कुछ और मस्तक
भूल न ना हमे पथ पर आगे बढ़ना है
साथ नहीं तो अकेले ही बस अब आगे चलना है
जीवन की ऐ बहुत बड़ी कटु बिड़बना है
यंहा पर जो कुछ होता बस वो सब अचानक है
दूसरों की परेशानी में गाने वालों जरा सुनो तुम
अपनों के दुखड़ों में भी जाकर तो तुम्हे भी कभी रोना है
धधक रही अग्नि सब ख़ाक कर जाने आतुर है अब
उठ जाओ इस नींद से एकदिन तो इस संग खूब सोना है
दिशा भूल ना जाना जाने वाले पथिक आगे जाकर तुम
पीछे आने वालों के लिये तुम्हे नये सपनों को जो बुनना हैं
बड़ी ही कठिन कर्म की ऊपर नीचे होती ऐ पगडंडी है
प्रथम विफलता में ही छुपी दबी सफलता की वो कुंजी
अपने ही आएंगे बेगाने बन बनकर राह अवरुद करने
एकाकीपन के घोर निराशा के बादल बन वो छाएंगे
रण में घात लगा बैठा होगा तब जो कोई अपना पराया
कुमकुम की थाल में घुल जलकण अश्रु बन ढुलक जाएंगे
तब एक ज्वाला प्रज्वलित होगी सब एकाकार कर जाऐगी
चल पड़ेंगे कदम तेरे वो जाने वाली राह नेक हो जाएगी
कुछ मस्तक कम पड़े होंगे माँ भरती की माला के लिए
कुछ और मस्तक माँ भरती माला में सजने आतुर हो जाएंगे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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