Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 731461 times)

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में  कड़ी पत्ता मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Curry Tree  as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 13                                               
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  13                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  102 
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -102

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Murraya koenigii
सामन्य अंग्रेजी नाम - Curry tree
संस्कृत नाम -गिरीनिम्ब
हिंदी नाम -कड़ी पत्ता

उत्तराखंडी नाम - नजदीकी पौधा गंद्यल , कड़ी पत्ता
कड़ी पत्ते का पेड़ 4  से 6 मीटर तक ऊँचा पेड़ या झाडी होता है जो भाभर व कम ऊंचाई वाले पहाड़ियों जगहों पर पाया जाता है। 
जन्मस्थल संबंधी सूचना -
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -सुश्रुता संहिता , राज निघण्टु , आदर्श निघण्टु में कड़ी पत्ते से बनने वाली औषधियों  उल्लेख है (अंजलि मोहन राजीव गाँधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ केयर बंगलौर में थीसिस 2012 -13 )
    कड़ी पत्ता का औषधि उपयोग
 पत्तों से बनी औषधि का दस्त , पेट दर्द ,उलटी रोकने हेतु काम आता है। छाल - पेस्ट त्वचा रोग रोकने हेतु उपयोग होता है। जड़ों से गुर्दे की बीमारी में औषधि बनाई जाती है।
    कड़ी पत्ते का मसाले में उपयोग
 कड़ी पत्ता वास्तव में केवल छौंका लगाने के  है और इसकी सुगंध भोजन में स्वाद वर्धन करती है। यद्यपि कड़ी पत्ते के फल मीठे होते हैं किन्तु इसे फल रूप में नहीं खाया जाता।  पहाड़ी समाज कुछ ही सालों से कड़ी पत्ते को छौंका लगाने हेतु उपयोग कर रहा है।



Copyright@Bhishma Kukreti Mumbai 2018

Notes on History of Culinary, Gastronomy, Spices  in Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy , Spices in Pithoragarh Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy,  Spices in Doti Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy ,  Spices in Dwarhat, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy,  Spices in Pithoragarh Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Champawat Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Nainital Uttarakhand;History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Almora, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy in Bageshwar Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy ,  Spices in Udham Singh Nagar Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy in Chamoli Garhwal Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy, Spices  in Rudraprayag, Garhwal Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Pauri Garhwal, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy in Dehradun Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices   in Tehri Garhwal  Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy,  Spices in Uttarakhand Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Haridwar Uttarakhand;

 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


Bhishma Kukreti

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जोशीमठ कत्यूरियों का उत्तराखंड पर्यटन में महत्वपूर्ण योगदान

Great Contribution by Katyuri Kings of Joshimath in Uttarakhand Branding
( कत्यूरी काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -35

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  35                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--140 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 140 

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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   उत्तराखंड के इतिहास , समाज व संस्कृति पर कत्यूरी राजाओं , ठकुराईयों , जागीरदारों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा व प्रभाव आज भी है।  यद्यपि शिलालेखों , ताम्रपत्रों , प्राचीन साहित्य में कत्यूरी सभद्ब नहीं मिलता किन्तु लोककथ्य में इन्हे कत्यूरी राजा ही कहते हैं।  कत्यूर राज नेपाल के वर्तमान डोटी से पूरे उत्तराखंड पर रहा है।  ऐटकिंसन , कनिंघम , राहुल व डबराल जैसे इतिहासकारों ने इन ठकुराईयों , सामंतों , रजाओं के इतिहास पर पर प्रशंसनीय विवेशन की है।
         ऐतिहासिक दृष्टि से कत्यूरी शासन को दो भागों में विभाजित किया जाता है -कार्तिकेयपुर (जोशीमठ ) के कत्यूरी राजा व वैद्यनाथ (कुमाऊं -डोटी )के कत्यूरी राजा।  कत्यूरी  पहली  ईश्वी पूर्व से गोरखा आक्रमण तक उत्तराखंड-डोटी  में कहीं न कहीं राज करते रहे हैं।  कार्तिकेयपुर अथवा जोशीमठ क्तिरूई राजाओं में तीन परिवारों ने राज किया व वैद्यनाथ पलायन से पहले 645 ईश्वी से 1000 ईश्वी तक माना जाता है।
   
                  जोशीमठ के कत्यूरियों का उत्तराखंड पर्यटन को महत्वपूर्ण देन
सूर्य मन्दिरों का निर्माण भी कत्युरी काल में माना जता है .
कार्तिकेयपुर के कत्यूरी शासकों ने निम्न मंदिरों की स्थापना की जो आज भी उत्तराखंड पर्यटन के मेरुदंड हैं।
वासुदेव मंन्दिर जोशीमठ की आधारशिला वासुदेव (850 -870 ) ने रखी।
नरसिंग  मंदिर - शिलालेख से विदित होता है कि प्रथम कत्यूरी शासक वसंतन ने नर्सिंग देव मंदिर का निर्माण किया।
नारायण मंदिर -ललित शूर की पत्नी ने कार्तिकेयपुर के निकट गोरुन्नासा में नारायण मंदिर स्थापित किया। ललित शूर ने भूमि दी।
नारायण मंदिर गरुड़ाश्रम - किसी श्रीपुरुष भट्ट ने नारायण मंदिर स्थापित किया।  भूमिदान ललित शूर ने दी।

            जोशीमठ कत्यूरी काल में पर्यटन मुखी सार्वजनिक कार्य

वसंतन ने वैष्णवों को शरणेश्वर गाँव भेंट किया।

वसन्तन के पुत्र ने जयकुल भुक्तिका को जाने वाले कई सार्वजनिक मार्गों का निर्माण किया। इन मार्गों पर वसंतन  पुत्र ने कई पथशालाएं बनवायीं। 

वसंतन पुत्र ने शरणेश्वर गाँव को ब्याघ्रेश्वर मंदिर को अर्पित कर दिया और मंदिर में पूजा सामग्री आदि का प्रबंध किया।

त्रिभुवन राज देव ने जयकुल भुक्तिका में ब्याघ्रेश्वर मंदिर हेतु दो द्रोण की उपजाऊ भूमि दान दी और उस भूमि पर पुष्प -केशर उत्पन्न करने का आदेश दिया।  उसके भाई ने भी दो द्रोण भूमि इस मंदिर को दान दी तथा त्रिभुवन राज देव के एक किरात मित्र ने भी भूमि अर्पित की।

 त्रिभुवन राज देव के भ्राता ने भटकु देवता , व ब्याघ्रेश्वर मंदिर हेतु अधिक भूमि प्रदान की।

त्रिभुवन राज देव के भाई ने ब्याघ्रेश्वर मंदिर के सम्मान में एक प्याऊ का निर्माण किया।

भावेश्वर मंदिर -किसी कत्यूरी राजा के आमात्य भट्ट भवशर्मन  ने भावेश्वर मंदिर निर्माण किया था।

भाभर में जैन मंदिर - कत्यूरी काल में कत्यूरियों ने दसवीं सदी में जैन लोगों को भाभर में शरण दी थी और जैनों ने बाढ़पुर आदि स्थानों में जैन मंदिर निर्माण किये।

कत्यूरी काल में तपोवन , सिमली, केदारनाथ , गोपेश्वर , आदि बदरी , तथा जागेश्वर में मंदिर  स्थापित किये

