सरकार तो सरकार ठैरी, जो मर्जी आये करेगी, ऐसा ही चलेगा और देखना....माधो सिंह, गबर सिंह, बड़ोनी जी, और हमारे कई शहीदों और आन्दोलनकारियों की भूमि में किसी दिन हिटलर के नाम पर भी योजनायें शुरु हो जायेंगी और हमारे लोग अनाम रह जायेंगे।
हमने राज्य बनवाया है, छीनकर, लड़कर, मरकर, अपमान सहकर, लेकिन इसे चलाने वाले हैं चापलूस, जिन्होंने चापलूसी करके ही अपने दिन काटे हैं, तो बूबू इनसे कैसे अपेक्षा करते हो, ये तो उत्तराखण्ड को सिर्फ पैसा छापने वाली मशीन ही जानते हैं, समझते हैं और मानते हैं। इन अज्ञानी लोगों से कैसी आस......।
पहल खुद करो किसी भी सार्वजनिक स्थान का नाम आदि अपने आप ही जनता रख ले.....तब ये शरमाते, मुस्कुराते आयेंगे और उस हस्ती के बारे में किसी से लिखवाकर लायेंगे और गुणगान करेंगे। सत्ता अपने हाथ में लो, कोसने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि ये सब चिकने घड़े हैं और इनका लक्ष्य उत्तराखण्ड का विकास नहीं, अपना विकास है, इनका विजन और मिशन जोड़-तोड़ कर २०१२ की विधानसभा के चुनाव लड़ना और शराब और पैसे के बूते जीतना और फिर मंत्री, लालबत्ती धारी बनने का ही है।
कलयुग, घोर कलयुग।