Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 29426 times)

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला

     13

‘जातकर्म’ मे ‘प्रगल्भ’ तू
नवजात को बल देने वाला,
स्वस्थ और दीर्घ जीवन की
अमृत संजीवनी देने वाला,

स्वस्थ, सबल, संबल बने 
सु-समाज प्रतिष्ठापन हेतु,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
बुद्धि और बल की ज्वाला।

    14

‘नामकरण’ में ‘पार्थिव’ तू
नाम प्रदान कराने वाला,
इस धरती पर मानव को
अपनी पहचान दिलाने वाला,

जीवन भर उसी नाम के
कर्मों से जाना जाता है,
अच्छे बुरे कर्मों की फिर
गणना कराती तेरी ज्वाला।

    15

‘निष्क्रमण’ में ‘मर्यादा’ तू
धर्म-मर्यादा सिखाने वाला,
चौथे माह में मानव को
भू-लोक का ज्ञान कराने वाला,

धर्म-कर्म की सदैव अपेक्षा
समाज की उससे रहती है,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
अन्तर्मन में मर्यादा की ज्वाला।


   16

‘अन्नप्राशन’ में ‘शुचि’ तू
प्रथम अन्न खिलाने वाला,
माता के दूध के संग में
अन्न ग्रहण कराने वाला,

जीवनपर्यंत कमी न हो
परिश्रम और पुरुषार्थ से,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
मानव में परिश्रम की ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला


    17

‘चूड़ाकर्म’ में ‘सत्य’ तू
कुविचारों का उच्छेदन वाला,
श्रेष्ठ ऋषि संस्कृति अनुयाई
श्रेष्ठतम आदर्शों वाला,

देह के शीर्ष भाग में
संस्कृतिस्वरूप शिखा स्थापित करता,
तेरी ज्योति से प्रज्वलित होती,
धर्म और संस्कृति की ज्वाला।

    18

‘विध्यारम्भ’ में ‘सरस्वती’ तू
विद्धाधन देने वाला,
मानव के नवम संस्कार में
धरणी पर श्रेष्ठ बनाने वाला,

शिक्षा-दीक्षा सर्वगुण सम्पन्न
और पारंगत बनाने वाला,
गुरुकुल, स्कूल, पाठशाला में
प्रज्वलित होती विद्धा की ज्वाला।

    १९

‘उपनयन’ में ‘समुद्भव’ तू
मानव को दीर्घायु देने वाला,
श्रेष्ठ आध्यात्मिक, सामाजिक,
अनुशासन जगाने वाला,

अनुशासन से जीवन चलता
आध्यात्म से समरसता,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
मानव में आध्यात्म की ज्वाला।

    २०

‘वेदारंभ’ में उच्च शिक्षा
और ज्ञानवर्धन वाला,
मानव के बारहवें संस्कार में
ज्ञान के गुण सिखाने वाला,

वेदों का ज्ञान सीखता
तीक्ष्ण बुद्धिबल पाता है,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
मानव में ज्ञान की ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला


      २१

‘केशांत’ में पावन ज्योति तू
ब्रह्मचर्या सिखाने वाला,
मानव के तेरवें संस्कार में
गुरुकुल से विदा लेने वाला,

प्रथम बार सीखता देना
गुरु दक्षिणा गुरु को देकर,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
मानव में दान की ज्वाला।

   २२

‘समावर्तन’ में अग्नि तू
गृहस्थ आश्रम में डालने वाला,
मानव के चतुर्दश संस्कार में
लालच मोह सिखाने वाला,

पाप पुण्य की परीक्षा होती
जीवन भर उलझता है,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
मानव में पाप-पुण्य की ज्वाला।

     २३

‘पाणिग्रहण’ में योजन तू
परिणय सूत्र में बांधने वाला,
मानव के पंचदश संस्कार में
सृष्टि की उत्पत्ति वाला,

प्रकृति के मिलन का समय
भौतिक सुख संपति प्रदाता,
तेरी ज्योति प्रज्वलित करती
भौतिक सुख संपत्ति की ज्वाला।

     २४

‘अंतेष्टि’ मे क्रव्याद तू
मृत देह को जलाने वाला,
मानव के षष्ठदश संस्कार में
पंचतत्व में मिलाने वाला,

खाली हाथ दुनिया में आता
खाली हाथ दुनिया से जाता,
तेरी ज्योति चिंतन कराती
प्रज्वलित कर चिता की ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला


    25

उत्पत्ति से अवसान तक
है सोलह संस्कार की माला,
हर संस्कार को पूर्ण कराती
तेरी ये पावक ज्वाला,

