Author Topic: Rudraprayag: Gateway Of Mahadev - रुद्रप्रयाग: रुद्र (शिव) क्षेत्र का द्वार  (Read 20890 times)

पंकज सिंह महर

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चामुंडा देवी मंदिर

(माई गोविंद गिरि जिन्होंने चामुंडा देवी मंदिर में कई साल सेवा की)
यह मंदिर संगम के समीप स्थित है तथा चामुंडा देवी को समर्पित है। पिछले 70 सालों से इस पौराणिक मंदिर में मां गोविंद गिरि एवं उनके गुरू पूर्ण गिरि ने सेवा की है। मंदिर में आरती प्रात: 8 बजे से 9 बजे तथा शाम को 6 बजे से 7 बजे होती है।
 

पंकज सिंह महर

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कॉर्बेट स्थल (रूद्रप्रयाग से 4 किलोमीटर पहले।)


गुलाब राय में एक रूचिकर स्थान कॉर्बेट प्वाइंट है। सड़क से दाहिने सटा एक छोटा स्थान है जहां एक धातु के प्लेट पर लिखा है कि यही वह स्थान था जहां प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट ने 2 मई, 1926 को रूद्रप्रयाग के एक नरभक्षी तेंदुए को गोली से मारा था। तब तक वह नरभक्षी 200 लोगों की जाने ले चुका था। वर्णन के अनुसार तेंदुए ने तीर्थयात्रियों द्वारा बद्रीनाथ की यात्रा को दूभर बना दिया था तथा अंधेरे के बाद लोग घरों से निकलने से डरते थे। वास्तव में तेंदुआ इतना फुर्तीला था कि वह दरवाजे पर दस्तक देता, खिड़कियों से अंदर कूद जाता तथा मिट्टी की दीवारों को खरोंच डालता। 

पिछले कुछ वर्षो में गुलाबराय में कुछ भोजनालय खुल गये हैं। इस प्रकार एक चाय के प्याले के साथ लोग कल्पना कर लेते है कि यह शांत जगह का अनुभव एक भयभीत जगह होने का कैसा रहा होगा।

पंकज सिंह महर

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हरियाली देवी मंदिर (नगरसु के मुडे पथ पर रूद्रप्रयाग से 16 किलोमीटर दूर।)


हरियाली देवी एक सिद्ध पीठ है जो उत्तराखंड के 58 मंदिरों में से एक है। एक किंबदन्ती के अनुसार श्रीकृष्ण की माता देवकी की सातवीं पुत्री महामाया को जोरों से पृथ्वी पर कंस ने पटक दिया था। महामाया के शरीर के कई भाग भूमि पर छितरा गए। हाथ वहीं गिरा था जहां आज हरियाली देवी का मंदिर है। यहां हरियाली देवी को पीले वस्त्रों एवं जेवरों से सज्जित एक सिंह पर सवार के रूप में दिखाया गया है। जन्माष्टमी तथा दीवाली के दौरान इस मंदिर पर हजारों-हजार भक्त आते है तथा उनमें से कई सात किलोमीटर दूर हरियाली कंठ तक देवी की डोली के साथ चलते है। 3,000 मीटर ऊंचाई पर अवस्थित हरियाली कंठ मंदिर में हरियाली देवी, क्षेत्रपाल तथा हीत देवी की प्रतिमाएं हैं। यह हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित है जहां से बर्फ से ढ़के पर्वतों का अद्भुत दर्शन होता है।
 

पंकज सिंह महर

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चंद्रपुरी (रूद्रप्रयाग से 25 किलोमीटर दूर, केदारनाथ के रास्ते पर।)

चंद्रपुरी का छोटा गांव मुख्य मार्ग से मंदाकिनी के दूसरे तट पर स्थित है। नदी को पार एक झुला पुल के सहारे किया जाता है। गांव में पहुंच कर ऐसा लगता है कि यहां सदियों से कुछ नहीं बदला। 

इस गांव की विशेषता यहां पर स्थित लक्ष्मी-नारायण मंदिर है। यह कत्यूरी शैली में निर्मित है, परंतु यहां के वासियों ने इसकी दीवारों को रंग दिया है जिससे इसके निर्माण में उपयोग किये गये बड़े-बड़े पत्थर नहीं दिखते।

कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण चंद्रनैनी नामक गढ़वाल राजाओं के एक वजीर ने करवाया था। उसके नाम पर ही गांव का नाम चंद्रपुर पड़ा है। वजीर ने राजा को बताये बिना मंदिर बनवाया। जब राजा को पता चला तो उसने गांव पर धावा बोल दिया। इसी बीच वजीर ने झूले पुल को कटवा दिया जिससे राजा के सैनिक नदी के उस पार नहीं पहुंच सके। उन्होंने दूसरे छोर से पत्थर फेंके जिसके कारण मंदिर के शिखर के नीचे कोने को नुकसान हुआ। यह आज टूटा हुआ नजर आता है।
मंदिर के गर्भ गृह से 30 साल पहले भगवान विष्णु, लक्ष्मी और गरूड़ की पौराणिक मूर्तियां चोरी हो गयी थी। गांव वालों ने नई मूर्तियां बनवायी और आज इनकी पूजा होती है। वैष्णवों और जोशियों के 12 परिवार इस मंदिर की पूजा और व्यवस्था में जुड़े है।

पंकज सिंह महर

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पंकज सिंह महर

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देवप्रयाग के बाद रूद्रप्रयाग सर्वाधिक छविपूर्ण संगम है जहां मंदाकिनी के बिल्कुल साफ हरे जल के ठीक विपरित अलकनंदा का कम साफ पानी मिलता है। इस अंतर का एक बड़ा कारण है कि मंदाकिनी घाटी का स्थिर वातावरण जिसके फलस्वरूप नदी में कंकड एवं मिट्टी कम रहते हैं। यहां संगम का बड़ा धार्मिक महत्त्व है तथा हजारों-हजार भक्तजन यहां आकर धार्मिक स्नान करते हैं।
     रूद्रप्रयाग में सड़क बंट जाती है जिनमें से एक मंदाकिनी घाटी के साथ-साथ केदारनाथ पहुंचती है, तीसरे धाम। जबकि दूसरा पथ अलकनंदा के किनारे-किनारे बद्रीनाथ को जाता है। एक समय जब कोई बद्रीनाथ या केदारनाथ जाय तो उसे दोनों जगहों से घूमकर रूद्रप्रयाग आना पड़ता था। पर आज इस चक्करदार पथ पर जाने की आवश्यकता नहीं होती तथा इसके बदले केदारनाथ के पथ पर कुंड से जुड़े केदारनाथ पक्षी विहार क्षेत्र से होते हुए सर्वाधिक मनोरम उच्च पथ से पहुंचा जा सकता है। यह  पथ पर ऊखीमठ, गोपेश्वर से चमोली होते हुए है। रूद्रप्रयाग भौतिक रूप से प्रभावशाली है। दो नदियों ने पहाड़ के चट्टानों को काटकर गहरी खाई बनायी है। इन दो नदियों के प्रबल प्रवाह से उत्पन्न आवाज रूद्रप्रयाग के किसी भी स्थान से सुनी जा सकती है।

पंकज सिंह महर

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द मैन-इटींग लेपर्ड ऑफ रूद्रप्रयाग

जिम कार्बेट इस तेंदुएं को लंबी और मुश्किल भाग-दौड़ के बाद मार सकें। इस अवसर पर वह अपनी किताब में अपनी भावनाओं का इस तरह वर्णन करते हैं।
“यह कोई दैत नहीं था जो रातों के घंटों में मेरी असमर्थता पर हंसता हो या यह सोचता हो कि जिस दिन मेरा पहला ढीला पड़ा वह मेरे गले को अपने दांतों से काट देगा। यह तो एक बुढ़ा तेंदुआ था जिसके बाल पक गये थे और जिसके मूछे नहीं थी। उसका अपराध प्रकृति के नियमों के विपरीत नहीं था। वह आदमी को मारता था या लोगों को डराता था इसलिये कि वह जी सके। और अब वह आंखें बंद कर जमीन पर अंतिम बार सो रहा था।”  

पंकज सिंह महर

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कार्बेट स्थल पर उनकी मूर्ति


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Kya baat hai Mahar ji aaj kal full form main hai aap.

Lage raho.

Risky Pathak

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Mehar Jee Lajwaab...
Paanch pryaago me se 2 ke darshan to aapne karwa diye.. ab 3 or KarnPryaag, NandPrayaag, Vishnu Prayaag ka intejaar or hai..


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