Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 76217 times)

vkumar64mca

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दिनचर्या

रोज प्रातः
जाता है
वह मंदिर
करता है पूजा
घंटों बैठकर
बार-बार मांगता है
छमा
अपने किये की ।
लंबा सा तिलक लगाकर
लोटता है
और
पुंह जुट जाता है
अपने कृत्यों पर ।

विजय कुमार "मधुर"


महाराज

रक्षा कवच पहनकर
साथ में अंगरक्षक
निकलता है वह
घर से बाहर ।
प्रवचन देता है
भीड़ को
मे हूँ भगवान्
मेरे दर्शन मात्र से
होगा तुम्हारा उद्दार ।
जपो माला
मेरे नाम की
सुबह शाम
मजाल क्या
कोइ मुशीबत
तुम्हे छू भी सके ।
बस..
ऊंचे स्वर में
सभी बोलो
जय महाराज ।
विजय कुमार "मधुर"

Jagga

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पहाड़ मैं होगा सब पहाडी , एक होगा पैदा ऐश पहाडी !
फिर न कही अँधेरा मैं होगा अपना पहाडी , सूरज उगेगा मेरे पहाडी वैभव का
पहाड़ का घर-घर अपना फेरा होगा, एक होगा पैदा ऐश पहाडी !!

पहाडी बोली की होगी अपनी बस्तिया , चमकता हुवा हर पहाडी चेहरा होगा !
प्रहरी सुख पहाड़ का घेरा अपना होगा , हर गुज मैं गुजेगा पहाडी अपना होगा !!
हर जुबान पै पहाड़ का पहाडी नारा होगा , उन्नति -प्रगति मैं अपना पहाडी होगा !

तब सुंदर उत्तराखंड पहाड़ हमारा अपना होगा , जब महकेगा पहाडी का पाणी , माटी!
उस दिन धन्य होगा पहाड़ का अपना पहाडी , हर होगा ऐश अपना पहाडी
जिस से धन्य होगा अपना सब पहाडी , जल्दी पैदा होगा अपना पहाडी !!

जय पहाडी भूमि के म्यएर सत सत नमन छु , हर पहाडी जुबान पै पहाड़ लिजी नमन छु
अब हमर पहाड़ ले आपुड़ मैं मग्न छु , हिन्दुतान मैं आपु मैं उ चमन छु पहाडी !!



Jagga

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पहाड़ की एक कल्पना , मेरे आँखों का धरोहर >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>

सारी उम्र आँखों मैं एक पहाड़ रहा !
सारी उम्र बीत गयी वो वशा पहाड़ रहा !
न जाने क्या है उस पहाड़ और मुझ मैं !
सारी महफिल भूल गए बस पहाड़ की याद मैं !

आज लगता है क्यों उदासी छाई है !
क्योकि पहाड़ से हम लोगो की जुदाई है !
रोया है फिर एक तन्हाई पहाड़ का है!
क्यों जाने प्रदेश मैं आज पाहड है !

मैं दोडा बड़े जोश से बचपन पहाड़
तब ना याद था मुझे अपना पहाड़
क्यों की अ़ब हम ना लोट चलगे पहाड़
क्यों की मैंने धिख सपनु का पहाड़ !

पेड होकर भी छुट जाता है पहाड़
पत्थर और मिटी का होता है पहाड़
पाणी इस से भागता है इस पहाड़
बहार जाने ही याद आता है पहाड़

पहाड़ से निकला पत्थर रुकता नहीं
जवानी मैं हमे पहाड़ फलता नहीं
पहाड़ से निकलते ही हटना नहीं
पहाड़ याद दिलता है अपना पहाड़

सोचा था न करगे किशी से पहाड़ की बात
मुख से पहले निकलता है पहाड़
क्यों की हम को जन्म से दिखा है पहाड़
तभी आँखों मैं घूमता है आपना पहाड़

पहाड़ को रोज फोड़ने वाले क्या जाने
पहाड़ के रिवाजो को आज हर क्या जाने
होती है कितनी तकलीफ पहाड़ बनाने मैं
प्रदेश मैं बसा हर पहाडी क्या जाने

धन्य है वो जो पहाड़ बना क्या , सत नमन है उस को मेरे
जिस ने दिया बच्च पनप्यार , वो है सब का प्यारा पहाड़ !!!


dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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 वाह वाह कवी सम्मलेन उफान पर है
कवितायें  बह रही हैं
कभी बसंत और कभी विकाश की बात कह रही हैं
कवी का ह्रदय कोमल  होता है
समाज के दर्द मैं रोता है
कभी तो सरकार को सरम आयेगी
कभी तो पहाड़ों  को नज़र जायेगी
तभी पहाड़ का विकाश  होगा
तब सभी कवी कहंगे
वाह वाह वाह वाह ..........

