Author Topic: Gairsain: Uttarakhand Capital - गैरसैण मुद्दा : अब यह चुप्पी तोड़नी ही होगी  (Read 85681 times)

Anil Arya / अनिल आर्य

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प्रवासी उत्तराखंडियों की पहली पसंद बनी ‘गैरसैंण’
सोशल नेटवर्किंग पर गूंजा राजधानी मुद्दा
• लखपत/दीपक बेंजवाल
रुद्रप्रयाग/अगस्त्यमुनि। उत्तराखंड की स्थायी राजधानी कहां बनाई जाए? इस पर लगभग 11 वर्षों से मंथन हो रहा है। आमजन से लेकर सियासी लोगों तक के लिए यह बहस का मुद्दा रहा है। यहां तक कि इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया। आयोग का भी गठन किया गया। लेकिन सवाल अपनी जगह आज भी कायम है। स्थायी राजधानी - देहरादून, गैरसैंण, रामनगर, कालागढ़, या कोई अन्य। गांव के चौपाल से लेकर देहरादून में विधानसभा तक स्थायी राजधानी को लेकर हंगामा हुआ। इस मुद्दे के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने वाले नेताओं ने भी दावे के साथ-साथ जोरदार बहस की लेकिन, समाधान निकालने में वह भी असफल रहे। अब इसका बीड़ा उठाया है प्रवासी उत्तराखंडियों ने और माध्यम बनाया है सोशल नेटवर्किंग को। उत्तराखंड की स्थायी राजधानी को लेकर आए दिन धरना प्रदर्शन होते रहते हैं।
अब इसे देशव्यापी मुद्दा बनाकर सरकार पर दबाव बनाने का जिम्मा उठाया है म्यार उत्तराखंड ग्रुप ने। यह ग्रुप फेसबुक, आरकुट ट्विटर और गूगल सरप्लस जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों का सहारा ले रहा है। इस ग्रुप से अब तक लगभग साढ़े आठ हजार प्रवासी उत्तराखंडी जुड़ चुके हैं।
सोशल नेटवर्किंग पर म्यार उत्तराखंड गु्रप से जुड़े विचारों और कमेंट्स पर गौर किया जाए तो अधिकतर का कहना है कि उत्तराखंड की राजधानी पहाड़ में ही हो। क्योंकि इस राज्य की परिकल्पना ही पहाड़ के विकास को ध्यान में रखकर की गई थी। इनमें से अधिकतर का रुझान गैरसैंण की ओर है। इसके अलावा भी कुछ ऐसे लोग हैं जो देहरादून, रामनगर और कालागढ़ के भी पक्ष में हैं।
epaper.amarujala

Devbhoomi,Uttarakhand

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गैरसैंण जिला बनाने को आर-पार की लड़ाई
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हालिया दिनों में प्रदेश में चार नये जिलों की घोषणा के बाद अब गैरसैंण को जिला बनाने की मांग को लेकर क्षेत्रवासी मुखर होने लगे हैं।

जिले की मांग को लेकर एक ओर जहां सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की मंडल ईकाई गैरसैंण ने 15 सितंबर तक गैरसैंण को जिला घोषित न करने की दिशा में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का ज्ञापन प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री तक को प्रेषित कर दिया है, वहीं खंसर विकास संघर्ष समिति के सचिव अवतार सिंह के नेतृत्व में जिला सहित अन्य 40 मांगों को लेकर 3 सितंबर से अनशन का कार्यक्रम भी तय किया गया है। भाजपा मंडल ईकाई गैरसैंण के इस्तीफे की घोषणा को कांग्रेस पंचायत प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रेम सिहं नेगी ने चुनावी नौटंकी करार देते हुए राजनैतिक माहौल को गरमा दिया है वहीं भाजपाइयों की इस्तीफे की पेशकश ने पार्टी हाईकमान मे हलचल मचा दी है। जिले की मांग पर भाजपा मंडल अध्यक्ष राम सिंह रावत का कहना है कि गैरसैंण को जिला पुर्नगठन समिति में शामिल करने के बावजूद घोषणा न किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रमुख जानकी रावत कहती हैं कि विषम भौगोलिक परिस्थिति के बाद भी गैरसैंण की उपेक्षा की गयी है, जबकि नये घोषित जिलों में कई जिलों की मूल जनपदों से दूरी 40 किमी ही है। जिले के मुद्दे पर अवतार सिह पुंडीर कहते हैं कि क्षेत्रीय विकास की यह लड़ाई आरपार की होगी।


