Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383004 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
सुखद रिवाज च यु, एक डालि लगाण।
मिलिक हमन भै, पर्यावरण थै बचाण।
शपथ जंगल बचाणे, जीवन म निभाण।
नई शुरूआत डालि लगै,समलोण बनाण।
युगो युगो तक रालि, भै परंपरा ए बनाण।
हर भलु काम म, बस डालि एक लगाण।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 1 at 8:37am ·
धरती मलेथा सी, तलि बगणी भै गंगा जी।
भ्वरी गाड कु पाणी,मलेथा कनक्वे ल्याण जी।
डांड पिछड़ी गाड़ चंद्रभागा, मलेथा म लाण जी।
खोदी सुरंग तख,खोदण्या भड़ माधोसिंह जी।
रिसि पाणी अधबीच,नि पौचि जब मलेथा जी।
कैला पीर तप लीन,पाणीन टोड़ी तौ कु जप जी।
करण लगि जिद्द बाबा, पैलि नरबलि लेण जी।
पाणी खातिर पुत्र बलि,लाल गजेसिंह अमर जी।
मलेथा हरू भरू आज,पुत्र माधो जनु वीर जी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
April 29 at 11:09am ·
अमृत च नवली कु पाणी,बनयी छी पुरण्यो की।
सारी बूण बाटो म,तीस बुझ्यंदी भै तिसल्यो की।
जल जीवन च,पाणी बचाणा की रीत पुरण्यो की।
जरूरत पूरी पाणी की,करदी हमारी देवभूमि की।
समृद्ध जल परंपरा,बाटु लगी भै अब मिटेणा की।
पाणी कु तड़फदा गौं थै,ना फिकर भै नवलियों की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Arti Lohani
 
गुम होते ये खूबसूरत पहाड़,
सीमेंट के जंगलों में तब्दील होते ,
ये खूबसूरत पहाड़.
बर्फ से ढके रहते थे पहले,
अब है वहाँ घास व जंगल
वैश्विक तापमानके बढ़ने से,
रिसते पिघलते ये पहाड़,
मानव के विकास की कीमत चुकाते,
विकास की लालसा की भेंट चडते,
प्रतिस्पर्धा की होड़ में,
भौतिकता की आड़ में,
खत्म होते खूबसूरत पहाड़.
फूलों के पेड़,गुम होते झरने,
गायब होती गौरेया,
पलायन करते ये नन्हें खूबसूरत पक्षी.
पलायन करते भोले-भाले गाँव वासी,
शहरों का चुंबकीय आकर्षण,
या आधुनिकता की माँग,
अब तो याद आते हैं पहाड़ सपनों में,
गुम से लगते हैं ये भी अपनों में,
झरने,पेड़-पोंधे विलुप्त होती नदियां,
भूगोल से नाता तोड़,
इतिहास के पन्नों में जाने को बेकरार,
क्या होगा जब खत्म होंगे पहाड़,
नदियां,हरियाली और ये पशु पक्षी,
क्या होगा जब खत्म हो जायेगी हवा,
बिन पानी,बिन हवा
कैसा होगा जीवन?
©® आरती लोहनी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhupesh Pandey
 
