Author Topic: Musical Instruments Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के लोक वाद्य यन्त्र  (Read 80619 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
 ढोल सागर में ढोल के ३९ तालों का वर्णन और संगीत लिपि
   (केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का गढवाल के लोक गीतों  के संरक्षण में योगदान, भाग -१  )
                                भीष्म कुकरेती
  गढवाल के लोक साहित्य को अक्षुण रखने के लिए कई विद्वानों व गुनी जनों का अथक योगदान है
   इनमे से स्व केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का योगदान कहीं अलग भी है . केशव अनुरागी ने ढोल बाडन की शैली को
देहरादून में प्रायोगिक धरातल में प्रचारित व प्रसारित किया . केशव जी राम लीला या अन्य कार्यकर्मों में ढोल बाडन ही नही करते थे अपितु
कईयों को ढोल बाडन का प्रशिक्षण भी देते थे. मुझे अनुरागी जी  द्वारा  ढोल बादन सुनने का अवसर चुखुवाले की गढ़वाली रामलीला में प्राप्त हुआ है
केशव जी ने कई लोक गीतों की स्वार लिपि भी तैयार कीं हैं और श्री शिवा नन्द नौटियाल जी ने कई लिपियों को अपने ग्रन्थ में स्थान भी दिया है
यथा एक उधाह्र्ण है जिसमे केशव जी ने ढोल सागर के चैती प्रभाती में ढोल दमाऊ युगल बंदी की स्वर लिपि . ढोल में ३९ टाल हैं व दमाऊ में तीन
१       २      ३       ४      ५          ६       ७   I    ८      ९       १०     ११     १२       १३     १४   
झे      नन  तू      झे      नन       ता      -     I          झे     गा     तु       झे      ननु     ता     --
 ०
 १५    १६    १७    १८       १९       २०      २१   I    २२    २३   २४    २५       २६      २७       २८
त       ग    ता     झे       गु       त        -     I     झे     गा    झे    न्ह     न        ता       --
२९     ३०    ३१     ३२       ३३      ३४      ३५        ३६      ३७    ३८    ३९     I     १     २     ३   
ता      -      क      झे       ना      तु        झे         गा      ---    ता     --    I      झे    ननु    तु
 यह लोक गीत चैत महीने में बजाया जाता है जिसे चैत प्रभाती कहते हैं चैत संगरांद   के दिन औजी अपने ठाकुरों के यहाँ घर घर जाकर सुबह इस्ताल पर ढोल दमाऊ बजाते हैं
इस पारकर हम पाते हैं की केशव अनुरागी ने आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत छोडि है . प्रवास में जब अब प्रवासी इन ढोल बजाना नही जानते हैं वे इन सन्गीएत लिपियों के बल पर शी तरह से ढोल-दमाऊ बजा सकते हैं
हमारा नमन स्व केशव अनुरागी को और डा शिवा नन्द  नौटियाल को जिन्होंने हमारी धरोहर को बचाने में अतुल्य योगदान दिया
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती
लिपि अधिकार  @  श्रीमती केशव अनुरागी

