Author Topic: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....  (Read 26343 times)

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #110 on: August 11, 2010, 06:48:16 PM »
                               "मेरा जीवन मेरा अनुभव"

मेरा अनुभव कहता है कि हमे इंसान के रूपो के आंकने के बजाय इंसान के चरित्र आचरण सेवा सत्कार का आंकलन करना चाहिए.
जो जीवन को सुखमय बनाते है जहां पहले यानी बिते वक्त की बात बता रहा हु यानी आठवे नवै दशक के दौर मे हमारा समाज आचरण को महत्व देता था वही आज के दौर मे हमारा समाज कार, बगला, पैसे को महत्व देने लगा है.

negi jee sach hee aapne goodh sammajik aachaar par vichaar kiyaa.aap jaise vichaarak hee hame sahee raah ingit karne me saksham hain.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #111 on: August 12, 2010, 11:14:03 AM »
                                 "मेरा जीवन मेरा अनुभव"

अक्सर हम इंसान को दो शक्लो के रूप मे जानते है गोरा और काला लेकिन मेरे अनुभव को तीसरी शक्ल का भी आभास होता है जीसे लोग काले मे ही गिन लेते है. वह है श्याम वरण यानी सावला रंग मेरा अनुभव इंसान की शक्ल को कम महत्व देता है क्योकी गोरा काला सावला ये तीनो शक्ल रूप मात्र है. शक्ल से आप अपने चरित्र की पहचान नही बना सकते, अपने आचरण का उदाहरण पेस नही कर सकते, अपने सेवा व सत्कार का परिचय नही दे सकते. इंसान की पहचान उसकी शक्ल नही उसका चरित्र है, उसका आचरण है, उसकी सेवा सत्कार है. लेकिन शक्ल पर जाना मानो इंसान की फितरत है. अब देखो न अगर शादी करते है तो दुलहा चाहता है की उसकी होने वाली बीबी शक्ल से गोरी हो दुसरी तरफ दुहन क्यो पिछे रहे वह भी कुछ ऐसा ही चाहती है की उसका होने वाला पति शक्ल का गोरा हो जब गोरा रंग नही मिल पाता तो फिर श्याम वरण पर आते है यानी सावला रंग फिर लास्ट मे काले पर जाते है. मानो या न मानो यह कटु सत्य है.

मेरा जीवन मेरा अनुभव
सुन्दर सिंह नेगी 01-08-2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #112 on: August 12, 2010, 11:20:25 AM »
धर्मा जी सुक्रिया मेरे लेख पर नजर डालने के लिए.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #113 on: August 26, 2010, 11:16:08 AM »
चिराग बुझाता फिरता हु मै, अंधेरों से दोस्ती के लिए.
यादो मे उनकी जलता हुं मै, पल भर की रोशनी के लिए.

कही हो न जाये बदनाम, रिस्ता सदियो पुराना मुहबत का.
रोज जाता हुं मै दरवाजे तक, चुप रहकर कुछ सुनने के लिए.

सुन्दर सिंह नेगी/तनहा इसान.
26/08/2010

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #114 on: August 26, 2010, 11:30:25 AM »
                      "मे पहाड़ हु"


मे इसलिए टूट रहा हु, मे इसलिए बिखर रहा हु.
मे इसलिए गिर रहा हु, मे इसलिए बह रहा हु.

मे इसलिए घुमड़ रहा हु, मे इसलिए खौफ बना हु.
क्योकी मै पहाड़ हु, मै अन्दर से खोखला हो रहा हु.

सुन्दर सिंह नेगी/तनहा इसान.
26/08/2010

Jasbeer Singh Bisht

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #115 on: August 26, 2010, 11:41:06 AM »
Very well said Sunder Singh Negi ji...
Hamara pahad sach me ander se khokla hota ja raha hai...aur ye sab hamare apne logo ki wajah se he ho raha hai...agar hamari uttarakhand govt. he bahari logo ki yaha aane ki permission na deti to ye ghatnaye jo aaj k time pe ho rahi hai, kabhi nahi hoti. Hamara pahad ab hamara nahi raha ye to ab baahri logo ka mulk ho chala hai....


