Author Topic: Kandar Devta & Maagh Fair Uttarkashi- कण्डार देवता (उत्तरकाशी का माघ मेला)  (Read 8468 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto.

We are sharing here information about Kandar Devta Temple which is situated 12 Km ahead from main Uttarkashi City at Varunanchal Parvat (hill). There are two ways to reach this Temple:-

From Uttarkashi to Bagyal> Khaad > Paata then Sangrali, from Sangrali it is only at 3 km distance. By road, the route follows Gangori, Tikhla, Mahidanda then Sangrali. From Sangrali it is 12 km upto Mahi Daada.

After reaching this place, it is 1 km on foot journey.This place is surrounded with pious Rivers like Ganga & Yamuna.

In this topic, we will share information about Kandar Devta and Maagh Fair which is held in this place.


 M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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First go through this information About Kandar Devta--------------------------------------------------------

संग्राली गांव में कंडार देवता का राज  उत्तरकाशी। पहाड़ में सदियों से चली आ रही मान्यताएं आज भी जिंदा है। इसका जीता जागता उदाहरण प्राचीन संग्रामी गांव में देखने को मिलता है। यहां पंडित की पोथी, डाक्टर की दवा और कोतवाल का डंडा यहां काम नहीं आता है। गांव में कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य है।देवभूमि उत्तराखंड के उत्तर में उत्तरकाशी के निकट वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर बांयी ओर संग्राली गांव में कंडार देवता का प्राचीन मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र ही नहीं, बल्कि एक न्यायालय भी है। इस न्यायालय में फैसले कागजों में नहीं होते और न ही वकीलों की कार्यवाही होती है। यहां फैसला देवता की डोली सुनाती है। संग्राली गांव के लोग जन्मपत्री, विवाह, मुंडन, धार्मिक अनुष्ठान, जनेऊ समेत अन्य संस्कारों की तिथि तय करने के लिए पंडित की तलाश नहीं करते। कंडार देवता मंदिर के पंचायती प्रांगण में जमा होकर ग्रामीण डोली को कंधे पर रख कंडार देवता का स्मरण करते हैं। इस दौरान डोली के डोलने से इसका अग्रभाग जमीन का स्पर्श करता है। इससे रेखाएं खिंचने लगती हैं। इन रेखाओं में तिथि व समय लिख जाता है। आस्था है कि जन्म कुंडली भी जमीन पर रेखाएं खींचकर डोली स्वयं ही बना देती है। कई ऐसे जोड़ों का विवाह भी कंडार देवता करवा चुका है, जिनकी जन्मपत्री को देखने के बाद पंडितों ने स्पष्ट कह दिया था कि विवाह हो ही नहीं सकता। मात्र यहीं नहीं बल्कि गांव में जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसे उपचार के लिए कंडार देवता के पास ले जाया जाता है। सिरर्दद, बुखार, दांत दर्द तो ऐसे दूर होता है जैसे पहले रोगी को यह दर्द था ही नहीं।साभार : याहू दैनिक जागरण 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 माघ मेला, उत्तरकाशी

माघ मेला उत्तरकाशी इस जनपद का काफी पुराना धार्मिक/सांस्कृति तथा व्यावसायिक मेले के रूप में प्रसिद्ध है। इस मेले का प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन पाटा-संग्राली गांवों से कंडार देवता के साथ -साथ अन्य देवी देवताओं की डोलियों का उत्तरकाशी पहुंचने पर शुभारम्भ होता है। यह मेला 14 जनवरी मकर संक्राति से प्रारम्भ हो 21 जनवरी तक चलता है। इस मेले में जनपद के दूर दराज से धार्मिक प्रवृत्ति के लोग जहाँ गंगा स्नान के लिये आते है। वहीं सुदूर गांव के ग्रामवासी अपने-अपने क्षेत्र के ऊन एवं अन्य हस्तनिर्मित उत्पादों को बेचने के लिये भी इस मेले में आते है। इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में यहाँ के लोग स्थानीय जडी-बूटियों को भी उपचार के लिये लाते थे किन्तु वर्तमान समय में इस पर प्रतिबन्ध लगने के कारण अब मात्र ऊन आदि के उत्पादों का ही यहाँ पर विक्रय होता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यहाँ के स्थानीय देवो में कण्डार देव का स्थान सर्वोपरि है! धार्मिक महोत्सवो तथा उत्तरायनी के अवसर पर एकत्र होने वाले लोक देवताओ में उनका स्थान केन्द्रस्थ तथा सिहासन सर्वोच्च होता है ! मकर संक्रांति मेले से भैरव चौक पर स्थित "चमाऊ की चोरी" में बैठने का सर्वप्रथम अधिकार कण्डार देव को प्राप्त है! इसके बाद अन्य स्थानीय देवता यही बैठे है !