 उस काल में उत्तराखंड में सैकड़ों मंदिर निर्मित हुए।

जैन और हांडा अनुसार जोशीमठ में कुछ मंदिर पद्मट  देव ने बनवाये।


      कार्तिकेय कत्यूरी काल में मूर्तियां निर्माण


डा शिव प्रसाद डबराल व मधु जैन व ओ  . सी  हांडा  ( आर्ट ऐंड  आर्किटेक्चर ऑफ उत्तराखंड , 2009 ) की पुस्तकों में कत्यूरी काल की मूर्तियों का पूरा वर्णन मिलता है। डा कटोच के पुस्तक , डा हेमा उनियाल के केदारखडं व मानसखंड पुस्तकें भी इस काल के मंदिर व मूर्तियों पर प्रकाश डालते हैं। कत्यूरी काल में मूर्तिकार बड़े कुशल थे और इन मूर्तिकारों ने उत्तराखंड को विश्वश पहचान दिलाई।  उत्तराखंड पर्यटन विकास में में कत्यूरी काल के मूर्तिकारों का बहुत बड़ा हाथ है।


             मंदिर - मूर्ति निर्माण, शिलालेख  अर्थात कई विज्ञानों व कलाओं का विकास


    उत्तराखंड में पहले पहल काष्ठ मंदिर कला विकसित हुयी फिर पाषाण मंदिर कला विकसित हुयी साथ साथ मूर्ति निर्माण कला भी विकसित हुयी।  मंदिर -मूर्ति निर्माण याने कई विज्ञानों व कलाओं का संगम व ज्ञान -विज्ञान विनियम ।  विज्ञान -कला विनियम से कई तरह का पर्यटन विकसित होता है।  मंदिर -मूर्ति निर्माण, शिलालेख  में खनन विद्या, धातु विद्या एक अहम विज्ञान है जो समानांतर औषधि विज्ञान  भी विकसित करता है। औषधि विज्ञान स्वयमेव चिकित्सा पर्यटन को विकसित करता है। 

 

           प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार व कत्यूरी शिखर


 कत्यूरी काल में प्रचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ और उन मंदिरों में नाग शिखर  के स्थान पर कत्यूरी शिखर निर्मित हुए जैसे - उत्तरकाशी  , केदारनाथ , गोपेश्वर , गंगोत्री , जागेश्वर, जोशीमठ , तपोवन , तुंगनाथ , बद्रीनाथ आदि के मंदिरों में।


          कत्यूरी काल में उत्तराखंड पर्यटन


मगध  नरेश धर्मपाल के राज्याधिकारियों ने निंबर राज में केदारखंड की यात्रा की थी।

जागेश्वर मंदिरों के शिलालेखों से पता चलता है पूर्व प्रदेशों , बिहार , बंग मगध से तीर्थ यात्री उत्तराखंड पंहुचते थे। 

शंकराचार्य का  इसी काल में उत्तराखंड आगमन हुआ।

 केदारखंड पुराण से ज्ञात होता है कि मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि ने देवप्रयाग में तपस्या की थी।

  राजा पद्मट ने भगवान बद्रीनाथ मंदिर बलि , प्रदीप , नैवेद्य , धुप , पुष्प , गेय वाद्य -नृत्य , पूजा हेतु भूमि दान दी थी।

भृगुपंथ , बद्रीनाथ व केदार नाथ पंहुचने हेतु दो मार्ग मुख्य थे - हरिद्वार से देव प्रयाग , श्रीनगर से बद्रीनाथ आदि  दूसरा मार्ग था जागेश्वर से आदि बदरी -सिमली होकर।

  देव प्रयाग व जागेश्वर के मंदिरों में कई यात्रियों ने अपने नाम भी खोदे हुए हैं।  यात्री अपने साथ व्यास /कथावाचक भी लेकर चलते थे।


        पर्यटकों की सुरक्षा


   जागेश्वर और गोपेश्वर शिलालेखों से प्रमाण मिलता है कि कत्यूरी शासन काल में प्रजा की धन सम्पति , जीवन सुरक्षा व सम्मान का शाशक पूर्ण ध्यान रखते थे।  यही कारण है कि उस समय पर्यटक निष्कंटक उत्तराखंड यात्रा कर सकते थे।

  सिद्ध नाथों ने भी उत्तराखंड को शांति क्षेत्र मानकर अपनी साधना व पंथ प्रसार हेतु ठीक समझा ( बी सी सरकार शक्तिपीठ ) और भारत से विभिन्न मतावलम्बी उत्तराखंड पंहुचने लगे।


         मार्गों की सुरक्षा व सुविधा

     त्रिभुवन राज के शिलालेख से विदित होता है कि मार्गों व पथिकों की सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाता था। पथिकों हेतु पथिक गृह व सार्वजनिक स्थानों में प्याऊ बनाये जाते थे।


       निर्यात वृद्धि से पर्यटन विकास

   उत्तराखंड से लोहा, ताम्बा , स्वर्ण चूर्ण , भोजपत्र , बांस , रिंगाळ  व अन्य वनस्पति निर्यात होती थी और निर्यात सदा से पर्यटनोमुखी व्यापार सिद्ध हुआ है।  मैदानी भागों को ऊन , ऊनी वस्त्र , पशु पक्षी , शहद व वन औषधियों से जनता व राज्य को अच्छी आय मिलती थी।

   सुभिक्ष के ताम्र पत्र आदि से विदित होता है कि भारत में मंदिरों के वेग से स्थापनाओं से चमर , गंगाजल , व कई औषधि व पूजा सामग्री के निर्यात में वृद्धि हुयी (डबराल , उखंड इतिहास -भाग 1  )

 

  * आगे -शंकराचार्य आगमन का महत्व व वैद्यनाथ कत्यूरी काल में पर्यटन

Copyright @ Bhishma Kukreti   8 /3 //2018 



Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास - कार्तिकेयपुर का  कत्यूरी राजवंश अध्याय part -3 pages 440-478
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में  हींग का   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Asafoetida  , Hing ,Heeng as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 14                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  14                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --   103
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -103

