Author Topic: Your Dream State Uttarakhand - आपके सपनो का राज्य उत्तराखंड  (Read 22195 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Now see this.. News. the un-employment news
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कुमाऊं के ग्रामीण अंचलों में बेरोजगारी बढ़ी


नैनीताल। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के तहत आवंटित भारी भरकम बजट खर्च करने में भी कंजूसी बरती जा रही है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी बढ़ रही है, साथ ही सरकारी व्यवस्था के प्रति असंतोष भी पनप रहा है।

मंडल के ऊधमसिंह नगर को छोड़कर अन्य जिलों का अधिकांश भूभाग पहाड़ी है। पहाड़ी जिलों में लगातार सिमट रही कृषि भूमि के चलते ग्रामीणों के समक्ष रोजगार का कोई चारा नहीं है। मनरेगा योजना लागू होने के बाद उम्मीद जगी थी कि अब पहाड़ से पलायन में न केवल कमी होगी बल्कि गांवों में सुविधाओं का जाल भी बिछेगा। लेकिन यह उम्मीदें धीरे-धीरे खत्म हो रही है। हर साल योजना के तहत करोड़ों की धनराशि सरकारी खजाने की शोभा बढ़ा रही है। पिछले वित्तीय वर्ष में डेढ़ करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च नहीं हो सकी थी। वर्तमान वित्तीय वर्ष में जब मार्च-अप्रैल में ही वित्तीय स्वीकृतियां जारी हो गई थी, तो उम्मीदें जगी कि अब योजना खर्च की गति में तेजी आएगी, लेकिन सरकारी उदासीनता से यह संभव नहीं हो सका। मंडल में योजना की प्रगति के आंकड़े प्रशासनिक कामकाज के ढीले रवैये की कहानी बयां कर रहे है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार अल्मोड़ा जिले में अवमुक्त 1345 लाख में से सिर्फ 664 लाख ही खर्च हो सका है। बागेश्वर में 841 लाख में से 436 लाख, नैनीताल में 373 लाख में से 270 लाख, ऊधमसिंह नगर में 1061 लाख में से सिर्फ 204 लाख, पिथौरागढ़ में 1276 लाख में से 654 लाख तथा चंपावत जिले में अवमुक्त 482 में से 340 लाख खर्च हुआ है। कम खर्च से साफ है कि मंडल के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग काम के अभाव में जी रहे है। सूत्र बताते है कि योजना के तहत प्रस्तावित अधिकांश विकास कार्य शुरू हो चुके है, लेकिन अत्यधिक कागजी खानापूर्ति के कारण धन खर्च करने में दिक्कतें आ रही है। बहरहाल सरकारी अमले की लेटलतीफी से ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी व्यवस्था के प्रति असंतोष पनप रहा है। इधर, रोजगार गारंटी योजना में हर बेरोजगार को साल में एक सौ दिन काम देने का प्रावधान भले ही लागू हो, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण यह हकीकत में नहीं बदल पा रहा है। आलम यह है कि ग्रामीण खाली हाथ बैठे है और आवंटित धन सरकारी खजाने में डंप पड़ा है। उधर योजना में मजदूरी का भुगतान मजदूर के बैंक खाते से होने की प्रक्रिया के बाद ग्रामीण जनप्रतिनिधि भी योजना को लेकर उत्साहित नहीं है।

आयुक्त एस राजु के अनुसार मंडल में योजना खर्च की स्थिति तेजी से सुधर रही है। उन्होंने बताया करीब 70 प्रतिशत से अधिक धनराशि का उपयोग हो चुका है। उन्होंने माना ऊधमसिंह नगर जिले में योजना की हालत ठीक नहीं है। उनके अनुसार मंडलीय समीक्षा बैठक में योजना को लेकर विस्तृत विचार-विमर्श किया जाएगा।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6058931.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Such news give the picture of Uttarakhand.

