनिखों से हम सुंगरुं वास्ता समस्या या तुम पहाड़ मा रौण वाळु वास्ता हम  सुंगरुं से समस्या सड़क वडक से नि आयी।
मि - तो ?
सुंगर - जब बिटेन तुम पहाड्यूंन दूर दूर खेती करण छ्वाड़ तुमन हम सुंगरुं कुण समस्या खड़ी करी दे अर सुंगरुंन गाँवुं  नजीक बसण शुरू कौर दे अर यां से तुम पहाड्यूं कुण समस्या खड़ी ह्वे गे। समस्या सड़क नि छन , समस्या हमर निवास का नजीक खेती नि करण च।

Copyright@ Bhishma Kukreti  4/3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ]

Bhishma Kukreti

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                                       टॉमी डॉग अर माउस मा प्रतियोगिता

                                           चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )


ब्याळि मीन कुछ नि ल्याख।  लिखण कनकै छौ में से म्यार टौमी डौग नराज ह्वे गै  छौ। बात इन ह्वे।
टौमी डौग - मास्टर ,द्याखो! तुमर चाल चलन ठीक नि दिखेणा छन हां !
मि -हैं ! यीं उमर मा म्यार चाल चलन ठीक नि छन ! क्वी मेरि पुरणि प्रेमिका तै पता लगल त म्यार कु हाल ह्वे जाल !
टौमी -अचकाल त हर समय तुम अपण मूसौ दगड़ हि खिलणा रौंदा।
मि -म्यार ड्यार क्वी मूस नी च हां।  मीन यांक वास्ता रोडेंट रिपेलेंट बि लगायुं च।
टौमी -यदि तुमर ड्यार क्वी मूस नी च त हर समय कम्प्यूटर पर बैठिक माइ माउस , माइ माउस करिक क्या बुलणा रौंदा।
मि -ओ ! आर यू  टाकिंग अबाउट दैट इंटरनेट माउस ?
टौमी - हाँ मि तैई लुखुंदर   की बात करणु छौं।  अजकाल तुम तै पर ही चिपक्यां रौँदां अर म्यार तरफ ध्यान ही नि दींदा।
मि -अरे यू ना त मूस च ना ही लखुंदर।  एक नाम माउस च।
टौमी -हाँ तो माउस माने मूस या लखुंदर ही त हूंद।  जब बिटेन स्यु आयि तुम सब कुछ भूली गेवां
मि -ओहो अवश्य ही यु माउस च पर कै बि हिसाब से मूस या लखुंदर नी च। यु एक औजार च गैजेट च पर मूस नी  च।
टौमी -झूट ! इथगा ही प्रेम च त रावो माउस का  दगड़ सरा जिंदगी ! मि तै क्या पड़ीं च ?
