Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 289082 times)

Bhishma Kukreti

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'देखा नि छन पाऽड़'
हि
न्दी रचना : अश्वघोष
अनुवादक -: धर्मेन्द्र नेगी ,चुराणी, रिखणीखाळ,

‘Did not see hills ‘
Hindi poetry By Ashwaghosha
Translation by –Dharmendra negi
महाशिवरात्रि अर मातृभाषा दिवस पर प्रख्यात कवि अश्वघोष की हिन्दी रचना को गढ़वाली अनुवाद
अनुवादक -: धर्मेन्द्र नेगी ,चुराणी, रिखणीखाळ,

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'देखा नि छन पाऽड़'
अबि तक हमन देखि बाढ़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
सुण्यूं छ वख बल प्वरि रैन्दन,
खखळाट कैरी गदेरा ब्वगदन।
करदन बल छंछेड़ा छंछड़ाट,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
वखा लोग होन्दन निराला,
कूड़्यूं पर नि लगौंदन ताळा।
सदानि खुला रखदन किवाड़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
यन सूणि वख ह्यूं भि पोड़द,
डाळि -बोट्यूं पर मोति जड़द।
वख करदन सब्बि वींसे लाड़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
कैऽ बनि का तख जीव होन्दा,
चीता, भालु अर हर्यूळ -तोता।
तख स्यूऽ मरणा रैन्दन दहाड़,
पर कबि देखा नि छन पाऽड़!
*देखा नहीं पहाड़*
अब तक हमने देखी बाढ़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
सुना वहाँ परियाँ रहती हैं,
कल-कल-कल नदियाँ बहती हैं।
झरने करते हैं खिलवाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
और सुना है लोग निराले,
घर में नहीं लगाते ताले।
हरदम रखते खुले किवाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
यह भी सुना बर्फ पड़ती है,
पेड़ों पर मोती जड़ती है।
सब करते हैं उसको लाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
जीव-जंतु हैं वहाँ अनोखे,
चीते, भालू, हरियल तोते।
करते रहते सिंह दहाड़,
लेकिन देखा नहीं पहाड़!
- अश्वघोष

Bhishma Kukreti

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बेटी बचावा अर सरकारी नारा

कवि -राजेन्द्र सिंह पँवार

Protect Gild Child
Garhwali Poem by Rajendra Panwar

-

बेटी बचावा बेटी पढावा सरकारू का नारा छन।
नारी मान नारी रक्षा बोला कैका सारा छन।
अस्मता लुटेणी कैकी, कखि फांस खाणी क्वी।
सरकार कणद्वररया हुई, जन्ता जब लगाणी छुई।।
केदा अर कानून योंका, मुखजमानी पाड़ा छन-$
नारी मान नारी रक्षा बोला कैका सारा छन।
शिकैतू पर गौर नीच, कुनेत्यों तैं डौर नीच।
भैर बौंण जाली कनै, जब रख्वाली घौर नीच।
नीति छिफली कागजू मा, असल देखा गारा छन।
नारी मान नारी रक्षा बोला कैका सारा छन।
काका बोड़ा भै भयात, सब चुनौ का थौल मा।
खुर्शी पै करार बिसरी, जन्ता फुख्यो झौल मा।
न क्वी दीदी भुली याद, न क्वी सोरा भारा छन
नारी मान नारी रक्षा बोला कैका सारा छन।
होणी-खाणी का सुपन्या दिखै, देल्यो म अड़ी जांदा ई
मुंड झुकैक हाथ जोड़ी, खुट्यों म पड़ी जांदा ई।
सौं करार भांति भांति का, वोट लेण का लारा छन।
नारी मान नारी रक्षा बोला कैका सारा छन।
लाड-प्यार, मैत्यों कु छोड़ी,सैसुर मा जांदी जब।
कैकी आस कैका सास, नारी, धर्म निभान्दी सब।
निबुलांदो फुकेणी क्वी क्वी दहेजा का मारया छन।
नारी मान नारी रक्षा बोला कैका सारा छन।
©राजेन्द्र सिंह पँवार 20200222


Bhishma Kukreti

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दुध बोलि  भाषा की बात

गढवाली कवि : महेशा नन्द
-
The discussion on Mother Tongue
A Garhwali poem by: Mahesha Nand