इन सोलह संस्कारों से मानव
सोलह कला सम्पन्न हुआ,
सोलह कलाओं के कौशलता में
उत्पन्न हुई एक अन्य ज्वाला।

    26

ज्वाला के दो रूप हो गए
भिन्न हो गई दोनो ज्वाला,
एक पार्थिव रूप में प्रकट
दूसरी अदृश हो गई ज्वाला,

एक लपटों के रूप में दिखती
दूसरी अन्तर्मन में धधकी,
एक भौतिक रूप में उपस्थित
दूसरी अदृशरूपी ज्वाला।

    27

भौतिक ज्वाला ऊष्मा देती
अदृश जगाती विभिन्न ज्वाला,
काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ
अन्याय, अत्याचार की ज्वाला,

पहली धधकती अशांत होती
पृथ्वी पर तृण-तृण जला डालती,
दूसरी धधकती अशांत होती
जला डालती जीवन के ज्वाला।

     28

पहली से दूसरी अति घातक
जिसने जीवन नर्क कर डाला,
विभिन्न व्याधियों की उसने
तन में जला डाली ज्वाला,

कहीं अन्याय, अपराध, अनीति की
कहीं अधिकार, अनाचार, अतिक्रमण,
कहीं कुमति, कुकर्म, कुसंगति की
धधक रही है भीषण ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला


    29

अपराध, दोष, विकृतियों को
हतोत्साहित जिसने कर डाला,
लाभ उठाने वालों ने
उसे ठिकाने लगा डाला,

नीति, नियम, कानून व्यवस्था,
समाज में खोटे सिक्के हैं,
जिसने इन्हें भुनाना चाहा
असमय बुझी जीवन की ज्वाला।

    30

खान-पान में भारी मिलावट
दूध भी मिलावटी बना डाला,
नन्हे बच्चों के जीवन को
जिसने विषाक्त कर डाला,

जीवनदाई औषधियों में
जब से मिलावट आई है,
एक व्याधि के उपचार में
असाध्य व्याधि ने जलाई ज्वाला।

    31

झूठे रिस्ते नातों ने
रक्त भी झूठा कर डाला,
आज एक दूसरे को मानव ने
दिल से दूर कर डाला,

झूठी हंसी, झूठा रोना
झूठी संवेदनाएं होती हैं,
झूठे मानव ने स्वयं ही
बुझा डाली सम्बन्धों की ज्वाला।

    32

आज मधुशाला में धधकती
खूब मिलावट की ज्वाला,
चिरनिंद्रा में लीन हो गए
कितने असमय पीकर हाला,

आज मिलावट कण-कण में
क्या मंदिर क्या मधुशाला,
हर व्यक्ति के उर में आज
धधक रही मिलावट की ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला

    33

ईमानदारी और कर्तव्यनिष्टता
भुला चुका नेक चलन वाला,
हर दफ्तर, व्यवसाय, उध्योग में
धधक रही भ्रष्टाचार की ज्वाला,

चपरासी, बाबू,अफसर, नेता के,
बुने जाल जो जला सके,
प्रज्वलित नहीं हुई अभी तक
पावक तेरी ऐसी ज्वाला।

    34

लालायित हृदय से किसने
हाय किया नहीं घोटाला,
हर्ष-विकंपित कर से किसने
किए नहीं गड़बड़झाला,

हाथ खींच कर जिसने अपने
दूर दिया गड़बड़झाला,
व्यर्थ जला डाली खुद की
आहुती देकर जीवन ज्वाला।

    35

चलती है दफ्तर में  फ़ाइल
जब लिपटी नोटों की माला,
जीवन-मरण भी पंजीकृत होता
जब पिलाई जाती हाला,

अनुबंध, अनुज्ञप्ति, अनुशंसा मिलती
जब साथ हो गहरा प्याला,
अन्यथा चक्कर काटते बुझ जाती
जीवन की ये दिव्य ज्वाला।

    36

रहे सदैव कुर्सी सलामत
जिससे मिलती कंचन हाला,
बनी रहे यह मिट्टी जिससे
उत्पन्न भ्रष्टाचार की ज्वाला,

अविरल बहती इस धरा पर
तृप्त न जो होना जाने
उनका जीवन व्यर्थ ही समझो
कुंद उसकी जीवन की ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला


    37

हाथों में आते कई बार
हाय, फिसल जाता है प्याला,
जेब में आने से पहले ही
हाय खिसक जाती है हाला,

