Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 360822 times)

Bhishma Kukreti

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 Garhwali Humor  , Satire, Wit, Sarcasm on Medical Plants Cultivation in Uttarakhand


                                 हाँ ! हरीश रावत जी बि औषधीय वनस्पति कृषि का समर्थक छन !

                                              झुळा  छाप चबोड़्या बैद :: भीष्म कुकरेती


ब्याळि , मखुली बोडि घाम तापणो बैठीं छे कि वींक दस वर्षकुल झड़नाती नाती अख़बार लैक पढ़न मिसे गे अर जोर से खबर सुणान लग गे बल उत्तराखंडौ मुख्यमंत्री हरीश रावत जीन बोले बल किसानो तैं औषधीय वनस्पत्युं खेती वास्ता प्रेरणा दिए जाण चयेंद।
झड़ नाति इन बेकारौ  खबर सुणै गुच्छि खिलणो चलि गे अर मखुली बोडि भूतकाल मा चलि गे।
            सैत च तब मखुली बोडिक उमर दस सालक रै होलि तब एक अंग्रेज लाट साबन नैनीताल मा बोलि छौ बल कुमाऊं कमिश्नरी का किसानों तैं  औषधीय वनस्पति उगाण चयेंद।  तब गाडी बस त छ ने त लाट साब जीक बात गांवक पधानम आंद आंद द्वीएक साल लग गेन।  गांमा कुछ लोग  गांधी जीक जै बुल्दा जरूर छा पर अंग्रेज लाट साबौ आदेश सणि बि प्रभु आदेस माणदा छा।  जब पधान जीमा लाट सबक रैबार पौंच त गांवक जणगरा , सयाणा , युवा लोगुं तैं पूरो भरवस ह्वे गे कि यदि लाट साबन बोल त अवश्य ही हैंक साल गांमा औषधीय वनस्पति की खेती करण जरूरी ह्वे जाल।  अंग्रेज लाट साब भारतीयों पर कथगा बि लात लगांद छा पर सरकारी योजना पूर करण मा कबि बि पैथर नि हटद छा।  ऋषिकेश -कोटद्वारम रेलवे स्टेसन यांक गवाह च कि अंग्रेज लाट साब लात मारिक योजना पूरि कर हि दींद छा।  लात मार मारिक  हर बीस सालम पैमास बि अवश्य हुंदी छे। तो गांव वाळु तैं पूरो विश्वास ह्वे गे कि अगलि फसल औषधीय वनस्पति की ही हूण वाळ च।  क्यांक फसल होलि यांक अंदाज तो कै तैं नि लग पर यु अंदाज लग त गे कि फसल लगलि अवश्य।  बस किसानुंन औषधीय फसल बूंण -लौणो तयारि करणो बान नयो नाड़ु -निसुड़ , नयो हौळ-ज्यु  ,  नयी सोटी तयार त कारी च दगड़ मा कुटी , दाथि , सब्बळ बि पैनाणो अणसाळम दे दे।  लोगुं तैं अंग्रेजुं पर ना, ना ही अंग्रेज मेम साबुं  पर किंतु अंग्रेजुं जवान पर पूरो भरवस छौ। गढ़वाल मा अल्लु , चा , सेव की खेती कराण बि त अंग्रेजुं ही सिखाई छे।    किंतु अबै दैं अंग्रेज साब लोग धोखा दे गेन, यु पैलु धोखा छौ अर अंग्रेज लाट साब राजपाठ नेहरू जी तैं देक अपण देस वापस चलि गेन। लोगुंन नयो नाड़ु -निसुड़ , नयो हौळ-ज्यु  ,  नयी सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ ढैपर धौर दे।
   तब पंडित गोबिंद बल्ल्भ पंत जीक उत्तर प्रदेस   मा राज छौ।  पंत जीन बि सम्पूर्णा नन्द जीक हाँ मा हाँ मिलांद बोलि बल पहाड़ों मा औषधीय वनस्पति उगाये जाली अर सरकार मदद देलि।  लोगुंन नाड़ु -निसुड़ , नयो हौळ-ज्यु  ,  नयी सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ ढैपर बिटेन गाडि अर चौक मा धौरि दे।  लोगुं तैं पंडित गोबिंद बल्ल्भ पंत जी पर भरवस छौ। पर पंडि जी दिल्ली चल गेन अर लोगुंन औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ फिर से ढैपर दे धौर. पर मखुली बोडिक बुबा जीन औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ मखुली बोडिक ससुराल पौंछे दे कि कुज्याण कखि  औषधीय वनस्पति  की खेती करणो बान जरूरत पोड़ि तो बेटी तैं क्वी परेशानी नि हो।
    भौत दिन तक पहाडुं मा औषधीय वनस्पति की खेतीक बात बंद राइ शायद।  किन्तु एक दिन गांमा हल्ला ह्वे गे कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्र्याणि सुचेता कृपलानी चाणि च बल पहाडुं मा औषधीय वनस्पति की खेती हो।  लोग सुचेता कृपलानी पर विश्वास करदा छा अर लोगुंन  औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ फिर से ढैपर से उठैक चौक मा धौरि दे।  पर पता नि सुचेता कृपलानी स्याइ या जगमोहन सिंग नेगी या रामप्रसाद बहुगुणा से गेन धौं पर पटवारी जी -पधान जीमा औषधीय वनस्पति बारा मा क्वी खबर नि ऐ।  एक घाम -बरखा-जड्डू  नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळन चौक मा ही बताइ।  पहाड़ी लोग उन बि बणिया लोगुं पर क्या , नेताओं पर बि विश्वास कर ही लींदन।  तो सब साजो सामन फिर से ढैपर ना पर गौशाला जोग करे गे।
   फिर सुंनसान राइ अचाणचक खबर आइ कि उत्तर प्रदेस का लौह पुरुष चन्द्र भानु गुप्ता पहाड़ों तैं औषधि क्षेत्र बणाण  चाणा छन। त लोगुन औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ तैं फिर से घाम तपाये अर कुछ समय बाद सबि चीजुं तैं गोशालक कूण्या जोग कार।
 त्रिभुवन सिंग अर चरण सिंग, कमलापति त्रिपाठी से पहाड्यूं तैं निराशा की ही आशा राइ तो औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ सन्नी /छन्नी का कूण्या जोग रैन।
अचानक खबर आयि बल हेमवती नंदन बहुगुणा मुख्यमंत्री बण गेन। बहुगुणा जीन औषधीय खेतीक बात नि करी पर आस मा मखुली बोडिक नौनान औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ सन्नी /छन्नी तैं घाम तपै करै इ दे।
फिर जब नारयण दत्त तिवाड़ी मुख्यमंत्री बणिन तो बिचारा संजय गांधीक चप्पल उठाण मा इ व्यस्त रैन या अब पता चलणु च कि तिवाड़ी जी प्रोफेसर शेर सिंह का ड्यार चक्कर मारण मा व्यस्त रैन या इंदिरा हृदयेश तैं राजनीति का पाठ पढाणम व्यस्त रैन तो औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ सन्नी /छन्नी का कूण्या जोग हुयां रैन।
  फिर तो पता नि दुसल उत्तर प्रदेश मा मुख्यमंत्री बदलेणा रैन अर हरेक मुख्यमंत्री पहाड़ों की औषधीय वनस्पति की असीम संभावनाओं  गंभीर छ्वीं बि लगाणा रैन।  किंतु औषधीय वनस्पति का वास्ता निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ सन्नी /छन्नी का कूण्या से भैर नि ऐ सकिन।
उत्तराखंड का आंदोलनकारयुंन लोगुं तैं भरवस दिलै छौ कि एक दिन पहाड़ औषधीय वनस्पति प्रदेश बौणल।  किंतु जब आंदोलनकार्युं तैं   वोट इ नि मिलेन त औषधि वनस्पति प्रदेस की क्यांक बात करण।
जन लोग श्राधुं टैम पर अपण ब्वै बाबुं तर्पण दींदन उनि हरेक मुख्यमंत्री कबि कबि बुल्दा अवश्य छा कि उत्तराखंड में औषधि वनस्पति की खेती होनी चाहिए किंतु अब नेता त  ना किंतु लोग चतुर ह्वे गेन।  जनि मुख्यमंत्री बुलद कि पहाड़ों में औषधीय वनस्पति उगाई जायेगी तनि लोग गां से भाज जांद छा।
परसि  हरीश रावतन भाषण देन अर ब्याळि मखुलि बोडि गौशाला गे अर सड्यां  निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ पर आग लगैक ऐ गे
आज सुबेर सुबेर तिरासी चौरासी सालक मखुली बोडि अपण झड़नात्यूं लेक कोटद्वार ऐ गे। अर मखुली बोडि तैं पक्को विश्वास च कि सन 2047 मा बि उत्तराखंडौ मुख्य्मन्त्रिन भाषण दीण कि उत्तराखंड में औषधीय वनस्पति की खेती की जानी चाहिए किंतु निड़युं   नाड़ु -निसुड़ ,  हौळ-ज्यु  ,   सोटी, पैळयां  कुटी , दाथि , सब्बळ  प्रयोग तबि बि नि होलु ।


