Author Topic: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....  (Read 26096 times)

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #50 on: June 19, 2010, 10:03:43 AM »
dhanyawaad anubhav daa.page 2 par aur bhee maal hai.ek nazar wahan bhee.
क्या खूब लिखा है सर +१ कर्म आपको.

मुझको मत पी बहुत खराब हूँ मैं,
तुझको पी जाउँगी,शराब हूँ मैं.

मेरा वादा है अपने आशिकों से,
रुसवा कर जाउँगी,शराब हूँ मैं.

है बदन और दिमाग़ मेरी गिज़ा,
नोश फ़रमाउँगी,शराब हूँ मैं.

तुम मुझे क्या भला ख़्ररीदोगे,
तुम को बिकवाउँगी,शराब हूँ मैं.

हर्षवर्धन.


[/quote]

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #51 on: June 19, 2010, 10:11:51 AM »
meena jee aapne kahaa hai to kuch gambheer  hee hoga.kripaya kavita ko sajaye bagair dobara post karein.

  • समाज....
  • मैंबहसहूं
  • इससभाकी
  •     इसीजगहमेरेलिए
    कईवादतलाशेजायेंगे।
    जबपुंजीवाद
    [/color]मेरे[/color][/color]बदुवेमेखसोटा[/color]गया[/color][/color]होगा[/size]
    समाजवाद [/color]केबल[/color][/color]पर[/color][/size]
    [/color]प्रसारित[/color][/color]हो[/color][/color]रहा[/color][/color]होगा[/color][/size]
    "" घरकीखिडकीमें
    [/color]पसरे पडेखेतोंपर[/size]
    दूरतक [/color]उग[/color][/color]आयाहोगा[/size]
    माक्स्रवादहीमाक्स्रवाद।

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #52 on: June 19, 2010, 02:15:33 PM »
अध्ययनशाला.
 
हमारे स्कूल में सारे क्लासेस ए.सी. हैं,
ब्लैकबोर्ड की जगह प्रोजेक्टर इस्तेमाल होते हैं,
तैराकी,घुडसवारी,बिलिअर्ड्स,स्क्वैश,गोल्फ़ की सुविधा है,
सब छात्रों को लैप्टौप दिया जाता है.
अंग्रेजी के इतर भाषा का प्रयोग वर्जित है.
विदेशी भाषा भी सिखाई जाती है,
स्कूल कि युनिफ़ोर्म नामी डिज़ाइनर की है,
पार्किंग,औडिटोरियम,जिम्नेसिअम,इन्टेर्नेट.
क्या नहीं है हमारे पास.
आप ऐड्मिशन लीजिये,
हम कुछ अच्छे शिक्षक भी ढूँढ लेंगे.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #53 on: June 19, 2010, 02:54:50 PM »
वह सर क्या खूब कहा है आजकल की प्राइवेट पढाई पर.

अध्ययनशाला.
 
हमारे स्कूल में सारे क्लासेस ए.सी. हैं,
ब्लैकबोर्ड की जगह प्रोजेक्टर इस्तेमाल होते हैं,
तैराकी,घुडसवारी,बिलिअर्ड्स,स्क्वैश,गोल्फ़ की सुविधा है,
सब छात्रों को लैप्टौप दिया जाता है.
अंग्रेजी के इतर भाषा का प्रयोग वर्जित है.
विदेशी भाषा भी सिखाई जाती है,
स्कूल कि युनिफ़ोर्म नामी डिज़ाइनर की है,
पार्किंग,औडिटोरियम,जिम्नेसिअम,इन्टेर्नेट.
क्या नहीं है हमारे पास.
आप ऐड्मिशन लीजिये,
हम कुछ अच्छे शिक्षक भी ढूँढ लेंगे.


dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #54 on: June 20, 2010, 04:26:03 PM »
उसने ब्लाग पर ,
अपनी पहली कविता
सुबह सात बजे पोस्ट की थी.
 
उसकी सोच के,
सीमान्त तक भी,
कविता में कोई नुक़्स,
ढूँढे नहीं मिलता था.
 
कविता में व्यंग,
अपनी गुदगुदाती,
चुभाती,चिढाती,
अदा के साथ मौज़ूद था.
 
टैक्नीकली भी,
उसे हिन्दी मास्साब,
ने विश्वास दिलाया,
कविता ऐब्सोल्यूट्ली फ़्लौलेस थी.   
 
उसे विश्वास था,
वो विशिष्ठ मस्तिष्कों,
के आकर्षण का केन्द्र,
बन जाने के लायक कविता थी.
 
कविता में,
पहाड़ी नदी की,
लय थी,चंचलता थी,
कविता अनूठी थी
ऐसा वो सोचता था.
 
खैर.....
 
कविता पोस्ट करते ही,
उसने इन्टर्नेट की,
दुनिया में विचरने वाले,
सभी परिचित प्राणियों को,
पोक करके,वौल पर लिख कर,
मैसेज से और ई-मेल से,
सूचित कर दिया.
 
उसे कौमेन्ट्स की पतीक्षा थी,
ढेर सारे कौमेन्ट्स,
तालियों जैसे कौमेन्ट्स,
पंखों जैसे कौमेन्ट्स,
स्पाट लाइट जैसे कौमेन्ट्स.
 
