Author Topic: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....  (Read 26074 times)

खीमसिंह रावत

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #30 on: June 16, 2010, 03:42:40 PM »
कविता--
 

जहां ये मतलबी है, दिल यहां नहीं लगता,
मुझपे एहसान कर, दोस्त पुराने दे दो।



Bahut Achchhi kavita

हेम पन्त

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #31 on: June 16, 2010, 03:54:34 PM »
वाह-वाह-वाह क्या खूबसूरत कविता है, वर्मा जी कुछ और भी सुनाइये/पढाइये..

                                                          मिटटी के गोले में आग भरे बैठा है,

मिटटी के गोले में आग भरे बैठा है,
फ़िर भी धन-ऋण-गुणा-भाग करे बैठा है.
 
नक़्शे मिटाकर फिर नक़्शे बनाने को,
ख़ुद पर ही दाग़ने बारूद भरे बैठा है.
 
हर एक पर हर कोई उंग्लियाँ उठाता है,
हर कोइ हाथों पर हाथ धरे बैठा है.
 
चाँद पर तो पहुँचा पर अक़्ल नहीं आई है,
मकाँ ठन्डे सारी दुनिया ग़र्म करे बैठा है.
 
गन्डे-तावीज़ों से अब भी बहल जाता है,
सारी पढ़ाई फिज़ूल करे बैठा है.
 
हर्षवर्धन.
 


dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #32 on: June 16, 2010, 03:59:29 PM »


पड़ने-लिखने मैं हम बोर ठैरे
शक्ल से हम चोर ठैरे
बस यु ही हो गया प्यार
                   अपना तो ऐशा ही ठैरा यार

पाण्डे जी, ये पंक्तियां खास तौर पर अच्छी लगी. लेकिन अब काफी बदलाव आ गया है आपमें, शक्ल भी ठीक है और पढने-लिखने में भी ध्यान जुटाते हो. ये कैसे हुआ?

न पूछो ये सब कैसे हुआ है,
तुम्हारी ही तानो ने दिल को छुआ है
गैरो की चाहत, अपनों की दुवा है
इसी से मेरा परिवर्तन हुआ है
xx         xx            xx          xx
मिटा दो धरा से नफ़रत का साया
हटा दो मन से अहं की काया
थोड़े से संयम मैं क्या कुछ हुआ है
 न पूछो ये सब कैसे हुआ है

xx          xx           xx          xx
परिवर्तन तो तुमको लाना ही होगा
जहाँ को जन्नत बनाना ही होगा
सोचोगे ये तो आश्चर्य हुआ है
न पूछो ये सब कैसे हुआ है
 

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #33 on: June 16, 2010, 04:06:55 PM »
एक झूला कल की आस झूलते जाते हैं,
हम अपना इतिहास भूलते जाते हैं.
 
खरबूजों की बात छोड़िये दुनिया में,
आसमान भी रंग बदलते जाते हैं.
 
हैं कुछ ऐसे सम्हल सम्हल कर गिरते हैं,
कुछ ऐसे गिर गिर के सम्हलते जाते हैं.
 
आज फिर नए फूल खिले हैं बगिया में,
जाते जाते लोग मचलते जाते हैं.
 
पाप पुण्य की हथेलिओं के बीच दबे,
मेरे सब अरमान मसलते जाते हैं.
 
जीत सका है कौन वक़्त की महफ़िल में,
खेल,जुआरी,दाँव बदलते जाते हैं.

 हर्षवर्धन.

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #34 on: June 16, 2010, 04:08:26 PM »
hem daa dhanyawaad,
prashansha hui aur aapke dwaara hui,achchaa lagaa.

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #35 on: June 16, 2010, 04:17:47 PM »
मुझको मत पी बहुत खराब हूँ मैं,
तुझको पी जाउँगी,शराब हूँ मैं.

मेरा वादा है अपने आशिकों से,
रुसवा कर जाउँगी,शराब हूँ मैं.

है बदन और दिमाग़ मेरी गिज़ा,
नोश फ़रमाउँगी,शराब हूँ मैं.

तुम मुझे क्या भला ख़्ररीदोगे,
तुम को बिकवाउँगी,शराब हूँ मैं.

हर्षवर्धन.


Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #36 on: June 17, 2010, 02:31:21 PM »
jai ho sabhi lekhakon ki

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #37 on: June 17, 2010, 02:48:00 PM »
                       "कल का जिद्दी हिन्दुस्तान"

अब बच्चे जायदा ही जिद्दी होने लगे है, जिस काम को बार-बार करने के लिए मना किया जाता है वो उसे बार-बार दोहराते है जब हम बच्चे थे तब मम्मी पापा के एक आवाज देते ही डर के मारे अनुशासन मे खडे हो जाते थे लेकिन आज बच्चो मे माँ बाप की डर का कोई खौफ नही है एक माँ ने अपनी लडकी से घर देर से लौटने का कारण पुछा उसका जवाब लडकी ने आधे घंटे के बाद आत्म हत्या करके दिया बच्चे आज कुछ भी वो सुनना पसंद नही करते जो उनके लिए जवाब देह हो। इसलिए हमारे कल के भविष्य की नीव कच्ची पडती नजर आ रही है।

Meena Pandey

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #38 on: June 17, 2010, 03:02:39 PM »
साहित्यकार....


साहित्यकार प्रेम नही करते
प्रेम मे घायल होते हैं
झोली भर अश्रु
सैकडों झंझावत
"औ" पीडाऒं का इतिहास
होती है एक रचना।

साहित्यकार श्रायित है
दर्द से उद्वीग्न
छलनी अंर्तमन को।

साहित्यकार अस्पर्श है
विचारों की गंध
विद्रोहों की छुअन
संक्रमित कर देती है
उनके कल, आज "औ" कल को।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #39 on: June 17, 2010, 03:05:59 PM »
                 "लेखक"
कुछ तो सोचता है लेखक,
तभी तो लिखता है लेखक,

बहुत कुछ देखता है लेखक,
बहुत कुछ सहता है लेखक,
 
मन कि पीडा़ है लेखक,
"भाषा" प्रेमी है लेखक,

जब मन से टूटता है लेखक,
तभी तो लिखता है लेखक।

सुन्दर सिंह नेगी
17-06-2010

 

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