गोवर्धन प्रतिपदा
कार्तिक शुक्ल १ को भगवान कृष्णचंद्र ने गोवर्धन-पर्वत उठाकर इन्द्र के कोप से गोकुल की रक्षा की थी। इन्द्र-मख के बदले गोवर्धन और गोधन की पूजा जारी की, तब से यह गौ-पूजा उत्मव होता है।
गाय-बच्छियों को पुष्प-माला पहनाकर तिलक लगाते हैं। गो-घास देकर पूजा आरती करते हैं। खीर, माखन, दही, दूध का नैवेध लगता है। भगनान श्रीकृष्ण की भी पूजा होती है। इस दिन कहीं-कहीं जैसे पाटिया में 'बगवाल' भी होती है