Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 55346 times)

Parashar Gaur

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गड्वाली छ्वाटी कथा
 
 
                                                              अति कख छो खूब ?
             कै गौमा एक नौनी ब्यो  हवे ! द्वार बाटाकु जवै अर बेटी आई  !   बिखुन दा, रसोई का बगत  गौंका जनना,    जवे  थै मिनु  एनी !  नौनी ब्वे , याने दुलाहा की सासुल ,उसे अपणी जवाई की तारफीमाँ वो  लम्बी लम्बी छुडिनी  ! म्यारू जवेत इनच, उनच ! युचा- स्यूचा !   जवै  भी सुणु छो !  व बुन बैठी ... " दा , दीदी  ,  क्या बुन ! मेरु जवैत   इतुगु खांद ( हाथल बताद हवे )  इतुगु  ! एक रवाटी कु  टुकड़ी भी मुश्किल से खांद !  अगर यकीन न हो त,   अभी देखिल्या !          
          वीं नौनिकू बोली ... "  बाबा ...,  जवे खुनी खाणु लगो !  "     सियु खाणु  आइ ! जवैल  इन्हें देखि ,  उने देखि ! क्या देखिकी   गौ की  सबी औरत वेथै   छे दिखणी  !    उ कैरू त क्या करू ?  !  वेल एक टुकड़ी चुंडी अर सबी कटवारियुमाँ टुपे  थाली फुंड सरकैकी ."  . बोली... सासुजी ...., बस ह्वेगी  ब्लड भैर हाथ धोणु चलिगे !   "     त सास  उ लुखु से क्या बुन बैठी --- " देख्याल ना तुमल अपणी आंखिउन !  सब्युन मुंडी हिले अर घोर चलिगीं !             
       रात जवे थै लगी भूख ! क्या कैरू ? वेकि श्रीमती भी कखी छे सीई !    स्सुरास  आंदा  बगत  वेल  कुडिक  धुर्पल्मा  खिरबोज देखि छा ! वो उठी .. सीधा गे धुर्पलिम अर भभोड़ी एक खिरबोज ! एक गिलास पानी पे अर सेगी !  एक द्वी घंटा बाद जवैका पेटम मची उद्रोल ..  !  जवैजी,   दौड़ा दौड़ा सारी जनै !    हर ५ मिनट बाद जवे भैर !  कुर्बुरी का टैम गौका जनना भी दिसा फिराग का वास्ता भैर आण बैठा त ,  देखि,    जवे हर ५ मिनट बाद छ भैर जाणु !  जनी घाम आई सासू भी उठी .. ! जौन जवे थै बगत भैर जंद देखि  उन सासु थै पूछी --------------
       "  हे भूली , त्यारु जवे त सरया रात भैर छो जाणु ! कनु  सब त   ठीक च   ना .... ??? ??? ?  "       
       
       व बोली ___  " द,   दीदी---,      ह्या बुनैना , ब्वाली  उन ,  एक  टुकड़ी तुमरे समणी खाई छे,     वा भी नि पच्ची जणी ! "
                             

 
[/color]कापीराईट @परशार्गौर २०१०  सितम्बर १७     

Parashar Gaur

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                                      "   हिस्सा  "          
(   यह नाटक  राजनैतिक व्यंगात्मक नाटक है जो राम मंदिर  अवं बाबरी मस्जिद पर आधारित है  }     
 
पात्र ..
१ मंदिर        
२  मसजिद             
३ आदमी        
४ अखाड़ा
                                                 
    ( स्टेज में पर्दा खुलता है ! पीछे से केवल आवाज आती है  )
 
आवाज ...   आदमी ने अपने स्वार्थ और अपने अहंकार के लिए क्या क्या नही किया ! क्या क्या नही
             तोड़ा ! मंदिर  तोड़े,  मस्जिदे तोड़ी , चर्च तोड़े ! इतना ही नही उसने इंसान की भावनाओ  को भी
             की बार तोड़ा !    ( रूककर  )      क्या कुछ नही क्या उसने ?  सब कुछ तो किया !   राम मंदिर
            अवं  बाबरी  मसजिद भी तो उसी किस्से का हिसा है ! आज मै  आप  लोगो को  उस किस्से का
            इक झलक दिखाता हूँ !             

