Author Topic: Some Ideal Village of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के आदर्श गाव!  (Read 41161 times)

Bhishma Kukreti

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      सन्  1887  में निर्मित
खल नागराजाधार में बनवारी लाल भट्ट के मकान  में काष्ठ  कला व अलंकरण


House Wood Art in Tibari (  Built 1887)  of  Banwari lal Bhatt from Khal Nargrajadhar (Tehri)

टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ  कला अंकन - 2
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  - 2

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  82
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -  82

-  संकलन - भीष्म कुकरेती
    यह सत्य है कि ब्रिटिश हो या टिहरी गढ़वाल , दोनों रियासतों में सम्पनता  ब्रिटिश काल के उपरांत ही आयी।  टिहरी रियासत भी अपवाद नहीं है। टिहरी में विकास हो रहा था।   टिहरी राजधानी का सांस्कृतिक प्रभाव  धीरे धीरे  टिहरी व जौनसार के दूरस्थ गांवों में भी पड़ने लगा था।  1887  में निर्मित खल नागराजधार , (कोटी  फैगुल , घनसाली टिहरी गढ़वाल  )  में  राजमिस्त्री बनवारी लाल भट्ट  का मकान साक्षी है कि 1880 के बाद इस तरह की सम्पनता आ चुकी थी कि गाँवों में दो मंजिले या ढाई मंजिले भव्य मकान निर्मित हो सकें।   
 प्रसिद्ध राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट के मकान की इस श्रृंखला में बड़ा महत्व है।  मकान में पत्थर से  उत्कृष्ट मकान निर्माण शैली का उदाहरण तो मिलता ही है साथ में काष्ठ कला के विकास का  सूत भेद भी पंडित बनवारी लाल का यह मकान देता है।  मकान दुखंड है व दो उबर  (तल मंजिल के कमरे)  हैं , उबरों में मध्य पहली मंजिल में जाने  के अंदुरनी मार्ग हेतु खोळी /प्रवेश द्वार है.
 राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट  के मकान की कई वास्तु विशेषताएं संज्ञान लेने लायक  है  जैसे कमरों के व खोळी  द्वारों के ऊपर पाषाण arch /अर्ध मंडल/चाप  या तोरण कला , इसके अतिरिक्त आलों /आळों  के ऊपर भी पाषाण  मंडल /arch /चाप हैं जो विशेष (exclusive ) हैं।
 काष्ठ  कला की दृष्टि से पंडित भट्ट का यह ढैपुर मकान बहुत ही महवतपूर्ण है और ऐसी समान कला युक्त या शैली युक्त भवन अब शायद  ही बचे   होंगे।  काष्ठ कला की विवेचना हेतु मकान के निम्न स्थानों  की विवेचनआवश्यक है -

1 - पंडित बनवारी लाल के मकान के दो उबरों   के दरवाजों में काष्ठ कला
1 अ - उबर  के सिंगाड़ /स्तम्भ में काष्ठ कला
1 आ - उबर के मुरिन्ड चाप में काष्ठ कला व अलंकरण
2 -    मकान की खोळी /प्रवेश द्वार में दरवाजों पर काष्ठ कला
2 अ  दरवाजों प र कला  यदि है
2 आ - मुरिन्ड में कोई कला
2 इ - मुरिन्ड के ऊपरी  स्थल में कला व अलंकरण
3   -   मकान में तल मंजिल के आलों में काष्ठ  कला /art व अलंकरण /motifs
4   - पहली मंजिल पर दुज्यळों  / मोरियों /windows में काष्ठ  कला व अलंकरण
5   - मकान के ऊपर छत  आधार पट्टिका दासों /टोड़ीयों  में  काष्ठ कला
                          मकान के दो उबरों   के दरवाजों में काष्ठ कला   
उबरों   के दरवाजों  कोई चित्रकारी नहीं है केवल ज्यामितीय  कटान  है।
          उबर के मुरिन्ड चाप में काष्ठ कला व अलंकरण 
उबरों  के एक मुरिन्ड  के ऊपरी  की पट्टिका में प्राकृतिक ( बेल - बूटे नुमा ) कलाकृति उत्कीर्ण दृष्टिगोचर होती है याने दोनों दरवाजों के मुरिन्ड के ऊपरी पट्टिका में अवश्य ही लंकरण था।
 उबर के दरवाजों के ऊपर पाषाण  चाप के नीचे पत्थरों /छिपटियों  से बना अर्ध वृत्त बरबस दर्शक को आकर्षित करता है
      आलिशान मकान में आलों में काष्ठ  कला /art व अलंकरण /motifs 
तलमंजील के ालों में कोई काष्ठ कला नजर नहीं आती किन्तु पाषाण कला का नायब नुमा देखने को मिलता है।
    पहली मंजिल के  आले नुमा खड़की/मोरियों  /दुज्य ळ  windows  में काष्ठ कला व अलंकरण
    पहले मंजिल  में आलेनुमा  दो मोरी/  दुज्यळ /खिड़की  हैं व उनके ऊपर व चारों ओर  पाषाण कला तो है ही अपितु  सिंगाड़  /स्तम्भ व ऊपर  मोरी मुरिन्ड में एक अर्ध चाप का काष्ठ अर्ध वृत्त भी दृष्टिगोचर होता है।  मोरी /खिड़की के मुरिन्ड व सिंगाड़ में प्रशंसनीय  काष्ठ अलंकरण हुआ है।
 
