विबोध भाव अभिनय: विबोध भावौ पाठ खिलण
गढवाल म खिल्यां नाटक आधारित उदाहरण
Performing Awakening Sentiment in Garhwali Dramas
( इरानी , अरबी शब्दों क वर्जन प्रयत्न )
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6, 7 का : रस व भाव समीक्षा - 50
s = आधी अ
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद आचार्य – भीष्म कुकरेती
तमभिनयेज्जृंभणाक्षिपरिमर्दनशयनेमोक्षणादिभिरनुभावै (७, ७६ कु परवर्ती भाग ) -
गढ़वाली अनुवाद - -
विबोध भावो पाठ खिलणौ कुण जमै लीण , आँख मिंडण , खटला /डिसाण त्यगण , जन करतबों प्रयोग हूंद।
गढ़वाली म विबोध भाव उदाहरण - - --
अर्जुन वासुदत्ता प्रेम प्रसंग लोक गीत म विबोध भाव कु उदारण -
द्रोपती अर्जुन सेयाँ छया
रातुड़ी होयें थोडं स्वीणा ऐन भौत
सुपिना मा देखद अर्जुन
बाळी वासुदात्ता नागुं कि घियाण ,
मन ह्वेगे मोहित , चित्त ह्वेगे चंचल
वींकी ज्वानी मा कं उलार छौ
वींकी आंख्युं मा माया को रैबार छौ
समळीक मुखड़ी वींकी अर्जुन घड्याण बिसे गे
कसु कैकु जौलू मै तै नागलोक मा
तैं नागलोक मा होला नाग डसीला
मुखड़ी का हँसीला होला, पेट का गसीला
मद पेंदा हठी होला, सिंगू वाल़ा खाडू
मरखोड्या भैसा होला मै मारणु आला
लोहा कि साबळी होली लाल बणाइ
चमकादी तलवार होली उंकी पैळयाँयीं
नागूं की चौकी बाड़ होलो पैरा
कसु कैकु जौलू मैं तै नागलोक मा
कमर कसदो अर्जुन तब उसकारो भरदो ,
अर्जुन तब सुसकारो भरदो
मैन मरण बचण नागलोक जाण
रात को बगत छयो , दुरपदा सेइं छयी
वैन कुछ ना बोले चाल्यो , चल दिने नागलोक
मद्पेंदा हाती वैन चौखाळी चीरेन
लुवा की साबळी नंगून तोड़ीन
तब गै अर्जुन वासुदत्ता का पास
घाम से घाम, पूनो जसो चाम
नौणीवालो नाम , जीरी वल़ो पिंड
सुवर्ण तरूणी छे , चंदन की लता
पाई पतन्याळी, आंखी रतन्याळी
हीरा की सी जोत , ज़ोन सी उदोत
तब गै अर्जुन सोना रूप बणी
वासुदत्ता वो उठैकी बैठाए अर्जुन
वींको मन मोहित ह्व़े ग्याई
तब वीन जाण नी दिने घर वो
तू होलो मेरो जीवन संगाती
तू होलो भौंर मै होलू गुलाबो फूल
तू होलो पाणी मै होलू माछी
तू मेरो पराण छई, त्वे मि जाण न देऊँ
तब तखी रै गे अर्जुन कै दिन तै
जैन्तिवार मा दुरपदा की निंद खुले ,
अर्जुन की सेज देखे वीन कख गये होला नाथ
जांदी दुरपदा कोंती मात का पास
हे सासू रौल तुमन अपण बेटा बि देखे
तब कोंती माता कनो सवाल दीन्दी
काली रूप धरे तीन भक्ष्याले
अब मैमू सची होणु आई गए
तब कड़ा बचन सुणीक दुर्पति
दणमण रोण लगी गे
तब जांदी दुरपदी बाणो कोठडी
बाण मुट्ठी बाण तुमन अर्जुन बि देखी
तब बाण बोदन , हम त सेयान छया
हमुन नी देखे , हमुन नी देखे
औंदा मनिखी पुछदी दुरपता
जांदा पंछियों तुमन अर्जुन बि देखे
रुंदी च बरडान्दी तब दुरपदी राणी
जिकुड़ी पर जना चीरा धरी ह्वान
तीन दिन ह्वेन वीन खाणो नी खायो
ल़ाणो नी लायो
तब आंदो अर्जुन का सगुनी कागा
तेरो स्वामी दुरपति, ज्यूँदो छ जागदो
नागलोक जायुं वासुदत्ता का पास
तब दुरपता को साँस एगी
पण वासुदत्ता क नौ सुणीक वा
फूल सी मुरझैगी डाळी सी अलसेगी
तिबारी रमकदों झामकदों
अर्जुन घर ऐगे
स्रोत्र : डा गोविन्द चातक
सन्दर्भ : डा शिवा नन्द नौटियाल
ये लोक गीत म तब तखी रै गे अर्जुन कै दिन तै
जैन्तिवार मा दुरपदा की निंद खुले ,
अर्जुन की सेज देखे वीन कख गये होला नाथ
जांदी दुरपदा कोंती मात का पास म विबोध भाव च
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
गढ़वाली काव्य म विबोध भाव ; गढ़वाली नाटकों म विबोध भाव ;गढ़वाली गद्य म विबोध भाव ; गढवाली लोक कथाओं म विबोध भाव
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