           ( स्टेज में मंदिर, मस्जिद,  आदमी और अखाड़ा एक एक कर के आते है  ) 
 
मंदिर  -----      " मै , मंदिर हूँ "
मसजिद -----  " मै मस्जिद हूँ !" 
आदमी  ------  " मै आदमी हूँ !"   ( कहकर  सब अपनी अपनी जगह खड़े हो जाते है ) 
मंदिर .....   . ( मस्जिद की ओर इशारा करके ) .. मै वहा पर था ! 
मसजिद  ...   लेकिन अब तो मै हूँ  ! 
मंदिर ....      अरे,   जब मै था तभी तो तुम हो ?
मसजिद ...    तो क्या ?  अब तो नही ही ना ...... ! 
मंदिर ......   मै कब नही था !    मैंने तुमसे कहाना,   , मै वही था !   जहा आज तुम हो !                   
 
 
मसजिद ....  मान लिया,!    थे ,!   पर अब तो नही हो ना ...!  जो बीत गया,  सो गया ! जो आज
              है उसको सब जानते है !    बर्तमान की बात करो , बर्तमान की .....
 
                         ( तभी आदमी  हाथ में हथोडा लिए प्रवेश करता है ! )   
 
आदमी .....  क्या कहा..!     बर्तमान की बात करो ?
मसजिद ...  हाँ .., हाँ ...,   बर्तमान की ! 
आदमी ......( आदमी हथोडा मार कर उसे तोड़ते हुए   )     लो---,  अब देखो ,   थोड़ी देर पहले तुम थे  !   
             अब नहीं हो ! अब आप बर्तमान से भूत हो गए हो !
मंदिर ..  ..(मसजिद से )  ....  अब बोलो  ?   
मसजिद ... ये आदमी की चाल है तुम्हे और मुझको लडाने की !  बोलते क्यों  नही ?  चुप क्यों हो ! मंदिर ..मै तो तब भी चुप था और आज

             भी !  जब तोड़ा गया था तभी ! क्योंकि मैंने दोनों युगों को
             देखा है होने का और ना होने का  ! ( मसजिद से)  "तुम क्या कहते हो ?" 
मसजिद ...( रूककर, इधर उधर देखकर  )  कल तक तो मै यही पर थी ! आज नही हूँ  अगर आज नही हूँ भी
            तो उससे क्या !
मंदिर ....   अगर यही बात मे तुमसे  कहूँ तो ?  जो है , उसे मानते क्यों नही !                               
आदमी ( तभी आदमी बोल पड़ता है  )  .... मनाना और मनवान , ये मेरा काम है  आपका नही !  जो मै
           चाहूंगा वही  मानी होगा !   (  मंदिर के पास जाकर मंदिर से )  -- मैंने तुन्हें ध्वंस किया, 
           मसजिद बनाई ! ( मसजिद के पास जाकर )   थोड़ी  देर  पहले तुम थी , मैंने तुम्हे तोड़ दिया !
           अब नही हो ! अबतो बस खली ज़मीन है ! उसमे चाहिय मै जो कुछ भी बनाऊ .. मंदिर  या
          मसजिद! , .....कुछ भी ! तुमको  आपती  नही  होनी चाहिए !  हाँ .. आपती होगी तो,   आपके 
          चाहने  वालो को होगी  क्यों कि  आपती के बीज उन्होंने ही बोये है तो ,  काटेगे भी वही   
          ना ....  ,  क्यों ?
मंदिर ...   " तुम पागल हो " 
मसजिद ..." तुम जाहिल हो "                   
( दोनों एक साथ )     तुम्हारे  भेजे में कब आयेगा कि हम अगल बगल में भी तो रह सकते है !  कभी सोचा है तुमने ?  माना कभी 

             हमरा बजूद था ! हमारा सस्थित्वा  था जो  अब नही है ! अबतो हमे कमसे कम चैन से तो रहने दो  ( दोनों एक दुसरे के काँधे ओर हाथ
              रखकर बाहर जाते है  ! 
आदमी- --  (   उन्हें जाते  देखकर ) ...    चैन ..., अगर मै तुम्हे  चैन से रहने दू तो फिर मुझे आदमी क्यूँ कहेगा ?  माना ,  रहने भी दू,   तो
             अखाड़ा रहने तब ना  ... ??? ? 

                ( तभी अखाड़ा आता है )
 
 अखाड़ा ...    अरे , तुम तो अपना अपना हिसाब  करके चले गए हो ! मेरे हिस्से का क्या होगा ? अरे है
               कोई सुनने वाला ! अरे रुको !  . हे मंदिर ...,   वो मसजिद सुनतो ... ( कहते कहते  भर   -
              चला जाता है   जाते जाते कहता है ). हिस्सा तो में लेके रहूंगा इस  खाली  प्लाट का !

