हर वक्ता को अब अपना तुम बनकर तो देखो जी
हर वक्ता को अब अपना तुम बनकर तो देखो जी
दुश्मन को भी एक बार अपना कह कर तो देखो जी
किस को पता कौन किस बुरे वक्त में तुम्हारे काम आ जाये
खुशियों में ही नहीं वो तेरे दुःख में भी तेरे साथ आ जाये
हँसाने के लिए अपनों को मैं उम्र भर रोया
जिंदगी में जंहा करना था आराम उस बोझ को ढोया
दूसरों पर हँसना आसान है अपने पर बहुत मुश्किल
भावों को बस अब समझो यूँ ना हो जाओ तुम बोझिल
आलोचना बहुत होती है जीवन में तुम प्रेमलता फैलाओ
कभी अपने से बांतें कर लो कभी अपने को खूब समझाओ
दूसरों की गलती पर क्यों कर हम इतने नाराज हो जाते
कभी अपने को समुख रखकर अपने को खूब डांटा लगवो
छोटी-छोटी बातों में अब तुम आनंद को खोजना सीखो जी
भूखों को खिलाकर एक दिन अब तुम भूखा रहना सीखो जी
अनुभव हो ही जायेगा तुम को उनकी उन सारी तकलीफों से
निस्वार्थ सेवा कर तुम परमात्मा को और करीब से देखलो जी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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