Source dainik jagran

kundan singh kulyal

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आज शुभे से ही चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे थे ये चुनाव परिणाम उत्तराखंड के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे क्युकी जनता ने एक बार कांग्रेस को और दूसरी बार बीजेपी को मौका दिए था उनके सरकारों के कामकाज भी जनता ने देखे थे अब तो जनता को ये फैसला करना था की हमारे देवभूमि का भविष्य के लिए कौन प्रयास कर रहा हैं उसको ही चुन कर लाना था सवाल ये भी था की क्या हमारे पास कोई तीसरा बिकल्प नहीं है या फिर हम तीसरा बिकल्प को लाना नहीं चाहते पर क्यों खास तौर पर १० पहाड़ी जिलो को ये जरूर सोचना था क्युकी उत्तराखंड पहाड़ी राज्य के रूप मैं अलग हुवा था जब से उत्तराखंड अलग हुवा तब से पहाड़ और भी ज्यादा बंजर हो गए अब समय आगया था अपने पहाड़ के हितैसियों को ढूढने का जो राजधानी गैरसैण की बात करें जल जंगल जमीन की बात करें पलायन के बारे मैं सोचते हों जो दिल्ली दरबार मैं बैठे अपने आकाओं के इशारे पर नहीं चलते हो जो पहाड़ों के दुःख पहाड़ जैसी जिंदगी के बारे मैं जानते हो जिनमें अपनों की समझ हो जिनकी आँखों मैं शर्म हो जिनका दिल अपने पहाड़ के लिए धड़कता हो... ये तो स्वभाविक था की जिन्होंने मौका मिलते ही इस पहाड़ को लूटने मैं कोई कमी नहीं की जनता उनको तो सायद ही फिर लूटने का मौका देगी पहाड़ प्रेमियों की नजर तीसरे बिकल्प की ओर थी की इस बार तो सायद जनता कुछ करेगी और अपने हितैसियों को उन्होंने जरूर याद किया होगा हम भी बहुत उत्साहित थे हमारी नजर तो धारचूला की तरफ देख रही थी कि वहां भी एक पहाड़ प्रेमी मैदान मैं हैं ओ एसा इन्शान हैं जो अकेला १० पर भरी पड़ेगा जिसकी गर्जना से कभी लखनऊ कि बिधानसभा हिल जाया करती थी जब रुझान आने लगे दिल कि धड़कने तेज होती गई परिणाम आते आते हम कुछ सोचने के हालत मैं नहीं थे सोच रहे थे तो सिर्फ इतना कि अब जनता क्या चाहती हैं कि क्या गैरसैण कभी राजधानी नहीं बनेगी क्या हमारी पहाड़ी नारी जो आज हल जोत रही हैं कल शव् यात्रा मैं शव को कन्धा भी देंगी आज बारात मैं औरतें भी जाने लगी हैं तो कल पुरे बारात मैं औरतें ही नजर आयंगी इतनी सारी नदीयां बह रही हैं हम प्यासे हैं खाना तो गैस से बन रहा हैं क्या मुर्दों को कैसे जलायांगे आज सरे पहाड़ मैं हिंदी बोलने का प्रचालन सा हो गया हैं तो कल हिंदी बोलना अनिवार्य तो नहीं हो जायेगा आज शहीदों को क्रांतिकारियों को प्रवासी उत्तराखंडी याद कर लेते हैं कल इनको गद्दार तो घोषित नहीं कर दिया जायेगा अलग राज्य बनाने के समय पहाड़ी होने पर हम गर्व महसूस करते थे क्या आगे हमें पहाड़ी होने पर शर्म महसूस करंगे राज्य निर्माण के समय पहाड़ी आगे थे इस पहाड़ी राज्य मैं ही पहाड़ी अल्पशंख्यक हो जायंगे क्या हमारी संस्कृति बचेगी क्या हमारी सभ्यता जीवित रहेगी क्या हमारे त्योहारों के नाम भी किसी को याद रहंगे क्या हमारा पहाड़ ओ पहाड़ रहेगा जो अपनी संस्कृति सभ्यता सादगी बिनाम्र्ता ईमानदारी इंसानियत के लिए जाने जाते थे जितनी तरक्की हमारा पहाड़ कर रहा हैं इससे तो यही लगता हैं की हमारा पहाड़ बहुर कम समय मै इतना आगे होगा हम सोच भी नहीं सकते............     