 
                                           ----------------          पर्दा गिरता है     --------------------   
पराशर गौर
सितम्बर २2 २०१० दिनके २.४५ पर

Parashar Gaur

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फर्क
 किसने मुझ से पूछा --------
 भाई साहिब , जरा बताये
 नेता को नेता क्यू कहते है!
और नेता क्या होता है ? 
 
मैंने कहा , जनाब --- 
संस्कृति में एक श्लोक है
" लुन्ड़ो बीचत्रो  गति "   अर्थात ,
जो आवारा किस्म के आदमी होते है
उनका उठना,बैठना चाल /ठाल
दुनिया से अलग ही होता है !
हम कुर्सियों में बैठते है 
उन्हें , सोफा आफर होता है !
 
उनके अचार/बिचार हमसे भिन होते है
वो आदमी न होकर एक .. 
ख़ास किस्म के आदमी होते है  !   
 
जैसे . 
गधा घोड़ा  खचर सबके सब
है तो एक ही  जात के   
पर श्रीमान , कुछ भी कहिये
गधा तो गधा ही होता है
एसा ही नेता होता है !
 
 पराशर गौर
 १५ सितम्बर २०१० न्यू मार्किट
 कानाडा   

Parashar Gaur

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तसबीर

वो
सामने देख रहे हो
दिवार के सहारे बैठी`
उस नरकंकाल को ?
वो ,
बिदेश में बसे
जार्ज  याने जीत सिंह की माँ है
जो ,
अपनों की राह ताकते ताकते
हडियो का ठांचा  बन गई है  !

 जिसके शरीर पर
कपडे का चिथड़ा टिकता नहीं
प्राण ,
जाने  कहा पर अटके होंगे !

शुन्य  आकाश पर
ताकती उसकी निगाहें
हर आने-जाने वाले से
एक ही प्रश्न कर रही है
कि,
मेरा क्या गुनाह है
जिसकी सजा , मुझे  मेरे अपने
इस तरह से देरहे है !

कह रही है
कोई , मुझे एकबार उसकी
सक्ल देखादों तो , मै
मै चैन से मर जाउंगी

मै कहता हूँ
जिस दिन उसने तेरी ये
सक्ल देख ली .....
उस दिन  जीत सिह, जीत सिह नहीं होगा
जार्ज , जार्ज नहीं रहेगा`
 तू तो
 मर कर भी ज़िंदा` रहेगी  माँ के रूप में
लेकिन वो ,
ज़िंदा रह कर भी  मर नही पायेगा
वो  तो
प्रयाश्चित कि आग में झुलसता रहेगा
ता जिन्दगी भर !

कापी राइट   @
पराशर गौर
२५ जनबरी २०११  समय ११ बजे दिन में

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सर..... बहुत सुंदर कविता आपने रची है..

सुंदर .. ....

तसबीर

वो
सामने देख रहे हो
दिवार के सहारे बैठी`
उस नरकंकाल को ?
वो ,
बिदेश में बसे
जार्ज  याने जीत सिंह की माँ है
जो ,
अपनों की राह ताकते ताकते
हडियो का ठांचा  बन गई है  !

 जिसके शरीर पर
कपडे का चिथड़ा टिकता नहीं
प्राण ,
जाने  कहा पर अटके होंगे !

शुन्य  आकाश पर
ताकती उसकी निगाहें
हर आने-जाने वाले से
एक ही प्रश्न कर रही है
कि,
मेरा क्या गुनाह है
जिसकी सजा , मुझे  मेरे अपने
इस तरह से देरहे है !

कह रही है
कोई , मुझे एकबार उसकी
सक्ल देखादों तो , मै
मै चैन से मर जाउंगी

मै कहता हूँ
जिस दिन उसने तेरी ये
सक्ल देख ली .....
उस दिन  जीत सिह, जीत सिह नहीं होगा
जार्ज , जार्ज नहीं रहेगा`
 तू तो
 मर कर भी ज़िंदा` रहेगी  माँ के रूप में
लेकिन वो ,
ज़िंदा रह कर भी  मर नही पायेगा
वो  तो
प्रयाश्चित कि आग में झुलसता रहेगा
ता जिन्दगी भर !

कापी राइट   @
पराशर गौर
२५ जनबरी २०११  समय ११ बजे दिन में


Parashar Gaur

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dhnyabaad mehtaji hausal afzaai ki iye
parashar

Parashar Gaur

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उठ !