मकान के छत आधार पट्टिका चित्रकारी  सहित दासों   के ऊपर ठीके हैं
       खोळी /प्रवेश द्वार   में काष्ठ  कला
खोळी  के स्तम्भों के निम्न भाग पर चित्रकारी दृष्टिगोचर हो रही है है।   
चित्रकारी अंकन दृष्टि से मुरिन्ड  को दो भागों में बांटा   जा सकता है।  पहला भाग - एक मुरिन्ड के ऊपर गणेश जी की चतुर्भुज आकृति . गणेश जी के चार भुजाओं में एक में डमरू , एक हाथ में  शंख , एक हाथ में कोई हथियार या शगुन नुमा आकृति है ,  चौथे हाथ में सूंड को भोजन या पानी पिलाने का पात्र है।  गणेश जी के माथे  के ऊपर नागफन   है।  गणेश जी के दोनों ओर कमल दलीय स्तम्भ हैं व  स्तम्भ से एक जालीदार कलयुक्त अर्ध वृत्त निकलता है जो सजावट का बेहद  खूबसूरत नमूना है। गणेश जी के सूंड  में दो दांत हैं , माला  है व कान उभर कर आये हैं।  कलायुक्त गणेश जी की  प्रतिमा बाहर से बिठाई गयी है।
    मुरिंड  के  दूसरा  भाग गणेश  आकृति के ऊपर है  जिसमे प्राकृतिक (वानस्पतिक ) व ज्यामितीय  मिश्रित कला के दर्शन होते हैं।
   
पंडित बनवारी लाल भट्ट का यह मकान एक डेढ़ वर्ष में बनकर तैयार हुआ व ढैपर समेत सब जगह सांदण  की लकड़ी का प्रयोग हुआ है।
 निष्कर्ष निकलता है कि खल नागराजाधार के राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट का मकान गढ़वाल के वास्तु इतिहासकारों के लिए शैली समझने  हेतु महत्वपूर्ण तो है ही साथ में  मकान में पाषाण वा काष्ठ कलाओं व अलंकरणों का संगम देखने लायक है।  बरबस मुंह से  एक ही वाक्य निकलता है , " वाह  ! वाह  ! क्या सुन्दर  मकान है ! क्या कला है !"   


  सूचना व फोटो आभार :   सत्या नंद बडोनी ,  कणोली

Bhishma Kukreti

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अमाल्डु  में केदार दत्त -बलदेव प्रसाद उनियाल के चौपुर   भवन में काष्ठ कला अलंकरण


Wood Carving Art in Three floored house of  Kedar datt Uniyal ,Baldev  Prsad  Uniyal  Amaldu
डबराल स्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला  -8
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  - -8
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , खोली , मोरी   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 85
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   85
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  जैसा कि  पहले दो अध्यायों में सूचना दी जा चुकी है बल अनुपात के हिसाब से अमाल्डू  में अन्य गाँवों की तुलना में अधिक तिपुर / तल मंजिल के ऊपर  दो मंजिल वाले घर अधिक हैं।  यहाँ दुहराना  प्रासंगिक होगा  कि   अमाल्डु के उनियालों    ने यह शैली अपने कुल देवी श्री क्षेत्र राजराजेश्वरी दरबार देवलगढ़ से लिया है और यह प्रचलन बहुत सालों से चलता रहा है।  प्रस्तुत  केदार दत्त -बलदेव प्रसाद उनियाल का मकान भी  तिपुर और ढैपुर  शैली में बना है। याने यह मकान चौपुर  है।  मकान दुखंड / तिभित्या  याने एक कमरा अंदर व एक कमरा बाहर शैली। 
  केदार दत्त -बलदेव प्रसाद उनियाल के मकान में पहली मंजिल (मंज्यूळ  )  व दूसरी मंजिल (तिपुर )  में छज्जों  के ऊपर काष्ठ जंगले  बंधे हैं। चौथी  मंजिल अर्थात ढैपुर की जानकारी फोटो में नहीं दिख रहे है।   प्रत्येक जंगले  में छह छह सीधे काष्ठ स्तम्भ  स्थापित हैं।  स्तम्भ सपाट हैं व उन पर ज्यामितीय कार्य ही दीखता है कोई प्राकृतिक या मानवीय कला दर्शन नहीं होते हैं।   
  अशोक उनियाल ने सूचना दी  कि  तल मंजिल पर  एक मंजिल से दूर मंजिल पर जाने का आंतरिक मार्ग , सीढ़ियां है और तल मंजिल  में ही प्रवेश द्वार या  खोली  है।  खोली /खोळी  के  काष्ठ सिंगाड़ /स्तम्भ  सपाट पत्थरों की देहरी /देळी  में स्थापित हैं। मुरिन्ड /शीर्ष में  अष्टदल पुष्प अंकन हुआ है।  याने पूरे भवन में  ज्यामितीय कला उत्कीर्ण हुयी व एक स्थान याने मुरिन्ड  में शगुन रूपी  अष्टदल पुष्प उत्कीर्ण किया गया है।
भवन को स्थानीय कारीगरों ने ही निर्मित किया है व काष्ठ कलाकार थे चित्रमणी    जो स्थानीय काष्ठ  कलाकार थे। 
 निष्कर्ष नकलता है कि  राज राजेश्वरी  दरबार भवन  देवलगढ़ शैली पर आधिरित चौपुर बड़ी होने के कारण आज भी भव्य भवनों की गिनती में आता है व  ज्यामितीय व प्राकृतिक  (अष्ट  दल पुष्प )   कला /अलंकरण हुआ है।  मानवीय अलंकरण की कोई सूचना नहीं मिलती है

