Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 382861 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 26 at 12:31pm ·
बौड़ु आज वर्षों बाद,मि सोच म प्वड़्यु छु।
बिति जो बचपन यख,तै थै खुज्याणु छु।
धारू तनी च बस,तौ पंधेरयो खुज्याणु छु।
छोड़ि गैनी ए छोड़िक,मि ईखुली बैठ्यु छु।
क्या पाई पलायन सी,मि भै भुक्तभोगी छु।
मिली सब कुछ मै,फिर भी कुछ खोजणु छु।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 26 at 5:42am ·
खुबसूरत ब्वलु त, होलि मन की बात।
मन म छवि तेरी, बसी रैंदी भै दिन रात।
गाँव जन्मभूमि,बचपन की छ्वीं बात।
पौड़ी,गुजड़ू गढी,क्वाठा रजवड़ी थात।
गढ़ कुमाऊँ सीमा,द्वी बोल्यु की सौगात।
गौं गौं म मासूर, "पड़सोली" तेरी बात।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 25 at 1:35pm ·
गैथ भिजी पाणी म,मस्यटु भै शिलबट्टा म।
कढै धरि चुल म,पिस्या गैथ गरम पाणि म।
मैण मसलु ढोलि, टुको छापण गथ्वणी म।
खिरोली डडुली न,उमली फगरवणी चुल म।
तेल लासणी कु तड़का,चस लगी फाणु म।
इन्द्रासन चौलो भात,स्वाद चढि गुच्यु म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 STORIES

Darsansingh Rawat
May 24 at 8:56pm ·
ठेट पहाड़ी छु मि, जयु भी छु भै बरात म।
हथ म नमकीन च,च्या कु कप च भुया म।
तरीका पुरणु सी बैठणा कु,बैठ्यु मजा म।
थकान हिटणा की,उड़ि गे भै च्या पीण म।
आनंद भ्वर्यु कप कु, दिखेणु च मुखड़ी म।
आई जाणु आनंद लेणा, पहाड़ो कु ब्यो म।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 24 at 6:58am ·
पूजा वर ब्राह्मण की, रीति धूलिअर्ग की।
खुटि ध्वे मान भै,अथितो देवो भवः की।
दान कन्या करण,परंपरा हमरू धर्म की।
पाणी हथ ले संकल्प, रिश्ता बनाणा की।
सम्मान जवै थै, मान पूजा नारायण की।
सदनि निभै जाली,रश्म उत्तराखण्ड की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 21 at 6:00am ·
उमर पिच्चासी की,पर अजि नजर च बालापन सी।
हाथ खुटि चलणी छी,किलै कि आदत बचपन सी।
राज स्वास्थ्य कु,खाण पेणु कखि ना पहाड़ सी।
जीण जीवन सदनि भै, इच्छानुसार अपणी सी।
चलदी रैंद जीवन सरस, विमुख न जब कर्म सी।
कख मिलंद भै हवा पाणी,हमरा पहाड़ जनि सी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Darsansingh Rawat
May 29 at 11:32pm ·
हयूं ना कुएड़ी लगी,औडली ब्यखुनी च।
रूड़ी कु बगत भै,बरखा की उम्मीद च।
नजर जख लगणी,असमानी ए कथा च।
आण बरखा न जरूर,ए पहाड़ी रीत च।
गरजण्यां बरसंदा ना,मैणु पुरण्यो क च।
नि रैणु भर्वसु कैकु ,सरग भै बरखड़्यां च।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Gyan Pant
 
