Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527367 times)

Jagga

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[red&green]
पहाड़ का वर्णन मेरी  जुबानी

प्रदेशी की तमन्ना , लगी हमारे इस पहाड़ मैं
देखो कैसे भाता है ,वो उस हमारे पहाड़ मैं

हर जगह से उस को दिखा है हमारा पहाड़
ढते हुवा सूरज को रास्ता दीखता है राह पहाड़

व्कत आने से जगा देता है हमारा पहाड़
राह भटकते हुए लोगो  को मिलाता है हमारा पहाड़

अब ना रूटे पहाड़ , सब अच्छे लोग हुगे हमारे पहाड़
दूर दूर तक की हसरत पूरी करता है हमरा पहाड़

आज सारी दुनिया मैं है  कह राह है मेरा पहाडी
क्यों बचपन से ये छोड़ ना सका था हमारा पहाड़

एक साथ साथ कभी -२ मिलता है पहाडी कहता है धन्य है पहाड़
तुझे कुदरत ने ही दिया है पहाड़ तबी नहीं मिलता तुझे जवानी और पानी

फिर भी धन्य है वो हमारा पहाड़ , हर किसी के लिए खुला है पहाड़
जय जय हो हमारा पहाड़ , आज आपने मैं है अटल हमारा पहाड़
जय पहाड़ जय पहाड़ तू है महान ये है धन्य मेरा अपना पहाड़


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By : हेमंत जोशी छानी, मासी,चौखुटियa
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मेरी इज कांछी च्याला थोडा पढले
ज्यादा नीहे सक्नो ८ पास करले
थुल हवे भोव द्वि रवट कमाले
आपण नाना दागे हमू काले खवाले
हम द्वी बुड बाडी तयार नाना ग्वाव भेरोल
उनुके देखि बेर हम ले बोती रोल
नाखी भली चीज ल्याले हम ले खौल
तयार नान छिना क्वीड तयार नाना के सुणूल
हंसी खुसी नाच गाने बुढापा काटूल................
...........................................
मे बुआल सोची सब धरी रेअगोय
स्कुल के छोडोऊ तली एगोय
मे बुवाल बया करो नानतिन ले तली ल्येगोय
दिन म्हणं महेन सालम एकबतीयन्ने राय
बार चाहने २ आँख ले उनर कोच्यारम नहे ग्यय
नख भली चीज पली पली च्याले ल्याई गुड -चान ले हराय
जब ले सड़क मै गाडी रुकी चौथारम ऐ जानी
भीजी आँख लीबे फिर मोहरिम भै जानी
मन मनै एक सवाल पूछनी
जो ले जानी तली च्याला कभे लौट बे ले आनी
या यू पितरों कुड़ी माजी द्वार ढकी लगे जानी
तू कछिये राती पारी भै बेर ब्याव दिल्ली पहुच जानी
तवी बता दिल्ली बे पहाड़ पूजन मे कतू साल लागनी ????????????????

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By Hemant Joshi :

लौट बे एजाओ आब म्यारा पहाडा
धात लगे लगे बुलानी या गढ़यर गाडा

गाढ़ मे दहौ पदान हैगो आब घर आओ
काफल किल्मौड पाक एबेर खै जाओ
धर नोहों को ठंडो पाणी द्वि घूट पि जाओ
लौटी बे .................................
रूढी का घामा उदेख दिना हिय भरी आणि
आम डाई मुन चली रे पौना सर सर सर बुलानी
द्वि घडी निकल बे टेमा यो मूं बैठ जाओ
लौट बे ....................................
ह्यों का दिना धुपरी घामा बैठी क्विढ़ लगानी
भाँग का लूणा निमुवा सानौ मिली जुली खानी
आग तापने आमे की आहनी,जवाब दी जाओ
लौट बे .........................................
बिनती सुणी लियो मेरी लगे बेर काना
परदेश भूली बेर तुम
याँ लगाओ ध्याना
जन्मभूमि तुमारी छो यौ करमभूमि ले एति बनाओ
लौट बे ..............................................
पुरखों कुड़ी उधर बे तली ऐगे ऐ बेर छे जाओ
खेती बाड़ी सब बांजी पड़ गयी ऐ बेर कमै जाओ
स्वर्ग छू यौ देवों की भूमि आपण नानाक यौ समझाओ
लौट बे ऐ जाओ .....................................
धात लगे लगे बुलानी यौ गधयर गाडा I

jagmohan singh jayara

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"पहाड़ पूछ रहे थे"

अभी लौटा हूँ पहाड़ से,
जहाँ जन्मभूमि है आपकी,
कह रही थी आते रहो,
कहना सभी को,
खुश खबर लेने,
मेरी और,
अपने माँ बाप की.