मि -अरे टॉमी ! यदि मि माउस से काम नि ल्योलु त मि कुछ बि नि लेख सकुद अर गूगल सर्च से त्यार बान नया नया डॉग फ़ूड बि नि खुजे सकुद। मि माउस छोड़िक त्यार दगड़ रौल त तेरी बकबास ही सुणल और क्या ? मि त त्यार दगड़ बचऴयांद बि छौ और लोग त अपण कुत्तों दगड़ बचऴयांद बि नि छन।   
टौमी - किलै कि मि तैं बात करणै तमीज च बाकी कुत्ता त रोड छाप बात करदन !
मि -कबि कबि मेरी बि इच्छा हूंद तू बि चुप रौंद त ठीक छौ। अब जरा चुप रौ मि तैं अपण माउस से काम लीण दे।
टौमी -माउस , माउस अर माउस ! इन बतावो जब तुम अपण तै निर्भागी माउस का दगड़ दिन रात व्यस्त रौंदा त मीन क्या करण , मीन कैक दगड़ छ्वीं लगाण  ? रुबसी डॉग्याणि ले लईं हून्दी तुमारी  त मि वींकि दगड़ ले छ्वीं लगांदु।
मि -अरे चिकेन बोन या लैम्ब बोन क दगड़ खेली लेदी। और डौग जन  अपण समय बीतन्दन ऊनि तू बि टाइम पास करि लेदी।  पर  म्यार माउस का पैथर नि पोड़।
टौमी -यदि  पुस्सी  कैट बचीं हूंद ना तो स्यु माउस ये घौर त क्या बिल्डिंग मा बि नि घुस सकुद छौ।  साला माउस !
मि -अरे मीन ब्वाल नी कि यु माउस उन माउस नी च।  ये पर क्वी फरक नि पोड़द कि तू टौमी डॉग छे या पुस्सी कैट छे या टाकिंग पैरट । यु माउस एक निर्जीव गैजेट या यंत्र च बस। हाँ पर एक क्लिक कारो ना कि यु माउस गर गर दौड़न मिसे जांद।  ऐन एक्सेलेंट !
टौमी - आज तक तुमन मेखुण कबि एक्सेलेंट डॉग नि ब्वाल अर ब्याळै लयुं माउस तुमकुंण एक्सेलेंट ह्वे गे।  तुमन अपण जिंदगी मा कै जानवर की बड़ाई कार बि च त रेस का घ्वाड़ा प्रशंसा कार वू बि जब तुम रेस जीती गए ह्वेल्या।
मि -ठीक च ! ठीक च ! जा कखिम पोड़ी जा अर  मि तैं माउस का दगड़ काम करण दे।
टौमी -जावो जावो ! अपण माउस का दगड़ ख्यालो।  एक बात बतावदी जब स्यु निर्भागी मूस जन दिख्यांद बि नी च फिर बि तुम तैकुण माउस किलै बुलदवां। किलै ना तैकुण तुम डौग नि बुलदवां ?
मि -यांक जबाब तो राफ बेंजामिन जैन 1946 मा बाल ट्रैकर बणै छौ या डगलस इंजेलबॉर्ट जैन 1963 मा पैल बार माउस प्रोटोटाइप बणै छौ ही दे सकदन।
टौमी -तो ऊं से जबाब मांगो कि एक नाम माउस किलै धार अर डौग किलै नि धार ?
मि - ठीक च जब मि वै लोक जौलु त ऊं तैं पूछिक बताइ द्योलु।