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आज शुभे से ही चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे थे ये चुनाव परिणाम उत्तराखंड के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे क्युकी जनता ने एक बार कांग्रेस को और दूसरी बार बीजेपी को मौका दिए था उनके सरकारों के कामकाज भी जनता ने देखे थे अब तो जनता को ये फैसला करना था की हमारे देवभूमि का भविष्य के लिए कौन प्रयास कर रहा हैं उसको ही चुन कर लाना था सवाल ये भी था की क्या हमारे पास कोई तीसरा बिकल्प नहीं है या फिर हम तीसरा बिकल्प को लाना नहीं चाहते पर क्यों खास तौर पर १० पहाड़ी जिलो को ये जरूर सोचना था क्युकी उत्तराखंड पहाड़ी राज्य के रूप मैं अलग हुवा था जब से उत्तराखंड अलग हुवा तब से पहाड़ और भी ज्यादा बंजर हो गए अब समय आगया था अपने पहाड़ के हितैसियों को ढूढने का जो राजधानी गैरसैण की बात करें जल जंगल जमीन की बात करें पलायन के बारे मैं सोचते हों जो दिल्ली दरबार मैं बैठे अपने आकाओं के इशारे पर नहीं चलते हो जो पहाड़ों के दुःख पहाड़ जैसी जिंदगी के बारे मैं जानते हो जिनमें अपनों की समझ हो जिनकी आँखों मैं शर्म हो जिनका दिल अपने पहाड़ के लिए धड़कता हो... ये तो स्वभाविक था की जिन्होंने मौका मिलते ही इस पहाड़ को लूटने मैं कोई कमी नहीं की जनता उनको तो सायद ही फिर लूटने का मौका देगी पहाड़ प्रेमियों की नजर तीसरे बिकल्प की ओर थी की इस बार तो सायद जनता कुछ करेगी और अपने हितैसियों को उन्होंने जरूर याद किया होगा हम भी बहुत उत्साहित थे हमारी नजर तो धारचूला की तरफ देख रही थी कि वहां भी एक पहाड़ प्रेमी मैदान मैं हैं ओ एसा इन्शान हैं जो अकेला १० पर भरी पड़ेगा जिसकी गर्जना से कभी लखनऊ कि बिधानसभा हिल जाया करती थी जब रुझान आने लगे दिल कि धड़कने तेज होती गई परिणाम आते आते हम कुछ सोचने के हालत मैं नहीं थे सोच रहे थे तो सिर्फ इतना कि अब जनता क्या चाहती हैं कि क्या गैरसैण कभी राजधानी नहीं बनेगी क्या हमारी पहाड़ी नारी जो आज हल जोत रही हैं कल शव् यात्रा मैं शव को कन्धा भी देंगी आज बारात मैं औरतें भी जाने लगी हैं तो कल पुरे बारात मैं औरतें ही नजर आयंगी इतनी सारी नदीयां बह रही हैं हम प्यासे हैं खाना तो गैस से बन रहा हैं क्या मुर्दों को कैसे जलायांगे आज सरे पहाड़ मैं हिंदी बोलने का प्रचालन सा हो गया हैं तो कल हिंदी बोलना अनिवार्य तो नहीं हो जायेगा आज शहीदों को क्रांतिकारियों को प्रवासी उत्तराखंडी याद कर लेते हैं कल इनको गद्दार तो घोषित नहीं कर दिया जायेगा अलग राज्य बनाने के समय पहाड़ी होने पर हम गर्व महसूस करते थे क्या आगे हमें पहाड़ी होने पर शर्म महसूस करंगे राज्य निर्माण के समय पहाड़ी आगे थे इस पहाड़ी राज्य मैं ही पहाड़ी अल्पशंख्यक हो जायंगे क्या हमारी संस्कृति बचेगी क्या हमारी सभ्यता जीवित रहेगी क्या हमारे त्योहारों के नाम भी किसी को याद रहंगे क्या हमारा पहाड़ ओ पहाड़ रहेगा जो अपनी संस्कृति सभ्यता सादगी बिनाम्र्ता ईमानदारी इंसानियत के लिए जाने जाते थे जितनी तरक्की हमारा पहाड़ कर रहा हैं इससे तो यही लगता हैं की हमारा पहाड़ बहुर कम समय मै इतना आगे होगा हम सोच भी नहीं सकते............     