Copyright@  Bhishma Kukreti 6 /12 /2014   


   *लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।


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                  स्वच्छ भारत  , स्वच्छ भारत , बुद्धिमान भारत

Bhishma Kukreti

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Garhwali Humor  , Satire, Wit, Sarcasm on Cultural Shock of 2064

                          2064 मा कल्चरल शौक याने सांस्कृतिक झटका

                                  चबोड़्या बक्कि ::: भीष्म कुकरेती

   मानव सभ्यता मा जथगा बदलाव बीसवीं सदी मा ह्वेन उथगा बदलाव पैलि मानव सभ्यता मा ह्वेइ नि छा।  जथगा चौड़ जल्दी बदलाव आज दस सालुं  मा हूणु च तथगा बदलाव पैल दस हजार साल मा बि नि ह्वे छौ।
 सन 2064 तक दुन्या मा इथगा चौड़ -चौड़ , जल्दी -जल्दी , बिजली की गति से बदलाव ह्वाल कि म्यार नौनु ना , म्यार नाती ना बल्कि पड़नाती तैं बि सन 2064 मा रोज सांस्कृतिक झटका , सांस्कृतिक धक्का याने कल्चरल शौक लगणा राल।
                     तब लोकसभा या राजयसभा मा हंगामा ह्वे , सांसद संसद कुंवा मा ऐन , संसद बीस मिनटों कुण बर्खास्त ह्वे जन न्यूज क्वी समाचार नि होल किलैकि संसद मा हल्ला-हंगामा -हड़कम संस्कृति कु बोलबाला राल।  म्यार पड़नाती तैं सांस्कृतिक धक्का तब लगल बल जब न्यू जनरेसन इंटरनेट से समाचार सौरल (वाइरल ) कि आज लोकसभा  नौ मिनट नौ  सेकंड  तक बेहंगामा की चौल , राजयसभा मा आठ मिनट अठाईस सेकंड तक शान्ति राइ अर महाराष्ट्र विधानसभा मा अदा घंटा तक विधान सभा मा हल्ला त ह्वाइ च पर बारा बजी से बारा बजिक चालीस मिनट तक विधायकों बीच जुत -चप्पल नि चलिन।
    WTO वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेसन की धौंस से भारत मा एक्साइज , कस्टम , सेल्स टैक्स , इनकम टैक्स सबि टैक्स खतम ह्वे जाल।  किंतु सरकारी कारिंदौ भर्ती , सरकारी खर्चा , नेताओं सेलरी -सेक्युरिटी बंद नि होलि।  तो सरकारी खर्चा चलाणो बान नया नया प्रकार का टैक्स ,लेवी , कर लगाये जाल।
 सबसे कम आमदानी टैक्स होलु नेताओं द्वारा एक दुसर तैं 'मौत का सौदागर ', इम्पोटेंट -शिखंडी ' हरामजादा ' जन गाळयुं पर टैक्स।  सरकारी आमदनी का   दस प्रतिशत नेताओं पर गाळी कर से होलि।  नेताओं तैं हर पंदरा दिन मा गाळी -गळोज टैक्स भरन जरूरी होलु।  जु नेता हैंक नेता तैं शर्मनाक , गंदी गाळि  नि द्याल वु नेता लोकसभा , विधानसभा तो छोडो इन नेता -नेत्यांण  ग्रामपंचायत का चुनाव बि नि लड़ सकद होला।
हैंक टैक्स होलु अपण आस पास गंदगी करणो टैक्स। नरेंद्र मोदी सरकार GDP का एक प्रतिशत सफाई अभियान मा खर्च कारली तो बि हम भारतीय गंदगी नि छुड़ला तो झक मारिक सरकार गंदगी टैक्स लगाली।  लोग गंदगी टैक्स भरण सरल मानल किंतु साफ़ सफै नि सीखल।  समाज मा गर्व से लोग बताल कि मीन ये साल इथगा गंदगी टैक्स भार।  जु जथगा बिंडी गंदगी टैक्स भौरल याने जु जथगा अधिक गंदगी कारल   वैक समाज मा सबसे अधिक सम्मान होलु। नगरपालिका कु खर्चा गंदगी टैक्स से ही चौलल।  स्मार्ट अर अल्ट्रा स्मार्ट सिटीज मा नगरपालिका की सबसे अधिक आय गंदगी टैक्स से होलि।
भ्रस्टाचार खतम ह्वे नि सकल तो सरकार भ्रष्टाचार टैक्स लगाण  शुरू करी देलि अर सरकार की मुख्य आमदनी भ्रष्टाचार टैक्स से हि होलि। हरेक सरकार भ्रष्टाचार टैक्स बढ़ाणो विधेयक लाली अर विरोधी दल क्वी बि हो वु दल भ्रष्टाचार टैक्स कम करणो बान संसद या विधानसभा मा जुत -चप्पल चलाल।  किंतु जब संसद मा वित्त मंत्री बयान द्याल कि वैश्विक मंदी से भारत मा भ्रस्टाचार मा कमी ऐ गे तो संसद मा विरोधी दल हंगामा कारल कि सरकार भ्रस्टाचार बढ़ाणम नाकामयाब ह्वे।  चुनावी मुद्दा यु नि होलु कि भ्रष्टाचार कम कारो किन्तु यु होलु कि भारत मा भ्रष्टाचार दस गुणा कनै बढ़ाये जाव।
भारत मा अंतर्जातीय विवाह से जाति प्रथा खतम त होलि किंतु रिजर्वेसन का खातिर दलित अर अन्य जाति सिद्ध करणा राल कि भारत मा जाति प्रथा हूणी चयेंद , रौणि चयेंद।  तब छुवाछुत बंद करो कु अभियान नि चौलल अपितु छुवाछुत अमर रहे कु अभियान चौलल।
अंतर्जातीय विवाह संस्कृति बण जालि अर कदाचित क्वी गढ़वळि सजातीय विवाह की इच्छा कारल तो समाज वैक हुक्का पाणि बंद कर द्याल।
तलाक इथगा आम ह्वे जाल कि लोग शादी ही नि कारल अर बच्चा सिरफ टेस्ट ट्यूब से ही होला।  हर गली मा टेस्ट ट्यूब बेबी प्रोड्यूसिंग फैक्ट्री होली।  यी फैक्ट्री रोज विज्ञापन द्याल -टेस्ट ट्यूब बेबी धरणो बान जनानी चयाणी छन।  जनान्युं तैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की तनखा अर पेन्सन  पट्टा मीलल।  फिर बि टेस्ट ट्यूब धारक जनान्युं भारी अकाळ रालो।
उन इन बि ह्वै सकद कि पढ़ै -लिखै इथगा मैंगी ह्वे जालि  कि समाज मा बच्चा पैदा करण गुनाह माने जाल।
इनि हजारों भौत सा सांस्कृतिक धक्का /झटका लगल।
बकै आप बि त स्वाचो कि कना कना सांस्कृतिक झटका लगल ?



7/12/14 ,Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India


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Bhishma Kukreti

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 Garhwali Humor  , Satire, Wit, Sarcasm on Worrying on  False Love for Garhwal


                                  क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है ?