न्याय के प्रिय कण्डार देव को कुमाऊ में ग्वल, हनोल और महासू व् नेटवाड में पाखू देवता के समान प्राप्त है !


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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                Kandar Devta Temple in Uttarkashi Kandar Devta Temple in Uttarkashi

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मान्यता है कि कण्डार देव सिद्धहस्त ज्योतिविर्द की भाति, भूत, भविष्य, वर्तान बताने की क्षमता है! श्रदालुजन अपने शुभ कार्यो के लिए महूर्त निकालने के कार्य के लिए कण्डार देवता के पास जाते है ! स्थानीय मान्यतानुसार कंदार देव शिव का स्वरुप माने गये है! कण्डार देव निमं गावो के रक्षक देव के रूप में भी परम्परागत पूरे जाते है ! ये गाव है :-

 -   संग्राली
 -   पाटा
-  खांड
- गंगोरी
- लक्ष्केश्वर
- बाडाहाट (उत्तरकाशी)
-  जानुश
-  बसुंगा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कण्डार देवता के विषय में यह कथा इस प्रकार है!

वर्तमान कलक्ट्रेट के निकट खेत में हल कर्षण के दौरान अष्टधातु की अदभुत (चमत्कारी) प्रतिमा की प्राप्ति हुयी! इस प्रतिमा को राज्य की सम्पत्ति मन कर किसान ने उस प्रतिमा को तत्कालीन शाशक को सौप दिया है! राजा ने राजभवन में बने देवालय में प्रतिष्ठित देवमूतियों के साथ सबसे नीचे रख दिया गया! अगले दिन प्रातः जब राजा पूजा अर्चना हेतु उस कक्ष में गए तो उसने उस मूर्ती को अन्य सभी मूर्तियों से सबसे ऊपर प्रतिष्ठित पाया! रजा ने जब जब उस मूर्ती को नीचे रखा तो उसने उस मूर्ती को अन्य सभी मूर्त्तियों से ऊपर पाया! यह देख कर राजा के आश्चर्य का ठिगाना नहीं रहा!  मूर्ती प्राप्त होने के बाद राज्य में हुए कुछ उथल पुथल से घबराकर राजा ने यह प्रतिमा परशुराम मंदिर में पंहुचा दी! पुजारी ने इस प्रतिमा को प्रकर्ति को समझते हुए उसके स्थापना नगर के एक दूर ऊँचे स्थल पर करने की सलाह दी!

 ग्रामवासियों द्वारा वरुनाचल पर्वत पर स्थित संग्राली गाव में कण्डार देवता का मंदिर बनाकर इस मूर्ती को वहां स्थापित कर दिया!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेला (Fair)

उत्तरकाशी में माघ के महीने में मकर संक्रांति के दौरान एक सप्ताह तक चलने वाला प्रारंपरिक माघ का मेला होता है! इस मेले में कण्डार देवता की डोली तथा हरी महराज का ढोल अन्य स्थानों से आयी डोलिया व् ढोल प्रमुख होता है ! इस मेले में कौथिक इन देव डोलिया के सम्मुख प्रशन करते है और डोलिया समाधान करते है! बैसाख माह (अप्रैल) में संक्रांति के दिन ग्राम पाटा, ग्राम ब्ग्याल व् ग्राम संग्राली में ११ दिन तक मेला आयोजित होता है!

ज्येष्ठ माह में दशहरे (लगभग १३ जून) के दिन कण्डार देव गंगोत्री , यमनोत्री या अन्य किसी धार्मिक यात्रा पर जाते है! यह यात्रा सम्पूर्ण पैदल होती है!

(Ref -Kedarkhand-Hema Uniyal)

 

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