फोटो आभार :  बिक्रम तिवारी
सूचना आभार - अशोक उनियाल
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti

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गमशाली (चमोली ) में   परम्परागत तिबारी युक्त भवन में काष्ठ  कला व अलंकरण

चमोली , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण  -3
 Traditional House Wood Carving of  Chamoli  Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  -3
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  गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण   -  87
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of   Chamoli  , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   87 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   प्राचीन काल से ही चमोली  गढ़वाल का  रहस्यात्मक  आकर्षण भारत के अन्य भागों के निवासियों के लिए रहा है।  और आज भी बरकरार है ।  चीन युद्ध 1962 के बाद गमशाली या नीति का व्यापारिक महत्व कम होने से गमशाली का भी महत्व कम ही हो गया है।  गमशाली से अभी तक दो  महवतपूर्ण मकानों  में अद्भुत काष्ठ कलाओं की सूचना मिली है।  प्रस्तुत भवन की मिल्कियत बारे में सचिदा नंद सेमवाल कोई सूचना न दे सके। 
उत्तरी गढ़वाल विशेषतः जहाँ शीत प्रकोप अधिक होता था व भूकंप की संभावना अधिक होती थी वहां  लकड़ी के मकान निर्माण का प्रचलन रहा है और यह उत्तरी चमोली , उत्तरकाशी व उत्तरी रुद्रप्रायग में साफ़ दीखता है।  इसमें दो राय हैं ही नहीं कि जौनसार , रवाई , उत्तरी चमोली विशेषतः तिब्बत सीमा के निकट गांवों में भवन शैली गढ़वाल के अन्य हिस्सों से कुछ विशेष है।
 तिब्बत  सीमा पर नीति से दस किलोमीटर दूर  एक गांव है गमशाली जो काकभुशंडी पर्वत से निकट है ।  गम शाली के इस मकान में भी मकान निर्माण शैली गढ़वाल के अन्य सामन्य मकानों से अलग ही है। चूँकि इस श्रृंखला  में हमारा उद्देश्य शैली नहीं अपितु कला व अलंकरण रहा है तो हम केवल काष्ठ कला व  अलंकरण दृष्टि से ही मकान की विवेचना करेंगे।
कला दृष्टि  से देखें तो  तल मंजिल  में  लकड़ी के खम्बे हैं व कमरों के दरवाजों पर आकर्षक ज्यामितीय  कला साफ झलकती है   तल मंजिल के कसी भी स्तम्भ , खाम  /columns  में कोई कला दृष्टिगोचर नहीं होती है। 
आम तौर पर गढ़वाल के अन्य गाँवों में पहली मंजिल पर पत्थर या लकड़ी के बाह्य   छज्जे पाए जाते हैं किन्तु गमशाली के इस गाँव मके इस मकान में कोई बाह्य  छज्जा नहीं  अपितु   पट्टिकाओं /पटिलाों  व कड़ी से दोनों तल जुड़े हैं।  जोड़ स्थल में कड़ी पर फूल पत्तियों  का अलंकरण  हुआ है एवं  ऐसा लगता है कि जैसे फूल और पत्तियां लटक रही हों , हवा  में हिल रही हों यह है एक प्रमुख विशेषता गमशाली  के इस भवनमें काष्ठ कला / अलंकरण की ।   गमशाली के  समीक्ष्य मकान में छज्जा भीतर है व  पहली मंजिल पर ही जंगला  व तिबारी बँधी  है।  आंतरिक के ऊपर छज्जा जंगला व  तिबारी   सुशोभित है। 
प्रस्तुत मकान की तिबारी सात स्तम्भों / सिंगाड़ों /column से  निर्मित है व  सात स्तम्भ  छह मोरी /द्वार /खोळी  बनाते हैं।  स्तम्भों की कलकररी प्रत्येक स्तम्भ में एक जैसी ही है।   तिबारी के स्तम्भों  में अलंकरण व चित्रकारी लगभग गढ़वाल के अन्य भागों से मिलता जुलता है किन्तु  गमशाली के इस तिबारी के स्तम्भों  की गोलाई /मोटाई  गढ़वाल के अन्य गाँवों की तुलना में  कम है. स्तम्भ के आधार में  कुम्भी , अधोगामी पद्म  दल
 (Lotus    Petals ) हैं व फिर ऊपर की ओर डीला (round or  ring  shape wood plate ) है।  डीले  के ऊपर उर्घ्वगामी पद्म  दल है व फिर स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है किंतु  शीर्ष से कुछ पहले  डीला  है व ऊपर ऊर्घ्वाकर कमल दल है व यहीं से मेहराब की पट्टिकाएं भी शुरू होतीहैं जो  दूसरे स्तम्भ से मिलकर पूरामेहरब /arch बनाते हैं। मेहराब अर्ध चाप में फूल व प्राकृतिक कला अलंकृत हुयी है।   मेहरबा बनाने से पहले स्तम्भ  को कड़ी जोड़ती है व कड़ी व मेहराब के मध्य अलंकृत पट्टिका  थीं किन्तु अब कुछ   स्तम्भ व मेहरराब के मध्य पट्टिका निकल गयी हैं।    इन पट्टिकाओं में आकर्षित  वानस्पतिक कला अलंकृत है.  इन पट्टिकाओं  को  एक  कड़ी छत आधार पट्टिकाओं से जोड़ती है , कड़ी व छत आधार पट्टिकाओं में भी वानस्पतिक अलंकरण दृषिटगोचर होता है।
 गमशाली व गढ़वाल के अन्य तिबारियों में दो अन्य भेद यहाँ साफ़ देखे जा सकते हैं
 तिबारी के मुख्य स्तम्भों  के समांतर एक एक कड़ी जिस पर बीच में नक्कासी है खड़े मिलते हैं जो गढ़वाल की  अब तक विवेचित  अन्य तिबारियों में नहीं देखा गया था।  दूसरा विशेष अंतर्  दीखता है कि  गमशाली के इस मकान के तिबारी स्तम्भ  आधार से ढाई फ़ीट ऊपर तक  कलयुक्त दो प्रकार की एक के समांतर दो  पट्टिकाएं है जिन्हे जंगले  भी कह सकते हैं (?)  इन प्रत्येक पट्टी में  बहुदलीय  पुष्प . है व प्रत्येक पट्टी में बहुदलीय पुष्प के बाहर अलग अलग कलाकृतियां उत्कीर्ण हुयी है।  एक पट्टी में बहुदलीय पुष्प (अष्टदलीय ) के बाहर बेल बूटे  हैं।  एक पट्टिका में पुष्प के दोनों और हाथी हैं , एक पट्टिका में कोई अन्य  दौड़ते पशु  छवि दिक्ती हैं व ने पट्टिकाओं में भी कोई न कोई पशु हैं।
उपरोक्त पट्टिका के नीचे एक पट्टिका है जिस पर  बाहर की और उभर लिए ज्यामितीय अर्ध वृत्त  आकृति दृषिटगोचर होती है।  यह  पट्टिका शैली भी इस तिबारी  भवन को गढ़वाल के अन्य तिबारी युक्त भवनों से अलग कर देती है। 
   गमशाली के इस तिबारी वाले मकान में कई विशेषताएँ है जो अन्य गढ़वाल की तिबारियों से  अलग हैं  जो इस प्रकार हैं  -
बाह्य छज्जा न होना
आंतरिक छज्जा
तिबारी के स्तम्भों की मोटाई  गढ़वाल की आम तिबारियों  की तुलना में  कम मोटाई  की हैं। 
तिबारी के मुख्य स्तम्भों के बगल में    मुख्य स्तम्भों के समानांतर ही कम मोटाई के स्तम्भ जिन पर   मध्य में घुंडी या कुम्भी  उत्कीर्ण हुयी है।  य
छज्जे के जंगले  की दो प्रकार की पट्टिकाओं   का होना एक विशेषता है व  ऊपर  की पट्टिकाओं में प्राकृतिक व मानवीय (Natural and Figurative ) अलंकरण होना व नीचे की पट्टिका में वृताकार उभार का होना। 
 मेहराब के ऊपर पट्टिका व अलंकरण  भी कुछ विशेष हैं। 
निष्कर्ष में कह सकते हैं कि  तिब्बत  सीमा में बसे गमशाली गाँव के इस मकान व तिबारी में  आकर्षक ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय    आकर्षक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। 
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सूचना व फोटो आभार :  सचिदा नंद सेमवाल
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020 (Interpretation )
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जाजर  (पातालभुवनेश्वर ) में रावल बंधुओं की बखाई में काष्ठ कला व अलंकरण
 