ओ रे दगड़ियो , मैं तो रणीं गयू ....
यो वाटसैप देख बेर अड़कसी गयूँ....
क्याप क्याप , विचार बतूनी
नई नई जान पहचान बणूँनी
इनर फोटुक देखो .
आहा कतु भल विदेशो बीडीयो देखो....
हसणीं बहार देखो , रूलूनी विचार ले देखो...
द्यापतक् दर्शन हुनी , गोल ज्यू पुज ले देखो ...
बेई बदरी केदार रिशै गई ...
गँगा जमुना बाड़ लगै गई ..
खष्टी काकी के छाव लाग गो...
आहा कतु भल नरसिंह ज्यू को जागर देखो....
अल्माड़ में घाम लागी रो..
नैनताल में हौल लागी रो...
बागेश्वर में बाघ बौई रो...
लछिया घर कुकुरै पोथी है रो....
कस कस आपदा हुणीं
प्रधान ज्यू शराब पीणीं..
पटवीरी ज्यू को साथ हैरो
यो वीडीयो लै वाईरल हैरो..
खेत बाड़ी गोरुन उजाड़ हालीं...
बची कुची बानरैल खतम कर हालीं..
खाणीं पीणीं होश नी रैगो..
बिरादरी , दोस्ती कथप हरै गो...
दगड़ियो तुम लै वाटसैप बड़ा लियो ...
अपुण ख्वर में बज्जर पड़ै लियो....
भूपेश पाण्डे

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
 
समलोण्या सी बणी च,अब की य तस्वीर।
झणि कख लिजाणी,हम थै भै अब तकदीर।
फुंगड़ि पटली धाण, करण्या छाया कभि वीर।
जयदाद खेती वला, कभि ब्वलेंदा छाया अमीर।
बदलु वक्त बदली कथा,खेत्या अमीर बणि फकीर।
आह भ्वरणी फुंगड़ी,खेति म नि रै गे अब तकदीर।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 1 at 8:37am ·
धरती मलेथा सी, तलि बगणी भै गंगा जी।
भ्वरी गाड कु पाणी,मलेथा कनक्वे ल्याण जी।
डांड पिछड़ी गाड़ चंद्रभागा, मलेथा म लाण जी।
खोदी सुरंग तख,खोदण्या भड़ माधोसिंह जी।
रिसि पाणी अधबीच,नि पौचि जब मलेथा जी।
कैला पीर तप लीन,पाणीन टोड़ी तौ कु जप जी।
करण लगि जिद्द बाबा, पैलि नरबलि लेण जी।
पाणी खातिर पुत्र बलि,लाल गजेसिंह अमर जी।
मलेथा हरू भरू आज,पुत्र माधो जनु वीर जी।

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
 
(लाल भुला ऊवाच.....)
दिल्ली वालों की खैरी और जून का मैना की गर्मी
.
जून का मैना ,ब्वे कनक्वे रैणा ,,
मुण्डिली ताचाली ई ई ई ई ई ई ,,
दिन्न द्वफरी मा घामा की चड़क्ताल ,,
मुंड खज्जी लागाली ई ई ई ई ई ,,
जून का मैना ,ब्वे कनक्वे रैणा ,,
.
घर फर नौना ,,,, पंखा हफराला ,,
अभागी मर्द अपीड़ी ड्युट्यू फर जाला ,,
झुलिडी रूझाली , गरमा को तपराट ,,
मुंड खज्जी लागाली ई ई ई ई ई ,,
जून का मैना ,ब्वे कनक्वे रैणा ,,
.
दिन्नं भर ड्यूटी , सामबगत घार ,,
साब लोगों की डाँट , और कज्याणीकी मार ,,
मूछियालल , डामाली , आगि को भब्राट ,,
अगिन प्वाडाली ई ई ई ई ई ई ई ..
जून का मैना ,ब्वे कनक्वे रैणा ,,
.
गरम हव्वा ,, साम बगत पौव्वा ,,
गढ़वाली व्हेकि ,इंग्लिश फुँकणा छौव्व्वा ,,
तन्नी आँखि रग्र्याली ,ई ई ई ई ई ई ई ई ..
अगिन प्वाडाली ई ई ई ई ई ई ई ..
जून का मैना ,ब्वे कनक्वे रैणा ,,
.
जून का मैना ,ब्वे कनक्वे रैणा ,,
मुण्डिली ताचाली ई ई ई ई ई ई ,,
दिन्न द्वफरी मा घामा की चड़क्ताल ,,
मुंड खज्जी लागाली ई ई ई ई ई ,,
जून का मैना ,ब्वे कनक्वे रैणा
(कवि जिज्ञासू ऊवाच.....)
रुड़्यौं का दिन छन, कनुकै रण,
कपाळि तचलि,
द्वोफरी का घाम, की चड़क्कताळ,
भारी तीस लगलि,
रुड़्यौं का दिन छन, कनुकै रण.....
जनानि बिचारी, पंखा मा रलि,
अभागी मर्द, ड्यूट्यौं फर जाला,
घामन जळ्त पड़लि,
रुड़्यौं का दिन छन, कनुकै रण.....
दिनभर ड्यूटी, ब्याख्नि बग्त घौर,
साब की डाँट, जनानि की मार,
मुछाळान डामलि,
रुड़्यौं का दिन छन, कनुकै रण.....
गरम हव्वा, हात मा पव्वा,
नशा लगलु, अंग्रेजी फूक्लु,
तब आंखि रग्गर्यालि,
रुड़्यौं का दिन छन, कनुकै रण.....
निराश नि होणु, लाल भुला,
मर्दु की जिंदगी, यनि हि होन्दि,
ब्यो का दिन, हैंस्दु छ मर्द,
जनानि जिंदगी, भर रुऔन्दि......
-तेरु दिदा(जग्गू)
उर्फ जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 5/5/2017