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
                 Garhwali Folk Musical Instruments of Dalya Guru of Nath Sect
                    गढवाल के नाथ संप्रदाय के दो मुख्य लोक वाद्य यंत्र
                       प्रस्तुति : भीष्म कुकरेती
      गढवाल में कई लोक संगीत वाद्य यंत्र मिलते हैं जो कि सदियों से गढवाल में बजाये जाते हैं .
 गढवाल में नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव सातवीं सदी से प्रारम्भ हो चुका था और ड़ळया या अन्य नाथ सम्प्रदायी गुरु भी वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हैं .
इनमे ड़ळया गुरुओं के दो मुख्य वाद्य यंत्र हैं-
१- किंगरी अथवा गोपीयंत्र : किंगरी को सारगी या चिंकारा भी कहते हैं. यह एक तन्तु वाद्य है जिसे धनुष के आधार व तन्तु की डोर पर महीन लकड़ी को छेड़ कर बजाया जाता है डा. परमेश्वरी लाल गुप्त ने इसे 'किन्नरी वीणा ' अथवा 'चान्दाली वीणा' नाम भी कहा है . डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे सारंगी यंत्र नाम दिया है . नाथपन्थी इस वाद्य को 'गोपी यंत्र ' कहते हैं क्योंकि गुरु गोपी चंड  ने सारगी वाद्य यंत्र की सहायता से नाथ संप्रदायी गीत गाये थे.
२- सिंगी : सिंगी शब्द  श्रिंग शब्द का तद्भव रूप है . यह नाथ साधुओं का पूजा में काम आने वाला महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है . हिरन की सींग से बने यंत्र इस नत्र को फ्फोक कर बजाया जाता है व यह यंत्र जनेऊ पर बंधा होता है. नाथपंथी साधू इसे प्रात कालीन , संध्या  कालीन संध्या बंदन व भोजन पूर्व संध्या वदन के समय बजाते हैं . अतः कह सकते हैं कि सिंगी नाथपंथियों का एक धार्मिक आख्यान का शुभ वाद्य यंत्र है
इसके अतिरिक्त अन्य नाथ सम्प्रदाए सिद्ध तुरही, ढोल, दमाऊ, डमरू, शंख, झांझ, कांसी कि थाळी आदि भी प्रयोग करते हैं
 सन्दर्भ : डा. विष्णु दत्त कुकरेती , १९८३ , नाथ पन्थ : गढ़वाल के परिपेक्ष में , पृष्ठ ५०-५३

Jugraj Rayan
Regards
Bhishma Kukreti
 

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
 Folk Musical Instruments of Garhwal               
                 ढोल सागर में वर्णित गढ़वाल के वाद्य यंत्र
                         भीष्म कुकरेती
           ढोल सागर गढवाल के दर्शन शास्त्र का एक महत्व पूर्ण साहित्य है. इसे अबोध बन्धु बहुगुणा ने आदि गद्य माना है , (जिस सिद्धांत मै विरोध  करता आया  हूँ ) . सातवी सदी से बारहवीं सदी तल नाथपंथियों के सिद्धों ने नाथपंथी साहित्य गढ़वाल मंडल को दिया . ढोल सागर भी नाथपंथी साहित्य है और शायद बारहवीं या तेरवीं सदी में इसका रचनाकाल हो. जैसे के हर गढवाली नाथपंथी साहित्य का चरित्र है ढोल सागर भी ब्रज भाषा में है और इसमें गढवाली शब्द नाममात्र के हैं . गढवाली शब्दों से अधिक शब्द संस्कृत के हैं .
  ढोल सागर शिवजी और पार्वती संवाद  में है एवम विज्ञानं भैरव शैली में है
ढोल सागर में वाद्य यंत्रों का भी वर्णन  है  :
I पारबती वाच II अरे आवजी छतीस बाजेंत्र बोलिजे I
ओम प्रथमे I  जिव्हा बाजत्र बाजे २ शंख, ३ जाम, ४ ताल, ५ डंवर ६ जंत्र ७ किंगरी ८ डंड़ी ९ न्क्फेरा १० सिणाई ११ बीन १२ बंसरी  १३ मुरली १४ विणाई  १५ बिमली १६ सितार १७ खिजरी  १८ बेण  १९ सारंगी २० मृदंग २१ तबला २२ हुडकी २३ डफड़ी २४ श्रेरी २५ बरंग (२६ से ३१ का वृत्तांत  भी है ) ३२ रणडोंरु ३३ श्राणे   ३४ नगारा ३५ रेटि (रौंटळ/रौंटी) ३६ ढोल II it ढोल की उतपति बोली जे रे आवजी II
  पंडित इश्वरी दत्त थपलियाल द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में जो छह बाडी यंत्र नही हैं वे शायद झांझ, थाली , चिमटा, सींग, घुंघरू ,होंगे 
इससे एक बात पता चलती है कि मुस्क्बाजा ब्रिटिश राज के देन है . हारमोनियम का भी वर्णन ढोल सागर में नही है ( सन्दर्भ : सेमलटी, १९९० )
सन्दर्भ : इश्वरी दत्त थपलियाल १९१३/१९३२ ढोल सागर , बद्रीकेदारेश्वर प्रेस , पौड़ी
अबोध बंधु बहुगुणा , १९७५ गाड मटयकी गंगा
सुरेन्द्र दत्त सेम्लटी , १९९०, गढ़वाल के वाद्य यंत्र , गढवाल की जीवित विभूतियाँ , पृष्ठ २७६ -२८०
 
