Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 234074 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
गुस्सा
 
 आपरी गुस्सा थै दिदो
 काबूणी मी कर पायी
 जख मी रहुं वख दिदो
 म्यार पीछणे पीछणे आयी
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 घर मा भी झख झख
 बोई जीकोडी धका धक
 बाबा थै रोज सताई
 गुस्सा कभी माय णी पाई 
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 गाम गाम सड़की सड़की
 उकालू उदंरू मा भटकी
 काबैर धयां भाटै लमडी
 गुस्सा की ना निकल गर्मी   
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 कुटमदरी मा भी गुस्सा
 रास णा कीथै आयी गुस्सा
 बाल बच्चों संग गुस्सा
 बणग्या मेर बीमारी गुस्सा
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 बोडया होंगयुं तब सोचणु
 यकुली बल अब कीले रैंदु
 गुस्साल सारी जीन्दगाणी खैगे
 गुस्सा अब भी दगडी हीटणु     
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 आपरी गुस्सा थै दिदो
 काबूणी मी कर पायी
 जख मी रहुं वख दिदो
 म्यार पीछणे पीछणे आयी
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — w

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
छल
 
 कल कल करता
 बह रह अब छल
 हर दम हर पल 
 कोइ ना कोइ रह गुजर
 कल कल ये छल
 
 हर एक मे रचा बसा
 पग कंटा बन चुभ
 फूलों को रोंद उसने
 सब के मन को छला
 कल कल ये छल
 
 बसा कोइ नहीं
 बस्ता है बस नगर
 उजड़ी होई राहों मे
 सजता है ओ हमसफर
 कल कल ये छल
 
 छल के छलावे
 जिंदगानी अब दोभर
 कब्र के आशीयाने मे भी
 मुझ से मीला ओ दोजख 
 कल कल ये छल
 
 सवत्र छाया इसका जहर
 इससे ना कोई बच पाया
 आज धोख खाया इस दिल ने
 कल इसने दिया होगा धोख 
 कल कल ये छल
 
 कल कल करता
 बह रह अब छल
 हर दम हर पल 
 कोइ ना कोइ रह गुजर
 कल कल ये छल
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
गुस्सा
 
 आपरी गुस्सा थै दिदो
 काबू णी कर पायी दिदो
 जख भी रहुं वख दिदो
 पीछणे पीछणे आयी दिदो
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 घरमा भी झख झख
 बोई की जीकोडी धका धक
 बाबा थै सताई दिदो
 माया णी लगाई  दिदो
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 गाम गाम सड़की सड़की
 उकाला उदंरा मा  भटकी
 धयां भाटै काबैर लमडी
 गुस्सा की ना निकल गर्मी
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 कुटमदरी मा भी गुस्सा
 रास ना आयी गुस्सा
 बाल बच्चों संग भी गुस्सा
 बणग्या बीमारी मेर  गुस्सा
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 बोडया होंगयुं अब मी सोचणु
 यकुली अब मी कीले रैंदु
 गुस्सा जीन्दगाणी खैगे
 गुस्सा अब भी दगडी हीटणु
 आपरी गुस्सा थै दिदो .......
 
 आपरी गुस्सा थै दिदो
 काबू णी कर पायी दिदो
 जख भी रहुं वख दिदो
 पीछणे पीछणे आयी दिदो
 आपरी गुस्सा थै दिदो ...
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
अश्रु
 
 अश्रु धाऊन येते कुठोण
 डोळ्या भवती जमले कुठोण
 कालजात कांटा रुतला कुठोण 
 मणतला धीर सुटला कुठोण 
 अति वेगात अति वेगात येते कुठोण  ना ......
 
 दुःख आसो सुख येते कुठोण
 ऐकंतात येते का असरूण
 हथ्च्या कोंडीत घेते भरूण
 मीठीत प्रेमच्या येते सरूण
 अति वेगात अति वेगात येते कुठोण  ना ......
 