बार बार पेज रीफ़्रेश,
करता था और नज़र,
जाती थी कौमेन्ट्स पर,
उम्मीदों से भरी नज़र,
पर लौट आती थी निराश.
 
हम फ़लाँ वेब्साइट पर,
आपका स्वागत करते हैं,
बस एक यह मैसेज,
उसे कुरुपा के मुँह चिढाते,
आईने जैसा लगने लगा था.
 
तीन घण्टे......
और एक भी कौमेन्ट,
पोस्ट पर न था,
जी बहलाना था,
सोच लिया कि सर्वर,
डाउन है.
 
पर मन में,
डर था.
अगले दो घण्टों तक
उसने फ़िर से.
पोक करके,वौल पर लिख कर,
मैसेज से और ई-मेल से,
सबको सूचना भेजी.
 
इस बीच कई बार,
कौमेन्ट्स की आस में,
उस निष्ठुर पेज पर भी,
उसका अशान्त आवागमन,
चलता रहा.
जब तक कि उसने ,
खिन्न हो कर,
कम्प्यूटर बंद न कर दिया.
 
उसका मन,
नहीं लगा.
न घर में,
ना दोस्तों में,
न हि उस फ़िल्म में,
जिसे देखने वो,
बिना सोचे-समझे,
चला आया था.
 
उसने फ़िर कम्प्यूटर खोला,
साईट खोली,
डर था कौमेन्ट्स,
नहीं होंगे.
उत्सुकता थी
कौमेन्ट्स होंगे.
 
एक सपना
दाँव पर लगा था.
सपना जिसमें,
नाम था,
सम्मान था,
दाम था,
मन्च थे,
श्रोता थे.
 
कौमेन्ट्स थे,
पाँच कौमेन्ट्स,
 
"सुन्दर है"
"बहुत खूब"
"अच्छा प्रयास है"
"आपकी कविता बहुत सुन्दर है,
 आशा है आप मेरे ब्लाग पर,
 आ कर मेरी कविताएँ,
 पढेंगे और कौमेन्ट देंगे."
 "बेटी चहक रही थी,
  विदाई की बेला में,
  बाप की आँखो में भी,
  आँसू नहीं आ पाए.
"आपकी कविता में,
 कन्या की विदाई का,
 ऐसा भावरहित चित्रण,
 प्रकट करता है कि,
 आपने दहेज का ज़िक्र,
 न कर के भी,
 इस समस्या के विरोध
 में क़लम उठाई है............."
   
 सपना टूटा,
 या नहीं?
 
 पता नहीं,
 
 पर कौमेन्ट्स तो
 मिले ही थे.
 
 

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #55 on: June 20, 2010, 04:34:03 PM »
कवि मन की क्या सही व्याख्या की है सर.

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #56 on: June 20, 2010, 04:55:44 PM »
कवि मन की क्या सही व्याख्या की है सर.


dhanyawaad anubhav jee.

हेम पन्त

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #57 on: June 21, 2010, 10:50:45 AM »
आजकल कुकुरमुत्तों की तरह पब्लिक स्कूल खुलते जा रहे हैं, इनकी कड़वी हकीकत आपकी इस कविता से जाहिर होती है.
 
अध्ययनशाला.
 
हमारे स्कूल में सारे क्लासेस ए.सी. हैं,
ब्लैकबोर्ड की जगह प्रोजेक्टर इस्तेमाल होते हैं,
तैराकी,घुडसवारी,बिलिअर्ड्स,स्क्वैश,गोल्फ़ की सुविधा है,
सब छात्रों को लैप्टौप दिया जाता है.
अंग्रेजी के इतर भाषा का प्रयोग वर्जित है.
विदेशी भाषा भी सिखाई जाती है,
स्कूल कि युनिफ़ोर्म नामी डिज़ाइनर की है,
पार्किंग,औडिटोरियम,जिम्नेसिअम,इन्टेर्नेट.
क्या नहीं है हमारे पास.
आप ऐड्मिशन लीजिये,
हम कुछ अच्छे शिक्षक भी ढूँढ लेंगे.


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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #58 on: June 21, 2010, 11:16:15 AM »
hem da aankalan hetu dhanyawaad.main natak hetu tamaam samagriyan juta raha hoo.aap meeting kee date tay keejiye.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #59 on: June 21, 2010, 04:18:47 PM »
    "कुछ तुम कुछ मे"

कुछ तुम सुनोगे कुछ मे सुनु्गी,
कुछ तुम कहोगे कुछ मे कहुंगी।

थोडा तुम दबोगे थोडा मे दबुंगी,
मेरी पिडा़ तुम सहोगे तुम्हारी पिडा़ मे सहुंगी।
 
महिला और पुरूष का रिस्ता,
तुम भी निभाओगे मे भी निभाउंगी।
 
वरना ऐसे कैसे चलेगी जगत की सृष्टि,
जब तुम अलगाव करोगो जब मे अलगाव करूगी।

रह न जाये जिन्दगी के कुछ अधुरे काम, इसलिए,
तुम मेरा हाथ बढाओ, मे तुम्हारा हाथ बढाउंगी।

उंगलियों के मिलन से, एक मुट्ठी बनती है।
कुछ तुम हाथ बढाओ, कुछ मे हाथ बढाउंगी।
 
सुन्दर सिंह नेगी 18/06/2010

 

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