निहारा मैंने जी भर कर,
प्यारे पहाड़ों को,
जिन पर लिपटी थी,
सड़कों की मालाएं,
वनों के वस्त्र पहने,
बरखा में भीगते,
छुपाती उनको, 
भागती कुयेड़ी.

घूमते हुए मैंने देखा,
दम तोड़ते घरों को,
जिनमें कभी रहते होंगे,
पित्र बन चुके माँ बाप,
आस औलाद हैं कि,
लौटते नहीं,
पितरों की विरासत की,
खुश खबर लेने.

जब मैंने लिए ,
पहाड़ों के छायाचित्र,
मुस्कराते हए,
उन्होंने मुझसे पूछा,
क्या, हम इतनें सुन्दर हैं?
तब मैंने उनसे कहा,
हाँ, तभी तो आता हूँ,
आपको निहारने,
आपकी तस्वीरें उतारने,
लिखता हूँ आप पर,
कविताएँ भी.

जब चला मैं घर से,
प्रवास की ओर,
लौट-लौटकर निहारा,
पर्वतों को,
न जाने फिर कब लौटुंगा?
मुझे कहा पर्वतों ने,
जा "जिज्ञासु" ,
तुझे कुशल रखें,
बद्रीविशाल.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
8.10.2009, दूरभास:9868795187
E-Mail: j_jayara@yahoo.com 

jagmohan singh jayara

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 "उत्तराखंड की जन-भाषा"

गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी,
पुरातन बोली भाषा हैं हमारी,
मत करो तिरस्कार इनका,
विरासत हैं हमारी.

अस्तित्व मैं है,
गढ़वाली भाषा दसवीं सदी से,
पंवार वंशीय गढ़ नरेशों ने,
अपनी राज-भाषा के रूप में,
गढ़वाली बोली भाषा को अपनाया,
मिलता है जिसका प्रमाण,
तामपत्रों एवं राजपत्रों में.

वीरगाथाओं में,
मांगळ और गीतों में,
मिलती हैं,
गढ़वाली भाषा की,
अतीत की झलक,
अलंकारिक रूप में.

जागो! उत्तराखंडी बन्धु,
मत करो अपनी भाषा का,
आज आप बहिष्कार,
बोलो, लिखो और अपनाओ,
फिर देखना,
होगा अपनी प्रिय भाषा का,
फलते फूलते हए श्रृंगार.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the best Poem on Uttarakhand,

चंगा चारों धाम देखा,               चार कोस चम्माली देखी,
ब्रह्मा जी का काम देखा,             सात कोस सतपाली देखी।
गंगा सालिग्राम देखा,               वारा कोस की वैली देखी, 
लिंगा-ढुंगा कामारी।                  निसणी खंद्वारी।
हरि को हरद्वार देखो,                  कमरघास का अंदर देखी,
बदरी अर केदार देखो।              मैफिल गूणी बंदर देखी।
ज्वाल्पा को वार देखो,             चैनकोट का अंदर देखी,
कालिंका जी की धारी।            खैड़ की जागिरदारी।
श्रीनगर बाजार देखो,              डांडों की चूलंगी देखी,
टिहरी को दरबार देखो।          काफल की कालंगी देखी।
पौड़ी-नैनीताल देखो,             बमठी की नारंगी देखी,   
अल्मोड़ा-मंसूरी।                 ठंडी ठंडी सारी।
तपोवन का धाम देखा,          छांछि की छछिन्डी देखी,     
आमसौड़ का आम देखा।       कालीबाड़ी पिंडी देखी।
मंडी का मुक्काम देखा,          बासिंगा की ढिन्डी देखी
दुगड्डा का ढ़ाकरी।             आहा, मजेदारी।

Courtesy from : Regional Reporter Magazine, Srinagar Garwal






Risky Pathak

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Hemant Bisht Dwara Likhi Kavita "Meri Pahad Ki Ijaa"