 


Jugraj Rayan
Regards
Bhishma Kukreti



-


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


                              ढोल सागर का रहस्य भाग --१
                              प्रस्तुतिकरण : भीष्म कुकरेती
                   मूल संकलन स्रोत्र : पंडित ब्रह्मा  नंद  थपलियाल, श्री बदरीकेद्दारेश्वर  प्रेस , पौड़ी , १९१३ में शुरू और १९३२ में जाकर प्रकाशित
                    ( आभार स्व. अबोध बंधु बहुगुणा जन्होने इसे गाड म्यटेकी   गंगा में  आदि गद्य के नाम शे छापा, , स्व. केशव अनुरागी जिन्होंने ढोल सागर का महान संत  गोरख नाथ के  दार्शनिक सिधान्तों के आधार पर व्याख्या ही नही की अपितु ढोल सागर के कवित्व का संगीत लिपि भी प्रसारित की  , , स्व शिवा नन्द नौटियाल जिन्होंने ढोल सागर के कई छंद को गढ़वाल के नृत्य-गीत पुस्तक में सम्पूर्ण स्थान दिया, एवम   बरसुड़ी  के डा विष्णुदत्त कुकरेती एवम डा विजय दास ने ढोल सागर की व्याख्या की है )
            श्रीगणेशाय   नम: I श्री ईश्वरायनम : i श्रीपारत्युवाच  i ऊँ झे माता पिता गुरुदेवता को आदेसं ऊँ धनेनी संगति वेदति वेदेतिगगन ग्रीतायुनि आरम्भे कथम ढोलीढोल  की सीखा उच्चते i कथर बिरथा फलम फूलं सेमलं सावरीराखम   खड़कं   पृथ्वी की साखा कहाऊं पजी पृथ्वी कथभूता विष्णु जादीन कमल से उपजे ब्रमाजी तादिन कमल में चेतं विष्णु जब कमल से छूटे तबनहि  चेतं i ओंकार शब्द भये चेतं II  अथ ऊंकारशब्दलेखितम   II यदयाताभ्यां  मेते वरण गाद्यामह गिरिजामाप्रं आतेपरत्या हार करी तपस्या म्ये श्रिश्थी के रचते I सातद्वीप  नौखंडा i कौन कौन खंड i हरितखंड I भरतखंड २ भीम ० ३ कमल ४ काश्मीरी ० ५ वेद ० ६ देवा ० ७ हिरना ८ झिरना ० ९ नौखंड बोली जेरे आवजी अष्टपरबत बोली जेरे आवजी मेरु परबत I सुमेरु २ नील ० ३ हिम ४ हिंद्रागिरी ०५ आकाश ० ६ कविलाश ०७ गोबर्धन ०८ अष्टपरबत बोली जे गुनिजनम प्रिथी में उत्पति कौन कौन मंडल पृथ्वी ऊपरी वायुमंडल वायु मंडल ऊपरी तेजमंडल तेजमंडल ऊपरी मेघमंडल मेघमंडल ऊपरी गगनमंडल गगनमंडल ऊपरी   अग्निमंडल अग्निमंडल ऊपरी हीनमंडल  हीनमंडल ऊपरी सूर्य्यमंडल सूर्य्यमंडल ऊपरी चन्द्रमंडल I  तारामंडल I तारामंडल २ सिद्ध ० ३ बुद्ध ०४ कुबेर ०५ गगन ०६ भगति ० ७ ब्रम्हा ०८ विष्णु ०९ शिव ०१० निरंकारमंडल II  वैकुंटमंडल इतिपृथ्वी  की शाख बोलीजरे गुनी जनम बोल रे ढोली  कथम ढोल की शाखा I  उतब उतपति बोली जा रे आवजी I  इशवरोवाच I I  अरे आवजी कौन भूमि ते उत्पनलीन्यों  कौन भूमिते आई कौन भूमि तुमने गुरुमुख चेतीलीन्या कौन भूमिते तुम समाया I I पारव्त्युंवाच I I
