निरभै बुढ़ापा"
By : धर्मेन्द्र नेगी
O! Old Age
Garhwali Poetry by Dharamendra Negi[/size]
मुंड -मुंडारू, पुटग पिड़ा, द्वी हैड़ चसगणा छन
कन्दूड़ बुजेगैनि पट, आँख्यूंम जैंगण रिंगणा छन
कबि उन्द, कबि उब्ब, करक-करास-झिलसिणि
दवै काम नि करणी, फल -फरूट नि पचणा छन
खुरा-खाँसी दिन -रात, बळगम कतैऽ छड़ेन्दो नी
सैरि रात उठा -पोड़, आंखा निन्द जग्वळणा छन
डौंणा छन तंगत्याणा, उकाळ - उंदार हिटण मा
गैत जबाब देणी, हाथ - खुटा त जन गळणा छन
दिन-रात ख्यप-ख्यप,हर घड़ि रैन्द हणांट-कड़ांट
ध्वार -धर्म नि आन्दो क्वी, सब्बि दूर भजणा छन
सित्त-पित्त,सितगरमी, बरमंड चटाग मरणूं 'धरम'
जीरण ह्वेगे शरैल अब जाणा लछण लगणा छन
सर्वाधिकार सुरक्षित -:
धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