-
गडवळि म्यारा अड़ददा-पड़ददौं कि भासा..
भासा म्याला
भासा ब्वेया गिच्चा बटि उबड्याँ म्याला,
धरतिन् सैंकिनि, पुळ्ये-पत्येकि जमैनि।
फुरफुरा म्याला दुपता-चौपता ह्वेकि,
भुतगिला, पाछ डाळा बणी अंगर्येनि।
फंगळा, दुफंगळा, अर कै फंगळा ह्वेनि।
झपन्याळ डाळा पत्ता, फौंकौन भ्वरेनि।
हिंवाळि डांडि-कांठ्यूँ कS मयळ्दा बोल
आणा, पखणा, सब्द्वा म्याला बणि ग्येनि।
सगंढ घड़मड़ा डाळा छा जु चौंठौं थरप्याँ
तौं खुरक्यूँन्, यि म्याला नि पंगन द्येनि।
कैन बुखैनि, दमळैनि, कैन च्वैलि खैनि।
छकण्या सारा म्याला संगता हर्चि ग्येनि।
द रै भुलु! कुन्नि, तुम्ड़ि, कठब्यड़ि हर्चिनि
अर मेलि खत्येंणि रैनि, त् कैन भूजी खैनि,
घूंणून् बुखैनि, मूसौन् लुकैनि, कूणौं छिछैनि।
उडणौन् खंकळ्यौ का, वून म्याला छुल्येनि।
तौन छरका-बरका कैकि मेला खौति द्येनि।
वूँकऽ रीता-छूता फग्गल निरऽसेनि-ऐंस्येनि,
र्वैनि-बिबैनि, बुसिला ह्वेकि दळ्ये ग्येनि।
यि निसता म्याला पाछ सप्पा चळ्ये ग्येनि।
उप्रि म्याला दुब्द-दुब्द खुळ-खुळ ऐनि।
सुर्र-सुर्र सैर-सैरी सि संगता सैरि ग्येनि।
मयड़्या पुणयाँ-पणयाँ वु मयळा म्याला,
टपरांद-टपरांट झणि कक्ख गब्त ह्वेनि।
असौंगा सब्द-
ब्येया-माँ के। उबड्याँ-उत्पन्न किए हुए। म्याला-बीज (शब्द)। फुरफुरा-स्वस्थ व अच्छी तरह से सुखाए हुए।
भुतगिला-छोटे पेड़ जो पत्तों-शाखाओं से लदे हों। अंगर्येनि-अंग-प्रत्यंगों से (शाखा-उपशाखाओं) लदे।
सगंढ-विशाल। घड़मड़ा-जिसने अपने आप को चारों तरफ से किसी वस्त्र या रजाई से ढका हो तथा अधिक जगह घेरी हो। खुरक्यूँन्-खुंदक खाने वालों ने, बैर भावना रखने वालों ने।
दमळैनि-आधा चबाए और फेंक दिए। च्वैलि-छीलकर।
कठब्यड़ि-काठ का बना सामान रखने का बक्सा। सारा-स्वस्थ, गिरीदार।

छिछैनि-नष्ट हो गए। उडणौन-उड़ने वाले छोटे जीव (हल्की-फुल्की मानसिकता वाले।)

छुल्येनि-दोनों हाथों से इधर-उधर बिखेर दिए।
दळ्ये-दल-दल में समा गए, दल दिए। चळ्ये-खो गए।
दुब्द-दुब्द-छुप-छुपकर पीछा करते हुए। निसता-सारहीन। सैरि-फैल। पुणयाँ-पणयाँ- सार-फटक कर साफ किए हुए। गब्त-दफन।
Copyright@ Mahesha Nand  2020

Bhishma Kukreti

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अबकि दौ औ कि निऔ

पलायन पर व्यंग्यात्मक कविता
कवि –जय पाल सिंह रावत ‘छिपड दा[/size]
-
बसन्त मेरी भावना मा ऐ
पुछणूं छौ छिपडु दा
अबकि दौ औ कि निऔ
औं
त कख कख जौं
अर कख निजौ
खन्द्वरि कूड़िमा जम्यॉ डाळा पर
कनकै मुस्करौ
बॉजि पुंगड्यूं कट्वरि का कांडौ मा
कनकै खिलखिलौ
छिपड़ु दा अबकि दा औ कि निऔ
गंगा मैली जमुना मैली
कखि मे दगड़ बी इन निहो
मेल्वड़ि बासली
डिस्को कनकै लगौ
छिपड़ु दा अबकिदौ
औ कि निऔ
Copyright Jaipal Singh Rawat

Bhishma Kukreti

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 मातृ भाषा दिवस पर

विशेष

गढवाली कविता
कवि : बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'


---|--मातृ भाषा--|--
जै भाषा तैं
ब्वै पुटगा उन्द बी सुण्णा रऽया
आँखा खुलणा बाद
बाळो मन किलकारियों मा
बिंगाणु रैन्दू, सनकाणु रैन्दू
अपणी छुँवी
जै भाषा मा
दै-दादैऽ कानियों दगड़
हुंगरा भरणा रऽया
ब्वै-बाबोऽ लाड़
भै-बैण्यों प्यार पाणा रऽया
जु भाषा
ब्वै दुधै धार दगड़
शरीर मा पौंछी
हमु तैं दुन्यें भाषा
सिखण लेख बणैन्द
वा छ मातृ भाषा
उन त मातृ भाषा
न कब्बी बिमार होन्दी
न कमजोर
पर हाँ !
वा म्वरी जान्दी लाचार ह्वे
सक्स्यै सक्स्यै
जब हमेर जुबान
ठुल अर बडू द्यखणें
लालसा मा लंबी ह्वे
वीं तैं दुसरा तौळ दबै देन्द।
@ बलबीर सिंह राणा 'अड़िग'


Bhishma Kukreti

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 लगणु नी वसंत ऐगे!