अरे गुनीजन जलश्रमिते उत्पनलीन्या अर नभमिते आया अनुभुमिते गुरुमुख चेतीलीन्या सूं भूमितेसमाया I I  श्रीईश्वरीयउवाच I I  अरे आवजी कौन द्वीपते  ते उत्पन्न ढोल कौन उत्पन्नदमाम I   अरे आवजी कौन द्वीपते कनकथरहरीबाजी I I  कंहाँ की  चारकिरणे बावजी कौन द्वीपते मेंऊँ थरहरीबाजी कौन द्वीपते सिन्धुथरहरी बाजी कहाँ की चार चामणेबाजी  कहाँ की चार चरणेबाजी कहाँ की चारबेलवाल बाजी   I श्री पारबत्युवाच I I अरे आवजी ढोलं  द्वीपते उत्पन्न ढोलं  ददीद्वीपते उत्पन्न दमामं  कनक द्वीपते कनक थरहरी बाजी किरणो मंडचारचासणेलते चार किरणी  बाजे सिन्धुद्वीपते सिन्धु थरहरीवाजी नंदुथरहरीते सिंदुथरहरीवाजी चौदिशा की चार चामणे बाजी चारचासणे की चारचासणेबाजी की चार बेलवाले बाजी I श्री इश्वरीवाच  I I  अरे आवजी ढोल किले ढोल्य़ा   किले बटोल्य़ा किले ढोल गड़ायो किने  ढोल मुडाया , कीने ढोल ऊपरी कंदोटी चढाया अरेगुनी जनं ढोलइश्वर ने ढोल्य़ा पारबती ने बटोल्या विष्णु नारायण जी गड़ाया चारेजुग ढोल मुडाया ब्रह्मा जी ढोलउपरी कंदोटी चढाया I श्री इश्वरोवाच I I अरे आवजी कहो ढोलीढोल  का मूलं कहाँ ढोली ढोल कको शाखा कहाँ ढोली ढोली का पेट कहाँ ढोली ढोल का आंखा II श्री पारबत्युवाच II  अरे आवजीउत्तर ढोलीढोल का मूलं पश्चिम ढोली ढोल का शाखा दक्षिण ढोल ढोली का पेट पूरब ढोल ढोली का आंखा I  श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कस्य पुत्रं भवेढोलम  कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रं भवेनादम कस्यपुत्रं गजाबलम
 ii श्री पारबत्युवाच II  अरे आवजी ईश्वरपुत्रभवेढोलं ब्रह्मा पुत्र चंडोरिका पौनपुत्र भवेनाद  भीमपुत्रं गजाबल  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी क्स्य्पुत्रभवेढोल कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रभवेपूड़मकस्यपुत्रं  कंदोंटिका कस्य पुत्र कुंडलिका कस्य पुत्र च कसणिका   शब्द ध्वनीकस्यपुत्र  चं कस्यपुत्र गजाबलम   ii श्री पारबत्युवाच II  अरे गुनीजनम आपपुत्र भवे ढोलम ब्रह्मा पुत्र च ड़ोरिका विष्णु पुत्रं  भवे पूडम कुंडली नाग पुत्र च कुरूम  पुत्र कन्दोटिका गुनी जन पुत्रं च कसणिका शब्दध्वनिआरम्भपुत्रं च भीम पुत्रं च गजाबल  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे ढोलीढोल का वारा सरनामवेलीज्ये अरे गुनी जन श्रीवेद I सत २ पासमतों ३ गणेस ४ रणका  ५ छणक ६  बेचीं ७ गोपी ८ गोपाल ९ दुर्गा १० सरस्वती ११ जगती १२ इतिवारा शर को ढोल बोली जारे आवजी ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी कस्यपुत्रं भवेनादम  कस्यपुत्रं भवेडंवा कस्यपुत्रं कंदोटी कस्य पुत्रं जगतरां  ii  पारबत्युवाच II  अरे आवजी आपपुत्रं भवेनादं नाद्पुत्र च ऊंकारिका ऊंकारपुत्र भवे कंदोटिका कंदोटीपुत्रं जगतरा  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी आण का कौन गुरु है I कौन है बैठक की माया लांकुडि का कौन गुरु है  i   कौन गुरु मुख तैने ढोल बजाया i पारबत्युवाच ii अरे गुनीजन आण का गुरु आरम्भ i धरती बैठकर की माया I लांकूडी का गुरु  हाथ है गुरुमुख मैंने शब्द बजाया ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी कौन तेरा मूलम कौन तेरी कला कौन गुरु चेला कौन शब्द ल़े फिरता हैं ह्दुनिया मिलाया I पारबत्युवाच II अरे आवजी मन मूल मूलं पौन कला शब्द गुरु सूरत चेला सिंहनाद शब्दली फिरा में दुनिया में लाया I ईश्वरोवाच II अरे आवजी कौन देश कौन ठाऊ कौन गिरी कौन गाऊं I पारबत्त्युवाच  II  अरे गुनी जन सरत