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नहीं बदल पाई सीमांत गांवों की तस्वीर

घनसाली (उत्तरकाशी)। विकासखंड भिलंगना के आधा दर्जन से अधिक सीमांत गांव विकास के मामलों में कोसों दूर हैं। गांव में सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा विद्युत जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। सुविधाओं के अभाव में गांव से लोग तेजी से पलायन कर रहे हैं। पृथक राज्य बनने के बाद भी गांवों की तस्वीर नहीं बदली।

प्रखंड के नौली, मेड, मरवाड़ी, उर्णी, पिंसवाड़, गंगी सहित आधा दर्जन से अधिक गांव में अभी तक सड़क की सुविधा नहीं है। इन लोगों को आज भी 15 से 20 किमी की पैदल दूरी नापनी पड़ती है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर यहां कुछ नहीं है छोटी सी बीमारी में भी यहां के लोगों के चमियाला या घनसाली आना पड़ता है। प्रसव के दौरान तो कई महिलाएं मार्ग में ही दम तोड़ देती हैं। इन गांव आज भी बिजली से महरूम हैं। सीमांत गांव होने के कारण यह घने जंगलों के मध्य बसे हैं, जिस कारण हर समय जंगली जानवरों का भय बना रहता है। गांव की शिक्षा भी राम भरोसे है। गांवों में प्राथमिक विद्यालय को खोले गए हैं लेकिन वहां पर शिक्षक ही नहीं। बीहड़ क्षेत्र होने कारण कोई शिक्षक यहां पर रहना भी नहीं चाहता है। गांव में सुविधाओं का अभाव होने के कारण यहां से युवा अब गांव से पलायन करने को मजबूर हैं। पृथक राज्य बनने के बाद ग्रामीणों में आस जगी थी कि अब उनकी गांव की तस्वीर जरूर बदलेगी, लेकिन यह आस भी सपना बनकर रह गया है। आजादी से लेकर पृथक राज्य बनने के बाद भी इन गांव की न दशा बदली न दिशा। प्रधान नैन सिंह व मंगशीर सिंह कहते हैं लोग वर्षो विकास की आस में बैठे हैं, लेकिन अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है। इन गांवों पर सरकार का ध्यान नहीं है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6108518.html

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Again this news.
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सड़क: खस्ताहाल है कर्णप्रयाग क्षेत्र की तमाम सड़कें

कर्णप्रयाग (चमोली)। कर्णप्रयाग ब्लाक के नगर व ग्रामीण क्षेत्र के मोटर मार्गो की बदहाल स्थिति से वाहनों की आवाजाही में दिक्कतें आ रही है। जनप्रतिनिधियों की शिकायत के बावजूद लोक निर्माण विभाग खस्ताहाल हो चुके मोटर मार्गो की सुध नहीं ले रहा है।

सबसे ज्यादा खराब स्थिति ग्रामीण अंचल के मोटर मार्गो की है। कई वर्षो से डामरीकरण न होने और सुरक्षा दीवारों के अभाव में ग्रामीण क्षेत्र के मोटर मार्ग तमाम स्थानों पर जानलेवा बनते जा रहे हैं। लोनिवि गौचर के क्षेत्रांतर्गत कर्णप्रयाग-नैनीसैंण मार्ग की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। इस मार्ग पर बरसात के मौसम में जगह-जगह आया मलबा तक साफ नहीं किया गया है, लिहाजा इसमें सफर करना जाने जोखिम में डालने जैसा है। क्षेत्र के प्रधानों विरेन्द्र सिंह, कनक सिंह, बालू लाल, पान सिंह पुंडीर, जयदीप गैरोला ने कहा कि उन्होंने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों से कई बार इस मोटर मार्ग से मलवा हटाने और मरम्मत की मांग की लेकिन हर बार कोरे आश्वासन ही उनके हाथ लगे हैं। इसी तरह सोनला-कंडारा, सिमली-शैलेश्वर, नौटी-पुनगांव, आदिबदरी-नंदासैंण, बगोली-कोटी, कर्णप्रयाग मार्गो की स्थिति भी है। दूसरी ओर, कर्णप्रयाग नगर क्षेत्र की स्थिति भी इसी तरह है। नगर क्षेत्र कर्णप्रयाग में भी ग्रेफ व लोनिवि से निर्मित मार्गो पर कई स्थानों पर गड्डे बन गये हैं। इस सबंध में उपजिलाधिकारी आशीष भटगाईं का कहना है कि लोनिवि व बीआरओ अधिकारियों को खस्ताहाल सड़कों के डामरीकरण के लिए निर्देशत दिए गए हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6111166.html