                                           चबोड़्या ::: भीष्म कुकरेती

           ( जगा पुरस्कार दीणो स्टेज )
आयोजक - क्या तुम रुणा रौंदा कि सरकार कुछ नि करणी च ?
पुरस्कार इच्छुक - हाँ अवश्य ही सरकार कुछ नि दिखणि च , करणि च , मी तैं अबि तक उत्तराखंड श्री पुरस्कार नि मील !
आयोजक - तुमर रुण या च कि सरकार कृषि तरफ ध्यान नी दीणी च, तुमन अपण बुबा जीक टैम पर बि अपण चौकम बल्द नि देखि छा अर तुमर आंदोलन च कि पहाड़ी खेतों वास्ता सरकार तैं मिनी ट्रैक्टर बंटण चयेंद ?
पुरस्कार इच्छुक - अवश्य ही पहाड़ूँ मा ट्रैक्टर बंट्याण चयेंदन।
आयोजक - तो आपको दिया जाता है गढ़वाली कृषक श्री  पुरस्कार !
xx
आयोजक - क्या तुम बाँध विरोधी छंवां ? बाँध विरोध का वास्ता हर द्वीए मैना मा धरना दींदा ? जंगळ कटान विरोधी छंवां ?
पारितोषिक प्राप्ति इच्छुक - हाँ भै हाँ ! मि पहाडुं मा मोटर सड़क विरोधी बि छौं।
आयोजक -क्या तुम पिछ्ला चालीस सालुं से दिल्ली मा निवास करदां ?
पारितोषिक इच्छुक -हाँ भै हां ! मि दिल्ली मा रैक पर्यावरण NGO चलांदु।
आयोजक - आप तैं हम मिनी मैगासे पारितोषिक दींदा !
xx
आयोजक - आप चिंतित छन कि पाख -पखड्यूं मा जड़ी बूटिक खेती हूण चयेंद ? क्या आप दुखी छंवां कि उत्तराखंड मा जड़ी बूटी उद्यम नि खुल्याणा छन ? क्या आप चांदन कि गढ़वाळम आयुर्वेदिक अनुशंधान केंद्र  खुले जावन ?
इनाम इच्छुक -हाँ जी हाँ !
आयोजक -क्या आपक महाराष्ट्र मा तीन एलोपैथी दवाऊं फैक्ट्री छन ?
इनाम इच्छुक - जी हाँ ! जी हाँ ! मि एलोपैथी दवाऊं फैक्ट्रीउं मालिक छौं।
आयोजक -आप तैं उद्यम श्री का इनाम दिए जांद।
xx
आयोजक -आप गढ़वाळि भाषा क्षरण से परेशान छन ? क्या आपकी परेशानी या च कि प्रवासी अपण भाषा बिसरी गेन ? क्या आप परेशान छन कि गढ़वाळम बि गढवळि गढवळिम नि बचळयांद ?
पुरस्कार इच्छुक -हाँ मीन गढवळि भाषा मरणी च पर पचास साठ लेख छपैन , द्वी किताब छपैन अर UNO दगड़ बि हर मैना पत्राचार करणु रौंद।
आयोजक -क्या आप अपण घरवळि दगड़ गढवळि मा बचळयांद छंवां ?
पुरस्कार इच्छुक -ना।
आयोजक -क्या आप अपण बच्चों दगड़ गढ़वळि मा बातचीत करदां ?
पुरस्कार इच्छुक -ना , कबि ना , सुपिन मा बि ना।
संयोजक - क्या आपन कबि गढ़वळि मा लेख कविता बि पौढ़ ? क्या आपन कबि गढ़वळि मा क्वी लेख ल्याख ? क्या आपन गढवळि मा भाषण बि दे /
पुरस्कार इच्छुक - ना मि तैं गढवळि बुलण आदि च , पर लिखण अर पढ़ण नि आंद।
संयोजक - आप तैं गढवळि भाषा सरक्षक बणये जांद।
xx
संयोजक - क्या आप सुबेर स्याम फेसबुक मा गढ़वाल संबंधी फोटो पोस्ट करणा रौंदा ?
पुरस्कार इच्छुक - हाँ! हाँ! जी हाँ मि फेसबुक मा गढ़वाल की भौगोलिक फोटो , सांस्कृतिक झांकी की फोटो , उजड़दा  कूड़ूं फोटो हर समय पोस्ट करणु रौंद।
संयोजक - आप पटियाला रौंदा तो कबि गढ़वाळ बि जाँदा ?
पुरूस्कार इच्छुक - जाण कनकै च , ऊख रौण कख च च ? कूड़ त उजड़िक जमींदस्त हुयुं च।
संयोजक -वेरी गुड ! आपको गढ़ -गौरव का पुरस्कार दिया जाता। है

8/12/14 ,Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India


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Bhishma Kukreti

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                   Economic Principles Explained through Satire and Humor

                                  अर्थशास्त्रीय  सिद्धांतुं व्याख्या

                              गढ़वाळि हास्य -व्यंग्यकोष -भाग -30       

                               Garhwali Humorous and Satirical Dictionary part -30     

                                     खुज्याण , छिंडन, छँटण, बिंवन,  उकरण   ::: भीष्म कुकरेती
                            माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
                            समाजवाद
माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
सरकार एक गौड़ी तुममन लींदी अर तुमर पड़ोसी तैं दे दींदी !

                          साम्यवाद
माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
सरकार तुममन द्वी गौड़ी ले लींदि अर तुम तैं थुड़ा सि दूध दींदि !

                      फ़सिस्टवाद

माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
सरकार तुममन द्वी गौड़ी ले लींदि अर तुम तैं थुड़ा सि दूध बेचि दींदि           
                       नाजीवाद

माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
सरकार तुममन द्वी गौड़ी जबरदस्ती ले लीन्दि अर तुम तैं मारी दींदि

                    नौकरशाही

माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
सरकार तुममन द्वी गौड़ी ले लेंदी अर एक गौडि मारि दींदि , दुसर गौडि पिजांद अर दूध इना उना खौत दींदि

                     पूंजीवाद

  माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
तुम एक गौड़ी बेचिक संडा ले लींदा।
 इनमा गोरुक संख्या बढ़ान्दा,
अंत मा तुम सब बेचीं दींदा अर मजा से रिटायर जिंदगी बितान्दा !

             भारतीय साम्यवाद

माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
तुम स्ट्राइक पर जाँदा, हो हल्ला मचौन्दा, सड़क जाम करदा , सरकारी बस जळौन्दा , संसद जाम करदा कि यी द्वी गौड़ी अफिक तीन गौड़ी किलै  नि हूणा छन।
 
                     भारतीय लालूवाद
  माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
कुछ समय वाद चारा नि मिलण से गौड़ी दूध दीण बंद कर द्याला।  तुम गौड्युं दूध नि दीणो अभियोग-भगार भाजपा पर लगै दींदा अर सरकार से मुवावजा लींदा ।

                 मुलायमी समाजवाद

माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
तुम यादव पुलिस की सहायता से उत्तरप्रदेश का सबि गौड़ी अपण गुठ्यार मा बाँधि लींदा।

                  मनमोहनसिंघी आर्थिक सुधार
माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
तुम द्वी गौड़ी विदेश्यूं तैं बेचिक सौ चूजा खरीदीक दिन गुजारदा

          उत्तराखंडी पलायनवादी अर्थशास्त्र

माना कि तुमम द्वी गौड़ी ह्वावन !
तुम द्वी गौड़ी दुसरुं तैं बांटिक शहर  ऐ जाँदा अर उख नौकरी करण लग जाँदा।


Bhishma Kukreti 9/12/2014

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                                      स्वच्छ भारत ! स्वच्छ भारत ! बुद्धिमान भारत !     