बसंत देश धरती है मेरी गाँव अलेक को नगर ज्म्राज्पुरी बसन्ते गाँव I ईशव्रोवाच II  अरे आवजी तुम ढोल बजावो नौबत बाजि शब्द बजावो बहुत अनुपम कौन है शब्द का पेट कौन है शब्द का मुखम I पार्बत्यु वाच II  अरे गुनी जन मै श्री ढोल बजाया नौबत वाली शब्द बजाया बहू अनूप I  ज्ञान है शब्द का पेट बाहू है शब्द का मुखम II ईश्वरोवाच II  अरे आवजी कौन शब्द का रूपम I  कौन शब्द का है शाखा I शब्द का कौन विचार  I  शब्द का कौन आँखा I   शब्द का कौन मुख डिठ
I  टोई पूछ रे दास यो शब्द बजाई कहाँ जाई बैठाई I पार्बत्युवाच I I  अरे गुनी जन शब्द ईशरी रूपं च शब्द की सूरत शाखा I  शब्द को मुख विचारम शब्द का ज्ञान है आँखा शब्द का गुण है मुख डिठ टोई मैई कहूँ रे गुनी जन यो शब्द बजायी हिरदया जै बैठाई I ईश्वरोवाच I I अरे आवजी तू कौन राशि छयी I  कौन राशि तेरा ढोलं I  कसणि कौन राशि छ I कन्दोटि कौन राशि छ I  कौन राशि तेरो दैणा हाथ की ढोल की गजबलम I  पारबत्युवाच I I  अरे आवजी शारदा उतपति अक्षर प्रकाश I I  अ ई उ रि ल्रि ए औ ह य व त ल गं म ण न झ घ ढ ध  ज ब ग ड द क प श ष स इति अक्षर प्रकाशम I  इश्वरो वाच I I  अरे आवजी आवाज कौन रूपम च I कौन रूप च तेरी धिग धिग धिगी ढोलि तू कौन ठोंऊँ छयी कौन ठाउ च तेरी ढोल I  ईश्वरोवाच I I अरे गुनी जन अवाज मेघ रूपमच गगन रूपम च मेरी धिगधिगी ढोली मेई सिंघठाण छऊ गरुड़ ठाण च मेरी ढोल मारी तो नही मरे अण मरी तो मरी जाई I  बिन चड़कादिनी फिरां बिन दंताऊ अनोदिखाई इह्तो i मुह मरिये कथं रे आवजी I पारबत्यु वाच I  अरे आवजी ढोल का बारासर कौन कौन बेदंती I  प्रथम वेदणि कौन वेद्न्ति दूत्तिया वेद्न्ति कौन वेद्न्ति तृतिया ३   कौन चतुर्थी ४ पंचमी ५ षष्ठी ६ सप्तमी ७ अष्टमी ८ नवमे ९ दसम १० अग्यार वै वेदणि ११ बार वै वेदणि १२ I  ईश्वरोवाच I I अरे गुनीजन प्रथमे वेदणि ब्रह्मा वेद्न्ति ० द्वितीय ० विष्णु ० ५ त्रोतीय देवी ० चतुर्थ ० महिसुर ४ पंचमे ० पांच पंडव ५ ख्स्टमें  ०  चक्रपति  ६  सप्तमे वेदणि सम्बत धूनी बोलिज्ये ० ७ अष्टम अष्टकुली नाग ८ नवे ० नव दुर्गा वेद्न्ति ९ दसमें वेदणि देवी शक्ति वेद्न्ति I एकादसी वेदणि देवी कालिकाम वेद्न्ति बारों वेदणि देवी पारबती देवी II  इति पाराशर ढोल की वेदणि बोलिज्ये I  ईश्वरोवाच II अरे आवजी ढोल की क्रमणि का विचार बोलिज्ये I  प्रथमे कसणि चड़ायिते क्या बोलन्ती I  द्वितीये २ त्रितये ३ चतुर्थ ४ पंचमे ५ ख्ष्ट्मे ६ सप्तमे ७ अष्टमे ८ नवमी ९ दस्मे १० एकाद्से ११ द्वार्वे १२  i  पारबत्युवाच II  अरे आवजे प्रथमे कसणि चड़ाइते त्रिणि त्रिणि ता ता ता ठन ठन करती कहती दावन्ति ढोल उच्च्न्ते I  त्रितिये कसणि चड़ा चिड़ाइतो त्रि ति तो कनाथच त्रिणि  ता ता धी धिग ल़ा धी जल धिग ल़ा ता ता अनंता बजाई तो ठनकारंति खंती दावम ति ढोल उचते I चौथी कसणि चड़ाइत चौ माटिका चैव कहन्ति दागंति ढोल उचते I पंचमे कसणि चड़ इतों पांच पांडव बोलन्ति कहन्ति दावन्ति ढोल उचते   I  खषटमे कसणी चड़ायितो छयी चक्रपति बोलंती कहन्ति  दावन्ति  ढोल उचते I सप्तमे कसणी चड़ाइतो सप्त धुनी