Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447501 times)

devbhumi

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जबै बी आंदि तू पास मेरा

जबै बी आंदि तू पास मेरा
ले जांदी तू ऐ स्वास मेरा
मेरी जिकोडी की दुक दुकी
मेरा बाटों बी ऐजा तू कबी कबी
जबै बी आंदि तू पास मेरा ....

रैंदु मि अब बी वै बिसरीयुं बाटों
वै पँधेरा वै आमों का छालो
जख जख छपी छे भेंट अपड़ी
अब भी पड्युं छो मि देख वखि
जबै बी आंदि तू पास मेरा ....

खुद बनग्याई जीणु को सारू
खुद मा ही अब खुदेणु छो बाटों
भूली बिसरि ही एक बारी ऐजाई
वै बाटों दगडी तू मिथे बी भेंट जैई
जबै बी आंदि तू पास मेरा ....

मिथे पता छे तू मेरी नि छे
मानी लियूं मि पर ऐ जिकोडी रूसी छे
वै थे बल अब मि कन मनेऊ
ऐजा ऐजा तू अब वैथे बोथे जै
जबै बी आंदि तू पास मेरा ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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शब्द हरची गयां

शब्द हरची गयां
गीत अधूरा रैगैनी
ब्वगदा गदनौं को
माटो सब ब्वग गैनी

पोथला उडी गंया
घरटा रीता व्हैगिनी
बरखा ह्यूंद घाम
टक देख्दा रैगैनी

छुंई लगणी छे
विं ढुंगा की जोड़ी
यखुली रैगैनी
वि खुट्टियूं की जोड़ी

रूझि भिजी गे
बांजा रूखा पुंगड़ियूं
दाना सयैणा कथा
हम भुलि बिसरिगे

शब्द हरची गयां .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेर छप छपी

छप छपी मेर छप छपी
जिकोडी मा छपी तेर तस्वीरा
भैर -भीतर करदी राई
कन ऐ तेर तस्वीरा

मन मा छपी पीड़ा को
कन मिठू मिठू आभास
तेर मेर माया छे वा
या मि थे ह्वैगे छे भास्

घुंघर्याळी लटुली तेरी
गोंदक्याली खुटी वा
दौड़ी दौड़ी जांदी कख वा
मि थे किलै ह्वैगे छब्लाट

पाणि कि गागरि लेकि
तू जै बाटा आंदी जांदी
मि थे पिछने पिछने तू
वै बाटा ले जांदी

मि थे बोल्णु तै थे
मि परी कैदे उपकार
मेरु हाथ पकडी दे
अपड़ो जन्म जन्म को साथ

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ढंगी रे ढंगी रे

ढंगी रे ढंगी रे
पिछने कि ढंगी रे
दौड़ी जादि अग्ने कभी
किलै रैजांदि तू पिछने रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे

कालो रंगों रंगस्याणि
माथो मा सफेद ज्योति रे
कभी त ऐजा दौड़ी रे
इन ना जा तू बॉडी रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे

खे जालु तै बाघ स्याल
झट ऐजा घोरी रे
आँखा का उड़्यार मा
गै मेरी आंखीं थकी रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे

कंपदो हुलु तेरो गात
फैलायूं छा मेरो हात रे
लाठि टेकि कि सरकनु
कब जालु ये स्वासु रे ... ३
ढंगी रे ढंगी रे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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नि राई मि म्यार बस्मा

नि रैग्याई म्यार बस्मा
मेर वा पछणा अब म्यार बस्मा
हर्ची गयुं मि वख मा
रै गयुं जख मि अब कख ना

वै डाळम कबि बैठ्यों छो मि
छिपडु दादा जैमा ऐठीयों छया कबि
गीत लगै मिल हला बी कयाई
ढुंग चुलै दादा ल कपाळ फोड़ि बी द्याई
हर्ची गयुं मि वख मा
रै गयुं जख मि अब कख ना
नि रैग्याई म्यार बस्मा
मेर वा पछणा अब म्यार बस्मा

ब्यळमा मिल ब्वाली अफ ते
झक मारी मिल अब कख कख ते
मोल मि थे मिली जख कै
वैल बी मि थे पछणा नि दे पाई अफ ते
हर्ची गयुं मि वख मा
रै गयुं जख मि अब कख ना
नि रैग्याई म्यार बस्मा
मेर वा पछणा अब म्यार बस्मा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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पुरखों की कुड़ी