जाजर  में बखाई काष्ठ कला व लंकरण - 1
 
पिथौरागढ़ में भवन काष्ठ  कला व अलंकरण -1
Traditional House (Bakhayi )  wood Carving art of Pithoragarh -1
कुमाऊं   संदर्भ में उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  ( बखाई , मोरी , छाज ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  श्रृंखला  -
Traditional House Wood Carving Art (Bakhai ) of  Kumaon , Uttarakhand , Himalaya -   2
उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई , मोरी , छाज   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( बखाई  अंकन )  श्रृंखला  - 84
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  , Uttarakhand , Himalaya -    84
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 जाजर     धार्मि क्षेत्र  पाताल भुवनेश्वर  धार्मिक  क्षेत्र का रावलों का मुख्य गाँव है।  जाजर  से अभी तक दो  बखाईयों की सूचना मिली है।  सम्प्रति बखाई रावल बंधुओं की बखाई है। यह बखाई ढैपुर  शैली की है याने पहली मंजिल के ऊपर छोटी मंजिल भी है।  बखाई में सात से अधिक कमरे तल मंजिल पर हैं , पहली मंजिल पर हैं व ढैपुर  में कई खिड़किया हैं। 
भवन काष्ठ कला संदर्भ में  प्रस्तुत पहली मंजिल में दरवाजों /छाज /मोरी  में कला विवेचना की जाएगी। छाज /मोरी /दरवाजे के दोनों ओर  चिपके दो स्तम्भ हैं व स्तम्भों के आधार में में  कुम्भी , तीन कमल दल , दो डीले   आधार  सीधे    मोरी के  शीर्ष या मुरिन्ड  से मिल जाते हैं। इस बेच स्तम्भ कड़ी  /shaft of  main   column  में कोई कला  उत्कीर्णित नहीं होती दिखाई देता है।  शाफ़्ट के  मुरिन्ड /शीर्ष से मिलने से पहले आंतरिक शाफ़्ट या स्तम्भों से तोरण पट्टिका निकलते हैं जो आकर्षक  मेहराब बनाने में सफल हुए  हैं।  मेहराब /arch /चाप /तोरण  पर कोई प्राकृतिक या मानवीय कला उत्कीर्ण नहीं हुयी है।  केवल तिपत्ति आकार से ही सुंदरता आयी है।   दरवाजों पर ज्यामितीय कला उत्कीर्ण हुयी है।  मोरी के अधहार पर स्तम्भों को मिलाने वाली पट्टिका है जिस पर जंगल /रेलिंग हैं। जंगले  पर भी ज्यामितीय कला उत्कीर्णित हुयी है।   तीन इस प्रकार के  छाजों , मोरियों में ही ऐसी नक्कासी हुयी दिखती हैं। 
छत आधार व  छपरिका आधार  पट्टिका लकड़ी  के दासों  /टोड़ी पर टिके  हैं।  पहले मंजिल के दासों की अग्र  घुण्डिका के कारण दास आकर्षक छवि देते हैं व मकान को अतिरिक्त आकर्षण देने में सफल हैं।
 निष्कर्ष में कहा जा सकता है  कि  बखाई के पहली मंजिल में मुख्य मोरी  में  सुंदर नक्कासी हुयी व ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण हुआ व कहीं भी मानवीय ( पशु , मनुष्य , पक्षी अथवा देव देवी आकर ) नहीं दीखते हैं।
 