दुनियावालो आकर मेरी
रूठी किस्मत की खूबी देखो,
दूर छिटक कर हाथ जलाती
है मेरी, ये रिस्वत की ज्वाला।

    38

आ आगे आ कर ले ले
कह देता देने वाला,
गुप्तचर संग ले आता
कई बार देने वाला,

नहीं मुझे मालूम कहाँ तक
ले जाएगी ये रिस्वत हाला,
बढ़ा बढ़ा कर मुझको आगे
फिर पीछे करती ये ज्वाला।

    39

आज मिला है मुझको अवसर
क्यों न पिराऊँ नोटो की माला,
आज मिला है मौका मुझको
क्यों न गटकूँ अनीति की हाला,

तोड़-मोड़ कर नियम-अधिनियम
मन मर्जी से कार्य करूँ,
एक बार ही मिलती है
जीवन में ये दिव्य ज्वाला।

    40

कल का कोई विश्वास नहीं
आज का दिन निर्णय वाला,
आ सकती कोई रुकावट
उठ सकती है कोई ज्वाला,

आज कुर्सी, कलम पास है
कल का नहीं कोई भरोसा,
जितना संभव हो सकता है
कर प्रज्वलित निर्णय की ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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उत्तरभारत श्रमजीवी पत्रकार परिषद के 32वें सम्मेलन में दिनांक 3.3.2013 को बृजेन्द्र नेगी को साहित्य के लिए सम्मानित करते माननीय भगत सिंह कोशियारी,  सांसद व भूतपूर्व मुख्य मंत्री उत्तराखंड


Brijendra Negi

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पावक ज्वाला

    41

मुझे चढ़ाने लाये हो
बस इतनी सी छोटी माला,
मेरी प्यास बुझाने लाये
बस यह छोटा सा प्याला,

इतना ग्रहण करने से अच्छा
प्यासा ही मर मैं जाऊँ,
सिंधु-तृषा मैं लेकर आया
कैसे बुझेगी प्यासी ज्वाला।

    42

क्या कहते हो शेष नहीं अब
सब कुछ खा गया पहले वाला,
क्या कहते हो अब न चढ़ेगी
एक भी नोटों की माला,

थोड़ा खाकर भूख बढ़ी तो
शेष नहीं कुछ खाने को,
आधी थाली भोजन  से
कैसे बुझेगी भूखी ज्वाला ?

    43

कैसे कमाऊँ निर्द्वन्द जब तक
अधीनस्थों को न रंग में ढाला,
कैसे रहूँ निश्चिंत तब तक
धधके न अधीनस्थों की ज्वाला,

खोने का भय हरदम रहता
और अधिक पाने के पीछे,
पाने पर आनंद न मिलता
और धधकती पाने की ज्वाला।

    44

आज मिला है अवसर मुझको
जब वरिष्ठों को मैंने पाला,
बड़े जतन से उनको मैंने
अपने रंग में है ढाला,

नियम-अधिनियम से आज मै
क्यों न जी भर कर खेलूँ,
चंद समय की चमक है ये
क्यों न भड़काऊँ पद की ज्वाला।

क्रमश.....

Brijendra Negi

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पावक ज्वाला


    45

रिस्वत देकर की प्रज्वलित
मैंने इस कुर्सी की ज्वाला,
नशा अभी  परवान चढ़े
पी न सका इतनी हाला,

जब दी रिस्वत का दर्द सताता
शांत करता हूँ रिस्वत लेकर,
जब तक दर्द का शमन न होगा
कैसे बुझेगी रिस्वत की ज्वाला ?

    46

वीर शहीदों के रक्त की,
बना ले आया रक्तिम हाला,
उनके लिए बने ताबूतों से
भर कर लाया कंचन प्याला,

अति उदार दानी शहीद हैं
शांत शीतल है भारत माता,
सदैव देश के बाहर भीतर
धधकती रहे अशांति की ज्वाला।

    47

अपनी दी हुयी रिस्वत से
तन में भर गई इतनी ज्वाला,
तब से वह हर अवसर पर
लेता है नोटों की माला,

गले में गिरती मालाओं की
नोटों की गणना है करता,
माला में जड़े छोटे नोटों से
और भड़कती रिस्वत ज्वाला।

    48

यदि मुझको कार्य के बदले
देता है रिस्वत का प्याला,
तेरा भी तो कार्य अनैतिक
जो तूने है मन में पाला,

हानि बता तेरी है क्या
व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
तेरा ही तो कार्य किया है
प्रज्वलित कर अनीति की ज्वाला।

क्रमश.....

 

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