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Was it our Dream State. Go through this news from Dainik Jagran

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अधर में है विद्यालय भवन का निर्माण



गोपेश्वर (चमोली)। विद्यालय भवन निर्माण के लिए लाखों की धनराशि स्वीकृत होने के बाद भी उत्तर प्रदेश निर्माण निगम की लापरवाही से निर्माण का कार्य अधर में लटका हुआ है। निर्माण निगम की ओर से मात्र सुरक्षा दीवार बनाकर काम रोक दिया है, जिससे नाराज अभिभावक संघ व क्षेत्र पंचायत सदस्य ने कार्यदायी संस्था बदले जाने व भवन निर्माण करने की मांग की है।

दरअसल, राजकीय इंटर कालेज टंगसा में शासन ने स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत 31 मार्च 2008 को 56 लाख 77 हजार की धनराशि स्वीकृत की गई थी, जिसके तहत 8 लाख 77 हजार रुपये की धनराशि पहली किश्त के रूप में अवमुक्त की गई थी। आठ लाख रुपये की मोटी धनराशि से निर्माण निगम की ओर से मात्र सुरक्षा दीवार अधूरी बनाकर निर्माण कार्य मार्च 2009 से बंद किया है। क्षेत्र पंचायत सदस्य महानन्द बिष्ट का कहना है कि विद्यालय में कक्षा-कक्षों की कमी को देखते हुए शासन ने स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत भवन निर्माण के लिए धनराशि स्वीकृत की गई थी, जिसका उपयोग निर्माण निगम कार्य प्रणाली से नहीं हो पा रहा है। इससे नाराज क्षेत्र पंचायत सदस्य महानन्द बिष्ट ने जिलाधिकारी चमोली को 23 फरवरी को ज्ञापन भेजकर कार्यदायी संस्था निर्माण निगम से कार्य हस्तान्तरित कर अन्य कार्यदायी संस्था को दिए जाने की मांग की गई। जिसके बाद जिलाधिकारी नीरज सेमवाल ने 26 फरवरी को उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम इकाई-2 के परियोजना प्रबंधक को निर्देश देते हुए राइंका टंगसा के भवन निर्माण शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर वित्तीय वर्ष 2009-10 में पूर्ण करवाने के निर्देश देते हुए भवन निर्माण कार्य बंद किए जाने के संबंध में स्पष्टीकरण भी मांगा था। साथ ही जिलाधिकारी ने जिला शिक्षाधिकारी से कार्य की प्रगति सूचना भी मांगी गई थी, बावजूद इसके निर्माण निगम ने कार्य में प्रगति लाना तो दूर कार्य तक शुरू नहीं किया गया।

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I don't think. It right.. I don't see any development as far as my village area is concerned.



गांव-गांव में हो रहा विकास: निशंक

जोशीमठ (रुद्रप्रयाग)। सोमवार का दिन जोशीमठ क्षेत्र के लोगों के लिए सौगात लेकर आया। मुख्यमंत्री ने क्षेत्र में दो योजनाओं का लोकार्पण व पांच का शिलान्यास किया।

