यहां गुफा में विराजते है ऋषि
उत्तरकाशी। गंगा भागीरथी के तट पर सदियों से आध्यात्म की धारा प्रवाहित होती रही है। ऋषियों व संतों की यह परंपरा वैदिक काल से लेकर आज तक कायम है। यहां संत चढ़ावे वाले समृद्ध मठ मंदिरों और अखाड़ों में नहीं, बल्कि गुफा और कुटिया में विराजते हैं।
गंगा भागीरथी को भारतीय धर्म और संस्कृति की पोषक ऐसे ही नहीं कहा जाता। इस पवित्र नदी के उद्गम क्षेत्र में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों ने तप कर देश और दुनिया को सनातन धर्म की महत्ता से परिचित कराया। मार्कण्डेय, पाराशर, जमदग्नि व जहन्नु जैसे ऋषियों के तप की कथाएं और उनसे जुड़े साक्ष्य आज भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं। बीसवीं सदी के मध्यकाल तक स्वामी रामानंद, स्वामी चिन्मयानंद, स्वामी विज्ञानानंद, स्वामी राम, स्वामी विश्वानंद व स्वामी शिवानंद आदि इसके वाहक बने।
उल्लेखनीय है कि इन संतों ने भारतीय धर्म, संस्कृति व प्राच्य विद्याओं को बदलती दुनिया में खास पहचान दिलाई। ज्ञानसू स्थित ज्ञान मंदिर का नाम संतों की तपस्थली होने के कारण ही पड़ा। सदियों के अंतर को पार करती हुई अध्यात्म की यह धारा आज भी उसी वेग से प्रवाहित हो रही है। उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री व गोमुख तक ऐसे अनेक संत देखे जा सकते हैं। इनमें उत्तरकाशी में केदारघाट के समीप स्वामी भगवानदास, गंगोरी में स्वामी हरिदास, गंगोत्री में स्वामी सुंदरानंद, तपोवनी माई व मुन्नी माई आदि प्रमुख नाम हैं। जब गंगोत्री धाम बर्फ से पूरी तरह ढक जाता है तब भी इन संतों और उनके शिष्य वहां साधनारत देखे जा सकते हैं। आदि काल से चली आ रही यह परंपरा को निभाते चले आ रहे संतों में अनेक संत उच्च कोटि के विद्वान, शिक्षाविद व सरकार के उच्च पदों पर भी रहे हैं।
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