Bhishma Kukreti

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                    पंजाबी -सिंधियों  , बिहारियो  , नेपाळी  ! मि तैं जड़नाश हूण से बचाओ !                     
                                        खुजनेर चबोड़्या ::: भीष्म कुकरेती



घिंडक्या मू ळा -ये ब्वै ! नि बचण मीन , खतम ह्वे जाण मीन ! पता नी  दिबतौं बसै बात छ बि कि ना ?
देव द्वारपाल -यां त्वैकुण कथगा दैं बोलि याल कि चुप रौ यु देवलोक च , इख पृथ्वी जन घ्याळ नि करे जांद।
घिंडक्या मू ळा -यां जरा दिबतौं पर इन बीतलि तब बुलल कि चुप कन रये जांद धौं।
देव द्वारपाल -तिसर पहर ह्वे गे अर तेरि  सुबेर बिटेन एकि रट लगयीं बल नि बचदु , मीन पट्ट  खतम ह्वै जाण , मीन डायनासौर ह्वे जाण। 
घिंडक्या मू ळा -ह्यां ! जब तेरी बि निपटात , उकटात , बंश बरबाद  हूणै नौबत आलि तब दिखुल मि कि तु  कन चुप्प रौंद धौं !
देव द्वारपाल -ह्याँ पर जब तलक तेरि बारी  नि आंद तब तलक त चुप रौं।
घिंडक्या मू ळा -कब तक आल म्यार नंबर ?
देव द्वारपाल -पर्यावरण मंत्रालय का गढ़वाळ विभागौ दिबता जब फ्री ह्वाल तो ही तेरि बारि आलि।
घिंडक्या मू ळा -पर कब आलि? पर्यवरण दिबता कब मे से मिल सकदन ?
देव द्वारपाल -मेर समज से त अगला साल ऐ जालि।
घिंडक्या मू ळा (जोर से किड़कताळ मरदो ) -क्या ? म्यार नंबर अगला साल ? मतबल मि पर्यावरण मंत्रालयौ गढ़वाळ विभागौ दिबता तैं अगला साल ?
देव द्वारपाल -हाँ ! अगला क्या ! सैत च तिसर चौथ साल बि लग सकद।
घिंडक्या मू ळा -अरे इन क्या बिजोग पड्युं च कि देवलोक का दिबतौं मा बि पृथ्वीलोक का मंत्र्युं तरां समय नी च।
देव द्वारपाल -अरे तुमर पृथ्वी लोक का मंत्र्युं -संत्र्युं का वजै  से तो देवलोक का दिबता व्यस्त छन। उख पृथ्वी लोक मा मंत्री व्यस्त छन अर इख दिबता व्यस्त छन।
घिंडक्या मू ळा -कथगा वनस्पति दरख्वास्त लेक पर्यावरण देवलोक का भीतर जयां छन ?
देव द्वारपाल -देख गढ़वाळ का बीस पचीस दाळ -अनाज तो साल भर पैल भितर गे छा अर अबि तलक उंकी बारि नि आयि।
घिंडक्या मू ळा -दाळ -भुजी -अनाज का बीजुं से पैल हौर कु कु गेन ?
देव द्वारपाल -जंगळ की कुल मिलैक तीन सौ से अधिक वनस्पति छन जामादे औषधीय वनस्पति ज्यादा छन जौंक बि त्यार तरां बंशनाश हूण वाळ च।
घिंडक्या मू ळा -और कु कु छन ?
देव द्वारपाल -फिर सौएक चखुल बि सर्वथा खतम हूणै नजीक छन।  फिर जंगली जानवर छन जु अवश्य ही खतम ह्वैइ जाल।  कीड़ा -पुतळयुं तो गणत इ नी च। 
घिंडक्या मू ळा -हाँ तो म्यार नंबर छै मैना मा त ऐ जाल कि ना ?
देव द्वारपाल -अर जु दस बीस नदी छन जन गंगा , जमुना या मंदाकिनी सब प्रदूषण से खतम हूणै सिकैत लेक अयाँ छन।
घिंडक्या मू ळा -मंदाकिनी ? नाम मंदाकिनी अर इथगा फमफम करदि कि पोर वींन हजारेक  आदिम मारि देन
देव द्वारपाल -अरे वीन वैचारिक क्वी दोष नी च मनिख वींक दगड़ इथगा अन्याय कारल तो वा बि क्या करदि।  द्वी साल पैल वा बि त्यार तरां म्यार समिण खड़ी छे तो वीन अपण दुःख -दर्द -पीड़ा सुणै छौ।
घिंडक्या मू ळा -अर वा अबि तक भितरी च ? अबि तक वींक बारि नि आयि ?
देव द्वारपाल -ना ! वीं से पैल भितर अरशा , खट्ट्या जन चालीसेक पारम्परिक गढ़वळि भोजन जड़नाश की सिकैत लेकी पर्यावरण विभाग मा जयां छन।
घिंडक्या मू ळा -पारम्परिक भोजन अपण खात्मा की सिकैत लेक पर्यावरण विभाग मा ?
देव द्वारपाल -हाँ ! देवलोक मा बि पृथ्वीलोक तरां पहाडुं अवहेलना हूंद।  गढ़वाल या पहाडुं सब समस्याओं बान एकी मंत्रालय च अर वैक नाम च पर्यावरण विभाग !
घिंडक्या मू ळा -पर फिर बि म्यार नंबर आण मा इथगा देरी किलै ?
देव द्वारपाल -अरे गढ़वळि लोककथा , लोकगीत , लोक आण बि खतम हूणा छन तो वी बि अपण दुःख लेक पर्यावरण विभागम जयां छन।
घिंडक्या मू ळा -लोकगीत ?
देव द्वारपाल -हाँ ! लोकसाहित्य बि त खतम हूणु च।
घिंडक्या मू ळा -तो बि द्वी साल तलक म्यार नंबर किलै नि आलु
देव द्वारपाल -पारम्परिक भांड -कूंड , खटला , कूड़ , तिबारी सब कुछ तो निबटणा छन।  अरे  घट -जंदर अर हौळ -ज्यू , दाथी जन पारम्परिक कृषि औजार बि वंश खात्मा की अर्जी लेक भितर जयां छन।
घिंडक्या मू ळा -मतबल गढ़वाळ बिटेन हजारों चखुल , जीव जंतु , पेड़ -पौधा , चीज बस्तर अपण बंश निबटणो सिकैत लेकि इख अयाँ छन ?
देव द्वारपाल -हाँ ! गढवाळम संस्कृति मूलक सैकड़ों चीज खतम हूणा छन तो सब सैकड़ों की संख्या मा फरियादी बणिक देवलोक अयाँ छन।
घिंडक्या मू ळा -अब म्यार क्या ह्वालु ?
देव द्वारपाल -ह्यां पर तेरी क्या समस्या च ? त्यार स्वाद तो सवादी च तो फिर त्वै तैं बंश खात्मा कु भय किलै हुयुं च ?
घिंडक्या मू ळा -मेरि समस्या बड़ी अजीब च।  सब मेरि भुजि खाण चांदन , सब म्यार पत्तौं भुजी खाण चांदन सब म्यार सुक्सा खाण चांदन।
देव द्वारपाल -या तो भली, सकारात्मक  , उत्साहवर्धि  बात च।
घिंडक्या मू ळा -हाँ ऋषिकेश , कोटद्वार , देहरादून क्या दिल्ली मा बि मेरी बड़ी डिमांड च ?
देव द्वारपाल -तो फिर क्यांक दुःख ? क्यांक रुण ? क्यांकि शिकायत ?
घिंडक्या मू ळा -मि तैं गढ़वाळम  बूण वाळ क्वी नी च।
देव द्वारपाल -हैं ?डिमांड च , मांग बि च अर घिंडक्या मूळा बूण वाळ नी च ?
घिंडक्या मू ळा -हाँ ! म्यार बीज बजारम उपलब्ध नि छन।
देव द्वारपाल -क्या बजारम बीज उपलब्ध नि छन कु क्या मतलब ?
घिंडक्या मू ळा -अब गढ़वळि लोग वांकि फसल उगांदन जांक बीज ऋषिकेश , कोटद्वारम उपलब्ध हून्दन जन मैदानी मूली कोटद्वार -ऋषिकेशाक बजारम मिल जांद तो सब मैदानी मूली बूणा छन अर मि तैं क्वी नी बूणु च।
देव द्वारपाल -पर त्यार बीज किलै नि उपलब्ध छन ?
घिंडक्या मू ळा -म्यार बीज पैदा करण वाळ बूड -बुड्या इ ख़तम ह्वे गेन अर नई साखी म्यार बीज पैदा नि करण चांदन।
देव द्वारपाल -किलै ?
घिंडक्या मू ळा -उ क्या च कि म्यार बीजौ बीज पैदा करणो बान पैल म्यार घिंडक काटिक अळगौ भाग मिट्टी मा खड़्यारण पोड़द।
देव द्वारपाल -तो ?
घिंडक्या मू ळा -तो क्या क्वी बि गढ़वळि अब इथगा मेनत नि करण चाँद कि म्यार बीज पैदा कार।
देव द्वारपाल -हूँ ! वास्तव मा या अजीब समस्या च कि मांग , डिमांड ह्वेक बि क्वी घिंडक्या  मूळाक बीज पैदा नि करणु च।
घिंडक्या मू ळा -तबि त मि डर्युं छौं कि आठ दस सालुंम मेरि जड़नास ह्वे जाण , म्यार बंशनास ह्वै जाण , मीन बि बिलुप्त वनस्पति की श्रेणी मा ऐ जाण।
देव द्वारपाल -हाँ फिर लोग ब्वालल कि Once upon a time there was hill radish in Garhwal
घिंडक्या मू ळा -कर लेदि मजाक उजाक !
देव द्वारपाल -त्वै तैं नेपाली , बिहारी अर बंग्लादेस्यूं दगड़ पंजाबी , सिंधी अर बणिया इ बचै सकदन ।
घिंडक्या मू ळा (हाथी जन चिंघाड़ ) -क्या ? गढवळि छोड़िक नेपाली , बिहारी अर बंग्लादेस्यूं दगड़ पंजाबी , सिंधी अर बणिया पहाड़ी मूळा बचै सकदन ?
देव द्वारपाल -हाँ !
घिंडक्या मू ळा -कनकैक ? गढवळि छोड़िक नेपाली , बिहारी अर बंग्लादेस्यूं दगड़ पंजाबी , सिंधी अर बणिया पहाड़ी मूळा बचै सकदन ?
देव द्वारपाल -देख तू  जू नेपाली , बिहारी अर बंग्लादेसी गढ़वाळम छन उंसे प्रार्थना कौर कि वु तेरी खेती कारन , त्यार बीज पैदा कारन।
घिंडक्या मू ळा -अर पंजाबी , सिंधी अर बणियोंसे क्या प्रार्थना करण ?
देव द्वारपाल -पंजाबी , सिंधी अर बणिया त्यार मार्केटिंग कारल।
घिंडक्या मू ळा - तीन सही राय दे।  मि नेपाली , बिहारी अर बंग्लादेस्यूं से प्रार्थना करदु कि वु मेरि खेती कारन अर दगड़म  पंजाबी , सिंधी अर बणियोंसे प्रार्थना करूद कि वु म्यार मास मार्केटिंग कारन। सलाह का वास्ता धन्यवाद।  अब मि तैं गढ़वळि , प्रशासन  अर दिबतौं सरपरस्ती की क्वी आवश्यकता नी च। Now with the help of Non Garhwali I will survive !