Bilkul Sahi.. Daju.

These leaders never paid attention to public issues. Capital is one of the major issues in Uttarakhand but nobody took care of it.


राजधानी के लिए हमारी लडाई जारी रहेगी.!

अगर बहुगुणा जी वास्तव में एक सच्चे नेताओ हो तो उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंन बना के दिखा दो!

गर कर सके तो गैरसैंण की बात कर

दिनेश ध्यानी

करनी है तो भाषण नही बात कर
समय से साक्षात्कार कर
और कुछ नही सुनना हमें
बात छिड़ी है गैरसैंण की,

उसकी बात कर।

तुम्हारे अपने सरोकार
तुम्हारी अपनी सरकार
हमारी गैरसैंण की बात
जनता को गैरसैंण की दरकार।

गैरसैंण हमारा सपना है
ये पहाड़ हमारा अपना है
तुम्हें शायद पता नही
अब पहाड़ सोया नही
जाग रहा है और
अपने अधिकार के लिए ललकार रहा है।
जरा कान देकर देख
आरजू नही शेर की दहाड़ सुन।


बात नही सुलझेगी अब
बात और फरियाद से
जानते हैं हम
फिर एक बार तैयार हैं
हम आर-पार के लिए।

अब नही चलेगी राजनीति बिसात
अब होगी पहाड़ में
हमारी मर्जी से दिन और रात
अगर तुम सोचते हो
तुम जीत गये हो
तो देख नीलकंठ में
उगते सूरज की गरमाहट को
अहसास का जमीन की गर्मी को
जमीन से जुड़कर।

गैरसैंण हमारा सपना नहीं
गैरसैंण हमारा अधिकार है
अब नही मांगना हमें
अब तो हमें राजधानी
बनानी है गैरसैंण
गर मादा है तुझमें
बरगला मत,
बात छिड़ी है गैरसैंण की तो
गैरसैंण की बात कर
गैरसैंण की बात कर।।









आज हमारे गाँव के लोगों के बीच गैरसैंण राजधानी का मुद्दा नहीं पनप पा रहा है क्योंकि आज भी हमारे गावों के लोग वही पुराने समस्याओं जैसे बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि से जूझ रहे हैं। हमें आज इस मुद्दों के साथ-साथ गैरसैंण राजधानी का मुद्दा भी साथ ले कर चलने की आवश्यकता है। आज हर प्रवासी उत्तराखंडी गैरसैंण को अपनी स्थाई राजधानी बनाने के लिए प्रयासरत है लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय से इस मुहीम में सफलता पाने के लिए हमारे उत्तराखंड के हर कोने के लोगों को साथ लेकर सरकार को नींद से जगाने की जरुरत है।

मुझे नहीं लगता कि हमारी सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। मांगना हमारा हक़ और हमारा हक़ को देना सरकार का कर्त्तव्य है। इन सत्ता लोलुपों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस राज्य की कुर्सी के लिए आज ये आपस में लड़ रहे हैं वह उत्तराखंड राज्य हमारे आन्दोलनकारियों के संघर्ष और बलिदान से बना है। आज उत्तराखंड राज्य नहीं बना होता तब भी नेता जी आज कुर्सी के लिए लखनऊ के चक्कर काट रहे होते।
 

Harish Rawat

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अब सब्र क बाध तूट चुका है... सिर से पानी उपर जा चुका है..  राजधानी की जब बात होगी तो उस्मे...गैरसैण कि बात जरुर आयेगी ... और ये राजधानी गैरसैण ही बनेगी..अब हम सभी जो एक जुट हो के साथ चलना होगा... और तब तक नहि रुकना होगा... जब तक कि राजधानी.. गैरसैण नही बनती...