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Ferula asafoetida
सामन्य अंग्रेजी नाम - Asafoetida
संस्कृत /आयुर्वेद नाम - हिंगू
हिंदी नाम -हींग
उत्तराखंडी नाम - हींग
          जन्मस्थल संबंधी सूचना -
डा राजेंद्र डोभाल अनुसार हींग की 170  प्रजातियां हैं और 60 प्रजातियां एशिया में मिलती हैं।  हींग एक पौधे की जड़ों के दूध (latex ) को सुखाकर मिलता है।  उत्तराखंड में डेढ़ मीटर ऊँचा पौधा 2200  मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों में मिलता है।  उत्तराखंड के लोग हींग की सीमित खेती करते हैं।  उत्तराखंड में मिलने वाली प्रजाति का जन्म स्थान मध्य एशिया याने पूर्वी  ईरान व अफगानिस्तान के मध्य माना जाता है।
     -हींग , हिंगु का औषधि  उपयोग संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -
 हिंगू का उल्लेख चरक संहिता कई औषधि निर्माण  हेतु हुआ है। सुश्रुता संहिता में हिंगू का कई प्रकार की औषधि निर्माण उल्लेख हुआ है। छटी सदी के  बागभट  रचित अस्टांग  संग्रह , सातवीं सदी के अष्टांग हृदय संहिता ; ग्यारवीं सदी के चक्रदत्त चिकित्सा ग्रन्थ , बारहवीं -तेरहवीं सदी के कश्यप संहिता/वृद्ध जीविका तंत्र ,  भेल संहिता , बारहवीं सदी के गदा संग्रह , सारंगधर संहिता , हरिहर संहिता , अठारवीं सदी के भेषज रत्नावली , सिद्ध भेषज संग्रह ( 1953  ) , आयुर्वेद चिंतामणि (1959 ). पांचवी सदी के अमरकोश , धन्वंतरि निघण्टु , राज निघण्टु , मंडपाल निघण्टु , राजा निघण्टु (15 वीं सदी ) , कैयदेव निघण्टु , भाव प्रकाश निघण्टु ,अभिनव निघण्टु , आदर्श निघण्टु , शंकर निघण्टु , नेपाली निघण्टु ,मैकडोनाल्ड इनसाक्लोपीडिया लंदन , इंडियन मेडिकल प्लांट्स ,
 अतः  सिद्ध है कि हींग का कई औषधीय उपयोग होता है।  दादी माँ की दवाइयों में हींग का उपयोग दांत दर्द कम करने , बच्चों के कृमि नाश , पेट दर्द आदि हैं।
     हींग का छौंका
 हींग को विभिन्न सब्जियों , दालों में सीधा मिलाकर या छौंका लगाकर उपयोग होता है।


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Bhishma Kukreti

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शंकराचार्य आगमन से  संगठित उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन विकास

 Arrival of Shankaracharya boosted Organized Uttarakhand Tourism Management

(  शंकराचार्य आगमन काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -36

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  36                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--141 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 141 

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  कत्यूरी शासकों ने गोपेश्वर , केदारनाथ, तुंगनाथ , कटारमल आदि मंदिरों में पूजा , नृत्य , गायन , बलि , अन्नदान हेतु विशेष प्रबंधन  शुरुवात की।  मंदिरों को भूमि अग्रहार दिए और इससे इन मंदिरों में प्रतिदिन पूजा व भक्तों हेतु सुविधा प्रबंध सदा के लिए शुरू ह गया।  पुजारी , देवदासियां , सेवकों के वयवय के अतिरिक्त मंदिर रखरखाव कार्य हेतु राज्य दत्त भूमि से आय साधन एक सुदृढ़ व्यवस्था बन गयी  गया।
   
   शंकराचार्य आगमन
  शंकराचार्य का जन्म कल्टी , केरल में 788 ईश्वी व मृत्यु केदारनाथ में 820 ईश्वी में माना  जाता है।
सनातन या हिन्दू धर्म जागरण हेतु शंकराचार्य ने भारत के प्रदेशों का भ्रमण किया।  शंकराचार्य ने भारत के चरों कोनों में चार मठ  श्रृंगरी , जग्गनाथ पूरी में गोवर्धन, द्वारिका में शारदा व ज्योतिर्मठ (जोशीमठ ) स्थापित किये। शंकराचार्य जब  चंडीघाट हरिद्वार पंहुचे तो उन्हें पता चला कि तिबत के लुटेरों के भय से पुजारियों ने बद्रीनाथ में नारायण मूर्ति कहीं छुपा दी थी। शंकराचार्य ने बद्रीनाथ आकर खंडित मूर्ति की बद्रीनाथ मंदिर में की पुनर्स्थापना की।
इतिहासकार पातीराम अनुसार शंकराचार्य ने ही श्रीनगर में श्री यंत्र में पशु बलि प्रथा बंद करवाई।
    बद्रिकाश्रम के निकट व्यास उड़्यार में शंकराचार्य ने शिष्यों के साथ ब्रह्म सूत्र , श्रीमदभगवत गीता , उपनिषदों पर भाष्य लिखे।
     भाष्य समाप्त कर शंकराचार्य ने केदारनाथ , उत्तरकाशी , गंगोत्री की यात्राएं कीं।
      शंकराचार्य ने केदारनाथ में अपना शरीर छोड़ा।  केदारनाथ व गंगोत्री के मध्य एक पर्वत श्रृंखला को शंकराचार्ज  डांडा कहते हैं।
     
     बद्रिकाश्रम में दीर्घ  कालीन पूजा व्यवस्था

        शंकराचार्य आगमन से पहले कतिपय राजनैतिक कारणों (तिब्बती लुटेरों के आक्रमण या बौद्ध संस्कृति प्रसार ) से बद्रिकाश्रम में पूजा पद्धति खंडित हो चुकी थी।  गढ़वाल के पूर्ववर्ती कत्यूरी शिलालेखों में भी बद्रिकाश्रम मंदिर हेतु भूमि दान या पूजा व्यवस्था हेतु दान का उल्लेख  नहीं है।  शंकराचार्य ने अपने शिष्य त्रोटकाचारी को बद्रिकाश्रम पूजा अर्चना व ज्योतिर्मठ   की व्यवस्था का भार सौंपा। त्रोटकाकार्य शिष्य परम्परा के 19 आचार्यों ने सन 820 से 1220 तक बद्रिकाश्रम पूजा व्यवस्था व जोशीमठ मठ व्यवस्था संभाली।  यह व्यवस्था आज भी दूसरे ढंग से ही सही पर  चल रही है।
       बद्रीनाथ , जोशीमठ में दक्षिण के पुजारियों द्वारा व्यवस्था ने वास्तव में उत्तराखंड को दक्षिण से ही नहीं जोड़ा अपितु सारे भारत में उत्तराखंड को प्रसिद्धि ही दिलाई।  जरा कल्पना कीजिये दक्षिण से कोई पुजारी जब केरल से बद्रीनाथ -केदारनाथ हेतु चलता होगा तो मार्ग में हजारों लाखों लोगों के मध्य इन मंदिरों की चर्चा  होती  ही होगी और लोगों को मंदिर दर्शन की प्रेरणा मिलती रही होगी।
      उत्तराखंड आने से पहले शंकराचार्य भारत में प्रसिद्ध धार्मिक जागरण के सूर्य जैसे प्रतीक बन चुके थे।  उनके उत्तराखंड प्रवास व देहावसान ने उत्तराखंड को प्रसिद्धि दिलाई व उत्तराखंड पर्यटन को क्रांतिकारी लाभ पंहुचाया। 
 कालांतर में शंकराचार्य व दक्षिण के पुजारियों की प्रेरणा से कई दानदाताओं ने उत्तराखंड में कई सुविधाएं जुटायीं। 
     पर्यटकों को पर्यटक स्थल में एक ठोस व्यवस्था की भारी आवश्यकता पड़ती है और बद्रीनाथ , जोशीमठ , केदारनाथ में पूजा व अन्य व्यवस्थाओं ने पर्यटकों को उत्साह ही दिलाया होगा।  वास्तव में शंकराचार्य आगमन से संगठित उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन की नींव पड़ी कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कहा जाएगा।

