साथियो,
उत्तराखण्ड के लोक संगीत का इतिहास बहुत समृद्ध रहा है। पर्वतीय लोक संस्कृति में लोक गायन एक महत्वपूर्ण अंग है, लोक गायन प्रकृति और समाज की प्रवृत्तियों को दर्शाता है। उत्तराखण्ड में विशेष रुप से दो प्रकार का लोक गायन प्रचलित है, पहला भड़ गायन और दूसरा ऋतु गायन। भड़ गायन का संबंध आस्था और विश्वास से जुड़ा है, इसमें स्थानीय देवी-देवताओं और वीर पुरुषों के महातम्य को गाया जाता है तथा यह वीर रस में गाया जाने वाला गायन है।
ऋतु गायन में प्रकृति की सुन्दरता, श्रृंगार रस, विरह-प्रेम आदि का वर्णन होता है। उत्तराखण्ड में अनेकों ऐसे लोक गायक हुये हैं, जिन्होंने उत्तराखण्डी लोक गायन को एक नई पहचान दी। लोक गायकी और लोक संगीत के लिये उन्होंने ऐसे अविस्मरणीय कार्य किये, जिससे वे इस क्षेत्र में मील के पत्थर सबित हो गये।
आइये चर्चा करते हैं ऐसी ही कुछ विभूतियों की....!