साथियो... अब एक येसी मसाल जगानी होगी जो तब तक नहि बुझेगी.. जब तक कि गैरसैण राजधानी  नही बन जाती...

अब किसी को भी रुकना नही है..चलते रहना है....

इस के लिये सभी को एक साथ चलना बहुत जरुरी है...

अब बस बहुत हो गया...चलो गैरसैण....


मोहन भाई आप ने ये बात 2009  में  लिखी थी अगर उस वक़्त  "सब्र का  बाध टूट  चुका है... सिर से पानी उपर जा चुका है" तब ये स्थिति थी तो अब क्या स्थिति है गैरसैण  मुद्दे की ......बस बड़ी बड़ी बातें ही करते रह जायेंगे हम ....

Raje Singh Karakoti

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हरीश भाई आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि गरिसैन मुद्दे पर अब निर्णायक लड़ाई लड़ने का वक़्त आ गया है !



अब सब्र क बाध तूट चुका है... सिर से पानी उपर जा चुका है..  राजधानी की जब बात होगी तो उस्मे...गैरसैण कि बात जरुर आयेगी ... और ये राजधानी गैरसैण ही बनेगी..अब हम सभी जो एक जुट हो के साथ चलना होगा... और तब तक नहि रुकना होगा... जब तक कि राजधानी.. गैरसैण नही बनती...

साथियो... अब एक येसी मसाल जगानी होगी जो तब तक नहि बुझेगी.. जब तक कि गैरसैण राजधानी  नही बन जाती...

अब किसी को भी रुकना नही है..चलते रहना है....

इस के लिये सभी को एक साथ चलना बहुत जरुरी है...

अब बस बहुत हो गया...चलो गैरसैण....


मोहन भाई आप ने ये बात 2009  में  लिखी थी अगर उस वक़्त  "सब्र का  बाध टूट  चुका है... सिर से पानी उपर जा चुका है" तब ये स्थिति थी तो अब क्या स्थिति है गैरसैण  मुद्दे की ......बस बड़ी बड़ी बातें ही करते रह जायेंगे हम ....

धनेश कोठारी

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मित्रों गैरसैंण की बात तब तक बेमानी है जब तक कि गैरसैण और उसके आसपास के लोग इस मांग का समर्थन नहीं करते, क्‍योंकि अब तक के चुनावों में गैरसैंण वासियों ने विरोधी दलों को ही अपना वोट दिया है। सो साफ है कि हमारी चाहत के कोई मायने नहीं हैं। कारण किसी जंग को जीतने के लिए आज के दौर में राजनीतिक हथियार बेहद जरुरी है। सो कोशिश करनी होगी कि पहले गैरसैंण के लोग एकस्‍वर में मजबूत आवाज लगाएं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मित्रों गैरसैंण की बात तब तक बेमानी है जब तक कि गैरसैण और उसके आसपास के लोग इस मांग का समर्थन नहीं करते, क्‍योंकि अब तक के चुनावों में गैरसैंण वासियों ने विरोधी दलों को ही अपना वोट दिया है। सो साफ है कि हमारी चाहत के कोई मायने नहीं हैं। कारण किसी जंग को जीतने के लिए आज के दौर में राजनीतिक हथियार बेहद जरुरी है। सो कोशिश करनी होगी कि पहले गैरसैंण के लोग एकस्‍वर में मजबूत आवाज लगाएं।

You are right. but no body is there no to demand for the Gairsain. People have migrated from this place.

But we have to built again.

 

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