जागरण प्रतिनिधि, रुद्रप्रयाग: जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत दरमोला में पांडव नृत्य शुरू होने की अनूठी परम्परा है। प्रति वर्ष कार्तिक मास की देव उठावनी एकादशी पर्व पर देव निशाणों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य का शुभारंभ होता है। इन तथ्यों का स्कन्द पुराण एवं केदारखंड में विस्तार से वर्णन मिलता है।
गढ़वाल क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर प्रत्येक वर्ष नवंबर माह से लेकर फरवरी माह तक पांडव नृत्य का आगाज होता है। केदारघाटी का दरमोला एकमात्र ऐसा गांव है, जहां सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व (इस वर्ष 13 नंवबर की पूर्व संध्या) पर स्थानीय ग्रामीण देव निशाणो के साथ मंदाकिनी व अलकनंदा के तट पर गंगा स्नान के लिए पहुंचते हैं। इसके बाद रात्रि जागरण एवं देव निशाणों की चार पहर की पूजा-अर्चना की जाती है। एकादशी पर्व पर सुबह पांच भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, नागराजा, देवी, हित, ब्रहमडुंगी, भैरवनाथ समेत कई नेजा-निशाण एवं स्थानीय लोग यहां स्नान करते हैं। संगम तट पर पूजा-अर्चना एवं हवन के बाद ही देव निशाण अपने गतंव्य के लिए प्रस्थान करते हैं। पांडव खली में देव निशाणों को स्थापित कर इसी दिन से ही पांडव नृत्य का शुभारंभ किया जाता है। इस दौरान नृत्य करने से पूर्व हमेशा मुख्य रूप से पुजारी की ओर से पाडवों के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की अनूठी परंपरा है, जो सदियों से चल रही है। ग्रामीणों का कहना है कि स्वर्ग जाने से पहले भगवान कृष्ण के आदेश पर पाडव अपने अस्त्र-शस्त्र यहीं छोड़ कर मोक्ष के लिए स्वर्गारोहणी की ओर चल दिए थे, इसी लिए यहां के लोग पांडवों के अस्त्रों के साथ नृत्य करते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान नारायण एवं तुलसी का विवाह हुआ था, क्योंकि इस भगवान विष्णु चार महीनों की निद्रा से जागते हैं।
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केदारघाटी के दरमोला गांव में प्रतिवर्ष पांडव नृत्य का आगाज आस्था एवं श्रद्धा के साथ किया जाता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।