       शंकराचार्य आगमन से आयुर्वेद ज्ञान का विनियम

    पांचवीं  व छटी सदी आयुर्वेद संहिता संकलन -सम्पादन (चरक, सुश्रुत  व बागभट्ट सहिताएं ) काल माना जाता है।   सातवीं सदी से लेकर पंद्रहवीं सदी तक संहिता व्याख्या काल माना जाता है। व्याख्या काल में संहिताओं की व्याख्या की गयी जिसमे रसरत्नसम्मुच्य आदि ग्रंथ रचे गए।  इसी काल में कई निघंटु (चिकित्सा शब्दकोश ) जैसे अष्टांग निघण्टु , सिद्धरस निघण्टु , धन्वन्तरी निघंटु , कैव्य निघण्टु , राज निघण्टु आदि संकलित हुए।
       चूँकि शंकराचार्य आगमन से संस्कृत विद्वानों व दक्षिण के पुजारियों व उनके साथ अन्य विद्वानों , कार्मिकों का उत्तराखंड में आवागमन वृद्धि हुयी तो साथ में आयुर्वेद विज्ञान विनियम भी बढ़ा और उत्तराखंड में वैज्ञानिक आयुर्वेद विज्ञान प्रसारण को ठोस धरातल मिला।
  निघण्टुों में कई ऐसी वनस्पति का विवरण मिलना जो केवल मध्य हिमालय में होती थीं का अर्थ है कि आयुर्विज्ञान व वनस्पति शास्त्र विद्वानों के मध्य ज्ञान विनियम होने की एक व्यवस्था हो चुकी थी और शंकराचार्य आगमन से ज्ञान विनियम में  आताशीस  वृद्धि हुयी। 
इन विद्वानों के आवागमन से जोशीमठ आदि स्थानों में संस्कृत पठन पाठन को संगठित रूप से बल मिला जो आयुर्वेद का औपचारिक शिक्षा दिलाने में सफल सिद्ध हुआ।  बाद में यह आयुर्वेद शिक्षा कर्मकांडी ब्रह्मणों के माध्यम से सारे गढ़वाल में प्रसारित हई।  बाद में गढ़वाल पंवार राजवंश के साथ अन्य संस्कृत विद्वानों के आने व बाद में अन्य विद्वानों के आने से भी आयुर्वेद प्रसारण को बल मिला।  देवप्रयाग में पंडों  का आगमन शंकराचार्य आगमन के कारण ही हुआ।  देव प्रयाग के पंडो का आयुर्वेद शिक्षा प्रसारण में बड़ा योगदान है।  पंडों व बद्रीनाथ आदि मंदिरों के स्थानीय धर्माधिकारियों का जजमानी हेतु देस भ्रमण से भी कई नई औषधि उत्तराखंड को मिली होंगी व उत्तराखंड की कई विशेष जड़ी बूटियों का ज्ञान भारत के अन्य विद्वानों को मिला होगा।
 यदि
सदा नंद घिल्डियाल ने 1898 में रसरंजन ' आयुर्वेद पुस्तक रची तो उसके पीछे सैकड़ों  साल की आयुर्वेद शिक्षा परम्परा का ही हाथ है जिसे शंकराचार्य आगमन ने प्रोत्साहित किया था। 

(शंकराचार्य कार्य -बलदेव उपाध्याय की पुस्तक - श्रीशंकराचार्य आधारित )



Copyright @ Bhishma Kukreti  9  /3 //2018 



Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास -part -3 पृष्ठ 479 -482
-

 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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उत्तराखंड  में  जख्या  का  मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Asian Spider, Cleome Jakhya    as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 15                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 15                     
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  104
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -104

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Cleome viscosa
सामन्य अंग्रेजी नाम - Asian Spider Flower , Wild mustard
संस्कृत नाम -अजगन्धा
हिंदी नाम - बगड़ा
नेपाली नाम -हुर्रे , हुर्रे , बन तोरी
उत्तराखंडी नाम -जख्या
एक मीटर ऊँचा , पीले फूल व लम्बी फली वाला जख्या बंजर खेतों में बरसात उगता है।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - संभवतया जख्या का जन्म एशिया में हुआ है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -अजगन्धा जिसकी पहचान Cleome gyanendra आदि  में होती है का उल्लेख कैवय देव   निघण्टु , धन्वंतरि निघण्टु ,राज निघण्टु , में हुआ है।
   औषधीय उपयोग
जख्या पत्तियों  अल्सर की दवाइयां   जाती हैं। बुखार , सरदर्द , कान की बीमारियों की औषधि हेतु उपयोग होता है 

  जख्या का मसाला उपयोग
  उत्तराखंड का कोई ऐसा घर न होगा जो जख्या का छौंका न लगाता  हो।  जख्या केवल छौंके के लिए ही प्रयोग होता है।  उत्तराखंड के प्रवासी भी उत्तराखंड से अपने साथ जख्या ले जाते हैं।

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Notes on History of Culinary, Gastronomy, Spices  in Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy , Spices in Pithoragarh Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy,  Spices in Doti Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy ,  Spices in Dwarhat, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy,  Spices in Pithoragarh Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Champawat Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Nainital Uttarakhand;History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Almora, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy in Bageshwar Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy ,  Spices in Udham Singh Nagar Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy in Chamoli Garhwal Uttarakhand; History  Culinary,Gastronomy, Spices  in Rudraprayag, Garhwal Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy in Pauri Garhwal, Uttarakhand; History Culinary,Gastronomy in Dehradun Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices   in Tehri Garhwal  Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy,  Spices in Uttarakhand Uttarakhand; History of Culinary,Gastronomy ,  Spices in Haridwar Uttarakhand;

 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )
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 वैद्यनाथ कत्यूरी काल में उत्तराखंड पर्टयन  कारकों का अविस्मरणीय विकास

 Uttarakhand Tourism Product Development in Vaidyanath Katyuri Period
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(  वैजनाथ कत्यूरी काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -37

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  37                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--142 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 142 

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  इतिहासकारों का मानना है कि जोशीमठ (कार्तिकेयपुर ) के उत्तरी छोर में तिब्बती आक्रांताओं के बार बार आक्रमण , लूट व जोशीमठ में भयंकर हिमस्खलन के कारण कत्यूरी राजा नरसिंह देव को राजधानी बदलनी पड़ी।  नर  सिंह देव ने राजधानी करवीपुर में स्थापित की जो डोटी व गढ़वाल क्षेत्र दोनों के मध्य था व जुड़ने हेतु मार्ग थे। शिलालेखों व अन्य प्रमाण अनुसार  बीच में अशोक चल्ल परिवार का भी शासन रहा।   कत्यूरियों की कई शाखाओं ने अलग अलग क्षेत्रों पर राज किया।  पर्यटन इतिहास की दृष्टि से इस अध्याय में कत्यूऋ राजाओं के कार्यों हेतु सन   1000 -1400  की विवेचना किया जाएगा ।
 इस काल में पर्यटन दृष्टि से निम्न कार्य महत्वपूर्ण हैं
     कटारमल मंदिर -कटारमल मंदिर याने बूटधारी सूर्य मंदिर की स्थापना 1080 -1090 मध्य हुयी जहां विष्णु , शिव , गणेश की भी मूर्तियां हैं . मंदिर भव्य था। वास्तुकला , धातुकला , काष्टकला का सुंदर नमूना।
      द्वारहाट की कालिका मंदिर मूर्ति - 1143 में गुलण नामक व्यक्ति ने कालिका मंदिर निर्माण किया।
        राजा सुधार देव कत्यूरी ने द्वारहाट में सन 1316 में मंदिर निर्माण करवाया।
         राजा मानदेव कत्यूरी ने 1337 में द्वारहाट में मंदिर बनाया।
          राजा सोमदेव कत्यूरी ने द्वारहाट में 1348 व 1354 में मंदिर निर्मित कराये।
          राजा निरमपाल कत्यूरी ने 1348 में स्यूनरा में मंदिर निर्माण करवाया।
      दोरा पट्टी में गूजर देवल ,रतन देवल , कचेरी , मृत्युंजय , बद्रीनाथ , कुटुमबुड़ी , बण देवल , मनियान आदि मंदिर बारहवीं -चौदवीं सदी के माने जाते हैं।  यहां कई प्राचीन नौले इसी काल के माने गए हैं। 
       