नगर में सिंगधार बस अड्डे व विकास भवन का लोकार्पण करने के बाद मुख्यमंत्री निशंक ने कहा कि सरकार हर गांव के विकास को कृत संकल्प है। भाजपा सरकार ने अपने साढे तीन वर्ष के कार्यकाल में शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। उन्होंने जोशीमठ क्षेत्र के विकास को करीब आधा दर्जन घोषणाएं कीं। मुख्यमंत्री ने जोशीमठ में स्थित सिंचाई विभाग की भूमि पर हैलीपैड निर्माण को सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान करते हुए प्रशासन को इसका प्रस्ताव बनाकर शासन के पास भेजने के निर्देश दिए। स्थानीय विधायक केदार सिंह फोनिया ने कहा कि डा. निशंक के नेतृत्व में प्रदेश का चहुंमुखी विकास हो रहा है। इस मौके पर जीएमवीएन के अध्यक्ष अनिल नौटियाल, जिला पंचायत अध्यक्ष विजया रावत, बीकेटीसी के अध्यक्ष अनुसुया प्रसाद भट्ट, नगरपालिका अध्यक्ष ऋषिप्रसाद सती, ब्लाक प्रमुख सुचिता चौहान, दिगम्बर पंवार, रामकृष्ण रावत, राजेन्द्र प्रसाद डिमरी, किशोर पंवार, टीमा प्रसाद मैखुरी, मोहन प्रसाद थपलियाल समेत कई लोग मौजूद थे।

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अगर ऐसी ही हालात रहे तो हमें बंद का देने चाहिए वो सपने जो हमने दस साल पहले देखे थे !


                                बनाली गांव : कोई नहीं सुध लेने वाला
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चम्बा (नई टिहरी गढ़वाल)। सरकार गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के तमाम दावे कर रही है लेकिन आज भी पहाड़ के अधिसंख्य लोग पहाड़ जैसा ही जीवन जीने को बाध्य हैं। बनाली भी ऐसा ही गांव है जहां बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नही हैं। हाइटेक सुविधाओं की बात तो दूर यहां बिजली, पानी, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधा भी रामभरोसे ही है।

चंबा ब्लाक के बनाली गांव के लोग अब अभावग्रस्त जीवन जीने के आदी हो गए हैं। इक्कीसवीं सदी भी उनके लिए उन्नीसवीं सदी जैसी है। कारण, उनके पास जीवन जीने को आधारभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नही हैं। सबसे बड़ी समस्या गांव में पेयजल की है। गांव में पानी का कोई प्राकृतिक स्रोत नहीं है और लोग अभी भी काफी दूर स्थित गदेरे से पानी ढो रहे हैं।

 सौंग नदी से पंपिंग पेयजल योजना को अभी तक स्वीकृति नहीं मिल पायी है। शिक्षा के नाम पर कहने को तो गांव में बेसिक के अलावा जूनियर हाईस्कूल भी है,लेकिन मानकों के अनुरूप शिक्षक नहीं हैं। उच्च शिक्षा के लिए बीस से तीस किमी दूर सत्यों या फिर नागणी जाना पड़ता है। ऐसे में जूनियर हाईस्कूल के बाद की पढ़ाई करना मुश्किल है। लड़कियों के लिए यह स्थिति ज्यादा खराब है। स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल यह है कि यहां से लगभग 70 किमी दूर देहरादून से पहले कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है।

ऐसे में यदि कोई गंभीर मरीज बीच राह में दम तोड़ दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्षेत्र पंचायत सदस्य जगमोहन हटवाल का कहना है कि यहां तो कोई वोट मांगने भी नही आता है ऐसे में विकास की उम्मीद किससे करें। यातायात सुविधा के नाम पर गांव से कुछ पहले तक मोटर मार्ग बन तो गया है लेकिन लगातार मलबा आने से इस पर नियमित वाहन नही चल पार रहे हैं।

 कहने को तो गांव का विद्युतीकरण भी हो रखा है, लेकिन बिजली माह में एक सप्ताह ही रहती है। साथ ही लो-वोल्टेज की समस्या तो सदाबहार है। ब्लाक प्रमुख स्वर्ण रावत ने बताया कि गांव के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ माह पूर्व गांव में जनता दरबार लगाया गया था और अब उसकी समीक्षा की जायेगी और विकास योजनाओं में बनाली गांव को प्राथमिकता दी जायेगी।

जागरण न्यूज़

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This was not our dream state.