पौ फूटने है पेलिए उठन द्याप्त पूजना
फिर गोठ जा छानी बड़े गोरु कै पीयुना
फिर निहार रे ले सीतिया नाना कै देखना
फिर जाव दरांती लही बेर जंगल ल्हे जाना
और उवीके बाद है छ लाल पूरब दिशा
एसी सुबह बिताछी मेरी गाँव की इजा
एसी सुबह मेरी पहाड़ की इजा

फिर दुफेरी कै च्हुली भानी भान छावना
हाथ खुट ध्वेनेल फिर दांत माजना
और धुल में सानना नाना कै नऊना
लाकडे के काऊनेल अपना बाल पोछना
और दुफेरी ते ब्याव तक जो खेत में बिता
मेहनत ज़िन्दगी मेरी गाँव की इजा

नॉन हु नई थूल देखो काम बड़ी गो
जंगल नी जा इजा यो कुने नॉन भो ऑडी गो
जंगल बे ठीठा लायी रे छ ऊ भो कै बत्युना
सिठुली भानुली नाम दी बेर बकरी बनून
बस यो ई खिलोने जी में नानू के रिझा
इदुके में संतुष्ट म्येर गाँव की इजा

भूख तीस क्वे ले पूजी गोछो द्वार में
घर जे ले छि खावे हालो उकाई सत्कार में
गौ में कोई जत्काई है, कोई बीमार रे
अपनी चेली इज माने ऊ बौडी ब्वारी के
अपना मुख बे छीनी खऊने उके गिजा
ममता की एक देवी म्येर पहाड़ की इजा

चेली बेटी विदा हुनी जब गो के छोड़ी बेर
हर भरम ले बिदा करो के ले जोड़ी बेर 
अब जान छू खुद ले दूर अमर पूरी दुन में
खुद तुलसी बक्षी सून जोड़ हालो जाने थे
जीवन मरण में उवीक तो बस धरम छू सखा
इसिक विदा हूँ छ म्येर पहाड़ की  इजा

hem

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साथियो  - कविताओ के लिए एक नया  कालम/थ्रेड आरम्भ कर रहा हु/ आप सभी सुधि जनो से आग्रह है कि कविता पोस्ट करे/ कविता स्वरचित हो तो अछ्छा होगा/ किसी अन्य की हो तो लेखक क नाम जरूर दे / श्रीगणेश मै अपनी  कविता क्लर्क से कर रहा हू :-

मै क्लर्क हू ,  सरकारी श्रस्टी का आधार स्तम्भ,
अनपढो के लिये पूर्ण ब्रह्म ,
अनादि काल से मेरा अस्तित्व है ,
यम राज के यहा भी ( चित्रगुप्त) मेरा प्रभुत्व है,
समय के साथ साथ मैने भी विकास किया है,
काय्स्थ , ्मुनिम  , लिपिक से  कलर्क तक का सफर तय किया है,
चम्चागिरी  धर्म है मेरा , ओवरटाइम कर्म है मेरा,
बगल मे फाइलो की ढेरी, सामने कम्प्यूटर की भेरी,
 
भारतीय परजातन्त्र तेरे लिए पुन्य प्रसाद हू मै ,
लार्ड मैकाले की आखरी याद हु मै
अर्थशास्त्री मुझसे खौफ  खाते है,
पन्च वर्शीय  योजनाओ की विफल्ता का मुझे प्रमुख कारण  ठ्हराते है.
 
सुबह देर से दफतर जाना, शाम को जल्दी घर आना,
आधा घन्टा चाय पीने मे तो घन्टा भर लगाना,
उस पर भी बोनस बोनस , डीए- डीए चिल्लाना
 
उन्हे कौन बताए मै सब कुछ कर सकता हु
क्लर्क से गवर्नर- जनरल बन सकता हू
बस की क्यू मे अडे अडे ,  विस्व राजनीति पर बहस कर सकता हू खडे खडे,
परमाणु कार्यकर्म , ड्ब्लूटीओ वार्ता,  भारतीय  हाकी - किर्केट,
कौन कैसे जीतता, कैसे हारता,
 