सूचना व फोटो आभार -  राजेंद्र रावल जाजर 
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खमण में लीला नंद लखेड़ा के जंगलेदार भवन में काष्ठ कला व अलंकरण


 House Wood Carving Art and Ornamentation in House of Lila Nand Lakhera of Khaman 
खमण में तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  -4
House Wood  Carving art in Khaman , Dhangu (Garhwal )  - 4
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   बाखई में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  86
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    86
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 खमण  में भी तिबारियों व जंगलेदार  मकान की संख्या भी  उत्साहित करने वाली है।  आज का विवेचना विषय है खमण में  लीला नंद लखेड़ा के काष्ठ जंगलेदार मकान में कायस्थ कला व अलंकरण।
लीला नंद लखेड़ा का जंगलादार मकान भी आम ढांगू के जंगले दार  मकान  जैसे ही है और पहली मंजिल पर १६ से अधिक स्तम्भों से जंगल बंधा है , छज्जा भी लकड़ी का है जो लकड़ी के दासों में टिका  है।  स्तम्भ सपाट  हैं व छज्जे  से सीधे छत आधार पट्टिका या कड़ी से जुड़ते हैं।  स्तम्भों में कोई प्राकृतिक  या मानवीय कला , अलकंरण नहीं है व आधार  में ढाई फ़ीट की ऊंचाई में स्तम्भ के अगल बगल में दो छोटे स्तम्भों से मोटा आधार छवि दी गयी है , ढाई फिट ऊंचाई पर ही काष्ठ रेलिंग है।
   कला व अलंकरण दृष्टि से आम जंगलेदार मकान जैसा ही  खमण में लीला नंद लखेड़ा का जंगलेदार मकान है किन्तु समय की आवश्यकतानुसार लीला नंद लखेड़ा का जंगले  का एक लम्बा  इतिहास है जब यहां बारातें  आदि ठहरती थीं व बैठकें होती थीं।  खमण ही नहीं क्षेत्र में लीला नंद लखेड़ा का जंगलेदार मकान एक लैंडमार्क था  व जिसकी प्रतिष्ठा पुरे क्षेत्र में थी।

सूचना व फोटो आभार : राजेश कुकरेती

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला


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 बमोली (डबरालस्यूं ) में आनन्द सिंह  रावत   'रेंजर साब '   के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला /अलंकरण

डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलेदार मकानों में  काष्ठ अंकन कला /लोक कला  -8
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  - 8
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाईयों    में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
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  गढ़वाल, कुमाऊं उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 88
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   88
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 डबरालस्यूं (पौड़ी गढ़वाल ) में बमोली एक समृद्ध ही नहीं अपितु  राजनैतिक  दृष्टि से  भी सजग गाँव रहा है।   आज  आनंद सिंह रावत 'रेंजर साब' के जंगलेदार मकान पर काष्ठ  कार्य पर चर्चा होगी।  जंगलेदार मकानों का प्रचलन वास्तव में  1940  के बाद बढ़ा व अधिकतर उस समय के जंगलों में फारेस्ट चौकी शिल्प का भी प्रभाव दीखता है याने आइरिश शैली का गढ़वाल भवन निर्माण शैली में कुछ कुछ प्रवेश।  प्रस्तुत बमोली के ढैपुर  (2 . 5  मंजिल ) जंगलेदार मकान में ब्रिटिश या आइरिश प्रभाव तो साफ झलकता है ,पहली मंजिल में छप्पर पठळ (सिलेटी पत्थर ) के स्थान पर चद्दर का   छप्पर  है व  मकान में धूम्र चिमनियां  भी हैं ।  ढैपुर  जंगल दार . आनंद सिंह रावत वन विभाग में कार्यरत थे तोब्रिटिश समय केनिर्मित   फारेस्ट चौकियों  का प्रभाव पड़ना ही था।   मकान  आकर्षक है व बरबस ही ध्यान खींचता है।  काष्ठ  कार्य  दृष्टि से  तीन जगह  महत्वपूर्ण  है।  तल मंजिल में मकान के साइड में भरपूर जंगला  व पहली मंजिल पर बिठाया गया जंगला  व दरवाजों पर , खड़कियों में कायस्थ कला। मकान दुखंड /तिभित्या  है।
तल मंजिल का जंगला शायद रक्षा हेतु  बांधा गया है अन्यथा दक्षिण गढ़वाल में तल मंजिल में  बगल में  जंगला बिठाने का  प्रचलन नहीं मिलता है।   तल मंजिल के जंगल स्तम्भों व रेलिंग में ज्यामितीय कला के अतिरिक्त कोई अन्य अलंकरण के दर्शन नहीं होते हैं।
 पहली मंजिल पर लकड़ी का छजजा है व छज्जे पर दो ओर (सामने व बगल में )  लगभग 16  काष्ठ  स्तम्भ है जो ऊपर छपरिका के आधार पट्टिका से मिलते हैं।  तल मंजिल व पहली मंजिल के स्तम्भ आधार में दो फिट तक दोनों और छोटे स्तम्भ चिपकाए गए जो स्तम्भ को एक नई छवि देने में सफल हैं।  दरवाजों , खिड़कियों व द्वार के सिंगाड़ों ,  मुरिन्डों  में केवल ज्यामितीय कला मिलती है इस मकान में।
भवन में गोलाईपन  कम हावी है अपितु चौकोर पन अधिक हावी है जो आइरिश प्रभाव का द्योत्तक है।  मकान संभवतया सन  1960 के पश्चात ही निर्मित हुआ होगा। 
 निष्कर्ष  निकलता है कि  बमोली के आनन्द  सिंह  रावत के जंगलेदार ढैपुर सहित मकान में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय अलंकरण हुआ है। 