       त्रिभुवन पाल देव ने बागेश्वर मंदिर व्यवस्था हेतु भूमि प्रदान की थी।
       इंद्रपाल देव की पत्नी दमयंती ने चौघाड़ापाटा में एक बाग़ लगवाया था।
    लक्ष्मण पाल देव ने 998 में बैद्यनाथ मंदिर में लक्ष्मी नारायण की मूर्ति स्थापित की।
        इसी तरह कटीरी काल में जागेश्वर , आदि बदरी , सोमेश्वर , केदारनाथ , नालचट्टी आदि स्थानों में मंदिरों की स्थापना हुयी

           मूर्ति कलाकारों को शरण
    मध्य भारत में राजनैतिक अस्थिरता के चलते कलाकार उत्तराखंड मँहुचने लगे और उन्हें उत्तराखंड शासकों ने सम्मान दिया।  इन मूर्ति कलाकारों ने उत्तराखंड मूर्ति कला को प्रसिद्धि दिलाई।

        प्रतिहार मूर्ति कला का पूर्ण विकास
   इसी काल में प्रतिहार मूर्ति कला का पूर्ण विकास उत्तराखंड में ही हुआ।

       मूर्ति निर्यात
 इस काल में उत्तराखंड मूर्ति कला प्रसिद्ध थीं और मैदान के धनी वर्ग  , राजा उत्तराखंड निर्मित मूर्तियों को मंदिरों में स्थापित करने में गर्व अनुभव करते थे। यशोवर्मन चंदेल ने गर्व से घोषणा की थी कि मैंने हिमालय समान महोच्च मंदिर में मूर्ति कैलास (केदारखंड निकट मूर्ति निर्माण शाला ) में निर्मित है।
   
    कत्यूरी काल में निर्मित मूर्तियां तिब्बत , कांगड़ा , कन्नौज , मध्यदेश , बुंदेलखंड , सौराष्ट्र , महाराष्ट्र व सदूर दक्षिण तक पंहुचती थीं। वैष्णव धर्म के आचार्य माधवानंद अपने साथ मूर्तियां ले गए थे।

            नारद कृत संगीत मकरंद व नृत्य , संगीत प्रसार
   इस काल में मंदिरों में व्यवसायिक तौर पर नृत्य व संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते थे।  कत्यूरी काल में नृत्य -संगीत में आसातीत विकास हुआ।  केदारखंड अध्याय 66 -77 से लगता है कि रुद्रप्रयाग नृत्य -संगीत प्रशिक्षण केंद्र था। अनुमान है कि नारद का ग्रंथ संगीत मकरंद की रचना रुद्रप्रयाग में हुयी थी। दो भागों में बनता नृत्य व संगीत संगीत मकरंद में रोग निवारण हेतु संगीत की आवश्यकता पर बल दिया गया है (संगीताध्याय) -
     आयुधर्मयशोवृद्धि: धन धान्य फलम लभेत।
      रागाभिवृद्धि:सन्तानं पूर्णभगा: प्रगीयते।।   
 सालर जंग म्यूजियम जॉर्नल जिल्द 27 -28 पृष्ठ 7 में उल्लेख किया गया है कि नारद कृत संगीत मकरंद का प्रकाशन गढ़वाल में मिली हैदराबाद म्यूजियम में रखी गयी एकमात्र पांडुलिपि के आधार पर गायकवाड़ ओरियंटल सीरीज ने 1900 से पहले प्रकाशित किया।  संगीत मकरंद के अतिरिक्त किसी पुस्तक में वीणा वादन के इतने प्रकार नहीं हैं  जितने मकरंद में हैं।
  रुद्रप्रायग में नारद शिला लोककथाओं /जनश्रुतियों के होने से भी प्रमाणित होता है कि नारद ने संगीत मकरंद की रचना रुद्रप्रयाग में की।

      संस्कृत पठन पाठन याने चिकित्सा शास्त्र का महत्व

    यद्यपि कत्यूरी काल का संस्कृत साहित्य लुप्त हो गया है किन्तु क्राचल्लदेव के ताम्रशासन से विदित होता है कि ज्योतिष , तंत्र मंत्र , कृत्यानुष्ठान, शकुन शास्त्र , आरोग्य शास्त्र , न्याय के पंडित राज्य में निवास करते थे।
    संस्कृत पठन पाठन में आरोग्य शास्त्र अवश्य ही समाहित होता है।

         माधवाचार्य का आगमन
    वैष्णव धर्म के माधव सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक माधवाचार्य (1118 -1197 ) लगभग 1153 में बद्रीनाथ पंहुचे थे।  माधवाचार्य अपने साथ भेंट मिली शालिग्राम निर्मित तीन देव मूर्तियां ले गए जिनका उन्होंने सुब्रमणियम , उदीपि , मध्यतल मंदिरों में स्थापना की।  इसके साथ माधवाचार्य बद्रिकाश्रम से दिग्विजयी राम व व्यास की मूर्ति बी ले गए थे भंडारकर , वैष्णविज्म , शैविज्म  ..   पृष्ठ 58  व रामदास गौड़ , हिंदुत्व पृष्ठ 633 -634 )।
  माधवाचार्य ही नहीं अपितु अन्य आचार्यों ने भी उत्तराखंड में पर्यटन किया।
        धार्मिक पर्यटन विकास
 इस काल में मंदिर बनने व मूर्ति कला प्रसिद्धि से कई नए प्रकार के पर्यटक भी आने लगे थे।  मूर्ति निर्यात से उत्तराखंड की छवि को एक न्य आयाम भी मिला। 
     
                  भारत पर बाह्य आक्रमण से शरणार्थियों का आगमन
 
      इसी काल में मुहमद गौरी आदि के आक्रमण शुरू हुए और उत्तराखंड में भारत के सभी स्थानों से पलायित प्रवाशी बसने लगे जिनमे विद्वान् , युद्ध कला निपुण , कलाकार , चिकित्स्क आदि भी थे।   प्रवासियों ने आगे उत्तराखंड के पूर्व समाज को ही परिवर्तित कर दिया। 

          यात्राएं

 उत्तराखंड यात्राओं के दो मुख्य मार्ग थे पूर्व में बैजनाथ , अल्मोड़ा के तरफ से जोशीमठ पथ व पश्चिम में चंडीघाट कनखल से आज के पौड़ी गढ़वाल में गंगा तट पर बद्रिकाश्रम पथ।   मानसरोवर की भी यात्रा महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा मानी जाती थी।


डा शिव प्रसाद डबराल कृत कुमाऊं का इतिहास 1000 -1790 पृष्ठ 1 से 53 आधारित

Copyright @ Bhishma Kukreti   10/3 //2018 



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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास (  कुमाऊं का इतिहास 1000 -1790 )
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;       



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 कुमाऊं में चंद वंशीय शासन सूत्रपात  याने आजीविका खोज पर्यटन