मै सब जानता हू , कैसे?  चलो बताता हू, एक क्लर्क के ज्न्म की कथा सुनाता हू,
 
जब एक भावी क्लर्क पैदा होता है, जग हसता है वो रोता है,
माता  लोरी देती है,  पिता तान सुनाएगे-
हम अपने लाड्ले को डाक्टर , इन्जिनियर, आए ए एस बनाएगे,
प्बलिक स्कूल की खोज होती है,
पर उनकी जेब रोती है
हारकर- झकमारकर , सन्तोस कर लेते है,
लाड्ले को म्युनिसिप्ळ्टी के स्कूल मे डालकर
दस्वी मे साठ प्रतिसत, १२वी मे ५० और बीए मे ४५  प्रतिसत प्राप्त कर ,
वह लाल नाम कमाता है,
पढा लिखा बेरोजगार कहलाता है,
ओर दे डालता है ,
अधिकारी वर्ग की सैकडो  प्रतियोगी  प्ररीक्छाए ,
और वह किसी को भी  लक्छ्म्ण रेखा की तरह पार नही कर पाता, और
टूटता है , वह बाद   हर इम्तिहान के,
बामियान बुद्ध जैसे हाथ तालिबान के,
और तब  वह सर्व ग्यानी होकर, अपना चार्म खोकर,
उतरता है स्टाफ सिलेक्स्न  कमीशन के समरान्ग्न मे,
और पहूचता है, सरकारी कार्यालयो  के प्रान्ग्न मे
 
रोज्गार पाते ही  दोपाये से चौपाया होता है,
फिर सन्त्तती होती है , फिर जेब रोती है-----
 
 
और एक बार फिर वही स्ब कुछ दोहराया जाता है,
ओर तब वक्त  की याज्सेना (द्रोप्दी) हस कर कह्ती है,
अन्धो के अन्धे और क्लर्को के क्लर्क
 
और चलता रह्ता है नियती चक्र - चलता रहता है नियती चक्र



बहुत सुन्दर कविता है. अफ़सोस यही है कि देर से पढी.

पंकज सिंह महर

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हिमा हिट, हिमाला को देश जूंला,
पंछी बणी आकाश उडूंला,
लाली-लाली बुरांसी खिली ऐगे,
माटी-माटी फूंलूंला ढकी ऐगे,
प्यार पंछिन की दांग आइगे,
मेरो मन यो माया लागिगे,
हिमा हिट.....।
ओ बांजे डाई को ठंडो पाणी,
चल चुपई लै पीय ऊला,
काफल की डाई मूणा,
झित हियैकि बाल कूंला,
हिमा हिट....।
देवदारु सुवास छाइगे,
हिमचोटी चमकण लगिगे,
डावा-बोटी पराग उड़न लागि,
के भलि छबि छांजण लैगे,
हिमा हिट...।
ऊंची-नीची ऊं घाटी-बाटी,
ओ म्यार पहाड़ की प्यारी माटी,
चल हाथै ले छुई ऊंला,
हिमा हिट.....।
ओ झुकी आइगो आकाश जैति,
वां ऊंचि चोटी मा चढि वैटि,
गणि हाथैले गिणि ऊंला,
हिमा...! हिट, हिमाला का देश जूंला।



कवि - श्री पूर्ण मनराल

jagmohan singh jayara

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 "आपकी दुआओं ने"

नहीं होने दिया आपसे दूर,
भले ही वक्ष में उठी वेदना ने,
बेदर्द होकर अपना वार किया,
याद आई, देवभूमि के देवताओं की,
वेदना से त्रस्त होते हुए भी,
बार-बार उनका नाम लिया,
जो जी रहा हूँ आज,
बद्रीविशाल जी ने मुझे,
जीवनदान दिया.

लौटा ही था मैं पहाड़ से,
लाया था कुछ छायाचित्र,
लिखी थी एक कविता आपके लिए,
"पहाड़ पूछ रहे थे"
शायद पढ़ी होगी आपने.

मैं तो यही कहूँगा मित्रों,
मुझे बचाया,
"आपकी दुआओं ने" भी.


जगमोहन सिंह जयारा "ज़िग्यांसू"
ग्राम: बागी-नौसा, चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल

१२.१०.२००९ को मेरे दिल में दर्द(हृदयघात) हुआ. वेदना के उन छणों  में  मित्रों मुझे आप लोगों की बहुत याद आई.  आज मैं ठीक होकर आपके बीच लौट आया हूँ. भीष्म कुकरेती जी
 और पराशर गौड़ जी ने  दूरभास पर मेरा  हाल पूछा,  शुभकामनाएं दी...कैसे भूल सकता हूँ.

 

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