Folk Musical Instruments of Garhwal
ढोल सागर में वर्णित गढ़वाल के वाद्य यंत्र
भीष्म कुकरेती
ढोल सागर गढवाल के दर्शन शास्त्र का एक महत्व पूर्ण साहित्य है. इसे अबोध बन्धु बहुगुणा ने आदि गद्य माना है , (जिस सिद्धांत मै विरोध करता आया हूँ ) . सातवी सदी से बारहवीं सदी तल नाथपंथियों के सिद्धों ने नाथपंथी साहित्य गढ़वाल मंडल को दिया . ढोल सागर भी नाथपंथी साहित्य है और शायद बारहवीं या तेरवीं सदी में इसका रचनाकाल हो. जैसे के हर गढवाली नाथपंथी साहित्य का चरित्र है ढोल सागर भी ब्रज भाषा में है और इसमें गढवाली शब्द नाममात्र के हैं . गढवाली शब्दों से अधिक शब्द संस्कृत के हैं .
ढोल सागर शिवजी और पार्वती संवाद में है एवम विज्ञानं भैरव शैली में है
ढोल सागर में वाद्य यंत्रों का भी वर्णन है :
I पारबती वाच II अरे आवजी छतीस बाजेंत्र बोलिजे I
ओम प्रथमे I जिव्हा बाजत्र बाजे २ शंख, ३ जाम, ४ ताल, ५ डंवर ६ जंत्र ७ किंगरी ८ डंड़ी ९ न्क्फेरा १० सिणाई ११ बीन १२ बंसरी १३ मुरली १४ विणाई १५ बिमली १६ सितार १७ खिजरी १८ बेण १९ सारंगी २० मृदंग २१ तबला २२ हुडकी २३ डफड़ी २४ श्रेरी २५ बरंग (२६ से ३१ का वृत्तांत भी है ) ३२ रणडोंरु ३३ श्राणे ३४ नगारा ३५ रेटि (रौंटळ/रौंटी) ३६ ढोल II it ढोल की उतपति बोली जे रे आवजी II
पंडित इश्वरी दत्त थपलियाल द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में जो छह बाडी यंत्र नही हैं वे शायद झांझ, थाली , चिमटा, सींग, घुंघरू ,होंगे
इससे एक बात पता चलती है कि मुस्क्बाजा ब्रिटिश राज के देन है . हारमोनियम का भी वर्णन ढोल सागर में नही है ( सन्दर्भ : सेमलटी, १९९० )
सन्दर्भ : इश्वरी दत्त थपलियाल १९१३/१९३२ ढोल सागर , बद्रीकेदारेश्वर प्रेस , पौड़ी
अबोध बंधु बहुगुणा , १९७५ गाड मटयकी गंगा
सुरेन्द्र दत्त सेम्लटी , १९९०, गढ़वाल के वाद्य यंत्र , गढवाल की जीवित विभूतियाँ , पृष्ठ २७६ -२८०
Jugraj Rayan
Regards
Bhishma Kukreti
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