महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिये भगवान शिव की खोज में केदारखंड में आये थे. देवाधिदेव शंकर जी पाण्डवों से नहीं मिलने के उद्देश्य से अंतध्र्यान हो गये. काफ़ी खोजबीन के बाद जब पांडवों को शिवजी नहीं मिले तो वे केदारनाथ धाम में शिव की तपस्या करने लगे. पांडवों की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी विकराल भैंसे के रूप में प्रकट हो गये. भैंसे की कालीपीठ वाले उभरे शिलाखंड को ही श्री केदार अथवा शिव के रूप में पूजा की जाती है. इसी के दर्शनों के लिये लाखों श्रद्धालु देश- विदेश से यहां आते हैं. केदारनाथ के अलावा शिवजी के अन्य चार जगह अंग प्रकट हुये जहां उनकी पूजा की जाती है. तुंगनाथ में बाहु, भुजा,रूद्रनाथ में मुखाकृति, मदमहेश्वर में नाभि तथा कल्पेश्वर में जटा,बाल की पूजा की जाती है. इन सभी को पंच केदार के नाम से जाना जाता है. केदारनाथ धाम तक पहुंचने के लिये गौरीकुंड तक सड़क मार्ग है. उसके बाद 14 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करना पड़ता है. गौरीकुंड सड़क मार्ग ॅषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार तथा देहरादून के अलावा कुमाऊं और गढ़वाल के अन्य पर्वतीय स्टेशनों से जुड़ा हुआ है. ॅषिकेश और कोटद्वार तक रेल द्वारा भी पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा अगस्त्यमुनि से केदारनाथ के लिये पवन हंस हैलीकॉप्टर सेवा भी संचालित है. गौरीकुंड से 15 किमी पैदल रास्ता बड़ा ही कठिन संकरा और सीधी चढ़ायी वाला है. श्रद्धालु और पर्यटक जीवट और श्रद्धा के बूते ही यह यात्रा करते हैं. ऊंची- नीची ढलाने हैं, पर्वतमालायें हैं, झरने हैं, ठंड है और ऑक्सीजन भी कम है, लेकिन भोलेनाथ शिव के प्रति आस्था ऐसी है कि शिव का नाम लेते हुए बच्चे, बूढ़े व जवान सभी को हंसते -मुस्कराते, हांफ़ते -कांपते ऊपर चढ़ते देख कर ऐसा लगता है कि जैसे कोई सेना दिग्विजय यात्रा पर जा रही हो.