(  चंद शासन  कुमाऊं में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -38

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  38                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--143 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 14 

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  कुमाऊं पर चंद शासन कब शुरू हुआ , कैसे शुरू हुआ , कहाँ शुरू हुआ यहां तक कि किसने शासन शुरू किया पर विद्वानों मध्य मतभेद हैं।  यहां तक कि पउपलब्ध विभिन्न चंद  वंशावलियों में भी अंतर है। अधिकतर थोरचंद याने सोम चंद को कुमाऊं में चंद शासन का शुरुवाती शासक मानते हैं ।
   थोरचंद उर्फ़ सोमचन्द कैसे कुमाऊं पंहुचा पर भी मतभेद हैं।  किन्तु यह सर्वमान्य है कि थोरचंद  /सोमचन्द कुमाऊं में सेना नौकरी करने झूंसी /कालिंजर / (?) से कुमाऊं आया या लाया गया।  सोमचन्द घरजवाईं था या बनाया गया पर अधिकांश विद्वान सहमत हैं।
      एक जनश्रुति अनुसार थोरचंद /सोमचन्द अपने साथ कई व्यक्तियों के साथ मुमाऊं में आया था या आमत्रित किया गया। कोई आठवीं सदी में थोरचंद /सोमचन्द शासन प्रारम्भ का मत देते हैं किन्तु सन 1200 से पहले चंद वंशीय शासन शुरू हुआ इतिहास सम्मत प्रमाणित नहीं होते।
          एक मत है कि सन  1223 के लगभग थोरचंद /सोमचन्द झूंसी से अपने कुछ सैनिक साथियों के साथ कुमाऊं आया और क्राचल्ल का सैनिक कर्मचारी बना।  उसके बाद चंद वंश की नींव पड़ी होगी।

                उत्तराखंड में आजीविका पर्यटन

      लगभग सन 1000 के पश्चात भारत के मैदानी भागों में पश्चिम से मुस्लिम आक्रांता आक्रमण करने लग गए थे और उत्तर भारत में राजनैतिक अस्थिरता शुरू हो गयी थी।  उत्तराखंड शांत प्रदेश होने से कुछ लोगों हेतु शरण गाह व उत्तर भारत के कुछ लोगों हेतु उत्तराखंड एक शीर्षत आजीविका प्रदान करने वाला क्षेत्र था।  थोरचंद की दो तीन जनश्रुति से विदित होता है कि उत्तरप्रदेश से राजपूत सैनिक ही नहीं , ब्राह्मण व शिल्पी भी कुमाऊं आने , यहां के निवासी की पुत्री से शादी क्र यहीं बसने की चाह में कुमाऊं बसने लगे थे।  उत्तराखंड का यह पर्यटन ऐसा ही था जैसे 1915 के पश्चात उत्तराखंडी आजीविका की खोज में मुंबई प्रवास में जाने लगे थे। थोरचंद तो राजा या उच्च सैनिक अधिकारी बन गया।  किन्तु बहुत से सैनिक जो उत्तरप्रदेश के थे वे कुछ समय अंतराल पश्चात वापस अपने मूल स्थान जाते रहे होंगे और फिर आवश्यकता पड़ने पर उत्तराखंड आते रहे होंगे।   आजीविका खोज में जो भी पर्यटन होता है वही पर्यटन 1000 से उत्तराखंड में शुरू हो गया था।
      नई युद्धनीति व सामाजिक रणनीति का प्रवेश
थोरचंद के शासन प्रारम्भ ने उत्तराखंड को कई नई युद्धनीतियाँ दीं।  साथ साथ नए सामाजिक रणनीतियां भी प्रदान कीं।

      आजीविका पर्यटन या पलायन से नई  समस्या  व  चुनौती

 आजीविका हेतु , सुरक्षा हेतु या अन्य कारणों से गैर उत्तराखंडियों द्वारा उत्तराखंड में पहले पर्यटन करना , आजीविका खोज व फिर उत्तराखंड में बसने की घटनाओं ने पूर्व सामजिक विन्यास को ही चकनाचूर कर डाला जिसका वर्णन आगे भी होता रहेगा।  जो समस्या 1875 के बाद मूल मुंबई व निकटवर्ती क्षेत्र वासियों ने दूसरे क्षेत्रवासियों का मुंबई में बसने से झेला या झेल रहे हैं वही  समस्या कुमाऊं में चंद या गढ़वाल में पंवार वंशीय शासन के बाद मूल उत्तराखंडियों ने झेला (यद्यपि तब के मूल वासी भी कभी प्रवासी बनकर ही उत्तराखंड आये थे )। 

   


Copyright @ Bhishma Kukreti  11  /3 //2018 



Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास -part -10
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;       


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रारम्भिक चंद वंशीय राज्य में हीन  उत्तराखंड पर्यटन
Uttarakhand Tourism in Initial Chand Kingdom
( चंद  राज्य में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -39

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  39                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--144 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 144 

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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   थोरचंद /सोमचन्द से ज्ञान चंद (1420 ) तक चम्पावत का इतिहास मुख्यतः जनश्रुतियों व ब्रिटिश शासन को दिए गए वंशावली पर आधारित लिखा गया है।  ज्ञानचंद ( 1367 -1420 ) थोरचंद के चचा का वंशज माना जाता है। थोरचंद से लेकर ज्ञानचंद को गद्दी मिलने तक उथल पुथल व चंद राजाओं द्वारा राज्य विस्तार ही दीखता है।  राज्य प्रजा हित  गौण ही रहा है।
   
       माल (भाभर -तराई ) में शरणार्थियों व मुस्लिम आक्रांताओं की वसावत

    पश्चिम भारत पर मुस्लिम राजाओं के शासन आने पश्चात कई हिन्दू आयुध व आश्रित बरेली ,, पीलीभीत बदायूं में बसे।  इस भूमि को पहले ही नहीं आज भी कटेहर कहा जाता है।  मुस्लिम सेना व कटेहरों के मध्य लड़ाईयां चलती रहती थीं।  जब भी कटेहर में मुस्लिम भारी पड़ते हिन्दू माल की और आ चल पड़ते थे।
      दिल्ली सुलतान फिरोज तग़लक़ ने 1380 में कटेहर के नेता खड़क सिंह को मारने हेतु सेना भेजी तो खड़क सिंह कुमाऊं भाग कर आ गया।  सुलतान सेना ने कुमाऊं में विध्वंस मचाया और 24000 लोगों को बंदी बनाकर ले गए ।  ज्ञानचंद की व सुलतान की मित्रता जनश्रुति केवल कल्पना मात्र है। संभल के सूबेदार ने माल पर अधिकार किया.ज्ञान चंद की राज्याधिकारी  नालू कठायत ने माल पर फिर से अधिकार लिया।  किन्तु मुस्लिम सूबेदार लगातार माल पर आक्रमण करते ही गए।
    सुलतान सेना ने फिर कटेहर सरदार हरी  सिंह को हराने हेतु सेना भेजी।  हरी सिंह कुमाऊं की पहाड़ियों में आ छुपा।  सुल्तान सेना ने फिर से कुमाऊं में विध्वंस मचाया।  ज्ञानचंद ने अपने विश्वसपात्र नालू कठायत की आँखे निकलवा दीं और एक गढ़पति कूंजीपाल की हत्या करवा दी ।  कूंजीपाल के पुत्र क्षेत्रपाल ने ज्ञानचंद की हत्त्या की।
 
