Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 44079 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जै हो नेता जी की

जै हो वोटर महाराज की

जै हो दारू की

जै हो नोटों की

जै हो भीतरघातियों की

जै हो ठेकेदारो की

मै य़ू की जै सुदि नी करनू छोऊ

ब्याली कुर्सीन मैमा एकी खुद बोली

जै भला मनखी मा ये सब गुण छन

वी मैमा बैठणा लायक चा

नहीं ता क्वी लोला एकी बैठ जांदू



आखिरकार मेरी भी क्वी इज्जत चा समाज मा

मिन मन मा सोची चकडैतो का दगड़ी कुर्सी भी चकडैत ह्वे गे

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi वो रेशमी बालों वाली
 
 वो चांदनी खालों वाली
 
 वो चुनर संग खेल खेलने वाली
 
 वो पतली कमर बाली उमर वाली
 
 वो लड़की थी या थी खुदा की कारीगरी
 
 जो भी थी हुस्न की खुली किताब थी यारों
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By Shailendra Joshi

आज मै शैलेन्द्र जोशी आप लोगों को अपना लिखा पहला गीत कविता या अपनी कलम का पहला सबूत आप के साथ साझा कर रहा हु मैं बचपन मे फ़िल्मी गानों और पॉप गीतों का बहुत शौकीन था जैसा हर बच्चा होता है उस से प्रभावित हो के मैने ये गीत रचा .तब से तक कही गीत कविता रच चुका हू

शो मे जाना है

रूशी को बुलाना है

अप्पुन को पांच तारीक शो मे जाना है

ऐ हटेले क्यों रो रेला है

बास रूशी है अनफिट

शो का बिक चुका है टिकट

मोडल तो पाडैली साडैली बाज़ार मे हज़ार पर

रूशी जैसी काहा कोई मेरे यार

शो है तैयार

रूशी है बीमार

क्या करू यार

ऐ हटेले रोने का वक़्त चालेला है और तू हँसेला है

बास रूशी फिट हो गयी

तो नाचो गाओ झूमो

शो मे जाना है

रूशी को बुलाना है

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तेरे कोमल अंग देख

बजते है हिर्दय मे जल तरंग

है तेरा सोमकर जस तेरा रंग

तू हर उस शख्स की की पहली पसंद है

जिन्हे सौन्द्रय परख है

तू सौन्द्रय की पहली शक्ल है

जीवन मे होगी सरल तू

तुझमे एक तमस है

समझ के यार समझदार एक बार तुझे देखले तो

मुझे ही सौंन्द्रय की परख रखने वाला पहला समझदार समझ ले

मै हु झल्ला

पर अपनी काव्य शक्ति से अवगत करा

तेरी सुन्दरता  का डंका बजाकर

पुरे अवाम मे करुगा हल्ला

मेरी हिर्दय स्पर्शी

मेरी प्रियता

मेरी सुन्दरता

ऐ मेरी स्वप्न सुन्दरी

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From - Shailendra Joshi

मैने एक झलक जो तेरी देखी

तू मंद मंद मुस्करायी

थोड़ा हिलडुल थोड़ा शर्मायी

मैने एक झलक जो तेरी देखी

तू मेरे लिए चांदनी

तू मेरे लिये अनजानी

फिर भी है जानी पहचानी

तू है मेरी स्वप्न कहानी

तू मेरी स्वप्न रानी

तुझे देखते ही मुझमे बिजुरिया जैसा एहसास हुआ

काश मै तेरी रूमानी बदन की रूह की साँस होता

तू दूर भी है पास भी है

तुझे पाने की आस भी है

तुझमे विश्वास भी है

तुझे पाना तो है दुरी

पर तू मिलेगी बस मिलेगी

क्योंकी तू है मेरी स्वप्नसुंदरी

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From - Shailendra Joshi

मी हैसदा उजाला मा भी डौर की निकलू भैर

मी घणा अंधेरो मा त कत्ते ना निकलू भैर

जामना की या ही फरमान चा मी खुणी

दोष मेरु क्या ये ही चा मै नारी छोऊ

तुमरी कू नज़र कुनैत की मारी छोऊ

कब तक मेरी उमर तै दोष देला

कब तक मेरा फैशन तै दोष देला

मित्ते नौ निसाब च्यैणु चा

अपणी बेजेतीकू हिसाब च्यैणु चा

कब तक बौग मारला तुम

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From - Shailendra Joshi

नेतो की सोच देरादूंण तक
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
गैरसैंण मा राजनीती
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पाड़ मा खैरी

ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पाड़ मा ईस्कूल बिटी मास्टर गोल
ब्याली भी छोऊ आज भी चा भोल भी राला
खाली नौ का अस्पताल
... ब्याली भी छोऊ आज भी चा भोल भी राला
बेटी ब्वारी दुख मा
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पाड़ ज़िन्दगी आस मा
ब्याली भी छै आज भी चा भोल भी राली
पर मन मा आज तलक आणा छिन बिन्सिर का वो भला सुपन्या
एक दिन जरुर होली सुखों की सुबैर
रचना शैलेन्द्र

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Shailendra Joshiसुना है बिकते है मुखटे बाज़ार मे हर किस्म के
हर गली मौहल्ले शहर दुकान पर
एतबार ना रहा चेहरे की किताब पर
ना अब इसे पढ ने का मन
ना इससे अब कुछ सुने का मन
ज़िन्दगी मे बोलना सुनना है जरुरी क्योंकी जीवन है जब तक
आप चेहरे के कारोबार से बच सकते नहीं
इस लिए इसे खरीद रहे है और मोड़ मे ठग रहे है
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshiposted toMahi Mehta
9 minutes ago
खुरचे खुरचे की ज्यू नींद मा सुपन्या देखदन
उंका सुपन्या सुपन्या ही रै ज़ादिन
ज्यू सुपन्यों का खातिर नींद ही हर्ची देदीन
उक़ा सुपन्या हैका तै सुपन्या भी बण जैदिन
तिन वी बांद पर सुपन्यो मा पर माया खूब जतै
पर बोली नी कभी मन की बात वी पर
काज ना तेरु काम ना तेरु
ध्याण का सुप्न्या छन तेरा भारी
लाटा इनमा कनुक्वे चललू
खाली नज़र ऐच करी एवरेस्ट नी चड़दा
बिना दौडया रेस नी जीते जांदी
सुपन्या की माला गझेणा खुणि
नींद हर्चींन पड़दी तभी मिलदन दिन भला
रचना शैलेन्द्र जोशी

 

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