एक व्यंग्यात्मक , बिडम्बनत्मकगढवाली कविता


कवि रमाकांत ध्यानी ‘आर के’

A satirical Garhwali Poem  based on Spring
By Ramakant Dhyani ‘R .K’
-

सरग भी,
बर्खणु च,
ह्यूं भी,
पव्डयूं च।

घाम भी,
लगणु च,
फूलों म,
फुलार भी च।

फिर इन,
किलै लगणु,
ये बसन्त म,
व.... मौळयार नी च।।



*©*रमाकान्त ध्यानी"आरके"*
*ग्राम-गोम,नैनीडांडा।*

Bhishma Kukreti

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ढंडी पोड़ी,किले म्वरण ?
-
एक बिडम्बनात्मक कविता
कवि – रमाकांत ध्यानी

द्यख्यां डाण्डा,
क्य द्यखणी अब,
तरयाँ गाड़,
क्य तरणी अब।
लगाणा छौं,
बाव छालौं म,
ढंडी पोड़ी,
किले म्वरण  अब।।
©️®️......
रमाकान्त ध्यानी"आरके"
ग्राम-गोम,नैनीडांडा।

Bhishma Kukreti

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वोटर , नेता , बेरहमी
-
प्रजातंत्र के कोढ़ पर तंज कसती गढवाली कविता
A Garhwali Poem criticizing Leader’s Apathy towards Voters
कवि - रमाकान्त ध्यानी"आरके"

-
कबि?
कै जमानों पैळी,
वोटर!
नेता जी पिछनै,
हिटदा छाई,
झंडा-डंडा पकड़ी,
जिंदाबाद-जिंदाबाद बोली की.......
अब!
ये जमाना म,
नेता जी,
वोटर पिछनै,
ग्वाई लगाणा छन,
जाति-धाती,
गौं-मुल्क,
स्वारा-भ्यात,
पुरणा-नाता लगै की.....

©️®️.......
रमाकान्त ध्यानी"आरके"
ग्राम-गोम,नैनीडांडा।


Bhishma Kukreti

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पुरणा घौ
-
जाति प्रथा पर तीखे व्यंग्य लिए  गढवाली गजल

गजलकार : शिवदयाल शैलज
-
 Sharp Satirical Garhwali Ghazals by Shiv Dayal Shailaj
-

पुरणा घौ सुखै कि हम नै खलड़ी जमाणा !
तु निरभगी ,खडेयां मुरदौं खैंडाणू !!
बिसिरि गे छा जौं बदनाम गीतूं तैं हम !
तू " शोध"का बाना ; हज्जि वी गीत लगाणू !!
पैला तिड़क्वळि बुजि गे छै बगतऽ माटाल !
तू फेरि वूं हि तिड़क्वल्यूं ; किलै दिखाणू ??
जमानु आज जून -मंगळ फरि जाणौ अयूं !
तू आदि मानवऽ उड्यार ; किलै लिजाणू ?
मनखी सिरफ मनखी छ ; यो समझाण अबरि !
तू लोखू का पुस्तनामा ; किलै खुज्याणू ?
आज त्वै मौका मिल्यूं त भला काम कैर !
सदा कैकि नि रैई ; क्वी किलै नि बिंगाणू ?
‍Copyright @  शिवदयाल शैलज

Bhishma Kukreti

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मौ देखि मांगळ लगाण!
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स्वार्थ पर व्यंग्यात्मक गढवाली कविता
कवि – धर्मेन्द्र नेगी

Satirical Garhwali Poem on Selfishness

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अपणा भुज्यां खाजा सि अफी बुखाणा छन
अपणा नौ कि संगरांद सि अफी बजाणा छन
कै खुणि त दूध-भात, कैकि लगीं कपळि हाथ
मौऽ देखी मांगल सि झणि क्यो लगाणा छन
जमानै सिकासैरी मा यूंका लारा-लत्ता हरचिगें
गैत नांगि दिखैकि सि टिपोड़ दिखाणा छन
कै पर बि, कनुकै कन, अब हमन भरोसु यख
पौंछैनि जु टुक्कु हमन,वीऽ हमतैं लमगाणा छन
कन्दूड़ों मा धैरियली हाथ भया राड़ि हमन त
ये जमाना रंग-ढंगों देखी आँखा रगर्याणा छन
पुरखौंन बांटि तिलै दाणि , यन सूणि छौ हमन
'धरम'सि त नौखारि को नाज बि लुकाणा छन
सर्वाधिकार सुरक्षित -:
धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ

 

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