             उत्तराखंड पर्यटन

      चंद राजा अधिकतर अत्त्याचारी राजा ही हुए।  उनके राज में भी कत्यूरी राजा या ठकुराई ठाकुरों के प्रशसा लोक गीत अधिक प्रसिद्ध हैं। माल में शरणार्थी या मुस्लिम आक्रमण होते गए।  कुमाऊं के भीतर समृद्धि थी किन्तु उथल पुथल ही रही तो पारम्परिक पर्यटन विकसित नहीं हुआ अपितु ऐसा लगता है पूर्व से बद्रीनाथ जाने वाले पर्यटकों में कमी ही आयी। युद्ध पर्यटन अधिक हुआ। 
     थोरचंद से ज्ञान चंद तक कोई पर्यटनोमुखी वस्तु भी निर्मित नहीं हुईं या ऐसा कोई ठोस विचार ने भी जन्म नहीं लिया। ज्ञान चंद ने अवश्य बालेश्वर में मंदिर व मंडप निर्माण किया था।
       युद्ध पर्यटन ने अवश्य ही चिकित्सा के कुछ नए आयाम खोले ही होंगे।
      थोरचंद से ज्ञान चंद काल पर्यटन की दृष्टि से नकारात्मक काल ही माना जाएगा। 
     
 



Copyright @ Bhishma Kukreti  12 /3 //2018 



Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास (कुमाऊं का  इतिहास ) -part -10
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   

Bhishma Kukreti

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चंद राज्य  (1420 -1499 ) में  पर्यटन -2

 Tourism in Chand Kingdom, Kumaon -2
( चंद युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -40

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  40                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--145 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 145 

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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 चंद राजाओं उद्यान चंद (1420 -22 , हरीशचंद (1422 -23 ), विक्रम  चंद (1423 -1434 ), कालि कल्याण  चंद (1434 -1468 ), भारती चंद (1444 -55  और 1468 -1499 ) का  काल युद्ध , आंतरिक विरोध , भाभर तराई में आक्रांताओं की लूटपाट व छीना झपटी व बाहर से सैनिकों व बाह्मणों के आगमन का काल है।
    उद्यान /ध्यान चंद ने ज्ञान चंद के पाप प्रायश्चित हेतु एक साल के लिए कर माफ़ किये , बाला जी मंदिर का जीर्णोद्धार किया, ब्राह्मण कूर्म शर्मा व माहेश्वरी को भूमि प्रदान की व मंदिर पूजा हेतु एक गुजराती ब्राह्मण पुत्र सुखदेव को आमंत्रित किया जिससे गुजराती ब्राह्मण श्रीचन्द्र  रुष्ट हो चम्पावत से बारामंडल की ओर चला गया।  यह प्रकरण संकेत दे रहा है कि मैदानों से ब्राह्मण का आना व कुमाऊं सम्मान सहित बसना एक संस्कृति बन चुकी थी या बन रही थी।
  सुलतान की सेना ने 1423 में कटेहर में प्रवेश किया साथ साथ  कटेहर से उपद्रवियों का पीछा करते भाभर -तराई में प्रवेश किया  वहां से से  कर उगाया और चला गया ,  पुनः 1424 में सुलतान की सेना ने भाभर में ही प्रवेश नहीं किया अपितु कुमाऊं की पहाड़ियों में भी प्रवेश किया।
   ध्यान चंद ने कत्यूरी क्षेत्र भी जीता।
     कलि कल्याण चंद  शासन अत्त्याचार के  उसके पुत्र भारती के विद्रोह के लिए अधिक जाना जाता है। डोटी शाशकों के मध्य अंतर्कलह से भी चंद राज्य का विस्तार हुआ।
    मानस भूमि पर भूमि व्यवस्था की नींव राजा रत्न चंद ने रखी।  रत्न चंद ने जागेश्वर मंदिर हेतु भूमि प्रदान की।  रतन   चंद का  डोटी से फिर युद्ध हुआ।
   भारती चंद के समय डोटी व् अन्य छोटे राजा फिर से स्वतंत्र हो गए  . भर्ती चंद ने फिर डोटी के क्षेत्र पर अधिकार किया व सीमा पर सैनिक टुकड़ियां रखी गयीं।
   इसी समय नाथ गुरु सत्यनाथ का आगमन गढ़वाल हो चुका था व सत्यनाथ की प्रसिद्धि चम्पावत पंहुच गयी थी।
       नाथ सम्प्रदायियों की प्रसिद्धि याने सिद्ध गुरुओं  का पर्यटन कुमाऊं में बढ़ गया था।
       कटेहर पर सुलतान के भारी दबाब से कुमाऊं में शरणार्थी पर्यटन  क्रमशः जारी रहा और संकेत मिलता है कि शरणार्थी कुमाऊं में बसते गए।
       गुजराती ब्राह्मण श्रीचन्द्र द्वारा चम्पावत छोड़ बारामंडल की ओर प्रस्थान इतिहास इंगित करता है कि बाह्य ब्राह्मण का अप्रत्यासित  घटना नहीं अपितु कर्मकांडी व विद्वान ब्राह्मणों को जनता बसाती रहती थी।
        मंदिरों के रखरखाव  मंदिर बनाने की संस्कृति में ह्रास ही हुआ होगा।  कत्युरी मन्दिरों का शासन के ताम्रपत्र , शिलालेखों में उल्लेख से साफ़ संकेत मिलते हैं कि इन मन्दिरों का प्रबन्धन नही किया गया और धार्मिक पर्यटन में गिरावट ही रही .
      युद्ध का सीधा अर्थ है कि बाहर से भी सैनिकों को भर्ती किया जाता  रहा होगा।
 



Copyright @ Bhishma Kukreti   13/3 //2018 



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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  (कुमाऊं का इतिहास ) -part -10
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रूद्र चंद शासन में उत्तराखंड पर्यटन विकास

Role of Rudrachand in Uttarakhand Tourism Development
(  चंद शासन में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -41

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  41                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--146 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 146 

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  ऐतिहासिक दृष्टि से किरात चंद (1500 -1505 ) ने छोटे छोटे प्रजा हितकारी कत्यूरी राजाओं को हराया।  प्रताप चंद (1506 -1511 ) के राज्य में कोई विशेष घटना उल्लेख नहीं मिलता है। भीष्म चंद (1511 -1559 ) के शासन में इस्लाम शाह का क्षेत्रीय सेनापति खवानखां द्वारा कुमाऊं में आश्रय  लेने की घटना , डोटी में डोटी राजा के  विरुद्ध विद्रोह व डोटी  राजा का जंवाई बाली  कल्याण चंद द्वारा विद्रोह समाप्ति , खस  विद्रोह व भीष्म चंद की हत्या महत्वपूर्ण घटनाएं हैं।
  बाली कल्याण चंद (1555 -1565 ) शासन काल में गंगोली राज पर चंद अधिकार , सौर में पराजय , दानपुर विजय महत्वपूर्ण घटनाये हैं ही सबसे महत्वपूर्ण घटना चम्पावत से अल्मोड़ा राजधानी निर्माण है।
 रुद्रचंद (1565 -1597 ) के शासन में कई घटनाये इतिहास व पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।  रुद्रचंद शासन में भाभर तराई में मुगल सेना या उनके सूबेदारों के छापे जारी रहे कभी चंद अधिकार तो कभी मुस्लिम अधिकार चलता रहा।  रुद्रचंद ने पुरुषोत्तम पंत की सहायता से सीरा पर जीत प्राप्त की। तराई में स्थायी प्रशासन -प्रबंध करने वाला प्रथम कुमाऊं नरेश हुआ। रुद्रचंद का गढ़वाल नरेश से भी भिड़ंत हुयी और उसे हार का सामना करना पड़ा।