 
10/12/14 ,Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India


   *लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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                    पुटुक भौरिक खलाण -पिलाण अर आखिरैं भट्यूड़  तोड़ दीण


                           रामबांसौ कांड, किनग्वड़ॉ   कांड अर  बरछा  ::: भीष्म कुकरेती
 मनिखौ मन का भितर क्या च , मन क्या   सोची द्याल अर मन क्या हमसे क्या बुलै द्याल का बारा मा त ब्रह्मा बि नि जाणि सकुद।
मन अजीब व्यवहार करद जन कि हम सरा ढिबरी मुंडदवां अर पूछै दैं नराट कर दींदा।
 मन की थाह लीण कट्ठण च अर हम थाळी मा बनि बनिक , दिखण मा बिगरैल , सवादि व्यंजन सजौंदा  अर थाळी सौरण से पैल व्यंजनुं मा थक थूकि दींदा।
मन क्या बुलै दीन्दु यु मन तैं बि पता नि चलद।  हम बुल्दां बल उन त अलार्म घड़ी बड़ी काम की चीज च पर यार जब बि मि तैं बढ़िया नींद आदि तबि या नरभगण  ठिक अपण टैम पर बज जांदि।
अब जरा तौळक वाक्यों पर टक्क लगावदी  -
अब एक बुलणु छौ बल हिमालय मा सब गुण छन , बड़ो लाभकारी च पर भै हिमालय पर एकि कमी च कि हिमालय मा बरफ गिरदी।
स्या ब्वारी उन त बड़ी कामगति च , दु दु बिठक घास लयांदि पर जब तैं भूख लगदि ना स्या कुत्ती ह्वे जांदी।
बेटी तैं ससुरास भिजण से पैल ब्वै अड़ान्दि बल ये ब्वै ससुरासम बड़ो सेवा टहल मन से कौरि , सब्युं तैं आदर दे पर खबरदार जु हर समय सासुक बुल्युं मानि। जंवै तैं कब्जा मा करिक रखी।
उन त स्या ब्वारी बड़ी भली च , मयळि च पर कांड यी लगीं छन  कि स्या गंगपुर्या च।
हाँ हमर पंडीजी बड़ा बढ़िया पूजा करदन , श्लोक समजैक बुल्दन पर क्या बुलण तौंक नाक तिमलौ दाण  जन म्वाट च।
बैंक से भौत फैदा छन पर बैंक बिद्दौ समय पर छतरा दींद अर बरखा समौ पर वापस ले लींदु।
गौड़ी लमडणौ उथगा दुख नी च , गौड़ी मोरणो सोग ने च पर दुःख या च कि गौड़ी दगड़ दौंळि  बि चलि गे।
इनि तुम बि बतावो कि हम कथगा दैं पैल कैतै खलौन्दा , पिलौंदा अर फिर वैक भट्यूड़ तोड़ि दींदा ?



11/12/14 ,Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India


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                           क्या   संस्कृति बचाणो ठेका गांवळुङ्क ही च ?