सूचना - फोटो आभार - बिक्रम तिवारी , 'Vicky '

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मज्यूड़  (टिहरी गढ़वाल ) में विक्टोरिया क्रॉस अवार्डी गब्बर सिंह नेगी की तिबारी में काष्ठ  कला व अलंकरण 

House wood Carving art in the tibari of Victoria Cross Awardee  Gabbar Singh Negi from Majyur (Theri)
टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ  कला अंकन - 4
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  - 3

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  89
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya - 89
 
संकलन - भीष्म कुकरेती
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  शहीद गबर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 18 85 को मज्यूड़ (चम्बा नितक , टिहरी गढ़वाल ) में हुआ था।   विक्ट्रिया क्रॉस अवार्डी गब्बर सिंह नेगी 1913 में गढ़वाल राइफल में भर्ती हुए थे व प्रथम विश्व युद्ध में 1915 में लड़ते लड़ते न्यू सैफल में  20 वर्ष की आयु में  शहीद  हुए , ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सर्वोच्च अवार्ड विक्टोरिअ क्रॉस अवार्ड से नवाजा था। 
  उत्तराखंड में भवन काष्ठ  कला व अलंकरण  श्रृंखला में मज्यूड़ में विक्ट्रिया क्रॉस अवार्डी गब्बर  सिंह नेगी की तिबारी में काष्ठ कला व अलंकरण पर चर्चा करेंगे।   आज जो सूचना मिली है उससे प्रतीत होता है की तिबारी ध्वस्त ही हो गयी है।  गब्बर सिंह नेगी का परिवार गर्रेब परिवार था  अतः सरलता से अनुमान लगाया जा सकता है कि शहीद गब्बर सिंह  नेगी की तिबारी 1915 -1920  में मध्य ही  निर्मित हुयी होगी।
चार स्तम्भों व तीन द्वार /मोरी /खोळी  वाली   तिभित्या /दुखंड मकान की  पहली मंजिल पर है व पाषाण छज्जे  पर टिकी देहरी /देळी के ऊपर टिकी  है।  स्तम्भ देहरी पर पत्थर के चौकोर डौळ के ऊपर हैं।  स्तम्भ आधार या कुम्भी अधोगामी कलम पंखुड़ियों से बना है , फिर ऊपर की ओर गोल व बड़ा डीला  है , डीले के ऊपर ऊर्घ्वाकार पद्म  पुष्प दल है।  इस के बाद स्तम्भ सीधा ऊपर जाता है व फिर एक डीला  बना है व डीले  के ऊपर ऊर्घ्वाकर कमल दल है ाव अंत में जहां से स्तम्भ छत  आधार पट्टिका या कड़ी से मिल जाते हैं।  शीर्ष में /मुरिन्ड  में कोई arch /चाप /मेहराब नहीं है व मुरिन्ड चौखट है।  विक्टोरिया क्रॉस अवार्डी  शहीद गब्बर सिंह  नेगी की की तिबारी में कहीं   भी मानवीय /figurative  अलंकरण नहीं हुआ है।
वैसे गढ़वाल में 1950 तक निर्मित होने वाले तिबारियों व  विक्टोरिया क्रॉस  पारितोषिक प्राप्त शहीद   गब्बर सिंह  नेगी की तिबारी (निर्माण  काल 1915 -1920 ) में  विशेष अंतर् नहीं दीखता है याने गढ़वाल में इतने वर्ष तिबारी कला व निर्माण शैली शैली कुछ उच्च जड़वत रही कोई विशेष विकास नहीं हुआ। 
शहीद गब्बर सिंह नेगी की तिबारी का महत्व उनके शहीद होने , विकटरोइया क्रॉस पारितोषिक के अतिरिक्त इसलिए भी महत्व है कि  इस तिबारी को 1915 समय की एक स्टैंडर्ड तिबारी शैली मना जा सकता है व समय व शैली के अध्ययन में तुलना करने में सुविधा होगी। 

  सूचना व फोटो आभार :  वर्चुअल  बाबा इंटरनेट

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घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला; House Wood carving Art from   Tehri;           

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पठोला  (मल्ला उदयपुर ) में किरत राम -तुलारम  जंगला  /निमदारी  में भवन काष्ठ कला , अलंकरण

