Author Topic: इंटरनेट पर उत्तराखण्ड की याद ताजा करते काकेश दा  (Read 9087 times)

पंकज सिंह महर

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कका बालकनी में बैठे हुए सामने पार्क में खेलते हुए बच्चों को देख रहे थे.साथ ही पातड़ा (पंचाग) भी देख रहे थे. मैने उनसे पूछा.

"कका.. पंचाग में क्या देख रहे हो..? "

"अरे देख रहा था हरेला कब है. भोल (कल) हरेला है."

"ओ..कल है! कका बताइये कल क्या क्या करना है. "

"अरे यहां शहर में क्या हुआ. पहाड़ में होते तो कल बोया हुआ हरेला काटते,सर में हरेला लगाते, डिकारे बनाते, मातृका पट्टा पूजते. यहां ये सब जो क्या होने वाला ठहरा. बस शगुन का बड़ा बना देंगें. अपनी ईजा को बोल कि कल बड़ा बनाने के लिये रात से मास (उड़द की दाल) भिगो देना." कका की बातों से थोड़ी निराशा झलक रही थी. मैने उनसे पूछा.

"कका बताओ ना… ये हरेला क्या होता और पहाड़ में हरेला कैसे मनाते है. "
कका तो जैसे तैयार ही बैठे थे. "अब क्या बताऊं भुला.पहाड़ की बात ही कुछ और हुई. हरेला साल में तीन बार मनाया जाने वाला हुआ. एक तो चैत (चैत्र) के महीने में,दूसरा सौण (श्रावण) में और तीसरा असोज (आस्विन) में. जिस दिन हरेला होता है उसके नौ-दस दिन पहले पांच या सात प्रकार के बीजों को एक टोकरी,थाली या पुराने मिठाई के डब्बे में मिटटी डाल के बो दिया जाता है."

"कका ये कौन कौन से बीज होते हैं."

"अरे घरपन जो बीज मिल गये सबको बो दिया जाने वाला हुआ. जैसे गेहूं, धान, जौ, भट्ट,जुनाव (मक्का),मादिरा, राई, गहत, मास (उड़द),चना, सरसों. जो हाथ पड़ गया.इसका कोई खास विधान नहीं हुआ. लेकिन यह विषम संख्या पांच या सात होने चाहिये. फिर इन सबके ऊपर मिटटी डाल के उस टोकरी या थाली को घर में ही द्याप्ताथान (मन्दिर) में रख दिया जाता है. हर दिन पूजा करते समय थोड़ा थोड़ा पानी छिड़का जाता है. तीन-चार दिन के बाद उन बीजो में से अंकुर निकल जाते है.इन्हे ही हरयाव (हरेला) कहा जाता है.नौवे या दसवे दिन इनको काटा जाता है.जैसे चैत वाला हरेला चैत के पहले दिन बोया जाता है और नवमी को काटा जाता है. सौण का हरेला सौण लगने से नौ दिन पहले अषाड़ में बोया जाता है और दस दिन बाद काटा  जाता है. असोज (आश्विन) वाला हरेला नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरे  के दिन काटा जाता है."

"ओ…लेकिन हरेला मनाया क्यों जाता है कका."

"भुला हमारी लोक-संस्कृति में बहुत सी चीजें.. वो क्या कहते हैं… साइंटिफिक तरीके से बनायी गयी ठहरी."

पूरा लेख पढ़े---
  http://kakesh.com/2008/harela-festival-of-uttarakhand/




Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Great Mahar ji achha lekh dhoondh ke laae.

Rajen

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Pankaj jee, this link is not working.  Could you please re-post it or upload the item in the voice of KAKESH JEE.


आज मुझे एक नायाब चीज मिली है और वह है, उत्तराखण्ड का अतुलनीय दर्शन.....वह भी काकेश दा की आवाज के साथ, लोकगीत, रिवाज और बांसुरी की मधुर धुन के साथ........आप भी जरुर अवलोकन करें।  लिंक नीचे है-

http://www.akshargram.com/sanjay/index.php?option=com_content&task=view&id=25&Itemid=27

Hisalu

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Ajkal kakesh daa ke article najar nahi aa rhe hai

umeshbani

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Mujhe Bhi Kakesh Da ke artical ka intazar hai

Bhishma Kukreti

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I am thankful to Kakesh Ji
He introduced me Shri Kamal Karnatak ji and definitely Shri Mehta Ji through Internet only
Bhishm

 

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