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याद यैगे बचपन आज
दुर परदेश डांड्यु मा
कबी बड की बडोल्यूं मा झूल्दु
कबी आम की डाल्यूं मा
ना चिंता ना फिकर
डबखा डबखी घाम मा
खुज्यांदु छ्या चकुली क अंडा
गींठी भ्यूंळ की डाल्यूं मा
कंटर बजै की जांण पांणी
जागर लगांण गोरु मा
कबी ढुंग्यांणन जांद बटोई
गौं क नीस बाटु मा
कबी चुर्यांणन कखडी मुंगरी
खीर पकांण दुर छान्यूं मा
दुर स्कूळ अदबट लुक जांण
कुळैं पैंय्या की धार मा
याद यैगे बचपन आज
दुर परदेश डांड्यूं मा
कबी बड की बडोल्यूं मा झूल्दु
कबी आम की डाल्यूं.....
सर्वाधिकार रक्षित @सुदेश भट्ट"दगड्या"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ना सुख जांणी कबी दीदों
रैंदा घाम बरखा बत्वांण्यु मा
जेट की दुफरा मा कबी
कबी सौंण की कुयेडी मा
मन की खैरी पीडा अपंणी
कबी नी जतांदा तुम
सबुळ घंण तसला लेकी
रात दिन मिस्यां तुम
ना बगत पर कबी ध्याडी मिल्दी
सेठ सौकारु की ठगोण्युं मा
रात दिन मेहनत कर्दा
लरका तरकी पसीना मा
रेल लैन मौटर लेन
डाम बड बड बणांदा तुम
उदघाटन मा नेता यैथर
सबसे पिछने रैंदा तुम
मजदुर छे तु मजबुर छै तु
दुख बिपदों की फंची छे
त्वैन क्या जंण ए. सी पंखा
फिर भी देश की शान छे
पढै नी सकदी नौन अपर
हे दीदा तु बडी स्कूलों मा
हत्वड सबुळ गैंती फौळ
कुटुमदरी तै दींदी समळोंण मा
ना छुट्टी ना एतवार
क्या जंण बार त्योहारु की
मजदुर ना मसीहा छ्या तुम
म्यार भारत देश का
ना सुख जांणी कबी दीदों
रैंदा बरखा घाम बत्वांण्यु मा
जेट की दुफरा मा कबी
कबी सौंण की कुयेडी....
http://www.khudeddandikanthi.in/2017/05/blog-post.html?m=1
मजदुर दिवस पर सभी मजदुर भाईयों को समर्पित @लेख ...सुदेश भट्ट"दगड्या"7534068566

 

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