 समजले माला णा समझे णा तुला
 डोक्याचा कैमीकल लोच्या झला
 रसायनीक मिश्रण च बोम्बा झाला
 येवड सगणु अश्रु कुठोण येते सोपा झाला
 अति वेगात अति वेगात येते कुठोण  ना ......
 
 कल्पनेच्या  अभावत  तोटा झाला
 कवितातले तारा तुटले आणी धोखा झाला
 कोरया पन्ना वर स्याही चे ठेम पडले
 अश्रुणेच आज घसे कोरडे कैले
 अति वेगात अति वेगात येते कुठोण  ना ......
 
 अश्रु धाऊन येते कुठोण
 डोळ्या भवती जमले कुठोण
 कालजात कांटा रुतला कुठोण 
 मणतला धीर सुटला कुठोण 
 अति वेगात अति वेगात येते कुठोण  ना
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
बीराणु व्हागै 
 
 मी आपरा पहाड़ मा बीराणु व्हागै 
 मुल्क पुराणु  जमाणु  नअयु वहगै 
 
 रीत रीवाज अब हमरी हर्ची गैण
 किस्सा का रुप्युं सा अब हम खर्ची गैण 
 
 जलैबी जाणी अब सब सीध होंयाँ
 माया लोभ मा मनखी का तुलों चुयाँ 
 
 पंतेद्र का बाट अब सब भूली गयां
 कसरी पितला की अब बिकी गयां
 
 बंजा पुन्गाडा सारु लग्युं आजा
 कखक हर्ची हल बल्दों की जोड़ी को साथ
 
 उजाड़ डाणड़ कीले  रोणु आज
 सड़की तुटक पुन्ह्चगै हर्ची गैण मेरु साम्राज्य
 
 बार तियोहार भी बदली गैण
 मासों बाज डोलकी की थाप पौप डिस्को मा भुली गैण
 
 कुडा माटा बल अब उजाड़ी गैण
 लेंटर का कुडा मा मया द्वेष उभरी ऐण
 
 गामा गामा मा अब देख हाला
 रीटा होग्या मेरु सारु गढ़वाल आज
 
 जीकोडी सन्घुल पर ताला सा जुड़याँ
 गदनीयुं का छाला अब सब तुटयाँ
 
 मी आपरा पहाड़ मा बीराणु व्हागै 
 मुल्क पुराणु  जमाणु  नअयु वहगै 
 
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
कब्र
 
 टूटे मोहब्बत की तक़दीर बनाता हों
 गुजरे जमाने का फलसफां मै सुनता हों
 
 गुरबातै कब्र पर एक चादर चढ़ दिया
 कब्र को मेरी तुने एक माजर बना दिया
 
 सोच सुकन मिलेगा मुझ को जंहा छोड़कर
 मेरे इस हजूम मे तुने मेला लागा दिया
 
 रुकसातै बेवफाई मे वफ़ा दिल तुडकर
 दिया जला कर उसे रोशन करा दिया
 
 फकीर चोला विरानो की खाक छनता था  कभी
 फकत अब यंहा उसके लिये हाथ उठाता है कोइ
 
 आसुँ की सीस्कीयाँ सुनाई देती थी जंह
 वफ़ाये मोहबत की खुशीयाँ नजर आती वहां
 
 टूटे मोहब्बत की तक़दीर बनाता हों
 गुजरे जमाने का फलसफां मै सुनता हों
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
मेर पहाडामा
 
 जब चाडु राम
 तब घुमीयु भरमाणड
 बोई कंण चक्रचाल घार घार आयी
 पहाडा बेटी ब्वारी सैणी खाणी हर्ची ग्याई   
 
 जब चडी बरंणडी
 तब बजण लगी घंडी
 बोई कंण हीवाला ये पहाड़ आयी
 मेरा पहाडा टूंड होग्याई
 