        1500 से 1599 तक कुमाऊं में पर्यटन

  नाथपंथ साधुओं का भ्रमण ---किराती चंद व नागनाथ स्वामी जनश्रुति से स्पष्ट  है कि कुमाऊं -गढ़वाल में नाथ पंथी साधू भर्मण करते थे। नागनाथ की समाधि व् मंदिर चम्पावत में होना स्पष्ट प्रमाण है।

 चम्पावत से अल्मोड़ा राजधानी स्थानांतर - बाली कल्याण चंद द्वारा चम्पावत से अल्मोड़ा राजधानी स्थानांतर किया।  अल्मोड़ा में नया प्रासाद का निर्माण हुआ।  ब्राह्मण मंत्रियों  , राजपूत सेनाधिकारी -सैनिकों व मंत्रियों, खस राजपूतों हेतु भवन निर्माण हुए व अन्य कर्मिकों हेतु भी भवन आदि निर्माण हुए।  राजधानी स्थानांतर  ने पर्यटन के कई नए आयाम खोले। विभिन्न तकनीत विशेषज्ञ ओड , सल्ली  , कर्मी अल्मोड़ा आये होंगे व कई पर्यटनोगामी कार्य हुए होंगे।

बालेश्वर मंदिर निर्माण - रामदत्त साधु के परामर्श अनुसार रूद्र चंद ने खुदाई से प्राप्त बड़ी महादेव की मूर्ति बालेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठ की।  राम दत्त को मंदिर का पुजारी बनवाया।  आस पास के गाँवों के प्रत्येक किसान से मंदिर प्रशासन -पूजा प्रशासन हेतु प्रति वर्ष  एक एक नाळी देने का आदेश दिया गया।  रामदत्त की समाधि बालेश्वर मंदिर में बताई जाती है।  पर्यटन दृष्टि से मंदिर प्रशासन प्रबंध कार्य स्तुतिय है।
 
राजपूतों की बसाहत -रुद्रचंद ने कत्यूरी या खस शासित क्षेत्रों में कभी बाहर से आये राजपूतों -ब्राह्मणों को बसाया।  राजपूतों व ब्राह्मणों को खस बाहुल्य क्षेत्रों में बसाने से एक नए पर्यटन के द्वार खुले।  जब कभी इस तरह की बसाहत शुरू होती है तो प्रवासी बहुत समय तक अपने  मूल क्षेत्र में शादी ब्याह व अन्य रिस्तेदारी निर्वाहन हेतु पर्यटन अवश्य करता है और पर्यटन के नए अवसर खुलते जाते हैं।
 

 बादशाह से रुद्रचंद मिलन - तारीख -ए -बदाउनी  (भाग  -5 , पृ  . 541 ) व जहांगीर नामा (पृ 288 )  से आकलन होता है कि भाभर तराई  में शांति व अपने अधिकार हेतु रूद्र चंद बादशाह अकबर से लाहौर में मिला था।  साथ में कई वस्तुएं भेंट में ले गया था।  रूद्र चंद ने बीरबल को अपना पुरोहित बनाया।

   बीरबल के वंशज चंद वंश समाप्ति तक राजाओं के पास दक्षिणा लेने आते थे। बीरबल वंशजों के अल्मोड़ा आने से स्पस्ट है कि बीरबल वंशज कुमाऊं छवि वृद्धि ही करते रहे थे।

       

              कूटनीतिज्ञ संबंध का स्थान छवि विकास में महत्वपूर्ण स्थान


  किसी भी स्थान का दूसरे देस या स्थान से कूटनैतिक संबंध या रिस्तेदारी संबंध स्थान छवि हेतु महत्वपूर्ण कारक होता है।  आज भी पधानों या थोकदारों के गाँवों से संबंध स्थापित करने की इच्छा द्योतक है कि स्थान छवि हेतु कूटनीतिज्ञ संबंध युद्ध से अधिक प्रभावशाली होते हैं। रुद्रचंद काल से कुमाऊं अकबर काल से मुगल जागीर में शामिल हुआ  ।

 

   अल्मोड़ा में नया प्रासाद - रुद्रचंद ने मुगलों के कई महल देखे।  उन्ही की तर्ज पर रुद्रचंद ने अल्मोड़ा में नया महल निर्माण किया।  स्पस्ट है कि कुछ तकनीक व संस्कृति मुगल विशेषज्ञों से भी प्राप्त हुआ होगा।  रुद्रचंद द्वारा लाहौर भ्रमण से कुमाऊं को कई नई तकनीक, फैशन  व रचनात्मक विचार भी मिले होंगे। पर्यटन विपणन के  निर्णय कर्ताओं को अवश्य ही विदेश भ्रमण करना चाहिए।


 अल्मोड़ा में मंदिर निर्माण -रुद्रचंद ने अपने पिता के राजभवन के स्थान पर देवी व भैरव मंदिर निर्माण किया।  रुद्रचंद ने जागेश्वर व केदारेश्वर मंदिरों का जीर्णोद्धार भी किया।


  संस्कृत प्रोत्साहन याने आयुर्वेद प्रोत्साहन - रुद्रचंद को 'स्मृति कौस्तुभ ' में संस्कृत का आश्रयदाता बताया गया है।  कुमाऊं के पंडित बनारस व कश्मीर के पंडितों से टक्क्र लेते थे।  स्वयं रुद्रचंद ने चार पुस्तकों की रचना की।  पंडितों का कुमाऊं में आना जाना शिक्षा , चिकित्सा शास्त्र विनियम व चिकित्सा पर्यटन विकास के संकेत देता है।


      ब्राह्मणों के पूरे कुमाऊं में स्थानांतर से आयुर्वेद प्रसार


   राजनैतिक दृष्टि से चंद राजा विशेषतः रूद्र चंद ने जब भी कोई कत्यूरी या खस राज जीता वहां राजपूत व ब्राह्मणों  (जो कभी  पलायन कर कुमाऊं आये थे ) को बसाया।  ब्राह्मणों के बसने से चरक श्रुसुता आयुर्वेद हर क्षेत्र में प्रसारित हुआ। इन घटनाओं ने चिकित्सा पर्यटन विकास किया।

 

     गढ़वाल कुमाऊं की ख्याति


सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध व सत्रहवीं सदी के पूर्वार्ध में गढ़वाल -कुमाऊं की छवि एक समृद्ध भूभाग की थी।  यूरोपियन व्यापारी विलियम फिच का यात्रा संस्मरण व फरिश्ता द्वारा अपने इतिहास  (समाप्ति 1633 ) दोनों में इस भूभाग को समृद्ध भूभाग माना गया है। पर्यटन दृष्टि से दोनों साहित्य महत्वपूर्ण साहित्य माने जाएंगे। 


Copyright @ Bhishma Kukreti  14 /3 //2018 



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                                    References

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