                                शहरी चबोड़्या   ::: भीष्म कुकरेती


ग्रामीण चेतना - हैं ! क्या भै ! प्रवासी ! आज तो तू खुसी मा इन उछळणु छे जन भुज्यांद दैं मुंगरी उछळदन , भुज्यांद दैं जुंडळ तिड़कदन या बरखा हूंदी मिंडक  उछळदन ?
प्रवासी  गढ़वळि मनिख -हाँ आज मीन एक कार्यक्रम मा भाषण दीणो जाण अर मीन भौत बढ़िया भाषण तयार कर याल !
ग्रामीण चेतना -कार्यक्रमौ नाम क्या च ?
प्रवासी  गढ़वळि मनिख - "गढ़वाल में समाप्त होती गढ़वाली संस्कृति ' अर मीन बि ये कार्यक्रम मा भाषण दीण।
ग्रामीण चेतना -त्यार भाषणों शीर्षक क्या च ?
शहरी मनिख  -डाँड्यूं -कांठ्यूं की फिकर  समोदरौ छाल  पर !
ग्रामीण चेतना -अरे वाह ! सागर तट पर पहाडुं की चिंता हैं ?
शहरी मनिख  -हाँ मीन जोर दार ढंग से बताण कि कै हिसाब से गढ़वाळम गढवळि संस्कृति खतम हूणि च।
ग्रामीण चेतना -अच्छा ! तीन उदाहरण बि देइ ह्वाल कि कै तरां से गढ़वाळम संस्कृति विणास हूणु च ?
शहरी मनिख  -हाँ हाँ ! जन कि अब गढ़वाळम क्वी तैडु खुदणो जंगळ नि जांदन , बसिंगु नि खांदन अर लोग चाऊ -माउ पर पर ढब गेन। जब मि ये बारा मा भाषण देलु तो हॉल ताळयूं से गूंज जालो। 
ग्रामीण चेतना -अवश्य ही प्रवासी अपण चिंता ताळी पीटिक दर्शाला।
शहरी मनिख  -कळि , बसिंगु , गींठी , सिरळ खाण हमारी संस्कृति छे अर हम गढ़वळियूंन कळि , बसिंगु , गींठी , सिरळ खाण बंद करि आल।  हमर लोग ऊख गाउँ मा संस्कृति भंजक चाऊ -माऊ खाण लग गेन।  पता नही हमारी संस्कृति का क्या होगा ?
ग्रामीण चेतना -भौत भौत बढ़िया ! यु भाषण इन लगणु च जन बुल्यां तुमर जिकुड़िक उमाळ  च।
शहरी प्रवासी   -अरे भै जिकुड़ि  जळदि , जिकुड़ि पर छाळा पोड़ जांदन , दिमाग खराब ह्वे जांद जब हम दिखदा , सुणदा अर इंटरनेट मा पढ़दा कि गढ़वाळम  लोग अपण पारम्परिक भोजन छोड़िक दुसर देसौ भोजन शैली अपनाणा छन। 
ग्रामीण चेतना -हाँ प्रवास्युं तैं मातृ भूमि चिंता हूण लाजमी च भै।
शहरी प्रवासी  -खान -पान -भोजन -पेय पदार्थ ही त संस्कृति संवाहक हूंदन। यदि पारम्परिक खाण -पीण इ बंद ह्वे ग्याइ गए तो समझि ल्यावो संस्कृति रसातल जोग ह्वे  ग्याइ । आज तकरीबन हरेक सजग , संवेदनशील , शिक्षित प्रवासी अपण गढ़वाळम खत्म होती परम्परा से परेशान च। वै प्रवासी की समज मा आणु इ नी च कि खतम हूँदि परम्परा तैं कनै रुके जावु ?
ग्रामीण चेतना -तुमर इख आज सुबेर क्यांक नास्ता बौण ?
शहरी प्रवासी  -आज हमन कॉन्टिनेंटल ब्रेकफास्ट कार।  माई चिल्ड्रन लाइक कॉन्टिनेंटल ब्रेकफास्ट।
ग्रामीण चेतना -ब्याळि तुमर ड्यार क्या नास्ता बौण ?
शहरी प्रवासी  -ब्याळि ! हाँ ब्याळि हमर इख मेक्सिकन सिम्पल चिलाक्लीज विद फ्राइड एग्स बणीन।  मेरी वाइफ़न मेक्सिकन कुजीन बणाणो क्लास जि ज्वाइन कौर छे।
ग्रामीण चेतना -परसि क्या ब्रेकफास्ट कौर ?
शहरी प्रवासी  -परसि ? हाँ !फिलिपाइनी ब्रेकफास्ट चैम्पोराइडो  कार मि तैं फिलिपाइनी कुजीन भौत पसंद च । मीन खुद फिलिपाइनी ब्रेकफास्ट  कुक  कार।
ग्रामीण चेतना -भौत बढ़िया !
शहरी प्रवासी  -हम हर दिन ,  एक ना एक  फॉरेन डिशेज अवश्य बणौन्दा।
ग्रामीण चेतना -किलै ?
शहरी प्रवासी  -अरे भै ! ग्लोबलिजेसन कु युग च तो सोसाइटी मा रौण तो इंटरनेशनल हैबिट तो अपनाण इ पोड़ल कि ना ?
ग्रामीण चेतना -हाँ सही बात च।  बाइ द वे आपक इख क्या क्या गढ़वळी भोजन बणद ?
शहरी प्रवासी  -मेरी वाइफ अर बच्चों तैं गढ़वळि कुजीन बिलकुल पसंद नी च।  तो हमर इख क्वी बि गढ़वळि खाणक नि बणद।
ग्रामीण चेतना -वाह ! जैक इख ढ़वळि कुजीन बिलकुल नि बणद वु रुणु च कि गढ़वाळम पारम्परिक खान -पान बंद हूणु। च मतबल गढ़वळि संस्कृति बचाणो ठेका गढ़वाळ का लोगुंक ही च !  अफु त इंटरनेसनल बणन चांदु अर दुसरौ तैं हिदैत दीणु च कि तू कुंवा कु मिंडक बण्यू रौ।



13/12/14 ,Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India


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                              बल्द बुसड़ौ   अर जंवै ससुराड़ौ , द्वी  भैर नि आंदन !

                                      चबोड़्या जंवै ::: भीष्म कुकरेती


                 अब त पता नी कि गढवळि जंवै  ससुरास जाण पसंद करद छन कि ना , अबाक जंवैऊँ कुण  सैत च ससुरासौ मतबल ही मैत हुन्द धौं,  घरजवैंऊँ बात मि नि करणु छौं।
     हमर टैम पर मतबल मेरी ज्वान्युं दिनुं बगत जंवै लोगुं बड़ी पूच हुंदी थै। म्यार टैम पर गाँव या शहर द्वी जगा जंवैऊँ बड़ी खिदमत हूंदी छे।  उन यदि दारु -सारू -फट्टी की सुरवा तैं खिदमत ब्वालो त आज बि   जंवैऊँ खिदमत   हूँदि च।
            काका हाथरसी सरीखा कवि  बुल्दन बल जंवै अफुकुण बि अर ससुरासौ कुण बि भयकर जीव हूंद। जंवै ससुरास तैं चुसणो तयारी करदो थौ अर ससुराड़ वळ कम से कम चसुड़े जावन की तयारी करदा छा।  पर म्यार अनुभव कुछ अलग ही च।
            हम जब छुट्ट छया तो गां मा जीजाओं /मामाओं (फुफाओं ) की आवभगत देखिक भगवान से प्रार्थना करदा छा कि हम तैं जल्दी से जल्दी बड़ कौर कि हम जल्दी से जल्दी जंवै बणिक ससुरासी सुख प्राप्त करवां।
               जब बि रुकमा दादीक जंवै आणै खबर आदि छे तो रुकमा दादी पर रुणि -धाणि  , कणाट अर  रगबगौ रोग लग जांद छौ।  ल्वार -तमटा समेत  सरा गां भगवान से प्रार्थना करद छौ कि रुकमा दादीक जंवै तिसालो ही आवो कखि जंवै वर्सकुल आण लग गे त रुकमा दादी हर साल पता नी क्या से क्या कर देलि धौं।  जनि जंवै आणौ खबर आवो ना कि रुकमा ददि हरेकाक ड्यार इख तक कि ल्वारुं ड्यार बि जांदि छे कि यदि जरूरत पोड गे त दूध पौंछे देन।  यदि जरूरत पौड़ी गे तो।  निथर दादिक गौड़ लैन्द रौंदा ही छा।  फिर दूध अध्याय का बाद दुसर दिन ददि चार -पांच मौक इख जैक चौळ -दाळ कु इंतजाम करिक आंद छे।  बाई चांस जरूरत पोड़ जाव तो सब तैं हिदैत दींदि छे कि दाळ -चौंळ तयार रखिन।  तिसर  दिन रुकमा दादि साबण कु इंतजमाॉ वास्ता गांमा फिरदी छे कि यदि जरूरत पोड़ि गे तो जंवै कुण नयाणो साबण , दाढ़ी बणाणो नई ब्लेड तयार रखिन।  हमर गांवक पिपळो डाळ , बौड़ो डाळ अर उजड़्यां पगार गवाह छन कि कबि बि जरूरत नि पोड़ कि लोगुं तैं कुछ दीणो जरूरत ह्वे हो धौं पर हर बगत जंवै आण पर रुकमा ददि पर रौन्का धौंकि ह्वे इ जांद छे अर अपड गां त छोडो बुगठ्या इंतजामौ बान ददि दूसर गां बखरयॉँ तैं बि ततार देकि आदि छे कि यदि जरूरत पड़ जाव तो बुगठ्या तयार रखिन।  कबि जरूरत नि पोड किलकि तब गां मा चार पांच मौका बखर छया।  अर नब्बे सालक बीमार सासु तैं दिखणो अब बि उ फूफा आंद तो रुकमा ददि बजारम रैबार दीण भिजण नि बिसरदि कि जंवै आयुं च एक बांटी शिकार भेजि दियां। जंवै बि पुरण ह्वे गे , ददि बि बुडड़ि ह्वे गे पर जंवै की खिदमत करणै  भावना अबि बि जवान च।
             रुकमा दादी लोगुं तैं जंवै आण से पैल एडवांस मा तंग करदि छे तो भुंदरा बोडी जब जंवै चौक मा पौंच जावो तब लोगुं तैं तंग करण ना लोगुं तैं बताण शुरू करद छे कि जंवै कै व्यक्ति कु जंवै नि हूंद अपितु सरा गौं कु जंवै हूंद ।   भुंदरा बोडि योगिनी रूप छे।  भुंदरा बोडि वर्तमान मा रौण वाळ मनख्याणि छे पर जंवैक खिदमत मा रति भर, बेथि भर बि कमि नि रौण दींदि छे ।  अधिकतर तब जंवै ससुरास स्याम दैं ही पंहुचदा छा;  वु जीजा बि हौर जंवैंऊँ तरां स्याम दैं पौंछदु छौ;  तब ससुराल पैदल जि आण पड़द छौ। हाँ त जनि दीदी अर जीजा पौंछन तो भुंदरा बोडि क्रियाशील हूंद छे।
            स्याम दैं बोडि घन्ना दा तैं चार पांच मौक इक  भेजदि छे अर जु बि साग बण्यु हो एकै कट्वरी मंगै दींदी छे।  जीजा का वास्ता रुटी त ससुरास की ही हूंद छे , घी बि सासुक छुळि छाँचक इ हूंदी छे बस बनि बनिक भुज्जी दुसरौ घौरक हूँदि छे।  जंवै बि खुस , सासु बि खुस अर गांवळ बि खुस कि जु साग सुबेरौ कुण धरण छौ वु साग गांवक जंवै कुण काम ऐ गे।  जब तलक जीजा हमर गां रौंद छौ , जीजा द्वी बगत चार -पांच किस्मौ साग भुजिक मजा लींद छौ अर गांवळ तैं घमंड तबि बि नि हूंद छौ कि जंवैक इथगा बढ़िया तरह से सेवा टहल हूणि च। हाँ योगिनी रूपी भुंदरा बोडि कैक बि उधार -पगाळ नि रखदी छे।  गांमा कैक बि जंवै आव तो भुंदरा बोडि द्वी टैम बेनागा सागै या दाळै कट्वरि जंवैकुण भेजि दींदि छे। 
  सीजन का हिसाब से जंवै लोगुं कुण मैनो पैल व्यवस्था ह्वे जांद छे।  गर्म्युं बगत हो तो सुक्सा , अलु , पळिन्गु आदिक इंतजाम का वास्ता तयारी करे जांदी छे।  जु जंवै शिकर्या हूंद थौ वै जंवै की बड़ी पूछ हुंदी छे किलैकि बखर मारणो मौक़ा गाँवळु तैं मिल जांद छौ।
 जैं मौक जंवैं टेक्नीकल एक्सपर्ट हूंद छौ वीं मौ तैं अपण जंवैक मेहमानदारिक फिकर करणै जरूरत नि हुंदी छे।  टेक्नीकल जंवैक   मेमानदारीक  जिम्मा गांवाळुक  हूँदि छे।  यदि जंवै पंडित हो , वैद हो , मांत्रिक -तांत्रिक हो , जागरी हो , जंदरौ सल्ली हो तो गांवळ बड़ी सेवा करदा छा।
पंडित जंवै आण से सब अपण जन्मपत्री दिखाणो जंवै तैं अपण ड्यार भट्यान्द छा।  सब्युं राहु -केतु की दशा जंवैक आण से ठीक ह्वे जांद छौ।  द्वी चार मौ त  सत्यनारयण की कथा ही उरै लींद छे।
वैद जंवै तैं  बीमारी ठीक करणो ठेका मिल जांद छौ।
मांत्रिक -तांत्रिक जंवैऊँ तैं छाया -दूधफूल पुजणो काम मिल जांद छौ।
जागरी जंवैक प्रताप द्वी चारुंक नागराजा -नर्सिंग बि खुस ह्वे जांद छा।
जंदरो सल्ली जंवैक ससुरास आण से जंदरों प्रोडक्टिविटी बढ़ जांद छौ किलैकि हरेक मौ अपण जंदर छिलवै ही लींदा छा।
जब मि जंवै बौण तो म्यार ससुरास शहर मा छौ अर सच्ची बतौं त  शहरी सास ससुर कथगा बि जंवैक सेवा कारन , जंवै तैं कथगा बि दारु मा डुबै द्यावन वो मजा नि आंद जु मजा जंवै तैं पुरण जमन मा गांवक ससुराल मा आंद थौ।