 वो,
पत्थर को भगवान् मानने वाले इंसान
जरा,
चेतना की आँखे खोल
ये पत्थर तुझे ,
चोट की सिवा कुछ नहीं देंगे
ये, भूखो को रोटी नहीं देंगे
ये, चीखती चिलाती दुखियारो के
आंसू नहीं पोंछ पायेंगे !
उठ ,
जिन हाथो ने तुने इसे  तराशा है
उन्ही हाथो से  मेहनत कर
उठा
फावड़ा , कुदाल  गेंती
चीर कर धरती को  पैदा कर
वो अनाज ,
जो भूख को शांत करती है
जो देती है संबल जीने का
तब ,
तू भी सुखी रहेगा
तेरा ये भगवान् और समाज भी !

पराशर गौर
२५ जनबरी २०११ रात ११ बजे

Parashar Gaur

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ब्रेकिंग न्यूज   " भुल्ला  गोल "

              टेलीबिजन पर खबर  छे चनी  कि,  एकाएक खबर बंचण वलाल  बीच्मै    खबर रोकी बोली  --   " प्रिय सुनण बालो , आप थै मी एक,   ब्रेकिंग न्यूज छो बताणु  ! अभी अभी हमरा सम्बादाता खबरची सिंघल एक जरुरी खबर भेजी  कि पहाड़ी भुल्ला ( उत्तराखंड ) गोल ह्वेगी ! याने हर्ची  गे ! जै थै  भी मिल जाव  या  कखी दिखेजा त तुरन्तु  देहरादून माँ बिधान सभा का अग्वाड़ी घड्यालु  धोरी चंदरसिंह गड्वाली या इन्दर मोहन बडूनी सूचित करीनी !  सूचित करण वालो थै बतौर इनाम का उ थै  " बड़ा भैजी "  ( मुख्या मंत्री ) पद से समानित करे जालु !
             ये पहाड़ी भलै कि उम्र  १० साल अर कुछ मैना कि च !  ब्ये    -बाबुकू  त,   कुछ आता प़ता नी !   पर हां,   सुणम  आई कि  जनि पैदा हवे छो !  बड़ा भैज्युन ये थै समणी कैकी अपणी अपणी मवासी बणऩे
कि सोची याली छे ! १० सालम  उनत द्वी बड़ा भैजी  हूँण चैदा छा !  अर,   छे  भी छा !   हत अर कमल  !  पर गजब ही हवे ,  येल  द्वी का बजाह  १० सालम  पट ५ दिखनी !  शैद ये भुला पर यून , जरूरत से ज्यादा दबो डालिदे जणी ! हवे सकद  येकी उन्न्नती   अर प्रगति  पर उन ध्यान ही,  नी  दे हो ! क्या पता उन येसे  क्या क्या बादा कै  होला ! क्या पता  यून  वेसे  बोली हो,  कि  हम ,   त्वे खुणी  दुसान्दम  ( गैरीसैण ) एक मकान  लागोला ! जख बीटी तू  द्वी जनै देखि सकली !  क्या पता बोली होलू कि,   तू अपणा भाई बन्दों से बे- रोक टक्का मिल सकदी  !   अर कैथे मीलणी  दे हो ?  क्या पता !  यु द्वी भयुन कमल अर हतल १० साल माँ ये पर न जाणी क्या क्या कै हो ?  यु हालम,  अर परेशानिम !    शैद बिचरल  गोल हुणेम  ही  अपणी  भलै  समझे हो !
            जनता से अपील च कि वो लालबती माँ  बैठ्या सफ़ेद कुर्ता सुलार धारी यु बड़ा- छुटा भैज्यु थै जरुर दिख्या !  क्या पत्ता यून  मयारू ये  भुला थै  अपणा स्वार्थ का बाण कखी अपणा  किस्सा  हुन्द त नी लुकायु होलु !  या फिर गिर्दा ,या नरेंदर सिंह नेगी  या पराशर कि  कविता , गीत य  व्यंग माँ दिखया ! ये भुलल यु १० सालो माँ कै मंत्री  ,कै सचिब , कै स्कीम दिखिनी ! इ भी हवे सकद कि युकी रात दिने कि झूठी कस्मा बादो से तंग येकी काखी लुक्की गे हो ?  आजा    जु बड़ा  भैजी ( बतमान मुख्य मंत्री )  छन ! उसे बिशेष रूप से  दर खासत   च कि अगर आप अभी नी खुजैल्या वे थै  अर वेका बारम नी सुचिल्या  त आन वाला समय माँ  आप अफु थै  भी खुज्याँणम भी मुश्किल हवे जाली !