Copyright@ Bhishma Kukreti  5/3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ] 


Bhishma Kukreti

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                                                       जु मि धनी हूंद त ?

                                         चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

              एक बात च जु मैकुण चिंता का विषय च अर जैक बाराम तैं सोचि सोचिक मि तैं रात भर निंद नि आंद अर वा च धन ! धन नि होणै चिंता ना , हालांकि मीम धन नि हूण बि चिंता कु विषय च। पण  मेरी असली  चिंता च कि कखि मीम अचाणचक भौत सारा धन ऐ गे त मि क्या करुल ? जन कि अजकाल नेताओं , ठेकेदारूं , अधिकार्युं , उद्यमपत्यूं  मा अचानणचक अन्दादुंद धन   आणु च त कखि मीम बि इनी भौत पैसा ऐ गे तो ?
         अब जन कि मीम भौत धन ऐ गे तो क्या म्यार बच्चों मा म्यार मरणो बाद झगड़ा नि पोड़ जाल ? जब मुकेश अम्बानी अर अनिल अम्बानी मा अथा धन हूणो उपरान्त बि पैसौं बान अनबन ह्वे सकद तो अवश्य ही म्यार बच्चों मध्य बि त अनबन ह्वे सकद कि ना ? मि जब अनबन का बारा मा सुचुद त मेरी रूह काम्पण बिसे जांद अर मि तैं रात भर निंद नि आदि !
            अब जन कि मीम अरबों रुपया ऐ जाल तो अवश्य ही इनकम टैक्स वाळ म्यार पैथर पोड़ल जन कि इनकम टैक्स वाळ जगन रेडी , मुलायम सिंग आदि का पैथर पड्यां  छन इन मा इनकम टैक्स वाळु  से बचणो बान मि तैं कॉंग्रेस तैं सेक्युलरिज्म का नाम पर भैर बटे सपोर्ट दीण पोड़ल। मतलब मि तैं पोलटिक्स मा आण पोड़ल।  अर मि तैं पॉलिटिक्स मा आण सोचिक ही गस आण शुरू ह्वे जांदन कि मि तै हर समय झूठ बुलण अर मक्कारी करण पोड़ल।
             फिर मी सुचुद कि मीम अथा धन ऐ जाल त दरजनेक गाड़ी , द्वी चार चौपर हवाई जाज ले ल्यूल। पण जब मीम चौपर हवाई जाज होला तो चुनाव टैम पर कैं पोलिटिकल पार्टी तैं अपण चौपर देलु का विषय मा सोचिक ही मेरि निंद उड़ जांद।  जौं तैं चौपर दे यदि वू चुनाव हारी गयाइ अर जै तैं नि द्याई वू चुनाव जीति गयाइ तो बड़ो नुक्सान ह्वे जालु।  वै नुक्सान का बारा मा सोचिक मेरि द्वी कुल्ली खाण मिसे जांदन अर में पर अधकपळि ह्वे जांद अर इन मा मेरि नींद हर्ची जांद !
  फिर मि ध्यान करुद कि जब मीम इथगा धन ऐ जाल त अवश्य ही मि तैं राजनीतिग्यों तैं अपण खीसाउंद धरणी पोड़ल अर मि तैं कै पवार ब्रोकर का मार्फ़त पोलिटिकल पारट्यूं का बडु नेता तैं आदेस दीण पोड़ल कि कै तैं मंत्री बणाण अर कै तैं राज्यपाल बणान।  सबि राजनैतिक पार्टी वाळु तैं मेरी बात मानण ही पोड़ल किलैकि चाणक्य , राणा प्रताप , मुग़ल या ब्रिटिश राज मा असली राज तो बणियों याने धनिकों कु ही राइ  तो प्रजातंत्र मा बि राज तो धनियूं कु ही रालो।  जब सब मंत्री म्यार हिसाब से ही  बुल्युं मानल  जन कि अपण पऴयूं  कुत्ता। किन्तु यदि राडिया टेप जन क्वी केस ह्वे गयाई अर आम आदमी पार्टी का धुर्या कजीरवाल मै पर कजीर फेंक द्याल तो मी क्या करुल ? राडिया टेप कु अंदेसा से मी परेशान रौंद कि क्या करे जाव कि धनियूं अर बिचौलियों बीच बातचीत टेप नि ह्वे साकन।
  फिर जब मीम इथगा धन ऐ जाल तो मि तैं अफु तैं धनी दिखाणो बान भौत सा क्लबुं सदस्य बणन पोड़ल अर क्रिकेट मैच पर सट्टा लगाण ही पोडल अर कखी ये दौरान म्यार जवाइं बि मयप्पन का तरां सट्टा मा पकड़े गे तो मेरि बेज्जती नि होली ? मी श्रीनिवासन जन बेशरम त ह्वे नि सकुद कि बेज्जती तैं बि धन्युं क  शान सौकत समझुं ! बस जवाइं को सट्टा खिलण अर फिर पकड़ मा आण से बेज्जती हूणै चिंता से मि सरा रात सोई  नि सकुद।
            फिर जब मीम बिंडी पैसा आल तो हौर कमाणो बान मि चिट फंड का नाम पर लोगुं तैं चीट करुल अर फिर सर्वोच्च न्यायालय का दबाब से मी तैं जेल होलि। क्वी ईमानदार म्यार मुख काळ करणो बान काळी स्याही फेंक द्यालो जन कि महान धनी सुबर्तो राय कु मुख सरेआम काळु हवाइ अर वै तैं चीटिंग कु केस मा पुलिस हिरासत मा तिहाड़ जेल जाण पोड़। चिट फंड मा चीटिंगकु कारण   जेल जाण अर मुख काळु हूणों भय से मि भयभीत ह्वे जांद अर मि तैं नींद नि आदि।
           पर फिर एक बात से खूब नींद आंद कि कुछ बि ह्वावो हमर इख सर्वोच्च न्यायालयन ही प्रजातंत्र की साख बचाइं च निथर तो .....