                      "मे पहाड़ हु"


मे इसलिए टूट रहा हु, मे इसलिए बिखर रहा हु.
मे इसलिए गिर रहा हु, मे इसलिए बह रहा हु.

मे इसलिए घुमड़ रहा हु, मे इसलिए खौफ बना हु.
क्योकी मै पहाड़ हु, मै अन्दर से खोखला हो रहा हु.

सुन्दर सिंह नेगी/तनहा इसान.
26/08/2010


दीपक पनेरू

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #116 on: August 26, 2010, 01:01:35 PM »
अति सुंदर श्रीमान 

                      "मे पहाड़ हु"


मे इसलिए टूट रहा हु, मे इसलिए बिखर रहा हु.
मे इसलिए गिर रहा हु, मे इसलिए बह रहा हु.

मे इसलिए घुमड़ रहा हु, मे इसलिए खौफ बना हु.
क्योकी मै पहाड़ हु, मै अन्दर से खोखला हो रहा हु.

सुन्दर सिंह नेगी/तनहा इसान.
26/08/2010


Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #117 on: August 26, 2010, 02:07:54 PM »
अन्य भाषाऐं अगर आप सहुलियत के लिए सिखते है तो वह अच्छी बात है. लेकिन अगर आप अपनी मात्र भाषा को दबाने, कुचलने, उसका असतित्व समाप्त करने के लिए लिखते है तो वही भाषा आपको एक दिन गुलाम बनाकर छोड़ देगी. जीस अंग्रेजी भाषा को आज हम सब कुछ मानकर भविष्य की नीव डाल रहे है वही भाषा हमारे भविष्य मे दिवार बनकर खडी़ हो जायेगी. आज हमारा भविष्य आत्म हत्या कर रहा है क्योकी उन मासुम बच्चो के दिमांग पर सब कुछ अंग्रेजी मे पढने लिखने की वजह से इतना दबाव आ रहा है की उनको कुछ भी समझ मे नही आ रहा है. और उपर से माँ बाप का दबाव और भी मुस्किलै बनकर आत्म हत्या के लिए मजबुर कर देता है. जरा सोचो बच्चो का दिमाग आखीर छोटी उमर मे कितना विकसित हो सकता है? या जब तुम खुद बच्चे थे तो कितना दिमांग से विकसित थे. जरा सोचो अगर इतनी पढा़ई का बोझ उस समय तुम्हारे उपर पड़ता तो तुम क्या करते?
 
सुन्दर सिंह नेगी/तनहा इंसान.
26/08/2010

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #118 on: August 26, 2010, 09:29:32 PM »
परिभाषाएँ
 
पन्द्रह अगस्त और छ्ब्बीस जनवरी को,
झन्डा फ़हराकर देशप्रेम के गीत सुनना,
देशभक्ति कहलाता है.
 
पर्यावरण दिवस पर पौधे रोपकर,
उन्हें हमेशा के लिये भूल जाना,
व्रिक्षारोपण कहलाता है.
 
जनप्रतिनिधियों का स्वयमेव,
अपनी तनख़्वाह तय कर लेना,
प्रजातन्त्र कहलाता है.
 
परस्पर हित साधन के लिये,
दो व्यक्तियों का आपसी सम्पर्क,
मित्रता कहलाता है.
 
नरभक्षियों द्वारा अपना भोजन,
काँटे-छुरी प्रयोग कर खाना,
विकास कहलाता है.
 
क्रमशः
 
 
 
 
 
 
 

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #119 on: September 19, 2010, 11:00:31 AM »
शराब

मुझको मत पी बहुत खराब हूँ मैं,
तुझको पी जाउँगी,शराब हूँ मैं.

मेरा वादा है अपने आशिकों से,
रुसवा कर जाउँगी,शराब हूँ मैं.

है बदन और दिमाग़ मेरी गिज़ा,
नोश फ़रमाउँगी,शराब हूँ मैं.

तुम मुझे क्या भला ख़्ररीदोगे,
तुम को बिकवाउँगी,शराब हूँ मैं.

 

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