 जब चडी विस्की
 तब जेब च खीस्की
 गढ़वाल मची काण
 ईण छोरों की मस्ती
 
 जब चडी थैली
 में थै दे भूलह पैली
 कोटाम्दारी रैगे भूखी
 ठेकैदरों खाणु खायाली 
 
 कंण नचाण झुमैकी
 दारू दगडी घुमैकी
 घर से नाता छुडैकी
 अपरू का मन तोडैकी
   
 जब चाडु राम
 तब घुमीयु भरमाणड
 बोई कंण चक्रचाल घार घार आयी
 पहाडा बेटी ब्वारी सैणी खाणी हर्ची ग्याई   
 
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
बाँझ  दुःख
 
 कीतनी तडपाती होगी
 कीतना उसे सताती
 अंतर मन की ये वेदना
 हर पल रुलाती होगी...........
 
 श्रण प्रतिश्रण उसकी
 ममता भीग जाती होगी
 कोख जो सुनी है वो
 कील्कारीयाँ सुनाती होगी
 हर पल रुलाती होगी ...........
 
 अकेले मै उसे उसकी
 ओर याद आती होगी
 सहेलीयूँ के बच्चों संग
 अपना दर्द भुल जाती होगी
 हर पल रुलाती होगी ...........
 
 कभी खुद से कभी खुदा से
 इल्तजा तो करती होगी
 अंधेरे शून्या उस बिंब को
 तो वो आँखों खोजती होगी 
 हर पल रुलाती होगी ...........
 
 बाँझ दुःख समाज का बंधा है
 नर का दोष नारी पर थोपा है
 वो एक आहा नहीं भारती 
 अपने भग्या को ही कोसती है
 हर पल रुलाती होगी ...........
 
 कीतनी तडपाती होगी
 कीतना उसे सताती
 अंतर मन की ये वेदना
 हर पल रुलाती होगी...........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
डोला
 
 हे बद्री
 त्यारू डोला आयी म्यार
 सप्नीयु मा
 त्यारू नीयुँत आयी म्यार
 मन्खीयुं मा
 त्यारू डोला आयी ............
 
 खुठी मेरी खुद बा खुद अब
 हिटण लगी
 ये उकालू उन्दारू का बाटा अब
 चड़ण लगयाँ   
 त्यारू डोला आयी ............
 
 आंखी मेरी सदणी
 तेर मूरत देखणी  च
 बद्री विशाल महीमा
 ये गीचोडी गाणी च   
 त्यारू डोला आयी ............
 
 हे बद्री विशाला हे म्यार
 निराला देबता
 हे सुख करता मेरा
 म्यार पीड़ा हरता
 त्यारू डोला आयी ............
 
 मीर जीकोडी मा
 सदा याणी बस्युं रै मेरा देबता   
 बद्री विशाल बद्री विशाला
 बोल रै म्यार मनवा
 त्यारू डोला आयी ............
 
 
 हे बद्री
 त्यारू डोला आयी म्यार
 सप्नीयु मा
 त्यारू नीयुँत आयी म्यार
 मन्खीयुं मा
 त्यारू डोला आयी ............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा
 
 कण धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा
 बोई बर्फ ही बर्फ होग्याई
 पहाड़ों मा चलदी ये बथों
 बोई सर्द ही सर्द होग्याई 
 कण धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा......
 
 दूर डंडा जब मी देखादु
 बोई हरयाली लुक ग्याई
 मेरा पहाड का सड़की
 कखक बोई छिप ग्याई
 कण धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा......
 
 बाल बाच्चों का हाल होयां
 दण बोड़या बेहाल होंया
 बेटी ब्वारी  कंणकै तिल रैण
 बोई खैरी विपद का गढ़ होंयाँ
 कण धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा......
 
 सवेर णी सवेर रहाई
 दोपहरी को भी घाम णी आयी
 ब्योखनी मोल्या ग्याई
 रात मा मीथै बोउल्या ग्याई
 कण धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा......
 
 कण धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा
 बोई बर्फ ही बर्फ होग्याई
 पहाड़ों मा चलदी ये बथों
 बोई सर्द ही सर्द होग्याई 
 कण धणड़ पड़यूँ ये पहड़मा......
 
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