उदयपुर गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों / बखाईयों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला -14
  Traditional House wood Carving Art of West  South  Garhwal  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाई , खोळी  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,   , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  90
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 90   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पठोला (मल्ला उदयपुर ) में समृद्धि ,उन्नत कृषि  के अतिरिक्त स्व किरत राम तिवारी के कारण भी प्रसिद्ध था।  स्व किरत राम तिवारी मल्ला उदयपुर के इस क्षेत्र से पहले सैनिक थे जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया।  किरत राम तिवारी ने 1939 -1945  तक नाजियों के विरुद्ध इटली व ऑस्ट्रिया में युद्ध लड़ा।  किरत राम 1955  में सेवानिवृत हुए व उनका देहांत 2001  में हुआ।
प्रस्तुत किरत  राम तिवारी  -तुला राम  की निमदारी   क्षेत्र गंगा सलाण  की अन्त्य निमदरियों या जंगलेदार मकानों से कुछ बिलक्षणी है।  किरत राम -तुलाराम  की मकान में छत सिलेटी पटाळों (चपटे  पत्थर )  की नहीं अपितु चद्दर  की है।  दुखंड /तिभित्या  मकान होने के बाबजूद भी मकान में छज्जा नहीं है।  इन दो विशेषताओं के अतिरिक्त  जंगले पर सपाट  स्तम्भों के बजाय कला उत्कीर्णित स्तम्भों से (art carved columns ) सजे हैं।  ये तीन विशेष्ताओं के लिए भी यह मकान विशेष मकान माना जाता था।  स्तम्भों के आधार व शीर्ष में छत आधार से मिलने वाली कड़ी के नीचे घुंडी /कमल दल की आकृतियां हैं जो कम ही इस क्षेत्र  के निम्दारियों के स्तम्भों में पाया गया है। 
 निष्कर्ष निकलता है कि  किरत राम तिवारी  -तुलाराम  कला की दृष्टि से काष्ठ स्तम्भों में ज्यामितीय , प्राकृतिक  व प्रतीकात्मक  अलंकरण हुआ है व मानवीय अलंकरण इस मकान के काष्ठ में नहीं मिलता है।  मकान व  काष्ठ स्तम्भ  क्षेत्र से अलग  शैली व कला के हैं। संभवतया मकान 1955  के पश्चत ही निर्मित हुआ। 
सूचना व फोटो आभार : बिक्रम तिवारी , VICKEY 
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छतिंड में जनार्दन प्रसाद भट्ट बंधुओं  की तिबारी  में काष्ठ कला व अलंकरण

House Wood carving art and Ornamentation in Tibari of a Bhatt Family of Chhatinda
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई     ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  91
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    91
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 मल्ला ढांगू में छतिंड  सदियों से जसपुर का भाग रहा है।  अब छतिंड  नई ग्राम सभा सौड़  के अंतर्गत गाँव है।  छतिंड  पणचर जमीनी गांव है व कृषि समृद्ध छोटा भूभाग है।  यहां एक ही तिबारी की सूचना मिली है जो जनार्दन भट्ट के पिताजी की थी व अब पुरुषोत्तम दत्त सिलस्वाल  के उत्तराधिकारी भी इस तिबारी  के भागीदार है।   .  सौड़  के  लुंगाड़ी  सिंह नेगी की पत्नी अनुसार सौड़  में दोनों तिबारी के कलाकार /शिल्पी छतिंड  ही ठहरे थे व वे श्रीनगर तरफ  के थे।  इससे अनुमान लगाना सरल है कि ग्वील  में क्वाठा  भितर  निर्मित करने वाले रामनगर के कलाकार भी छतिंड  में ही ठहरे होंगे व यहीं काष्ठ  कार्य किया गया होगा व ग्वील  जाकर  तिबारी फिट की गयी होगी। 
 मूलतः भट्ट परिवार की इस तिबारी ढांगू की अन्य तिबारियों जैसे ही  दुखंड /तिभित्या मकान के पहली मंजिल पर है।  तिबारी छज्जे के ऊपर देहरी  पर टिकी है।  छज्जे के नीछे वाली पट्टिका पर कुछ आध्यात्मिक अलंकरण का बोध  होता है। तल मंजिल पर खोली ( प्रवेश द्वार ) के मुरिन्ड में संभवतया देव काष्ठ प्रतिमा भी जड़ी है।
     तिबारी में चार स्तम्भ हैं जो  तीन खोली /द्वार बनाते हैं , किनारे के स्तम्भ एक प्राकृतिक नक्काशीयुक्त कड़ी से दीवार से जुड़े हैं।  स्तम्भ का आधार कुम्भी है जो अधोगामी पद्म  दल से बना है व अधोगामी कलम दल  के  ऊपर डीला ( wood plate ring ) या पगड़ है जिससे ऊर्घ्वाकार  पद्म  दल शुरू होता  है , व जहां से कमल दल समाप्त होता है वहां से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है व ऊपर की ओर जहां पर अधोगामी  कमल दल  है वहीं पर स्तम्भ की सबसे कम मोटाई है. अधोगामी कमल दल के ऊपर फिर डीला  है व तब फिर एक  ऊर्घ्वाकार  कमल दल है। ऊर्घ्वाकर कमल दल से स्तम्भ में सीधा ऊंचाई में स्तम्भ का थांत  (bat plate ) शुरू होता है जिस पर दीवारगीर   /ब्रैकेट लगे थे।  यहीं से महराब  की  चाप arch भी शुरू होती है जो सामने के स्तम्भ की चाप से मिलकर सम्पूर्ण मेहराब /arch  बनता है।  मेहराब तिपत्ति (trefoil  )   नुमा है व मध्य में arch  तीखा /sharp  है।मेहराब /arch  पट्टिका के दोनों किनारों पर बहुदलीय पुष्प अलंकृत हैं याने  ऐसे छह बहुदलीय पुष्प हैं।  पट्टिका  पर  प्राकृतिक कला के चिन्ह हैं। 
 दीवारगीर /bracket  में  संभवतया पद्म  पुष्प  नली (Lotus flower Stem )  अलंकृत रही होगी या कोई पक्षी का गला जैसे क्षेत्र के अन्य तिबारियों में मिलता है। 
मुरिन्ड याने मेहराब के ऊपर की पट्टिकाओं  में कोई प्राकृतिक या मानवीय कला के दर्शन नहीं   होते  हैं।
  निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि  जनार्दन प्रसाद भट्ट व बंधु ( अब  सिलस्वाल भी भागीदार हैं  ) की शानदार तिबारी में प्राकृतिक , मानवीय , ज्यामितीय  व आध्यात्मिक कला अलंकरण उत्कीर्ण हुयी है। 
फोटो आभार : बिक्रम तिवारी Vickey