                देवभूामि से मुंह मोड़  रहे विदेशी पर्यटक       


          उत्तरकाशी। वन क्षेत्रों में पर्यटकों के लिये बढ़े शुल्क के नतीजे   दिखाई देने लगे हैं। सूबे की खूबसूरत वादियों की ओर से विदेशी पर्यटकों का   मोह भंग हो रहा है। माना जा रहा है कि पर्यटक अब हिमाचल सहित अन्य दूसरे   राज्यों का रुख कर रहे हैं।
 सूबे की आर्थिकी का प्रमुख जरिया माना जाने वाला पर्यटन क्षेत्र   विस्तार लेने के बजाए सिमटता नजर आ रहा है।  उत्तरकाशी जिला अपने नैसर्गिक   सौंदर्य व तमाम संभावनाओं के चलते कभी विदेशी पर्यटकों से गुलजार रहता था,   लेकिन अब इनकी तादाद बहुत कम हो चली है। इसके पीछे वन विभाग द्वारा वन   क्षेत्र में पर्यटन की विभिन्न गतिविधियों के शुल्कों में बढ़ोत्तरी को   माना जा रहा है। पार्क क्षेत्र में प्रवेश के लिये शुल्क भारतीयों के लिये   50 से 150 रुपए व विदेशियों लिये 300 से 600 रुपए हो गया है। वहीं डिजिटल   कैमरे का शुल्क भारतीयों के लिये 100 से 500 व विदेशियों के लिये 100 से   1500 रुपए हो गया है। इसी तरह फीचर फिल्म बनाने का शुल्क 20,000 रुपए से   भारतीयों के लिये एक लाख व विदेशियों के लिये दो लाख कर दिया गया है। वृत्त   चित्र बनाने के लिये भारतीयों के लिये ढाई हजार रुपए से बढ़ाकर दस हजार व   विदेशियों के लिये पांच हजार से बढ़ाकर तीस हजार रुपए कर दिया गया। इन दरों   में दो से पांच गुना तक की बढ़ोत्तरी की गई है जिसमें विदेशी पर्यटकों को   लेकर बिल्कुल भी रियायत नहीं बरती गई है। यही नहीं आवासीय सुविधा भी महंगी   हुई है। गेस्ट हाउस व कैंपिंग शुल्क दो से तीन गुना बढ़ाए गये हैं। इसमें   प्रीमियम श्रेणी वालों के लिये तीन गुना व ए श्रेणी में दो गुना बढ़ोत्तरी   की गई है। जबकि बी श्रेणी वाले पर्यटकों के लिये भी सौ से साढ़े सात सौ   रुपए तक गेस्ट हाउस की दरें बढ़ाई गई हैं। पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों का   मानना है कि पहले उच्च स्तरीय सुविधाएं दी जानी चाहिये उसके बाद ही दरों   में बढ़ोत्तरी वाजिब है। अन्य राज्यों में इतने अधिक शुल्क नहीं थोपे गये   हैं यही वजह है कि विदेशी पर्यटक दूसरे राज्यों का रुख कर रहे हैं।
   
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6647073.html

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ये है हमारे सपनों का उत्तराखंड ,दवा नहीं, बस दुआ का भरोसा
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तमाम दावे किए जा रहे हैं। गांव-गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की घोषणाएं की जा रही हैं, लेकिन नतीजा? सिफर। कम से कम टिहरी जिले के भिलंगना ब्लॉक में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली तो इस सवाल का यही जवाब देती है। राज्य गठन के दस साल बाद भी इलाके के ग्रामीणों को मामूली बीमारी पर भी 18 से 20 किमी पैदल चलना पड़ता है। सुविधाओं का अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि अकेले पिंसवाड़ गांव में एक वर्ष में नौ बच्चे समय पर उपचार न मिलने से अकाल मृत्यु के शिकार बन गए। बार-बार डायरिया, मलेरिया और अन्य संक्रामक रोगों की चपेट में आना क्षेत्र के लोगों की नियति सी बन गई है। ऐसे में उन्हें दवाओं से ज्यादा दुआओं पर ही भरोसा रहता है।