16/12/2014 Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India


   *लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।


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Garhwali Vyngya , Garhwali Hasya,  Garhwal se Hasya, Garhwal se Vyngya
                    स्वच्छ भारत  , स्वच्छ भारत , बुद्धिमान भारत!

Bhishma Kukreti

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                                    पहाड़ी  प्रकृति दगड़ सामजस्य करिक जड्डु कटद छा

                                         टटकरि मा :भीष्म कुकरेती
(यद्यपि मै पाकिस्तान में कल आतंकवादी हमले के  बारे में लिखना चाहता था किन्तु आपको ,  मुझे और आतंकवादियों को पता है कि पाकिस्तान में दहशतगर्दी प्रेमी और भारत में सेक्युलर पार्टी सुधरेंगी नही इसलिए उस घटना पर नही लिखा। )
 अजकाल जनि हिमाला मा ह्यूं पड़ कि टीवी अर अखबार जड्डु ,  ठंड , कोल्ड तैं गाळी दीण मिसे गेन।  क्वी ठंड का कहर बुलणु च , क्वी ठंड तैं  राक्षस नाम दीणु च त क्वी जड्डु तैं यमराजौ भुला -भैजि -ससुर बुलणु च।
  पहाड़ी मनिख कबि जड्डु ,  ठंड , कोल्ड तैं गाळि नि दींद , ठंड का वास्ता गैरमुनसिब शब्द पहाड़ी भाषाओं मा नि छन , इख तलक कि पाकिस्तानी कश्मीरी बि  ठंड तैं फिटकार नि दींद कि आज ऐगे पर भोळ नि ऐ। हमर पहाड़ी भाषौं मा अंग्रेजी भाषा ज की कविता रेन रेन गो अवे जन बेकार कविता बि नि छन।
हम पहाड़ी दांत बजै ल्यूला , दाडि कीट द्योला , हथ बोटि द्योला पर मजाल  च कि हम जड्डु तैं बुर -भलु बोल दिवां धौं !
पहाड़ी लोग खराब नि हूंदन , पहाड़ी लोग प्रकृति कुण दुर्बचन नि बखदन , पहाड़ी लोग ह्युंवाळी पहाड्यूं तैं बि पुजदन अर तबि त डांडि -कांठ्यूं खासकर हिंवाळि  पहाड्यूं तैं पुराणि गढवळि अर संस्कृत मा कैलास बुले जांद छौ।
पहाड़ी लोग रुड्यूं  मा दिन बितांद छा अर जड्डु मा दिन कटद छा , याने प्रकृति दगड़ सामंजस्य करिक जड्डु से पार पांद था। हम प्रकृति दगड़ लड़दा नि छा , हमम कम कपड़ा ह्वेक बि हम प्रकृति दगड़ लड़दा नि छा पर प्रकृति का हिसाब से हम अपण सरैल तैं उब -उन्द करदा छा।
पहाडुं मा ठंडक दगड़  सामजस्य बैठाणो तरकीब खुजए जांद छयो।  बागौ दगड़ लड़ो , भूतौ दगड़ लड़ो जन शब्द हम सुबेर स्याम सुणदा छा किंतु हमन कबि ना त स्वाच अर ना ही ब्वाल कि ठंडौ दगड़ लड़ो। प्रकृति लड़नै चीज नी च अपितु प्रकृति तो हमरि दगड्याणि च।  तबि त गढ़वाळम अर हौरि जगा बि इन बुले जांद कि गर्म्युं मा गर्मन इथगा मोरिन   पर कबि नि सुणयांद कि ठंड्युं मा लोग , लौड़ -गौड़ मरीन।
 हम प्रकृति दगड़ लड़दा नि छा।  जनि जड्डु बिंडी ह्वे ना कि हम अफु तैं सिकोड़िक छुट कर दींदा छा अर जड्डु कुण बुल्दा छा तू ही बड़ु।  इनमा जड्डु बि चुप ह्वे जांद छौ कि जब ये मनिखौन अफु तैं छुट मानि आल तो ये तैं ज्यादा क्या तंग करण ?
हमर खाणक मा बि बदलौ ऐ जांद छौ अर हम कंडाळी , मर्सू , गौथ , तिल , उस्यायुं खीरा , भट्ट , भंगुल , बसिंगु आदि की मात्रा बढ़ै दींदा छा अर हम तैं ठंड से अनावश्यक युद्ध नि करण पोड़द थौ। हम भौत  सा बौणौ  जै माँ इनर्जी ज्यादा हो  वीं पैदावार पर निर्भरता बढ़ै दींदा छा अर  यांसे प्रकृति दगड़ युद्ध करणो नौबत नि आदि छे। कणमणौ लीसु हम एइ बगत खांद छा।
हम ठंड से बचणो उपाय खुज्यांद छया ना कि ठंडौ दगड़ लडणौ तरीका।  अचकाल मीडिया की भाषा गलत ह्वे गे जु हम तैं प्रकृति दगड़ लडणौ बान हुसक्यांद जब कि हम तैं प्रकृति दगड़ सामंजस्य बढ़ाणो प्रेरणा मिलण चयांद छे।

17 /12 /14 Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India

Bhishma Kukreti

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Garhwali Vyangya , Garhwali Hasya,, Best  Harmless Garhwali Humor  , Satire, Wit, Sarcasm on Disturbances in Rajya Sabha


                                           
                                   ना ! ना ! मि तैं राज्य सभाक टिकेट नी  चयेणु च !

