Author Topic: इंटरनेट पर उत्तराखण्ड की याद ताजा करते काकेश दा  (Read 9086 times)

Pawan Pahari/पवन पहाडी

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Kya baat hai! bahut achcha laga SERDA ANPAD ka ye episode dekhkar. aap logo ka yahi pahad prem to pahari logo ko prerit karta hai .KakesDa ko kaun nahi janta.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Bilkul sahi kaha aapne Pawan bhai ki jo Uttarakhandi net pai hai usne kabhi na kabhi Kakesh ji ki lekhni jaroor padhi hogi.

Kya baat hai! bahut achcha laga SERDA ANPAD ka ye episode dekhkar. aap logo ka yahi pahad prem to pahari logo ko prerit karta hai .KakesDa ko kaun nahi janta.

पंकज सिंह महर

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कमलाद्त्त कांडपाल के कारनामे कमाल के

हमारे एक नये नये मित्र बने हैं.नाम है कमलादत्त कांडपाल.नये नये पत्रकार बने हैं. रहने वाले हैं ग्राम कांडा, पट्टी कत्यालू, कफड़खान के. जनेऊ धारी ब्राह्मण है लेकिन खुद को बामण कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं.कान में जनेऊ डालने के बाद ही कोई शंका करते हैं चाहे वह लघु हो या दीर्घ. एक ढाई फुट की चुटिया भी है.जिसे बड़े जतन से संभाल कर रखते हैं.दिल्ली में नये नये आये हैं.करोल बाग में किराये पर कमरा लेकर रह रहे हैं.


read fll artical-  http://kakesh.com/?p=392

पंकज सिंह महर

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परुली : यह कैसी बीमारी?

आज परु की बीमारी का सातवां दिन था. इस दौरान वह स्कूल भी नहीं गयी थी. हाँ जब भी बीच बीच मे आराम मिलता वह अपनी किताबों से कुछ कुछ पढ़ती रहती.मिक्सचर से फायदा ना होते देख बाबू प्रकाश मेडिकल से दूसरी दवाई भी लाये. दवाई खाने से बुखार कम होता लेकिन फिर आ जाता.जोस्ज्यू भी उसे मोरपंख से एक दो बार झाड़ चुके थे. कुछ लोगों ने कहा परु को नजर लग गयी है,पूछ कराओ. ईजा घर से थोड़े चावल लेकर पंडित जी से पूछ भी करवा आयी. पंडित जी ने भोलनाथज्यू थान की धूणी से कुछ भभूत भी दी. लेकिन उससे भी कुछ फायदा नहीं हुआ.


read full article- http://kakesh.com/?p=373

पंकज सिंह महर

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काकेश दा ने इस टोपिक को देखने के बाद मुझसे वादा किया था कि मैं उत्तराखण्ड के बारे में और लिखूंगा और होली वाली सीरीज पूरी करुंगा, उन्होंने अपना वादा पूरा कर दिया है, देखिये और पढ़िये-----

अल्मोड़ा की शास्त्रीय होली की बात हो और स्वर्गीय तारा प्रसाद पांडे यानि तारी मास्साब की बात ना हो ऐसा कैसे हो सकता है. मेरा यह सौभाग्य रहा है दर्जा सात-आठ में वो हमारे संगीत के मास्साब थे. मुझे एक बैठी होली में बैठने का सौभाग्य भी मिला है जिसके तारी मास्साब ने भी होली गायी थे. संगीत में तारी मास्साब की पकड़ तो थी ही वो बहुत मजाकिया भी थे. अपना गायन खत्म करने के बाद वह ऐसी चुटकी लेते कि आसपास बैठे लोग हँसते रहते और वह “चहा लाओ हो” (चाय लाओ जी) या “आलू-गुटुक कां छ्न” (आलू के गुटके कहाँ हैं)  कह के दूसरी होली शुरु कर देते.उस जमाने में सीडी या एम.पी.3 तो चला नहीं था. रिकॉर्डिग की उन्नत सुविधायें भी नहीं थी और ना ही लोग रिकॉर्ड करने या व्यवसायिक उद्देशय के लिये होली गाते थे. यह सब तो एक स्वांत: सुखाय संस्कृति का हिस्सा था.इसलिये तारी मास्साब या उन जैसे कई अच्छे गायको की होलीयां समय के साथ खो गयीं.तारी मास्साब की कुछ कैसेट उनके चाहने वालों ने बनाये थे जो एक जमाने में अल्मोड़ा में बिके भी.



पूरा पढें-- http://kakesh.com/2008/classical-holi-of-kumaon/

umeshbani

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Kakesh Da ke bare mai jitna likkha jaye wo kam hai..............
Paruli Jabrdast kahnee thi Or  'काकेश दा नराई (याद) to sabse jabrdast rachna thi....Jisna Padhi Usna Tareef Ki ..............sabhi padhne walno ko Nirai jaroor lagi hogi............ Apna Pahad ki Apna Ghar ki ...........
Kakesh Da Tum likate rahoo hum Padthe Jayenga....................

Jai Bharat Jai Uttranchal

umeshbani

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Jese Kakesh Da Cha Gaye hai Wesa hi Nam Hai 'SERDA ANPAD ' yah sab jante hai jo uttranchal ko janta hai
Koi bata sakta hai ki hum SERDA ANPAD ki rachana & audio kaset kahan se mangwa sakte hai.................


Jai Bharat Jai Uttranchal



पंकज सिंह महर

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नराई ह्यूं (बर्फ) की

पहनने के लिये बास्कट हुआ और दो टांग का पजामा (इनर) हुआ..टोपी हुई..दस्ताने, ऊनी मौजे , मफलर हुआ.एक मेरा दगड़िया ठहरा पदम सिंह.उसके लिये तो जाड़े और भी अच्छे हुए.उसने तो एक चिलम जलाई. कभी कभी उसमें अत्तर (चरस) भी डाल देने वाला हुआ -अत्तर तो तब घर घर में रहने वाली हुई,आज का जैसा जो क्या ठहरा.लेकिन लोग उसे दवा की तरह इस्तेमाल करने वाले हुए.अत्तर तो कभी कटे-फटे में खून को रोकने के काम आने वाले हुई. हां तो पदमुवा बम बम भोले कहते हुए चिलम पीने वाला हुआ. मेरे से कहने वाला हुआ “दाज्यू एक सूट्टा मारो हो सब ठंड गोल हो जायेगी”. अब पता नहीं उससे ठंड गोल होने वाली हुई या नहीं लेकिन पदम सिंह का कहना हुआ भोलनाथ ज्यू की बूटी है सारी ठंड भगा देती है.


पूरा पढ़े- http://kakesh.com/2008/narai-baraf-ki/

पंकज सिंह महर

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आज मुझे एक नायाब चीज मिली है और वह है, उत्तराखण्ड का अतुलनीय दर्शन.....वह भी काकेश दा की आवाज के साथ, लोकगीत, रिवाज और बांसुरी की मधुर धुन के साथ........आप भी जरुर अवलोकन करें।  लिंक नीचे है-

http://www.akshargram.com/sanjay/index.php?option=com_content&task=view&id=25&Itemid=27

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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