  Copyright@ Bhishma Kukreti  6/3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ]   

Bhishma Kukreti

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                                 कुछ चीज /बात  जु मितै पसंद नि छन

                                       चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती       
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

आज म्यार मूड ठीक नी च अर मूड खराब हूण मि तैं बिलकुल पसंद नी च।
मि तैं सिगरेट पीण पसंद नी च पर सिगरेट पियां बगैर रै बि नि सकुद।
मि तैं गढ़वाल मा गढ़वाऴयूं शराब पीण पसंद नी च , म्यार हिसाब से वांकुण गढ़वाऴयूं तैं प्रवासी हूण जरुरी च।
मि तैं यी पसंद नी च कि लोग अपण बच्चों तैं भारत मा पब्लिक या कॉन्वेंट स्कूल मा पढ़ावन , इलै मि अपण नात्युं तैं पढ़ाणो विदेस भिजणु छौं।
मि तैं वू लोग पसंद नि छन जु बुल्दन कि भारत मा क्या च ? अरे हमर इख इन बुलणै स्वतंत्रता त छैं च कि ना कि भारत मा रख्युं क्या च ?
मि तैं चुनावुं मा जातिक हिसाब से वोट दीण पसंद नी च पर तब जब मेरी जातिक नेता तैं जिंताण बि त म्यार धर्म च कि ना ?
मि तैं रात मा दूसरों बच्चों रूण पसंद नी च अर रात मा कुकरुं  भुकुण त बिलकुल पसंद नी च।
मि तैं चुनाव विश्लेषकों भविष्यवाणी बिलकुल पसंद नी च किलैकि यि सब अचकाल दुराग्रही छन।
मि तैं बड़बोला लोग पसंद नि छन।
मि तैं वु लोग पसंद नि छन जु मेरि बात टक लगैक नि सुणदन पर दगड़ मा मि तैं हिदायत दीन्दन कि लोगुं बात ध्यान से सुणन चयेंद।
मि तैं फेस बुक मा वु फ्रेंड पसंद नि छन जु बगैर पौड़िक मि तैं Like करदन अर मि तैं दूसरों लिख्युं पढ़णो टैम ही नी च इलै मि कै तैं Like करदु ही नि छौं।
मि तैं ड्यारम बैठ्युं रौण पसंद ही नी च अर यात्रा करण (रेल से अर बस से ) बिलकुल भी पसंद नी च।
मि तैं वु लोग पसंद नी छन जु बुल्दन वु  म्यार बारा मा सब कुछ जाणदन कि मि कै प्रकारों मनिख छौं।
मि तैं वु साहित्यिक दगड्या पसंद नि छन जु अफिक त मकूण  फोन नि करदन पर जब मि फोन करुद त बुल्दन बल "क्या बात भौत दिनों बाद मेरि याद आयी ?"
मि तैं वु लोग पसंद नि छन जु मि तैं सिगरेट अर दारु नि पीणो बान अड़ान्द (हिदायत दीण )  छन।
मि तैं गरीबी पसंद नी च अर काम करण बि पसंद नी च।
मि तैं यी पसंद नई च कि म्यार नाम वोटर लिस्ट मा नि ह्वावो पर वोट दीण मि पसंद नि करदो
मि तैं सैकड़ों चीज पसंद नि छन पर फिर बि मि वुं बातों तै ही करदु जु मि तैं पसंद नी छन। 
 



Copyright@ Bhishma Kukreti  7/3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ] 

 

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