टिहरी जिले में भिलंगना प्रखंड के पिंसवाड़, मेड, मरवाड़ी, उर्णी, गंगी, निवाल गांव, अगुंडा, कांगड़ा, भट्टगांव, आर्स, अमरसर गांवों का दर्द एक सा है। राज्य गठन के बाद ग्रामीणों में बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होने की आस जगी थी, लेकिन यह अब तक पूरी नहीं हुई है। हालांकि, सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें, तो इन सभी गांवों में स्वास्थ्य उपकेन्द्र खुले हुए हैं, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और है। ये सभी उपकेंद्र या तो महज कागजों पर हैं, या जहां हैं भी वहां शोपीस बनकर रह गए हैं। क्षेत्र में स्थिति कितनी बदतर है, इसीसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिंसवाड़ गांव में एक साल के अंदर नौ नौनिहाल विभिन्न बीमारियों से काल के ग्रास बन गए। आलम यह है कि बीमार होने पर ग्रामीणों को 18-20 किमी पैदल चलकर बूढ़ाकेदार आना पड़ता है।

ग्रामीण प्रेम सिंह नेगी, भरत सिंह नेगी, सरब सिंह नेगी आदि लोगों का कहना है कि इसके लिए वह जनप्रतिनिधियों से लेकर स्वास्थ्य विभाग व सरकार तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। लोगों का कहना है कि पिंसवाड़ गांव में महिलाओं को प्रसव कराने के लिए दो साल पूर्व प्रसूति गृह खोला गया था, लेकिन विभागीय उपेक्षा के चलते उसे भी झाड़ियों ने पाट दिया है।

इस संबंध में मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. बीसी पाठक का कहना है कि मानकों के अनुसार गांवों में उप स्वास्थ्य केन्द्र खोले गए हैं जहां पर एएनएम को तैनात किया गया है।


Source Dainik jagran

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क्या यही सपना था वो जो की आज से दस साल पहले देखा था उत्तराखंडियों ने


कहीं अंधेरा प्रदेश न बन जाए उत्ताराखंड
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राज्य बनने के दस साल बाद भी हालात नहीं बदले हैं। विशेषकर जलविद्युत परियोजनाओं पर हो रही खींचातानी से ऊर्जा प्रदेश की बजाए सूबा 'अंधेरा प्रदेश' बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। इस पर गहन मंथन कर जरूरी कदम उठाने होंगे, अन्यथा स्थितियां और खराब होते देर नहीं लगेगी।

पर्वतीय तकनीकी उत्थान एवं अनुसंधान विकास संस्था से जुड़े सेवानिवृत्ता वरिष्ठ अभियंताओं की बैठक में यह चिंता जताई गई। संस्था के महासचिव मानवेंद्र गैरोला ने कहा कि राज्य में ऊर्जा क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए उच्च स्तरीय ऊर्जा विकास सलाहकार समिति गठित की जानी चाहिए, जो सरकार को तकनीकी राय व परामर्श देती रहे।

बैठक में दैवीय आपदा से हुई क्षति पर भी चिंता जताई गई और सरकारी तंत्र से मरम्मत कार्याें को युद्ध स्तर पर किए जाने पर जोर दिया गया। इस मौके पर निर्णय लिया गया कि राज्य से जुड़े तमाम सवालों को लेकर जल्द ही संस्था का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मुलाकात करेगा। बैठक केएस कुंवर, एचएस पुंडीर, आरसी डिमरी, राकेश शर्मा वरिष्ठ अभियंताओं ने विचार रखे।

जागरण न्यूज़

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It has been now over 10 yrs, but our dream state is still too far.


 

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