पराशर गौर
दिनाक २८ जनबरी २०११ समय ८.१६ रात

         
 

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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parashar ji.....I went through each articles of yours. All the information posted by you is interesting and meaningful.


बहुत खूब गौड़ जी......

उत्तराखंड राज्य क दशा दयनीय छा! उत्तराखंड राज्य में एक और नौछमी नारायण पैद हवे गयी!

ब्रेकिंग न्यूज   " भुल्ला  गोल "

              टेलीबिजन पर खबर  छे चनी  कि,  एकाएक खबर बंचण वलाल  बीच्मै    खबर रोकी बोली  --   " प्रिय सुनण बालो , आप थै मी एक,   ब्रेकिंग न्यूज छो बताणु  ! अभी अभी हमरा सम्बादाता खबरची सिंघल एक जरुरी खबर भेजी  कि पहाड़ी भुल्ला ( उत्तराखंड ) गोल ह्वेगी ! याने हर्ची  गे ! जै थै  भी मिल जाव  या  कखी दिखेजा त तुरन्तु  देहरादून माँ बिधान सभा का अग्वाड़ी घड्यालु  धोरी चंदरसिंह गड्वाली या इन्दर मोहन बडूनी सूचित करीनी !  सूचित करण वालो थै बतौर इनाम का उ थै  " बड़ा भैजी "  ( मुख्या मंत्री ) पद से समानित करे जालु !
             ये पहाड़ी भलै कि उम्र  १० साल अर कुछ मैना कि च !  ब्ये    -बाबुकू  त,   कुछ आता प़ता नी !   पर हां,   सुणम  आई कि  जनि पैदा हवे छो !  बड़ा भैज्युन ये थै समणी कैकी अपणी अपणी मवासी बणऩे
कि सोची याली छे ! १० सालम  उनत द्वी बड़ा भैजी  हूँण चैदा छा !  अर,   छे  भी छा !   हत अर कमल  !  पर गजब ही हवे ,  येल  द्वी का बजाह  १० सालम  पट ५ दिखनी !  शैद ये भुला पर यून , जरूरत से ज्यादा दबो डालिदे जणी ! हवे सकद  येकी उन्न्नती   अर प्रगति  पर उन ध्यान ही,  नी  दे हो ! क्या पता उन येसे  क्या क्या बादा कै  होला ! क्या पता  यून  वेसे  बोली हो,  कि  हम ,   त्वे खुणी  दुसान्दम  ( गैरीसैण ) एक मकान  लागोला ! जख बीटी तू  द्वी जनै देखि सकली !  क्या पता बोली होलू कि,   तू अपणा भाई बन्दों से बे- रोक टक्का मिल सकदी  !   अर कैथे मीलणी  दे हो ?  क्या पता !  यु द्वी भयुन कमल अर हतल १० साल माँ ये पर न जाणी क्या क्या कै हो ?  यु हालम,  अर परेशानिम !    शैद बिचरल  गोल हुणेम  ही  अपणी  भलै  समझे हो !
            जनता से अपील च कि वो लालबती माँ  बैठ्या सफ़ेद कुर्ता सुलार धारी यु बड़ा- छुटा भैज्यु थै जरुर दिख्या !  क्या पत्ता यून  मयारू ये  भुला थै  अपणा स्वार्थ का बाण कखी अपणा  किस्सा  हुन्द त नी लुकायु होलु !  या फिर गिर्दा ,या नरेंदर सिंह नेगी  या पराशर कि  कविता , गीत य  व्यंग माँ दिखया ! ये भुलल यु १० सालो माँ कै मंत्री  ,कै सचिब , कै स्कीम दिखिनी ! इ भी हवे सकद कि युकी रात दिने कि झूठी कस्मा बादो से तंग येकी काखी लुक्की गे हो ?  आजा    जु बड़ा  भैजी ( बतमान मुख्य मंत्री )  छन ! उसे बिशेष रूप से  दर खासत   च कि अगर आप अभी नी खुजैल्या वे थै  अर वेका बारम नी सुचिल्या  त आन वाला समय माँ  आप अफु थै  भी खुज्याँणम भी मुश्किल हवे जाली !

पराशर गौर
दिनाक २८ जनबरी २०११ समय ८.१६ रात

         
 


 

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