देवप्रयाग के बाद रूद्रप्रयाग सर्वाधिक छविपूर्ण संगम है जहां मंदाकिनी के बिल्कुल साफ हरे जल के ठीक विपरित अलकनंदा का कम साफ पानी मिलता है। इस अंतर का एक बड़ा कारण है कि मंदाकिनी घाटी का स्थिर वातावरण जिसके फलस्वरूप नदी में कंकड एवं मिट्टी कम रहते हैं। यहां संगम का बड़ा धार्मिक महत्त्व है तथा हजारों-हजार भक्तजन यहां आकर धार्मिक स्नान करते हैं।
रूद्रप्रयाग में सड़क बंट जाती है जिनमें से एक मंदाकिनी घाटी के साथ-साथ केदारनाथ पहुंचती है, तीसरे धाम। जबकि दूसरा पथ अलकनंदा के किनारे-किनारे बद्रीनाथ को जाता है। एक समय जब कोई बद्रीनाथ या केदारनाथ जाय तो उसे दोनों जगहों से घूमकर रूद्रप्रयाग आना पड़ता था। पर आज इस चक्करदार पथ पर जाने की आवश्यकता नहीं होती तथा इसके बदले केदारनाथ के पथ पर कुंड से जुड़े केदारनाथ पक्षी विहार क्षेत्र से होते हुए सर्वाधिक मनोरम उच्च पथ से पहुंचा जा सकता है। यह पथ पर ऊखीमठ, गोपेश्वर से चमोली होते हुए है। रूद्रप्रयाग भौतिक रूप से प्रभावशाली है। दो नदियों ने पहाड़ के चट्टानों को काटकर गहरी खाई बनायी है। इन दो नदियों के प्रबल प्रवाह से उत्पन्न आवाज रूद्रप्रयाग के किसी भी स्थान से सुनी जा सकती है।