सहयोगी सूचना - सोहन लाल जखमोला ,जसपुर
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  सौड़ (ढुङ्गाळी , टिहरी ) में भव्य तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

 

      House Wood carving Art in a House  of Saur , (Dhungali, Chamba) Tehri garhwal 

टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ  कला अंकन - 5

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  - 5

 

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई  ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  92

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya - 92

 

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 संकलन - भीष्म कुकरेती

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  तिबारियों के सर्वेक्षण स ेथोडा बहुत लगता है कि तिबारियों के मामले में    पौड़ी गढ़वाल की तुलना में उत्तर काशी,  टिहरी गढ़वाल  व चमोली गढ़वाल अधिक सम्पन क्षेत्र रहे हैं  . और इस बात का प्रमाण   प्रस्तुत भव्य भवन पर तिबारी में  काष्ठ कला।   प्रस्तुत भवन अब एक रिजॉर्ट डुए नार्थ सौड़  कॉटेजेज का हिस्सा है।   

   प्रस्तुत दुपुर   याने पहली मंजिल वाले, दुखंड /तिभित्या    भवन में काष्ठ  कला समझने हेतु इसे तीन भागों में अध्ययन करना होगा -

तल मंजिल के द्वारा दरवाजों में कष्ट कला

तल मंजिल व पहली मंजिल में खिड़कियों के दरवाजों व म्वार (मोर ) सिंगाड़  में काष्ठ  कला



तिबारी के स्तम्भों व मुरिन्ड  में काष्ठ  कला

  भवन के तल मंजिल  व पहली मंजिल के बड़े  कमरों  के दरवाजों में विशेष कोई कला उल्लेखनीय नहीं है.

पहली मंजिल की एक खड़की के दरवाजों पर ज्यामितीय कला दर्शन होते हैं व दोनों सिंगाड़  में प्राकृतिक बेल बूटे नीमा आकृति व मुरिन्ड (खिड़की का शीर्ष ) में प्राकृतिक व कुछ पर्तीकात्मक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ  है।

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  सौड़  (ढुङ्गाळी , टिहरी ) तिबारी के सिंगाड़ में कला अलंकरण

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  सौड़ का यह भवन भव्य है तभी इसे रिजॉर्ट में तब्दील किया गया है।  तिबारी में 9 सिंगाड़।/स्तम्भ हैं व 8 मोरी /द्वार /खोळी हैं।  सिंगाड़ों  /स्तम्भों के आगरा भाग में ही अलंकरण है व पीछे काष्ठ पररिका या कड़ी स्पॉट चौकोर हैं। सभी सिंगाड़ों में एक जैसे ही कला उत्कीर्ण हुयी  है।

 प्रत्येक सिंगाड़  पत्थर के डौळ  ने टिके  हैं।  स्तम्भ का आधार  कुम्भी  गढ़वाल के अन्य कुम्भियों से ऊंचाई में कुछ अधिक लम्बी है।  कुंभी निर्माण हेतु  कमल दल के दर्शन नहीं होते हैं।  कुम्भी के बाद डीला (ring type wooden plate ) है व बाद में  उर्घ्वगामी पद्म  दल  है जब उर्घ्वगामी कलम दल समाप्त होता है तो स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है जो कि ऊपरी डीले तक है वाहन से फिर उर्घ्वगामी कमल दल शुतु होता है जो ऊपर की और जाते है और फिर वहां से स्तम्भ चौकरो हो जाता है , स्तम्भ सीधा ऊपर चौकोर मुरिन्ड (शीर्ष ) की पररिका से मिल जाता है।  मुरिन्ड पट्टिका चौकोर है व उस पर ज्यामितीय चित्रकारी उत्कीर्ण हुयी जो वानस्पतिक चिन्हों की छवि देते हैं।

   भवन बहुत बड़ा व भव्य है किन्तु सम्भव पर कोई  विशेष कला उत्कीर्ण नहीं हुयी है।  बस भव्यता अधिक स्तम्भों व मकान के बड़े होने से आयी है।  रिजॉर्ट वाले ने  सूचना दी है कि इन भवनों की ऑरिजिनलिटी रिस्टोर की गयी है।

  निष्कर्ष निकलता है कि  भव्य भवन में 9 स्तम्भों ने  भव्यता वृद्धि की है व काष्ठ कार्य में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण ही हुआ है   

  सूचना व फोटो आभार :   डुएनॉर्थ  सौड़ कॉटेजेज का   कैटलॉग

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