                                     चबोड़्या , चखन्यौर्या , घपरोळया ::: भीष्म कुकरेती
अजकाल हरेक पार्टीक राजनेता म्यार पैथर पुड्यां छन कि मि राज्यसभाक सदस्य बण जौं।  ब्याळि एक नेता मिल अर वैक दगड़ सि  छ्वीं लगिन -
नेता - भै तुम हमर राज्यसभाक मेंबर बण जावो।
मि -हैं ? मीम त एक लाल पैसा बि नी च , मीम एक हजार रुप्या  बि नि छन अर राज्य सभाक मेंबर बणणो बान करोड़ो चयेंदन।
नेता -नै नै राज्य सभा सदस्य बणनो बान रुप्यों जरूरत नि हूंद।
मि -तुम विजय मल्ल्या तैं पुछि ल्यावो , मायवती तैं पुछि ल्यावो, तुम झारखंड मा जैक पता लगै  ल्यावो कि राज्य सभाक मेंबर बणनो क्या रेट चलणा छन।
नेता -नै नै हमर पार्टी तुमतैं बगैर रुप्या खयाँ राज्यसभाक मेंबर बणै द्याली ।
मि -इन काण्ड किलै लगिन कि बगैर रुप्या खयाँ तुम मि तैं मेंबर बणाना छंवां ?
नेता -जरा नया , तरोताजा अर ऊर्जावान  खून चयाणु च।
मि -हैं नया खून ?
नेता -हाँ ?
मि -कनो मुलायम सिंग , लालू यादव जन क्षेत्रीय दलों मा या राष्ट्रीय दलों क नेताओं का राजकुमार -राजनकुमार्युं की कमी पोड़ गे क्या ?
नेता -ना ना ! अब त हरेक नेता अपण नाती -नतण तैं उत्तराधिकार मा राज्यसभा सीटौ गिफ्ट दीणो देळि  मा बैठ्युं च।  असल मा हम तैं फ्रेश ब्लड याने फ्रेस विचारवाळ क्रियेटिव चयाणु च। हम तैं  मेहनत करण वाळ नेता चयाणु च।  नेताओं बेटा -बेटी -ब्वारि -भणजि  लोग अब राजयसभा मा मेनत नि करदन।
मि -यी भांजा -भांजी मेनत किलै नि करदन ?
नेता -यी भाई  -भतीजा राज्य सभा क्या , लोकसभा तैं बि दिल बिळमाणो ,  बहलाणो, टैम पास करणो अड्डा समजदन। तो हम तैं कुछ काम करणो बान प्रोऐक्टिव मेंबर चयाणा छन।
मि -मि तैं राज्य सभा मा क्या करण पोड़ल ?
नेता -भौत  सा काम छन।
मि -जन कि
नेता -पैल च कि क्वी बि बात हो जरा बि सरकारी मंत्री खड़ो ह्वावो ना या विरोधी दल का नेता खड़ो ह्वे ना कि प्वाइंट ऑफ ऑर्डर की बात इन उठाण कि राजयसभा मा अधा घंटा तक काम इ नि हो।
मि -मतबल मि विरोधी दल कु मेंबर हूँ या सरकारी दल कु मेंबर हूँ प्वाइंट ऑफ ऑर्डरकी बात उठैक राजयसभा मा काम नि हूण दीण।
नेता -हाँ !
मि -मतबल प्वाइंट ऑफ ऑर्डर से राज्य सभा मा डिसॉर्डर फैलाण?
नेता -हाँ राज्यसभाक मेंबर कु पैलु धरम च कि प्वाइंट ऑफ ऑर्डरका नाम पर राज्य सभा नि चलण दीण।
मि -दुसर काम ?
नेता -दुसर काम च कि अखबारौ न्यूज तैं अधिक अहमियत दीण अर न्यूज का आधार पर सरकारी दल या विरोधी दल तैं घिराण , पटकनी दीण , लांछन लगाण।
मि -जन कि ?
नेता -जन कि कै अंग्रेजी अखबारम खबर ह्वावो कि राज्यसभा मा सांसदुं सीटूँ मा काँटा बिछ्यां छन तो यदि विरोधी दल मा रावो तो इथगा घ्याळ करण कि घ्याळ ही कांड बण जावो  अर यदि सरकार  का पक्ष मा रौण तो विरोध्युं विरोध मा इथगा ऐड़ाण कि ऐड़ाट कंटीला तार बाड़ बण जावो।
मि -ह्यां पर सांसद खुद बि त देख सकदन कि सीटूँ मा अछेकि कांड बिछ्याँ छन कि ना?
नेता -ओहो !  राजनीति मा, पॉलिटिक्स मा या संसद मा असलियत से क्वी मतलब नि हूंद। राजनीति मा अहम बात च कि बबाल खड़ कौरिक पॉलिटिकल इक्विटी स्कोरिंग कथगा ह्वे।  पॉलिटिक्स मा पॉलिटिकल इक्विटी स्कोरिंग महत्वपूर्ण च।
मि -औउ ! फिर ?
नेता -फिर क्या यदि जैबरी विरोधी दल मा रौण त हर दुसर तिसर वाक्य मा प्रधानमंत्री संसद में आएं , प्रधानमंत्री जबाब दें या प्रधानमंत्री इस्तीफा दें शब्द आण इ चयेंदन।
मि -अर यदि मि सरकारी दलौ सांसद हूँ तो ?
नेता -तो हर वाक्य माँ हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या हमारी नेत्री सोनिया गांधी शब्द आण इ चयेंदन या अम्मा जयललिता , करुणानिधि , मुलायम सिंग , लालू यादव , नितीश कुमार , उद्धव ठाकरे , ममता बनर्जी शब्द आण चयेंदन।
मि -त यांकुण मेरि क्या जरूरत ? इन चाटुकारों , चट्वो , चापलूसूं से त द्वी संसद भर्यां छन।
नेता -नै नै ! तुम तैं चाटुकारिता करणो बान हम संसद मा नि भिजणा छंवां।
मि -तो ?
नेता -जब बिटेन तृणमूल कॉंग्रेस का सांसद शारदा चिटफंड स्कैम का अपण पाप छुपाणो बान विरोध का नया नया तरीका से संसद मा गंध फैलाणा छन तब बिटेन पॉलिटिकल एरिना याने राजनीतिक गलियारों मा बात उठणि च कि अपण पाप लुकाणो बान स्टंटबाजी का वास्ता नया नया इन्नोवेटिव तरीका चयेणा छन। चूँकि तुम लेखक बि छंवां अर मार्केटिंग मा बि छंवां तो हम तैं इन सांसद चयाणु च जु रोज एक स्टंट करिक द्वी काम दगड़ी करण -अपण पाप बि छुपाण अर पब्लिसिटी बि पाण।
मि -मतबल प्रजातंत्र का नाम पर खुलेआम नंगा नाच ?
नेता -हाँ बस तुम तैं द्वीइ काम करण एक त जब मर्जी हो संसद नि चलण दीण अर अपण पाप छुपाणो वास्ता नंगा नाच करण।
मि -ये मेरि ब्वै ! तो तुम राजनेता 2014 का चुनावुं से कुछ नि सीखा हैं कि जनता तैं हर समय बेवकूफ नि बणये सक्यांद। 
नेता -मतबल तुम राज्यसभा सदस्य नि बणन चांदवां ?
मि -ना संसद नि चलो अर पाप छुपाणो बान सांसद बणन से भलो तो मि गढ़वळि लेखों से जनजागृति करण अधिक उत्तम समजदो कि अग्वाड़ी इन अफखवा , स्वार्थी , धुर्या लोग संसद मा इ नि पौंछन।



18 /12 /14 Copyright@  Bhishma Kukreti , Mumbai India


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