कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 20 at 6:23pm ·
अब ना कैर अबेर
अब ना कैर अबेर
ह्वैगे छुचा ते थे अब भंडया देर
सिन्कोली कु तू धर ले बाटा
जब जबैर तिल खर्च्यां छन रुपया हजार
ऊ नारंगी की सीसी को तेल
रति बेरति गौं मां उन्कों मेल
ऊ च्फल्या उनदरू मां सब घैल
तेरो ही मच्युं ऐ देल फ़ैल
कन औरृ कबरी चलली ऐ रेल
देखा ऐ नेतों कु रच्यूं ऐ खेल
एक चीज को द्वि तीन बारी शिल्यानास
देखले बांदरून कु तू बी ऐ नाच
डम डम डमरू को आवाज
टक्कों कु हुनु कन हास
ऐ च क्या मेरु पहाड़ कु बिकास
उत्तराखंड की नि बुझनी प्यास
डैम बणग्या सारू पहाड़
बति नि बलनि अब बी मेरा घार
बैठ्यूं छु अपड़ो को सार
हेर बी मेरु ह्वैगे बेकार
हुनु छे चौषठ सुरंग कु द्वार
हे मान जामेरा देबता बद्री केदार
अब ना कैर अबेर
ह्वैगे छुचा ते थे अब भंडया देर
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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