पुरखों की कुड़ी
क्या छे बथोणी ,क्या छे बथोणी
हे लाटा तै थे वा
क्या छे बिगणी ,क्या छेबिगणी

पौंछदा पौंछदा अपड़ो पता
वा छे बिसरि जाणी ,वा छे बिसरि जाणी
हे लाटा तै थे वा
किलै ध्ये छे लगाणी ,किलै ध्ये छे लगाणी

सिमेटी मेल मेटि की
तेर बाना धरिं छे,तेर बाना धरिं छे
हे लाटा तै थे वा
गैरी किले लगाणी छे,गैरी किले लगाणी छे

ईस्टों की किरपा
तै पर रैली सदनी,तै पर रैली सदनी,
हे लाटा तै थे वा
अब बी छे खुदाणि ,अब बी छे खुदाणि

पुरखों की कुड़ी ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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आखर मेट मेटि की

आखर मेट मेटि कि
बल लेखी मिल एक कबिता
कुछ ना मिली मिथे
बल विथे मिल गे एक सरिता
आखर मेट मेटि की

कबि दौड़ी विंका बाण मि
कबि बैठी बैठी ऊ में पास ऐग्याई
कबि अचणचक ऐई समण मेरा
कबि मिथे अजाणा वा कैग्याई
आखर मेट मेटि की

दिन राति देखि मिल
बल जी बस देखि विंका सुपनिया
कबि ख्यालों मा आई मेर वा
कबि मन मा ही दड़ी बल रैगे वा
आखर मेट मेटि की

जोड़ घटना कैकी जोड़ी मिल
कै बाटा कै घाटा थे नि छोड़ी मिल
फिर बी वा मेर ना बण सकी
देखा दूर बगदी जाणी छे वा सरिता
आखर मेट मेटि की

बालकृष्ण डी ध्यानी
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द्वि मन का पिछणे पिछणे

द्वि मन का पिछणे पिछणे
मि अटगी गीयूं
यूँ बीच का घंघतोळ मा
मि फिर फंसीगीयूं

रैं नि मिथे अपड़ी खबर
रोज पड़दो मि दुनिया की खबर
पड़दा पड़दा दुनिया की खबर
लाख चौरासी का बाटा थे
मि फिर बिरड़ी गीयूं
द्वि मन का पिछणे पिछणे
मि अटगी गीयूं

सबैर शाम इन ऐ मेरु सफर
कख चुलै कख मा पकड़
ऐ चुलै औरि पकड़ा पकड़ी मा
वै काल की फांस मा
मि फिर इन फंसीगीयूं
द्वि मन का पिछणे पिछणे
मि अटगी गीयूं

बालकृष्ण डी ध्यानी
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टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा

टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा
(हम मिल्दा रयां सदा ) ..... २
ऐ फूल बण बणिक का
इनि खिल्दा रयां सदा
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......

पुंगडा अर बणौ को
(दुःख जाणुलू क़्या क्वी ) ..... २
भौत द्यखीन मिल बी
मेरु पहाड़ जनि ना क्वी
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......

मजबूरी का नाच
(यख नचदा छन सबी ) ..... २
उम्मीद की झोळो लेकि
अब बी खड़ो च ऐ कबी
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......

गंगा की ऐ धारा बी
(अपड़ो मुख खुलालि कबि ) ..... २
एक दिस सुख आलो ऐ बाटा
रोज बोल्नु च ऐ रबि
टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जो न बोळ स्की ऊ बोळ
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
मन की पीड़ा थे इनि ही रोज...... लाटा
मन की पीड़ा थे इनि ही रोज
यों अँखियों न बोगोंदी छो
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
मैथे क्वी कबि कवी ना जाना ना माना
मि इनि रोज अप्ड़ी दबाई बणादू छो
मेर मरजा कु इलाजा ना क्वी
कागद भौरिकि बस लेखी जांदू छो
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
मेर माया कु प्रेम बल ढुंगा गारा
वैथे मि अपड़ो पहाड़ बणादू छो
बग्दी गदनि छन ऐ नेडू मेरा
वैथे मि इनि हैरेल पोछाँण दू छो
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
ब्याळ मि जब मौरी जाळू जी
कैथे थे मेरो ऐ ख्याल आळू जी
वै मा मि इनि मिसी जाळू जी
फिर अपडों छोड़ी कख नि जाळू जी
जो न बोळ स्की ऊ बोळ
वैथे लिख्दु जांदू छो
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