बोलिज्यौ कहन्ति गावन्ति ढोल उचते I अष्टमे कसणी चड़ाइता अष्टकुली नाग बोलन्ती क० ढो ० ढाल उचते I  नवमे कसणी चड़ाइतो निग्रह बोलन्ती क० ढा ० ढो ० उ ० I  दसमी कसणी चड़ाइतो दुर्गा बोलन्ती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i  अग्यारे क ० च ० देवी कालिका बोलन्ती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i  बारों देवी पारबती बोलंती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i   इति बारो कसणे का विचार बोली जेरे गुनीजन II  अरे आवजी क्योंकर उठाई तो ढोल क्योंकरी बजाई तो ढोल फिरावती ढोलम क्योंकरी  सभा में रखी ढोलम I इश्वरो वाच Ii अरे गुनी जनम उंकार द्वापते उठाई तो ढोल सुख म बजाई तो ढोल I सरब गुण में फेरे तो ढोल लान्कुड़ी शब्द ते राखऊ सभा में ढोल I पारबत्यु वाच II प्रथमे अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I द्वितीये  अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I तृतीय अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I चतुर्थ अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I पंचम अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I I  इश्वरो वाच II  अरे आवजी प्रथमे अंगुळी में ब्रण बाजती I  दूसरी अंगुली मूल बाजन्ती I तीसरी अंगुली अबदी बाजंती I चतुर्थ अंगुली ठन ठन ठन करती I झपटि झपटि बाजि अंगुसटिका  I  धूम धाम बजे गजाबलम I  पारबत्यु वाच I  अरे आवजी दस दिसा को ढोल बजाई तो I पूरब तो खूंटम . दसतो त्रि भुवनं . नामाम गता नवधम  तवतम ता ता तानम तो ता ता दिनी ता दिगी ता धिग ता दिशा शब्दम प्रक्रित्रित्ता . पूरब दिसा को सुन्दरिका  I बार सुंदरी नाम ढोल बजायिते  I  उत्तर दिसा दिगनी ता ता ता नन्ता झे झे नन्ता उत्तर दिसा को सूत्रिका बीर उत्तर दिसा नमस्तुत्ये I इति उत्तर दिसा शब्द बजायिते I
           अग्न्या वायव्या नैरीत्मच ईशानछ तै माशी प्रतक विवाद शब्द दक्षिण दिशा प्रकीर्तित्ता I दक्षिण दिसा को वाकुली बीर वकुली नाम ढोल बजायिते I  दक्षिण दिसा नमोस्तुते I इति दक्षिण दिसा बजायिते I पश्चिम दिसा झे झे नन्ता ता ता नन्ता छ बजाइते पश्चिम दिसा प्रक्रीर्तता : II को झाड खंडी बीर झाड खंड नामा ढोल बजाइते पश्चिम दिस नमोस्तुते इति पश्चिम दिसा : II अथ बार बेला को ढोल बजाइता II  सिन्धु प्रातक रिदसम अहम गता जननी कं चैव  एवम प्रात काल ढोल बजाइते I प्रा प्रा प्रवादे चैत्र पुर कालं सवेर कं जननी क च व प्रराणी नाम ढोल बजाइते I मध्यानी मध्यम रूपम च सर्वरूपी परमेश्वर कं जननी कं चैत्र एवम मध्यानी ढोल बजाइते I  लंका अधि सुमेरु वा चैत्र रक्तपंचई शंकरो I  सूं होरे आवजी चाँद सूर्य्य  का  कहाँ निवासं कहाँ समागता सुण हो देवी पारबती I  इश्वरो वाच II  अरे आवजी चाँद सूर्य्य पूर्ब मसा सूर्य मंडल निगासा II सुमेरु पर्वत अस्त्नगता II इति बार्बेला को ढोल बजायते II  अथ चार युग को ढोल बजायते I  अरे आवजी
                            ............................. जारी है ........................
         