धनेश कोठारी

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विकास

जितनी तेजी से मैं
चढ़ जाता हूं
गांव की उकाळ
बगैर हांफे हुए
विकास हांफ रहा होता है
सड़क के किनारे
लुढ़के बिजली के पोलों के साथ
ताक रहा होता है
बैठकर ट्रांसफार्मर की तरह उकाळ

पहाड़ी शहरों में
फर्राटे के साथ दौड़ता विकास
जब भी मजबूर किया जाता है उसे
‘एक-जुम्म’ की बजाय
किश्तों में पहुंचता है पहाड़ पर

तरस आता है गांव को
उसकी विवशता पर
और फिर
उठ जाती है एक और मांग
पैदल चलने में तकलीफ होती है उसे
एक सड़क बना दी जाय
जो, पहुंचे सीधे सड़क से गांव तक

विकास! तुम जब भी जाओगे पहाड़
जब भी चढ़ोगे किसी गांव की ‘उकाळ’
बगैर हांफे नहीं चढ़ पाओगे
हांफना तो होगा
यह भी तय मानों।
Copyright@ Dhanesh Kothari
[/color]

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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उन्नति पर उन्नति होती रहे, कवि सम्मेलन चलता रहे।
पहाडो़ मे कवियों की कमी, महसुश नही होनी चाहिए।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,
 
जैसे कि मैंने पहले लिखा है मै शायद पहली बार जिन्दगी में कविता लिख रहा हूँ और यहाँ पर अन्य लोगो कि कविताये पड़कर मेरा भी जोश बढ गया है! और अपने टूटे फूटे शब्दों में मैंने उत्तराखंड के विकास पर यह "विकास पुरुष" के बारे में लिखा है जो ही उत्तराखंड में पैदा नहीं हुवा है!  देखिये यह कल्पना कविता के रूप में !
 
   कब होगा उत्तराखंड का विकास पुरुष पैदा !
   जो उत्तराखंड कि तकदीर बदले !!
   वो विकास की करांति लाये !
   वो पलायन को पर रोक लगाये !!
 
   कब होगा उत्तराखंड का विकास पुरुष पैदा !....
   कब होगा उत्तराखंड का विकास पुरुष पैदा !....
 
   वो अधियारे को दूर भगाए !
   रोजगार के साधन जगाये !!
   पहाड़ की राजधानी पहाड़ में लाये !
   घर घर में खुशहाली लाये!!
 
   कब होगा उत्तराखंड का विकास पुरुष पैदा !....
   कब होगा उत्तराखंड का विकास पुरुष पैदा !!
 
    वो शिक्षा का स्तर सुधारे !
    यहाँ  के बच्चे विश्व में छाये !!
    गरीबी को दूर भगाए !
     साक्षरता में राज्य को नो १ बनाये !
 
     कब होगा उत्तराखंड का विकास पुरुष पैदा !....
     कब होगा उत्तराखंड का विकास पुरुष पैदा !!

Rajen

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dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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wah wah mehta ji vikash purush paida hoga yahi hamara bhi manana hai, bahut achchha likha aapne , hamain bhi us naye sabere ka intejar hai....

नया सबेरा आयेगा
         तम के दम को तोड़ देगा
         आशा की किरण जोड़ देगा
          दीन जनों को राह दिखाने
नया सबेरा आयेगा
          न तप होगा न धाम बहेंगे
           शीत पतझड़ न रह पायेगा
            घर -घर में बहार खिलाने
नया सबेरा आयेगा
            सर्व शिक्षा सर्वत्र होगा
            मेहनत सबका मंत्र होगा
            ज्ञान दीप का पुनः जलाने
नया सबेरा आयेगा
             सब रहें दुरुस्त रहंगे
              ठग-ठेके लुप्त रहेंगे
              सज्जनों का मान बढ़ने
नया सबेरा आयेगा
              बंदूकें खामोश रहंगी
              सर्वत्र प्रेम गंगा बहेगी
             विश्व शान्ति का पाठ पड़ाने
नया सबेरा आयेगा 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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वाह जी वाह वसंत के साथ-साथ विकास की भी वहार आ गई।

 

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