'देखा नि छन पाऽड़'
हिन्दी रचना : अश्वघोष
अनुवादक -: धर्मेन्द्र नेगी ,चुराणी, रिखणीखाळ,
‘Did not see hills ‘
Hindi poetry By Ashwaghosha
Translation by –Dharmendra negi
महाशिवरात्रि अर मातृभाषा दिवस पर प्रख्यात कवि अश्वघोष की हिन्दी रचना को गढ़वाली अनुवाद
अनुवादक -: धर्मेन्द्र नेगी ,चुराणी, रिखणीखाळ,
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'देखा नि छन पाऽड़'
अबि तक हमन देखि बाढ़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
सुण्यूं छ वख बल प्वरि रैन्दन,
खखळाट कैरी गदेरा ब्वगदन।
करदन बल छंछेड़ा छंछड़ाट,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
वखा लोग होन्दन निराला,
कूड़्यूं पर नि लगौंदन ताळा।
सदानि खुला रखदन किवाड़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
यन सूणि वख ह्यूं भि पोड़द,
डाळि -बोट्यूं पर मोति जड़द।
वख करदन सब्बि वींसे लाड़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
कैऽ बनि का तख जीव होन्दा,
चीता, भालु अर हर्यूळ -तोता।
तख स्यूऽ मरणा रैन्दन दहाड़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
*देखा नहीं पहाड़*
अब तक हमने देखी बाढ़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
सुना वहाँ परियाँ रहती हैं,
कल-कल-कल नदियाँ बहती हैं।
झरने करते हैं खिलवाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
और सुना है लोग निराले,
घर में नहीं लगाते ताले।
हरदम रखते खुले किवाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
यह भी सुना बर्फ पड़ती है,
पेड़ों पर मोती जड़ती है।
सब करते हैं उसको लाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
जीव-जंतु हैं वहाँ अनोखे,
चीते, भालू, हरियल तोते।
करते रहते सिंह दहाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
- अश्वघोष