 

Jugraj Rayan
Regards
Bhishma कुकरेती
Contact 9920066774


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
 The Folk Musical Instruments of Garhwal-Kumaun (Hills of Uttarakhand)
           Presented by Bhishma Kukreti
 Dr Shiva Nanad described the following Folk Musical Instruments in his famous book Garhwal ke Nrity Geet He described how the instruments are  made and who were professional players of those instruments in details.
1- Dhol
2- Damau, Rauntali
3-Daunr Thali (Damru and Thali)
4-Dafli
5-Dholak
6-Hudka ya Hudki
7- Turri or Ransingha
8-Bhainkora
9-Mochhang
10-Bansuri
11- Algoja
12-Nagada
13- Mushakbaaj
14-Sarangi
15-Shankh
bckukreti@gmail.com 


Jugraj Rayan
Regards
Bhishma Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
गढ़वाल -कुमाओं के लोक वाद्य यंत्र -पिंपरी
                             भीष्म कुकरेती
   पिंपरी एक जन वाद्य यंत्र है जो प्रतेक पहाड़ी बनाता है और कभी ना कभी बजाता भि है
१- बांस की पिमरी : बारीक बांस की डंडी/छत्ती  को ऊपरी किनारे को थोड़ा छील कर बनायी जाती है और बजाई जाती है
२-प्याज के पत्तों  की पिंपरी : प्याज के पत्ते के छोटे टुकड़े को फूंक मार कर बजायी जाती है
३- तुरक्यड़  : तोर या अरहर के तिनके की पिंपरी भी बजायी जाति है

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

खीमसिंह रावत

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 801
  • Karma: +11/-0
कुकरेती जी नमस्कार
पीपरी पर मुझे याद आया वो बचपन, जब हम आम की गुठली की पीपरी बनाया करते थे /
आम खाने के बाद गुठली को यो ही बाडा-सगोड़ा में फेंक देते हैं जब उस पर अंकुर आ जाता है तो अंकुर को तोड़ कर  गुठली के बहारी हीस्से को तोड़ कर अन्दर मुलायम हीस्से को किसी खुरदरे पत्थर पाक रगड़ कर पीपरी बनाया करते थे

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
मशकबीन  का पौराणिक सन्दर्भ


मशकबीन को बेगपाइप  भी कहते है,बैगपाइप एक पश्चिमीलोकबाद्यहै। यह मूल रुप से स्काटलेंडका वाद्य यन्त्र है।

बैगपाइप  के
उत्तराखंड प्रान्त में काफी प्रचलित है। यह वहाँ के विभिन्न पारम्परिक समारोहों तथा आयोजनों में बजाया जाता है। स्थानीय बोली में इसका प्रचलित नाम "पाइप" अथवा "बीन-बाजा" है, यह अन्य स्थानीय वाद्य यन्त्रों "ढोल-दमों" के साथ बजाया जाता है। उत्तरांचल में इसके प्रचलन के पीछे अनुमान लगाया जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल  गढ़वाली और कुमाउनी सैनिकों ने इसे प्रचलित किया।



 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22