........ जिम कार्बेट पार्काक् शेर
तु ऐ गोछै
भल करौ ....
पहाड़ में यसो भै
उज्या्व हुन - हुनै
ब्वारी बँण न्है जानीं
आ्म पोर्स गाणैं
गो्र बाछन भ्यार बादैं ...
तब जाँणैं
रौन छै चहा उमैयि जां
पोथा !
बाबू छा्ज में बैठि
चहा सुड़कै ल्हिनीं ....
रेब्दा .....
ऐ ग्या त गप - सड़ाका ले है जै
ब्वारि .....
एक गढौ्व गाज्यो ल्ही बेरि
मोव थै कि पुजैं ....
भौ अलाँण भै जाँ
उकैं ले थामण भये
जब जाँणै डालुन भौ छी
कत्ती ले लै लोटी रय -
आब् खुट जामि गियीं ....
इज कैं पच्छयाड़ण भै गो
..... मे बीति के नि हुन !
पट्ट घुन टुटि गियीं
पत्त न के बजर पड़ौ
आपणैं शरीर बो्ज है ग्यो ....
भौ थामीणो त
रिस्यान ले जाँण भये ....
बाबू आजि ले " वार " नि खा्न
आ्ग हाल्यालि
इन टटमन कैं .....
मैलि कतुकुप बखत कै है
त्यार बाबु ट्याड़ छन ट्याड़
कत्तई ल्या्ख नि लगूँन ...
खाँण पिंणा बाद
भनबान ले भयी पैं
को करौल ?
सब ब्वारी ख्वारुन भै ....
झिट घड़ि ले आराम नि भै
दोफरि मात
जतुकै देर भौ छाति ले ला्ग
उ ले बैठें और
भौ सितौ त
ब्वारि खेतन हुँ न्है जैं ...
मैं पौर्रु भयूँ आ्गहान
सोचूँ ! मणी तात जै हुँनीं त
मैयी हरी घा चै ल्यूँनीं ....
अन्यार हुँण है पली
ब्वारि मोव थैं पुजि जै
गोर बाछनां ख्वारुन
घा तिनाड़ खितैं त
सबासब बँगतरी जानीं
दिनमान उकैयीं चै रुँनी .....
भ्यावहा्न यो ले
वीका गति लागी भै ....
शिबो ! ब्वारि ले कतु करैलि
मसीन जि भै .....
उ लै हाड़ माँसै की बणीं भै
हमैरि न्याँत ....
ज्वान छिनानै चिमड़ी गे ...
फिर ले
आदु है ज्यादे खेति
बंजर पड़ि रै
क्वे करणै नि चान ....
सबासब मलि देबीनगर बसि गियीं
गौं बा्ँज पड़ि रौ ....
आब्बै चौमास में आफत आलि
क्वे भये न याँ पन
पोथा ! तु एक काम कर
ब्वारि कैं दगाड़ै ल्हिज
चिन्ता न कर
हमा्र दिन काटी जा्ल ....
त्योर एक खुट लखनौ
एक घर ... ...
मैं भौत्तै अखरों पोथा ....
बाबू ले आ्ब
बखतैकि चाल समझण भैगियीं
कूँनीं ....
बखत - बखत'कि बात छ
ऐल
योयी ठीक रौँल बल .......
पहाड़ मे ।

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अपड़ी छाप
अपड़ी छाप
अपड़ी मां ना रै जाली
बिन्सरी घाम
स्वील मां ना सै जाली
छिरकुणुं रैगे
बगत सदनी एथर एथर
मनु जोग सदनी रैगे
वैकु किलै पैंथर पैंथर
जै थे हम ल्यख्दा बि छ
अर हम पढदा बि छ
हिटदा हिटदा बाटों मां
वै आखर कख हरै गेनि
कुंगला डालौं मां
मौल्यार कन खिल जांद
दूसर दिन ऊ डालियों को
मौल्यार कख लुकी जांद
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 20 at 6:23pm ·
अब ना कैर अबेर
अब ना कैर अबेर
ह्वैगे छुचा ते थे अब भंडया देर
सिन्कोली कु तू धर ले बाटा
जब जबैर तिल खर्च्यां छन रुपया हजार
ऊ नारंगी की सीसी को तेल
रति बेरति गौं मां उन्कों मेल
ऊ च्फल्या उनदरू मां सब घैल
तेरो ही मच्युं ऐ देल फ़ैल
कन औरृ कबरी चलली ऐ रेल
देखा ऐ नेतों कु रच्यूं ऐ खेल
एक चीज को द्वि तीन बारी शिल्यानास
देखले बांदरून कु तू बी ऐ नाच
डम डम डमरू को आवाज
टक्कों कु हुनु कन हास
ऐ च क्या मेरु पहाड़ कु बिकास
उत्तराखंड की नि बुझनी प्यास
डैम बणग्या सारू पहाड़
बति नि बलनि अब बी मेरा घार
बैठ्यूं छु अपड़ो को सार
हेर बी मेरु ह्वैगे बेकार
हुनु छे चौषठ सुरंग कु द्वार
हे मान जामेरा देबता बद्री केदार
अब ना कैर अबेर
ह्वैगे छुचा ते थे अब भंडया देर
बालकृष्ण डी ध्यानी
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